Tuesday, June 17, 2025

कांग्रेस का भविष्य: सोनिया-युग ------ Kanak Tiwari






(12) आज कांग्रेस यही बताने में मशगूल है कि यदि अंदरूनी संकट फोड़े की तरह फूट रहा हो तो उस पर सोनिया गांधी के हाथ ही मरहम लगा सकते हैं। लोग राजीव को उनके बुरे दिनों में इटली कांग्रेस का सरगना बताते थे। फिर भी उस परिवार से अपने संबंधों की डींग मारते अघाते नहीं थे। इटली से भारत आई नेहरू परिवार की बहू में कांग्रेस-रक्त होने से उनकी विश्वसनीयता और अनुकूलता इस कदर बढ़ी कि अच्छे से अच्छे अखाड़ची कांग्रेसी को विनय की मुद्रा में उनसे मिलने 10, जनपथ अपने राजनीतिक वजूद को बचाए रखने के लिए जाना पड़ता है। लोकसभा के चौदहवें चुनाव में सोनिया के समर्थन में दिया गया जन-ऐलान राजनीतिज्ञों और मीडिया सहित विदेशियों को भी चकित कर गया। ‘फील गुड‘ के निर्माता और ‘इंडिया शाइनिंग‘ के निर्देशक ‘फील बैड‘ करते अंधेरे में एक दूसरे की शूटिंग करते रहे। 10 जनपथ नई कांग्रेसी राजनीतिक संस्कृति का सबसे महत्वपूर्ण गवाह, खिलाड़ी और हस्ताक्षर है। 
मूल प्रश्न ये हैं:
(13) नेतृत्व को लेकर सोनिया गांधी निस्सन्देह वह ’फेवीकोल’ हैं जिससे पूरी पार्टी के टूटते हाथ पांव जुड़ जाते हैं। लेकिन कांग्रेस की आत्मा कहां है? स्वदेशी का विरोध, विचारों की सफाई, वंशवाद की बढ़ोत्तरी, समाजवाद का खात्मा, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का समर्थन और पश्चिमी अपसंस्कृति के सामने समर्पण करने के बाद कांग्रेस और अन्य दक्षिणपंथी पार्टियों में क्या फर्क रह जाता है? सड़क पर यदि कांग्रेस और भाजपा के दो कार्यकर्ता चलें, तो उन्हें देखकर कोई नहीं अलग अलग पहचान पाता, जबकि चार दशक पहले तक बात ऐसी नहीं थी। कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य भी गाहे बगाहे जीन्स और टी शर्ट्स पहनकर दूरदर्शन के झरोखों से जनता को निकट दर्शन देते हैं। पैन्ट कोट और विलायती सूट डांटे रहने का फैशन भी कांग्रेस में है। देहाती गंध की गमक लिए लाखों कांग्रेसी कार्यकर्ता अब दरी बिछाने वालों की जमात तक में शामिल नहीं हैं। अब तो उनके बदले शामियाना भंडार वाले कांग्रेस नगर रचने के ठेकेदार हो गये हैं। हर चीज अब बाजार से किराये पर है। पूरा मंच, शामियाना, खान-पान, विज्ञापन एजेन्सियों से ठेके में छपा साहित्य, ढोकर लाये गये श्रोता, भाषण पढ़ते अशुद्ध हिन्दी के नवजात प्रवाचक। ऐसा लगता है स्टूडियो में कांग्रेस-लीला नामक किसी फिल्म की शूटिंग हो रही है। 
(14) संघ परिवार पर कांग्रेस का तीखा आक्रमण तर्कसंगत है कि परिवार ने भारत की आज़ादी के लिए घरों में दुबक कर बैठने के अलावा कुछ नहीं किया। लेकिन आज खुद कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्यों में से कितनों ने अथवा उनके पूर्वजों ने आजादी के आन्दोलन में हिस्सेदारी की है? पराजय-विशेषज्ञ कांग्रेस की जीत की रणनीति बनाते हैं। जिन्होंने जीवन में कोई चुनाव नहीं लड़ा। जो अपने राज्य से एक वार्ड का चुनाव जीत नहीं पाते। जो लगातार हार रहे हैं। जो हारने के बावजूद राज्य सभा में आसानी से पहुंच जाते हैं, लेकिन दूसरों को नहीं जाने देते। जो आखिरी बार हार चुके हैं। ऐसे तत्व ने मिलकर कांग्रेस की अगली लोकसभा में जीत की गारन्टी करते रहते हैं। कांग्रेस कार्य समिति तथा प्रदेशों के कई शीर्ष नेता ऐसे भी हैं जिन्होंने कभी न कभी कांग्रेस छोड़ी भी है। इनमें से कई नेताओं ने