Monday, December 31, 2012

सन 2012 मे खतरनाक शत्रुओं का खुद-ब-खुद खुलासा होना---विजय राजबली माथुर




सन 2009 मे  जब मैंने भोपाल या पटना के रिशतेदारों के साथ नहीं लखनऊ मे( यशवन्त की इच्छानुरूप आगरा के मकान को बेच कर)मकान ले लिया तो डॉ शोभा को जो पीड़ा हुई उसे उन्होने उजागर भी कर दिया था।मैं नहीं समझता कि मुझे अपने निर्णय छोटी बहन की इच्छानुरूप क्यों लेने चाहिए थे और पुत्र की इच्छा को क्यों ठुकराना चाहिए था?पूनावासी छोटी भांजी ने इस दरार को खाई मे बदलने मे कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। 06-10-2010 को प्रवासी ब्लागर  डॉ दिव्या श्रीवास्तव जी  ने एक पोस्ट यशवन्त के संबंध मे अपने ब्लाग मे दी थी तब मुक्ता(चंद्र प्रभा)ने पूना से फोन पर बताया था कि उसने डॉ दिव्या  का पूरा प्रोफाईल चेक किया है उसने तत्काल झांसी फोन करके शोभा को बताया था और कमलेश बाबू ने घबराहट भरे शब्दों मे विस्मय व्यक्त किया था।  ब्लागर्स प्रोफाईल  चेक करने मे उन लोगों द्वारा दी टिप्पणियों का मुक्ता ने सहारा लिया था और उसी क्रम मे पटना की मूल निवासी और विमान नगर मे उसकी पड़ौसन रही ब्लागर का भरपूर सहारा लिया। उक्त ब्लागर ने 'क्रांतिस्वर' मे प्रकाशित पूनम की एक कविता को 'वटवृक्ष' मे 19 नवंबर 2011 को प्रकाशित किया लेकिन धूर्ततापूर्वक ऊपर एक तमंचा का फोटो लगा दिया । पूनम को यह बात काफी अखरी थी लेकिन हमने तब विशेष रण-नीति के तहत विरोध नहीं जतलाया था। फिर उसके बाद 27 अप्रैल 2012 को उसी ब्लागर ने एक तीसरे ब्लाग पर मेरे ज्योतिषीय ज्ञान की खिल्ली उड़ाई और उस टिप्पणी को पिछले कई  पोस्ट मे भी  उद्धृत किया है।

 (रश्मि प्रभा...Apr 27, 2012 07:21 AM






कब मैं हिट होउंगी ... और राज्य सभा की सदस्य बनूँगी - आईला

Replies



आप जल्दी राज्यसभा में पहुंचें,
मेरी भी शुभकामना है)


मई 2012 के 'वटवृक्ष' के पृष्ठ 28 पर (जिसकी स्कैन कापी नीचे देखें) एक परिचर्चा उक्त ब्लागर ने बतौर संपादक दी थी।


पहली चर्चा जिस सौरभ प्रसून की है उससे उक्त ब्लागर को अपनी पुत्री का विवाह करना है।इसकी भी जन्मपत्री बनाने को ईमेल आया था और एक वर्ष के अंतर के दो डिटेल भेजे गए थे।  दूसरी चर्चा जिस छात्रा शिखा श्रीवास्तव की है उसकी जन्मपत्री द्वारा  अपने पुत्र मृगाङ्क से विवाह हेतु गुण मिलाने को मुझे  ईमेल पर कहा था। यह अलग बात है कि बाद मे फेक आई डी द्वारा उक्त ब्लागर ने शिखा के विरुद्ध इन्टरनेट जगत मे भारी अनर्गल दुष्प्रचार किया था।उक्त ब्लागर ने चार जन्मपत्रियों का निशुल्क परामर्श प्राप्त करने के बाद मेरे विरुद्ध घृणित अभियान अपने IBN7 वाले चमचे तथा और एक-दो लोगों द्वारा चलवा रखा है। 


इस क्रम मे तीसरी चर्चा मे यशवन्त का नाम क्यों और किस षड्यंत्र के तहत शामिल किया गया ?इस पर मुझे भारी आपत्ति है। जहां दो चर्चाए संपादक महोदया ने अपने परिवार से सम्बद्ध होने वालों की शामिल की थीं वहीं उनके साथ मेरे पुत्र यशवन्त की चर्चा क्यों और किस हैसियत से शामिल की गई?एक ओर तो मेरे तथा मेरी पत्नी के प्रति खौफनाक दृष्टिकोण और दूसरी ओर मेरे पुत्र को अपने खेमे मे दिखाना सरासर षड्यंत्र नहीं तो और क्या है?

