Monday, September 27, 2010

अयोध्या विवाद साम्राज्यवादी साजिश



२४ सितम्बर 2010 शुक्रवार  को फैजाबाद की अदालत ने बाबरी मस्जिद/राम मंदिर विवाद में बौद्ध महा सभा का दावा खारिज कर दिया है,उत्तर  प्रदेश हाई कोर्ट के रुके फैसले पर  सुप्रीम कोर्ट को तय करना है कि वह जारी किया जाए या स्थगित रखा जाए.कुछ लोग मंदिर-मस्जिद समर्थकों में समझौता कराने की कोशिश कर रहे हैं,परन्तु सच्चाई कोई भी सामने आने देना नहीं चाहता.ब्रिटिश साम्राज्यवादियों ने सत्ता मुगलों से छीनी थी इसलिए शुरू में मुसलमानों को दबाया और १८५७ की क्रांति के बाद उन्हें उभारा उनका मुख्य उद्देश्य येन-केन-प्रकारेण अपनी सत्ता बनाये रखना था इसलिए वे यहाँ  सामाजिक सौहार्द्र नहीं बनने देना चाहते थे. 

महाभारत काल के बाद वैदिक मत क्षीण हो चुका था तमाम विसंगतियां उत्पन्न हो गयी थीं.अतः महात्मा बुद्ध ने उस पर करारा प्रहार किया.बौद्ध मत भारत ही नहीं विदेशों में भी फैला.भारत से नेपाल की तराई में बिहार-बंगाल तक बौद्ध मत के अनुयाई हो गए थे.बौद्ध मठों और विहारों की प्रचुरता थी.आज का बिहार तो विहारों की बहुतायात के ही कारण इस नाम को प्राप्त कर सका.वैष्णवों ने बौद्धों पर भीषण अत्याचार किये उनके मठों को उजाड़ा और विहारों को जलाया गया.इसलिए जब भारत में इस्लामी शासक आये तो बौद्धों ने उनका समर्थन और स्वागत किया तथा ख़ुशी-खुशी इस्लाम क़ुबूल कर लिया तथा अपने विहारों व मठों को मस्जिद में तब्दील कर दिया.इन्हीं में से एक वह मस्जिद अयोध्या की भी थी जिसका विवाद परिचर्चा में है. 

वास्तविकता यह है कि विवादित अयोध्या की स्थापना सम्राट हर्षवर्धन ने साकेत नाम से की थी जिसे कालान्तर में अयोध्या कहा जाने लगा परन्तु यह राम की जन्म भूमि नहीं है.राम के त्रेता युग की अयोध्या तो वर्तमान झारखंड के गिरिडीह जिले में है जो आज बिलकुल उपेक्षित है और उसके पुनरुद्दार पर किसी का भी ध्यान नहीं है.गोस्वामी तुलसी दास जी ने राम चरित मानस की रचना नाना पुराण निगमागम सम्मत और सर्वजन हिताय बहु जन सुखाय की थी जिस में राम-सीता विवाह वर्णन में जिन साधनों व समय का ज़िक्र किया गया है वह गिरिडीह से मिथिला पहुँचने का है.इस आज की अयोध्या से इतने कम समय में उन साधनों से नहीं पहुंचा जा सकता था.लेकिन आज के बुद्धिजीवी भी तथ्यों को सही सन्दर्भ में समझने को तैयार नहीं हैं तथा आस्था व विश्वास के नाम पर मरने और मारने की गुलाम मानसिकता से ग्रस्त है.

डाक्टर अम्बेडकर की द्वितीय पत्नी डाक्टर सविता अम्बेडकर जो ब्राह्मण पुत्री थीं इलाहबाद  हाईकोर्ट में बौद्ध मठ का  दावा करने आयीं थीं.वह कई दिन होटल में रुकने के बाद निराश हो कर लौट गयीं.कोई वकील उनकी रिट दायर करने को तैयार नहीं था,सच कोई भी सामने नहीं आने  देना चाहता था.तब भारतीय बौद्ध महासभा की ओर से बौद्ध भिक्षु दीपंकर धम्म ने फैजाबाद की अदालत में वाद संख्या १९/९१ के द्वारा विवादित स्थल को बौद्ध संपत्ति घोषित करने का दावा किया था.उन्होंने बताया कि इस का निर्माण बौद्ध अनुयायी विशाखा ने ''सुखा राम बौद्ध विहार''के रूप में कराया था.वह वाद तत्कालीन सिविल जज ने १० जुलाई १९९२ को अदम पैरवी में खारिज कर दिया जिस के बाद बौद्ध भिक्षु श्री धम्म ने १७ मई २००२ को वाज दायरा किया.उन्होंने बरेली के वकील महेंद्र प्रताप सिंह को पैरोकार नियुक्त किया था और बराबर फीस देते रहे जबकि वह वकील साः लगभग १०० वर्ष के हैं और वकालत छोड़ कर दिल्ली चले गए हैं.वादी के अधिवक्ता शत्रुहन गोस्वामी अब जिला न्यायाधीश के समक्ष रेगुलर सूट दायर करेंगे.

इस प्रकार हम देखते हैं कि आजादी के ६३ वर्ष बाद भी साम्राज्यवादी कुचक्र के तहत मंदिर/मस्जिद विवाद उभारा जाता है जबकि यह अयोध्या त्रेता युग के राम की है ही नहीं तो राम जन्म भूमि वहां कैसे हो गयी?
बौद्धों को उनकी वास्तविक संपत्ति वापिस की जानी चाहिए अथवा देश हित का कोई कार्य -संग्राहलय आदि वहां बनाना चाहिए तथा गुलामी के विवाद का सदा के लिए समाधान कर लेना चाहिए. 


Typist -यशवन्त


Sunday, September 26, 2010

प्रलय की भविष्यवाणी झूठी है-यह दुनिया अनूठी है--(अंतिम भाग)

(पिछली पोस्ट से आगे....)

प्रकृति में जितने भी जीव हैं उनमे मनुष्य ही केवल मनन करने के कारण श्रेष्ठ है,शेष जीव ज्ञान और विवेक द्वारा अपने उपार्जित कर्मफल को अच्छे या बुरे में बदल सकता है.कर्म तीन प्रकार के होते हैं-सद्कर्म का फल अच्छा,दुष्कर्म का फल बुरा होता है.परन्तु सब से महत्वपूर्ण अ-कर्म होता है  जिसका अक्सर लोग ख्याल ही नहीं करते हैं.अ-कर्म वह कर्म है जो किया जाना चाहिए था किन्तु किया नहीं गया.अक्सर लोगों को कहते सुना जाता है कि हमने कभी किसी का बुरा नहीं किया फिर हमारे साथ बुरा क्यों होता है.ऐसे लोग कहते हैं कि या तो भगवान है ही नहीं या भगवान के घर अंधेर है.वस्तुतः भगवान के यहाँ अंधेर नहीं नीर क्षीर विवेक है परन्तु पहले भगवान को समझें तो सही कि यह क्या है--किसी चाहर दिवारी में सुरक्षित काटी तराशी मूर्ती या  नाडी के बंधन में बंधने वाला नहीं है अतः उसका जन्म या अवतार भी नहीं होता.भगवान तो घट घट वासी,कण कण वासी है उसे किसी एक क्षेत्र या स्थान में बाँधा नहीं जा सकता.भगवान क्या है उसे समझना बहुत ही सरल है--अथार्त भूमि,-अथार्त गगन,व्-अथार्त वायु, I -अथार्त अनल (अग्नि),और -अथार्त-नीर यानि जल,प्रकृति के इन पांच तत्वों का समन्वय ही भगवान है जो सर्वत्र पाए जाते हैं.इन्हीं के द्वारा जीवों की उत्पत्ति,पालन और संहार होता है तभी तो GOD अथार्त Generator,Operator ,Destroyer  इन प्राकृतिक तत्वों को  किसी ने बनाया नहीं है ये खुद ही बने हैं इसलिए ये खुदा हैं.

जब भगवान,गौड और खुदा एक ही हैं तो झगड़ा किस बात का?परन्तु झगड़ा है नासमझी का,मानव द्वारा मनन न करने का और इस प्रकार मनुष्यता से नीचे गिरने का.इस संसार में कर्म का फल कैसे मिलता है,कब मिलता है सब कुछ एक निश्चित प्रक्रिया के तहत ही होता है जिसे समझना बहुत सरल है किन्तु निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा जटिल बना दिया गया है.हम जितने भी सद्कर्म,दुष्कर्म या अकरम करते है उनका प्रतिफल उसी अनुपात में मिलना तय है,परन्तु जीवन काल में जितना फल भोग उसके अतिरिक्त कुछ शेष भी बच जाता है.यही शेष अगले जनम में प्रारब्ध(भाग्य या किस्मत) के रूप में प्राप्त होता है.अब मनुष्य अपने मनन द्वारा बुरे को अच्छे में बदलने हेतु एक निश्चित प्रक्रिया द्वारा समाधान कर सकता है.यदि समाधान वैज्ञानिक विधि से किया जाए तो सुफल परन्तु यदि ढोंग-पाखंड विधि से किया जाये तो प्रतिकूल फल मिलता है.

