Saturday, March 21, 2015

विक्रमी संवत,आर्यसमाज और साम्यवाद --- विजय राजबली माथुर



 (आर्यसमाज की एक स्तुति-प्रार्थना )

1857 की क्रांति विफल होने पर 1875 मे चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (विक्रमी संवत के प्रथम दिवस ) पर  महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा 'आर्यसमाज' की स्थापना जनता को ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध जाग्रत करने हेतु की गई थी और शुरू-शुरू मे इसके केंद्र छावनियों मे स्थापित किए गए थे। इसकी सफलता से भयभीत होकर रिटायर्ड ICS एलेन आक्टावियन हयूम (A .O. HUME) की सहायता से W.C.(वोमेश चंद्र) बनर्जी की अध्यक्षता मे इंडियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना कराई गई जो प्रारम्भ मे ब्रिटिश साम्राज्य हेतु 'सेफ़्टी वाल्व' का काम करती थी। स्वामी दयानन्द के निर्देश पर आर्यसमाजियों ने राजनीतिक रूप से कांग्रेस मे प्रवेश करके इसे स्वाधीनता आंदोलन की ओर मोड दिया। खुद पट्टाभिसीता रमईय्या ने 'कांग्रेस का इतिहास' पुस्तक मे स्वीकार किया है कि स्वाधीनता आंदोलन मे जेल जाने वाले सत्याग्रहियों मे 85 प्रतिशत आर्यसमाजी थे। कांग्रेस के द्वारा आजादी की मांग करने पर 1906 मे मुस्लिम लीग और  1920 मे कुछ कांग्रेसी नेताओं को लेकर हिन्दू महासभा का गठन कांग्रेस को कमजोर करने हेतु ब्रिटिश साम्राज्य ने करवाया था। मुसलिम लीग की भांति हिन्दू महासभा शासकों के अनुकूल कार्य न कर पाई तब RSS का गठन 1925 मे करवाया गया जिसने विदेशी शासकों को खुश करने हेतु मुस्लिम लीग की तर्ज पर विद्वेष की आग को खूब भड़काया (जिसकी अंतिम परिणति देश विभाजन के रूप मे हुई)।

1925 मे ही राष्ट्र वादी कांग्रेसियों ने भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी की स्थापना स्वाधीनता आंदोलन को गति प्रदान करने हेतु की थी। किन्तु 1930 मे कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना भारत मे कम्यूनिस्ट आंदोलन को रोकने हेतु करवा दी गई। लेनिन और बाद मे स्टालिन की सलाह को ठुकराते हुये उस समय के कम्यूनिस्ट नेताओं ने हू- ब-हू सोवियत रूस की तर्जपर पार्टी को चलाया जिसका परिणाम यह हुआ कि वे जनता की नब्ज पर अपनी उंगली न रख सके। सोवियत रूस मे भी 'धर्म' की अवधारणा के आभाव मे साम्यवाद का वह स्टाईल असफल हो गया और चीन मे भी जो चल रहा है वह मूल साम्यवाद नहीं है। हमारे देश मे अभी भी कुछ दक़ियानूसी विद्वान 'धर्म' और 'साम्यवाद' मे अंतर मानते हैं क्योंकि वे पुरोहितवाद को ही धर्म मानने की गलती छोडना नहीं चाहते । कुल मिला कर नुकसान शोषित-पीड़ित जनता का ही है। धर्म के नाम पर उसे मिलता है पोंगावाद जो उसके शोषण को ही मजबूत करता है। पाखंडी तरह तरह से जनता को ठगते हैं और जन-हितैषी कहलाने वाले कम्यूनिस्ट धर्म -विरोध के नाम पर अडिग रहने के कारण 'धर्म' की वास्तविक व्याख्या बताने से परहेज करते हैं। 

'धर्म' के सम्बन्ध मे निरन्तर लोग लिखते और अपने विचार व्यक्त करते रहते हैं परंतु मतैक्य नहीं है। ज़्यादातर लोग धर्म का मतलब किसी मंदिर,मस्जिद/मजार ,चर्च या गुरुद्वारा अथवा ऐसे ही दूसरे स्थानों  पर जाकर  उपासना करने से लेते हैं। इसी लिए इसके एंटी थीसिस वाले लोग 'धर्म' को अफीम और शोषण का उपक्रम घोषित करके विरोध करते हैं । दोनों दृष्टिकोण अज्ञान पर आधारित हैं। 'धर्म' है क्या? इसे समझने और बताने की ज़रूरत कोई नहीं समझता।

धर्म=शरीर को धारण करने के लिए जो आवश्यक है वह 'धर्म' है। यह व्यक्ति सापेक्ष है और सभी को हर समय एक ही तरीके से नहीं चलाया जा सकता। उदाहरणार्थ 'दही' जो स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है किसी सर्दी-जुकाम वाले व्यक्ति को नहीं दिया जा सकता। ऐसे ही स्वास्थ्यवर्धक मूली भी ऐसे रोगी को नहीं दी जा सकती। क्योंकि यदि सर्दी-जुकाम वाले व्यक्ति को मूली और दही खिलाएँगे तो उसे निमोनिया हो जाएगा अतः उसके लिए सर्दी-जुकाम रहने तक दही और मूली का सेवन 'अधर्म' है। परंतु यही एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए 'धर्म' है।

मानव जीवन को सुंदर,सुखद और समृद्ध बनाने के लिए जो प्रक्रियाएं हैं वे सभी 'धर्म' हैं। लेकिन जिन प्रक्रियाओं से मानव जीवन को आघात पहुंचता है वे सभी 'अधर्म' हैं। देश,काल,परिस्थिति का विभेद किए बगैर सभी मानवों का कल्याण करने की भावना 'धर्म' है।

ऋग्वेद के इस मंत्र को देखें-


सर्वे भवनतु सुखिन: सर्वे संतु निरामया :
सर्वे भद्राणि पशयनतु मा कश्चिद दु : ख भाग भवेत। ।