इस षड्यंत्र मे वटवृक्ष के प्रधान संपादक और प्रबंध संपादक भी शामिल हैं अथवा केवल संपादिका की अपनी भूमिका है ?यह प्रश्न अभी अनुत्तरित है किन्तु रहस्य छिपा हुआ नहीं है। उक्त संपादिका ने अपने IBN7 वाले चमचा ब्लागर से (जिससे 27 अप्रैल को लेख लिखवाया तथा बाद मे 'ज्योतिष एक मीठा जहर')27 अगस्त 2012 के ब्लागर सम्मेलन के बाद 'वटवृछ' के प्रधान संपादक के विरुद्ध विष-वमन करवाया था लेकिन आज भी उनके साथ बतौर 'संपादक' डटी हुई हैं। हाल ही मे उस सम्मेलन के सहयोगी आयोजक ने अपने ब्लाग पर ज्योतिष के विरुद्ध एक लेख लिखा है और उस पर मेरे द्वारा की गई टिप्पणी का अभद्र जवाब दिया है। जबकि वही महाशय पहले मेरे 'क्रांतिस्वर' की समीक्षा 'जन संदेश टाईम्स' मे  23  मार्च 2011 मे निकाल चुके थे और उसे उन्होने अपने ब्लाग पर भी प्रकाशित किया था।किसी दूसरे ब्लागर से रचना चोरी के इल्जाम लगने  पर तब मुझसे अपने पक्ष मे टिप्पणी लिखने का अनुरोध किया था ,27 अगस्त के ब्लागर सम्मेलन मे भाग लेने हेतु 26 को उन्होने मुझसे फोन पर अनुरोध भी किया था ('वटवृक्ष'के प्रबंध संपादक ने भी 23 तारीख को फोन करके मुझसे उस सम्मेलन मे भाग लेने का अनुरोध किया था और आश्वस्त किया था की,"रश्मि प्रभा जी लखनऊ नहीं आ रही हैं")और अब  वह सह-संयोजक उस संपादिका के जाल मे उलझ कर मेरे ज्ञान को चुनौती दे रहे हैं। उनके प्रमाण पत्र की कोई आवश्यकता या अहमियत नहीं है।

एक सोची-समझी रण -नीति के तहत उक्त 'वटवृक्ष' की संपादक ब्लागर द्वारा मेरे ज्योतिषीय ज्ञान पर प्रहार लगातार किया जा रहा है। लेकिन क्या इससे मेरे ज्ञान को कुंद किया जा सकेगा?और इस धृष्ट अभियान का लाभ किसको मिलेगा?



Saturday, November 19, 2011


कुछ तो लगता है 

http://urvija.parikalpnaa.com/2011/11/blog-post_19.html








ख़ुशी में भय
और झूठ में ख़ुशी ...
इस बदली हवा ने सारे मायने बदल दिए हैं
सब उल्टा पुल्टा ही अच्छा लगता है !!!

रश्मि प्रभा

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कुछ तो लगता है

त्योहारों से मुझे अब डर लगता है
बचपन बीता
सब कुछ सपना सा लगता है
रिश्ता एक छलावा लगता है..
छल-बल दुनिया के नियम
कौन किसका
सबको अब अपना अहम् अच्छा लगता है
ऊपर उठाना-गिराना अब यही सच्चा धर्म लगता है
खून-खराबा - अब यही धर्म सब को अच्छा लगता है
त्योहारों का मौसम है
सब को 'नमस्ते' कहना अच्छा लगता है
दुबारा न मिलने का यह संदेश अच्छा लगता है
राम-रहीम का ज़माना पुराना लगता है
बुजुर्गों का कुछ भी कहना बुरा लगता है
मारा-मारी करना अच्छा लगता है
खुदगरजी का जमाना अच्छा लगता है
नैनो से तीर चलाने का ज़माना अब पुराना लगता है
गोली-बारी चलाना अच्छा लगता है
भ्रष्टाचार और घूस कमाना अच्छा लगता है
बदलते दुनिया का नियम अच्छा लगता है
शोर-शराबा करना अच्छा लगता है
हिटलर और मुसोलिनी कहलाना अच्छा लगता है
हिरोशिमा की तरह बम बरसाना अच्छा लगता है
अब गांधी-सुभाष बनना किसी को अच्छा नही लगता है
शहीदों की कुर्बानी बेमानी लगती है
मैं ' आज़ाद हूँ
दुनिया मेरी मुट्ठी में है - कहना अच्छा लगता है
अपने को श्रेष्ठ ,दूसरे को निकृष्ट कहना अच्छा लगता है
चिल्लाना और धमकाना अच्छा लगता है
बेकसूर को कसूरवार बनाना अच्छा लगता है
न्यायालय में झूठा बयान देना अच्छा लगता है
औरों को सता कर 'ताज' पहनना अब अच्छा लगता है
झूठ को सच कहना अच्छा लगता है
दिलों को ठेस पहुंचाना अच्छा लगता है
किसी ने कहा-क्या शर्म नहीं आती
शर्म को ख़ाक करना अच्छा लगता है
अब यह सब करना ही अच्छा लगता है....





(पूनम माथुर)

इस पोस्ट को यहाँ भी पढ़ा जा सकता है।

Tuesday, December 25, 2012

साम्यवाद भारतीय अवधारणा है---विजय राजबली माथुर






भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के 88वे स्थापना दिवस पर विशेष -----

हिंदुस्तान,लखनऊ,16-12-2012  मे राजेन्द्र जी के इस कार्टून ने एक बार फिर से 'साम्यवाद' को विदेशी अवधारणा सिद्ध करने का प्रयास किया है और इसके लिए सिर्फ उनको ही दोष नहीं दिया जा सकता है। हमारे अपने देश के साम्यवादी विद्वान खुद-ब-खुद अपने को 'मार्कसवाद' का अंध-भक्त बताने हेतु भारतीय वांगमय की निंदा करना अपना नैतिक धर्म समझते हैं। इनकी खसूसियत यह है कि ये खुद अपने को 'धर्म विरोधी' होने का फतवा जारी करते हैं और बिना सोचे-विचारे धर्म की निर्मम आलोचना करते हैं। कभी 'धार्मिक भटकाव' तो कभी 'संस्थागत धर्म' जैसे मुहावरों को गढ़ते और प्रचारित करते रहते हैं।