प्रारब्ध को समझने हेतु जन्म समय के ग्रह-नक्षत्रों से गणना करते हैं और उसी के अनुरूप समाधान प्रस्तुत करते हैं.अधिकाँश लोग इस वैज्ञानिक नहीं चमत्कार का लबादा ओड़ कर भोली जनता को उलटे उस्तरे से मूढ़ते हैं.गाँठ के पूरे किन्तु अक्ल के अधूरे लोग तो खुशी खुशी मूढ़ते हैं लेकिन अभावग्रस्त  पीढित लोगों को भी भयाक्रांत करके जबरन मूढा जाता है जो कि ज्योतिष के नियमों के विपरीत है.ज्योतिष में २+२=४ ही होंगे किन्तु जब पौने चार या सवा चार बता कर लोगों को गुमराह किया जाए तो वह ज्योतिष नहीं ठगी का उदहारण बन जाता है .ज्योतिष जीवन को सही दिशा में चलाने के संकेत देता है.बस आवश्यकता है सही गणना करने की और समय को साफ़ साफ़ समझने और समझाने की.जिस प्रकार धूप या वर्षा को हम रोक तो नहीं सकते परन्तु उसके प्रकोप से बचने हेतु छाता और बरसाती का प्रयोग कर लेते हैं उसी प्रकार जीवन में प्रारब्ध के अनुसार आने वाले संकटों का पूर्वानुमान लगाकर उनसे बचाव का प्रबंध किया जा सकता है और यही ज्योतिष विज्ञान का मूल आधार है.कुछ लोग अपने निजी स्वार्थों के कारण इस ज्योतिष का व्यापारीकरण करके इसके वैज्ञानिक आधार को क्षति पहुंचा देते हैं उन से बचने और बचाने की आवश्यकता है.मनुष्य अपने ग्रह-नक्षत्रों द्वारा नियंत्रित पर्यावरण की उपज है.

पर्यावरण को शुद्ध रखना और ग्रह नक्षत्रों का शमन करना ज्योतिष विज्ञान सिखाता है.हम ज्योतिष के वैज्ञानिक नियमों का पालन कर के अनूठी दुनिया  का अधिक से अधिक लुत्फ़ उठा सकते हैं.आवश्यकता है सच को सच स्वीकार करने की और अपनी इस धरती को तीन लोक से न्यारी बनाने की. 

Typist -यशवन्त

Friday, September 24, 2010

प्रलय की भविष्यवाणी झूठी है-ये दुनिया अनूठी है

एक समय हमारे देश में जगन मिथ्या का मिथ्या का पाठ पढाया जाने लगा था.मध्य अमेरिकी माया सभ्यता ने पहले पहल भविष्यवाणी की थी कि,21  दिसंबर 2012  को यह दुनिया समाप्त हो जाएगी.प्राचीन चीनी पुस्तक चाइनीज़ बुक  ऑफ चेंजेज़ एवं बाइबिल तथा कुछ पौराणिक ग्रन्थ भी ऐसी ही संभावना व्यक्त करते हैं.आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार अमेरिका का येलो स्टोन नेशनल पार्क गर्म सोतों का क्षेत्र है जो दुनिया के सबसे बड़े ज्वालामुखी के ऊपर स्थित है.वैज्ञानिकों के अनुसार हर साड़े छः लाख वर्ष बाद यह ज्वालामुखी फटता है.वैसे यह समय निकल चुका है किन्तु भू-गर्भ वैज्ञानिक २०१२ में इसके फटने का अनुमान लगा रहे हैं.लन्दन की एक महिला ने 1970  के आस पास भविष्यवाणी की थी कि world  will  end  in  1991 .उन्नीस वर्ष बाद भी दुनिया अपनी जगह कायम है.फ्रांसीसी भविष्य वेत्ता नेस्त्रादम ने 1999 में चीन द्वारा अमेरिका पर आक्रमण किये जाने से तृतीय विश्व युद्ध होने की बात कही थी जो नहीं हुआ.वर्ष 2004 में बाबा जी पत्रिका में भविष्यवाणी छपी थी कि पूर्व प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी 15 दिन के भीतर सत्ता में वापिस आ जायेंगे.आखिर सभी भविष्यवाणियाँ थोथी क्यों सिद्ध हुईं?बर्कले विश्वविद्यालय के भौतिकी वैज्ञानिकों समेत सभी की भविष्यवाणियाँ 2012 में प्रलय का खौफ पैदा कर सकती हैं परन्तु प्रलय लाने में कामयाब नहीं होंगी-आखिर क्यों?इस अनूठी दुनिया को समझने का  यथार्थ रहस्य हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों ने शुद्ध वैज्ञानिक आधार पर बहुत पहले ही खोज रखा है-आवश्यकता है बुद्धि का सही प्रयोग कर उसे समझने की.
किसी भी विषय के क्रमबद्ध एवं नियम बद्ध अध्ययन को विज्ञान कहते हैं और विज्ञान के नियमों में एक निश्चित अनुपात रहता है.उदाहरण के तौर पर -हाइड्रोजन के दो भाग और ऑक्सीजन का एक भाग मिलने से पानी बनेगा.अब यदि हाइड्रोजन के दो भाग के साथ ऑक्सीजन भी दो भाग मिला देंगे तो वह हाइड्रोजन पराक्साइड बनकर उड़ जायेगा.यजुर्वेद 40/5  के अनुसार तद दूरे तदवान्तक अथार्त सम्पूर्ण  ब्रह्मांड में विद्यमान होने के कारण परमात्मा दूर से भी दूर व पास से भी पास है.यजुर्वेद 31 -3 के अनुसार परमात्मा के 1 /4 भाग में यह ब्रह्मांड विद्यमान है अतः ब्रह्मांड के 3 /4 भाग में परमात्मा है.परमात्मा अथार्त ब्रह्मा का दिन और रात कितने समय का है वह इस गणना से स्पष्ट होगा:-
कलयुग-4 लाख 32 हज़ार वर्ष
द्वापर युग (कल*2 )-8 लाख 64 हज़ार वर्ष
त्रेता युग (कल*3 )-12 लाख 96 हज़ार वर्ष
सत युग (कल*4 )-17 लाख 28 हज़ार वर्ष
एक चतुर्युगी=43 लाख 20 हज़ार वर्ष
एक हज़ार चतुर्युगी=43 लाख 20 हज़ार*1000
अथार्त 4 अरब 32 करोड़ वर्ष का ब्रह्मा का एक दिन और इतना ही समय रात का होता है.
दिन अथार्त सृष्टि और रात अथार्त प्रलय.
वर्तमान समय में इस सृष्टि का 1 अरब 97 करोड़ 29 लाख 49 हज़ार 110 वां वर्ष चल  रहा है  अथार्त अभी भी २ अरब ३४ करोड़ ७० लाख ५० हज़ार ८९० वर्ष यह सृष्टी चलेगी उसी के बाद प्रलय होगी.अतः उससे पूर्व २०१२ या कभी भी प्रलय - भविष्य वाणी अवैज्ञानिक होने के कारण झूठी ही सिद्ध होगी.
मुंबई के श्री वेंकटेश्वर शताब्दी पञ्चांग (जो संवत 2100 तक का है) के अनुसार 21 दिसंबर 2012 को ग्रह स्थिति निम्न प्रकार होगी-
दिन-शुक्रवार
तिथी-नवमी
सूर्य-धनु राशी में
चन्द्रमा-मीन राशी में
मंगल-मकर राशी में
बुध-वृश्चिक राशी में
गुरु -वृष राशी में
शुक्र-वृश्चिक राशी में
शनि-तुला राशी में
राहू-वृश्चिक राशी में
केतु-वृष राशी में
हम और आप जिस दुनिया में रह रहे हैं वह अभी ख़तम होने वाली नहीं है,घबराइये नहीं और परमात्मा की कृति इस इस अनूठी दुनिया में अपने जीवन का भरपूर लुत्फ़ उठाइए.यह दुनिया है क्या और यह जीवन क्या है?यह सृष्टी यह दुनिया तीन तत्वों पर आधारित है-आत्मा,परमात्मा और प्रकृति.इनमे से एक को भी कम करदें तो यह सृष्टी नहीं चल सकती.परमात्मा और आत्मा सखा हैं अजर और अमर हैं,प्रकृति भी नष्ट नहीं होती है परन्तु उस का रूपांतरण हो जाता है.प्रकृति में समस्त पदार्थ ठोस,द्रव और गैस  हैं,ठोस रूप में वह बर्फ है,द्रव रूप में जल  और गैस रूप में हाइड्रोजन व् ऑक्सीजन के परमाणुओं में बदल जाता है.प्रकृति में सत रज और तम के परमाणुओं का सम्मिश्रण पाया जाता है और ये विषम अवस्था में होते हैं तभी सृष्टी का संचालन होता है.इन तीनों की सम अवस्था ही प्रलय की अवस्था है.प्रकृति में हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है और कोई भी दो तत्व मिल कर तीसरे का सृजन करते हैं.उदाहरण के लिए गाय के गोबर और दही को एक सम अवस्था में  किसी मिटटी के बर्तन में वर्षा ऋतु में बंद कर के रख दें तो बिच्छू का उद्भव हो जायेगा जो घातक जीव है,जबकि गोबर और दही दोनों ही मानव के लिए कल्याणकारी हैं.अब यदि rectified sprit में बिच्छू को पकड कर डाल दें और जब स्प्रिट में उसका विलयन हो जाए तो फ़िल्टर से छान कर सुरक्षित रखने पर वही बिच्छू दंश उपचार हेतु सटीक औषधी  है.हम देखते हैं कि गोबर  और दही की क्रिया पर प्रतिक्रिया स्वरुप बिच्छू,और बिच्छू और स्प्रिट की क्रिया पर बिच्छू काटे में उपचार हेतु दवा प्राप्त हो जाती है.
शेष अगली पोस्ट में.......
(विशेष-मेरा यह आलेख मई २०१० में  लखनऊ के एक साप्ताहिक समाचार पत्र में प्रकाशित हो चुका है,जन कल्याणार्थ इसे यहाँ भी प्रस्तुत किया जा रहा है.)
Typist -यशवन्त माथुर  