इस मंत्र मे क्या कहा गया है उसे इसके भावार्थ से समझ सकते हैं-


सबका भला करो भगवान ,सब पर दया करो भगवान।
सब पर कृपा करो भगवान,सब का सब विधि हो कल्याण। ।
हे ईश सब सुखी हों ,कोई न हो दुखारी।
सब हों निरोग भगवान,धन धान्य के भण्डारी। ।
सब भद्र भाव देखें,सन्मार्ग के पथिक हों।
दुखिया न कोई होवे,सृष्टि मे प्राण धारी । ।


ऋग्वेद का यह संदेश न केवल संसार के सभी मानवों अपितु सभी जीव धारियों के कल्याण की बात करता है। क्या यह 'धर्म' नहीं है?क्या इसकी आलोचना करके किसी वर्ग विशेष के हितसाधन की बात नहीं सोची जा रही है। जिन पुरोहितों ने धर्म की गलत व्याख्या प्रस्तुत की है उनकी आलोचना और विरोध करने के बजाये धर्म की आलोचना करके शोषित-उत्पीड़ित मानवों की उपेक्षा करने वालों (शोषकों ,उत्पीड़को) को ही लाभ पहुंचाने का उपक्रम है।


भगवान=भ (भूमि)+ग (गगन-आकाश)+व (वायु-हवा)+I(अनल-अग्नि)+न (नीर-जल)।
 क्या इन तत्वों की भूमिका को मानव जीवन मे नकारा जा सकता है?और ये ही पाँच तत्व सृष्टि,पालन और संहार करते हैं जिस कारण इनही को GOD कहते हैं  ...

GOD=G(generator)+O(operator)+D(destroyer)।
खुदा=और चूंकि ये तत्व' खुद ' ही बने हैं इन्हे किसी प्राणी ने बनाया नहीं है इसलिए ये ही 'खुदा' हैं।

'भगवान=GOD=खुदा' - मानव ही नहीं जीव -मात्र के कल्याण के तत्व हैं न कि किसी जाति या वर्ग-विशेष के।

पोंगा-पंथी,ढ़ोंगी और संकीड़तावादी तत्व (विज्ञान और प्रगतिशीलता के नाम पर) 'धर्म' और 'भगवान' की आलोचना करके तथा पुरोहितवादी 'धर्म' और 'भगवान' की गलत व्याख्या करके मानव द्वारा मानव के शोषण को मजबूत कर रहे हैं। ऐसे तथा-कथित प्रगतिशीलों का मखौल सुधीश पचौरी जी ने 'हिंदुस्तान,लखनऊ,के 20 नवंबर 2011 के इस लेख मे उड़ाया है जिसका स्कैन आप नीचे  देख रहे हैं।:

'ज्योतिष'=वह विज्ञान जो मानव जीवन को सुंदर,सुखद और समृद्ध ' बनाने मे सहायक है। अखिल ब्रह्मांड मे असंख्य तारे,ग्रह और नक्षत्र हैं जिनसे निकलने वाला प्रकाश समस्त जीवधारियों तथा वनस्पतियों सभी को प्रभावित करता है। मानव जीवन पर इस प्रभाव का अध्यन करके लाभकारी स्थिति बताना 'ज्योतिषी' का कर्तव्य होता है और जो इस से हट कर गलत कार्य करता है वह ज्योतिषी नहीं है केवल उसी की आलोचना और विरोध होना चाहिए। परंतु प्रगतिशीलता के नाम पर ढ़ोंगी व्यक्ति का विरोध न करके ज्योतिष का विरोध करने का मतलब है 'मानव' को प्रकृति सुलभ ज्ञान से वंचित करना और यह भी उतना ही गलत और बुरा है जितना ज्योतिष के नाम पर ठगना।

'साम्यवाद'=समष्टिवाद है जिसमे व्यक्ति विशेष का नहीं समाज का सामूहिक कल्याण सोचा और किया जाता है। अतः साम्यवाद ही परम मानव-धर्म है। साम्यवाद के तत्व वेदों मे मौजूद हैं। ऋग्वेद के अंतिम सूक्त मे मंत्रों  द्वारा दिशा-निर्देश दिये गए हैं।

'सं ....... वसून्या भर' अर्थात-

हे प्रभों तुम शक्तिशाली हो बनाते सृष्टि को ।
वेद सब गाते तुम्हें हैं कीजिये धन वृष्टि को। ।

'संगच्छ्ध्व्म ....... उपासते' अर्थात-

प्रेम से मिल कर चलें बोलें सभी ज्ञानी बने।
पूर्वजो की भांति हम कर्तव्य के मानी बने। ।

'समानी मंत्र : ....... हविषा जुहोमि' अर्थात-


हो विचार समान सबके चित्त मन सब एक हो।
ज्ञान पाते हैं बराबर भोग्य पा सब नेक हों। ।

'समानी व आकूति: ..... सुसहासति'

हो सभी के दिल तथा संकल्प अविरोधी सदा।
मन भरे हो प्रेम से जिससे बढ़े सुख संपदा। ।

कोई भी प्रगतिशीलता के नाम पर यदि उपरोक्त मानव-कल्याण के संदेशों की उपेक्षा करता है और उससे दूर रहने की बात करता है तो स्पष्ट है कि वह समष्टिवादी-साम्यवादी नहीं है। 'साम्यवाद' मूलतः भारतीय अवधारणा है जिसका उल्लेख सम्पूर्ण वेदिक साहित्य मे है। जर्मनी के मैक्स मूलर साहब भारत आए 30 वर्ष यहाँ रह कर संस्कृत का अध्यन करके 'मूल पांडुलिपियाँ' लेकर जर्मनी रवाना हो गए और वहाँ जाकर उनका जर्मनी भाषा मे अनुवाद प्रकाशित करवाया। 'परमाणु विज्ञान' पर जर्मनी मे ही खोज हुई थी और द्वितीय महायुद्ध मे जर्मनी की पराजय पर उसके वैज्ञानिकों को रूस एवं अमेरिका अपने-अपने देश ले गए थे जिनहोने उन देशों को 'परमाणु बम' उपलब्ध करवाए थे -यह अभी कुछ  वर्ष ही पुरानी बात है।