धर्म=जो मानव शरीर और मानव सभ्यता को धारण करने हेतु आवश्यक है। जैसे-सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा),अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य। अब जब मार्क्स वादी होने की धुन मे धर्म की आलोचना की जाएगी तो स्पष्ट है कि इन सद्गुणों से दूर रहने को कहा जा रहा है। खुद को महान चिंतक सिद्ध करने की हवस मे ये विद्वान खुद-ब-खुद अपने दृष्टिकोण को ध्वस्त करते व प्रतिपक्षी को फतह हासिल करने के लिए खुला मैदान छोडते जाते हैं।

रोज़ी -रोटी के लिए खड़ी की गई दुकानों को ये विद्वान 'धर्म' की संज्ञा देते हैं। जबकि जनता को वास्तविक धर्म समझा कर उनसे दूर रखा जा सकता था। हमारे विद्वानों यथा-कबीर,रेदास,दयानन्द,विवेकानंद आदि के विचारों द्वारा हम अपनी बात को ज़्यादा अच्छे  ढंग से जनता को समझा सकते हैं और जनता मानेगी भी। जब खुराफात को साम्यवादी विद्वान ही धर्म की संज्ञा देंगे तब जनता तो उनके प्रति आकृष्ट होगी ही। शोषक-उत्पीड़क वर्ग के हित मे शासन -सत्ता से मिल कर जिन तत्वों ने वास्तविक धर्म को  जनता से ओझल  करके धन कमाई की तिकड़मे की हैं उन ही लोगों को हमारे अपने इन विद्वानों से बल मिलता है। आज का समय 'आत्मालोचना' का है की,1952 की संसद का मुख्य विपक्षी दल अब दलों के दल-दल मे मे कैसे फंसा है और गुड़ से चिपके चीटों की तरह लुटेरे कैसे सत्ता पर हावी हैं?कहने की आवश्यकता नही है कि इसके लिए ऐसे अहंकारी साम्यवादी विद्वान ही उत्तरदाई हैं। 'साम्यवाद' मूलतः भारतीय अवधारणा है और यहीं से मेक्समूलर साहब की मार्फत जर्मनी पहुंची है जिसके जर्मन भाषा मे अनुवाद पर कार्ल मार्क्स साहब ने अपना सिद्धान्त प्रतिपादित किया था। उन्होने विश्लेषण मे जो गलती की वह इंग्लैण्ड और जर्मनी की सामाजिक व्यवस्था पर आधारित है। हमे भारत मे उस गलती को क्यों दोहराना चाहिए?

और फिर खुद कामरेड  जोसेफ स्टालिन का मानना था कि भारत मे 'साम्यवाद' का रास्ता तथा तौर-तरीका वह नहीं होना चाहिए था जैसा कि सोवियत रूस मे था। निम्नलिखित संदर्भ से इस बात की पुष्टि की जा सकती है---

 

Record of the Discussions of J.V. Stalin with the Representatives of the C.C. of the Communist Party of India Comrades, Rao, Dange, Ghosh and Punnaiah

9th February 1951



 Taken down by V. Grigor’yan 10.II.51.
(Signed) V. Grigor’yan
Typescript.

RGASPI F. Op. 11 D. 310, LL. 71-86.
Published with the kind permission of the authorities of the Russian State Archive of Social and Political History.
Translated from the Russian by Vijay Singh

स्टालिन साहब ने कहा था- Stalin’s understanding of the problems before the CPI exerted a profound effect on the course of the history of the party as it led to the recasting of the party approach to the understanding of the character of the Indian state, the stage of revolution, the path of revolution, and the nature of armed revolution and armed struggle, the role of the working class and the peasantry in the revolutionary process in India. This found its expression in the formulation of the new party documents which were drafted in 1951 shortly after the Moscow meetings between the representatives of the CPI and the CPSU
लेकिन हमारे तब के नेताओं ने स्टालिन साहब के सुझावों को स्थाई रूप से स्वीकार नहीं किया- The resolution of the questions of the Indian revolution worked out in 1951, however, proved to be short-lived. With the changes in the Soviet Union after 1953 and the 20th Congress of the CPSU three years later there occurred a corresponding change in the programmatic and tactical perspectives of the CPI: the stage of people’s democratic revolution was dropped in favour of a national democratic revolution which would have an enhanced role for the national bourgeoisie, and revolutionary strategies were replaced by peaceful and parliamentary ones.


 परिणामस्वरूप 1964 मे तेलंगाना आंदोलन की लाईन को सही मानने और चीन की पद्धति पर अमल करने व चीन को आक्रांता न मानने के कारण एक तबका अलग हो गया जिसे आज CPM के नाम से जाना जाता है। 1967 मे पश्चिम बंगाल मे कामरेड ज्योति बासु के उप मुख्यमंत्री व गृह मंत्री रहते हुये 'नक्सल बाड़ी आंदोलन'को कुचले जाने के कारण CPM से फिर एक तबका अलग हो गया और अब तो उस तबके के अलग-अलग आठ-दस और तबके हो चुके हैं। 

