Saturday, September 16, 2017

राजनीतिक विकल्प क्या और कैसा ? ------ विजय राजबली माथुर





यह भारत के लिए विडम्बना ही है कि, वामपंथ की सबसे पुरानी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी जब प्रथम आम चुनावों के जरिये ही लोकसभा में मुख्य विपक्षी दल के रूप में सामने आ गई थी और बाद में केरल में चुनाव के जरिये ही सत्ता में भी आ गई थी तब ' यह आज़ादी झूठी है .....' का नारा लगा कर तेलंगाना में सशस्त्र आंदोलन चला दिया गया। इसे कुचलने के लिए विनोबा भावे के नेतृत्व में 'भूदान ' आंदोलन खड़ा किया गया और कम्युनिस्टो का पुलिसिया दमन भी किया गया। 1964 में एक तबका CPM का गठन करके अलग होगया जिसके शीर्ष नेताओं बी टी रणदिवे और ए के गोपालन का कहना था कि, हम संविधान में घुस कर संविधान को तोड़ देंगे(उनकी इस उक्ति पर मोदी सरकार तन्मयता से आगे बढ़ रही है )।  लेकिन बंगाल में 35 वर्ष के शासन में इस पार्टी को वहाँ ' बंगाली पार्टी ' के रूप में समर्थन मिलने के कारण और ब्राह्मण वादी प्रभुत्व के चलते यह पाखंड तक को नहीं तोड़ पाई और इसके शासन में भी सारे आडंबर बदस्तूर चलते रहे । पुनः 1967 में नक्सल बाड़ी आंदोलन के रूप में यह भी विभाजित हो गई थी और आज वामपंथ की स्थिति केले के तने की परतों की तरह विभिन्न अलग - अलग पार्टियों के रूप में सहजता से देखी जा सकती है। जब कारपोरेट के एक तबके से इसने सम्झौता किया तब कारपोरेट के दूसरे तबकों ने मिल कर इसे सत्ता से बेदखल करने में सफलता प्राप्त कर ली है। 
आज CPM ममता बनर्जी से उसी प्रकार की एलर्जी रख रही है जैसी मायावती  मुलायम सिंह से रखती रही हैं। लेकिन कम्युनिस्टों को बंगाल की खाड़ी में फेंकने का 2011 में ऐलान करने वाले राहुल गांधी की पार्टी से 2016 में सम्झौता करके जोरदार पटकनी खा ली लेकिन फासिस्ट / सांप्रदायिक भाजपा को टक्कर देने के लिए अब भी ममता बनर्जी से हाथ मिलाने को तैयार नहीं हैं । 27 अगस्त 2017 की पटना  रैली में ममता बनर्जी की उपस्थिती के कारण ही CPM ने भाग नहीं लिया और CPIML के महासचिव भी नहीं पहुंचे। 
सोनिया कांग्रेस के पी एम रहे मनमोहन सिंह जी को जब 2012 में राष्ट्रपति बनाने ( और प्रणव मुखर्जी को पी एम ) की चर्चा चली तब उनके द्वारा तीसरी बार भी पी एम बनने की ख़्वाहिश ज़ाहिर की गई और आश्वासन न मिल पाने पर 2011 में हज़ारे, केजरीवाल,रामदेव आदि के माध्यम से सोनिया कांग्रेस विरोधी आंदोलन खड़ा करा दिया गया ( वह भी तब जबकि वह USAमें इलाज कराने गईं हुईं थीं। ) जिसकी परिणति वर्तमान मोदी सरकार है। 
राहुल गांधी द्वारा मोदी विरोधी मुहिम शुरू करने पर तमाम लोग कयास लगाने लगे हैं कि, वह भावी पी एम पद के दावेदार हैं क्योंकि वे इस तथ्य से अनभिज्ञ हैं कि, न ही राहुल और न ही प्रियंका कभी पी एम पद के लिए दावेदार बनेंगे क्योंकि उन पर उनकी ननसाल का दबाव है कि, वे यह पद न लें। वरना 2004 में सोनिया जी ही पी एम न बन जातीं और मोदी के लिए मार्ग प्रशस्त करने वाले मनमोहन जी सामने आ ही नहीं पाते। 
शरद यादव ने ' साझी विरासत ' अभियान तो ज़रूर छेड़ा है और वह किसी 
इल्जाम से भी नहीं घिरे हैं उनमें विभिन्न नेताओं और दलों को एकजुट करने की क्षमता भी है किन्तु उनके पी एम पद को जन - समर्थन नहीं मिल पाएगा। यदि वास्तव में मोदी और उनकी पार्टी को चुनावों में  जन - समर्थन से परास्त करना है तो इस  हेतु सम्पूर्ण वामपंथ समेत सभी वर्तमान विपक्षी दलों को संयुक्त रूप से ममता बनर्जी को नेतृत्व देना चाहिए अन्यथा सारी कवायद बेकार हो जाएगी और फासिस्ट और ज़्यादा शक्तिशाली होकर सत्ता में वापिस आ जाएँगे। तब उनके विरुद्ध एकमात्र सशस्त्र संघर्ष ही विकल्प बचेगा जैसी कि , आशंका   'नया जमाना ' , सहारनपुर के संस्थापक संपादक कन्हैया लाल मिश्र ' प्रभाकर ' ने 1951 में आर एस एस प्रचारक लिम्ये साहब का साक्षात्कार लेते हुये उनसे व्यक्त की थी। 
सशस्त्र संघर्ष के जरिये फासिस्टों को सत्ताच्युत करने पर जो सत्ता स्थापित होगी वह भी जन - तांत्रिक नहीं होगी। अतः वर्तमान संविधान व जनतंत्र की रक्षा का तक़ाज़ा है कि, संसदीय लोकतन्त्र समर्थक वामपंथी अन्य सभी विपक्षी दलों के साथ आंतरिक एकता स्थापित करने से पीछे न छूटें। जो दल और व्यक्ति डॉ अंबेडकर का अनुयाई होने का और उनके संविधान निर्माता होने का दावा करते हैं उनका सर्वाधिक दायित्व बनता है कि, वे तमाम अन्य दलों को भाजपा के विरुद्ध लामबंद करने में अपने कर्तव्य का पालन करें तभी डॉ अंबेडकर के संविधान की रक्षा हो सकेगी। 












~विजय राजबली माथुर ©

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1 comment:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (17-09-2017) को
"चलना कभी न वक्र" (चर्चा अंक 2730)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'