...ये ज्ञान के दुश्मन, नियम के दुश्मन-हर सुंदर चीज से चिढ़ते हैं...
Chandrashekhar Joshi
इक तारा भी है आवारा :-----------------------------------
कम बुद्धि के लोग जिस धरती को लूटने पर तुले हैं, उसे करोड़ों बुद्धिमानों ने संवारा है। सौरमंडल को प्रकृति ने गजब कारीगरी से सजाया, लेकिन वहां भी आवारा हैं। घर-परिवार से सौर परिवार तक आवारगी पैदाइशी खोट है। ये विफल जीवन के घुमंतु, कांतिम रोशनी बिखेरते हैं, सबको चौंकाते हैं। गर आवारा को मौका मिला तो जंगल-पर्वत, धरती-अंबर कुछ न बचेगा।
...ऐसा बताते हैं कि अरबों साल पहले हीलियम, हाइड्रोजन और कुछ अन्य गैसों के विशाल बादल या पिंड में एक महाविस्फोट हुआ। इस सुपरनोवा के बाद कई छोटे टुकड़े बिखर गए। आकाशगंगा के बाहरी इलाके पर हमारा सौरमंडल बना और इस केंद्र की परिक्रमा करने लगा। आकाशगंगा में अरबों तारे बने। हमारे सूरज ने अपना परिवार बनाया। आठ ग्रह, क्षुद्र ग्रह, उपग्रह, उल्का, धूमकेतु सभी एक सुंदर तश्तरी के अंग बन गए। घूर्णन का अक्ष बना, ग्रहों ने अपना घेरा बनाया और एक निश्चित दिशा में चल पड़े। सौरमंडल का सबसे बड़ा गैस दानव बृहस्पति भी गुरुत्वाकर्षण बल से बंध गया। सूर्य के प्लाज्मा से सौर हवाएं निकलीं। इन हवाओं ने तारों के बीच बुलबुलों का हेलिओमंडल बनाया। विविध नियमों के रंगों से तश्तरी सज गई। कई और भी आकाशगंगाएं बनीं, सभी के अपने सूरज बने। मातृ तारे ने सबको कुछ नियमों में बांध लिया।
...खगोल विज्ञानी मानते हैं कि जब यह प्रक्रिया चल रही थी तो कुछ पिंड स्वच्छंद विचरण पर दूर निकल गए। एक मत यह भी है कि इनकी गड़बड़ चाल देख, इन्हें सौरमंडल से बाहर धकेल दिया गया। जब सौर परिवारों की सजावट पूरी हो गई तो आवारा तारे पास आने लगे। सुंदरता में खलल डालना आवारा की फितरत होती है। यह किसी नियम से बंधते नहीं। ये अपनी बेतरतीब चाल से आते-जाते ग्रहों के नियमों को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं और तेज रोशनी बिखरते हैं। ब्रह्माण्ड के रहस्यों को जानने में जुटे विज्ञानियों को जब दूरबीनों में बार-बार दिक्कत महसूस होने लगी तो उनका दिमाग ठनक गया।
...हाल के वर्षों में खगोल शास्त्रियों ने हमारी मंदाकिनी के केन्द्र के पास एक भाग का निरीक्षण किया। करीब 500 लाख तारों का अध्ययन करने में एक चमत्कारिक घटना बार-बार दिखने लगी। इस बीच दूरबीन के लेंस प्रभावित होते रहे। तब समझ आया कि इतना गहरा प्रभाव कोई ग्रह ही डाल सकता है। जब गौर से समझा गया तो पता चला कि ये कोई विशालकाय तारे हैं। इनका द्रव्यमान महाकाय बृहस्पति से भी ज्यादा है। इनका अपने मातृ तारे से भी कोई संबंध नहीं है। ये आवारा ग्रह अंतरिक्ष में स्वतंत्र तैर रहे हैं।
...एक संभावना यह भी है कि ये भारी ग्रह किसी समय अपने मातृ तारे से ज्यादा दूरी पर परिक्रमा करते रहे होंगे। किसी खास समय में यह ग्रह अपने सौरमंडल से दूर फेंक दिए गए होंगे। इनकी संख्या बेतरतीब मानी जा रही है। खगोल विज्ञानियों के अनुसार आवारा ग्रहों की संख्या तारों की संख्या से दोगुनी तक हो सकती है। ध्यान रहे कि हमारी आकाशगंगा में ही सैकड़ों अरब तारे हैं।
...भटकते आवारा ग्रहों की बनावट जरा भिन्न होती है। ये झूठे पिंड, गैसीय गेंद हैं, इनमें बिरादरी के कोई अच्छे गुण नहीं हैं। इन ग्रहों का कोई चंद्रमा भी नहीं है। इनमें जीवन की कोई संभावना नहीं, सुंदरता से इनका दूर तलक नाता नहीं। खगोल विज्ञानी मानते हैं कि ये भीमकाय आवारा इतने खुराफाती होते हैं कि यदि इनको मौका मिल जाए तो कई ग्रहों को एकसाथ तबाह कर सकते हैं। लेकिन सौर परिवार की ताकत इतनी मजबूत है कि आवारा किसी का बाल बांका नहीं कर पाते।
...धरती में आवारा तत्वों की कमी नहीं। यह समाज की हर इकाई में पैदा हो सकते हैं। सदियों बाद भी मानव परिवार की एकता बेहद कमजोर है। यही कारण है कि मौका मिलते ही आवारा तत्व घर से लेकर सत्ता के शीर्ष तक हावी हो जाते हैं। इनकी हरकतें रोकने के बड़े उपाय होते हैं, पर जैसे ही इनका बस चला तो तबाही तय रहती है।
...ये ज्ञान के दुश्मन, नियम के दुश्मन-हर सुंदर चीज से चिढ़ते हैं...
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~विजय राजबली माथुर ©
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