चाहे जितने तबके व गुट हों सबमे एक ज़बरदस्त समानता है कि वे 'साम्यवाद' को खुद भी विदेशी अवधारणा मानते हैं। 'Man has created the GOD for his Mental Security only'-मार्क्स साहब का यह वाक्य सभी के लिए 'ब्रह्म वाक्य' है इस कथन को कहने की परिस्थियों व कारणों की तह मे जाने की उनको न कोई ज़रूरत है और न ही समझने को तैयार हैं। उनके लिए धर्म अफीम है। वे न तो धर्म का मर्म जानते हैं और न ही जानना चाहते हैं। वस्तुतः धर्म=जो मानव शरीर एवं मानव सभ्यता को धरण करने हेतु आवश्यक है जैसे ---
'सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा),अस्तेय,अपरिग्रह,ब्रह्मचर्य'। अब इन सद्गुणों की मुखालफत करके हम समाज से शोषण और उत्पीड़न को कैसे समाप्त कर सकते हैं?और यही वजह है कि इन सद्गुणों को ठुकराने के कारण सोवियत रूस मे साम्यवाद उखड़ गया और जो चीन मे चल रहा है वह वहाँ की कम्युनिस्ट पार्टी के संरक्षण मे चल रहा 'पूंजीवाद' ही है। 

 प्रकृति में जितने भी जीव हैं उनमे मनुष्य ही केवल मनन करने के कारण श्रेष्ठ है,यह विशेष जीव ज्ञान और विवेक द्वारा अपने उपार्जित कर्मफल को अच्छे या बुरे में बदल सकता है.कर्म तीन प्रकार के होते हैं-सद्कर्म का फल अच्छा,दुष्कर्म का फल बुरा होता है.परन्तु सब से महत्वपूर्ण अ-कर्म होता है  जिसका अक्सर लोग ख्याल ही नहीं करते हैं.अ-कर्म वह कर्म है जो किया जाना चाहिए था किन्तु किया नहीं गया.अक्सर लोगों को कहते सुना जाता है कि हमने कभी किसी का बुरा नहीं किया फिर हमारे साथ बुरा क्यों होता है.ऐसे लोग कहते हैं कि या तो भगवान है ही नहीं या भगवान के घर अंधेर है.वस्तुतः भगवान के यहाँ अंधेर नहीं नीर क्षीर विवेक है परन्तु पहले भगवान को समझें तो सही कि यह क्या है--किसी चाहर दिवारी में सुरक्षित काटी तराशी मूर्ती या  नाडी के बंधन में बंधने वाला नहीं है अतः उसका जन्म या अवतार भी नहीं होता.भगवान तो घट घट वासी,कण कण वासी है उसे किसी एक क्षेत्र या स्थान में बाँधा नहीं जा सकता.भगवान क्या है उसे समझना बहुत ही सरल है--अथार्त भूमि,-अथार्त गगन,व्-अथार्त वायु, I -अथार्त अनल (अग्नि),और -अथार्त-नीर यानि जल,प्रकृति के इन पांच तत्वों का समन्वय ही भगवान है जो सर्वत्र पाए जाते हैं.इन्हीं के द्वारा जीवों की उत्पत्ति,पालन और संहार होता है तभी तो GOD अथार्त Generator,Operator ,Destroyer  इन प्राकृतिक तत्वों को  किसी ने बनाया नहीं है ये खुद ही बने हैं इसलिए ये खुदा हैं.

जब भगवान,गाड और खुदा एक ही हैं तो झगड़ा किस बात का?परन्तु झगड़ा है नासमझी का,मानव द्वारा मनन न करने का और इस प्रकार मनुष्यता से नीचे गिरने का.इस संसार में कर्म का फल कैसे मिलता है,कब मिलता है सब कुछ एक निश्चित प्रक्रिया के तहत ही होता है जिसे समझना बहुत सरल है किन्तु निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा जटिल बना दिया गया है.हम जितने भी सद्कर्म,दुष्कर्म या अकर्म करते है उनका प्रतिफल उसी अनुपात में मिलना तय है,परन्तु जीवन काल में जितना फल भोग उसके अतिरिक्त कुछ शेष भी बच जाता है.यही शेष अगले जनम में प्रारब्ध(भाग्य या किस्मत) के रूप में प्राप्त होता है.अब मनुष्य अपने मनन द्वारा बुरे को अच्छे में बदलने हेतु एक निश्चित प्रक्रिया द्वारा समाधान कर सकता है.यदि समाधान वैज्ञानिक विधि से किया जाए तो सुफल परन्तु यदि ढोंग-पाखंड विधि से किया जाये तो प्रतिकूल फल मिलता है.

लेकिन अफसोस यही कि इस वैज्ञानिक सोच का विरोध प्रगतिशीलता एवं वैज्ञानिकता की आड़ मे साम्यवाद के विद्वानों द्वारो भी किया जाता है और पोंगापंथी ढ़ोंगी पाखंडियों द्वारा भी। अतः नतीजा यह होता है कि जनता धर्म के नाम पर व्यापारियो/उद्योगपतियों/शोषकों के बुने जाल मे फंस कर लुटती रहती है। साम्यवाद-समाजवाद के नारे लगते रहते हैं और नतीजा वही 'ढाक के तीन पात'। 
इस पोस्ट को यहाँ भी पढ़ा जा सकता है।
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Wednesday, December 19, 2012

सच्चे साधक धक्के खाते समृद्ध मौज उड़ाते हैं ---विजय राजबली माथुर


 (वीडियो साभार संजोग वाल्टर साहब )


हिंदुस्तान ,दिनांक 19 दिसंबर 2012,पृष्ठ 14 पर कामरेड अदम गोंडवी साहब के परिवार की आर्थिक स्थिति और उनके सुपुत्र को चपरासी की भी नौकरी न मिल पाने की कारुणिक व्यथा इस समाचार के माध्यम से प्राप्त हुई जो नितांत वेदनाकारक है।

उपरोक्त वीडियो संजोग वाल्टर साहब की फेसबुक वाल से प्राप्त हुआ है जिसमे सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और संभावित तीसरे मोर्चे की सरकार मे प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार मुलायम सिंह जी पुष्पांजली अर्पित कर रहे हैं।