इसी प्रकार मानव कल्याण के तत्वों को सहेज कर 'मानव-विज्ञानी' महर्षि कार्ल मार्क्स ने 'दास कैपिटल' 'एवं 'कम्यूनिस्ट मेनीफेस्टो' नामक ग्रंथ दिये। उस समय जर्मनी और इंग्लैंड के समाज मे जैसा धर्म प्रचलित था उसका तीव्र विरोध महर्षि  मार्क्स ने किया है जो बिलकुल वाजिब है । वस्तुतः वह धर्म था ही नहीं वह तो पुरोहितवाद था किन्तु लोग उसे धर्म कहते थे इसलिए मार्क्स ने भी उसे धर्म कह दिया। इसका यह मतलब नहीं है कि मार्क्स ने मानव-कल्याण हेतु प्रपादित 'धर्म' का विरोध किया है। दुर्भाग्य से अहंकार ग्रस्त नेता लोग मार्क्स के मर्म को न समझ कर शब्दजाल मे उलझाना चाहते और मनुष्य कल्याण की धर्म की भावना का सतत विरोध करके अंततः शोषकों का ही हितसाधन करते हैं। यह तो शोषकों की ही चाल है कि उन्होने ब्रिटिश साम्राज्य की रक्षा हेतु RSS को धर्म का अलमबरदार बना कर खड़ा कर दिया जो 'धर्म' पर ही प्रहार करके 'ढोंग व पाखंड' को धर्म के नाम पर परोसता है। प्रगतिशील तथा साम्यवादी चिंतकों का यह नैतिक दायित्व है कि वे 'धर्म' की वास्तविक अवधारणा से जनता को अवगत कराकर उन्हें शोषण और उत्पीड़न से बचाएं। किन्तु विज्ञान और प्रगतिशीलता का नाम लेकर वे धर्म का ही विरोध करते हैं और इस प्रकार पुरोहितवाद को संरक्षण प्रदान कर देते हैं। 

चूंकि मै सत्य को समझाने का प्रयास करता हूँ इसलिए कुछ बड़े विद्वान अपने अहम के कारण उसका विरोध करते हैं और प्रकारांतर से 'साम्यवाद' विरोधियों का ही पृष्ठ-पोषण करते हैं। पश्चिम बंगाल के ऐसे ही नेताओं के कारण 34 वर्ष का बामपंथी शासन समाप्त हो गया क्योंकि उन्होने 'पश्चिम बंगाल के बंधुओं से एक बेपर की उड़ान' की ओर ध्यान ही नहीं दिया। सी पी एम के लोग अपने व्यक्तिगत मामलों का ज्योतिषीय समाधान मुझ से करवाते हैं और अपने बड़े नेताओं को उकसा कर 'ज्योतिष' एवं 'धर्म' पर कटाक्ष भी करवाते हैं यह दोहरी नीति 'जनहित' की विरोधी है और साम्यवाद की अवधारणा से जनता को दूर करने वाली है। 
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Thursday, March 19, 2015

कामरेड जितेंद्र रघुवंशी की नज़र में कार्ल मार्क्स



उपरोक्त में एक तो कामरेड जितेंद्र रघुवंशी जी लिखित उनका लेख है जिससे उनके क्रांतिकारी विचारों का परिचय होता है दूसरा 'ताज महोत्सव' के परिप्रेक्ष्य में व्यक्त उनके नाट्य- कला के प्रति वेदनात्मक अभिव्यक्ति।
भाकपा,आगरा की कार्यकारिणी में मुझे जितेंद्र जी के साथ कार्य करने का अवसर मिला है IPTA के उनके कार्यक्रमों को देखने भी अधिकांशतः जाते ही थे। उनके साथ व्यक्तिगत रूप से भी विचारों का आदान-प्रदान होता रहता था।

 आगरा से मेरे लखनऊ आने के बाद भी वास्तविकता जानने हेतु मुझ पर ही उन्होने भरोसा किया जबकि बड़े-बड़े दिग्गजों से उनके यहाँ पर संपर्क पहले से ही मौजूद थे। पी एच डी होल्डर एक ब्राह्मण कामरेड ने 60-70 sms भेज कर राष्ट्रीय सचिव कामरेड अतुल अंजान साहब के बारे में अनर्गल-भ्रामक अफवाह उड़ा दी थी जो कि उनके आश्रयदाता वरिष्ठ ब्राह्मण कामरेड द्वारा एक इंगलिश मेगज़ीन में छ्पवाई गई थी :
  • January 11, 2014
  • Jitendra Raghuvanshi
    1/11, 10:53pm
    Jitendra Raghuvanshi

    Anjan ji kee kya nayee khabar hai?
  • January 12, 2014
  • Vijai RajBali Mathur
    1/12, 3:41pm
    Vijai RajBali Mathur

    भाई साहब, लाल सलाम , मैं आपके प्रश्न का आशय समझ नहीं पाया था इसलिए आपके मोबाईल व घर पर फोन किया था। आप शायद कार्यक्रम में होंगे। 10-12-2014 का उनका यह बयान जो उन्होने खुद शेयर किया है आपको संलग्न कर रहा हूँ। वैसे आपको कोई नई बात ज्ञात हो तो सूचित करने का कष्ट करें।

उनका फेसबुक पर लिखा  यह संदेश ही उनका अंतिम संदेश बन गया है। उनकी बातों व यादों को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। :
(विजय राजबली माथुर )
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यही लेख 'साम्यवाद (COMMUNIST)' ब्लाग पर भी उपलब्ध है :
http://communistvijai.blogspot.in/2015/03/blog-post_19.html
  ~विजय राजबली माथुर ©
 इस पोस्ट को यहाँ भी पढ़ा जा सकता है। 
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Friday, March 13, 2015

‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ मूवमेंट भारत में राजनैतिक अस्थिरता के लिए खड़ा हुआ

