---विजय राजबली माथुर ***)
- 1300 वर्षों की गुलामी के दौरान रचे गए पुराणों की झाड-सफाई किए बगैर समाज मे स्थिरता व शांति कायम नहीं हो सकती। देखिये स्पष्ट बता रहे हैं डॉ सरोज मिश्रा जी---
Mishra Saroj
भारतीय मानस जिन्हे धर्म ग्रंथ कहता है .
मूलतः वे ही अधर्म को तर्क देते हैं
,इन्ही ने हमारे मॅन मस्तिस्क मे
स्त्री को भोग्या बना रखा है
स्त्री की योनि मे पत्थर .पुरुष डालता है .
स्त्री से सामूहिक व्यभिचार पुरुष करता है .
.जो उसने इन्ही धर्म ग्रंथो की क्षेपक कथाओं से सीखा है
मानुष के आचरण की सभ्यता को धर्म
किसी धर्म ग्रंथ ने नही कहा .
ढोंग पाखंड को धर्म कहता है .,
इन्ही धर्म ग्रंथो मे लंपट इंद्र
स्त्री के का शील भंग करता है
.इन्ही ने दुर्योधन की जाँघ पैर ड्रॉपड़ी को बैठाया गया
पाँच पाँच पतियों की भोग्या बनाया
इन्ही मे कुंती बिन ब्याही मा बनी ...
इसी लिए कहता हूँ की सावधान
यही ताकतें जो धर्म के नाम पर राजनीति करती हैं
वही स्त्री का शील हरण करती हैं
उन्हे मंदिरों मे गणिका बनाती हैं
उठो जागो .स्त्री को मुक्त करो
झूठे धार्मिक जकड़न से
लेने दो सांस उन्मुक्त ..............
जीने दो मनुष्य की तरह ..
वह तुम्हे जन्म देती है .
वह मा है .
वह प्रकृति है .पुरुष !!!!!!!!!!!!!!!
विनिष्ट मत करो
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Adarsh Bhalla :वह तुम्हे जन्म देती है .
वह मा है .
वह प्रकृति है .पुरुष !!!!!!!!!!!!!!!
विनिष्ट मत करो - Avdhesh Nigam इसी तरह जब तक आस्थाओं पर हथौड़े नहीं बरसेंगे कुछ होने वाला नहीं है इन धार्मिक ग्रंथों ने ही सारा कूड़ा पुरुष के दिमाग में भरा है |
- Avdhesh Nigam इसी तरह जब तक प्रचलित मान्यताओं और आस्थाओं पर हथौड़े नहीं बरसेंगे कुछ होने वाला नहीं है | इन धार्मिक ग्रंथों ने ही सारा कूड़ा पुरुष के दिमाग में भरा है और उसके दिमाग को विकृत कर दिया है |
- Vijai RajBali Mathur निगम साहब यही तो दुख और अफसोस है कि ढोंग-पाखंड-आडंबर के पुलिंदों को तो धर्म कह कर अनावश्यक महत्व दिया जाता है और वास्तविक धर्म=सद्गुणों को अफीम कह कर ठुकरा दिया जाता है। अपने 'क्रांतिस्वर' के माध्यम से व्यक्तिगत तौर पर मैं यही संघर्ष चला रहा हूँ।
- Avdhesh Nigam Vijai RajBali Mathur "क्रन्तिस्वर " कोई पत्रिका है या कोई संस्था ,फिलहाल मैं इससे जुड़ना चाहूँगा |
Vijai RajBali Mathur Avdhesh Nigam http://krantiswar.blogspot.in/ यह मेरा मुख्य ब्लाग है इस पर दूसरे मेरे ब्लाग्स के रेफरेंस भी मिल जाएँगे। आपके जुडने का स्वागत है।
~विजय राजबली माथुर ©
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