"मायावती की माया और मुलायम की माया में कुछ बहुत फ़र्क नहीं है। दोनों ही मायावी हैं। जातीय राजनीति में आकंठ धंसे, भ्रष्टाचार में सिर से पांव तक सने और तानाशाही का मुकुट पहने अहंकार के समुद्र में लेटे दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं। उत्तर प्रदेश की जनता यह भली भांति जानती है कि एक नागनाथ है तो दूसरा सांपनाथ। पर चूंकि उस के पास विकल्प भी कुछ और नहीं है तो ऐसे में जनता करे भी तो क्या। रही बात भाजपा और कांग्रेस की तो वह दोनों भी कुछ दूसरी विशेषताओं के साथ ही सही नागनाथ और सांपनाथ की ही भूमिका में भारतीय राजनीति में उपस्थित हैं। सो हैरान-परेशान जनता करे तो आखिर क्या करे? क्यों कि सच तो यह है कि इन में से किसी भी एक दल का लोकतंत्र या लोकतांत्रिक मूल्यों में यकीन एक पैसे का भी नहीं रहा। सभी प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों मे तब्दील हैं। बल्कि कारपोरेट कल्चर में लथ-पथ। सब के सब जनता के दम पर जनता पर राज करने की फ़िराक में रहते हैं। सेवा-सुशासन आदि इन के लिए पुरातात्विक महत्व की बातें हो चली हैं।"
('हस्तक्षेप' मे व्यक्त ये विचार है 30 जनवरी 1958 को जन्मे और 33 वर्ष का अनुभव लिए वरिष्ठ पत्रकार दयानन्द पांडे जी के)
यो तो संबन्धित लेख मे पांडे जी की और बाते भी सत्य है किन्तु उपरोक्त अनुच्छेद अक्षरशः सत्य है। इसमे "पर चूंकि उस के पास विकल्प भी कुछ और नहीं है तो ऐसे में जनता करे भी तो क्या।" वाक्य विशेष उल्लेखनीय है। इस बार के चुनावो मे 'बाम पंथी मोर्चा' ने कुल 115 स्थानो पर जिसमे से भाकपा ने 51 सीटो पर चुनाव लड़ा था। परिणामो से पता चलता है कि जनता ने इनमे से किसी पर विश्वास नही किया। आखिर क्यो?जिस प्रकार बर्तन से मात्र डेढ़ चावल देख कर अनुमान लग जाता है कि खिचड़ी पकी है अथवा नही।उसी प्रकार मात्र लखनऊ (मलीहाबाद -सु ) विधान सभा क्षेत्र के भाकपा प्रत्याशी के चुनाव अभियान मे भाग लेने से मैंने अनुमान लगाया है कि पार्टी कामरेड्स ने 'मनसा-वाचा-कर्मणा' पार्टी प्रत्याशियों का साथ दिया ही नही तब जनता क्या करे?कही किसी और कही किसी बहाने से पार्टी कामरेड्स ने अपने अधिकृत प्रत्याशियों को जिताने की अपेक्षा समाजवादी पार्टी के हित मे कार्य किया । एक वरिष्ठ कामरेड ने मुझे व्यक्तिगत रूप से ई मेल पर मेरे द्वारा व्यक्त चिंता पर यह टिप्पणी दी-"Dear com. lal salam
What you have wrote in your blog is looks everywhere in India, so do not bother . In each party congress the decisions taken are not followed by the state parties so we are far away from victory in elections,& loosing the candidates in parliamentary elections ,those which are contesting elections they are pure workers of the party and trying to hold ideology of communist party.In India corrupt & bad malpractices win the election .Unit should strong on the base of masses to contest elections so we can win."
