8 नवम्बर 2016 को भारत में दिखा 'विकास' का भयावह अमानवीय चेहरा… राष्ट्र निर्माण के नाम परबहुराष्ट्रीय कम्पनी राज को स्थापित करने का खेल है !
-मंजुल भारद्वाज
8 नवम्बर 2016 भारत का 8/11 है जिससे “विकास” के भयावह अमानवीय चेहरा का उदय हुआ है . ये इतना भयावह है की कतार में खड़े होकर जनता जान दे रही है और सरकार प्लास्टिक मनी का ज्ञान दे रही है .. इस कदम से भूखमरी बढ़ेगी , बेरोज़गारी बढ़ेगी .. जन संहार होगा .. हाहाकार होगा चारों तरफ ..और मुर्दों को कफ़न खरीदने के लिए प्लास्टिक कार्ड का उपयोग करना होगा जो सीधे बहुराष्ट्रीय कम्पनी को फ़ायदा पहुंचाएगा और सत्ताधीश “राष्ट्र निर्माण” के नाम पर “राष्ट्र भक्ति” का पाठ पढ़ायेगा और सेना राष्ट्र की सीमाओं की बजाए बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की रखवाली कर रही होंगी ...देशवासियों यही आगामी सत्य है और नोट बंदी का असली खेल है .. ज़रा राष्ट्र को बचाने के सत्ताधीश के जुमलों, नारों से बाहर निकलिए और ‘व्यक्ति भक्ति’ की अफ़ीम की गोली को फेंककर इन प्रश्नों को ध्यान से पढ़िए , विश्लेषित कीजिये और विचार कीजिये
जब 8 नवंबर को पीएम नरेन्द्र मोदी ने नोटबंदी की घोषणा की तो अपने 30 मिनट के भाषण में इसके कारण बताने के लिए
-18 बार ब्लैकमनी शब्द का इस्तेमाल किया
-5 बार फेक करेंसी शब्द का इस्तेमाल किया
-0 बार कैशलेश-डिजिटल इकोनोमी का जिक्र किया
-18 बार ब्लैकमनी शब्द का इस्तेमाल किया
-5 बार फेक करेंसी शब्द का इस्तेमाल किया
-0 बार कैशलेश-डिजिटल इकोनोमी का जिक्र किया
3 दिसंबर को अपने भाषण में पीएम मोदी ने
-3 बार ब्लैक मनी शब्द का इस्तेमाल किया
-3 बार कैशलेश इकोनॉमी का जिक्र किया
-0 बा फेक करेंसी शब्द का जिक्र किया
-3 बार ब्लैक मनी शब्द का इस्तेमाल किया
-3 बार कैशलेश इकोनॉमी का जिक्र किया
-0 बा फेक करेंसी शब्द का जिक्र किया
यानी धीरे धीरे नक़ाब उतरता गया .. आप सब को अब पता है की ब्लैक मनी का गुब्बारा फूट गया है 95 प्रतिशत पैसा बैंकों में जमा होने वाला है और प्लास्टिक मनी का दौर अवतरित हो चूका है . ये प्लास्टिक मनी को जारी करने वाली भारत सरकार नहीं बहुराष्ट्रीय कम्पनियां है जो हर शक्ल , आकार , और बैंकों के रूप में मौजूद हैं . यानी भारत में जो मौजूदा सत्ता है वो ‘जनता , गरीब’ की भलाई के नाम पर किसकी भलाई के लिए जनता को कतार में में लगा रखा है .
दावों , प्रतिदावों के बीच यो सामान्य सवाल नोट बंदी के बाद क्या किसी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की वस्तुओं के दाम गिरे ? फ्रीज , टीवी , मोबाइल , हवाई टिकट के भाव गिरे ? पर किसान और उसकी फ़सल, उसके उत्पाद का दाम गिरा .. सब्ज़ी, फल कौड़ियों के भाव से सस्ते पर है ... नयी फ़सल की बुआई चौपट है .. ब्याह शादियों का हाल बेहाल है .. दिहाड़ी मजदूर काम से बाहर है बाकी जनता कतार में है और पे टी म और अन्य कम्पनियों का मुनाफ़ा चरम पर है .. सारा खेल ‘राष्ट्र’ निर्माण के नाम पर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के ‘राज’ को स्थापित करने का है !
अर्थव्यवस्था को चौपट करने की साज़िश है ये प्लास्टिक मनी का खेल !