प्रस्तुत लेख आ आ पा और कांग्रेस में मिलीभगत को इंगित करता है। 2011 से ही अपने ब्लाग http://krantiswar.blogspot.in/ के माध्यम से स्पष्ट करता रहा हूँ कि हज़ारे/केजरीवाल/रामदेव के कारपोरेट भ्रष्टाचार संरक्षण आंदोलन को कांग्रेस के मनमोहन सिंह गुट/RSS का समान समर्थन रहा है। जब मनमोहन जी को तीसरी बार पी एम बनाने का आश्वासन नहीं मिला तो मोदी को पी एम बनवा दिया गया है और मोदी के विकल्प के रूप में केजरीवाल को तैयार किया जा रहा है। RSS के कांग्रेस मुक्त भारत की परिकल्पना को अमेरिका प्रवास के दौरान जस्टिस काटजू साहब बखूबी संवार रहे हैं महात्मा गांधी,नेताजी सुभाष और जिन्नाह साहब के विरुद्ध विष-वमन करके। मनमोहन जी के विकल्प के रूप में मोदी व मोदी के विकल्प के रूप में केजरीवाल की ताजपोशी की रूप रेखा व्हाईट हाउस में बराक ओबामा के निर्देश पर तैयार की गई थी और निर्वाचन प्राणाली की खामियों तथा ई वी एम के करिश्मे के जरिये उस पर जनता की मोहर लगवा ली गई है। परंतु साम्यवादियों/वामपंथियों का केजरीवाल की परिक्रमा करना आत्मघाती तो है ही बल्कि देश के लिए भी अहितकर है। ---विजय राजबली माथुर
 --------------------------"आआप" की हकीक़त--------------------------------
 अरविंद लंबे अरसे तक राजस्व विभाग से छुटटी लेकर भी सरकारी तनख्वाह ले रहे थे और एनजीओ से भी वेतन उठा रहे थे, जो ‘श्रीमान ईमानदार’ को कानूनन भ्रष्‍टाचारी की श्रेणी में रखता है। वर्ष 2006 में ‘परिवर्तन’ में काम करने के दौरान ही उन्हें अमेरिकी ‘फोर्ड फाउंडेशन’ व ‘रॉकफेलर ब्रदर्स फंड’ ने ‘उभरते नेतृत्व’ के लिए ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ पुरस्कार दिया, जबकि उस वक्त तक अरविंद ने ऐसा कोई काम नहीं किया था, जिसे उभरते हुए नेतृत्व का प्रतीक माना जा सके। इसके बाद अरविंद अपने पुराने सहयोगी मनीष सिसोदिया के एनजीओ ‘कबीर’ से जुड़ गए, जिसका गठन इन दोनों ने मिलकर वर्ष 2005 में किया था। अरविंद को समझने से पहले ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ को समझ लीजिए! अमेरिकी नीतियों को पूरी दुनिया में लागू कराने के लिए अमेरिकी खुफिया ब्यूरो ‘सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (सीआईए)’ अमेरिका की मशहूर कार निर्माता कंपनी ‘फोर्ड’ द्वारा संचालित ‘फोर्ड फाउंडेशन’ एवं कई अन्य फंडिंग एजेंसी के साथ मिलकर काम करती रही है। 1953 में फिलिपिंस की पूरी राजनीति व चुनाव को सीआईए ने अपने कब्जे में ले लिया था। भारतीय अरविंद केजरीवाल की ही तरह सीआईए ने उस वक्त फिलिपिंस में ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ को खड़ा किया था और उन्हें फिलिपिंस का राष्ट्रपति बनवा दिया था। अरविंद केजरीवाल की ही तरह ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ का भी पूर्व का कोई राजनैतिक इतिहास नहीं था। ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ के जरिए फिलिपिंस की राजनीति को पूरी तरह से अपने कब्जे में करने के लिए अमेरिका ने उस जमाने में प्रचार के जरिए उनका राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय ‘छवि निर्माण’ से लेकर उन्हें ‘नॉसियोनालिस्टा पार्टी’ का उम्मीदवार बनाने और चुनाव जिताने के लिए करीब 5 मिलियन डॉलर खर्च किया था। तत्कालीन सीआईए प्रमुख एलन डॉउल्स की निगरानी में इस पूरी योजना को उस समय के सीआईए अधिकारी ‘एडवर्ड लैंडस्ले’ ने अंजाम दिया था। इसकी पुष्टि 1972 में एडवर्ड लैंडस्ले द्वारा दिए गए एक साक्षात्कार में हुई। ठीक अरविंद केजरीवाल की ही तरह रेमॉन मेग्सेसाय की ईमानदार छवि को गढ़ा गया और ‘डर्टी ट्रिक्स’ के जरिए विरोधी नेता और फिलिपिंस के तत्कालीन राष्ट्रपति ‘क्वायरिनो’ की छवि धूमिल की गई। यह प्रचारित किया गया कि क्वायरिनो भाषण देने से पहले अपना आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए ड्रग का उपयोग करते हैं। रेमॉन मेग्सेसाय की ‘गढ़ी गई ईमानदार छवि’ और क्वायरिनो की ‘कुप्रचारित पतित छवि’ ने रेमॉन मेग्सेसाय को दो तिहाई बहुमत से जीत दिला दी और अमेरिका अपने मकसद में कामयाब रहा था। भारत में इस समय अरविंद केजरीवाल बनाम अन्य राजनीतिज्ञों की बीच अंतर दर्शाने के लिए छवि गढ़ने का जो प्रचारित खेल चल रहा है वह अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए द्वारा अपनाए गए तरीके और प्रचार से बहुत कुछ मेल खाता है। उन्हीं ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ के नाम पर एशिया में अमेरिकी नीतियों के पक्ष में माहौल बनाने वालों, वॉलेंटियर तैयार करने वालों, अपने देश की नीतियों को अमेरिकी हित में प्रभावित करने वालों, भ्रष्‍टाचार के नाम पर देश की