Thursday, September 28, 2017

शाब्दिक अर्थ अनर्थ कर देते हैं : मर्म को समझना होगा ------ विजय राजबली माथुर

  



प्रस्तुत उद्धरण दुर्गा सप्तशती के 'अर्गला स्त्रोत ' के 24 वें श्लोक की प्रथम पंक्ति में प्रयुक्त शब्द के प्रयोग पर आपत्ति का है। इससे पूर्व गोवा की वर्तमान राज्यपाल मृदुला सिन्हा जी भी इसी शब्द पर आपत्ति उठा चुकी हैं। 
 * वस्तुतः इस भ्रम का कारण इन संस्कृत शब्दों का ' मर्म ' समझे बगैर  सिर्फ शाब्दिक अर्थ लेने के कारण है । सिर्फ साहित्यिक दृष्टिकोण से इनके मर्म को नहीं समझा जा सकता है। इसे संस्कृत के बीज गणितीय विश्लेषण के आधार पर समझना पड़ेगा तभी मर्म तक पहुंचा जा सकेगा। 

 * दुर्गा सप्तशती के ही ' कुंजिका स्त्रोत 'के 5 वें श्लोक में वर्णन है :

" विच्चे  चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिणी ' । । 5 । । 
अब यदि उदाहरण के अनुसार शाब्दिक अर्थ लेंगे तो लगेगा कि, अपने लिए 'भय ' मांगने की प्रार्थना की गई है। परंतु इसमें चाभयदा को संधि विच्छेद करके उच्चारण करना होगा जो इस प्रकार होगा --- 
च+अभय +दा = और अभय दें 
लेकिन पोंगा पंडित खुद भी गलत पढ़ते - बोलते हैं और न जानने के कारण सही अर्थ जनता को बताने में असमर्थ हैं। परिणाम अनर्थ के रूप में सामने आता है और वाचक या यजमान इसके दुष्परिणाम को भोगता है । जब आप प्रार्थना में 'भय' मांगेंगे तो भय ही तो मिलेगा !
 * इसी प्रकार चिंता एवं रोग निवारणार्थ गणेश स्तुति को समझें :

" सर्वकामप्रदम नृणाम सर्वोपद्रवनाशनम । । " 
इसमें सर्वोपद्रवनाशनम को संधि - विच्छेद करके पढ्ना  चाहिए , यथा --- 
सर्व + उपद्रव + नाशनम = सभी प्रकार के उपद्रवों को नष्ट करें। अब यदि ऐसा न करके सर्वोपद्रवनाशनम उच्चारण करेंगे तो उसका अर्थ होगा समस्त द्रव नष्ट कर दें। 
* समस्त कामनाओं की सिद्धि हेतु गणेश स्तुति में : 

" यतो बुद्धिरज्ञाननाशो मुमुक्षोर्यत:संपदोभक्त संतोषिका: स्यु:। " 
अब इसमें  ' बुद्धिरज्ञाननाशो ' को ज्यों का त्यों उच्चारण करेंगे तो उसका अर्थ होगा बुद्धि और ज्ञान नष्ट कर दें। इसको संधि - विच्छेद कर पढ्ना होगा : 
बुद्धिर  + अज्ञान + नाशो =  बुद्धि के अज्ञान को नष्ट कर दें। 

* अतः 'पत्नी मनोराम' का शाब्दिक अर्थ लेकर उद्वेलित होने के बजाए विद्व्जनों को इसके मर्म को समझना चाहिए। साहित्यिक काव्य - सृजन में रस, छंद, अलंकार का प्रयोग होने के कारण मात्रा आदि को संतुलित करने हेतु शब्द प्रयुक्त होते हैं। किसी किसी प्रार्थना में  ' जो कोई नर गावे ' शब्द प्रयुक्त होता है तब इसका अर्थ केवल पुरुषों के लिए लेना अनर्थ है। नर  या पत्नी जो भी शब्द होगा  वह सभी मनुष्यों के लिए होगा सिर्फ पुरुष या महिला के लिए नहीं और उसे उसी संदर्भ में ग्रहण करना तथा समझाना चाहिए। 

* अक्सर " स्त्रीं " शब्द प्रार्थना - स्तुति में आता है तब उसका साहित्यिक शाब्दिक अर्थ नारी या महिला नहीं होता है। इसको संधि - विच्छेद करें : 
स + त + र + ई + अनुस्वार = दुर्गा + तारण + मुक्ति + महामाया + दुखहर्ता । 
अर्थात " स्त्रीं " शब्द का मर्म हुआ : 
" दुर्गा मुक्तिदाता दुखहर्ता भवसागर तारिणी महामाया मेरे दुखों का नाश करें। "
इसी प्रकार अनेकानेक शब्द संस्कृत की स्तुतियों - प्रार्थनाओं में मिलेंगे जिनके शाब्दिक  अर्थ नहीं मर्म को समझना होगा जिसके लिए पोंगा - पंडितों का आसरा छोड़ना होगा।  
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पुनश्च : 
वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ साहब ने एक कार्यक्रम में स्पष्ट किया है कि, वाईस चांसलर को हिन्दी में 'कुलपति ' कहा गया है तो यहाँ यह शब्द किसी महिला के पति के रूप में नहीं प्रयुक्त होता है। कुल का अर्थ परिवार से है और विश्वविद्यालय को एक परिवार माना गया है उस परिवार का पति यहाँ ' पिता ' या ' संरक्षक ' के रूप में प्रयुक्त हुआ है। 
विनोद जी का तर्क युक्तिसंगत है। क्योंकि देश के प्रेसिडेंट को ' राष्ट्रपति ' कहा गया है तो यहाँ भी एक राष्ट्र परिवार के पिता या संरक्षक के रूप में ही यह शब्द प्रयुक्त हुआ है। 
अतः उपयुक्त यही है कि, शब्दों के ' मर्म ' पर ध्यान दिया जाये और बेवजह उद्वेलित या परेशान न हुआ जाये। 
  ~विजय राजबली माथुर ©

