( सत्यपाल मलिक साहब 1969 तक मेरठ कालेज,मेरठ छात्र संघ के अध्यक्ष थे , उसके बाद सुप्रीम कोर्ट में प्रेक्टिस करते थे लेकिन बागपत से विधायक बनने के बाद सक्रिय राजनीति में पूर्ण रूप से शामिल हो गए थे। 1969 में मेरे कालेज में प्रवेश लेने के बाद वह अक्सर कालेज आते रहते थे। बांग्लादेश को मान्यता देने के विरोध में एकमात्र मेरा ही वक्तव्य था जिसका जिक्र उनके साथ उपाध्यक्ष रहे राजेन्द्र यादव ने उनसे किया था तब मलिक साहब ने मेरे कंधे को थपथपा कर कहा था कि हालांकि वह मेरे वक्तव्य से सहमत नहीं हैं फिर भी इस बात की खुशी है कि, मैंने जानते हुए भी कि सभी पक्ष में थे तब भी विपक्ष में विषय उठाया और अपनी बात रखी । उनका कहना था कि, मुझे भविष्य में भी इस निर्भीकता को बनाए रखना चाहिए। यही बात उस गोष्ठी के अध्यक्षता कर रहे कामर्स के विभागाध्यक्ष डाक्टर एल ए खान साहब ने तब कही थी ।
बाद में सत्यपाल मलिक साहब राहुल जी कि दादी और तत्कालीन पी एम इंदिरा जी के आह्वान पर पाँच विधायकों के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए थे और फिर वी पी सिंह साहब के साथ बाहर गए थे। )
पूर्व सांसद, मंत्री, राज्यपाल और किसान नेता - सत्यपाल मलिक जी के साथ दिलचस्प चर्चा!
मोदी सरकार की दुर्नितियों, खास कर पुलवामा में उनकी लापरवाही, किसान आंदोलन और काले कानूनों को लेकर उनका तानाशाही रवैया और कई महत्वपूर्ण राजनीतिक मुद्दों पर अपनी तीखी टिप्पणियों और आलोचना के लिए जाने जाने वाले, जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल, सत्यपाल मालिक जी से विस्तार में बातचीत हुई।
आलोचना करने वालों और जनता की आवाज़ उठाने वालों की तरफ इस सरकार का एक ही व्यवहार है - उनकी आवाज़ कुचलने की कोशिश करो। ऐसे ही गंभीर मुद्दों पर, जनता की मुश्किलों को हल करने वाले उपायों पर, राजतंत्र और मीडिया के इस्तेमाल से दबाए जा रहे कई मसलों को सतह पर लाने वाली एक दिलचस्प राजनीतिक चर्चा ------
~विजय राजबली माथुर ©
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