Wednesday, August 26, 2015

विकास के माडल का हश्र क्या सबक देता है? --- विजय राजबली माथुर

दिल्ली के  एक विश्वविद्यालय की अध्यापिका का जब कोई लेख 'द गार्जियन ' में छ्प जाता है तब 'हिंदुस्तान ' में उसे 'द गार्जियन ' से साभार स्थान दिया जाता है। क्यों नहीं मौलिक रूप से यह लेख हिंदुस्तान को ही मिला ? हमारे देश की यही विडम्बना है कि अपने लेखकों, कलाकारों आदि को वैसे तो कोई महत्व नहीं देते हैं लेकिन विदेशियों से उनको सराहना मिलने के बाद मजबूरी में उनके महत्व को स्वीकारते हैं। बहरहाल फिर भी इस लेख की बातों पर गंभीरता से गौर किए जाने की आवश्यकता है तब और भी जबकि 2014 का केंद्रीय चुनाव 'विकास ' के नाम पर लड़ा और जीता गया था तथा अब भी बिहार विधानसभा चुनावों में फिर से 'विकास ' को ही मुद्दा बनाया जा रहा है। जन-साधारण का ख्याल किए बगैर जो विकास योजनाएँ बनती हैं वे वस्तुतः विकास की नहीं 'विनाश ' की ध्वजावाहक होती हैं। यही चीन में हुआ है और उन जगहों पर होगा जहां-जहां ऐसा किया गया है। 

गांधी जी ने एक जगह लिखा है कि यदि कोई अर्थशास्त्री किसी व्यक्ति के शरीर से उसका मांस काट कर फिर उसमें पिन चुभाये और कहे कि इससे उस व्यक्ति को कोई पीड़ा नहीं होगी  तो ऐसी आर्थिक नीतियाँ उस व्यक्ति का कुछ भी भला नहीं कर सकती हैं। 1980 जब इन्दिरा गांधी आर एस एस के समर्थन से सत्ता में वापिस आईं तब से   और विशेष रूप से 1991 में मनमोहन सिंह के वित्तमंत्री बनने के बाद से तो साधारण आदमी को कुचलने वाली नीतियाँ ही चल रही हैं। 'विकास ' के नारों के साथ इस उत्पीड़न में और वृद्धि होती जा रही है।आज चीन की दुर्दशा के लिए ऐसे विकास को ही  प्रस्तुत लेख में जिम्मेदार  माना गया है। 

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संलग्न फोटो स्कैन यह दर्शाता है कि चीन में नैतिकता का भी ध्यान नहीं रखा गया है। वहाँ समृद्ध देशों के लिए अच्छे माल का उत्पादन और निर्यात किया जाता है बेहद सुविधापूर्ण परिस्थितियों के साथ। जबकि भारत जैसे देशों के लिए निकृष्ट माल बना कर और उसके जरिये इन देशों की अर्थ-व्यवस्था को कमजोर करने का प्रयास किया जाता है। 


मानव हित को ध्यान में न रख कर अनैतिक रूप से 'विकास ' करने के कारण ही आज चीन की अर्थ व्यवस्था को झटका लगा है। लेकिन उन नीतियों को ही भारत में अंगीकार किया गया है और वैसी ही 'विकास धुन' चल रही है। स्वभाविक  रूप से भारतीय जन साधारण के लिए 'विनाश ' की घंटी हैं ये तथाकथित विकास योजनाएँ। जन साधारण को राहत देना है तो 'कुटीर उद्योग ' पर आधारित आर्थिक नीतियों को प्रोत्साहन देना होगा। निजी क्षेत्र को समाप्त कर सार्वजनिक क्षेत्र को मजबूत करना होगा अन्यथा समझा जाये कि लक्ष्य  विकास के नाम पर विनाश फिर सर्वनाश को आमंत्रित करना है।    ~विजय राजबली माथुर ©
 इस पोस्ट को यहाँ भी पढ़ा जा सकता है।

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