Saturday, September 23, 2017

दुर्गा एवं महिषासुर वध का आशय - ---- विजय राजबली माथुर

 (नवरात्र आत्मा अथवा प्राण का उत्सव है जिसके द्वारा ही महिषासुर (अर्थात जड़ता ),शुम्भ -निशुम्भ (गर्व और शर्म )और मधु -कैटभ (अत्यधिक राग -द्वेष )को नष्ट किया जा सकता है .जड़ता ,गहरी नकारात्मकता और मनोग्रंथियां (रक्त्बीजासुर ),बेमतलब का वितर्क (चंड -मुंड )और धुंधली दृष्टि (धूम्र लोचन )को केवल प्राण और जीवन शक्ति ऊर्जा के स्तर को ऊपर उठा कर ही दूर किया जा सकता है -----.हमें इन कथाओं क़े मर्म को समझना चाहिए न कि,कथाओं क़े कथानक में में उलझ कर भटकना चाहिए.------जिन खोजों को आधुनिक चिकित्सा वैज्ञानिक अपनी नयी खोजें बताते हैं उनका ज्ञान बहुत पहले हमारे ऋषियों-वैज्ञानिकों को था.इन सब का प्राकृतिक उपचार नियमित नवरात्र पालन में अन्तर्निहित था.परन्तु हमारे पाखंडी पौराणिकों ने अर्थ का अनर्थ करके जनता को दिग्भ्रमित कर दिया और उसका शोषण करके भारी अहित किया है.अफ़सोस और दुःख की बात यह है कि आज सच्चाई को मानने हेतु प्रबुद्ध बुद्धीजीवी तक तैयार नहीं है. )


वीर शिरोमणि झाँसी वाली रानी लक्ष्मी बाई (जिन्होंने १८५७ की क्रांति में साम्राज्यवादी ब्रिटिश सत्ता को ज़बरदस्त चुनौती दी थी )हों या उनसे भी पूर्व वीर क्षत्र साल की माँ रानी सारंधा हों (जिन्होंने विदेशी शत्रु के सम्मुख घुटने टेकने की बजाय अपने मरणासन पति राजा चम्पत राय को कटार भोंक कर स्वंय भी प्राणाहुति दे दी थी )या रानी पद्मावती और उनकी सहयोगी साथिने हों ऐसे अनगिनत विभूतिया हमारे देश में हुई हैं जो व्यवस्था से टकरा कर अमर हो गईं और एक मिसाल छोड़ गईं आने वाली पीढियो के लिए ,परन्तु खेद है कि आज हमारी मातृ  शक्ति इन कुर्बानियों  को भुला चुकी है . यों तो ऋतु परिवर्तन पर स्वास्थ्य रक्षा हेतु नवरात्र पर्व का सृजन हुआ है और उपवास स्त्री -पुरुष सभी के लिए बताया गया है परन्तु करवा चौथ जैसे भेद -भाव मूलक उपवास स्त्री को दंड से अधिक कुछ नहीं हैं ,उसका कोई औचित्य नहीं है . 

नवरात्रों का उपवास हमारे स्थूल ,कारण और सूक्ष्म शरीर की शुद्धि  करता है.लोग भ्रम वश इसे व्रत कहते हैं जबकि व्रत का मतलब संकल्प से होता है.जैसे कोई सिगरेट,शराब आदि बुरी आदतें  छोड़ने का संकल्प ले तो यह व्रत होगा .

एक विद्वान  कहते हैं -उपवास के द्वारा शरीर विषाक्त पदार्थों से मुक्त हो जाता है ,मौन द्वारा वचनों में शुद्धता आती है और बातूनी मन शांत होता है और ध्यान के द्वारा अपने अस्तित्व की गहराईयों में डूब कर हमें आत्म निरीक्षण का अवसर मिलता है .यह आंतरिक यात्रा हमारे बुरे कर्मों को समाप्त करती है. 

नवरात्र आत्मा अथवा प्राण का उत्सव है जिसके द्वारा ही महिषासुर (अर्थात जड़ता ),शुम्भ -निशुम्भ (गर्व और शर्म )और मधु -कैटभ (अत्यधिक राग -द्वेष )को नष्ट किया जा सकता है .जड़ता ,गहरी नकारात्मकता और मनोग्रंथियां (रक्त्बीजासुर ),बेमतलब का वितर्क (चंड -मुंड )और धुंधली दृष्टि (धूम्र लोचन )को केवल प्राण और जीवन शक्ति ऊर्जा के स्तर को ऊपर उठा कर ही दूर किया जा सकता है .

मैं पौराणिकों क़े कार्यक्रमों में शामिल नहीं होता हूँ.२६ सितम्बर से ०४ अक्टूबर २००३ में कमला नगर,आगरा में शाहपुर(ब्राह्मन) ,बाह निवासी और लोनावाला (पुणे) में योग शिक्षक आचार्य रामरतन शास्त्री जी ने अपने सरस,सरल,सुगम और बोधगम्य प्रवचनों क़े द्वारा प्रचलित ढोंग वादी शैली से हट कर वैज्ञानिक आधार पर शिव कथाओं का विश्लेषण किया था उनको ज़रूर सुना था  . 

उनकी शैली समन्वयात्मक है.पोंगापंथियों ने पुराणों की जो विकृत व्याख्या प्रस्तुत की थी उसका प्रबल विरोध प्रगतिशील धर्माचार्यों द्वारा किया गया है.आचार्य रामरतन जी द्वारा पौराणिक कथाओं की व्याख्या इन  दोनों का समन्वय है उनका कहना है जब मनुष्य का बौद्धिक स्तर समृद्ध नहीं रहा जो वैदिक मन्त्रों क़े सही अर्थों को समझ सकता हो विद्वानों ने इन कथाओं क़े माध्यम से वेद की बातों को प्रस्तुत किया है. 'देवी भागवत ' पर भी उनके विचार उत्कृष्ट रहे हैं उनके अनुसार हमें इन कथाओं क़े मर्म को समझना चाहिए न कि,कथाओं क़े कथानक में में उलझ कर भटकना चाहिए.  व्यास-पीठ पर बैठ कर  भी आचार्य प्रवर ने ब्राह्मणों क़े पोंगा-पंथ पर प्रहार किया और देश क़े चारित्रिक पतन क़े लिये उन्हें उत्तरदायी ठहराया.उन्होंने कहा पंडित विद्वान होता है पुजारी क़े रूप में वकील नहीं,उनका आशय था कि भक्त को स्वंय ही भगवान् से तादात्म्य स्थापित करना चाहिए और किसी मध्यस्थ या बिचौलियों क़े बगैर भगवान् से स्तुति,प्रार्थना,पूजा,हवन,यग्य करना चाहिये.