तो इन्दिरा गांधी तक को धोखा दिया। फिर भी सोनिया गांधी उन पर विश्वास किए बैठी हैं। कांग्रेस अकेली पार्टी है जिसके संविधान में प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष पद एक ही व्यक्ति को दिए जाने के प्रावधान रचे गए हैं। जिस पार्टी में गांधी जैसा राज्य शक्ति की खिलाफत करने वाला नेता पैदा हुआ, उस पार्टी में खुले आम दिल्ली से लेकर पंचायतों तक वंशवाद की राजनीति चलाई जाती रही है। नेहरू गांधी परिवार ने यदि देश की सेवा की होगी तो कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्यों, मुख्यमंत्रियों, सांसदों और विधायकों के परिवार वालों को आम कांग्रेस कार्यकर्ता के ऊपर क्यों तरजीह दी जा रही है? पूरी पार्टी को कुछ परिवार क्यों जकड़े हुए हैं? 
(15) चाहे जो हो, मनमोहनसिंह को प्रधानमंत्री बनाया जाना सोनिया गांधी के यश के खाते की घटना नहीं हो सकती। कथित आर्थिक सुधारों का नायक जननायक नहीं होता। एक सेवानिवृत्त नौकरशाह के लिए इतनी पेंशन ठीक नहीं थी कि वह मूल वेतन से ही ज्यादा हो जाए। देश या कांग्रेस कोई घाटा उठाती ‘पब्लिक कम्पनी‘ नहीं रही है जिसका प्रबंधन विशेषज्ञ को इस भय के साथ सौंप दिया जाए, ताकि वह कम्पनी बीमार नहीं हो जाए। वह अर्थशास्त्र के अध्यापक की नौकरी नहीं बल्कि सेवा के अर्थ का अध्यापन है। मनमोहन सिंह ने ही वित्तमंत्री के रूप में वल्र्ड बैंक, गैट, अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष, निजीकरण जैसे शब्दों के अर्थ पढ़ाए हैं। सोनिया की विजय आक्रमण पर प्रतिरक्षा की विजय थी। विरोधाभास यह भी कि बहुलवादी संस्कृति में विश्वास करने वाली कांग्रेस एकल प्रचारक सोनिया तक कैद होकर रह गई। सोनिया गांधी इतिहास का भूकम्प नहीं हो सकतीं। वे अतिशयोक्ति अलंकार के काबिल भी नहीं हैं। हो सकता है मनमोहनसिंह को प्रधानमंत्री बनाने के पीछे कई राजनीतिक कारण भी रहे होंगे। 
 मनमोहन सिंह के बदले राजनीतिक व्यक्ति यदि प्रधानमंत्री होता तो पार्टी पतन के रास्ते पर शायद इस तेज़ी से नहीं जा पाती। एक गैरराजनीतिज्ञ, मनोनीत प्रधानमंत्री ने किसी अन्य लोकतंत्र में इस कदर अपना शिकंजा संगठन और सरकार पर नहीं कसा जैसा करतब भारत में हुआ। 
चुनावों में पराजय
(16) जनता ने 1989 के बाद कांग्रेस को केन्द्र की एकल सत्ता से बेदखल कर दिया। यह अलग बात है कि सबसे बड़े दल के रूप में उभरने के कारण उसे पांच वर्ष सत्ता में रहने का राजनीतिक परिस्थितियों के कारण 1991 में अवसर मिल गया था और 2003 तथा 2008 में भी। लोकतंत्र में सत्तासीन होना ही कामयाब होना है। चुनावों में कांग्रेस का पतन फीनिक्स पक्षी की दंत-कथाओं की तरह उन तंतुओं से नहीं बना है, जिनमें पांच सौ बरस बाद भी शरीर के भस्म हो जाने पर राख से जी उठने की कालजयी कुदरती क्षमता होती है। सवाल उठता रहा कि आत्महंता और अहंकारी तथा अधकचरे कांग्रेसियों के हुजूम को किसी अनुशासित सेना में बदलने की शक्ति क्या कांग्रेस के नेतृत्व में बची रही है? सवाल उठता रहा कि भविष्य यानी वक्त एक निर्मम हथियार है। उसे कांग्रेसियों की गरदन से भी कोई परहेज़ नहीं है। क्या कांग्रेस आत्म प्रशंसा में गाफिल रही अथवा निराशा के महासमुद्र में विलीन होने को बेताब हो गई थी? क्या कांग्रेस के कर्णधार केवल उनके पूर्वजों के गौरवशाली इतिहास को ढोने लेकिन नहीं बांचने का दंभ लिए हुए मतदाताओं को घर की मुर्गी समझते रहेंगे?