Thursday, September 23, 2010

ज्योतिष और हम

अक्सर यह चर्चा सुनने को मिलती है की ज्योतिष का सम्बन्ध मात्र धर्म और आध्यात्म से है.यह विज्ञान सम्मत नहीं है और यह मनुष्य को भाग्य के भरोसे जीने को मजबूर कर के अकर्मण्य बना देता है.परन्तु ऐसा कथन पूर्ण सत्य नहीं है.ज्योतिष पूर्णतः एक विज्ञान है.वस्तुतः विज्ञान किसी भी विषय के नियम बद्द एवं क्रमबद्द अध्ययन को कहा जाता है.ज्योतिष के नियम खगोलीय गणना पर आधारित हैं और वे पूर्णतः वैज्ञानिक हैं वस्तुतः ज्योतिष में ढोंग पाखण्ड का कोंई स्थान नहीं है.परन्तु फिर भी हम देखते हैं कि कुछ लोग अपने निजी स्वार्थों की खातिर जनता को दिग्भ्रमित कर के ठगते हैं और उन्हीं के कारण सम्पूर्ण ज्योतिष विज्ञान पर कटाक्ष किया जाता है.यह एक गलत क्रिया की गलत प्रतिक्रिया है.जहाँ तक विज्ञान के अन्य विषयों का सवाल है वे What & How का तो जवाब देते हैं परन्तु उनके पास Why का उत्तर नहीं है.ज्योतिष विज्ञान में इस Why का भी उत्तर मिल जाता है.
जन्म लेने वाला कोई भी बच्चा अपने साथ भाग्य (प्रारब्ध) लेकर आता है.यह प्रारब्ध क्या है इसे इस प्रकार समझें कि हम जितने भी कार्य करते हैं,वे तीन प्रकार के होते हैं-सद्कर्म,दुष्कर्म और अकर्म.
यह तो सभी जानते हैं की सद्कर्म का परिणाम शुभ तथा दुष्कर्म का अशुभ होता है,परन्तु जो कर्म किया जाना चाहिए और नहीं किया गया अथार्त फ़र्ज़ (duity) पूरा नहीं हुआ वह अकर्म है और इसका भी परमात्मा से दण्ड मिलता है.अतएव सद्कर्म,दुष्कर्म,और अकर्म के जो फल इस जन्म में प्राप्त नहीं हो पाते वह आगामी जन्म के लिए संचित हो जाते हैं.अब नए जन्मे बच्चे के ये संचित कर्म जो तीव्रगामी होते हैं वे प्रारब्ध कहलाते हैं और जो मंदगामी होते हैं वे अनारब्ध कहलाते हैं.मनुष्य अपनी बुद्धि व् विवेक के बल पर इस जन्म में सद्कर्म ही अपना कर ज्ञान के द्वारा अनारब्ध कर्मों के दुष्फल को नष्ट करने में सफल हो सकता है और मोक्ष भी प्राप्त कर सकता है.मोक्ष वह अवस्था है जब आत्मा को कारण और सूक्ष्म शरीर से भी मुक्ति मिल जाती है.और वह कुछ काल ब्रह्मांड में ही स्थित रह जाता है.ऐसी मोक्ष प्राप्त आत्माओं को संकटकाल में परमात्मा पुनः शरीर देकर जन-कल्याण हेतु पृथ्वी पर भेज देता है.भगवान् महावीर,गौतम बुद्ध,महात्मा गांधी,स्वामी दयानंद ,स्वामी विवेकानंद,आदि तथा और भी बहुत पहले मर्यादा पुरषोत्तम श्री राम एवं योगी राज श्री कृष्ण तब अवतरित हुए जब पृथ्वी पर अत्याचार अपने चरम पर पहुँच गया था.
जब किसी प्राणी की मृत्यु हो जाती है तो वायु,जल,आकाश,अग्नि और पृथ्वी इन पंचतत्वों से निर्मित यह शरीर तो नष्ट हो जाता है परन्तु आत्मा के साथ-साथ कारण शरीर और सूक्ष्म शरीर मोक्ष प्राप्ति तक चले चलते हैं और अवशिष्ट संचित कर्मफल के आधार पर आत्मा भौतिक शरीर को प्राप्त कर लेती है जो उसे अपने किये कर्मों का फल भोगने हेतु मिला है.यदि जन्म मनुष्य योनी में है तो वह अपनी बुद्धि व विवेक के प्रयोग द्वारा मोक्ष प्राप्ति का प्रयास कर सकता है.
बारह राशियों में विचरण करने के कारण आत्मा के साथ चल रहे सूक्ष्म व कारण शरीर पर ग्रहों व नक्षत्रों का प्रभाव स्पष्ट अंकित हो जाता है.जन्मकालीन समय तथा स्थान के आधार पर ज्योतिषीय गणना द्वारा बच्चे की जन्म-पत्री का निर्माण किया जाता है और यह बताया जा सकता है कि कब कब क्या क्या अच्चा या बुरा प्रभाव पड़ेगा.अच्छे प्रभाव को प्रयास करके प्राप्त क्या जा सकता है और लापरवाही द्वारा छोड़ कर वंचित भी हुआ जा सकता है.इसी प्रकार बुरे प्रभाव को ज्योतिष विज्ञान सम्मत उपायों द्वारा नष्ट अथवा क्षीण किया जा सकता है और उस के प्रकोप से बचा जा सकता है.जन्मकालीन नक्षत्रों की गणना के आधार पर भविष्य फल कथन करने वाला विज्ञान ही ज्योतिष विज्ञान है.
ज्योतिष कर्मवान बनाता है
ज्योतिष विज्ञान से यह ज्ञात करके कि समय अनुकूल है तो सम्बंधित जातक को अपने पुरुषार्थ व प्रयास से लाभ उठाना चाहिए.यदि कर्म न किया जाये और प्रारब्ध के भरोसे हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहे तो यह अवसर निष्फल चला जाता है.इसे एक उदहारण से समझें कि माना आपके पास कर्णाटक एक्सप्रेस से बंगलौर जाने का reservation है और आप नियत तिथि व निर्धारित समय पर स्टेशन पहुँच कर उचित plateform पर भी पहुँच गए पर गाड़ी आने पर सम्बंधित कोच में चढ़े नहीं और plateform पर ही खड़े रह गए.इसमें आपके भाग्य का दोष नहीं है.यह सरासर आपकी अकर्मण्यता है जिसके कारण आप गंतव्य तक नहीं पहुँच सके.इसी प्रकार ज्योतिष द्वारा बताये गए अनुकूल समय पर तदनुरूप कार्य न करने वाले उसके लाभ से वंचित रह जाते हैं.लेकिन यदि किसी की महादशा/अन्तर्दशा अथवा गोचर ग्रहों के प्रभाव से खराब समय चल रहा है तो ज्योतिष द्वारा उन ग्रहों को ज्ञात कर के उनकी शान्ति की जा सकती है और हानि से बचा भी जा सकता है,अन्यथा कम किया जा सकता है.
ज्योतिष अकर्मण्य नहीं बनाता वरन यह कर्म करना सिखाता है.परमात्मा द्वारा जीवात्मा का नाम क्रतु रखा गया है.क्रतु का अर्थ है कर्म करने वाला.जीवात्मा को अपने बुद्धि -विवेक से कर्मशील रहते हुए इस संसार में रहना होता है.जो लोग अपनी अयोग्यता और अकर्मण्यता को छिपाने हेतु सब दोष भगवान् और परमात्मा पर मढ़ते हैं वे अपने आगामी जन्मों का प्रारब्ध ही प्रतिकूल बनाते हैं.
ज्योतिष अंधविश्वास नहीं
कुछ निहित स्वार्थी तत्वों ने ज्योतिष विज्ञान का दुरूपयोग करते हुए इसे जनता को उलटे उस्तरे से मूढने का साधन बना डाला है.वे लोग भोले भाले एवं धर्मभीरु लोगों को गुमराह करके उनका मनोवैज्ञानिक ढंग से दोहन करते हैं और उन्हें भटका देते हैं.इस प्रकार से पीड़ित व्यक्ति ज्योतिष को अंधविश्वास मानने लगता है और इससे घृणा करनी शुरू कर देता है.ज्योतिषीय ज्ञान के आधार पर होने वाले लाभों से वंचित रहकर ऐसा प्राणी घोर भाग्यवादी बन जाता है और कर्महीन रह कर भगवान को कोसता रहता है.कभी कभी कुछ लोग ऐसे गलत लोगों के चक्रव्यूह में फंस जाते हैं,जिन के लिए ज्योतिष गंभीर विषय न हो कर लोगों को मूढने का साधन मात्र होता है.इसी प्रकार कुछ कर्म कांडी भी कभी -कभी ज्योतिष में दखल देते हुए लोगों को ठग लेते हैं. साधारण जनता एक ज्योतिषी और ढोंगी कर्मकांडी में विभेद नहीं करती और दोनों को एक ही पलड़े पर रख देती है.इससे ज्योतिष विद्या के प्रति अनास्था और अश्रद्धा उत्पन्न होती है और गलतफहमी में लोग ज्योतिष को अंधविश्वास फैलाने का हथियार मान बैठते हैं.जबकि सच्चाई इसके विपरीत है.मानव जीवन को सुन्दर,सुखद और समृद्ध बनाना ही वस्तुतः ज्योतिष का अभीष्ट है.
क्या ग्रहों की शांति हो सकती है?
यह संसार एक परीक्षालय(Examination Hall) है और यहाँ सतत परीक्षा चलती रहती है.परमात्मा ही पर्यवेक्षक(Invegilator) और परीक्षक (Examiner) है. जीवात्मा कार्य क्षेत्र में स्वतंत्र है और जैसा कर्म करेगा परमात्मा उसे उसी प्रकार का फल देगा.आप अवश्य ही जानना चाहेंगे कि तब ग्रहों की शांति से क्या तात्पर्य और लाभ हैं?मनुष्य पूर्व जन्म के संचित प्रारब्ध के आधार पर विशेष ग्रह-नक्षत्रों की परिस्थिति में जन्मा है और अपने बुद्धि -विवेक से ग्रहों के अनिष्ट से बच सकता है.यदि वह सम्यक उपाय करे अन्यथा कष्ट भोगना ही होगा.जिस प्रकार जिस नंबर पर आप फोन मिलायेंगे बात भी उसी के धारक से ही होगी,अन्य से नहीं.इसी प्रकार जिस ग्रह की शांति हेतु आप मंत्रोच्चारण करेंगे वह प्रार्थना भी उसी ग्रह तक हवन में दी गयी आपकी आहुति के माध्यम से अवश्य ही पहुंचेगी.अग्नि का गुण है उसमे डाले गए पदार्थों को परमाणुओं (Atoms) में विभक्त करना और वायु उन परमाणुओं को मन्त्र के आधार पर ग्रहों की शांति द्वारा उनके प्रकोप से बच सकता है.प्रचलन में लोग अन्य उपाय भी बताते हैं परन्तु उन से ग्रहों की शांति होने का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं मिलता,हाँ मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ सकता है.