हमारे प्राचीन ऋषि -मुनी वैज्ञानिक आधार पर मनुष्य-मात्र को प्रकृति क़े साथ सामंजस्य करने की हिदायत देते थे.बदलते मौसम क़े आधार पर मनुष्य ताल-मेल बैठा सकें इस हेतु संयम-पूर्वक कुछ नियमों का पालन करना होता था.ऋतुओं क़े इस संधि-काल को नवरात्र क़े रूप में मनाने की बात की है। 

ऋतुओं क़े आधार पर ऋषियों ने चार नवरात्र बताये थे,जिन्हें पौराणिक काल में घटा कर दो कर दिया गया.दो ज्योतिषियों एवं पुजारियों ने जनता से तो छिपा लिये परन्तु स्वंय अपने हक में पालन करते रहे.वे  चारों नवरात्र इस प्रकार हैं-

१ .चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक,
२ .आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक,
३ .आश्विन(क्वार)शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक,
४ .माघ शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक .


इनमें से १ और ३ तो सार्वजनिक रखे गये जिनके बाद क्रमशः राम नवमी तथा विजया दशमी(दशहरा) पर्व मनाये जाते हैं.२ और ४ को गुप्त बना दिया गया. 

व्यक्ति का नहीं भक्ति का नाम नारद - 
आचार्य जी ने कहा कि नारद किसी व्यक्ति-विशेष का नहीं बल्कि यह देश -काल से परे भगवद-भक्ति का नाम है.भक्त कभी स्थान-विशेष से बंधता नहीं है.बल्कि वह तो जहाँ उसकी जरूरत होती है वहीं पहुँच जाता है.ऐसे ऐसे गुण चरित्र वाले किसी भी व्यक्ति को नारद कहा जाता है.

भक्ति-  
शब्द  ढाई अक्षरों क़े मेल से बना है जिसमे भ -का अर्थ  भजन से है ति -शब्द त्याग का परिचायक है और (आधा)क यह बतलाता है कि निष्काम कर्म ही भगवान् तक पहुँचने में सहायक है सकाम कर्म नहीं.इसका आशय यह हुआ कि निष्काम कर्म करते हुए त्याग पूर्वक भजन किया जाये वही भक्ति है.


ज्ञान और भक्ति क़े बिना वैराग्य नहीं- 
ज्ञान वह मानसिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा सत्य और असत्य,नित्य और अनित्य,क्षर और अक्षर का बोध होता है.भक्ति में भजन प्रमुख है जिसका अर्थ है सेवा करना और यह भक्ति श्रवण कीर्तन आदि नौ प्रकार की होती है.भक्ति क़े द्वारा वैराग्य अर्थात पदार्थों क़े प्रति विरक्ति होती है.आचार्य जी ने बताया संसार में दृष्टा की भांति रहने से उससे मोह नहीं होता है और मोह का न होना ही सुख की स्थिति है.


दक्ष और बाणासुर - 
 शिव महापुराण में वर्णित दक्ष और बाणासुर क़े कारण श्री कृष्ण और शिव में संघर्ष की घटनाएं अहंकार करने वालों का हश्र बताने क़े लिये उल्लिखित हैं.सत्ता,धन और यश का अहंकार नहीं इनका संचय करना चाहिये और दूसरों क़े हित में इनका प्रयोग करना चाहिए.इसके विपरीत आचरण करने पर अहंकारी का पतन अवश्य ही होता है.


लिंग ब्रह्म में लीन होना है- 
 शिव की लिंग आराधना यह बताती है कि यह जो अखिल ब्रह्मांड है वह एक गोलाकार पिंड क़े समान है और सभी जीवों को उसी में फिर से मिल जाना है इस दृष्टिकोण से शिव क़े लिंग स्वरुप की कल्पना की गयी है.बारह लिंग विभिन्न शक्तियों क़े द्योतक हैं.देश  भर में फैले लिंग शक्ति पीठ राष्ट्र को एकीकृत रखने की अवधारणा क़े कारण विभिन्न क्षेत्रों में स्थापित किये गये हैं.



शिवरात्रि-शिव विवाह- 
शिव ही परम सत्ता अर्थात परमात्मा हैं और पार्वती शिव हैं अर्थात परमात्मा की शक्ति शिव शक्ति द्वारा प्रकृति क़े संयोजन से सृष्टि करना ही शिव रात्री का पर्व है.लोक कल्याण और जन हित हेतु परमात्मा शिव ने पार्वती अर्थात प्रकृति से विवाह किया और इस प्रकार लोक मंगल किया.पार्वती को गिरिजा भी कहते हैं -पर्वत राज हिमालय की पुत्री होने क़े कारण उन्हें यह नाम मिला है.पार्वती ही उमा हैं अर्थात समृद्धि का प्रतीक.शिवरात्रि का पर्व भारत भर में सुख समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक है.

