भारत के राजनीतिक दल (भाग-1)--पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें:
http://krantiswar.blogspot.in/2013/09/1.html
मुस्लिम लीग :
साम्राज्यवादी ब्रिटिश सरकार ने भारत का सांप्रदायिक विभाजन करने के उद्देश्य से बंगाल को हिन्दू-मुस्लिम के आधार पर पूर्वी और पश्चिमी भागों में 1905 में बाँट दिया था। 1906 में ढाका के नवाब मुश्ताक हुसैन वाईसराय की प्रेरणा से उनसे मुस्लिम मांगों को लेकर मिले जो मुस्लिम लीग के गठन का आधार बना। 1940 में इसने पाकिस्तान की मांग रखी और ब्रिटिश सरकार ने इसकी मांग को 1947 में पूरा कर दिया।
अब दक्षिण भारत के मालाबार क्षेत्र में ही इसका प्रभाव शेष है और इसके प्रायः सभी नेता कांग्रेस में समा गए थे।
हिन्दू महासभा :
इस दल की स्थापना मदन मोहन मालवीय,लाला लाजपत राय,विनायक दामोदर सावरकर,श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा ब्रिटिश साम्राज्यवाद से दिग्भ्रमित होकर मुस्लिम लीग के प्रतिक्रिया स्वरूप 1916 में की गई थी।मुसलमानों के लिए जो मांगें मुस्लिम लीग की थीं वैसी ही हिंदुओं के लिए इस दल की थीं। इसका दृष्टिकोण वही था जो आगे जा कर जनसंघ का बना। इसका 49वां अधिवेशन अप्रैल 1965 में पटना में हुआ था । पाकिस्तान से जनता की अदला-बदली तथा भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित करने की मांगें इस अधिवेन्शन में की गई थीं। 18 जूलाई 1965 को इसने कच्छ एवार्ड के विरोध में विरोध दिवस का आयोजन किया था। यद्यपि आज भी यह दल है किन्तु भाजपा की छत्र-छाया में चल रहा है।
अखिल भारतीय जनसंघ :
नेहरू मंत्रीमंडल में उद्योग -बाणिज्य मंत्री रहे श्यामा प्रसाद मुखर्जी की अध्यक्षता में 21 अक्तूबर 1951 ई में इस दल की स्थापना इसलिए की गई क्योंकि RSS ने खुद को सांस्कृतिक संगठन घोषित कर दिया था और राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ती हेतु एक राजनीतिक दल की आवश्यकता थी। प्रथम आम चुनावों में सफलता के बाद इस दल का संगठन बढ़ गया।
जनसंघ का ध्येय हिन्दू धर्म राज्य की स्थापना था । 1965 के विजयवाड़ा अधिवेन्शन में 8000 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। प्रतिक्रियावादी और सांप्रदायिक तत्वों को बढ़ावा देना इसकी कार्य प्रणाली की विशेषताएँ थीं। 1967 में उत्तर-प्रदेश की संविद सरकार में इसके प्रतिनिधि के रूप में पांडे जी,कल्याण सिंह आदि मंत्री बने थे। 1974 में नानाजी देशमुख के नेतृत्व में यह दल जे पी के पीछे लग गया और 1977 में जनता पार्टी में विलीन हो गया था। तब केंद्र सरकार में अटल बिहारी बाजपेयी,एल के आडवाणी,मुरली मनोहर जोशी आदि मंत्री बने थे।
भाजपा :
1980 में इन पूर्व जनसंघी लोगों ने जनता पार्टी से निकल कर भारतीय जनता पार्टी का गठन कर लिया था। 1991 में कई प्रदेशों में इसकी सरकारें बनी थीं आज भी कई प्रदेशों में यह सत्तारूढ़ है। 1998 से 2004 तक बाजपेयी के नेतृत्व में यह केंद्र में भी सत्तारूढ़ रहा। इस दौरान केंद्रीय सुरक्षा बलों,सेना तथा खुफिया संगठनों में भी RSS कार्यकर्ताओं की घुसपैठ कराने में यह दल सफल रहा है।
रामराज्य परिषद :
प्रथम आम चुनावों के अवसर पर श्री करपात्री जी द्वारा इसकी स्थापना की गई थी और एक-दो राज्यों की विधानसभाओं में 4-5 स्थान इसने प्राप्त किए थे अन्य स्थानों पर इसने जनसंघ व हिंदूमहासभा उम्मीदवारों का समर्थन किया था। अब यह संगठन मृतप्राय है।
दलित वर्ग सङ्घ:
हिन्दू धर्म के अछूत कहे जाने वाले भाइयों को संगठित करके डॉ भीमराव अंबेडकर ने इसकी स्थापना की थी। बाद में यह रिपब्लिकन पार्टी आफ इंडिया बना और अब नगण्य है।
