Wednesday, January 17, 2018

भारतवर्ष तो आर्य था हिन्दुत्व की राजनीति गुलामी का प्रतीक है ------ विजय राजबली माथुर

दुर्भाग्य से आज विद्वान कम्यूनिज़्म को धर्म विरोधी कहते हैं और कम्युनिस्ट भी इसी मे गर्व महसूस करते हैं। धर्म जिसका अर्थ 'धारण करने'से है को न मानने के कारण ही सोवियत रूस मे कम्यूनिज़्म विफल हुआ और चीन मे सेना के दम पर जो शासन चल रहा है वह कम्यूनिज़्म के सिद्धांतों पर नहीं है। 'कम्यूनिज़्म' एक भारतीय अवधारणा है और उसे भारतीय परिप्रेक्ष्य मे ही सफलता मिल सकती है।

 'नास्तिक ' स्वामी विवेकानंद के अनुसार वह है जिसका अपने ऊपर विश्वास नहीं है और 'आस्तिक' वह है जिसका अपने ऊपर विश्वास है। लेकिन पोंगापंथी उल्टा पाठ सिखाते हैं। परंतु कम्युनिस्ट सीधी बात क्यों नहीं समझाते?....................................................................यह देश का दुर्भाग्य ही है कि पढे - लिखे विद्वान तक 'सत्य ' कहने से बचते हैं और विदेशियों द्वारा हमारे देशवासियों को दिया गया नामकरण ही प्रयोग करते रहते हैं। उसकी हकीकत ...... कि, हिन्दुत्व वस्तुतः शोषण को मजबूत बनाने की एक व्यापारिक राजनीति है।.............................................. 
"गुरुडम में फंस कर जिसने सत्य से मुंह मोड़ लिया ;
पाखण्ड को ओढ़ लिया ...
इसी कारण भारत देश गुलाम हुआ ...
भाई-भाई का आपस में घोर संग्राम हुआ ;
मंदिर ..मस्जिद तोड़े संग्राम हुआ.....
बुत परस्ती में लगा हुआ देश बुरी तरह गुलाम हुआ ;
देश मेरा बदनाम हुआ....."






*************** यह देश का दुर्भाग्य ही है कि पढे - लिखे विद्वान तक 'सत्य ' कहने से बचते हैं और विदेशियों द्वारा हमारे देशवासियों को दिया गया नामकरण ही प्रयोग करते रहते हैं। उसकी हकीकत ऊपर और नीचे प्रस्तुत वीडियो देख कर समझी जा सकती है कि, हिन्दुत्व वस्तुतः शोषण को मजबूत बनाने की एक व्यापारिक राजनीति है। निम्नलिखित पूर्व प्रकाशित नोट्स इसे समझने में सहायक हो सकते हैं*************** 

December 21, 2011 ·

वेद प्रचारक ने कहा था
दौलत के दीवानों उस दिन को पहचानों ;
जिस दिन दुनिया से खाली हाथ चलोगे..
चले दरबार चलोगे....
ऊंचे-ऊंचे महल अटारे एक दिन छूट जायेंगे सारे ;
सोने-चांदी तुम्हारे बक्सों में धरे रह जायेंगे...
जिस दिन दुनिया से खाली हाथ चलोगे...
चले दरबार चलोगे.......
दो गज कपडा तन की लाज बचायेगा ;
बाकी सब यहाँ पड़ा रह जाएगा......
चार के कन्धों पर चलोगे..
.चले दरबार चलोगे......
पत्थर की पूजा न छोडी-प्यार से नाता तोड़ दिया...
मंदिर जाना न छोड़ा -माता-पिता से नाता तोड़ दिया...
बेटे ने बूढ़ी माता से नाता तोड़ दिया ;
किसी ने बूढ़े पिता का सिर फोड़ दिया....
पत्थर की पूजा न छोडी ;मंदिर जाना न छोड़ा....
दया धर्म कर्म के रिश्ते छूट रहे;
माता-पिता से नाता छोड़ दिया....
उल्टी सीधी वाणी बोलकर दिल तोड़ दिया;
बूढ़ी माता से नाता तोड़ दिया.....
पत्थर की पूजा न छोडी मंदिर जाना न छोड़ा 
बूढ़ी माँ का दिल तोड़ दिया.....
वे क्या जाने जिसने प्रभु गुण गाया नहीं ;
वेद-शास्त्रों से जिसका नाता नहीं..
जिसने घर हवन कराया नहीं...
गुरुडम में फंस कर जिसने सत्य से मुंह मोड़ लिया ;
पाखण्ड को ओढ़ लिया ...
इसी कारण भारत देश गुलाम हुआ ...
भाई-भाई का आपस में घोर संग्राम हुआ ;
मंदिर ..मस्जिद तोड़े संग्राम हुआ.....
बुत परस्ती में लगा हुआ देश बुरी तरह गुलाम हुआ ;
देश मेरा बदनाम हुआ.....