  ~विजय राजबली माथुर ©
 

Monday, May 5, 2025

जूलियस रेबेरो आईपीएस (सेवानिवृत्त) (पूर्व डी.जी.पी. महाराष्ट्र) का कथन ------ द्वारा Anand Surana

 



जूलियस रेबेरो ने पीएम नरेंद्र मोदी से क्या कहा, कृपया पढ़ें
पंजाब के पूर्व डीजीपी और देश के बेहद प्रतिष्ठित आईपीएस अधिकारी के विचार.
जूलियस रेबेरो आईपीएस (सेवानिवृत्त) (पूर्व डी.जी.पी. महाराष्ट्र)
आंखें खोलने वाला
देश के नागरिक के तौर पर मुझे लगा कि ये बात उन तक पहुंचानी होगी.
मोदी जी, एक मंच पर खड़े होकर चिल्लाने और यह सवाल पूछने का कोई 👍मतलब नहीं है कि पिछले 60 वर्षों में क्या हासिल हुआ। क्या आपको नहीं लगता कि हमारे देश के नागरिक मूर्ख हैं.  आप एक ऐसे देश के प्रधान मंत्री हैं, जो 300 से अधिक वर्षों तक ब्रिटिश शासन के अधीन था।  लोग बिल्कुल गुलामों की तरह जी रहे थे।  आज़ादी के बाद 1947 में कांग्रेस सत्ता में आई और शून्य से शुरुआत की. इस देश में अंग्रेजों द्वारा छोड़े गए कूड़े के अलावा कुछ भी नहीं था। अंग्रेजों के भारत छोड़ने के बाद से भारत के पास एक पिन बनाने के भी संसाधन नहीं थे।  पूरे देश में केवल 20 गांवों के लिए बिजली उपलब्ध थी।  इस देश में केवल 20 शासकों (राजाओं) के लिए ही टेलीफोन सुविधा उपलब्ध थी। पीने के पानी की कोई आपूर्ति नहीं थी. केवल 10 छोटे बांध थे।  खेती के लिए न अस्पताल, न शैक्षणिक संस्थान, न खाद, न चारा, न पानी की आपूर्ति।  कोई नौकरियाँ नहीं थीं और पूरे देश में केवल भुखमरी देखी जा सकती थी।  अनेक शिशुओं की मृत्यु हुई।  सीमा पर बहुत कम सैन्य कर्मचारी. केवल 4 विमान, 20 टैंक और देश के चारों तरफ पूरी तरह खुली सीमाएँ। बहुत कम सड़कें और पुल। खाली खजाना.
इन परिस्थितियों में नेहरू सत्ता में आये।
60 साल बाद भारत क्या है?
विश्व की सबसे बड़ी सेना में से एक.  हजारों युद्धक विमान, टैंक।  लाखों औद्योगिक संस्थान। लगभग सभी गांवों में बिजली. सैकड़ों विद्युत विद्युत स्टेशन। लाखों किलोमीटर लंबे राष्ट्रीय राजमार्ग और ओवर ब्रिज।  नई रेलवे परियोजनाएं, स्टेडियम, सुपर स्पेशलिटी अस्पताल, अधिकांश भारतीय घरों में टेलीविजन, सभी देशवासियों के लिए टेलीफोन।  देश के भीतर और बाहर काम करने के लिए सभी बुनियादी ढांचे, बैंक, विश्वविद्यालय, एम्स, आईआईटी, आईआईएम, परमाणु हथियार, पनडुब्बी, परमाणु स्टेशन, इसरो, नवरत्न सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयाँ।
सालों पहले लाहौर तक घुसी थी भारतीय सेना...पाकिस्तान के 2 टुकड़े कर दिए. पाकिस्तान के 1 लाख सैनिकों और कमांडरों ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।