चुनी हुई सरकारों को अस्थिर करने वालों को ‘फोर्ड फाउंडेशन’ व ‘रॉकफेलर ब्रदर्स फंड’ मिलकर अप्रैल 1957 से ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ अवार्ड प्रदान कर रही है। ‘आम आदमी पार्टी’ के संयोजक अरविंद केजरीवाल और उनके साथी व ‘आम आदमी पार्टी’ के विधायक मनीष सिसोदिया को भी वही ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ पुरस्कार मिला है और सीआईए के लिए फंडिंग करने वाली उसी ‘फोर्ड फाउंडेशन’ के फंड से उनका एनजीओ ‘कबीर’ और ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ मूवमेंट खड़ा हुआ है। भारत में राजनैतिक अस्थिरता के लिए एनजीओ और मीडिया में विदेशी फंडिंग! ‘फोर्ड फाउंडेशन’ के एक अधिकारी स्टीवन सॉलनिक के मुताबिक ‘‘कबीर को फोर्ड फाउंडेशन की ओर से वर्ष 2005 में 1 लाख 72 हजार डॉलर एवं वर्ष 2008 में 1 लाख 97 हजार अमेरिकी डॉलर का फंड दिया गया।’’ यही नहीं, ‘कबीर’ को ‘डच दूतावास’ से भी मोटी रकम फंड के रूप में मिली। अमेरिका के साथ मिलकर नीदरलैंड भी अपने दूतावासों के जरिए दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में अमेरिकी-यूरोपीय हस्तक्षेप बढ़ाने के लिए वहां की गैर सरकारी संस्थाओं यानी एनजीओ को जबरदस्त फंडिंग करती है। अंग्रेजी अखबार ‘पॉयनियर’ में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक डच यानी नीदरलैंड दूतावास अपनी ही एक एनजीओ ‘हिवोस’ के जरिए नरेंद्र मोदी की गुजरात सरकार को अस्थिर करने में लगे विभिन्‍न भारतीय एनजीओ को अप्रैल 2008 से 2012 के बीच लगभग 13 लाख यूरो, मतलब करीब सवा नौ करोड़ रुपए की फंडिंग कर चुकी है। इसमें एक अरविंद केजरीवाल का एनजीओ भी शामिल है। ‘हिवोस’ को फोर्ड फाउंडेशन भी फंडिंग करती है। डच एनजीओ ‘हिवोस’ दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में केवल उन्हीं एनजीओ को फंडिंग करती है,जो अपने देश व वहां के राज्यों में अमेरिका व यूरोप के हित में राजनैतिक अस्थिरता पैदा करने की क्षमता को साबित करते हैं। इसके लिए मीडिया हाउस को भी जबरदस्त फंडिंग की जाती है। एशियाई देशों की मीडिया को फंडिंग करने के लिए अमेरिका व यूरोपीय देशों ने ‘पनोस’ नामक संस्था का गठन कर रखा है। दक्षिण एशिया में इस समय ‘पनोस’ के करीब आधा दर्जन कार्यालय काम कर रहे हैं। ‘पनोस’ में भी फोर्ड फाउंडेशन का पैसा आता है। माना जा रहा है कि अरविंद केजरीवाल के मीडिया उभार के पीछे इसी ‘पनोस’ के जरिए ‘फोर्ड फाउंडेशन’ की फंडिंग काम कर रही है। ‘सीएनएन-आईबीएन’ व ‘आईबीएन-7’ चैनल के प्रधान संपादक राजदीप सरदेसाई ‘पॉपुलेशन काउंसिल’ नामक संस्था के सदस्य हैं, जिसकी फंडिंग अमेरिका की वही ‘रॉकफेलर ब्रदर्स’ करती है जो ‘रेमॉन मेग्सेसाय’ पुरस्कार के लिए ‘फोर्ड फाउंडेशन’ के साथ मिलकर फंडिंग करती है। माना जा रहा है कि ‘पनोस’ और ‘रॉकफेलर ब्रदर्स फंड’ की फंडिंग का ही यह कमाल है कि राजदीप सरदेसाई का अंग्रेजी चैनल ‘सीएनएन-आईबीएन’ व हिंदी चैनल ‘आईबीएन-7’ न केवल अरविंद केजरीवाल को ‘गढ़ने’ में सबसे आगे रहे हैं, बल्कि 21 दिसंबर 2013 को ‘इंडियन ऑफ द ईयर’ का पुरस्कार भी उसे प्रदान किया है। ‘इंडियन ऑफ द ईयर’ के पुरस्कार की प्रयोजक कंपनी ‘जीएमआर’ भ्रष्‍टाचार में में घिरी है। ‘जीएमआर’ के स्वामित्व वाली ‘डायल’ कंपनी ने देश की राजधानी दिल्ली में इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा विकसित करने के लिए यूपीए सरकार से महज 100 रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से जमीन हासिल किया है। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ‘सीएजी’ ने 17 अगस्त 2012 को संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा था कि जीएमआर को सस्ते दर पर दी गई जमीन के कारण सरकारी खजाने को 1 लाख 63 हजार करोड़ रुपए का चूना लगा है। इतना ही नहीं, रिश्वत देकर अवैध तरीके से ठेका हासिल करने के कारण ही मालदीव सरकार ने अपने देश में निर्मित हो रहे माले हवाई अड्डा का ठेका जीएमआर से छीन लिया था। सिंगापुर की अदालत ने जीएमआर कंपनी को भ्रष्‍टाचार में शामिल होने का दोषी करार दिया था। तात्पर्य यह है कि अमेरिकी-यूरोपीय फंड, भारतीय मीडिया और यहां यूपीए सरकार के साथ घोटाले में साझीदार कारपोरेट कंपनियों ने मिलकर अरविंद केजरीवाल को ‘गढ़ा’ है, जिसका मकसद आगे पढ़ने पर आपको पता चलेगा। ‘जनलोकपाल आंदोलन’ से ‘आम आदमी पार्टी’ तक का शातिर सफर! आरोप है कि विदेशी पुरस्कार और फंडिंग हासिल करने के बाद अमेरिकी हित में अरविंद केजरीवाल व मनीष सिसोदिया ने इस देश को अस्थिर करने के लिए ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ का नारा देते हुए वर्ष 2011 में ‘जनलोकपाल आंदोलन’ की रूप रेखा खिंची। इसके लिए सबसे पहले बाबा रामदेव का उपयोग किया गया, लेकिन रामदेव इन सभी की मंशाओं को थोड़ा-थोड़ा समझ गए थे। स्वामी रामदेव के मना करने पर उनके मंच का उपयोग करते हुए महाराष्ट्र के सीधे-साधे, लेकिन भ्रष्‍टाचार के विरुद्ध कई मुहीम में सफलता हासिल करने वाले अन्ना हजारे को अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली से उत्तर भारत में ‘लॉंच’ कर दिया। अन्ना हजारे को अरिवंद केजरीवाल की मंशा समझने में काफी वक्त लगा, लेकिन तब तक जनलोकपाल आंदोलन के बहाने अरविंद ‘कांग्रेस पार्टी व विदेशी फंडेड मीडिया’ के जरिए देश में प्रमुख चेहरा बन चुके थे। जनलोकपाल आंदोलन के दौरान जो मीडिया अन्ना-अन्ना की गाथा गा रही थी, ‘आम आदमी पार्टी’ के गठन के बाद वही मीडिया अन्ना को असफल साबित करने और अरविंद केजरीवाल के महिमा मंडन में जुट गई। विदेशी फंडिंग तो अंदरूनी जानकारी है, लेकिन उस दौर से लेकर आज तक अरविंद केजरीवाल को प्रमोट करने वाली हर मीडिया संस्थान और पत्रकारों के चेहरे को गौर से देखिए। इनमें से अधिकांश वो हैं, जो कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के द्वारा अंजाम दिए गए 1 लाख 76 हजार करोड़ के 2जी स्पेक्ट्रम, 1 लाख 86 हजार करोड़ के कोल ब्लॉक आवंटन, 70 हजार करोड़ के कॉमनवेल्थ गेम्स और ‘कैश फॉर वोट’ घोटाले में समान रूप से भागीदार हैं। आगे बढ़ते हैं…! अन्ना जब अरविंद और मनीष सिसोदिया के पीछे की विदेशी फंडिंग और उनकी छुपी हुई मंशा से परिचित हुए तो वह अलग हो गए, लेकिन इसी अन्ना के कंधे पर पैर रखकर अरविंद अपनी ‘आम आदमी पार्टी’ खड़ा करने में सफल रहे। जनलोकपाल आंदोलन के पीछे ‘फोर्ड फाउंडेशन’ के फंड को लेकर जब सवाल उठने लगा तो अरविंद-मनीष के आग्रह व न्यूयॉर्क स्थित अपने मुख्यालय के आदेश पर फोर्ड फाउंडेशन ने अपनी वेबसाइट से ‘कबीर’ व उसकी फंडिंग का पूरा ब्यौरा ही हटा दिया। लेकिन उससे पहले अन्ना आंदोलन के दौरान 31 अगस्त 2011 में ही फोर्ड के प्रतिनिधि स्टीवेन सॉलनिक ने ‘बिजनस स्टैंडर’ अखबार में एक साक्षात्कार दिया था, जिसमें यह कबूल किया था कि फोर्ड फाउंडेशन ने ‘कबीर’ को दो बार में 3 लाख 69 हजार डॉलर की फंडिंग की है। स्टीवेन सॉलनिक के इस साक्षात्कार के कारण यह मामला पूरी तरह से दबने से बच गया और अरविंद का चेहरा कम संख्या में ही सही, लेकिन लोगों के सामने आ गया। सूचना के मुताबिक अमेरिका की एक अन्य संस्था ‘आवाज’ की ओर से भी अरविंद केजरीवाल को जनलोकपाल आंदोलन के लिए फंड उपलब्ध कराया गया था और इसी ‘आवाज’ ने दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए भी अरविंद केजरीवाल की ‘आम आदमी पार्टी’ को फंड उपलब्ध कराया। सीरिया, इजिप्ट, लीबिया आदि देश में सरकार को अस्थिर करने के लिए अमेरिका की इसी ‘आवाज’ संस्था ने वहां के एनजीओ, ट्रस्ट व बुद्धिजीवियों को जमकर फंडिंग की थी। इससे इस विवाद को बल मिलता है कि अमेरिका के हित में हर देश की पॉलिसी को प्रभावित करने के लिए अमेरिकी संस्था जिस ‘फंडिंग का खेल’ खेल खेलती आई हैं, भारत में अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और ‘आम आदमी पार्टी’ उसी की देन हैं। सुप्रीम कोर्ट के वकील एम.एल.शर्मा ने अरविंद केजरीवाल व मनीष सिसोदिया के एनजीओ व उनकी ‘आम आदमी पार्टी’ में चुनावी चंदे के रूप में आए विदेशी फंडिंग की पूरी जांच के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल कर रखी है। अदालत ने इसकी जांच का निर्देश दे रखा है, लेकिन केंद्रीय गृहमंत्रालय इसकी जांच कराने के प्रति उदासीनता बरत रही है, जो केंद्र सरकार को संदेह के दायरे में खड़ा करता है। वकील एम.एल.शर्मा कहते हैं कि ‘फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट-2010’ के मुताबिक विदेशी धन पाने के लिए भारत सरकार की अनुमति लेना आवश्यक है। यही नहीं, उस राशि को खर्च करने के लिए निर्धारित मानकों का पालन करना भी जरूरी है। कोई भी विदेशी देश चुनावी चंदे या फंड के जरिए भारत की संप्रभुता व राजनैतिक गतिविधियों को प्रभावित नहीं कर सके, इसलिए यह कानूनी प्रावधान किया गया था, लेकिन अरविंद केजरीवाल व उनकी टीम ने इसका पूरी तरह से उल्लंघन किया है। बाबा रामदेव के खिलाफ एक ही दिन में 80 से अधिक मुकदमे दर्ज करने वाली कांग्रेस सरकार की उदासीनता दर्शाती है कि अरविंद केजरीवाल को वह अपने राजनैतिक फायदे के लिए प्रोत्साहित कर रही है।
 साभार :
 https://www.facebook.com/dhruva.n.gupta/posts/10153868256385752 
 ~विजय राजबली माथुर ©
 इस पोस्ट को यहाँ भी पढ़ा जा सकता है। 
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Wednesday, March 4, 2015