आखिर हम जनता को क्यो समझाने मे विफल रहते हैं?इसका कारण वरिष्ठ कामरेड और विद्वान लेखक अनिल राजिम वाले साहब ने पार्टी जीवन मे लिखे एक लेख मे स्पष्ट किया है कि बावजूद रूसी नेताओ लेनिन,स्टालिन आदि के समझाने के बाद भी हमारे संस्थापक नेताओ द्वारा उनकी बाते न मानना है। रूसी नेताओ ने भारतीय नेताओ को सुझाव दिया था कि भारतीय परिस्थितियो के अनुरूप पार्टी का गठन और इसका प्रचार करे न कि रूसी पैटर्न की नकल करे। परंतु हमारे नेताओ ने उनकी उपेक्षा करके रूसी पैटर्न को अपना लिया और परिणाम हमारे सामने हैं। खुद रूस मे भी उनका पैटर्न विफल हो गया और जो चीन मे चल रहा है वह वस्तुतः पूंजीवादी तानाशाही है न कि 'कम्यूनिज़्म'।
('हस्तक्षेप' मे व्यक्त ये विचार है 30 जनवरी 1958 को जन्मे और 33 वर्ष का अनुभव लिए वरिष्ठ पत्रकार दयानन्द पांडे जी के)
यो तो संबन्धित लेख मे पांडे जी की और बाते भी सत्य है किन्तु उपरोक्त अनुच्छेद अक्षरशः सत्य है। इसमे "पर चूंकि उस के पास विकल्प भी कुछ और नहीं है तो ऐसे में जनता करे भी तो क्या।" वाक्य विशेष उल्लेखनीय है। इस बार के चुनावो मे 'बाम पंथी मोर्चा' ने कुल 115 स्थानो पर जिसमे से भाकपा ने 51 सीटो पर चुनाव लड़ा था। परिणामो से पता चलता है कि जनता ने इनमे से किसी पर विश्वास नही किया। आखिर क्यो?जिस प्रकार बर्तन से मात्र डेढ़ चावल देख कर अनुमान लग जाता है कि खिचड़ी पकी है अथवा नही।उसी प्रकार मात्र लखनऊ (मलीहाबाद -सु ) विधान सभा क्षेत्र के भाकपा प्रत्याशी के चुनाव अभियान मे भाग लेने से मैंने अनुमान लगाया है कि पार्टी कामरेड्स ने 'मनसा-वाचा-कर्मणा' पार्टी प्रत्याशियों का साथ दिया ही नही तब जनता क्या करे?कही किसी और कही किसी बहाने से पार्टी कामरेड्स ने अपने अधिकृत प्रत्याशियों को जिताने की अपेक्षा समाजवादी पार्टी के हित मे कार्य किया । एक वरिष्ठ कामरेड ने मुझे व्यक्तिगत रूप से ई मेल पर मेरे द्वारा व्यक्त चिंता पर यह टिप्पणी दी-"Dear com. lal salam
What you have wrote in your blog is looks everywhere in India, so do not bother . In each party congress the decisions taken are not followed by the state parties so we are far away from victory in elections,& loosing the candidates in parliamentary elections ,those which are contesting elections they are pure workers of the party and trying to hold ideology of communist party.In India corrupt & bad malpractices win the election .Unit should strong on the base of masses to contest elections so we can win."
आखिर हम जनता को क्यो समझाने मे विफल रहते हैं?इसका कारण वरिष्ठ कामरेड और विद्वान लेखक अनिल राजिम वाले साहब ने पार्टी जीवन मे लिखे एक लेख मे स्पष्ट किया है कि बावजूद रूसी नेताओ लेनिन,स्टालिन आदि के समझाने के बाद भी हमारे संस्थापक नेताओ द्वारा उनकी बाते न मानना है। रूसी नेताओ ने भारतीय नेताओ को सुझाव दिया था कि भारतीय परिस्थितियो के अनुरूप पार्टी का गठन और इसका प्रचार करे न कि रूसी पैटर्न की नकल करे। परंतु हमारे नेताओ ने उनकी उपेक्षा करके रूसी पैटर्न को अपना लिया और परिणाम हमारे सामने हैं। खुद रूस मे भी उनका पैटर्न विफल हो गया और जो चीन मे चल रहा है वह वस्तुतः पूंजीवादी तानाशाही है न कि 'कम्यूनिज़्म'।
कम्यूनिज़्म मूलतः भारतीय अवधारणा है जो मैक्स मूलर साहब द्वारा ले जाई गई मूल पांडु लिपियों के साथ जर्मनी पहुंची और उनके द्वारा जर्मन भाषा मे किए गए अनुवादों के आधार पर कार्ल मार्क्स द्वारा -दास केपिटल एवं कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो के द्वारा प्रचारित व प्रसारित की गई। विदेशी विद्वानो ने न तो भारतीय संदर्भों का उल्लेख किया न ही पालन फलतः व्यवहारिक धरातल पर उनके सिद्धान्त टिक न सके। लेकिन आज भी भारतीय कामरेड्स उसी प्रवृति को अपना कर भारत मे कम्यूनिज़्म लाने का दिवा-स्वप्न देखते हैं। मैंने अपने लेख मे गत वर्ष ही लिखा था जिसे ज्यों का त्यों पुनः उद्धृत कर रहा हूँ और मुझे पूर्ण विश्वास है कि आगामी 27 मार्च से 31 मार्च तक होने वाली पार्टी कान्फरेंस मे यदि भारतीय संदर्भों के आधार पर प्रचार -शैली को अपनाने का निश्चय हो जाये तो संसदीय चुनावो मे जनता का समर्थन हासिल करके भारत मे सफलता पूर्वक कम्यूनिज़्म को लागू किया जा सकता है। -
वैदिक मत के अनुसार मानव कौन ?