भारत ने खनिज और खाद्य पदार्थों का निर्यात शुरू कर दिया। श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा बैंकों का राष्ट्रीयकरण। भारत में कंप्यूटर का आगमन हुआ और भारत तथा देश के बाहर रोजगार के अनेक अवसर प्राप्त हुए।
आप सूचना प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर पीएम बने हैं.
जब आपने प्रधानमंत्री का पद संभाला था, तब भारत दुनिया की शीर्ष 10 अर्थव्यवस्थाओं में था। इसके अलावा जीएसएलवी, मंगलयान, मोनोरेल, मेट्रो रेल, अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे, पृथ्वी, अग्नि, नाग, परमाणु पनडुब्बियां....ये सब आपके पीएम बनने से पहले ही हासिल कर लिया गया था।
कृपया लोगों के पास चिल्लाने और पूछने न आएं कि कांग्रेस ने 60 वर्षों में क्या हासिल किया है।
कृपया लोगों को बताएं कि आपने पिछले 9 वर्षों में क्या हासिल किया है, नाम बदलने, मूर्ति स्थापित करने और लगातार गाय की राजनीति करने, हिंदू और मुस्लिम, हिंदू और ईसाई, हिंदू और दलित, हिंदू और अन्य अल्पसंख्यकों के बीच दरार पैदा करने के अलावा।
आपकी असफल नोटबंदी, खराब ढंग से क्रियान्वित जीएसटी (आज़ादी मिलने के बाद से सबसे कम) और लोगों को लंबी कतारों में खड़ा करना, जिससे अनावश्यक मौतें हुईं।
पाखंडी भाजपाइयों ने एफडीआई का विरोध किया और अब भाजपा बेशर्मी से एफडीआई का समर्थन कर रही है.. भाजपा भारत को अंबानी और अडानी को बेच रही है और भारत सरकार के स्वामित्व वाली एचएएल के बजाय अनिल अंबानी की 2 महीने पुरानी कंपनी को राफेल सौदा इसका एक प्रमुख उदाहरण है.. भाजपा  ज्यादा टैक्स लगाकर पेट्रोल, डीजल और एलपीजी के दाम बढ़ा दिए, जबकि कच्चे तेल के दाम सस्ते हो गए.. मोदी सरकार ने गरीबों से मिनिमम बैलेंस न रख पाने पर एसबीआई के जरिए जुर्माने के तौर पर 1771 करोड़ रुपये वसूले हैं.  भारत के लोग.  विकास अमित शाह के बेटे, शौर्य डोभाल, अंबानी, अडानी, बाबा रामदेव के पतंजलि समूह और बीजेपी को प्रायोजित करने वाले लोगों के लिए हो रहा है.. बीजेपी ने गंगा नदी को साफ करने के लिए 3000 करोड़ रुपये खर्च किए हैं, जिसका भ्रष्टाचार हर कोई पा सकता है  गंगा नदी में डुबकी लगाने से आप अपने पूरे शरीर पर मल, मैल, ग्रीस लेकर बाहर आते हैं।
पुनश्च.  यह कांग्रेस के प्रचार अभियान का विज्ञापन नहीं है.  मैं कांग्रेस समर्थक नहीं हूं.  मैं सिर्फ एक जागरूक मतदाता हूं, जो हर बार यह महसूस करता है कि यह उसकी बुद्धि का अपमान है जब वर्तमान सरकार कहती है कि हमारा देश पिछले 60 वर्षों में अच्छा नहीं रहा है!
गरिमा पर समझौता नहीं किया जा सकता!!
 🙏 जय हिंद ---जय भारत🙏
From Rakesh Nagar post