पश्चाताप का अर्थ -
  गलती हो जाने पर उसे स्वीकार करना चाहिए और उस दुःख क़े ताप में तप कर फिर उसे न दोहराने का संकल्प ही पश्चाताप है.दुखों से न घबराने का सन्देश शिव-पुराण में भरा पड़ा है इन कथाओं द्वारा बताया गया है कि पांडवों,अनिरुद्ध सती,पार्वती आदि ने बाधाओं से विचलित हुये बगैर सत्मार्ग पर डटे रह कर सफलता प्राप्त की है.आचार्य जी का दृढ मत है कि,'वीर -भोग्या वसुंधरा'क़े अनुसार शक्तिशाली की मान्यता है-कमजोर को कोई नहीं पूछता है.इसलिए विपत्ती आने पर भी निडरता पूर्वक परिस्थितियों से संघर्ष करना और उन पर विजय हासिल करना चाहिये.
 महिषासुर वध का आशय -
 यह है कि मनुष्य में व्याप्त अहंकार का शमन करना.यह सहज स्वभाविक प्रवृति है कि,मनुष्य जिनसे कुछ हित-साधन की अपेछा करता है उनसे मोह और ममत्व रखता है और उनके प्रति गलत झुकाव भी रख लेता है और इस प्रकार दुष्कृत्यों क़े भंवर में फंस कर अन्ततः अपना ही अहित कर डालता है.इसके विपरीत मनुष्य जिन्हें अपना प्रतिद्वन्दी समझता है उनसे ईर्ष्या करने लगता है और उन्हें ठेस पहुंचाने का प्रयास करता है और इस प्रकार बुरे कर्मों में फंस कर अपने आगामी जन्मों क़े प्रारब्ध को नष्ट करता जाता है.मनुष्य में राग और द्वेष क़े समान ही अहंकार भी एक ऐसा दोष है जो उसी का प्रबल शत्रु बन  जाता है.संसार में सर्वदा ही अहंकारी का विनाश हुआ है अतः उत्तम यही है कि मनुष्य स्वंय ही स्वेच्छा से अपने अहंकार को नष्ट कर डाले तभी देवी माँ की सच्ची पूजा कर सकता है. 
 हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप -
ये  कोई व्यक्ति-विशेष नहीं थे,बल्कि वे एक चरित्र का प्रतिनिधित्व करते हैं जो पहले भी थे और आज भी हैं और आज भी उनका संहार करने की आवश्यकता है.संस्कृत भाषा में हिरण्य का अर्थ होता है स्वर्ण और अक्ष का अर्थ है आँख अर्थात वह जो केवल अपनी आँखें स्वर्ण अर्थात धन पर गड़ाये रखता है हिरण्याक्ष कहलाता है.ऐसा व्यक्ति केवल और केवल धन क़े लिये जीता है और साथ क़े अन्य मनुष्यों का शोषण करता रहता है. 
आज क़े सन्दर्भ  में हम कह सकते हैं कि,उत्पादक और उपभोक्ता का शोषण करने वाला व्यापारी ही हिरण्याक्ष हैं.कश्यप का अर्थ संस्कृत में बिछौना अर्थात बिस्तर से है.जिसका बिस्तर सोने का हो इसका आशय यह हुआ कि जो धन क़े ढेर पर सो रहा है अर्थात आज क़े सन्दर्भ में काला व्यापर करने वाला व्यापारी और घूस खोर अधिकारी हिर्नाकश्यप हैं. 
वराह अवतार से तात्पर्य -
वर का अर्थ है अच्छा और अह का अर्थ है दिन अर्थात वराह अवतार का मतलब हुआ अच्छा दिन अर्थात समय अवश्य हीआता है. 
प्रहलाद का अर्थ -
यह  हुआ प्रजा का आह्लाद अर्थात जनता की खुशी .इस प्रसंग में बताया गया है कि जब जनता जागरूक हो जाती है तो अच्छा समय आता  है और हिरण्याक्ष व हिरण्यकश्यप   का अंत हो जाता है.रक्त-बीज की घटना यह बताती है कि,मनुष्य क़े भीतर जो कामेच्छायें हैं उनका अंत कभी नहीं होता,जैसे ही एक कामना पूरी हुई ,दूसरी कामना की इच्छा होती है और इसी प्रकार यह क्रम चलता रहता है.देवी द्वारा जीभ फैला कर रक्त सोख लेने का अभिप्राय है कि मनुष्य अपनी जिव्हा पर नियन्त्रण करके लोभ का संवरण करे तभी रक्त-बीज अर्थात अनन्त  कामेच्छओं का अंत हो सकता है.


श्री किशोर चन्द्र चौबे ने मार्कंडेय चिकित्सा -पद्धति क़े आधार पर -
 नव-रात्र की नौ देवियों क़े असली औषधीय रूप का विषद विवेचन किया है जिनका  यहाँ संक्षिप्त उल्लेख करना उचित समझता हूँ.:-
१.हरड-इसे प्रथम शैल पुत्री क़े रूप में जाना जाता है.
२.ब्राह्म्मी-दिव्तीय ब्रह्मचारिणी ..........................
३.चंद्रसूर-तृतीय चंद्रघंटा ...................................
४.पेठा-चतुर्थ कूष्मांडा ....................................
५.अलसी -पंचम स्कन्द माता .............................
६.मोइया -षष्ठम कात्यायनी ..................................
७.नागदौन -सप्तम कालरात्रि ...............................
८.तुलसी-अष्टम महागौरी ...................................
९.शतावरी-नवम सिद्धिदात्री ......................................


स्पष्ट है कि बदलते मौसम में इन चुनी हुई मानवोपयोगी औषधियों  का सेवन करके और निराहार रह कर मानव-स्वाथ्य की रक्षा करने का प्राविधान हमारे ऋषियों ने किया था.लेकिन आज पौराणिक कर क्या रहें हैं करा क्या रहें हैं -केवल ढोंग व पाखण्ड जिससे ढोंगियों की रोजी तो चल जाती है लेकिन मानव-कल्याण कदापि सम्भव न होने क़े कारण जनता ठगी जाती है.गरीब जनता का तो उलटे उस्तरे से मुंडन है यह ढोंग-पाखण्ड.इसी का नतीजा हैं ऐसे निष्कर्ष ::



रक्त-बीज --- 
मार्कंडेय चिकित्सा-पद्धति में कैंसर को रक्त-बीज कहते हैं.चंड रक्त कैंसर है और मुंड शरीर में बनने वाली गांठों का कैंसर है.


कालक--- 
यह माईक रोग है जिसे आधुनिक चिकित्सा में AIDS कहते हैं.