त्याग-तपस्या से पवित्र -परिपुष्ट हुआ जिसका 'तन'है,
भद्र भावना-भरा स्नेह-संयुक्त शुद्ध जिसका 'मन'है.
होता व्यय नित-प्रति पर -हित में,जिसका शुची संचित 'धन'है,
वही श्रेष्ठ -सच्चा 'मानव'है,धन्य उसी का 'जीवन' है.
इसी को आधार मान कर महर्षि कार्ल मार्क्स द्वारा साम्यवाद का वह सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया जिसमें मानव द्वारा मानव के शोषण को समाप्त करने का मन्त्र बताया गया है. वस्तुतः मैक्स मूलर सा : हमारे देश से जो संस्कृत की मूल -पांडुलिपियाँ ले गए थे और उनके जर्मन अनुवाद में जिनका जिक्र था महर्षि कार्ल मार्क्स ने उनके गहन अध्ययन से जो निष्कर्ष निकाले थे उन्हें 'दास कैपिटल' में लिपिबद्ध किया था और यही ग्रन्थ सम्पूर्ण विश्व में कम्यूनिज्म का आधिकारिक स्त्रोत है.स्वंय मार्क्स महोदय ने इन सिद्धांतों को देश-काल-परिस्थिति के अनुसार लागू करने की बात कही है ;परन्तु दुर्भाग्य से हमारे देश में इन्हें लागू करते समय इस देश की परिस्थितियों को नजर-अंदाज कर दिया गया जिसका यह दुष्परिणाम है कि हमारे देश में कम्यूनिज्म को विदेशी अवधारणा मान कर उसके सम्बन्ध में दुष्प्रचार किया गया और धर्म-भीरु जनता के बीच इसे धर्म-विरोधी सिद्ध किया जाता है.जबकि धर्म के तथा-कथित ठेकेदार खुद ही अधार्मिक हैं परन्तु हमारे कम्यूनिस्ट साथी इस बात को कहते एवं बताते नहीं हैं.नतीजतन जनता गुमराह होती एवं भटकती रहती है तथा अधार्मिक एवं शोषक-उत्पीडक लोग कामयाब हो जाते हैं.आजादी के ६३ वर्ष एवं कम्यूनिस्ट आंदोलन की स्थापना के ८६ वर्ष बाद भी सही एवं वास्तविक स्थिति जनता के समक्ष न आ सकी है.मैंने अपने इस ब्लॉग 'क्रान्तिस्वर' के माध्यम से ढोंग,पाखण्ड एवं अधार्मिकता का पर्दाफ़ाश करने का अभियान चला रखा है जिस पर आर.एस.एस.से सम्बंधित लोग तीखा प्रहार करते हैं परन्तु एक भी बामपंथी या कम्यूनिस्ट साथी ने उसका समर्थन करना अपना कर्तव्य नहीं समझा है.'अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता' परन्तु कवीन्द्र रवीन्द्र के 'एक्ला चलो रे ' के तहत मैं लगातार लोगों के समक्ष सच्चाई लाने का प्रयास कर रहा हूँ -'दंतेवाडा त्रासदी समाधान क्या है?','क्रांतिकारी राम','रावण-वध एक पूर्व निर्धारित योजना','सीता का विद्रोह','सीता की कूटनीति का कमाल','सर्वे भवन्तु सुखिनः','पं.बंगाल के बंधुओं से एक बे पर की उड़ान','समाजवाद और वैदिक मत','पूजा क्या?क्यों?कैसे?','प्रलय की भविष्यवाणी झूठी है -यह दुनिया अनूठी है' ,समाजवाद और महर्षि कार्लमार्क्स,१८५७ की प्रथम क्रान्ति आदि अनेक लेख मैंने वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित अभिमत के अनुसार प्रस्तुत किये हैं जो संतों एवं अनुभवी विद्वानों के वचनों पर आधारित हैं.