Thursday, September 16, 2010

ब्रह्मवर्चसी जायताम आराष्ट्रे

यजुर्वेद के अध्याय २२ के मन्त्र संख्या २२ ''ॐ आ ब्राह्मन........वीरो जयताम......योगक्षेमों न कल्पताम'' का स्वामी भवानी दयाल जी द्वारा हिंदी काव्यानुवाद का अवलोकन करें-
ब्राह्मन!स्वराष्ट्र में हों द्विज ब्रह्म तेजधारी
क्षत्रिय महारथी हों,अरिदल विनाश कारी
होवें दुधारू गौवें ,वृष अश्व आशु वाही
आधार राष्ट्र की हों नारी सुभग सदा ही
बलवान सभ्य योद्धा,यजमान पुत्र होवें
इच्छानुसार वर्षें,पर्जन्य ताप धोवें
फल फूल से लदीं हों,औषध अमोघ सारी
हो योगक्षेम्कारी,स्वाधीनता हमारी.
युगदृष्टा मूलशंकर तिवारी जो महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती के नाम से जाने जाते है,मूल नक्षत्र में जन्म लेने के कारण मौलिक या मूल ज्ञान के पक्षधर रहे उन्होंने प्रत्येक गृहस्थ के पालन हेतु जिन वेद मन्त्रों का संकलन किया है उन में इस मन्त्र का राष्ट्रीय चेतना के रूप में विशेष महत्त्व है.वेद सृष्टि के आदि काल में पिछली सृष्टि की मोक्ष प्राप्त आत्माओं के इस सृष्टि के वैदिक ज्ञान प्रदाता ऋषियों के मुख से आम जन के समक्ष आये.सुन कर याद किये जाने के कारण इन्हें श्रुति और स्मृति भी कहा जाता है.महाभारत काल के बाद जब वैदिक ज्ञान क्षीण होने लगा तो समाज में विकृति आने लगी और अब से लगभग १३ सौ वर्ष पूर्व हम गुलामी के भंवर जाल फंसते गए.उस समय के शासकों को खुश करने के लिए और इनाम में धन व् रुतबा पाने के लिए हमारे विद्वानों ने कुरआन की तर्ज़ पर पुराण रच लिए तथा अपनी संस्कृति व् ज्ञान को नष्ट कर दिया.राष्ट्रवादी महापुरुषों मर्यादा पुरषोत्तम श्री राम व् योगी राज श्री कृष्ण को अवतार घोषित कर के उनके कृत्यों को अलौकिक बना दिया अथार्त पूज्य जबकि अनुकरणीय बनाया जाना चाहिए था तभी हमारी राष्ट्रीयता की अस्मिता की रक्षा हो सकती थी.गुरु नानक,कबीर आदि संतों ने जनता को जगाने की भरपूर कोशिश की किन्तु ''पराधीन सपनेहूँ सुख नाहीं''का सन्देश देने वाले गोस्वामी तुलसीदास जी के ग्रन्थों को संस्कृति के रखवालों की नगरी काशी में जला डाला गया और उन्हें अवधी की शरण लेनी पड़ी.
जनता पार्टी के शासन में हिमाचल यूनिवर्सिटी के उप कुलपति रहे डाक्टर गणपति चन्द्र गुप्त ने १९६८ में छपे ''साप्ताहिक हिन्दुस्तान'' के अपने लेख में लिखा था की देश में क्षेत्रीय राष्ट्रवाद तीव्र है.उदाहरण के तौर पर उन्होंने बताया की राजस्थान में ''म्हारो देस'' तथा पंजाब में ''साड्डा देस पंजाब मारा''के गीत गाये जाते हैं.उन्होंने कहा की बंकिम बाबु के वन्दे मातरम में भी -''सुजलाम,सुफलाम,मलयज शीतलाम'' में ''बंग'' की कल्पना है भारत की नहीं.
साम्राज्यवादियों ने भारत को प्रायदीप (सब कंटीनेंट)इसीलिए कहा की वे इसे बहु राष्ट्र मानते हैं.पहले पाकिस्तान फिर बांगला देश राष्ट्र बने.काश्मीर में अलगाववादी संघर्ष चलता रहता है.मिजोरम और नागालैंड में भी ऐसा हो चुका है.सिर्फ जनता ही सम्पूर्ण भारत को एक राष्ट्र मानती है.बड़े विद्वान समय -समय पर क्षेत्रीय राष्ट्रवाद को हवा देते रहते हैं जो की देश हित की बात नहीं है.अब तो चिदम्बरम भी हिंदी बोलने लगे हैं और करूणानिधि भी अब हिंदी विरोधी नहीं हैं.हिन्दी सम्पूर्ण भारत को एक राष्ट्र के रूप में मानने वाली भाषा है कोई क्षेत्रीय भाषा नहीं है.क्षेत्रीय भाषाएँ तो ब्रज,अवधी,भोजपुरी,मैथिलि आदि हैं और उन का हिंदी से कोई विरोध नहीं है.मन्ना डे और ए.आर.रहमान बांगला और तमिल भाषी होते हुए भी हिंदी के अच्छे गायक हैं.लता मंगेशकर और आशा भोंसले मराठी होते हुए भी हिंदी भाषियों में लोकप्रिय हैं. हिंदी संविधान के अनुसार तो राजभाषा के साथ राष्ट्र भाषा है ही जनता उसे केवल राष्ट्र भाषा मानती है,राज भाषा तो अभी तक बनी ही नहीं.अफ़सोस है आज हिंदी के बड़े-बड़े विद्वान् राष्ट्रीयता शब्द को यूरोप के देन बताते हैं.जब हमारे यहाँ वेदों का जय घोष हो रहा था यूरोप वासी नंगे रहते व् पेड़ों पर निवास किया करते थे.हमारे हिंदी के विद्वान् आज उसी यूरोप के एनसाईंक्लोपीडिया और विकिपीडिया को ब्रह्म वाक्य मान कर भारत को राष्ट्र के रूप में अपूर्ण मानते हैं. वस्तुतः जब हम कहते हैं-''ॐ नमः शिवाय च'' तो संत श्याम जी पराशर के अनुसार उसका अर्थ होता है--''the salutation to that lord the benifactor of all ''.उन के अनुसार भारत के उत्तर में बर्फीला हिमालय शिव के मस्तक का अर्ध चन्द्र है और सर से निकलती गंगा मानसरोवर (तिब्बत)से इसके उदगम का प्रतीक है जब की ''शिव''अथार्त हमारा भारत राष्ट्र है.राम चरित मानस में तुलसी दास ने राम से कहलाया है-''जो सिव द्रोही सो मम द्रोही'' अथार्त भारत से द्वेष रखने वाला राम भक्त नहीं हो सकता.इसी प्रकार राम को मानने वाले को भारत भक्ति अथार्त भारतीय राष्ट्रवाद पर शक नहीं करना चाहिए और विदेशों का मुहं नहीं ताकना चाहिए.