चौबे जी क़े उपरोक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि,जिन खोजों को आधुनिक चिकित्सा वैज्ञानिक अपनी नयी खोजें बताते हैं उनका ज्ञान बहुत पहले हमारे ऋषियों-वैज्ञानिकों को था.इन सब का प्राकृतिक उपचार नियमित नवरात्र पालन में अन्तर्निहित था.परन्तु हमारे पाखंडी पौराणिकों ने अर्थ का अनर्थ करके जनता को दिग्भ्रमित कर दिया और उसका शोषण करके भारी अहित किया है.अफ़सोस और दुःख की बात यह है कि आज सच्चाई को मानने हेतु प्रबुद्ध बुद्धीजीवी तक तैयार नहीं है.

~विजय राजबली माथुर ©

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Sunday, September 17, 2017

कई डिग्रियां हैं, पर व्यावहारिक बुद्धि की भरपूर कमी : ‘एजुकेटेड इल्लिट्रेट’, ‘पढ़ा-लिखा गंवार’ ------ दाराब फ़ारूक़ी

  एक अंग्रेज़ी का वाक्यांश है ‘एजुकेटेड इल्लिट्रेट’, जिन्हें हम ‘पढ़ा-लिखा गंवार’ कहते हैं. ये वो हैं जिनके पास कई डिग्रियां हैं, पर व्यावहारिक बुद्धि की भरपूर कमी है. ये लेफ्ट में भी हैं और लिबरल्स में भी. पर राइट विंग में इनकी मात्रा सर्वाधिक है.



BY 
16-09-2017

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने अभी कुछ दिन पहले बताया कि जीडीपी ग्रोथ का गिर कर 5.7 प्रतिशत पर आ जाना, एक ‘टेक्निकल रीज़न’ है. बड़ा गुस्सा आया. लगा क्या ये आदमी हमें बेवकूफ समझता है?

फिर सोचा कि सही ही समझता है. आख़िर हमारे ही देशवासियों ने ही इन्हें वोट देकर वहां पर पहुंचाया है. मैंने बचपन में सीखा था, जब रो नहीं सकते तो हंस लो. ग़म कम हो न हो, बुरा कम लगता है.--------------------------
किसी भी बहस को जीतना बड़ा आसान है: पर्सनल अटैक कीजिए, जुमलों में बात कीजिए, ऐसी बात कीजिए जिस पे तालियां पड़े, टॉपिक से हट कर किसी और इमोशनल इश्यू को उठा दीजिए.

कई तरीके हैं बहस जीतने के, सबको पता हैं. लेकिन इन पढ़े-लिखे गंवारों को बस ये नही पता है कि जब भी कुतर्क जीतता है तो देश हार जाता है. देश का भविष्य हार जाता है.

चाहे वो राष्ट्र निर्माण हो या राष्ट्र मंथन, हमारे पास बस एक हथियार है… तर्क. और जब कुतर्कों के बादल घिरे हो तो बेवकूफ़ी की बरसेगी. आज-कल भारत में बेवकूफ़ी का घुटनों-घुटनों कीचड़ है. किसी भी आज़ाद ख़्याल का यहां चलना मुश्किल हो गया है.
आप ख़ुद सोचिए:

जिस देश में 25-30 प्रतिशत लोग भूखे सोते हों, वहां बुलेट ट्रेन की क्या ज़रूरत है? क्या ज़रूरत है हज़ारों करोड़ के स्मारक बनाने की?
जहां लाखों किसान आत्महत्या कर रहे हैं, वहां हज़ारों-लाख का कॉरपोरेट कर्ज़ा माफ हो रहा है?
ऐसी जीडीपी ग्रोथ का क्या फ़ायदा जिसमें करोड़ों युवाओं के लिए नौकरी न हो?
ऐसे राष्ट्रवाद का क्या फ़ायदा जिसमें तुम अपने ही देश के भाई को शक़ की नज़र से देखने लगो?
जब आपके-हमारे बच्चे न स्कूल में सुरक्षित हो न अस्पताल में?
सवालों की लिस्ट बहुत लंबी है पर सारे सच्चे सवाल सारे जान और माल से जुड़े हैं. हमारी आम ज़िंदगी से जुड़े हैं. हमें एक खेल में लगा दिया गया है, आओ आज इसपे उंगली उठाए, आज उसपे. बचपना चल रहा है. टीवी, अख़बारों, गली-मोहल्लों में जैसे सब छुपन-छुपाई खेल रहे. हर एक को किसी न किसी को थप्पी मारनी है.

मुझे तो ये भी लगने लगा है कि शायद अमित शाह ने सही कहा. कुछ तो हमारी सोच में ही टेक्निकल फॉल्ट हो गया है और पूरे देश में जैसे ‘टेक्निकल रीज़न’ का सीज़न चल रहा है. देश में टेक्निकल रीज़न की महामारी फैली है और जो तर्क अमित शाह ख़ुद नहीं दे पाए, वो मैं आपको दे देता हूं.

अगर आपको लगता है कि जीडीपी के गिरने के पीछे ‘टेक्निकल रीज़न’ है और आपके दिमाग में इस बात को सुनने के बाद कोई सवाल नहीं उठता है. तो प्लीज़ अपने दिमाग की टेक्निकल वायरिंग चेक करा लीजिए क्योंकि ‘टेक्निकल रीज़न’ आप ख़ुद हैं.
अगर आप ठीक हो गए तो देश के सारे टेक्निकल रीज़न ठीक हो जाएंगे और सारे तर्क भी. सच मानिए अगर आपके तर्क ठीक हुए तो भारत का भविष्य सच में ठीक हो जाएगा. ‘हिंद’ सच में ‘जय हिंद’ हो जाएगा…

(दाराब फ़ारूक़ी पटकथा लेखक हैं और फिल्म डेढ़ इश्किया की कहानी लिख चुके हैं.)