पिछले दिनों कई रोग शय्या पर रहे या दिवंगत हुये हिन्दी के साहित्यकारों को सम्मानित व पुरस्कृत किया गया है जिनकी आर्थिक स्थिति भी अच्छी रही है। अभी हाल ही मे दिल्ली जाकर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जी ने सरदार खुशवंत सिंह जी को शाल ओढा कर सम्मानित और पुरस्कृत किया है। खुशवंत जी के पिताजी पर शहीदे आजम सरदार भगत सिंह के विरुद्ध गवाही देने का भी आरोप है। वह मूलतः अङ्ग्रेज़ी भाषा के लेखक भी हैं। उनको किसी प्रकार की कमी भी नहीं है।

अखिलेश जी से इस लेख के माध्यम से आग्रह है कि वह व्यक्तिगत रूप से हस्तक्षेप करके दिवंगत साहित्यकार अदम गोंडवी साहब के सुपुत्र को लखनऊ बुला कर सचिवालय मे सरकारी नौकरी देकर उनके परिवार के लिए जीवन-यापन की व्यवस्था कराकर साहित्यकार समाज को उपकृत करें।
इस पोस्ट को यहाँ भी पढ़ा जा सकता है।

Friday, December 14, 2012

खराब मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है---विजय राज बली माथुर

 "खराब मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है"

यह अर्थशास्त्र का एक नियम है जो इसके प्रतिपादक के नाम पर 'ग्रेशम का सिद्धान्त' कहलाता है। क्योंकि हर व्यक्ति खोटा सिक्का या खराब नोट सबसे पहले निकालता है और अच्छे सिक्के या नोट सहेज कर रखता है। लेकिन समाज के हर क्षेत्र मे आज इस नियम को लागू होते देखा जा सकता है। जो खोटे स्वभाव के लोग हैं वे तो तीन तिकड़म से कामयाब हो जाते हैं परंतु सही और ईमानदार लोगों को धक्के खाने पड़ते हैं। काफी अरसा पहले (1974-75 मे ) 'नारद' उपनाम से लिखने वाले एक सज्जन ने 'अमर उजाला',आगरा मे लिखा था-"सच्चे साधक धक्के खाते अब चमचे मज़े उड़ाते हैं" आज भी उतना ही सटीक है।

यों तो आगरा मे भी मैंने सरला बाग,दयाल बाग मे अपना ज्योतिष कार्यालय खोला था -16-11-2000 को क्योंकि ज्योतिष कार्यालय खोलने का सुझाव बाबूजी साहब (पूनम के पिताजी) का था अतः उस कार्यालय का नाम उनकी पुत्री के ही नाम पर 'पूनम ज्योतिष कार्यालय' रखा था। रिशतेदारों मे ही कुछ लोग खार खाने के कारण उसे व्यवसायिक रूप से सफल नहीं होने देने के उपक्रम करते रहते थे। जो पेशेवर पंडित थे उनको तो नागवार लगना ही था। एक वास्तुविद कृष्ण गोपाल शर्मा जी ने तो खुल कर कहा भी था -"आपने कायस्थ होकर ब्राह्मणों के मुंह पर तमाचा मारा है"। स्व्भाविक रूप से ऐसे लोग षडयंत्रों मे लगे रहे।

नेहरू नगर मे एक तथाकथित ब्राह्मण साहब मंदिर के पुजारी तो रु 1000/-माहवार पर थे। किन्तु अपने कंप्यूटर सहायक को तीन दिन का भुगतान रु 500/-कर देते थे ,कैसे?है न चमत्कार!उन साहब ने अपने नाम के आगे शास्त्री लिखना शुरू कर दिया और किसी प्रकार तत्कालीन जिलाधिकारी (पूर्व एम डी,मध्यांचल विद्युत निगम जो अभी 'लंदन' ट्रेनिंग पर गए हैं)को प्रभावित कर लिया। फिर तो मंदिर स्थित उनके कमरे पर प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों के वाहन जब तब खड़े देखे जाने लगे। उनकी योग्यता और कार्य का खुलासा मेरे सम्मुख तब हुआ जब उनकी बनाई एक जन्मपत्री मेरे पास विश्लेषण हेतु लाई गई। वह जन्मपत्री कंप्यूटराईज्ड थी। दूसरे मंदिर के ब्राह्मण लेकिन अनपढ़  पुजारी (जो मध्य प्रदेश मे एक मार्बल स्टोर के वाचमेन थे और घपले मे निकाले जाने के बाद आगरा मे रह कर 'भागवत प्रवचन' करते थे)को किसी ने अपनी बच्ची की जन्मपत्री बनाने को कहा था । वह न तो पुजारी के रूप मे कर्मकांड मे पारंगत थे न ज्योतिष का उनको कुछ अता-पता था परंतु जन्मपत्री बनाने के रु 200/- प्राप्त कर लिए थे । वह नेहरू नगर वाले पुजारी साहब के पास गए जो जिलाधिकारी के मुंह लगे थे। वह भी मात्र कर्मकांडी ही थे प्रशासनिक व पुलिस  अधिकारियों को गुमराह करने मे सफल रहे थे अपनी 'तंत्र विद्या' के दम पर। अतः वह पुजारी  उनको रु 100/-देकर जन्मपत्री बनाने को दे आए। एस बी आई के पूर्व कर्मचारी 'पाराशर' गोत्र के ब्राह्मण साहब एक ज्योतिष दफ्तर चलाते थे जिनको रु 30/- देकर उन  पुजारी साहब ने कंप्यूटराईज्ड जन्मपत्री बनवा ली थी। और यही जन्मपत्री  दूसरे पुजारी साहब विश्लेषण हेतु मेरे पास लाये थे। मैंने उस गलत जन्मपत्री का विश्लेषण करने से स्पष्ट इंकार कर दिया।पुजारी साहब ने मुझसे कहा आप ब्राह्मण नहीं हैं इसलिए आपको रुपए कमाना नहीं आता है। अरे पहले यजमान को दहशत मे लाओ फिर उसकी जेब टटोलो और मज़े करो।

