Saturday, March 15, 2014

सन्त कामरेड अब्दुल हफीज साहब---विजय राजबली माथुर

 15 मार्च जयंती दिवस पर विशेष स्मरण :

 आगरा भाकपा के नए  कार्यालय का नामकरण जिन कामरेड महादेव नारायण टंडन के नाम पर है वह आगरा में पार्टी के संस्थापक के रूप में जाने जाते हैं। टंडन जी ने आगरा मे भाकपा की स्थापना के बाद दूसरे शहरों से कई प्रतिभाशाली युवाओं को आगरा लाकर पार्टी को मजबूत किया था। इनमे से  दो का सान्निध्य मुझे भी मिला था। एक थे कामरेड अब्दुल हफीज साहब  जो टंडन जी की ही तरह स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी थे और पार्टी कार्यालय मे ही स्वास्थ्य ठीक रहने तक रहे। मजदूरों मे ही नहीं आम जनता मे भी वह  'चचे' नाम से जाने जाते थे। इनको टंडन जी झांसी से विद्यार्थी काल मे लाये थे।

होटल मुगल शेरटन,आगरा से 'सुपर वाईजर  अकाउंट्स' की पोस्ट से बर्खास्तगी को कानूनी चुनौती देने के दौरान कामरेड अब्दुल हफीज साहब से संपर्क हुआ था जो त्याग की सच्ची मूर्ती थे और उनको संत कामरेड की संज्ञा प्राप्त थी। उनको लोग प्यार से 'चचे' भी पुकारते थे और वह आगरा में भाकपा के पर्यायवाची थे। कम्युनिस्ट पार्टी से अभिप्राय आम जनता में चचे की पार्टी से था। यह ठीक उसी प्रकार था जैसे कि लखनऊ में कम्युनिस्ट पार्टी से अभिप्राय यहाँ के आम नागरिक कामरेड अतुल अंजान की पार्टी से लेते हैं। हफीज साहब ने पार्टी के आडिटर कामरेड हरीश आहूजा एडवोकेट के पास मुझे भेज दिया जिन्होने मेरा केस तैयार कराया। कामरेड आहूजा ने मुझे भाकपा में शामिल कर लिया।

1985 में जब मेरा चचे से संपर्क हुआ था तब भाकपा कार्यालय सुंदर होटल राजा-की-मंडी बाज़ार में स्थित था। चचे पार्टी के AITUC से सम्बद्ध होने के कारण मजदूरों के हितार्थ कार्य करते थे और उनके बारे में सुना था कि जब तक वह पूर्ण सक्रिय रहे खुद ही टाईप राईटर से मजदूरों की अर्ज़ियाँ टाईप करते व केस तैयार करते थे उनकी सक्रियता के दौरान मजदूरों को न्यायालयों  से बराबर न्याय मिलता रहा था। उनको जो स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी के रूप में सरकारी पेंशन मिलती थी उससे गुज़ारा चलाते हुये वह पार्टी कामरेड्स तथा आगंतुकों को भी अक्सर खुद चाय बना कर अपने हाथों से बड़े प्यार से पिलाया करते थे। 

बाहर से आने वाले बड़े नेता गण चाहे वे  आज के वयोवृद्ध कामरेड बर्द्धन जी हों  या पूर्व के  काली शंकर शुक्ला जी,राम नारायण उपाध्याय जी,जगदीश नारायण त्रिपाठी जी अथवा लल्लू सिंह चौहान साहब हों सभी चचे का सम्मान करने वाले रहे हैं। आगरा के सभी बड़े स्थानीय नेतागण तो उनका स्वभाविक सम्मान करते ही थे। कार्यकर्ताओं और मजदूरों के तो वह संरक्षक समान थे। कोई भी व्यक्ति जो एक भी बार उनके संपर्क में आ गया वह उनसे प्रभावित हुये बगैर नहीं रह सकता था।  अंतिम समय में उनको उनके भतीजे झांसी ले गए थे जो अक्सर पहले भी ले जाते रहे थे जबकि  उससे पहले कई बार वह पार्टी कार्यालय,आगरा लौट आते थे। 
आज के समय में चचे-कामरेड अब्दुल हफीज साहब सदृश्य नेताओं का सर्वथा आभाव है और यही कारण है कि पार्टी अपना पुराना गौरव भुला बैठी है। आज उनके जन्मदिन पर हम उनको हार्दिक श्रद्धांजली अर्पित करते हैं।


 ~विजय राजबली माथुर ©
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