Thursday, September 26, 2024

स्त्री मन, स्त्री द्वेष और मर्यादा







सिद्धांत सहगल साहब एक सुविख्यात ज्योतिषी हैं अक्सर विभिन्न विषयों पर अपने विचार व्यक्त करते रहते हैं और कभी - कभी मैं उनके पोस्ट्स को शेयर कर लेता हूँ। अभी नवीनतम उनके पोस्ट पर उनके यहाँ महिलाओं ने भी उनका समर्थन किया है लेकिन मेरे द्वारा शेयर की गई पोस्ट पर इसको स्त्री द्वेष की संज्ञा दे दी  गई है। 
अतः यह आवश्यक हो जाता है कि, मुझे स्पष्ट करना चाहिए कि, स्त्री द्वेषी पुरुष नहीं खुद स्त्रियाँ ही होती हैं। उदाहरणार्थ  आतिशी जी के र्दिल्ली की मुख्यमंत्री बनने का विरोध स्वाती मालिवाल जी द्वारा किया गया है किसी पुरुष द्वारा नहीं। अनेकों ऐसे उदाहरण  मिल जाएंगे जहां स्त्रियों द्वारा ही स्त्रियों से द्वेष ही नहीं दुश्मनी की जाती है। 

सन 2000 से 2002 के मध्य दयालबाग,आगरा के सरलाबाग में मैं ज्योतिष कार्यालय चला रहा था उस समय मुझे कई महिलाओं के जन्म -पत्र और हस्त अवलोकन का अवसर मिला है। मेरे पास एक महिला अपने जेठ साहब की पुत्री को लेकर आईं और कहा इनका तलाक करवा दीजिए । मैंने उन महिला से कहा कि आप साथ जरूर लाई हैं लेकिन अब आप हस्तक्षेप न करें और मुझे सीधे उनकी राय जानने दें । जी जी आई सी की उन शिक्षिका ने स्पष्ट कहा कि वह तलाक नहीं देना चाहतीं हैं उनकी चाची का ऐसा सुझाव है। इस मामले में स्त्री चाची के रूप में दूसरी स्त्री भतीजी के साथ न केवल द्वेष वरन  दुश्मनी रख रही थी। 
मेरे द्वारा बताए समाधान से उन शिक्षिका महोदया के पति साहब भी संतुष्ट हुए और जब उन्होंने अपना मकान बनाया मुझ से गृह प्रवेश की प्रक्रिया सम्पन्न करवाई थी फिर जब एक और मकान उन्होंने बनवाया उसमें भी मुझ से ही  गृह प्रवेश की प्रक्रिया सम्पन्न करवाई । 
हो सकता है सिद्धांत सहगल साहब ने जन्म - पत्र विश्लेषण के दौरान जो अनुभव प्राप्त किए होंगे उनके आधार पर ही यह निष्कर्ष दिया हो। अपने अनुभव के आधार पर मैं उनसे सहमत हूँ इसलिए ही उनकी पोस्ट को शेयर किया था किसी स्त्री द्वेष के आधार पर नहीं। 


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Sidhant Sehgal
सोशल मिडिया पर सारा दिन लम्बे लम्बे पुरुष विद्वेषी नारीवादी लेख आते हैं इन लेखों का सिर्फ एक ही उद्देश्य होता हैं , पुरुष कितना अत्याचारी है। हर बात में पुरुष का ही दोष है नारी कितनी बेचारी है , नारी कितना त्याग करती है। तब किसी को तकलीफ नहीं होती न नारी को न किसी पुरुष को , क्योंकि ऐसे नारीवादी लेख पुरुष ही ज्यादा लिखते हैं , ऐसा वो तीन कारणों से करते हैं
१- लाइक कमेंट ज्यादा आते हैं , पोस्ट वायरल होती है
२- नारियों की गुड लिस्ट में जगह मिलती है
३- तीसरा कारण बहुत गन्दा है जिसे स्त्री समझ नहीं पाती , ऐसे नारीवादी पुरुष के हाथो की नारी ज्यादा प्रताड़ित होती है क्योंकि नारी की नजर में ये देवता का स्थान प्राप्त कर चुके होते हैं।
एक पोस्ट नारी की असलियत पर कोई लिख दे तो - नारी तो बिदकेगी ही -नारी वादी पुरुषो को सबसे ज्यादा आग लगती है।
सोशल मिडिया पर पुरुषों के समर्थन में इसलिए कोई पोस्ट जल्दी नहीं आती क्योंकि सब टूट पड़ते हैं उसपर।
लेकिन सबसे कटु सत्य यही है कि स्त्री विस्वाश के काबिल नहीं होती - जो करता हैं वो बर्बाद होता हैं - अपवाद हर जगह हैं। पर हकीकत यही हैं।
85% पुरुष हर साल स्त्री के हाथों छले जाने की वजह से आत्महत्या करते हैं - जहाँ स्त्री की आत्महत्या का % सिर्फ 35% है।



 

~विजय राजबली माथुर ©

Friday, September 13, 2024

यह किस पद्धति की पूजा है ?




यह किस  पद्धति की पूजा है ?
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वैदिक पद्धति के अनुसार यजमान की दाईं  ओर उसकी पत्नी का स्थान होता है लेकिन प्रस्तुत कार्यक्रम में यजमान की दाईं ओर प्रधानमंत्री हैं और उनकी दाईं ओर यजमान की पत्नी । पुरोहित महोदय क्या अनभिज्ञ थे ?
07 मई 1997 को निर्धारित आचार संहिता का उल्लंघन प्रधान न्यायाधीश द्वारा क्यों किया  गया ?
1975 में आपात काल के दौरान इलाहाबाद उच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश कुँवर बहादुर अस्थाना साहब ने तमाम लोगों को जमानत पर रिहा कर दिया था बिना सरकार के दबाव के आगे झुके हुए। 
12 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा जी के विरुद्ध फैसला सुनाने वाले न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा साहब ने अपने कर्तव्य का पालन बिना डरे और झुके हुए किया था। 
जगमोहन लाल सिन्हा साहब जब मेरठ में जिला न्यायाधीश थे और चौधरी चरण सिंह साहब उत्तर - प्रदेश के मुख्यमंत्री । चौधरी साहब के किसी खास व्यक्ति का केस सिन्हा साहब की अदालत में था उसके पक्ष में फैसला की चाहत लेकर चौधरी साहब मेरठ में सिन्हा साहब के सरकारी आवास पर मिलने गए थे। 
सिन्हा साहब ने अर्दली के जरिए पुछवाया था कि, चौधरी चरण सिंह आए हैं या उत्तर -प्रदेश के मुख्यमंत्री ?
चौधरी चरण सिंह ने अर्दली से जवाब भिजवाया था कि, जज साहब से कह दो कि, " उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री चौधरी चरण सिंह आए हैं। "
सिन्हा साहब ने मुख्यमंत्री से मिलने से इनकार कर दिया , चौधरी चरण सिंह साहब को बिना मिले ही वापिस लौटना पड़ा था। 
क्या सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश चंद्र चूड़ साहब प्रधान मंत्री को अपने निजी कार्यक्रम में शामिल करने से इनकार नहीं कर सकते थे ?







  ~विजय राजबली माथुर ©