इससे यह स्पष्ट होता है कि,सदियों से ब्राह्मण किस प्रकार जनता को उल्टे उस्तरे से मूढ़ते आ रहे हैं। और जनता को क्या कहे?समाज मे मेरी इसलिए आलोचना है कि लोगों के अनुसार  मैंने ब्राह्मणों के क्षेत्र मे अतिक्रमण कर डाला है। जबकि मूल रूप से समाज मे शिक्षा-व्यवस्था का दायित्व कायस्थों ही का था । ( है क्या बला यह--'कायस्थ'?)आगरा कालेज ,आगरा  मे जूलाजी विभाग के अवकाश प्राप्त अध्यक्ष डॉ वी के तिवारी साहब,भारत पेट्रोलियम के उच्चाधिकारी डॉ बी एम उपाध्याय जी  ,सपा नेता और मर्चेन्ट नेवी के रिटायर्ड  उच्चाधिकारी पंडित सुरेश चंद पालीवाल जी आदि अनेकों शिक्षित व समझदार  ब्राह्मणों ने न केवल मुझसे जन्म्पत्रियों के विश्लेषण सहर्ष कराये बल्कि अपने-अपने निवास पर 'वास्तु' हवन भी कराये और लाभान्वित भी हुये।'कायस्थ सभा,'आगरा,'अखिल भारतीय कायस्थ महासभा',आगरा और 'माथुर सभा',आगरा के कई पदाधिकार्यों ने भी मुझसे ज्योतिषीय एवं वास्तु परामर्श प्राप्त कर लाभ भी उठाया। परंतु मांगने की आदत न होने के कारण वांछित अर्थ-लाभ मैं न प्राप्त कर सका और अंततः मकान बेच कर छोटा मकान लखनऊ मे लेकर रहने लगा।



14-12-2009 को 'बली वास्तु एवं ज्योतिष कार्यालय' भी निवास पर ही प्रारम्भ कर दिया। यहाँ पूनम का नाम उनके ही सुझाव पर नहीं दिया था किन्तु खानदान का टाईटिल देने पर भी खानदान के ही लोग आर्थिक क्षति पहुंचाने मे अग्रणी हैं। छोटे बहन-बहनोई के मधुर संबंध अशरफाबाद निवासी जिन उमेश से हैं उन्होने कालोनी मे रहने वाले और मूल रूप से अशरफाबाद के बाशिंदे एक बैंक अधिकारी को हमारे विरुद्ध लामबंदी करने को उकसा रखा है। स्थानीय लोगों को निशुल्क परामर्श तो  चाहिए होता है किन्तु हमारे वैज्ञानिक उपायों का पालन नहीं करते हैं क्योंकि वे ब्राह्मणों के दक़ियानूसी आडंबरों मे उलझे हुये हैं।पूना निवासी छोटी भांजी जो यशवन्त और मेरे ब्लाग्स पर की गई टिप्पणियों के सहारे ब्लागर्स के प्रोफाईल्स चेक करके ढुलमुल-ढुलमुल  ब्लागर्स को हमारे विरुद्ध उकसाती है तथा ऐसे ब्लागर्स भी ब्लाग जगत मे मेरे ज्योतिषीय ज्ञान पर प्रहार करते हैं। उसी के विमान नगर मे उसकी पड़ौसन रही मूल रूप से पटना की -पूना प्रवासी श्रीवास्तव ब्लागर ने चार जन्म्पत्रियों का विश्लेषण निशुल्क मुझसे प्राप्त किया और उसकी पटना स्थित शिष्या ने भी चार जन्म्पत्रियों का विश्लेषण निशुल्क प्राप्त किया किन्तु अब ये लोग ही ब्लाग जगत मे मेरे विरुद्ध घमासान मचाये हुये हैं।

19-04-2012 को ''रेखा -राजनीति मे आने की सम्भावना''   शीर्षक से मैंने फिल्म अभिनेत्री 'रेखा जी' का ज्योतिषयात्मक विश्लेषण दिया था जिसका लिंक कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह जी एवं राहुल गांधी साहब के फेसबुक वाल पर भी दिया था। 26-04-2012 को राष्ट्रपति महोदया ने रेखा जी को राज्यसभा मे मनोनीत भी कर दिया। मेरा विश्लेषण एक सप्ताह मे ही सही सिद्ध होना पूना प्रवासी उस ब्लागर को इतना नागवार गुजरा कि उसने IBN7 मे कार्यरत अपने चमचे ब्लागर से 27-04-2012 को 'रेखा जी' के मनोनयन की आलोचना सम्मिलित करते हुये एक लेख लिखवाया और टिप्पणी मे खुद भी मखौल उड़ाया।

(रश्मि प्रभा...Apr 27, 2012 07:21 AM

कब मैं हिट होउंगी ... और राज्य सभा की सदस्य बनूँगी - आईला

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आप जल्दी राज्यसभा में पहुंचें,
मेरी भी शुभकामना है)

