Wednesday, January 14, 2015

मकर -संक्रांति का महत्व --- विजय राजबली माथुर


 
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प्रति-वर्ष १४ जनवरी को मकर संक्रांति का पर्व श्रद्धा एवं उल्लास क़े साथ मनाया जाता रहा है.परंतु अब पृथ्वी व सूर्य की गतियों में आए अंतर के कारण सूर्य का मकर राशि में प्रवेश सांयकाल या उसके बाद होने के कारण प्रातः कालीन पर्व अगले दिन अर्थात १५ जनवरी को मनाए जाने चाहिए.अतः स्नान-दान,हवन आदि प्रक्रियाएं १५ ता.की प्रातः ही होनी चाहिए.परन्तु यदि सूर्य मकर राशि में 14 जनवरी को ही प्रवेश कर जाये तब 14 तारीख को ही मनाया जाना चाहिए। लेकिन केवल लकीर का फकीर बन कर नहीं चलना चाहिए क्योंकि,यह  वैज्ञानिक दृष्टि से उचित नहीं रहेगा .मकर संक्रांति क़े  दिन से सूर्य उत्तरायण होना प्रारम्भ होता है.सूर्य लगभग ३० दिन एक राशि में रहता है.१६ जूलाई को कर्क राशि में आकर सिंह ,कन्या,तुला,वृश्चिक और धनु राशि में छै माह रहता है.इस अवस्था को दक्षिणायन कहते हैं.इस काल में सूर्य कुछ निस्तेज तथा चंद्रमा प्रभावशाली रहता है और औषधियों एवं अन्न की उत्पत्ति में सहायक रहता है.१४ जनवरी को मकर राशि में आकर कुम्भ,मीन ,मेष ,वृष और मिथुन में छै माह रहता है.यह अवस्था उत्तरायण कहलाती है.इस काल में सूर्य की रश्मियाँ तेज हो जाती हैं और रबी की फसल को पकाने का कार्य करती हैं.उत्तरायण -काल में सूर्य क़े तेज से जलाशयों ,नदियों और समुन्द्रों का जल वाष्प रूप में अंतरिक्ष में चला जाता है और दक्षिणायन काल में यही वाष्प-कण पुनः धरती पर वर्षा क़े रूप में बरसते हैं.यह क्रम अनवरत चलता रहता है.दक्षिण भारत में पोंगल तथा पंजाब में लोहिणी,उ.प्र.,बिहारऔर बंगाल में खिचडी क़े रूप में मकर संक्रांति का पर्व धूम-धाम से सम्पन्न होता है.इस अवसर पर छिलकों वाली उर्द की दाल तथा चावल की खिचडी पका कर खाने तथा दान देने का विशेष महत्त्व है.इस दिन तिल और गुड क़े बने पदार्थ भी दान किये जाते हैं.क्योंकि,अब सूर्य की रश्मियाँ तीव्र होने लगतीं हैं;अतः शरीर में पाचक अग्नि उदीप्त करती हैं तथा उर्द की दाल क़े रूप में प्रोटीन व चावल क़े रूप में कार्बोहाईड्रेट जैसे पोषक तत्वों को शीघ्र घुलनशील कर देती हैं,इसी लिये इस पर्व पर खिचडी  खाने व दान करने का महत्त्व निर्धारित किया गया है.गुड रक्तशोधन का कार्य करता है तथा तिल शरीर में वसा की आपूर्ति करता है,इस कारण गुड व तिल क़े बने पदार्थों को भी खाने तथा दान देने का महत्त्व रखा गया है.

जैसा कि अक्सर हमारे ऋषियों ने वैज्ञानिक आधार पर निर्धारित पर्वों को धार्मिकता का जामा पहना दिया है,मकर-संक्रांति को भी धर्म-ग्रंथों में विशेष महत्त्व दिया गया है.शिव रहस्य ग्रन्थ,ब्रह्म पुराण,पद्म पुराण आदि में मकर संक्रांति पर तिल दान करने पर जोर दिया गया है.हमारा देश कृषि-प्रधान रहा है और फसलों क़े पकने पर क्वार में दीपावली तथा चैत्र में होली पर्व मनाये जाते हैं.मकर संक्रांति क़े अवसर पर गेहूं ,गन्ना,सरसों आदि की फसलों को लहलहाता देख कर तिल,चावल,गुड,मूंगफली आदि का उपयोग व दान करने का विधान रखा गया है,जिनके सेवन से प्रोटीन,वसा,ऊर्जा तथा उष्णता प्राप्त होती है."सर्वे भवन्तु सुखिनः"क़े अनुगामी हम इन्हीं वस्तुओं का दान करके पुण्य प्राप्त करते हैं.


दान देने का विधान बनाने का मूल उद्देश्य यह था कि,जो साधन-विहीन हैं और आवश्यक पदार्थों का उपभोग करने में अक्षम हैं उन्हें भी स्वास्थ्यवर्धक  पदार्थ मिल सकें.यह एक दिन का दान नहीं बल्कि इस ऋतु-भर का दान था.लेकिन आज लोग साधन-सम्पन्न कर्मकांडियों को एक दिन दान देकर अपनी पीठ थपथपाने लगते हैं.जबकि,वास्तविक गरीब लोग वंचित और उपेक्षित  ही रह जाते हैं.इसलिए आज का दान ढोंग-पाखण्ड से अधिक कुछ नहीं है जो कि, ऋषियों द्वारा स्थापित विधान क़े उद्देश्यों को पूरा ही नहीं करता.क्या फिर से प्राचीन अवधारणा को स्थापित नहीं किया जा सकता ?

