Thursday, May 5, 2011

समाजवाद और महर्षि कार्लमार्क्स ------ विजय राजबली माथुर

05  मई जयन्ति के अवसर पर १९९० में सप्तदिवा,आगरा में पूर्व प्रकाशित आलेख 




जब-जब धरा विकल होती,मुसीबत का समय आता.
किसी न किसी रूप में कोई न कोई महामानव चला आता ..


ये पंक्तियाँ महर्षि कार्ल मार्क्स पर पूरी तरह खरी उतरती हैं.मार्क्स का आविर्भाव एक ऐसे समय में हुआ जब मानव द्वारा मानव का शोषण अपने निकृष्टतम रूप में भयावह रूप धारण कर चुका था.औद्योगिक क्रान्ति के बाद जहाँ समाज का धन-कुबेर वर्ग समृद्धि की बुलंदियां छूता चला जा रहा था वहीं दूसरी ओर मेहनत करके जीवन निर्वाह करने वाला गरीब मजदूर और फटे हाल होता जा रहा था,यह परिस्थिति यूरोप में तब आ चुकी थी और भारत तब तक सामन्तवाद में पूरी तरह जकड चुका था.हमारे देश में जमींदार भूमिहीन किसानों पर बर्बर अत्याचार कर रहे थे.
Man is the product of his Environment .
मार्क्स का पितृ देश जर्मन था,परन्तु उन्हें निर्वासित होकर इंग्लैण्ड में अपना जीवन यापन करना पड़ा.जर्मन के लोग सदा से ही चिंतन-मनन में  अन्य यूरोपीय समाजों से आगे रहे हैं और उन पर भारतीय चिंतन का विशेष प्रभाव पड़ा है.मैक्समूलर सा :तीस वर्ष भारत में रहे और संस्कृत का अध्ययन करके वेद,वेदान्त,उपनिषद और पुरानों की तमाम पांडुलिपियाँ तक प्राप्त करके जर्मन वापिस लौटे.मार्क्स जन्म से ही मेधावी रहे उन्होंने मैक्समूलर के अध्ययन का भरपूर लाभ उठाया और समाज व्यवस्था के लिए नए सिद्धांतों का सृजन किया.
मार्क्स का तप और त्याग 
हालांकि एक गरीब परिवार में जन्में और कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा,परन्तु मार्क्स ने हार नहीं मानी,उन्होंने अपने कठोर तपी जीवन से गहन अध्ययन किया.समाज के विकास क्रम को समझा और भावी समाज निर्माण के लिए अपने निष्कर्षों को निर्भीकता के साथ समाज के सम्मुख रखा.व्यक्तिगत जीवन में अपने से सात वर्ष बड़ी प्रेमिका से विवाह करने के लिए भी उन्हें सात वर्ष तप-पूर्ण प्रतीक्षा करनी पडी.उनकी प्रेमिका के पिता जो धनवान थे मार्क्स को बेहद चाहते थे और अध्ययन में आर्थिक सहायता भी देते थे पर शायद अपनी पुत्री का विवाह गरीब मार्क्स से न करना चाहते थे.लेकिन मार्क्स का प्रेम क्षण-भंगुर नहीं था उनकी प्रेमिका ने भी मार्क्स की तपस्या में सहयोग दिया और विवाह तभी किया जब मार्क्स ने चाहा.विवाह के बाद भी उन्होंने एक आदर्श पत्नी के रूप में सदैव मार्क्स को सहारा दिया.जिस प्रकार हमारे यहाँ महाराणा प्रताप को उनकी रानी ने कठोर संघर्षों में अपनी भूखी बच्चीकी परवाह न कर प्रताप को झुकने नहीं दिया ठीक उसी प्रकार मार्क्स को भी उनकी पत्नी ने कभी निराश नहीं होने दिया.सात संतानों में से चार को खोकर और शेष तीनों बच्चियों को भूख से बिलखते पा कर भी दोनों पति-पत्नी कभी विचलित नहीं हुए और आने वाली पीढ़ियों की तपस्या में लीं रहे.देश छोड़ने पर ही मार्क्स की मुसीबतें कम नहीं हो गईं थीं,इंग्लैण्ड में भी उन्हें भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता था.लाईब्रेरी में अध्ययनरत मार्क्स को समय समाप्त हो जाने पर जबरन बाहर निकाला जाता था.
बेजोड़ मित्र 
इंग्लैण्ड के एक कारखानेदार एन्जेल्स ने मार्क्स की उसी प्रकार सहायता की जैसी सुग्रीव ने राम को की थी.एन्जेल्स धन और प्रोत्साहन देकर सदैव मार्क्स के साथ कन्धे से कन्धा मिला कर खड़े रहे.मार्क्स का दर्शन इन्हीं दोनों के त्याग का प्रतिफल है.विपन्नता और संकटों से झूजते मार्क्स को सदैव एन्जेल्स ने आगे बढ़ते रहने में सहायता की और जिस प्रकार सुग्रीव के सैन्य बल से राम ने साम्राज्यवादी रावण पर विजय प्राप्त की थी.ठीक उसी प्रकार मार्क्स ने एन्जेल्स के सहयोग बल से शोषणकारी -उत्पीडनकारी साम्राज्यवाद पर अपने अमर सिद्धांतों से विजय का मार्ग प्रशस्त किया.गरीब और बेसहारा लोगों के मसीहा के रूप में मार्क्स और एन्जेल्स तब तक याद किये जाते रहेंगें जब तक आकाश में सूरज-चाँद और तारे दैदीप्यमान रहेंगें.
