Friday, June 26, 2015
एमर्जेंसी 26 जून 1975 की --- विजय राजबली माथुर
इस वर्ष 1975 में लगी एमर्जेंसी को 44 वर्ष हो गए हैं और काफी दिनों से लोग इस पर बहुत कुछ लिखते रहे हैं। 1971 के मध्यावधी चुनाव को बांग्ला देश निर्माण की पृष्ठ भूमि में इंदिरा कांग्रेस ने प्रचंड बहुमत से जीत तो लिया था किन्तु रायबरेली में उनके प्रतिद्वंदी रहे चौगटा मोर्चा के राजनारायण सिंह ने मोरारजी देसाई के समर्थन से उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय, इलाहाबाद में उनके चुनाव को रद्द करने के लिए एक याचिका दायर कर दी थी।मेरे कार्यस्थल के एक साथी मेरठ कालेज , मेरठ से ला कर रहे थे उनके शिक्षक सिन्हा साहब के एक रिश्तेदार जगमोहन लाल सिन्हा साहब उस याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। उन शिक्षक महोदय ने अपने छात्रों से कह दिया था कि निर्णय इन्दिरा जी के विरुद्ध भी जा सकता है। उन्होने उदाहरण स्वरूप चौधरी चरण सिंह संबंधी घटना का वर्णन किया था जिसमें उनके किसी चहेते का केस जस्टिस सिन्हा के पास मेरठ में चल रहा था और वह निर्णय उसके पक्ष में चाहते थे। मुख्यमंत्री रहते हुये चरण सिंह उनसे मिलने उनकी कोठी पर जब पहुंचे तो जस्टिस सिन्हा साहब ने अर्दली से पुछवाया कि चौधरी चरण सिंह मिलना चाहते हैं या उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री जिसके जवाब में चौधरी साहब ने कहलवाया था कि जज साहब से कह दो कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री चौधरी चरण सिंह मिलने आए हैं। जस्टिस सिन्हा ने चौधरी साहब को मिलने से इंकार कर दिया था और बाद में निर्णय भी उनके परिचित के विरुद्ध देते हुये डरे नहीं थे। इसलिए 12 जून 1975 के निर्णय को देते हुये जहां उन्होने राजनारायन द्वारा लगाए गए तमाम आरोपों को खारिज कर दिया था वहीं इंदिरा जी के चुनाव को भी दो तकनीकी कारणों के कारण रद्द कर दिया था। इंदिरा जी के चुनाव एजेंट यशपाल का सरकारी सेवा से त्याग पत्र विधिवत स्वीकृत न होने से उनको सरकारी अधिकारी माना गया और रायबरेली के जिलाधिकारी द्वारा सभा की तैयारी कराना भी सत्ता का दुरुपयोग माना गया । इन दो आधारों पर इन्दिरा जी का चुनाव रद्द हुआ था। उनके स्टेनो रहे आर के धवन ने अब कहा है कि इन्दिरा जी तब स्तीफ़ा देना चाहती थीं लेकिन उनके सहयोगियों ने नहीं देने दिया जो सर्वथा गलत वक्तव्य है।
वस्तुतः इंदिराजी को सुझाव दिया गया था कि वह बाबू जगजीवन राम को पी एम बनवा कर सुप्रीम कोर्ट में अपील करें। परंतु एन डी ए सरकार की मंत्री के पति संजय गांधी (जिनके निर्देश पर जगमोहन जी ने 'तुर्कमान गेट' और जामा मस्जिद क्षेत्र में फायरिंग करवाई थी ) की ज़िद्द के कारण इंदिराजी ने एमर्जेंसी के कागजात पर बिना केबिनेट की पूर्व स्वीकृति के विदेश गए राष्ट्रपति फख़रुद्दीन अली साहब को सोते से जगवा कर फ़ाईलो पर हस्ताक्षर करवाए थे। यह एमर्जेंसी 25 जून की सुबह 09 बजे लगनी थी और इंदिराजी के विश्वस्त गृहमंत्री उमाशंकर दीक्षित(दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित जी के श्वसुर साहब) को छोड़ कर अन्य मंत्रियों को इसकी कोई जानकारी न थी। उमाशंकर दीक्षित जी उत्तर प्रदेश के राजभवन के अतिथि कक्ष में निर्धारित समय पर घोषणा की अपेक्षा में टहलते रहे थे । इंदिरा जी कुछ द्विधा में थीं और उमाशंकर दीक्षित जी ने दिल्ली लौट कर उनका हौंसला बढ़ाया तब 25 जून 1975 की रात्रि में 2 या 3 बजे जाकर एमेर्जेंसी की घोषणा की गई। 26 जून 1975 को मैं अन्य साथी के साथ दिल्ली में था खुद अपनी आँखों से इंडियन एक्स्प्रेस के दफ्तर पर काले कपड़ों की विरोध पट्टिका को मुख्य द्वार पर देखा था । अखबार का मुख पृष्ठ केवल काले हाशिये के चौखटे के साथ छ्पा था उस पर कोई खबर नहीं थी।
होटल मुगल, आगरा में हमारे एक साथी लखनऊ के थे जो वस्तुतः उमाशंकर दीक्षित जी के दामाद के छोटे भाई अर्थात शीला दीक्षित जी की नन्द के देवर थे उनके पास अघोषित/अप्रकाशित खबरों का खजाना था उसी की कुछ मुख्य बातों का उल्लेख किया है। शुरू-शुरू में वह सज्जन आगरा के तत्कालीन DM विनोद दीक्षित जी के साथ रहे थे बाद में ताजगंज में अलग कमरा ले लिया था। जब अलग रहने लगे थे तब जब भी शीला दीक्षित जी किसी राजनीतिक/सामाजिक कार्य से होटल आती थीं तो उन सज्जन को बुलवा कर नियमित मिलती रहती थीं।
https://krantiswar.blogspot.com/2015/06/26-1975.html
~विजय राजबली माथुर ©
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