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मूल रूप से यह लेख १३ जनवरी २०११ को पहली बार ब्लाग में प्रकाशित हुआ था।


(इस ब्लॉग पर प्रस्तुत आलेख लोगों की सहमति -असहमति पर निर्भर नहीं हैं -यहाँ ढोंग -पाखण्ड का प्रबल विरोध और उनका यथा शीघ्र उन्मूलन करने की अपेक्षा की जाती है)
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16 comments:

संजय भास्‍कर said...

"आप सभी को मकर संक्रांति के पर्व की ढेरों शुभकामनाएँ !"

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

यशवंत भाई, अच्‍छे लगे आपके विचार। हार्दिक बधाई।

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बोलने वाले पत्‍थर।
सांपों को दुध पिलाना पुण्‍य का काम है?

डॉ टी एस दराल said...

मकर संक्रांति के उपलक्ष में बहुत जानकारीपूर्ण लेख ।
सही कहा आजकल दान देना भी एक रस्म बनकर ही रह गई है ।
हमारे रीति रिवाज़ बहुत सोच समझ कर ही बनाये गए होंगे ।
लोहड़ी , संक्रांति और पोंगल की शुभकामनायें ।

Yashwant R. B. Mathur said...

@जाकिर जी,
मैंने सिर्फ ब्लॉग के सम्पादन में मात्र समन्वय किया है.मूल पोस्ट पापा की ही है.

सादर

Alpana Verma said...

बहुत ही अच्छी जानकारी दी है.
दान देने के महत्व और कारण को भी आप ने यहाँ अच्छे से समझाया.
इस लेख में मिली जानकारीके अनुसार संक्रांति १५ को ही मनाएंगे.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

मकर सक्रांति के बारे में बहुत सुंदर जानकारी..... पावन पर्व की शुभकामनायें......

निवेदिता श्रीवास्तव said...

ज्ञानवर्धक आलेख के लिये पिता - पुत्र दोनों को धन्यवाद ।
मकर सक्रांति पर्व आप सबको शुभ हो !

निवेदिता श्रीवास्तव said...

ज्ञानवर्धक आलेख के लिये पिता - पुत्र को धन्यवाद ।
इस पावन पर्व की आप सब को बधाई !

deepti sharma said...

dhanyvad
mahatvpurn jankari
makarsankranti ki hardik subhkamnaye
...

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

माथुर साहब एवम् यशवंत जी... बहुत अच्छी शास्त्रीय जानकारी हमेशा यहाँ से मिलती है,और यह पोस्ट भी उसी की एक कड़ी है. आप सबों को भी इस पुनीत अवसर पर मेरी मंगलकामनाएँ!!

Rohit Singh said...

बेहतरीन लेख। मकर संक्रातिं की बधाई। दोनो लेख पढ़े, स्वामी विवेकानंद वाली भी। असल में सभी का अपहरण हो चुका है। धर्म के नाम पर मारकाट मचाना कुछ देशों की भी नीति बन चुकी है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान के तालिबान नंबर एक हैं।

Chaitanyaa Sharma said...

सक्रांति ...लोहड़ी और पोंगल....हमारे प्यारे-प्यारे त्योंहारों की शुभकामनायें......सादर

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

आपको मकरसंक्रांति की हार्दिक शुभकामनाये !

vijai Rajbali Mathur said...

सभीजनों को उनकी शुभकामनाओं हेतु धन्यवाद.रोहित जी ने जिन तालिबानियों,पाकिस्तान और अफगानिस्तान की चर्चा की है -वे सभी साम्राज्यवादी अमेरिका के पिटठू हैं .आतंकवाद का निर्यात अमेरिका ही करता है.खालिस्तान आंतक को भी अमेरिकी कैम्पों में प्रशिक्षण मिला था.याद रखिये पाकिस्तान और अफगानिस्तान की स्वतन्त्र विदेश नीति नहीं है.विवेकानंद जी वाली पोस्ट में आतंकवादी तालिबानियों का कहीं कोई ज़िक्र नहीं है ,फिर यह भटकाव कैसे हुआ;समझ से परे है.

महेन्‍द्र वर्मा said...

‘‘दान देने का विधान बनाने का मूल उद्देश्य यह था कि जो साधन-विहीन हैं और आवश्यक पदार्थों का उपभोग करने में अक्षम हैं उन्हें भी स्वास्थ्यवर्धक पदार्थ मिल सके।‘‘

आपके इस विचार से पूरी तरह सहमत।
अब दान वंचितों की सेवा न होकर कर्मकाण्ड और दिखावा हो गया है। ऐसे दान का कोई फल नहीं मिलेगा।
ज्ञानवर्द्धक आलेख के लिए धन्यवाद, माथुर जी।

कौशल लाल said...

मकर संक्रांति पर्व की शुभकामनाएँ .......