अन्तर्राष्ट्रीय ओजोन संरक्षण दिवस

आज १६ सितम्बर को मुख्य मंत्री व पर्यावरण मंत्री की ओर से ओजोन परत की रक्षा के सम्बन्ध में विज्ञापन देखे.अन्तर्राष्ट्रीय दबाव में सरकारों ने अख़बारों में विज्ञापन दे कर अपने कर्तव्य की इति श्री कर ली.
अमरीका के ऊपर क्षितिज में हुए ओजोन पर्त के छिद्र को ''अग्निहोत्र यूनिवर्सिटी''के अथक प्रयासों से वहां भर लिया गया है.यह संस्था २४ घंटे अनवरत हवन कार्यक्रम चलाती है.हवन में डाली गयी आहुतियों के धूम्र(धुये) से वहां कि ओजोन पर्त का छिद्र तो भर गया लेकिन दक्षिण एशिया कि ओर खिसक आया है जो हमारे देश को भी प्रभावित कर रहा है.हमारे देश में हवन को वैज्ञानिक विधि से बहुत कम तथा ढोंग पाखण्ड की विधि से अधिकांशतः किया जाता है.मध्य प्रदेश सरकार ने सिरेमिक के इलेक्ट्रिकल हवन कुण्ड बना डाले हैं.इनसे समस्या का समाधान नहीं होगा.अपने देश के ऊपर ओजोन की पर्त को सुरक्षित बनाये रखने के लिए वैज्ञानिक हवन-पद्धिति को पुनः अपनाना होगा.




Typist-Yashwant Mathur

Tuesday, September 14, 2010

ढोंग पाखण्ड और ज्योतिष

ज्योतिष वह विज्ञान है जिसका उद्देश्य मानव जीवन को सुन्दर सुखद और समृद्ध बनाना है.इस मे मनुष्य के जन्मकालीन गृह नक्षत्रों के आधार पर उसके पूर्व जन्मों के संचित प्रारब्ध का अध्ययन कर के भविष्य हेतु शुभ-अशुभ का दिग्दर्शन कराया जाता है.शुभ समय और लक्षण बताने का उद्देश्य उसका अधिकतम लाभ उठाने हेतु प्रेरित करना है और अशुभ काल व लक्षण बता कर उन से बच ने का अवसर प्रदान किया जाता है.दुर्भाग्य से आज हमारे समाज मे दो विपरीत विचारधराएँ प्रचलित है,जो दोनो ही लोगों को दिग्भ्रमित करने का कार्य करती है.यह प्रकृति का नियम है कि जब एक क्रिया होती है तो उसकी प्रतिक्रिया भी होती है.बहुत समय तक ये दोनो परस्पर विचार धराएँ चलती रहती है,फिर उन्हें मिलाकर समन्वय का प्रयास किया जाता है.इस प्रकार थीसिस,एन्टी थीसिस और फिर सिन्थिसिस का उद्भव होता है.कुछ समय बाद सिन्थीसिस,थीसिस मे परिवर्तित हो जाती है फिर उसकी एन्टी थीसिस सामने आती है और पुनः दोनों के समन्वय से सिन्थीसिस का उदय होता है.यह क्रम सृष्टि के आरम्भ से प्रलय तक चलता रह्ता है.
इसी क्रम मे ज्योतिष विज्ञान मानव कल्याण हेतु प्रस्तुत हुआ था.परन्तु कुछ ढोंगी,स्वार्थी,पाखण्डी,और समाज द्रोही लोगों ने ज्योतिष का दुरुपयोग करके लोगों को उलटे उस्त्रे से मूढ्ना शुरु कर दिया,उनकी कमजोरी का अनावश्यक लाभ उठाने लगे और अपना घर तथा जेव भरने मे लग गए.ऐसे पोंगा पंडितों का यह ब्रहम वाक्य है कि,पहले लोगों का मन जीतो धन तो पीछे पीछे स्वतः आ ही जाएगा.ऐसे लोगों का सिद्धान्त है-
'दुनिया लूटो मक्कर से ,रोटी खाओ घी शक्कर से.'
ज्योतिष के नाम पर पनपी इस ठगी और ढोंग की जबर्दस्त प्रतिक्रिया हुई और इसकी आलोचना होने लगी .ज्योतिष की आलोचना करने वालों में केवल टुटपुन्जिये ही शामिल नहीं थे बल्कि स्वामी विवेकानन्द,महर्षि दयानन्द,श्री राम शर्मा आचार्य सरीखे मूर्धन्य विद्वानों ने भी ज्योतिष की तीखी आलोचना की है और इसे ढोंग करार दिया है.महर्षि दयानन्द द्वारा ही लिखित पुस्तक है -'संस्कार विधि.' इसमें गर्भाधान से मृत्यु पर्यन्त सोलह संस्कारों का विधिवत उल्लेख है.नामकरण संस्कार के समय जन्मकालीन तिथि और उसके देवता ,नक्षत्र और उसके देवता हेतु आहुतियाँ देने का विधान स्वंय महर्षि दयानन्द ने बताया है.इन तिथियों और नक्ष्त्रों का ज्ञान देने वाला विज्ञान ही ज्योतिष है.इससे सिद्ध होता है कि महर्षि दयानन्द ने ज्योतिष विज्ञान का नहीं बल्कि इस के नाम पर फैलाए गए अज्ञान ,ढोंग और पाखण्ड का ही विरोध किया होगा जो कि सर्वथा उचित है परन्तु आज 'तन-मन-धन सब गुरु जी के अर्पण प्रार्थना कराने वाले तथा कथित गुरु,अवतार और महात्मा भी अनावश्यक रुप से ज्योतिष विज्ञान की आलोचना करने मे लगे हुए है,चूंकि वे स्वंय ढोंग व पाखण्ड के अलम्बरदार है अतः उनका विरोध ज्योतिष के नाम पर ढोंग करने वालों से नहीं है.
यह मनुष्य का स्वभाव है कि वह सदा ही भविष्य के गर्भ मे क्या छिपा है यह रहस्य जानना चाहता है और अपने कष्टों का समाधान चाहता है.ज्योतिष के नाम पर ठगी करने वाले उसे कैसे मूढ़ते है,इसे एक उदहारण से समझा जा सकता है-
जातक एक सरकारी उपक्रम मे उच्चाधिकरी थे जिन्हें २० जुलाई २००३ को पटना मे रात्रि पौने आठ बजे और आठ बजे मध्य गोली मारी गई थी.कारतूस उनके पेट मे हो कर पीछे कमर से निकल गया.गोली लगने के बाद जातक कार Drive कर के स्वंय अपने रहने के स्थान पर पहुँचे जहाँ से उन के साथी मेडिकल कोलेज ले गए और ओप्रेशन द्वारा उनका उपचार किया गया.जातक के जन्मांग से स्पष्ट है कि सप्तमेश हो कर चतुर्थ भाव मे मंगल अपने अधिशत्रु के साथ् स्थित है.जातक को वाहन सुख तो भरपूर है.कई गाड़ियों के स्वामी हैं.वायुयान अथवा वातानुकूलित यान द्वारा यात्रा करते हैं परन्तु निजी सुख मे शत्रु ग्रहों शुक्र व मंगल कि युति ने खलल डाल दी है.चूंकि शुक्र लग्नेश भी है,अतः हानि नहीं पहुंचा रहा है बल्कि मंगल ग्रह सुख को नष्ट कर रहा है,खर्च बढा रहा है व पत्नी के स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल रहा है किन्तु उन्हें ज्योतिष के नाम पर दुकानदारी चमका रहे महानुभावों ने दिग्भ्रमित कर दिया कि उनका मंगल अच्छा है और शनि खराब है.जब कि जातक का शनि छठे भाव मे उच्च का है जो कि अनुकूल है.यह भाव शत्रु व रोग का होता है यहाँ वैठ कर शनि उन्हें रोग व शत्रुओं से रक्षा कर रहा है परन्तु पन्डित जी ने उन से शनि गृह की शांति करा दी और उन्हें मूंगे कि अंगूठी पहनवा दी,परिणाम मगल ग्रह और क्रूर होकर भड़क गया तथा जब पृथ्वी के निकट आ रहा था उसी समय उन का स्थान्तरण करा कर गोली का शिकार बना दिया.गोली चलने के समय गोचर में शुक्र उनके शत्रु बढ़ा रहा था और मंगल मारक भाव में था.यहाँ फिर गोचर का शनि ही उनके शत्रु भाव में पड़ कर उनका उद्दारक बना,किन्तु उन पंडित जी ने शनि को ही गोली चलने का कारण पहले बताया और बाद में गुमराह करने का प्रयास किया.अब तक जातक अपने किरायेदार के माध्यम से हमारे संपर्क में आ चुके थे,उन्हें स्पष्ट रूप से समझा दिया गया था कि मंगल उन के लिए घातक है और शनी रक्षक है.अतः मंगल ग्रह की शांति कराएँ,जबकि उक्त पंडित जी शनी ग्रह की शांति हेतु पुनः दबाव बना रहे थे.जातक ने हमारी राय के अनुरूप मंगल ग्रह की शांति अपने निवास पर करायी और उन्हीं के अनुसार अब वह राहत महसूस कर रहे हैं.जातक को यह राहत ज्योतिष विज्ञान द्वारा सही जानकारी उपलब्ध करवाकर तथा वैज्ञानिक विधि द्वारा उपचार करवाने से ही मिली है.यदि जातक ज्योतिष का सहारा नहीं लेते तो अब भी दिग्भ्रमित ही होते रहते.अस्तु ज्योतिष में ढोंग व् पाखण्ड का कोई स्थान नहीं है,उससे बचना चाहिए और ज्योतिष के नाम पर ऊंची दूकान सजा कर ठगी करने वालों से दूर रहना चाहिए.ज्योतिष विज्ञान आपके मनुष्य जीवन को सार्थक बनाने,सद्कर्म द्वारा मोक्ष प्राप्ति हेतु प्रेरित करने तथा संचित प्रारब्ध के पापों को नष्ट कर के मनुष्य जीवन में राहत दिलाने का मार्ग प्रस्तुत करता है.बस आवश्यकता है तो यह है कि आप पम्प एंड शो के दिखावे में न पड़ें,नकली चमक-दमक से दूर रहें और जहाँ वास्तविक जानकारी उपलब्ध हो वहीँ संपर्क करें.उपचार हेतु सस्ते नहीं,वैज्ञानिक मार्ग हवन-पद्धति को अपनाएँ,तब कोई कारण नहीं कि,ज्योतिष विज्ञान आप को जीवन में सहायक न नज़र आये.जरूरत है बस नजरिया बदलने की.