 ~विजय राजबली माथुर ©

Saturday, October 12, 2024

जब जाएंगे तब सोचेंगें ------ Drpushplata Adhiwaqta Muzaffarnagar


रतन टाटा को त्रिशंकु बना दिया है।  कुछ उन्हें  अतिरिक्त महान बनाने पर तुले  हैं ,कुछ उन्हें इस अतिरिक्त महानता से नीचे खींचकर उनकी पोल पट्टी खोलकर नीचे उतारने पर ।वे विशुद्ध उद्योगपति   ही थे । सारे समझौते उन्होंने भी किए होंगे। अब सो गए तो सोने दो। सारी जमा पूंजी यहीं रह गई  ये सोचने वाली बात है । अदानियों खदानियों की भी यहीं रहनी है। अच्छाई और बुराई मरने पर भी साथ नहीं छोड़ती । अगर हम झर  से झरने वाले नमक के बजाय डली का नमक खाते तो वह क्या बुरा था ? आधी जनता को थायराइड हो गया । पहले किसी को न था । उद्योगपतियों ने  साफ,  नकली ,मिलावटी  घी ,तेल, दूध,  डालडा , दवा आदि से बीमार बना डाला। सुई से लेकर जहाज तक भी बनाए ।अच्छी चीज़ के साथ में बुरी भी आती है । पूर्ण शुद्ध कोई नहीं ।न हम, न तुम, न टाटा ।बस  परिमाण का अंतर है ।मिलावट नमक जितनी हो तो चलती है । हम तो उनकी नैनो पर फिदा थे । उनके बारे में एक पोस्ट पर यह भी पढ़ा ।जो रतन टाटा  प्रेमियों की आँखें   मेरी आँखों की तरह फ़ाड़ देगा।मेरे दिमाग में उनकी अन्य से  थोड़ी सी बेहतर छवि रही । 
   दिगंबर जी की पोस्ट पर अजित पाटिल का ये कमेंट देखिए 
Digamber पढ़ी हम तो नैनो पर ही फिदा थे ।वे  अपनी।
टिप्पणी डिलीट कर गए ये वाली
[10/10, 10:26] Ajit Patil: मरने के बाद महान बनाने की जो रेस चलती है उसकी स्पीड सुपरसोनिक या रॉकेट से भी तेज़ होती है । रतन टाटा चले गये , जाना सबको है । लेकिन यही टाटा साहब की नैनों जब बंगाल के सिंगुर से गुजरात के सानंद तक पहुँची तो क्या - क्या नहीं हुआ ?.... उसके बाद मोदी की मार्केटिंग का ठेका रतन टाटा ने अपने कंधों पर लिया तथा वाइब्रेंट गुजरात और गुजरात मॉडल की मार्केटिंग करी । देश के बड़े टाइकून को गुजरात लाया गया , कोआर्डिनेशन कमेटी बनाई गई और क़ातिलो को स्टेटसमैन साबित करने की चालाकियां शुरू किया गया ... याद है कि नहीं ? ... बाक़ी , कलिंगनगर उड़ीसा से लेकर कुसुमा के जंगलों तक के आदिवासियों से पूछ लीजिएगा ,  उनकी गोली , उनकी बंदूक़ की ताक़त के बारे में । इसके बाद भी दिल ना भरे तो इस वक़्त फ़िलिस्तीन के ख़िलाफ़ जो कंपनी इसराइल को माल सप्लाई कर रही है उसकी भी लिस्ट देख लीजिएगा । शोक व्यक्त करना हो , शौक से करिए , लेकिन महान बनाने के इतने जोश में ना आइये .... इनका आधुनिक इतिहास , जमशेदपुर का आधुनिक इतिहास , चीन के साथ अफ़ीम के व्यापार का इतिहास ...... वगैरह तो सब कुछ भूल ही जाइए फिलहाल ..... यह सब आप बर्दाश्त नहीं कर पायेंगे शायद ...
[10/10, 10:26] Ajit Patil: क्या कोई गैर शोषक, गैर लुटेरा, कल्याणकारी, संत पूंजीपति भी होता है, या हो सकता है? 
“Capital comes dripping from head to foot, from every pore, with blood and dirt.” - Marx
("पूंजी के सिर से पैर तक, हर छिद्र से, खून और गंदगी टपकती है।”)
अजित पाटिल
अगर आत्मा सोचती देखती है तो क्या सोच रहे होंगें ।वो तो जो सोचेंगे सोचेंगे  पढ़कर अदाणी खदानी क्या सोचेंगें ।मगर उन्हें अभी सोचने की फुरसत नहीं  जब जाएंगे तब सोचेंगें ।हम सभी जीवित रहते सोचते ही कहाँ है।

