क्रांतिकारी लाला हरदयाल ---अरविन्द विद्रोही/संजोग वाल्टर


Lala Har Dayal (October 14, 1884, Delhi, India - March 4, 1939, Philadelphia, Pennsylvania) was an Indian nationalist revolutionary who founded the Ghadar Party in America. He was a polymath who turned down a career in the Indian Civil Service. His simple living and intellectual acumen inspired many expatriate Indians living in Canada and the USA to fight against British Imperialism during the First World War.

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FRIDAY, MARCH 2, 2012
कुशल वक्ता ,उच्च कोटि के लेखक, क्रांतिकारी लाला हरदयाल ..................अरविन्द विद्रोही
  प्रतिदिन सूर्य उदय होता है ,अस्त होता है ,रात्रि अपना अंधकार फैलाती है | मानव जीवन की शुरुआत का अर्थ ही मौत का निश्चित आना है | ३ मार्च की रात विलक्षण प्रतिभा के धनी लाला हरदयाल जो सोये तो सोते ही रह गये | ४ मार्च की सुबह अनपेक्षित रूप से वे फिलाडेल्फिया-अमेरिका में मृत्यु की आगोश में चले गये | लाला हरदयाल कुशल वक्ता व उच्च कोटि के लेखक थे | दीनबंधु एंड्रूज के अनुसार यदि लाला हरदयाल का जन्म शांति के समय में होता तो वो अपनी बुद्धि का उपयोग आश्चर्य जनक कार्यो के लिए करते | लाला हरदयाल ने उन्हें विलक्षण आदर्श वादी करार दिया | पेशकार गौरी दयाल माथुर के पुत्र रत्न रूप में लाला हरदयाल का जन्म दिल्ली में हुआ था | सेंट स्टीफेन कॉलेज दिल्ली से कला स्नातक की उपाधि लाला हरदयाल ने ली | राजकीय कॉलेज लाहौर से एक ही वर्ष में अंग्रेजी साहित्य में तथा अगले वर्ष इतिहास में परास्नातक किया | दिल्ली में लाला हरदयाल क्रान्तिकारियो के प्रति आकर्षित हो गये | मास्टर अमीर चन्द्र ,भाई बाल मुकुंद और हनुमंत सहाय जैसे विख्यात क्रांतिकारी इनके मित्र थे | लार्ड हार्डिंग्ज बम कांड में चार क्रान्तिकारियो को सजा मिली थी | उच्च शिक्षा के लिए आप लन्दन गये ,फिर कुछ दिन बाद भारत वापस लौट आये | लाला हरदयाल ने कुछ समय के बाद लाहौर में एक संस्था की स्थापना की यहाँ उनकी मुलाकात लाला लाजपत राय से हुई | लाला हरदयाल ने स्वदेशी मंत्र को अपने जीवन में आत्म सात कर लिया था | भारत सरकार और आक्सफोर्ड विद्या पीठ की छात्र-वृत्ति को नकार दिया था | अंग्रेजी पोशाक को भी ठुकरा दिया था | निमोनिया होने पर घर की बनी हुई दवाइयों का सेवन किया | लाहौर के आश्रम में रहते हुये लाला हरदयाल ने पंजाबी भाषा में अख़बार निकाला | लाहौर के आश्रम में कार्यकर्ताओ की भर्ती के लिए लाला हरदयाल कानपुर के प्रसिध्द वकील पृथ्वी नाथ समाजसेवी के घर पधारे | उनके सादगी पूर्ण और तपस्वी जीवन का युवको पर बहुत प्रभाव पड़ा | पंजाब में अकाल के दौरान संकट ग्रस्त लोगो की जो सेवा उन्होंने की थी , उसके कारण उनकी लोकप्रियता बहुत बढ़ गयी थी | पुलिस लाला हरदयाल को गिरफ्तार करने का मौका तलाशने लगी | लाला लाजपत राय ने लाला हरदयाल को भारत छोड़ कर विदेश जाने के लिए प्रेरित किया | लाला हरदयाल कोलम्बो मार्ग से इटली होकर फ्रांस पहुचे | फ्रांस में श्याम जी कृष्ण वर्मा और उनके सहयोगी दल सक्रिय था | मैडम कामा ने वन्देमातरम अख़बार का संपादक लाला हरदयाल को बना दिया | प्रथम अंक मदन लाल धींगरा की स्मृति को समर्पित किया गया | वन्देमातरम के अंक बलिदान गाथाओ से भरे होते थे | भारतीओं को देश भक्ति की प्रेरणा मिलती थी- वन्देमातरम के अंको से | ब्रिटिश सरकार की नज़रे लाला हरदयाल को तलाशते हुये पेरिस आ गयी | ब्रिटिश सरकार फ्रांस सरकार पर क्रान्तिकारियो की गिरफ़्तारी के लिए दबाव बनाने लगी | इन परिस्थितियो में लाला हरदयाल इजिप्ट-मिस्र चले गये | वहा इजिप्शियन क्रान्तिकारियो से परिचय हुआ | कुछ समय बाद वे पुनः पेरिस आये परन्तु ब्रिटिश सरकार अभी भी चौकन्नी थी | लाला हरदयाल ला मार्टिनिक नामक समुद्री तट जो कि वेस्ट इंडीज में स्थित है वहा पहुचे | यह फ्रांसीसियो की बस्ती थी | लाला हरदयाल फ्रेंच जानते थे | वहा भरपूर नैसर्गिक सौंदर्य विद्यमान था | स्थानीय लोगो को अंग्रेजी पढ़ा कर वे अपना पेट पालने लगे | यहाँ नैसर्गिक वातावरण में उन्होंने अपनी स्वाभाविक आध्यात्मिक वृत्ति को बढ़ावा दिया | पहाड़ो की गुफाओ में उन्होंने तपस्या की | सब्जी-फल जो मिलता खा लेते | शाम को स्थानीय ग्रंथालय में बिताते | वे पूरी तरह से सन्यासियो और वैरागियो का जीवन जी रहे थे | भाई परमानन्द प्रसिद्ध क्रांतिकारी भी ला मार्टिनिक आ पहुचे | दयानंद कॉलेज में प्राचार्य का पद छोड़ने के बाद भाई परमानन्द लन्दन आ गये थे | भाई परमानन्द को लाहौर कांड में फांसी की सजा मिली थी जो बाद में