Monday, September 13, 2010

कनागत:जियत मात -पिता से दंगम दंगा

जियत पिता से दंगम दंगा, मरे पिता पहुचाये गंगा
जियत पिता की न पूछी बात,मरे पिता को खीर और भात
जियत पिता को घूंसे लात,मरे पिता को श्राद्ध करात
जियत पिता को डंडा लठिया,मरे पिता को तोसक तकिया
जियत पिता को कछु न मान,मरत पिता की पिंडा दान
यह एक महान कवि की कपोल कल्पना नहीं है .आप अपने चारों और नज़र घुमाते ही ऐसे ज्वलंत उदहारण देख सकते हैं.यहाँ पिता से आशय माता-पिता,गुरुजन,सास ससुर सब से है.आज परिवार में माता-पिता व् समाज में गुरु जनों को को वह सम्मान प्राप्त नहीं है,जिस के वे वाजिब हकदार होते हैं.व्यक्ति को संसार में जन्म देने वाले तो माता -पिता होते हैं तो समाज में रहने लायक बनाने वाला विद्यालय का शिक्षक होता है.इसीलिए विद्या-समपन्न व्यक्ति को द्विज कहा जाता था.द्विज अथार्त जिसका दूसरा जन्म हुआ हो.दूसरा जन्म विद्यालय का गुरु ही देता था,अतः माता पिता,सास-ससुर व् गुरु जनों के प्रति श्रद्धा भक्ति रखना व् उन्हें तृप्त करना प्रत्येक व्यक्ति का मौलिक कर्त्तव्य मन जाता था.यही श्रद्धा व् तृप्ति की भावना ही श्राद्ध और तर्पण कहलाती थी.परन्तु आज व्यक्ति अपने माता -पिता की उनके जीवन कल में पूर्ण अवहेलना करता है उन्हें कष्ट देने व् दुःख पहुचाने में अपनी श्रेष्ठता समझता है,उनके मनोभावों को समझने की अपेक्षा उनकी उपेक्षा ही करता है,लेकिन जब यही माता पिता अपना भौतिक शरीर छोड़ कर अगले जन्म के लिए चले जाते हैं तो दुनिया के नाम पर ढोंग दिखावा करते हुए प्रतिवर्ष उनके नाम पर श्राद्ध व् तर्पण करते हैं;जैसा कि कवी ने दर्शाया है.वस्तुतः श्राद्ध पक्ष में किया गया दान पुण्य अपने लिए तो हो सकता है परन्तु उसका कोई लाभ उस व्यक्ति के मृत माता पिता की आत्मा को नहीं मिल सकता क्यों कि कहीं न कहीं उनका जन्म हो चुका होगा या मोक्ष मिल गया होगा.
लेकिन आप देखेंगे कि २३ सितम्बर से२०१० से ०७ अक्तूबर २०१० तक श्राद्ध और तर्पण के नाम पर खूब ढोंग और पाखंड चलेगा.अपने जीवित माता पिता की जम कर उपेक्षा करने वाले निकम्मे कपूत इस दौरान उन्हीं माता पिता के मरणोपरांत उनके नाम पर दान पुण्य कर के समाज को अपनी पितृ भक्ति का प्रमाण प्रस्तुत करेंगे.ऐसे लोग समाज को तो धोखा दे सकते हैं परन्तु भगवन को धोखा देने में कामयाब नहीं हो सकते,क्यों कि-
जिस दिल में ईश्वर भक्ति है-वह पाप कमाना क्या जाने?माँ बाप कि सेवा करते है,उनके दुखों को हरते है-वह मथुरा,काशी,हरिद्वार वृन्दावन जाना क्या जाने?
अपने माता पिता कि परिक्रमा करने वाले श्री गणेश देवताओं में सर्वप्रथम पूजनीय हैं.गणेश पूजन यही प्रेरणा देता है कि प्रत्येक व्यक्ति श्रद्धा पूर्वक अपने माता पिता कि सेवा करे जिससे वे तृप्त हो सकें,यही सच्चा श्राद्ध व् तर्पण है.

Saturday, September 11, 2010

चेतावनी-

१३ सित.सांय ०५:२१ से १८ अक्तू. दोप.२:०८ तक शनि अस्त रहेगा.परिणामस्वरूप आग लगने,विस्फोट होने,आतंकवादी विश्वव्यापी घटनाओं के बढ़ने के प्रबल योग हैं.गर्मी प्रकोप बढेगा तथा संक्रामक रोगों के फैलने की आशंका रहेगी.अतः आमजनता के साथ ही विशेष रूप से गृह व् स्वास्थ्य विभागों को विशेष सचेत रहने की आवश्यकता है.

Tuesday, September 7, 2010

''भू नभ अंतर्गत पदार्थ मंगलदायक हो जावें। विज्ञानी प्रकृति के सारे गूढ़ रहस्य बतावें॥'' ...........


ऋग्वेद के मंडल ७ सूक्त ३५ के मन्त्र का यह अनुवाद है जिससे स्पष्ट होता है कि वेदों में वैज्ञानिकों का दायित्व प्रकृति के रहस्यों को खोज कर जनता तक पहुंचाना बताया गया है.सम्पूर्ण वेद विज्ञान सम्मत हैं परन्तु एक राष्ट्रीय दैनिक के अर्ध ज्ञानी और अपरिपक्व सम्पादकीय में ६ सितम्बर २०१० को लिखा हुआ है-

''अध् कचरे परम्परावादी ही धर्म और विज्ञान की घाल मेल कर के यह साबित करने में लगे होते हैं कि हमारे धर्म ग्रंथों में जो है वह सब विज्ञान सम्मत है या वेदों में सारे आधुनिक वैज्ञानिक तथ्य मौजूद हैं.''प्रो.स्टीफन होकिंग की प्रकाशित होने वाली पुस्तक के आधार पर उन सम्पादक महोदय ने वेदों को अ-वैज्ञानिक ठहरा दिया है.मैक्समूलर भारत में ३० वर्ष रह कर संस्कृत का गहन अध्ययन करके जो मूल पांडुलिपियाँ ले गए उनकी मदद से वैज्ञानिक आज भी खोजबीन में लगे हैं;जैसा कि प्रो.यशपाल ने कहा है-''वैसे ब्रह्मांड संरचना के बारे में अभी ज्यादा कुछ नहीं जाना जा सका है,खोज अभी जारी है.''सितम्बर २००७ में एम्सतरदम में संपन्न भौतिकविदों के सम्मलेन में १९८० में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार जीतने वाले जेम्स वाटसन क्रोनिन ने कहा था -''हमें गलतफहमी है कि हम ब्रह्मांड के बारे में बहुत जानते हैं.लेकिन सच तो यह है कि हम इसके सिर्फ ४% हिस्से से वाकिफ हैं.''कोस्मिक ऊर्जा" का ७३% हिस्सा डार्क एनर्जी और २३% ''डार्क मैटर '' के रूप में है जिसे न तो देखा जा सकता है और न ही उपकरणों से ही पकड़ा जा सकता है.४% में ''सामान्य पदार्थ'' आता है जिस के परमाणुओं व् अणुओं से हमारा दिखाई पड़ने वाला ब्रह्मांड बना हुआ है.फ़्रांस के न्यूक्लीयर एंड पार्टिकल फिजिक्स वेत्ता स्टारवोस कैटसेनवस् ने कहा था -''हमें डार्कमैटर के मानकों का हल्का फुल्का अंदाजा भर है.''होकिंग द्वारा भगवान् को न मानना तथा उस पर बनारस के विद्वानों द्वारा हल्ला बोलना दोनों बातें इसलिए हैं कि भगवान् को चर्च,मस्जिद ,मंदिर या ऐसे ही स्थानों पर पोंगापंथियों ने बता रखा है.पिछली पोस्ट्स देखें तो कई बार स्पष्ट किया है कि भगवान् -भूमि,गगन,वायु,अग्नि और नीर इन पञ्च तत्वों का मेल है जो सृष्टि, पालन और संहार करने के कारन GOD कहलाते हैं और स्वयं ही बने होने के कारन खुदा हैं.कोई भेद नहीं है.धर्म और विज्ञान में भेद बताना या देखना अज्ञान का सूचक है.विज्ञान किसी भी विषय का नियमबद्ध और क्रमबद्ध अध्ययन है जबकि जो धारण करता है वो ही धर्म है.धर्म या भगवान् को किसी भी शास्त्र या स्थान में कैद नहीं किया जा सकता है.अभी तक की खोजों में विज्ञान में एनर्जी को सबसे ऊंचा स्थान प्राप्त है.कहा जाता है ENERGY IS GHOST .विज्ञानं क्या?और कैसे?का जवाब देने में समर्थ है परन्तु क्यों?का जवाब आज का विज्ञान अभी तक नहीं खोज पाया है जब कि वैदिक विज्ञान में क्यों का जवाब है-जरूरत है वैदिक विज्ञान के गूढ़ रहस्यों को समझने की.लेकिन पश्चिम के विज्ञानी तो वेदों पर हमला करते ही हैं हमारे पौराणिकविद भी वेदों को तोड़ मरोड़ देते हैं.पुराण,कुरआन की तर्ज़ पर तब लिखे गए जब भारत में विदेशियों ने आकर सत्ता जमा ली थी.ये उन शासकों को खुश करने के लिए रचे गए जिनका धर्म या विज्ञान से कोई सम्बन्ध नहीं था.धर्म और विज्ञान को समझने हेतु वेदों की ही शरण लेनी पड़ेगी जिनकी उक्त सम्पादकीय में खिल्ली उडाई गयी है.