साभार : 
http://thewirehindi.com/18755/bjp-amit-shah-narendra-modi-government/

~विजय राजबली माथुर ©

Saturday, September 16, 2017

राजनीतिक विकल्प क्या और कैसा ? ------ विजय राजबली माथुर





यह भारत के लिए विडम्बना ही है कि, वामपंथ की सबसे पुरानी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी जब प्रथम आम चुनावों के जरिये ही लोकसभा में मुख्य विपक्षी दल के रूप में सामने आ गई थी और बाद में केरल में चुनाव के जरिये ही सत्ता में भी आ गई थी तब ' यह आज़ादी झूठी है .....' का नारा लगा कर तेलंगाना में सशस्त्र आंदोलन चला दिया गया। इसे कुचलने के लिए विनोबा भावे के नेतृत्व में 'भूदान ' आंदोलन खड़ा किया गया और कम्युनिस्टो का पुलिसिया दमन भी किया गया। 1964 में एक तबका CPM का गठन करके अलग होगया जिसके शीर्ष नेताओं बी टी रणदिवे और ए के गोपालन का कहना था कि, हम संविधान में घुस कर संविधान को तोड़ देंगे(उनकी इस उक्ति पर मोदी सरकार तन्मयता से आगे बढ़ रही है )।  लेकिन बंगाल में 35 वर्ष के शासन में इस पार्टी को वहाँ ' बंगाली पार्टी ' के रूप में समर्थन मिलने के कारण और ब्राह्मण वादी प्रभुत्व के चलते यह पाखंड तक को नहीं तोड़ पाई और इसके शासन में भी सारे आडंबर बदस्तूर चलते रहे । पुनः 1967 में नक्सल बाड़ी आंदोलन के रूप में यह भी विभाजित हो गई थी और आज वामपंथ की स्थिति केले के तने की परतों की तरह विभिन्न अलग - अलग पार्टियों के रूप में सहजता से देखी जा सकती है। जब कारपोरेट के एक तबके से इसने सम्झौता किया तब कारपोरेट के दूसरे तबकों ने मिल कर इसे सत्ता से बेदखल करने में सफलता प्राप्त कर ली है। 
आज CPM ममता बनर्जी से उसी प्रकार की एलर्जी रख रही है जैसी मायावती  मुलायम सिंह से रखती रही हैं। लेकिन कम्युनिस्टों को बंगाल की खाड़ी में फेंकने का 2011 में ऐलान करने वाले राहुल गांधी की पार्टी से 2016 में सम्झौता करके जोरदार पटकनी खा ली लेकिन फासिस्ट / सांप्रदायिक भाजपा को टक्कर देने के लिए अब भी ममता बनर्जी से हाथ मिलाने को तैयार नहीं हैं । 27 अगस्त 2017 की पटना  रैली में ममता बनर्जी की उपस्थिती के कारण ही CPM ने भाग नहीं लिया और CPIML के महासचिव भी नहीं पहुंचे। 
सोनिया कांग्रेस के पी एम रहे मनमोहन सिंह जी को जब 2012 में राष्ट्रपति बनाने ( और प्रणव मुखर्जी को पी एम ) की चर्चा चली तब उनके द्वारा तीसरी बार भी पी एम बनने की ख़्वाहिश ज़ाहिर की गई और आश्वासन न मिल पाने पर 2011 में हज़ारे, केजरीवाल,रामदेव आदि के माध्यम से सोनिया कांग्रेस विरोधी आंदोलन खड़ा करा दिया गया ( वह भी तब जबकि वह USAमें इलाज कराने गईं हुईं थीं। ) जिसकी परिणति वर्तमान मोदी सरकार है। 
राहुल गांधी द्वारा मोदी विरोधी मुहिम शुरू करने पर तमाम लोग कयास लगाने लगे हैं कि, वह भावी पी एम पद के दावेदार हैं क्योंकि वे इस तथ्य से अनभिज्ञ हैं कि, न ही राहुल और न ही प्रियंका कभी पी एम पद के लिए दावेदार बनेंगे क्योंकि उन पर उनकी ननसाल का दबाव है कि, वे यह पद न लें। वरना 2004 में सोनिया जी ही पी एम न बन जातीं और मोदी के लिए मार्ग प्रशस्त करने वाले मनमोहन जी सामने आ ही नहीं पाते। 
शरद यादव ने ' साझी विरासत ' अभियान तो ज़रूर छेड़ा है और वह किसी 
इल्जाम से भी नहीं घिरे हैं उनमें विभिन्न नेताओं और दलों को एकजुट करने की क्षमता भी है किन्तु उनके पी एम पद को जन - समर्थन नहीं मिल पाएगा। यदि वास्तव में मोदी और उनकी पार्टी को चुनावों में  जन - समर्थन से परास्त करना है तो इस  हेतु सम्पूर्ण वामपंथ समेत सभी वर्तमान विपक्षी दलों को संयुक्त रूप से ममता बनर्जी को नेतृत्व देना चाहिए अन्यथा सारी कवायद बेकार हो जाएगी और फासिस्ट और ज़्यादा शक्तिशाली होकर सत्ता में वापिस आ जाएँगे। तब उनके विरुद्ध एकमात्र सशस्त्र संघर्ष ही विकल्प बचेगा जैसी कि , आशंका   'नया जमाना ' , सहारनपुर के संस्थापक संपादक कन्हैया लाल मिश्र ' प्रभाकर ' ने 1951 में आर एस एस प्रचारक लिम्ये साहब का साक्षात्कार लेते हुये उनसे व्यक्त की थी। 
सशस्त्र संघर्ष के जरिये फासिस्टों को सत्ताच्युत करने पर जो सत्ता स्थापित होगी वह भी जन - तांत्रिक नहीं होगी। अतः वर्तमान संविधान व जनतंत्र की रक्षा का तक़ाज़ा है कि, संसदीय लोकतन्त्र समर्थक वामपंथी अन्य सभी विपक्षी दलों के साथ आंतरिक एकता स्थापित करने से पीछे न छूटें। जो दल और व्यक्ति डॉ अंबेडकर का अनुयाई होने का और उनके संविधान निर्माता होने का दावा करते हैं उनका सर्वाधिक दायित्व बनता है कि, वे तमाम अन्य दलों को भाजपा के विरुद्ध लामबंद करने में अपने कर्तव्य का पालन करें तभी डॉ अंबेडकर के संविधान की रक्षा हो सकेगी। 












~विजय राजबली माथुर ©

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Friday, September 15, 2017

सत्ता की धौंस ने छात्रों की आँखें खोलीं ------ विजय राजबली माथुर











 