शिरोमणि अकाली दल :
मुस्लिम लीग की तर्ज पर सिखों के लिए अकाली सत्याग्रह के माध्यम से इस दल का आविर्भाव हुआ था। प्रथम आम चुनावों में इसके उम्मीदवार कांग्रेस से बुरी तरह हार गए। बाद में जनसंघ से मिल कर इसने पंजाब में सरकार भी बनाई और आज भी भाजपा के साथ पंजाब में इसकी गठबंधन सरकार है।
द्रविण मुनेत्र कडगम:
यह ब्राह्मण-विरोधी जातियों को मिला कर बनाया गया दल है जो मूलतः स्वतंत्र तमिल राज्य स्थापित करना चाहता था। 1967 में सी एन अन्नादुराई के नेतृत्व में इसने सरकार बनाई थी। उनके निधन के बाद एम करुणानिधि के विरुद्ध एम जी रामचंद्रन ने अन्ना द्रविण मुनेत्र कडगम की स्थापना की। आजकल जयललिता के नेतृत्व में इसी गुट की सरकार चल रही है। अदल-बदल कर दोनों गुटों की सरकारें बनती रहती हैं।
बसपा :
डी एस -4 के रूप में पहले कांशीराम ने दलित वर्ग संघ की तर्ज पर एक संगठन बनाया फिर उसे एक राजनीतिक दल के रूप में परिवर्तित कर दिया। 1992 के चुनावों में सपा के साथ यह दल सरकार में शामिल हुआ फिर भाजपा से मिल कर कई बार सरकारें बनाईं। 2007 में मायावती के नेतृत्व में इसकी प्रथम स्वतंत्र सरकार बनी। इस समय उत्तर प्रदेश में प्रमुख विपक्षी दल है।
बांगला कांग्रेस,संमाँजवादी कांग्रेस,आदि कितने ही छोटे-छोटे क्षेत्रीय दल बने और समाप्त हो गए। जनता दल-यू,राष्ट्रीय जनता दल,बीजू जनता दल,नेशनल कान्फरेंस,एकता दल,अपना दल,जस्टिस पार्टी आदि अनेकों छोटे-छोटे दल आज भी अस्तित्व में हैं और चुनावों में भाग लेते हैं।
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मुस्लिम लीग :
साम्राज्यवादी ब्रिटिश सरकार ने भारत का सांप्रदायिक विभाजन करने के उद्देश्य से बंगाल को हिन्दू-मुस्लिम के आधार पर पूर्वी और पश्चिमी भागों में 1905 में बाँट दिया था। 1906 में ढाका के नवाब मुश्ताक हुसैन वाईसराय की प्रेरणा से उनसे मुस्लिम मांगों को लेकर मिले जो मुस्लिम लीग के गठन का आधार बना। 1940 में इसने पाकिस्तान की मांग रखी और ब्रिटिश सरकार ने इसकी मांग को 1947 में पूरा कर दिया।
अब दक्षिण भारत के मालाबार क्षेत्र में ही इसका प्रभाव शेष है और इसके प्रायः सभी नेता कांग्रेस में समा गए थे।
हिन्दू महासभा :
इस दल की स्थापना मदन मोहन मालवीय,लाला लाजपत राय,विनायक दामोदर सावरकर,श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा ब्रिटिश साम्राज्यवाद से दिग्भ्रमित होकर मुस्लिम लीग के प्रतिक्रिया स्वरूप 1916 में की गई थी।मुसलमानों के लिए जो मांगें मुस्लिम लीग की थीं वैसी ही हिंदुओं के लिए इस दल की थीं। इसका दृष्टिकोण वही था जो आगे जा कर जनसंघ का बना। इसका 49वां अधिवेशन अप्रैल 1965 में पटना में हुआ था । पाकिस्तान से जनता की अदला-बदली तथा भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित करने की मांगें इस अधिवेन्शन में की गई थीं। 18 जूलाई 1965 को इसने कच्छ एवार्ड के विरोध में विरोध दिवस का आयोजन किया था। यद्यपि आज भी यह दल है किन्तु भाजपा की छत्र-छाया में चल रहा है।
अखिल भारतीय जनसंघ :
नेहरू मंत्रीमंडल में उद्योग -बाणिज्य मंत्री रहे श्यामा प्रसाद मुखर्जी की अध्यक्षता में 21 अक्तूबर 1951 ई में इस दल की स्थापना इसलिए की गई क्योंकि RSS ने खुद को सांस्कृतिक संगठन घोषित कर दिया था और राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ती हेतु एक राजनीतिक दल की आवश्यकता थी। प्रथम आम चुनावों में सफलता के बाद इस दल का संगठन बढ़ गया।