  ~विजय राजबली माथुर ©
 

Thursday, September 26, 2024

स्त्री मन, स्त्री द्वेष और मर्यादा







सिद्धांत सहगल साहब एक सुविख्यात ज्योतिषी हैं अक्सर विभिन्न विषयों पर अपने विचार व्यक्त करते रहते हैं और कभी - कभी मैं उनके पोस्ट्स को शेयर कर लेता हूँ। अभी नवीनतम उनके पोस्ट पर उनके यहाँ महिलाओं ने भी उनका समर्थन किया है लेकिन मेरे द्वारा शेयर की गई पोस्ट पर इसको स्त्री द्वेष की संज्ञा दे दी  गई है। 
अतः यह आवश्यक हो जाता है कि, मुझे स्पष्ट करना चाहिए कि, स्त्री द्वेषी पुरुष नहीं खुद स्त्रियाँ ही होती हैं। उदाहरणार्थ  आतिशी जी के र्दिल्ली की मुख्यमंत्री बनने का विरोध स्वाती मालिवाल जी द्वारा किया गया है किसी पुरुष द्वारा नहीं। अनेकों ऐसे उदाहरण  मिल जाएंगे जहां स्त्रियों द्वारा ही स्त्रियों से द्वेष ही नहीं दुश्मनी की जाती है। 

सन 2000 से 2002 के मध्य दयालबाग,आगरा के सरलाबाग में मैं ज्योतिष कार्यालय चला रहा था उस समय मुझे कई महिलाओं के जन्म -पत्र और हस्त अवलोकन का अवसर मिला है। मेरे पास एक महिला अपने जेठ साहब की पुत्री को लेकर आईं और कहा इनका तलाक करवा दीजिए । मैंने उन महिला से कहा कि आप साथ जरूर लाई हैं लेकिन अब आप हस्तक्षेप न करें और मुझे सीधे उनकी राय जानने दें । जी जी आई सी की उन शिक्षिका ने स्पष्ट कहा कि वह तलाक नहीं देना चाहतीं हैं उनकी चाची का ऐसा सुझाव है। इस मामले में स्त्री चाची के रूप में दूसरी स्त्री भतीजी के साथ न केवल द्वेष वरन  दुश्मनी रख रही थी। 
मेरे द्वारा बताए समाधान से उन शिक्षिका महोदया के पति साहब भी संतुष्ट हुए और जब उन्होंने अपना मकान बनाया मुझ से गृह प्रवेश की प्रक्रिया सम्पन्न करवाई थी फिर जब एक और मकान उन्होंने बनवाया उसमें भी मुझ से ही  गृह प्रवेश की प्रक्रिया सम्पन्न करवाई । 
हो सकता है सिद्धांत सहगल साहब ने जन्म - पत्र विश्लेषण के दौरान जो अनुभव प्राप्त किए होंगे उनके आधार पर ही यह निष्कर्ष दिया हो। अपने अनुभव के आधार पर मैं उनसे सहमत हूँ इसलिए ही उनकी पोस्ट को शेयर किया था किसी स्त्री द्वेष के आधार पर नहीं। 


