"राहू काल से डरे हुये राजनेता"शीर्षक लेख की अंतिम पंक्तियों में कहा गया है -"आखिर लोगों की निजी 'आस्था' की आड़ में धर्म और राजनीति के इस घालमेल पर आप क्या कहेंगे?"
'धर्म'=सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा),अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य।
काश राजनीति में धर्म का समन्वय होता तो कोई संकट ही न खड़ा होता। धर्म विहीन राजनीति ही समस्त संकटों की जड़ है। व्यापारिक शोषण पर आधारित विभाजनकारी,विखंडंनकारी,उत्पीड़क 'ढोंग-पाखंड-आडंबर' कतई धर्म नहीं है जबकि लेख में उसी को धर्म की संज्ञा दी गई है । राजनेता ढोंग-पाखंड-आडंबर में अपने-अपने व्यापारिक/आर्थिक हितों के मद्दे नज़र उलझे हैं उसे राजनीति में धर्म का घालमेल कह कर बड़ी चालाकी से उद्योगपतियों,व्यापारियों और कारपोरेट घरानों के शोषण-उत्पीड़न को ढका गया है।
ज्योतिष=ज्योत + इष=प्रकाश का ज्ञान ।
ज्योतिष का उद्देश्य मानव जीवन को सुंदर,सुखद और समृद्ध बनाना है।
लेकिन लेख में जिस प्रक्रिया को ज्योतिष और धर्म की संज्ञा दी गई है वह ढोंग-पाखंड-विभ्रम है 'ज्योतिष' नहीं।यदि वास्तविक ज्योतिष ज्ञान के आधार पर राय दी गई होती तो एक ही व्यक्ति अनेक राजनेताओं को एक से मुहूर्त नहीं दे सकता था। किसी भी व्यक्ति पर उसके जन्मकालीन ग्रह-नक्षत्रों, उनके आधार पर उसकी महादशा-अंतर्दशा,तथा उसकी जन्म-कुंडली पर गोचर-कालीन ग्रहों का व्यापक प्रभाव पड़ता है फिर सबके लिए एक ही समय के मुहूर्त का क्या मतलब?और यह भी कि नामांकन निरधारित समयावधि में ही किया जा सकता है चाहे उस बीच मुहूर्त हो या न हो। एवं एक स्थान -क्षेत्र से एक ही प्रतिनिधि चुना जाएगा फिर परस्पर प्रतिद्वंदी मुहूर्त निकलवा कर क्या सिद्ध करेंगे?यह मूरखों को मूर्ख बनाने का गोरख धनदा है 'ज्योतिष' नहीं।
कुछ अति प्रगतिशील वैज्ञानिक 'ग्रह-नक्षत्रों'के प्रभाव को ही नहीं मानते हैं वैसे लोगों की मूर्खता के ही परिणाम हैं विभिन्न प्राकृतिक-प्रकोप।
यदि ग्रह-नक्षत्रों का प्राणियों पर प्रभाव पड़ता है तो वहीं प्राणियों का सामूहिक प्रभाव भी ग्रह-नक्षत्रों पर पड़ता है। एक बाल्टी में पानी भर कर उसमें गिट्टी फेंकेंगे तो 'तरंगे'दिखाई देंगी। यदि एक तालाब में उसी गिट्टी को डालेंगे तो हल्की तरंग मालूम पड़ सकती है किन्तु नदी या समुद्र में उसका प्रभाव दृष्टिगोचर नहीं होगा परंतु 'तरंग' निर्मित अवश्य होगी । इसी प्रकार सीधे-सीधी तौर पर मानवीय व्यवहारों का प्रभाव ग्रहों या नक्षत्रों पर दृष्टिगोचर नहीं हो सकता उसका एहसास तभी होता है जब प्रकृति दंडित करती है जैसे-उत्तराखंड त्रासदी,नर्मदा मंदिर ,कुम्भ आदि की भगदड़। क्योंकि ये सारे ढोंग-पाखंड-आडंबर झूठ ही धर्म का नाम लेकर होते हैं इसलिए इनमें भाग लेने वाले प्राकृतिक प्रकोप का शिकार होते हैं। ढोंग-पाखंड-आडंबर फैलाने का दायित्व केवल पुरोहितों-पंडे,पुजारी,मुल्ला-मौलवी,पादरी आदि का ही नहीं है बल्कि इनसे ज़्यादा तथाकथित 'प्रगतिशील' व 'वैज्ञानिक' होने का दावा करने वाले 'अहंकारी विद्वानों' का है जो उसी ढोंग-पाखंड-आडंबर को धर्म से संबोधित करते हैं बजाए कि जनता को समझाने व जागरूक करने के। यह लेख ऐसे विद्वानों का ही प्रतिनिधित्व करता है।
~विजय राजबली माथुर ©
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आपकी लिखी रचना बुधवार 09 अप्रेल 2014 को लिंक की जाएगी...............
ReplyDeletehttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
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ReplyDeleteNarendra Parihar-
krara prahar .....