Friday, September 18, 2015

क्या हम इतने कमजोर हो चुके हैं कि इन आतंक फैलाने वालों से डरते हैं ? --- अनिल पुष्कर



(अनिल पुष्कर)

Anil Pushker

हिंदुत्व की राजनीति करने वाले और हिन्दू होने का दावा करने वाले कुछ सवालों के जवाब दें या बताएं कि -
'हिन्दू' शब्द धर्म कब, किन, सन-शताब्दी, ईसा-पूर्व में बना? रामायण में हिन्दू और मुसलमान नहीं मिलते, गीता में हिन्दू और मुसलमान नहीं मिलते, वेदों में 'हिन्दू' और 'मुसलमान' नहीं मिलते तो हिन्दू शब्द राम के नाम पर राजनीति करने वालों ने कहाँ से लिया?
'हिंदुत्व' केवल मनुष्य के हत्या की राजनीति है. वरना हिंदुत्व धर्म कब, किस महाकाव्य और ग्रन्थ में लिखा गया. रामायण, महाभारत, गीता? किसमें?
'रामराज्य' कब भगवा रंग में रंगा गया? सीता ने कब भगवा रंग के वस्त्र पहने? केसरिया कहने वाले जो राजनीतिक पार्टी हिन्दू राजनीति क्र रही हैं वह इस बात को इतिहास में प्रमाणित करें.
'भगवा' रंग यानी 'केसरिया' रंग 'राम' के साथ क्या बाल्मीकि लेकर आये? तुलसीदास ने कहीं केसरिया रंग में क्या 'राम' का चरित्र दिखाया है? क्या मनुस्मृति में हिन्दू शब्द आया है? क्या मनुस्मृति में राम केसरिया/भगवा दिखाए गये हैं?
दरअसल केसरिया रंग तो सूफी परम्परा से आया है उनके गीतों में. वहां तो हिन्दू जैसा कोई कांसेप्ट नहीं था.
तो क्या हिन्दू होने का दावा करने वाले सूफी परम्परा से आये हैं? क्या श्रीराम कहीं भी सूफी परम्परा में दीखते हैं? अगर ऐसा नहीं है तो हिन्दू और हिंदुत्व को केसरिया में रंगने वाले लोग, सम्प्रदाय, केसरिया राम की राजनीति कब शुरू हुई?
जो खुद को हिन्दू और राम से जोडकर देखते हैं. जो इन शब्दों पर राजनीति करते हैं. वो चाहते क्या हैं? इस बात को समझना होगा. ये हत्या और दंगों की राजनीति करना चाहते हैं. ये दो सम्प्रदायों में हिंसा चाहते हैं, ये दो अलग ईश्वर को मानने वालों में खूनी जंग चाहते हैं. राम ने कब हिन्दू मुसलमान की लड़ाई लड़ी? मनुस्मृति ने कब हिन्दू मुसलमान की लड़ाई लड़ी? रामायण ने कब हिन्दू और महाभारत और गीता और वेदों में कब हिन्दू-मुसलमान की लड़ाई चली?
हिन्दू-मुसलमान की लड़ाई में 'राम' और 'अल्लाह' किस युग/शताब्दी/सन में आया?
जब मालूम हो जाय तो ये इतिहास मुझे भी पढ़ा देना. वरना हिन्दू और हिंदुत्व की राजनीति करने वालों का मकसद समझो. राम के नाम पर इनकी चाहत केवल सत्ता हासिल करना है. सियासत करना है. आदमियों की हत्यायों से केवल आतंक का शासन करना है? एक शब्द राम का आतंक. एक शब्द भगवा का आतंक. क्या हम इतने कमजोर हो चुके हैं कि इन आतंक फैलाने वालों से डरते हैं.
हिन्दू और हिंदुत्व के नाम पर जो लोग आतंक की राजनीति करना चाहते हैं उन्हें इन सभी सवालों के जवाब देने पड़ेंगे. वरना हिन्दू, हिंदुत्व और 'राम' का नाम लेना बंद करें. ये हत्या की राजनीति अब नहीं चलेगी. दंगों की राजनीति अब नहीं चलेगी. धार्मिक हिंसा की राजनीति अब नहीं चलेगी.
हमारे यहाँ इतिहास की परम्परा में राम के नाम पर कई तरह के रूप हैं एक कबीर के राम, जो इन हिन् हिन्दू राजनीतिक पार्टियों की तरह कतई दंगाई नहीं थे, एक तुलसीदास के राम जो इन हिन्दू ब्रिगेडियर्स की तरह कतई साम्प्रदायिक नहीं थे, एक बाल्मीकी के 'राम' जो इन हिन्दू राजनीतिक पार्टियों की तरह राम को लाखों मनुष्यों की हत्याओं में लिप्त नहीं होने देते.


(अनिल पुष्कर)
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17 सितंबर 2015 :

एक ओर पोंगापंथी और दूसरी ओर एथीस्ट वादी दोनों अपने -अपने तरीके से जनता को गुमराह करते रहते हैं। जहां पोंगापंथी 'गणेश' को चमत्कारी व पूज्य बनाए हुये हैं वहीं एथीस्ट वादी 'गणेश' को अपमानित करने में गौरान्वित महसूस कर रहे हैं। 
वास्तविकता स्वीकारना व समझाना दोनों में से कोई नहीं चाहता क्योंकि 'सत्य ' प्रचारित होने पर दोनों का गोरख-धंधा चौपट हो जाएगा। 
गणेश = गण + ईश अर्थात जो गण यानि जनता का ईश यानि नायक हो। 
जो स्वरूप गणेश का चित्रित किया गया है वह एक राजनेता के गुणों को स्पष्ट करता है। हाथी सरीखे कान सबकी सुनने वाला हो इसका प्रतीक हैं तो सूँड सूंघने अर्थात अनुमान से समझने की शक्ति का प्रतीक है। खाने के दाँत और दिखाने के दाँत एक राजनेता के उस गुण पर प्रकाश डालते हैं जिसके द्वारा वह प्रशासनिक गतिविधियों को 'गोपनीय' रखे तथा वही बोले जो आवश्यक हो। कुप्पा ऐसा पेट यह जतलाने के लिए है कि एक राजनेता में तमाम विपरीत बातों को भी हजम करने की क्षमता होनी चाहिए। 
चूहे की सवारी यह सिद्ध करने के लिए है कि घर,समाज,देश को कुतरने वाले पंचमारगियों को दबा कर रखना चाहिए उनको कुतरने का मौका नहीं मिलने देना चाहिए। 
लोकतन्त्र में जनता का नायक देश का राष्ट्रपति हुआ। अतः जब कहा जाता है-ॐ गनेशाय नमः तब उसका अर्थ होता है-THE FIRST SALUTATION TO THE "PRSIDENT" OF THE NATION केकिन आज हो क्या रहा है चतुर्दिक 'ढोंग-पाखंड-आडंबर' का बोलबाला और व्यापारियों की मौज। गरीब का शोषण-उत्पीड़न एवं धन्ना-सेठों का मनोरंजन। 
'सत्य' को कब स्वीकार करके अनुसरण किया जाएगा। या फिर पढे-लिखे मूर्ख व अनपढ़ मूर्ख एक सी हरकतें करके जनता को त्राहिमाम-त्राहिमाम करने को मजबूर करते रहेंगे ?




  ~विजय राजबली माथुर ©
 इस पोस्ट को यहाँ भी पढ़ा जा सकता है।

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