Sunday, September 5, 2010

एक दो तीन- याद रखें प्रतिदिन

पिछली पोस्ट से आगे........
२७ नवम्बर से २६ दिसंबर २००४ हेतु चेतावनी-
''चलन कलन भृगु भौम का,तुला तत्व अभिसार।
चक्रवात वायु विपुल ,पवन वेग संचार॥
तट सागर की छति बने,मेघ गाज प्रर्तिचार।
निर्णय शकुन शास्त्र का,जन छति प्रसार॥''
(नि.सा.पंचांग)
गृह नक्षत्र आंकलन पर आधारित भविष्यवानियों को यदि अंध विश्वास के तहत ठुकरा न दिया गया होता तो लाखों लोगों की जानें बचायी जा सकती थीं.जनवरी के अंतिम सप्ताह में अमरीका के मैसर्दिस इलाके में ८० की.मी.प्रति घंटे की रफ़्तार से बर्फीला तूफ़ान आया और तापमान शून्य से ३७.७ डिग्री नीचे पहुच गया अपार जन धन की हानि हुई.जब हमारे तथाकथित आध्यात्मिक देश भारत में ही भविष्य कथन का उपहास उड़ाया जाता है तब भौतिक वादी अमरीका भला कैसे इस बात पर ध्यान देता की २७ दिसंबर २००४ से २५ जन.२००५ के मध्य हेतु चेतावनी दी गयी थी-
युति योग बुध -शुक्र का,लहर शीत अधिलाक्ष।
हिम प्रपात नभ गर्जना ,ऋतू कोप नवदक्ष॥
(नि.सा.पंचांग)

मनुष्य अपने पूर्व जन्म के कर्मानुसार अपना प्रारब्ध लेकर आता है जिसका आंकलन उसकी जन्म कुंडली से किया जाता है.इसका लाभ ख़राब समय का उपाय और ग्रहों का प्रकोप शांत करवा कर किया जा सकता है और उत्तम समय पर आधिकाधिक सद्प्रयास करने में किया जा सकता है.हमारे प्राचीन ऋषियों मुनियों ने वेदों में वर्णित मानव जीवन को सुन्दर सुखद व् समृद्द बनाने के उपाय अपनाकर लाभ उठाने का निर्देश दिया है परन्तु आज हम इधर-उधर भटक कर वैदिक हवन पद्दति को भुला बैठे हैं जो पूर्णतया वैज्ञानिक है.हवन के माध्यम से ग्रहों की शान्ति,वास्तु दोषों के निराकरण और भविष्य को सुखमय बनाना संभव है परन्तु कुछ लोग इसका भी दुरूपयोग कर रहे हैं जिससे बच कर लाभ उठाया जा सकता है।



Typist--यशवंत

नोट:-रोमन से देवनागरी में टाइप होने के कारन इस ब्लॉग के आलेखों में वर्तनी की त्रुटियाँ होना संभव है.पाठकों से निवेदन है की यथा स्थान सुधार कर लें.

एक दो तीन -याद रखें प्रतिदिन

हम जो आज हैं वह अपने कल की वजह से हैं और जो हम आज हैं वह अपने कल के लिए ही हैं.हमारा भूतकाल ही हमारे वर्तमान का कारक है और हमारा वर्तमान हमारे भविष्य का निरधारक है.यह संसार यह सृष्टि परमात्मा,आत्मा और प्रकृति के योग पर आधारित है इनमे से एक के बिना सृष्टि का संचालन संभव नहीं होगा.प्रकृति भी तीन तत्वों सत,रज और तम के परमाणुओं का संगम है,जब तक ये तीनों विषम अवस्था में रहते हैं सृष्टि का पालन होता रहता है जब भी इन तीनों तत्वों की सम अवस्था आती है वही प्रलय की स्थिति होती है.सृष्टि रचना उसका पालन और फिर उसका संहार ये तीन कृत्य परमात्मा के हैं जिन के कारन ही ब्रह्मा,विष्णु,महेश की कल्पना की गयी है.मनन करने के कारन ही मनुष्य मनुष्य है अन्यथा उसमे और पशु में कोई विभेद नहीं है.आहार-निद्रा-मैथुन ये तीन कृत्य प्रत्येक जीव धारी स्वाभाविक रूप से करता है.यह मनुष्य ही है जो अपने बुद्धि,विवेक से कृत्यों का निष्पादन करता है इसीलिए वेदों में मनुष्य को क्रतु बतलाया गया है.क्रतु का अर्थ ही है कर्म करने वाला.कर्म तीन प्रकार के होते हैं-सदकर्म-दुष्कर्म और अकर्म.सद्कर्म का अभिप्राय अच्छे कामों से है जो स्वयं अपने लिए नहीं बल्कि दूसरों के हित को भी ध्यान में रख कर किये जाते हैं उन का फल सदैव ही अच्छा मिलता है.दुष्कर्म वे कर्म हैं जो छुद्र स्वार्थवश सिर्फ अपने हित में किये जाते हैं और जिन से दूसरों का उत्पीडन होता है उन्हें कष्ट व् दुःख पहुँचता है इनका फल स्वाभाविक रूप से बुरा मिलता है.सर्वाधिक महत्वपूर्ण अकर्म है.अकर्म का आशय उस कर्म से है जो किया जाना चाहिए था किन्तु किया नहीं गया.वह फ़र्ज़ वह ड्यूटी वह दायित्व जो हमें करना चाहिए था हमने नहीं किया,हांलांकि ऐसा करके हमने किसी का बुरा तो नहीं किया परन्तु परमात्मा की द्रष्टि में यह अपराध है और जिसका दंड परमात्मा अवश्य ही देता है.उदहारण स्वरुप यदि एक चिकित्सक मार्ग में किसी अपरिचित को दुर्घटनाग्रस्त देखता है और उसका उपचार कर देता है तो यह सद्कर्म हुआ जिसका पुण्य उस चिकित्सक को अवश्य ही मिलेगा परन्तु यदि वाही चिकित्सक उस अपरिचित को देखते हुए भी अपने गंतव्य पर चला जाता है (वैसे उसने कोई दुष्कर्म तो नहीं किया)तो यह उस का अकर्म है और परमात्मा की ओर से इस अकर्म का दंड उस चिकित्सक को भोगना ही पड़ेगा.कर्मों का फल कब मिलेगा यह पूर्णतया परमात्मा के आधीन है इसीलिए गीता में श्रीक्रष्ण ने फल की चिंता किये बगैर सिर्फ कर्म करने पर जोर दिया है.तीनों प्रकार के कर्मों का फल तत्काल भी मिल सकता है,इसी जीवन में भी मिल सकता है और आगामी मनुष्य जन्म में भी मिल सकता है.सिर्फ मनुष्य जन्म में ही पिछले कर्मों का फल मिलता हो ऐसा नहीं है बल्कि मनुष्य द्वारा किये गए दुष्कर्मों का फल तो अन्य योनियों में भी जीवधारी को भोगना ही पड़ता है.मनुष्य के अतिरिक्त अन्य योनियाँ तो हैं ही भोग योनी.सिर्फ मनुष्य योनी ही कर्म प्रधान है.मनुष्य जन्म में ही हम अपने पिछले दुष्कर्मों व् अकर्मों से छुटकारा पाने हेतु अधिकाधिक सद्कर्म व् परमात्मा का चिंतन कर सकते हैं अन्य योनियों में यह संभव नहीं है।

मनुष्य को बचपन,यौवन और बुढ़ापा तीन अवस्थाओं का सामना करना पड़ता है.बचपन में वह सीखता है और बुढापे में किये गए कर्मों को भोगता है-सिर्फ यौवन या जवानी ही वह अवस्था है जिसमे मनुष्य अपने इहलोक और परलोक को संवार या बिगड़ सकता है.यौवन धन और सत्ता इन तीनों का जिसने सदुपयोग कर लिया वही मनुष्य धन्य है।

यौवन काल में ही शहीद भगत सिंह,चंद्रशेखर आज़ाद,राम प्रसाद बिस्मिल,अशफाक उल्ला खान,उधम सिंह,वीर सावरकर,नेता जी सुभाष चन्द्र बोस आदि असंख्य क्रांतिकारियों ने विदेशी सत्ता से टक्कर ली और देश हित में कुर्बानी दी वे हमेशा स्तुत्य रहेंगे और उनका जीवन सदा अनुकरणीय है.उनसे पूर्व भी महाराणा प्रताप,वीर शिव जी,गुरु गोविन्द सिंह भी अपने यौवन काल में ही विदेशी सत्ता से टकरा कर अमर हो गए.यदि मनुष्य (स्त्री हो या पुरुष)अपने यौवन काल का संयम पूर्वक सद्कर्मों में उपयोग कर ले तो उसका बुढ़ापा तो उत्तम रहेगा ही आगामी जन्मों के लिये भी संचित प्रारब्ध उत्तम रहेगा.परन्तु यदि यौवन का दुरूपयोग किया गया जैसा की सायबर कैफे कांड में संलिप्त युवक युवतियों ने किया तो निश्चय ही पतन और दुर्दिन का उन्हें सामना करना पड़ेगा ही।