मेरा विचार है कि अब समय आ गया है जब भारतीय कम्यूनिस्टों को भारतीय सन्दर्भों के साथ जनता के समक्ष आना चाहिए और बताना चाहिए कि धर्म वह नहीं है जिसमें जनता को उलझा कर उसका शोषण पुख्ता किया जाता है बल्कि वास्तविक धर्म वह है जो वैदिक मतानुसार जीवन-यापन के वही सिद्धांत बताता है जो कम्यूनिज्म का मूलाधार हैं.कविवर नन्द लाल जी यही कहते हैं :-
जिस नर में आत्मिक शक्ति है ,वह शीश झुकाना क्या जाने?
जिस दिल में ईश्वर भक्ति है वह पाप कमाना क्या जाने?
माँ -बाप की सेवा करते हैं ,उनके दुखों को हरते हैं.
वह मथुरा,काशी,हरिद्वार,वृन्दावन जाना क्या जाने?
दो काल करें संध्या व हवन,नित सत्संग में जो जाते हैं.
भगवान् का है विशवास जिन्हें दुःख में घबराना क्या जानें?
जो खेला है तलवारों से और अग्नि के अंगारों से .
रण- भूमि में पीछे जा के वह कदम हटाना क्या जानें?
हो कर्मवीर और धर्मवीर वेदों का पढने वाला हो .
वह निर्बल दुखिया बच्चों पर तलवार चलाना क्या जाने?
मन मंदिर में भगवान् बसा जो उसकी पूजा करता है.
मंदिर के देवता पर जाकर वह फूल चढ़ाना क्या जानें?
जिसका अच्छा आचार नहीं और धर्म से जिसको प्यार नहीं.
जिसका सच्चा व्यवहार नहीं 'नन्दलाल' का गाना क्या जानें?
संत कबीर आदि दयानंद सरस्वती,विवेकानंद आदि महा पुरुषों ने धर्म की विकृतियों तथा पाखंड का जो पर्दाफ़ाश किया है उनका सहारा लेकर भारतीय कम्यूनिस्टों को जनता के समक्ष जाना चाहिए तभी अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति और जनता का शोषण समाप्त किया जा सकता है.दरअसल भारतीय वांग्मय में ही कम्यूनिज्म सफल हो सकता है ,यूरोपीय वांग्मय में इसकी विफलता का कारण भी लागू करने की गलत पद्धतियाँ ही थीं.सम्पूर्ण वैदिक मत और हमारे अर्वाचीन पूर्वजों के इतिहास में कम्यूनिस्ट अवधारणा सहजता से देखी जा सकती है -हमें उसी का आश्रय लेना होगा तभी हम सफल हो सकते हैं -भविष्य तो उज्जवल है बस उसे सही ढंग से कहने की जरूरत भर है।
* * *
यदि हम चुनावो मे जनता के समक्ष कम्युनिस्ट पार्टी को एक विकल्प के रूप मे प्रस्तुत करेंगे तो निश्चय ही जनता कम्यूनिज़्म के अतिरिक्त किसी और को नहीं चुनेगी बस सिर्फ उसे समझाना भर है कि कम्यूनिज़्म भारतीय विचार धारा है ,विदेशी नहीं -विदेश मे विफलता ही इसी कारण मिली क्योंकि वह भारतीय अवधारणा पर नही चलाई गई थी।ज़ोर शोर से खुद को ठेठ और पुराना कम्युनिस्ट कहने वाले कलाई पर कलावा बांधते है,मजार,मस्जिद और मंदिर भी जाते हैं उनकी कथनी और करनी मे अंतर रहता है। किन्तु मेरे द्वारा विश्लेषित दृष्टिकोण को सिरे से ही ठुकरा देते हैं। यदि 'सत्य' को स्वीकार किया जाये तो सफलता स्वतः मिलेगी।
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