आजीवन काले पानी की सजा में तब्दील हो गयी थी | लाला हरदयाल पेरिस में बिताये जा रहे अपने जीवन और लोगो की स्वार्थ वृति से उकता गये थे | माह भर भाई परमानन्द लाला हरदयाल साथ ही रहे | भाई परमानन्द लाला हरदयाल को क्रांतिकारी आन्दोलन में पुनः लाने में सफल रहे | लाला हरदयाल ला मार्टिनिक से बोस्टन, बोस्टन से अमेरिका , अमेरिका से होनोलुलू पहुचे | समुद्र किनारे गुफा में तपस्या ,मजदूरों को धर्मोपदेश और क्रांति साधना यही दिनचर्या थी लाला हरदयाल की |अब लाला हरदयाल शिक्षा जगत में भारतीओं के मन में देश प्रेम जगाने में जुटे थे | भाई परमानन्द के कहने पर वे कैलिफोर्निया पहुचे | वहा एक छात्र वृत्ति देने के लिए समिति का गठन किया | लाला हरदयाल ने सान फ्रांसिस्को में और बर्कले में कुछ भाषण दिये ,जिससे प्रभावित होकर इन्हें लेलैंड - स्टेनफोर्ड विद्यापीठ में संस्कृत और भारतीय दर्शन के प्राध्यापक पद पर रखा गया , जिसे लाला हरदयाल ने अवैतनिक रूप से स्वीकार किया | संपूर्ण अमेरिका में लाला हरदयाल की छवि एक भारतीय ऋषि की हो गयी थी | अपनी लोकप्रियता का उपयोग उन्होंने क्रन्तिकार्य को आगे बढ़ाने में किया | २३ दिसंबर ,१९१२ को दिल्ली में लार्ड हार्डिंग्ज पर बम फैंका गया | खबर सुनकर लाला हरदयाल और विद्यार्थियो ने अमेरिका में वन्देमातरम और भारत माता की जय के नारे लगाये | सार्वजनिक सभा में जय घोष हुआ | युगांतर सर्कुलर नामक पत्र में छपे लाला हरदयाल के लेखो का दुनिया भर में बम विस्फोट से ज्यादा प्रभाव हुआ | सान फ्रांसिस्को का युगांतर आश्रम ग़दर पार्टी का मुख्यालय था | इस आश्रम में अनेको क्रांतिकारी तपोमय जीवन व्यतीत कर रहे थे | ग़दर पार्टी का नाम पहले द हिंदुस्तान एसोसियशन ऑफ़ पेसिपक एशियन था | ग़दर पार्टी के अध्यक्ष सोहन सिंह भागना , लाला हरदयाल मंत्री तथा पंडित काशीराम कोषाध्यक्ष थे | ग़दर पत्र उर्दू और पंजाबी भाषा में निकलता था | लाला हरदयाल के ओजस्वी लेखन से ग़दर के प्रचार-प्रसार के साथ साथ धन संघर्ष भी बढ़ रहा था | २५ मार्च , १९१३ को अमेरिकी सरकार ने लाला हरदयाल को गिरफ्तार कर लिया | जमानत पर रिहा होने के बाद ग़दर पार्टी के अनुरोध पर वे तुर्की से जिनेवा ,फिर रामदास नाम से २७ जनवरी , १९१५ को जिनेवा से बर्लिन जा पहुचे | प्रथम विश्व युद्ध का दौर था | लाला हरदयाल ने बर्लिन कमेटी की स्थापना करके यहाँ भी स्वतंत्रता की लडाई जारी रखी | चम्पक रमण पिल्लै , तारक नाथ दास , अब्दुल हाफिज़ मोहम्मद बरकतुल्ला , डॉ चन्द्रकान्त चक्रवर्ती , डॉ भूपेंद्र नाथ दत्त , डॉ प्रभाकर , वीरेन्द्र सरकार एवं वीरेन्द्र चटोपाध्याय प्रमुख क्रांतिकारी बर्लिन में क्रांति मिशन का संचालन कर रहे थे | लाला हरदयाल के आने से साहित्य का निर्माण और भी तेजी से होने लगा | बर्लिन कमेटी ने योजना बनायीं कि जब भारत में विद्रोह हो तभी अंग्रेजो के शत्रु देश भी आक्रमण करे | ग़दर पार्टी ने विद्रोह की तारीख तय की २१ फ़रवरी,१९१५ | लाला हरदयाल ने फ्रांस,स्वीडन,नार्वे,स्विट्जर्लैंड ,इटली ,आस्ट्रिया आदि देशो के क्रान्तिकारियो से संपर्क करके भारत की क्रांति के लिए पोषक वातावरण बनाया | जर्मनी में युद्ध बंदी के पश्चात् लौटे सैनिको को भी आज़ादी की जंग में उतरने कि तैयारी हो गयी | इसी समय राजा महेंद्र प्रताप ने जर्मनी पहुच कर कैसर विलियम को प्रभावित करके जर्मनी और भारतीय सदस्यों का शिष्ट मंडल बनाया और अफगानिस्तान में अस्थायी आजाद हिंद सरकार की स्थापना की | जर्मनी से क्रान्तिकारियो के लिए शास्त्रों से भरे अनेक जहाज भारत भेजे गये | अंग्रेजो ने इन जहाजो को पकड़ लिया | जर्मनी पराजित होने लगा था | जर्मनी ने लाला हरदयाल को १९१६ से १९१७ तक नज़रबंद रखा | बाद में छिपते हुये स्वीडन पहुचे लाला हरदयाल अलग अलग शहरो में नौ वर्षो तक रहे | स्वीडिश भाषा सीख़ ली और स्वीडिश भाषा में ही अपना भाषण-संभाषण और अध्यापन करने लगे | चौदह भाषाओ पर पुर्नाधिकार था माँ भारती के इस क्रांति ज्वाला का | २७ अक्टूबर,१९२७ को लाला हरदयाल लन्दन पहुचे | लन्दन में भाई किशन लाल और भतीजे भगवत दयाल के साथ रहते हुये उन्होंने १९३१ में गौतम बुद्ध के दार्शनिक विचारो पर शोध ग्रन्ध लिखकर पी एच डी की उपाधि प्राप्त की | सर तेज़ बहादुर सप्रू और सी एफ एंड्रूज के प्रयत्नों से उन्हें भारत आने की अनुमति मिली | भारतीय जनता इस विलक्षण , बुद्दिमान और विश्व विख्यात व्यक्तित्व वाले भारत पुत्र के आगमन का स्वागत करने की तैयारी में लगी थी परन्तु लाला हरदयाल नहीं आये उनके मृत्यु की खबर ही एकाएक भारत आ गयी |

  1. क्रांतिकारी लाला हरदयाल जी पर विस्तृत जानकारी प्राप्त हुई। क्रांतिकारियों का स्मरण पुण्य कार्य है।