इसी प्रकार धन का सदुपयोग भी आवश्यक है.ज़रूरतमंद लोगों को दान देना,उनकी सहायता करना धन का सदुपयोग है.सिर्फ अपने लिये तो पशु भी चरते और मरते हैं.मनुष्यत्व तो प[आर कल्याण के लिये ही जाना जाता है.जो लोग अपने धन का दुरूपयोग करते हैं अथार्त झूठी शान और अहंकार में धन को पानी की तरह बहा देते हैं अथवा दूसरों को पीड़ा पहुचाने व् दुःख देने में अपने धन का अपव्यय करते हैं निश्चय ही वे अपने लिये कांटे ही बो रहे होते हैं.आज समाज में ऐसे ही लोगों का बोल-बाला है.कुछ लोगों ने सहज ही ओछे हथकंडे अपना कर धन अर्जित कर लिया है वे उसे शराब,जुए,सट्टे में लगा कर तबाह कर देते हैं या फिर मकानों को तोड़ते हैं फिर उन्हें बनवाते हैं,संगमरमर से चमकाते हैं और अपनी समृद्धि का नग्न प्रदर्शन करते हैं.वस्तुतः यह समृद्धि नहीं है उनकी आत्मा इस धन को अपने साथ नहीं ले जा सकती है-आत्मा के साथ जाने लायक धन तो उस मनुष्य के सद्कर्म ही हैं।

इसी प्रकार सत्ता का भी सदुपयोग आवश्यक है.सत्ता चाहे शासन की हो,प्रशासन की हो विद्यालय की हो या दूकान की हो उसका दुरूपयोग किया गया तो यह भस्मासुर हो जाती है.सिकंदर ने इस तथ्य को अपने जीवन के अंतिम दिनों में समझ कर अपने शव के दोनों हाथ खाली निकाल कर ले जाने का स्वंय ही निर्देश देदिया था.भिंडरावाले ने धर्म स्थल का दुरूपयोग किया था वहीँ उसका दुखद अंत भी हुआ.जनरल ओ दायर ने निहत्थे देश प्रेमियों पर गोलियां चलवाईं थीं खुद भी बम प्रहार में मारा गया.आतंक का पर्याय बन चूका वीरप्पन भी मारा गया.घात प्रतिघात और हिंसा का चलन आज कल बहुत बढ़ गया है -यह मानव हित में बहुत घातक है।

सिर्फ गृह नक्षत्र ही हमें प्रभावित नहीं करते हैं बल्कि हमारे क्र्त्यों का गृह नक्षत्र पर भी प्रभाव पड़ता है.आप समुद्र में एक कंकड़ फेंके तो उससे बन्ने वाली तरंगें आप को बहले ही न दिखें परन्तु उस कंकड़ को फेंकने के प्रभाव से तरंगें बनेंगी अवश्य ही.वही कंकड़ जब आप बाल्टी भरे पानी में फेंकेंगे तो तो आप तरंगें देख सकते हैं.हम प्रथ्वी वासी पृथ्वी पर जो कुछ कर रहे हैं उसका प्रभाव अखिल ब्रह्मांड पर हर वक्त पद रहा है और दुष्प्रभाव भी समय समय पर प्रतीत होता जा रहा है.पर्यावरण संतुलन बिगड़ चूका है.ओजोन की परत भी प्रभावित हो गयी है.२६ दिसंबर २००४ को दक्षिण भारत समेत कई देशों को सुनामी प्रकोप का सामना करना पड़ा है इसके लिये मंग्रोव व्रक्षों की बड़े पैमाने पर कटाई ही समुद्री लहरों को तट तक पहुचने को उत्तरदायी है वर्ना पक्षी अभ्यारण्य के लिये प्रसिद्द पिछ्वाराम गाँव को सुनामी लहरों से इन्ही मंग्रोव वृक्षों ने जिस प्रकार बचाए रखा अन्य जगहों की भी रक्षा कर लेते.२७ दिसंबर २००४ को ही समुद्र तल से १७३७ मीटर ऊँचाई पर स्थित यु.ऐ .ई.की अल्जीस पर्वत पर भारी बर्फ़बारी हुई और मुंबई में १२.६ मी.मी बारिश के बाद तापमान १२ डिग्री नीचे चला गया जहाँ गर्मियों का तापमान ५० डिग्री रहता था.ईसा से ३५० वर्ष पूर्व प्लूटो की लिखित भविष्यवाणी के आधार पर श्री होरे ने १९७१ में प्रकाशित पुस्तक गाइड इंग्लिश फॉर इंडिया के सेकंड एडिशन बुक II के लेसन १६ पर स्पष्ट लिखा था की १८८२ ई.में सूर्य व् पृथ्वी के बीच शुक्र के आने से भंयंकर बाढ़ और तूफ़ान के प्रकोप से एक पूरा साम्राज्य समुद्र के अन्दर समां गया था.पुनः २००४ ई.में पृथ्वी व् सूर्य के मध्य शुक्र के आने से ऐसी ही तबाही होगी.यह पुस्तक C B S E के कोर्स में कक्षा ७ में पढाई जा रही थी किन्तु इस ओर सचेत होने के बजाय मंग्रोव की अंधाधुंध कटाई होती रही और सुनामी ने अटलांटिस थ्योरी के अनुसार अपना कहर धा दिया।
जारी..............

Saturday, September 4, 2010

अपना हाथ जगन्नाथ --- विजय राजबली माथुर

''हाथों की चंद लकीरों का,यह खेल है तकदीरों का''शम्मी कपूर पर फिल्माए विधाता के इस गीत से कौन परिचित नहीं होगा.बुजुर्गों का कहना है-अपना हाथ जगन्नाथ.जी हाँ हमारा अपना हाथ हमारे भविष्य का भाग्य विधाता ही है.कर्म ही पूजा है हम हाथ द्वारा कर्म करके ही जीवन जीते हैं.कभी-कभी हमें हमारे कर्मों का पूरा फल नहीं मिलता है और कभी-कभी कम प्रयास से या बिना प्रयास के भी हमें फल प्राप्ति हो जाती है.ऐसा क्यों होता है?आइये थोडा विचार करें।

कर्म तीन प्रकार के होते हैं -सद्कर्म,दुष्कर्म और अकर्म.अच्छे कर्मों का अच्छा और बुरे कर्मों का बुरा फल मिलता है,यह तो सभी जानते हैं.अकर्म वह है जो करना चाहिए था और किया नहीं गया इसका भी फल मिलता है.अपने जीवन में सभी कर्मों की प्राप्ति नहीं हो पाती है जिन कर्मों का फल मिलने से बच जाता है वे ही आगामी जीवन का भाग्य बन जाते हैं.जब जातक जन्म लेता है तो इस भाग्य को साथ लाता है,जिसकी छाप उसके बाएं हाथ की हथेली में स्पष्ट देखि जाती है जिसे हम हस्त रेखा ज्ञान से समझ सकते हैं.हमारे यहाँ एक गलत धारणा प्रचलित है की बांया हाथ महिलायों का और दांया हाथ पुरुषों का होना चाहिए.साथ ही यूरोप,अमरीका में भी दूसरी गलत धारणा प्रचलित है की दांया हाथ बारोजगार और बांया हाथ बेरोजगार लोगों का देखा जाए चाहे वे महिला हों या पुरुष.कर्म सिद्दांत के अनुसार दांया हाथ हमारे अर्जित कर्मों का लेखा-जोखा दिखाता है.इस प्रकार किसी भी पुरुष या महिला का बांया हाथ देख कर जहाँ हम यह ज्ञात कर लेते हैं की वह कैसा भाग्य लेकर आया है,वहीँ उसके दांये हाथ के अध्ययन से उसके द्वारा उपार्जित कर्मों को देख कर अनुमान लगा लेते हैं की उसने क्या खोया और क्या पाया अथवा भविष्य में क्या पाने की सम्भावना है।

यह याद रखें मनुष्य अपने कर्मों द्वारा अच्छे प्रारब्ध(भाग्य)को भी गँवा सकता है और अपने ही पुरुषार्थ द्वारा वह भी प्राप्त कर सकता है जो उसे प्रारब्ध में प्राप्त नहीं हुआ था.हस्त रेखाओं के अध्ययन से हम क्या करना चाहिए और क्या छोड़ देना चाहिए की दिशा तय कर सकते हैं.प्रातः काल शैय्या त्यागने से पूर्व अपनी दोनों हथेलियों को मिलाकर दर्शन करने से आत्म-बल बढ़ता है,इच्छा शक्ति मजबूत होती है क्योंकि हमें हमारे हाथों के माध्यम से अखिल ब्रह्माण्ड के दर्शन हो जाते हैं.कहा भी है:-
कराग्रे वसते लक्ष्मी,करमध्ये सरस्वती।
करप्र्श्ठे स्थितो ब्रह्मा,प्रभाते करदर्शनम॥