March 23, 2012 
साम्यवादी विद्वान आर एस एस की अफवाहों को सही क्यों मानते हैं ?
बेहद अफसोसनाक है साम्यवादी विद्वानों द्वारा आर एस एस की अफवाहों को सही मानना 

साम्राज्यवादी ब्रिटिश शासकों ने अपने चहेते पुराण वादियों के सहारे आर एस एस की स्थापना अफवाहों के जरिये देश को बांटने हेतु करवाई थी जिसमे वे पूरी तरह सफल रहे। आर एस एस ने अफवाह उड़ा दी कि नव-संवत हिंदुओं का केलेनडर है और साम्यवादी विद्वानों ने उसी को सच मान कर नव-संवत का विरोध आँखें बंद करके करना शुरू कर दिया। यह प्रवृति साम्यवाद के लिए आत्म-घाती है । 

सर्व प्रथम बौद्धों ने अपने मठ उजाड़ने ,विहारों को जलाने,साहित्य को नष्ट करने वाले उग्रवादियों हेतु 'हिन्दू' शब्द का प्रयोग -'हिंसा देने वाले' के संदर्भ मे किया था। फिर जब विदेशी आक्रांता भारत मे शासन करने आए तो फारसी भाषा की एक गंदी गाली-हिन्दू का प्रयोग यहा के निवासियों हेतु करने लगे और आर एस एस जो विदेशी साम्राज्यवादियों की हितचिंतक संस्था है यहाँ के लोगों को 'गर्व से हिन्दू' कहने लगी। 


बौद्धों  को सताये जाने और फारसी आक्रांताओं के आने से बहुत पहले चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को सिंहासन पर बैठने के उपलक्ष्य मे चंद्र गुप्त  ने 'विक्रमादित्य '  की उपाधि धारण की और इसी दिन से 'विक्रमी संवत' नामक नया कलेंडर  चालू किया था। भारतीय इतिहास मे गुप्त काल को 'स्वर्ण युग'कहा जाता है जिसमे चंद्र गुप्त 'विक्रमादित्य'का शासन जनता के हित मे श्रेष्ठ था। भारतीय खुद को श्रेष्ठ अर्थात 'आर्ष'कहते थे जो अब अपभ्रंश रूप मे 'आर्य' कहा जाता है। यूरोप के विदेशियों ने आर्यों को यूरोप का बता दिया और 'गुलाम प्रवृति' के विद्वानों ने उसे भी सही मान लिया । इसी कारण 'विक्रमी संवत' को साम्यवादी विद्वान भी  आर एस एस की भांति ही हिन्दू  संवत मानते हैं जो सर्वथा गलत है। हिन्दू शब्द की उत्पत्ति से बहुत पहले लागू 'विक्रमी संवत' हिंदुओं का नही भारत के श्रेष्ठ आर्य शासक चंद्र गुप्त 'विक्रमादित्य' की याद दिलाता है जिस पर प्रत्येक स्वाभिमानी भारतीय को गर्व करना चाहिए और साम्यवादी विद्वानों को इसका विरोध करके आर एस एस का दावा मजबूत नहीं करना चाहिए। 
शिव अर्थात भारतवर्ष : 
"ॐ नमः शिवाय च का अर्थ है-Salutation To That Lord The Benefactor of all "यह कथन है संत श्याम जी पाराशर का.अर्थात हम अपनी मातृ -भूमि भारत को नमन करते हैं.वस्तुतः यदि हम भारत का मान-चित्र और शंकर जी का चित्र एक साथ रख कर तुलना करें तो उन महान संत क़े विचारों को ठीक से समझ सकते हैं.शंकर या शिव जी क़े माथे पर अर्ध-चंद्राकार हिमाच्छादित हिमालय पर्वत ही तो है.जटा से निकलती हुई गंगा -तिब्बत स्थित (अब चीन क़े कब्जे में)मानसरोवर झील से गंगा जी क़े उदगम की ही निशानी बता रही है.नंदी(बैल)की सवारी इस बात की ओर इशारा है कि,हमारा भारत एक कृषि -प्रधान देश है.क्योंकि ,आज ट्रेक्टर-युग में भी बैल ही सर्वत्र हल जोतने का मुख्य आधार है.शिव द्वारा सिंह-चर्म को धारण करना संकेत करता है कि,भारत वीर-बांकुरों का देश है.शिव क़े आभूषण(परस्पर विरोधी जीव)यह दर्शाते हैंकि,भारत "विविधताओं में एकता वाला देश है."यहाँ संसार में सर्वाधिक वर्षा वाला क्षेत्र चेरापूंजी है तो संसार का सर्वाधिक रेगिस्तानी इलाका थार का मरुस्थल भी है.विभिन्न भाषाएं बोली जाती हैं तो पोशाकों में भी विविधता है.बंगाल में धोती-कुर्ता व धोती ब्लाउज का चलन है तो पंजाब में सलवार -कुर्ता व कुर्ता-पायजामा पहना जाता है.तमिलनाडु व केरल में तहमद प्रचलित है तो आदिवासी क्षेत्रों में पुरुष व महिला मात्र गोपनीय अंगों को ही ढकते हैं.पश्चिम और उत्तर भारत में गेहूं अधिक पाया जाता है तो पूर्व व दक्षिण भारत में चावल का भात खाया जाता है.विभिन्न प्रकार क़े शिव जी क़े गण इस बात का द्योतक हैं कि, यहाँ विभिन्न मत-मतान्तर क़े अनुयायी सुगमता पूर्वक रहते हैं.शिव जी की अर्धांगिनी -पार्वती जी हमारे देश भारत की संस्कृति (Culture )ही तो है.भारतीय संस्कृति में विविधता व अनेकता तो है परन्तु साथ ही साथ वह कुछ  मौलिक सूत्रों द्वारा एकता में भी आबद्ध हैं.हमारे यहाँ धर्म की अवधारणा-धारण करने योग्य से है