प्लास्टिक मनी की गफ़तल पर ध्यान दीजिये डिज़िटल यानी कि पेट्रोल, टिकट, टैक्सी, ऑनलाइन ख़रीददारी तक तो ठीक है। उस पर वसूले जाने वाला टैक्स सरकार माफ़ कर रही है (पता नहीं कितने दिनों के लिए!) ...लेकिन आगे अब नीचे के बाज़ार की ओर देखिए। वहाँ अक्सर दुकानदार ग्राहक को नक़द भुगतान पर डिस्काउंट देते हैं। क्योंकि एक तो उन्हें तुरंत पैसा मिलता है और फिर कार्ड कम्पनी को जाने वाला 2 से 3प्रतिशत कमीशन बच जाता है। उसी 'बचत' को वे अपने ग्राहक को दे देते हैं। ग्राहक को वह डिस्काउंट अब कहाँ से मिलेगा? क्या सरकार उसे भी दिलवा दिया करेगी? ग़ौर करें, कार्ड कम्पनियों के कमीशन पर सरकार की कोई नकेल नहीं जिनका धंधा सरकार की नोटबंदी के बाद ख़ूब चमकने लगा है।
कार्ड के इस्तेमाल के नाम पर घोषित रियायतों का सीधा बोझ अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। उसकी भरपाई सरकार कैसे करेगी? दूसरे रास्ते से कोई नया टैक्स/सैस लगाकर? दरअसल , मझले व्यापारी ,खेतिहर और मजदूर की अन औपचारिक सहकारी अर्थव्यवस्था को चौपट करने की साज़िश है ये प्लास्टिक मनी का खेल !
सरकार का विरोध = राष्ट्र द्रोह ,नोट बंदी की त्रासदी का विरोध = कालेधन के समर्थक आज की सरकार का राजनैतिक और लोकतान्त्रिक मन्त्र है . जनता ज़रा पूछो क्यों आपको ‘कालेधन’ के नाम पर कष्ट सहने के लिए कहा जा रहा है , जबकि सत्ताधारी पार्टी के खातों में धन बढ़ रहा है , आपको अपने पसीने की कमाई के एक एक रूपये के लिए घंटों लाइन में खड़े होकर पुलिस के डंडे खाने पड़ते हैं और पे टी म , क्रेडिट कार्ड / डेबिट कार्ड कम्पनियों का मुनाफा बढ़ रहा है . आपके संवैधानिक अधिकार का हनन करने वाली राजनैतिक पार्टी क्यों “आर टी आई” के दायरे से भाग रही है ?
मेहनतकशों की व्यवस्था कैश पर चलती है लुटेरों की कैशलेस पर...
ज़रा गौर कीजिये की मूर्खतापूर्ण जनविरोधी फैसलों से राम राज आ जायेगा? अगर बहुत से लोगों को यह मुगालता है तो इसका कोई इलाज नहीं है . देशभर में गणेश जी को दूध पिलाने वाले इसी देश और समाज के थे बाहर के नहीं .इसलिए हैरानी भी नहीं होती .वे फिर दूध पिलाने जैसा ही सोच रहे हैं. जहाँ पहले से सबकैशलेस चलता है उनका खेल देखिये ... स्टोक मार्किट 100 प्रतिशत कैशलेस है ओनलाइन है और ज्यादातर अघोषित आय यानी काले पैसे पर चलता है..सट्टा बाज़ार 100 %कैशलेस। इसमे धन आये कहाँ से जाए कहाँ रे? मेहनतकशों की व्यवस्था कैश पर चलती है लुटेरों की कैशलेस पर... नोट बंदी कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की नसबंदी है...
संसद में कोई बहस नहीं होगी .....संसद में अब कानून नहीं बनेगें,मेरी सनक अब कानून है.... जनशक्ति मेरे पास है ...के गुरुर को तोड़िए भारत के जन गण...
बहुराष्ट्रीय कम्पनियां ,पूंजीपति और अमीर लोग , नया मध्यम वर्ग पहले ही डेबिट /क्रेडिट कार्ड का उपयोग करता है , चेक से लेन देन करता है यानि पहले से कैशलेस है ..यानी सफेद धन का लेन देन और उनका पैसा सफेद है और नकदी का उपयोग करने वाले दिहाड़ी मजदूर , गरीब , किसान का पैसा काला है .. देशवासियों समझ आ गया कालेधन वाले कौन हैं ...वो कालेधन वाले हैं जो लाइन में / कतार में खड़े हैं ... वाह रे मतदाता अपने वोट से जिसको बहुमत देता है वही तुझे ठगता है ...चोर बनाता है ..देश निर्माण में जान की कुर्बानी मांगता है .. जागो ..वोट देने वालो जागो .... और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के राज को खत्म करो !
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लेखक का संक्षिप्त परिचय -
“थिएटर ऑफ रेलेवेंस” नाट्य सिद्धांत के सर्जक व प्रयोगकर्त्ता मंजुल भारद्वाज वह थिएटर शख्सियत हैं, जो राष्ट्रीय चुनौतियों को न सिर्फ स्वीकार करते हैं, बल्कि अपने रंग विचार "थिएटर आफ रेलेवेंस" के माध्यम से वह राष्ट्रीय एजेंडा भी तय करते हैं।
एक अभिनेता के रूप में उन्होंने 16000 से ज्यादा बार मंच से पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।लेखक-निर्देशक के तौर पर 28 से अधिक नाटकों का लेखन और निर्देशन किया है। फेसिलिटेटर के तौर पर इन्होंने राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर थियेटर ऑफ रेलेवेंस सिद्धांत के तहत 1000 से अधिक नाट्य कार्यशालाओं का संचालन किया है। वे रंगकर्म को जीवन की चुनौतियों के खिलाफ लड़ने वाला हथियार मानते हैं। मंजुल मुंबई में रहते हैं। उन्हें 09820391859 पर संपर्क किया जा सकता है।
~विजय राजबली माथुर ©
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