 'ज्योतिष एक मीठा जहर' शीर्षक से एक लेख और उस चमचे ब्लागर से लिखवाया गया था। फेसबुक और ब्लाग्स पर इस उठा-पटक का नतीजा यह हुआ कि जो कम्युनिस्ट ज्योतिष की आलोचना के लिए जाने जाते हैं उन्होने भी अपने निशुल्क ज्योतिषयात्मक विश्लेषण मुझसे करवाए। ऐसे 11 लोगों मे दो एहसान फरामोश रहे बाकी एहसानमंद हैं। जबकि गैर  कम्युनिस्ट ब्लागर्स/फेसबुकियों मे  10 निशुल्क विश्लेषण करवाने वालों मे सिर्फ दो ही लोगों ने आठ (8) विश्लेषण प्राप्त किए थे (पूना प्रवासी और उसकी शिष्या ब्लागर्स) ये दोनों ही घोर एहसान फरामोश निकले। चारों एहसान फरामोशों की निंदा करके तीन ब्लाग/फेसबुक के लोगों ने बाद मे अपने विश्लेषण प्राप्त किए थे क्योंकि इन्टरनेट पर परामर्श देने के लिए उन एहसान फरामोशों की निंदा करने को एक शर्त बना दिया है। काफी पहले आगरा के पत्र-पत्रिकाओं मे छपे ज्योतिष संबंधी लेखों को अपने ब्लाग पर पहले भी दिया था और आज-कल उनके पुनर्प्रकाशन भी करता जा रहा हूँ।

एक्ज़ीक्यूटिव इंजीनियर,वित्त प्रबन्धक स्तर के सरकारी अधिकारी और निजी व्यापारी इन ब्लागर्स के दुष्प्रचार से अप्रभावित रह कर मुझसे ज्योतिषीय परामर्श करते रहते हैं। भूमि पूजन,पुनरुद्धार कार्य और घर के वास्तु दोषों के निवारणार्थ वे मुझसे बेझिझक हवन करवाते हैं। 'जनहित मे'   ब्लाग के माध्यम से कुछ स्तुतियों को भी सार्वजनिक किया है जो एक लंबे अरसे से ब्राह्मणों द्वारा गोपनीय बनाए रखी गईं थीं। इनसे भी लोगों को लाभ उठाने का मौका मिला है।

जो लोग ज्योतिष के नाम पर ठगी करते हैं और जनता को उल्टे उस्तरे से मूढ़ते हैं उन्हें तो जनता पूजती है । लेकिन जब मैं वैज्ञानिक उपाय निशुल्क भी बताता हूँ तो आम जन तो आम जन इन्टरनेट पर पढे लिखे लोग भी उसका मखौल उड़ाने मे आगे रहते हैं। जबकि समाज और इन्टरनेट जगत के समझदार लोग मुझसे सहमत रहते हैं। कुछ थोड़े से लोग भी अंधकार मे भटकने से बच जाएँ तो मैं अपने प्रयासो को सार्थक समझ सकता हूँ। आज लखनऊ स्थित अपने ज्योतिष कार्यालय के तीन वर्ष सम्पन्न होने और चतुर्थ वर्ष मे प्रवेश के अवसर पर हम समस्त मानवता के मंगल कल्याण की कामना करते हैं।

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Monday, December 3, 2012

सांप्रदायिकता-साम्राज्यवादी साजिश ---विजय राज बली माथुर


 दिनांक 01 दिसंबर को साँय 03 बजे 22,क़ैसर बाग,लखनऊ,पार्टी कार्यालय मे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी,ज़िला काउंसिल के तत्वाधान मे 'सांप्रदायिक सद्भाव एवं धर्म निरपेक्षता और राज्य सरकार की नीति'विषय पर सम्पन्न गोष्ठी मे  पार्टी कार्यकर्ताओं एवं नगर के गण मान्य बुद्धिजीवियों ने भाग लिया। गोष्ठी की अध्यक्षता ' डॉ राही मासूम रज़ा एकेडमी ' के मंत्री एवं प्रदेश फारवर्ड ब्लाक के अध्यक्ष कामरेड राम किशोर जी ने की। मुख्य अतिथि थे-भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय सचिव कामरेड अतुल कुमार 'अंजान'। महिला नेत्री कामरेड कान्ति मिश्रा ने कहा कि,सांप्रदायिक सद्भाव महिलाओं एवं बच्चों हेतु विशेष आवश्यक है क्योंकि वैमनस्य का इन लोगों पर ही सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। कामरेड  प्रदीप तिवारी एवं प्रलेस के कामरेड शकील सिद्दीकी ने सांप्रदायिक दंगों पर प्रदेश सरकार की नीति की कड़ी आलोचना की।

  भाकपा के राष्ट्रीय सचिव कामरेड अतुल कुमार 'अंजान---

 कामरेड अतुल अंजान ने इस पुरानी प्रवृति को त्यागने की बात कही उनका मत था कि इन दोनों ने 'दंगों' पर ही ध्यान रखा है जबकि यह भी बताया जाना चाहिए था कि इन दंगों के पीछे देश पारीय शक्तियों का बड़ा हाथ है। पाकिस्तान और बांगला देश के उदाहरण देकर उन्होने कहा कि वहाँ सांप्रदायिकता अपने वीभत्स रूप मे सामने है जबकि हमारे देश की जनता सांप्रदायिकता को ठुकरा देती है।