भारतीय संस्कृति और मार्क्सवाद 
हमारे प्राच्य ऋषि-मुनियों नें 'वसुधैव कुटुम्बकम'का नारा दिया था,वे समस्त मानवता में समानता के पक्षधर थे और मनुष्य द्वारा मनुष्य के उत्पीडन और शोषण के विरुद्ध.यही सब कुछ मार्क्स ने अपने देश -काल की परिस्थितियों के अनुरूप नए निराले ढंग से कहा है.कुछ विद्वान मार्क्स के दर्शन को भारतीय वांग्मयके अनुरूप मानते हैं जबकि वास्तविकता यह है कि,मार्क्सवाद भारतीय संस्कृति में ही सही ढंग से लागू हो सकता है.यूरोप में मार्क्स के दर्शन पर क्रांतियाँ हुईं और मजदूर वर्ग की राजसत्ता स्थापित हुयी और वहां शोषण को समाप्त करके एक संता पर आधारित समाज संरचना हुयी,परन्तु इस प्रक्रिया में यूरोपीय संस्कृति के अनुरूप मार्क्स के अनुयाई शासकों से कुछ ऐसी गलतियां हुईं जो मार्क्स और एन्जेल्स के दर्शन से मेल नहीं खातीं थीं.रूसी राष्ट्रपति मिखाईल गोर्बाचोव ने इस कमी को महसूस किया और सुधारवादी कार्यक्रम लागू कर दिया जिससे समाज मार्क्स-दर्शन का वास्तविक लाभ उठा सके.यूरोप के ही कुछ शासकों ने सामंती तरीके से इसका विरोध किया,परिणामस्वरूप उन्हें जनता के कोप का भाजन बनना पडा.आज विश्व के आधे क्षेत्रफल और एक तिहाई आबादी में मार्क्सवादी शासन सत्ता विद्यमान है जो सतत प्रयास द्वारा जड़ता को समाप्त कर यथार्थ मार्क्सवाद की ओर बढ़ रही है.                                                                                                                                          
स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि,नास्तिक वह नहीं है जिसका ईश्वर पर विशवास नहीं है,बल्कि' नास्तिक वह है जिसका अपने ऊपर विशवास नहीं है' मार्क्सवाद बेसहारा गरीब मेहनतकश वर्ग को अपने ऊपर विशवास करने की प्रेरणा देता है.विवेकानंद ने यह भी कहा था जब तक संसार में झौंपडी में निवास करने वाला हर आदमी सुखी नहीं होता यह संसार कभी सुखी नहीं होगा.मार्क्स ने जिस समाज-व्यवस्था का खाका प्रस्तुत किया उसमें सब व्यक्ति सामान होंगें और प्रत्येक व्यक्ति से उसकी क्षमता व योग्यतानुसार काम लिया जाएगा और प्रत्येक व्यक्ति को उसकी आवश्यकतानुसार दिया जाएगा जिससे उसका बेहतर जीवन निर्वाह हो सके.श्री कृष्ण ने भी गीता में यही बताया कि,मनुष्य को लोभवश परिग्रह नहीं करना चाहिए,अर्थात किसी मनुष्य को अपनी आवश्यकता से अधिक कुछ नहीं रखना चाहिए.यह आवश्यकता से अधिक रखने की लालसा अर्थात कृष्ण के बताये गए अपरिग्रह मार्ग का अनुसरण न करना ही शोषण है.और इसी शोषण को समाप्त करने का मार्ग मार्क्स ने आधुनिक काल में हमें दिखाया है.
भारत में गलत धारणा 
हमारे देश में साधन सम्पन्न शोषक वर्ग ने धर्म की आड़ में मार्क्सवाद के प्रति विकृत धारणा का पोषण कर रखा है जब कि यह लोग स्वंय ही 'धर्म से अनभिग्य 'हैं.प्रसिद्ध संविधान शास्त्री  और महात्मा गांधी के अनुयाई डा. सम्पूर्णानन्द ने धर्म की व्याख्या करते हुए कहा है :-सत्य,अहिंसा,अस्तेय,अपरिग्रहऔर ब्रह्मचर्य के समुच्य का नाम है-धर्म.अब देखिये यह सोचने की बात है कि,धर्म की दुहाई देने वाले इन पर कितना आचरण करते हैं.यदि समाज में शोषण विहीन व्यवस्था ही स्थापित हो जाए जैसा कि ,मार्क्स की परिकल्पना में-