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Sidhant Sehgal
सोशल मिडिया पर सारा दिन लम्बे लम्बे पुरुष विद्वेषी नारीवादी लेख आते हैं इन लेखों का सिर्फ एक ही उद्देश्य होता हैं , पुरुष कितना अत्याचारी है। हर बात में पुरुष का ही दोष है नारी कितनी बेचारी है , नारी कितना त्याग करती है। तब किसी को तकलीफ नहीं होती न नारी को न किसी पुरुष को , क्योंकि ऐसे नारीवादी लेख पुरुष ही ज्यादा लिखते हैं , ऐसा वो तीन कारणों से करते हैं
१- लाइक कमेंट ज्यादा आते हैं , पोस्ट वायरल होती है
२- नारियों की गुड लिस्ट में जगह मिलती है
३- तीसरा कारण बहुत गन्दा है जिसे स्त्री समझ नहीं पाती , ऐसे नारीवादी पुरुष के हाथो की नारी ज्यादा प्रताड़ित होती है क्योंकि नारी की नजर में ये देवता का स्थान प्राप्त कर चुके होते हैं।
एक पोस्ट नारी की असलियत पर कोई लिख दे तो - नारी तो बिदकेगी ही -नारी वादी पुरुषो को सबसे ज्यादा आग लगती है।
सोशल मिडिया पर पुरुषों के समर्थन में इसलिए कोई पोस्ट जल्दी नहीं आती क्योंकि सब टूट पड़ते हैं उसपर।
लेकिन सबसे कटु सत्य यही है कि स्त्री विस्वाश के काबिल नहीं होती - जो करता हैं वो बर्बाद होता हैं - अपवाद हर जगह हैं। पर हकीकत यही हैं।
85% पुरुष हर साल स्त्री के हाथों छले जाने की वजह से आत्महत्या करते हैं - जहाँ स्त्री की आत्महत्या का % सिर्फ 35% है।



 

~विजय राजबली माथुर ©

Friday, September 13, 2024

यह किस पद्धति की पूजा है ?




यह किस  पद्धति की पूजा है ?
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वैदिक पद्धति के अनुसार यजमान की दाईं  ओर उसकी पत्नी का स्थान होता है लेकिन प्रस्तुत कार्यक्रम में यजमान की दाईं ओर प्रधानमंत्री हैं और उनकी दाईं ओर यजमान की पत्नी । पुरोहित महोदय क्या अनभिज्ञ थे ?
07 मई 1997 को निर्धारित आचार संहिता का उल्लंघन प्रधान न्यायाधीश द्वारा क्यों किया  गया ?
1975 में आपात काल के दौरान इलाहाबाद उच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश कुँवर बहादुर अस्थाना साहब ने तमाम लोगों को जमानत पर रिहा कर दिया था बिना सरकार के दबाव के आगे झुके हुए। 
12 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा जी के विरुद्ध फैसला सुनाने वाले न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा साहब ने अपने कर्तव्य का पालन बिना डरे और झुके हुए किया था। 
जगमोहन लाल सिन्हा साहब जब मेरठ में जिला न्यायाधीश थे और चौधरी चरण सिंह साहब उत्तर - प्रदेश के मुख्यमंत्री । चौधरी साहब के किसी खास व्यक्ति का केस सिन्हा साहब की अदालत में था उसके पक्ष में फैसला की चाहत लेकर चौधरी साहब मेरठ में सिन्हा साहब के सरकारी आवास पर मिलने गए थे। 
सिन्हा साहब ने अर्दली के जरिए पुछवाया था कि, चौधरी चरण सिंह आए हैं या उत्तर -प्रदेश के मुख्यमंत्री ?
चौधरी चरण सिंह ने अर्दली से जवाब भिजवाया था कि, जज साहब से कह दो कि, " उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री चौधरी चरण सिंह आए हैं। "
सिन्हा साहब ने मुख्यमंत्री से मिलने से इनकार कर दिया , चौधरी चरण सिंह साहब को बिना मिले ही वापिस लौटना पड़ा था। 
क्या सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश चंद्र चूड़ साहब प्रधान मंत्री को अपने निजी कार्यक्रम में शामिल करने से इनकार नहीं कर सकते थे ?







  ~विजय राजबली माथुर ©