MONDAY, MARCH 7, 2016
शिव का अर्थ है ‘कल्याण' अर्थात मानव मात्र के कल्याण हेतु जो संदेश दे वही शिव है। शिव बुद्धि,ज्ञान व विवेक का द्योतक है। 
हमारे विद्वान बुद्धिजीवी जिनमे बामपंथी भी शामिल हैं 'धर्म' का अर्थ ही नहीं समझते और न ही समझना चाहते हैं। पुरोहितवादियो ने धर्म को आर्थिक शोषण के संरक्षण का आधार बना रखा है और इसीलिए बामपंथी पार्टियां धर्म का विरोध करती हैं। जब कि वह धर्म है ही नहीं जिसे बताया और उसका विरोध किया जाता है। धर्म का अर्थ समझाया है 'शिवरात्रि' पर बोध प्राप्त करने वाले मूलशंकर अर्थात दयानंद ने। उन्होने 'ढोंग-पाखंड' का प्रबल विरोध किया है उन्होने 'पाखंड खंडिनी पताका' पुस्तक द्वारा पोंगापंथ का पर्दाफाश किया है। 
दयानन्द ने आजादी के संघर्ष को गति देने हेतु1875 मे  'आर्यसमाज' की स्थापना की थी ,उसे विफल करने हेतु ब्रिटिश शासकों ने 1885 मे  कांग्रेस की स्थापना करवाई तो आर्यसमाँजी उसमे शामिल हो गए और आंदोलन को आजादी की दिशा मे चलवाया।1906 मे अंग्रेजों ने मुस्लिम लीग स्थापित करवाकर देश मे एक वर्ग को आजादी के आंदोलन से पीछे हटाया। 1920 मे हिन्दू महासभा की स्थापना करवा कर दूसरे वर्ग को भी आजादी के आंदोलन से पीछे हटाने का विफल प्रयास किया। 1925 मे साम्राज्यवादी हितों के पोषण हेतु आर एस एस का गठन करवाया जिसने मुस्लिम लीग के समानान्तर सांप्रदायिकता को भड़काया और अंततः देश विभाजन हुआ। आर्यसमाज के आर  एस एस के नियंत्रण मे जाने के कारण राष्ट्रभक्त आर्यसमाजी जैसे स्वामी सहजानन्द ,गेंदा लाल दीक्षित,राहुल सांस्कृत्यायन आदि 1925 मे स्थापित 'भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी' मे शामिल हुये जिसका गठन आजादी के क्रांतिकारी आंदोलन को गति देने हेतु हुआ था। सरदार भगत सिंह,राम प्रसाद 'बिस्मिल' सरीखे युवक 'सत्यार्थ प्रकाश'पढ़ कर ही क्रांतिकारी कम्युनिस्ट बने थे। 
दुर्भाग्य से आज विद्वान कम्यूनिज़्म को धर्म विरोधी कहते हैं और कम्युनिस्ट भी इसी मे गर्व महसूस करते हैं। धर्म जिसका अर्थ 'धारण करने'से है को न मानने के कारण ही सोवियत रूस मे कम्यूनिज़्म विफल हुआ और चीन मे सेना के दम पर जो शासन चल रहा है वह कम्यूनिज़्म के सिद्धांतों पर नहीं है। 'कम्यूनिज़्म' एक भारतीय अवधारणा है और उसे भारतीय परिप्रेक्ष्य मे ही सफलता मिल सकती है।

 'नास्तिक ' स्वामी विवेकानंद के अनुसार वह है जिसका अपने ऊपर विश्वास नहीं है और 'आस्तिक' वह है जिसका अपने ऊपर विश्वास है। लेकिन पोंगापंथी उल्टा पाठ सिखाते हैं। परंतु कम्युनिस्ट सीधी बात क्यों नहीं समझाते? 

~विजय राजबली माथुर ©