सत्य-पूंजीपति शोषक वर्ग सत्य बोल और उस पर चल कर समृद्धत्तर नहीं हो सकता .
अहिंसा-मनसा-वाचा-कर्मणा अहिंसा का पालन करने वाला शोषण कर ही नहीं सकता.
अस्तेय-अस्तेय का पालन करके पूंजीपति वर्ग अपनी पूंजी नष्ट कर देगा.गरीब का हक चुराकर ही धनवान की पूंजी सृजित होती है.
अपरिग्रह-जिस पर वेदों से लेकर श्रीकृष्ण और स्वामी विवेकानन्द सभी मनीषियों ने ज्यादाजोर दिया यदि समाज में अपना लिया जाए तो कोई किसी का हक छीने ही नहीं और स्वतः समानता स्थापित हो जाए.
ब्रह्मचर्य-जिसकी जितनी उपेक्षा पूंजीपति वर्ग में होती है ,गरीब तबके में यह संभव ही नहीं है.अपहरण,बलात्कार और वेश्यालय पूंजीपति समाज की संतुष्टि का माध्यम हैं.

आखिर फिर क्यों धर्म का आडम्बर दिखा कर पूंजीपति वर्ग जनता को गुमराह करता है?ज़ाहिर है कि,ऐसा गरीब और शोषित वर्ग को दिग्भ्रमित करने के लिए किया जाता है,जिससे धर्म की आड़ में शोषण निर्बाध गति से चलता रहे.
कसूरवार मार्क्सवादी भी हैं
हमारे देश में धर्म का अनर्थ करके जहां पूंजीपति वर्ग शोषण को मजबूत कर लेता है;वहीं साम्राज्यवादी  उसे इसके लिए प्रोत्साहित करते हैं जबकि मार्क्स के अनुयायी  अंधविश्वास में जकड कर और शब्द जाल में फंस कर भारतीय जनता को भारतीय संस्कृति और धर्म से परिचित नहीं कराते.ऐसा करना वे मार्क्सवाद के सिद्धांतों के विपरीत समझते हैं.और यही कारण है अपनी तमाम लगन और निष्ठा के बावजूद भारत में मार्क्सवाद को  विदेशी विचार-धारा समझा जाता है और यही दुष्प्रचार  करके साम्राज्यवादी-साम्प्रदायिक शक्तियां विभिन्न धर्मों के झण्डे उठा कर जनता को उलटे उस्तरे से मूढ़ती  चली जा रहीं हैं.इस परिस्थिति के लिए १९२५ से आज तक का हमारा मार्क्सवादी आन्दोलन स्वंय जिम्मेदार है.
अब समय आ गया है 
जब हम प्रति वर्ष २२अप्रैल से ०५ मई तक मार्क्सवाद-लेनिनवाद के सिद्धांतों को भारतीय संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में 'चेतना पक्ष' के रूप में मनाएं और स्वंय मार्क्स के अनुयाई भी भारतीय वांग्मय के अनुकूल भाषा-शैली अपना कर राष्ट्र को प्राचीन 'वसुधैव कुटुम्बकम'की भावना फैलाने के लिए महर्षि कार्ल मार्क्स की चेतना से अवगत कराएं,अन्यथा फिर वही 'ढ़ाक के तीन पात'.
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फेसबुक पर प्राप्त कमेंट्स :
05-05-2016 
05-05-2016 

05-05-2016 
06-05-2016 

6 comments:

Kunwar Kusumesh said...

जानकारीपरक और ज्ञानवर्धक पोस्ट.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

आपकी हर पोस्ट कुछ नई जानकारी देती है...... मार्क्स और उनकी विचारधारा के विषय में विस्तृत जानकारी का आभार

Patali-The-Village said...

अच्छी जानकारी के लिए आभार|

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

बेहतरीन पोस्ट ... बहुत अच्छा लगा इतना कुछ जानकारी पाकर ...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

जानकारी से भरी सार्थक पोस्ट।

Reeta Sharma said...

भारतीय संंदर्भ में मार्क्सवाद की सटीक व्याख्या...