  उन्होने बताया कि,पिछले चार वर्षों मे पाकिस्तान मे लड़कियों के 1850 स्कूल बंद किए जा चुके हैं तथा महिलाओं व लड़कियों को मर्द डाक्टरों से इलाज कराने पर उनको दंडित करने की तालिबानी आतंकवादियों ने घोषणा कर रखी है। एक तरफ लड़कियां जब पढ़ेंगी ही नहीं तो महिला डाक्टर कहाँ से आएंगी?इस दौरान वहाँ की मस्जिदों मे 87 आतंकवादी बम -विस्फोट होने की सूचना कामरेड अंजान ने दी। वहाँ के 500 मौलवियों ने तो मलाला के संघर्ष को समर्थन दिया किन्तु भारत के किसी भी मौलवी ने मलाला का समर्थन नहीं किया जिस पर कामरेड अंजान ने हैरानी जताई है। भारत के मौलवियों द्वारा पाकिस्तानी मस्जिदों मे बम-विस्फोटों की निंदा न करना भी उन्होने हैरत-अंगेज़ बताया है। उन्होने इस प्रकार की सांप्रदायिकता से भी लड़ने की ज़रूरत बताई है।

कामरेड अंजान ने यह भी स्पष्ट किया कि,'हिन्दू सांप्रदायिक शक्तियाँ' तथा 'मुस्लिम सांप्रदायिक शक्तियाँ' परस्पर मिली हुई रहती हैं और केवल जनता को विभाजित करके अपने आर्थिक हितों को साधती रहती हैं। उदाहरण के रूप मे सांप्रदायिकता का नया मसीहा बनी ' पीस पार्टी' को गोरखनाथ धाम के योगी आदित्यनाथ द्वारा धन बल से सज्जित करने की बात उन्होने कही। उनका यह भी सुदृढ़ मत था कि,धार्मिक आधार पर आरक्षण हो ही नहीं सकता कोई भी ऐसा कानून असंवैधानिक घोषित हो जाएगा। ऐसी बातें करना भी सांप्रदायिकता भड़काना है।

कामरेड अंजान ने बांग्ला देश और म्यामार मे 'रोम्या मुसलमानों' के साथ हो रही ज़्यादतियों का ज़िक्र करते हुये कहा कि उनके नाम पर अपने देश मे अव्यवस्था फैलाना भी सांप्रदायिकता है। उन्होने आन्क्ड़े देते हुये बताया कि भारत मे दो-ढाई लाख रोम्या मुसलमान शरण लिए हुये हैं अकेले राजधानी दिल्ली के 'वसंत विहार' क्षेत्र मे 'सुल्तानपुरी मस्जिद'के आस-पास 3500 ऐसे रोम्या मुसलमान हैं। उनका कहना था कि ऐसी विदेशी शक्तियों के कारण भी हमारे देश मे सांप्रदायिक तनाव व्याप्त हो जाता है और हमे उनसे सतर्क रह कर अपने सौहार्द की रक्षा अवश्यमेव करनी चाहिए। 

अंजान साहब का यह भी मत था कि यदि भारत के इर्द-गिर्द के देशों मे लोकतन्त्र जीवित रहेगा तभी हमारा लोकतन्त्र भी अक्षुण्ण रह सकेगा अन्यथा हमारे देश मे भी लोकतन्त्र खतरे मे पड़ जाएगा। अंजान साहब ने कम्युनिस्ट और बामपंथी कार्यकर्ताओं को सलाह दी कि अब पुरानी शैली मे धर्म की आलोचना करने से काम नहीं चलेगा,सभी धर्मों मे समरसता की बातें होती हैं अतः  अब आपको धर्म की अच्छी बातों को आगे लाने और खराब बातों का प्रतिकार करने की बात कहनी होगी तभी आप सफल हो सकते हैं।

एडवोकेट लोहित साहब ने धर्म निरपेक्षता के संवैधानिक पक्ष पर प्रकाश डाला। लखनऊ ज़िला काउंसिल के सदस्य कामरेड विजय माथुर ने दिनांक 30-11-2012 को प्रकाशित अपने 'क्रांतिस्वर' के लेख का वाचन किया। http://krantiswar.blogspot.in/2012/11/sampradayikta-dharam-nirpexeta.html
उन्होने यह भी बताया कि वह पहले ही से अपने क्रांतिस्वर मे अंजान साहब के बताए दृष्टिकोण के अनुसार अपना लेखन जारी रखे हुये हैं।  गोष्ठी अध्यक्ष  कामरेड राम किशोर जी ने भी अपने सम्बोधन मे कामरेड विजय माथुर द्वारा 1857 की  क्रांति के बाद से सांप्रदायिकता को ब्रिटिश साम्राज्यवादियो द्वारा उभारे जाने की बात को सत्य ठहराया। उन्होने भी कहा कि मंहगाई आदि जन समस्याओं से ध्यान हटाने हेतु अंतर राष्ट्रीय शक्तियों के षड्यंत्र पर सरकारें सांप्रदायिकता को लुटेरों से मिल कर बढ़ावा देती हैं। उन्होने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के सिद्धांतों को आज के नेताओं द्वारा छोड़ दिये जाने को सांप्रदायिक संकट का हेतु बताया।

ज़िला मंत्री कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़ ने उपस्थित साथियों का भाग लेने हेतु धन्यवाद ज्ञापन किया एवं विशेष रूप से कामरेड अतुल अंजान तथा कामरेड राम किशोर जी का आभार व्यक्त किया। उन्होने पूर्व कामरेड एवं पूर्व प्रधानमंत्री इंदर कुमार गुजराल तथा बांदा के दिवंगत कामरेड बिहारी लाल  के निधन पर दो मिनट का मौन भी धारण करवाया।


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