इस वर्ष 2017 में भाजपा के छात्र संगठन  ए बी वी पी ने JNU में भी छात्र यूनियन पर कब्जा करने के लिए यूनिवर्सिटी प्रशासन व केंद्र सरकार के माध्यम से भरसक कोशिश की थी। किन्तु वहाँ तो दाल तब भी न गली बल्कि, दिल्ली यूनिवर्सिटी में जहां कि, चार वर्षों से उनका अध्यक्ष था वहाँ भी अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद पर कांग्रेस  के छात्र संगठन NSUI ने जीत हासिल की है। ज्वाइंट सेक्रेटरी पद पर भी पहले NSUI को विजित घोषित करके अब ए  बी वी पी को निर्वाचित कर दिया जिसके लिए कोर्ट में मामला जा सकता है। ग्वाहाटी , पंजाब और रास्थान आदि में भी ए  बी वी पी को  को हरा कर NSUI के  छात्र जीते हैं। 
यही कारण है कि, कारपोरेट अखबार NBT के समपादकीय में भी भाजपा की धौंस की नीति की आलोचना हुई है। उनके एक संवाददाता को अलग से JNU के छात्र चुनावों पर रिपोर्ट देनी पड़ती है और द वायर हिन्दी पर वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ साहब को इस पर चर्चा के लिए पर्याप्त समय देना पड़ता है। 
अभी 05 सितंबर 2017 को सबसे पुराने छात्र संगठन AISF ( स्थापित 1936 ) के कन्याकुमारी से हुसैनीवाला तक जा रहे  लाँग मार्च को उत्तर - प्रदेश की भाजपा सरकार ने अनावश्यक रूप से बाधित किया था क्योंकि उसमें देश की एकता, सांप्रदायिक सौहार्द, रोजगार, समान शिक्षा आदि की मांग की जा रही थी जबकि, भाजपा विभाजनकारी उत्पीड़न की पक्षधर है । छात्र काफी समय से मोदी और उनकी भाजपा के छलावे में फंसे हुये थे अब यदि उनका भ्रम टूट रहा है तो यह देश के लिए आने वाले समय की सुखद सूचना ही है।  
  
 ~विजय राजबली माथुर ©

Sunday, September 3, 2017

सास बहू क्या ? क्या पति - पत्नी ? : सुखी कोई परिवार नहीं ! ------ विजय राजबली माथुर

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  इस पाखंडी नारे का परित्याग करने कि-सीता राम,सीता राम कहिए जाहि विधि राखे राम ताही विधि रहिए-और वास्तविकता को स्वीकारते हुये इस तथ्य का पालन करने का संकल्प लेना चाहिए कि,"सीता-राम,सीता-राम कहिए ---जाहि विधि रहे राम ताही विधि रहिए।"भारत के लोग ओशो,मुरारी और आशाराम बापू ,रामदेव,अन्ना हज़ारे,गायत्री परिवार,  तथाकथित डेरों /  सत्संगों   जैसे ढोंगियों के दीवाने बन कर अपना अनिष्ट कर रहे हैं ।
आलसी और अकर्मण्य लोग राम को दोष दे कर बच निकलना चाहते हैं।  राम ने जो त्याग किया  और कष्ट देश तथा देशवासियों के लिए खुद व पत्नी सीता सहित सहा उसका अनुसरण करने -पालन करने की जरूरत है । राम के नाम पर आज देश को तोड़ने और बांटने की साजिशे हो रही हैं जबकि राम ने पूरे 'आर्यावृत ' और 'जंबू द्वीप'को एकता के सूत्र मे आबद्ध किया था और रावण के 'साम्राज्य' का विध्वंस किया था । राम के नाम पर क़त्लो गारत करने वाले राम के पुजारी नहीं राम के दुश्मन हैं जो साम्राज्यवादियो के मंसूबे पूरे करने मे लगे हुये हैं । जिन वेदिक नियमों का राम ने आजीवन पालन किया आज भी उन्हीं को अपनाए जाने की नितांत आवश्यकता है। ऐसा न करने का  परिणाम क्या है  एक विद्वान ने यह बताया है-


परम पिता से प्यार नहीं,शुद्ध रहे व्यवहार नहीं। 
इसी लिए तो आज देख लो ,सुखी कोई परिवार नहीं। । परम ... । । 
फल और फूल अन्य इत्यादि,समय समय पर देता है। 
लेकिन है अफसोस यही ,बदले मे कुछ नहीं लेता है। । 
करता है इंकार नहीं,भेद -भाव तकरार  नहीं। 
ऐसे दानी का ओ बंदे,करो जरा विचार नहीं। । परम ....। । 1 ।  ।
मानव चोले मे ना जाने कितने यंत्र लगाए हैं। 
कीमत कोई माप सका नहीं,ऐसे अमूल्य बनाए हैं। । 
कोई चीज बेकार नहीं,पा सकता कोई पार नहीं । 
ऐसे कारीगर का बंदे ,माने तू उपकार नहीं। । परम ... । । 2 । । 
जल,वायु और अग्नि का,वो लेता नहीं सहारा है। 
सर्दी,गर्मी,वर्षा का अति सुंदर चक्र चलाया है। । 
लगा कहीं दरबार नहीं ,कोई सिपाह -सलारनहीं। 
कर्मों का फल दे सभी को ,रिश्वत की सरकार नहीं। । परम ... । । 3 । । 
सूर्य,चाँद-सितारों का,जानें कहाँ बिजली घर बना हुआ। 
पल भर को नहीं धोखा देता,कहाँ कनेकशन लगा हुआ। । 
खंभा और कोई तार नहीं,खड़ी कोई दीवार नहीं। 
ऐसे शिल्पकार का करता,जो 'नरदेव'विचार नहीं। । परम .... । । 4 । । 