जनसंघ का ध्येय हिन्दू धर्म राज्य की स्थापना था । 1965 के विजयवाड़ा अधिवेन्शन में 8000 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। प्रतिक्रियावादी और सांप्रदायिक तत्वों को बढ़ावा देना इसकी कार्य प्रणाली की विशेषताएँ थीं। 1967 में उत्तर-प्रदेश की संविद सरकार में इसके प्रतिनिधि के रूप में पांडे जी,कल्याण सिंह आदि मंत्री बने थे। 1974 में नानाजी देशमुख के नेतृत्व में यह दल जे पी के पीछे लग गया और 1977 में जनता पार्टी में विलीन हो गया था। तब केंद्र सरकार में अटल बिहारी बाजपेयी,एल के आडवाणी,मुरली मनोहर जोशी आदि मंत्री बने थे।
भाजपा :
1980 में इन पूर्व जनसंघी लोगों ने जनता पार्टी से निकल कर भारतीय जनता पार्टी का गठन कर लिया था। 1991 में कई प्रदेशों में इसकी सरकारें बनी थीं आज भी कई प्रदेशों में यह सत्तारूढ़ है। 1998 से 2004 तक बाजपेयी के नेतृत्व में यह केंद्र में भी सत्तारूढ़ रहा। इस दौरान केंद्रीय सुरक्षा बलों,सेना तथा खुफिया संगठनों में भी RSS कार्यकर्ताओं की घुसपैठ कराने में यह दल सफल रहा है।
रामराज्य परिषद :
प्रथम आम चुनावों के अवसर पर श्री करपात्री जी द्वारा इसकी स्थापना की गई थी और एक-दो राज्यों की विधानसभाओं में 4-5 स्थान इसने प्राप्त किए थे अन्य स्थानों पर इसने जनसंघ व हिंदूमहासभा उम्मीदवारों का समर्थन किया था। अब यह संगठन मृतप्राय है।
दलित वर्ग सङ्घ:
हिन्दू धर्म के अछूत कहे जाने वाले भाइयों को संगठित करके डॉ भीमराव अंबेडकर ने इसकी स्थापना की थी। बाद में यह रिपब्लिकन पार्टी आफ इंडिया बना और अब नगण्य है।
शिरोमणि अकाली दल :
मुस्लिम लीग की तर्ज पर सिखों के लिए अकाली सत्याग्रह के माध्यम से इस दल का आविर्भाव हुआ था। प्रथम आम चुनावों में इसके उम्मीदवार कांग्रेस से बुरी तरह हार गए। बाद में जनसंघ से मिल कर इसने पंजाब में सरकार भी बनाई और आज भी भाजपा के साथ पंजाब में इसकी गठबंधन सरकार है।
द्रविण मुनेत्र कडगम:
यह ब्राह्मण-विरोधी जातियों को मिला कर बनाया गया दल है जो मूलतः स्वतंत्र तमिल राज्य स्थापित करना चाहता था। 1967 में सी एन अन्नादुराई के नेतृत्व में इसने सरकार बनाई थी। उनके निधन के बाद एम करुणानिधि के विरुद्ध एम जी रामचंद्रन ने अन्ना द्रविण मुनेत्र कडगम की स्थापना की। आजकल जयललिता के नेतृत्व में इसी गुट की सरकार चल रही है। अदल-बदल कर दोनों गुटों की सरकारें बनती रहती हैं।
बसपा :
डी एस -4 के रूप में पहले कांशीराम ने दलित वर्ग संघ की तर्ज पर एक संगठन बनाया फिर उसे एक राजनीतिक दल के रूप में परिवर्तित कर दिया। 1992 के चुनावों में सपा के साथ यह दल सरकार में शामिल हुआ फिर भाजपा से मिल कर कई बार सरकारें बनाईं। 2007 में मायावती के नेतृत्व में इसकी प्रथम स्वतंत्र सरकार बनी। इस समय उत्तर प्रदेश में प्रमुख विपक्षी दल है।
बांगला कांग्रेस,संमाँजवादी कांग्रेस,आदि कितने ही छोटे-छोटे क्षेत्रीय दल बने और समाप्त हो गए। जनता दल-यू,राष्ट्रीय जनता दल,बीजू जनता दल,नेशनल कान्फरेंस,एकता दल,अपना दल,जस्टिस पार्टी आदि अनेकों छोटे-छोटे दल आज भी अस्तित्व में हैं और चुनावों में भाग लेते हैं।
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इस ब्लॉग पर प्रस्तुत आलेख लोगों की सहमति -असहमति पर निर्भर नहीं हैं -यहाँ ढोंग -पाखण्ड का प्रबल विरोध और उनका यथा शीघ्र उन्मूलन करने की अपेक्षा की जाती है.फिर भी तर्कसंगत असहमति एवं स्वस्थ आलोचना का स्वागत है.किन्तु कुतर्कपूर्ण,विवादास्पद तथा ढोंग-पाखण्ड पर आधारित टिप्पणियों को प्रकाशित नहीं किया जाएगा;इसी कारण सखेद माडरेशन लागू है.