** वीर कुँवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा के प्रोफेसर नीरज सिंह जी के विचार :
आज दिनांक 21 जून को लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार आदरणीय मुद्रा राक्षस जी ने 82 वें वर्ष में प्रवेश किया है किन्तु उनके प्रशंसकों ने कल ही राय उमानाथ बली प्रेक्षागृह के जयशंकर प्रसाद सभागार में 'मुद्रा जी अपनों के बीच' कार्यक्रम आयोजित करके मुद्राजी को जन्मदिन की पूर्व संध्या पर सम्मानित किया। लखनऊ के साहित्यकार और साहित्य प्रशंसक तो उपस्थित थे ही। आरा (बिहार ) से वीर कुँवर सिंह विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के प्रोफेसर नीरज सिंह व इलाहाबाद से राजर्षी पुरुषोत्तम दास टंडन विषविद्यालय के पत्राचार व फिल्म विभाग के पूर्व निदेशक प्रोफेसर सतीश चित्रवंशी भी विशेष रूप से समारोह में भाग लेने आए थे।
प्रो . नीरज सिंह जी ने अपने उद्बोधन में बताया कि उनके पास जब कौशल किशोर जी का फोन इस समारोह के संबंध में आया तो वह खुद के शामिल होने का लोभ संवरण न कर सके तथा मुद्रा जी से आशीर्वाद लेने के लिए आरा से लखनऊ आ गए। उनका कहना था उनके आरा में तो 82 वर्ष से जवानी शुरू होती है। इस संदर्भ में 1857 के वीर स्वतन्त्रता सेनानी बाबू कुँवर सिंह जी का उल्लेख करते हुये उन्होने उस ऐतिहासिक प्रसंग पर प्रकाश डाला जिसमें 82 वर्ष के कुँवर सिंह जी अवध की बेगम हज़रत महल का सहयोग करने हेतु आरा से आए थे। आजमगढ़ को फतह कर वह वापिस आरा लौटे थे।
प्रो . नीरज सिंह जी ने कहा कि आज फिर से 1857 सरीखी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो गई हैं। साम्राज्यवादी शोषण व उत्पीड़न चरम पर है जनता त्राहि-त्राहि कर रही है। ऐसे समय में मुद्रा राक्षस जी ही बाबू कुँवर सिंह जी की भांति संघर्ष को नई धार दे सकते हैं। हम सबको उनके नेतृत्व में एक नई क्रांति के लिए तैयार होना है।
सुभाष राय जी व कौशल किशोर जी की विशेष भूमिका इस समारोह के आयोजन में थी। सुभाष रायजी ने स्वम्य समारोह में उपस्थित होकर स्वतः ही रिपोर्टिंग तक की जिसका विस्तृत वर्णन उन्होने अपने समाचार-पत्र 'जन संदेश टाईम्स ' के प्रथम पृष्ठ पर दिया है। (स्कैन कापी नीचे दी जा रही है जिसे डबल क्लिक करके आसानी से पढ़ा जा सकता है ):
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~विजय राजबली माथुर ©
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