प्रिंस डी लेमार्क और डार्विन सरीखे जीव विज्ञानियों के 'विकास' एवं  'व्यवहार और अव्यवहार' सिद्धान्त के विपरीत यूजीन मैकार्थी द्वारा सूअर और चिम्पाजी को मानव का पूर्वज घोषित किया जाना 'विज्ञान' को हास्यास्पद ही बना रहा है। 'विज्ञान' सिर्फ वह ही नहीं है जिसे किसी प्रयोगशाला में बीकर और रसायनों के विश्लेषणात्मक अध्यन से समझा जा सकता है। मेरठ कालेज,मेरठ में 1970 में 'एवरी डे केमिस्ट्री' की कक्षा में प्रो.तारा चंद माथुर साहब  के प्रश्न के उत्तर में मैंने उनको विज्ञान की सर्वसम्मत परिभाषा सुना दी थी-"विज्ञान किसी भी विषय के नियमबद्ध एवं क्रमबद्ध अध्यन को कहा जाता है" और उन्होने इस जवाब को सही बताया था।

'पहले मुर्गी या पहले अंडा?' :

वैज्ञानिकों के मध्य ही यह विवाद चलता रहा है कि 'पहले मुर्गी या पहले अंडा?' इस संबंध में मैं आप सब का ध्यान इस बात की ओर खींचना चाहता हूँ कि, पृथ्वी की सतह ठंडी होने पर पहले वनस्पतियाँ और फिर जीवों की उत्पत्ति के क्रम में सम्पूर्ण विश्व में एक साथ युवा नर एवं मादा जीवों की उत्पति स्वम्य  परमात्मा ने प्रकृति से 'सृष्टि' रूप में की और बाद में प्रत्येक की वंश -वृद्धि होती रही। डार्विन द्वारा प्रतिपादित 'survival of the fittest'सिद्धान्त के अनुसार जो प्रजातियाँ न ठहर सकीं वे विलुप्त हो गईं;जैसे डायनासोर आदि। अर्थात  उदाहरणार्थ पहले परमात्मा द्वारा युवा मुर्गा व युवा मुर्गी की सृष्टि की गई फिर आगे अंडों द्वारा उनकी वंश-वृद्धि होती रही। इसी प्रकार हर पक्षी और फिर पशुओं में क्रम चलता रहा। डार्विन की रिसर्च पूरी तरह से 'सृष्टि' नियम को सही ठहराती है।    
'युवा पुरुष' और 'युवा स्त्री' : 
मानव की उत्पति के विषय में सही जानकारी 'समाज विज्ञान' द्वारा ही मिलती है। समाज विज्ञान के अनुसार जिस प्रकार 'धुएँ'को देख कर यह अनुमान लगाया जाता है कि 'आग' लगी है और 'गर्भिणी'को देख कर अनुमान लगाया जाता है कि 'संभोग'हुआ है उसी प्रकार समाज विज्ञान की इन कड़ियों के सहारे 'आर्य' वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध किया है कि अब से लगभग दस लाख वर्ष पूर्व मानव की उत्पति -'युवा पुरुष' और 'युवा स्त्री' के रूप में एक साथ विश्व के तीन विभिन्न क्षेत्रों -अफ्रीका,मध्य यूरोप और त्रिवृष्टि=तिब्बत में हुई थी और आज के मानव उनकी ही सन्तानें हैं।  प्रकृति के प्रारम्भिक रहस्य की सत्यता की  पुष्टि अब तक के वैज्ञानिक दृष्टिकोणों से ही होती है।

आज से नौ लाख वर्ष पूर्व 'विश्वमित्र 'जी ने अपनी प्रयोगशाला में 'गोरैया'-चिड़िया-चिरौंटा,नारियल वृक्ष और 'सीता' जी की उत्पति टेस्ट ट्यूब द्वारा की थी। 'त्रिशंकू'सेटेलाईट उनके द्वारा ही अन्तरिक्ष में प्रस्थापित किया गया था जो आज भी सुरक्षित परिभ्रमण कर रहा है।  

वस्तुतः आज का विज्ञान अभी तक उस स्तर तक पहुंचा ही नहीं है जहां तक कि अब से नौ लाख वर्ष पूर्व पहुँच चुका था। उस समय के महान वैज्ञानिक और उत्तरी ध्रुव-क्षेत्र(वर्तमान-साईबेरिया)के शासक 'कुंभकर्ण'ने तभी यह सिद्ध कर दिया था कि 'मंगल'ग्रह 'राख़' और 'चट्टानों'का ढेर है लेकिन आज के वैज्ञानिक मंगल ग्रह पर 'जल' होने की निर्मूल संभावनाएं व्यक्त कर रहे हैं और वहाँ मानव बस्तियाँ बसाने की निरर्थक कोशिशों में लगे हुये हैं। इस होड़ा-हाड़ी में अब हमारा देश भी 'मंगलयान' के माध्यम से शामिल हो चुका है। सभ्यताओं एवं संस्कृतियों के उत्थान-पतन के साथ-साथ वह विज्ञान और उसकी खोजें नष्ट हो चुकी हैं मात्र उनके संदर्भ स्मृति(संस्मरण) और किस्से-कहानियों के रूप में संरक्षित रह गए हैं। आज की वैज्ञानिक खोजों के मुताबिक 'ब्रह्मांड' का केवल 4 (चार)प्रतिशत ही ज्ञात है बाकी 96 प्रतिशत अभी तक अज्ञात है-DARK MATTER-अतः केवल 4 प्रतिशत ज्ञान के आधार पर मानव जाति को सूअर और चिम्पाजी  का वर्ण -संकर बताना विज्ञान की खिल्ली उड़ाना ही है प्रगतिशीलता नहीं।विज्ञान का तर्क-संगत एवं व्यावहारिक पक्ष यही है कि युवा नर और युवा नारी के रूप में ही परमात्मा-ऊर्जा-ENERGY द्वारा मनुष्यों की भी उत्पति हुई है और आज का मानव उन आदि मानवों की ही संतान है न कि सूअर और चिम्पाजी का वर्ण-संकर अथवा 'मतस्य'से विकसित प्राणी। यदि आज भी वेदोक्त ( पौराणिक - ढ़ोंगी - पाखंडी नहीं ) पद्धति का अनुसरण किया जाता तो घर- परिवार, समाज , राष्ट्र और सम्पूर्ण  विश्व में विग्रह व अशांति देखने को न मिलते। 


 ~विजय राजबली माथुर ©