Tuesday, May 31, 2011

जीवन-स्वास्थ्य-मृत्यु के ज्योतिषीय चिन्ह (भाग २ )

पिछले अंक में जीवन-रेखा पर स्वास्थ्य और मृत्यु के सम्बन्ध  पाए जाने वाले  चिन्हों से परिचित कराया था. उसी कड़ी में पहले कीरो साहब की ही चर्चा करते हैं.कीरो साहब सम्राट एडवर्ड,ब्रसेल्स के सम्राट लियोपोल्ट,रूस के सम्राट आदि को सफलता पूर्वक आगाह कर चुके थे जिनकी चर्चा अखबारों में हुई थी. अतः इटली के सहज एवं व्यवहारिक सम्राट हम्बर्ट जिनकी ह्त्या करने की एक असफल कोशिश पहले हो चुकी थी ने कीरो साहब को अपने महल में बुलाया था.उनकी रानी भी सुन्दर व शालीन थीं.

सम्राट हम्बर्ट की हथेली में जीवन -रेखा एक स्थान पर टूटी हुयी थी जिससे गणना करके कीरो साहब इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि इटली के सम्राट का जीवन एक खतरनाक घड़ी में प्रवेश कर चुका है.शनि के चरम दुष्ट प्रभाव के मद्देनजर उन्होंने सम्राट को चेतावनी दे दी कि वह इधर-उधर जाते समय पूरी सावधानी बरतें,जहाँ तक संभव हो यात्राएं न करें और लोगों में कम से कम दिखाई दें.वह इस पर हंसने लगे-"कीरो,आप द्वारा दी गयी चेतावनी के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद .कुछ समय से मैं यह बात जानता हूँ कि एक व्यक्ति के रूप में मुझे मौत की सजा सुनाई जा चुकी है."कीरो कहते हैं उन्होंने लापरवाही से अपने कन्धों को झटका और कहा-"मेरे लिए अपनी जनता की भलाई सबसे पहले है."



मुश्किल से तीन माह हुए होंगें कीरो पेरिस गए थे जहाँ उन्हें दुखद समाचार मिला कि अपनी गाडी में जाते हुए हम्बर्ट की एक आतंकवादी ने ह्त्या कर दी. अखबार कीरो द्वारा दी गयी चेतावनियों से भरे पड़े थे परन्तु इटली का बहादुर सम्राट अपनी टूटी जीवन-रेखा के कारण जिन्दगी से टूट गया.

कीरो की अन्य चेतावनियाँ-

यदि जीवन-रेखा बाईं हथेली में टूटी हुयी हो लेकिन दायीं हथेली में जुडी हुयी हो तो यह किसी खतरनाक बीमारी और संभावित मृत्यु से बाल-बाल बच निकलने की और संकेत करती है.

कभी-कभी एक दोहरी जीवन-रेखा देखने को मिलती है .इस भीतरी रेखा को मंगल -रेखा कहते हैं .यह प्रबल शक्ति का प्रतीक है.ऐसी रेखा शारीरिक रूप से बलिष्ठ उद्यम करने की अपार क्षमता वाले लोगों में होती है ;विश्व के कुछ जाने-माने उद्योगपतियों की हथेली में यह दोहरी जीवन-रेखा बहुत ही स्पष्ट रूप से देखने में आयी है.

यदि यह मंगल रेखा टूटी हुयी जीवन-रेखा के पीछे चलती हुयी दिखाई दे तो बिसका अर्थ है कि चाहे जीवन में कितनी भी बड़ी बीमारियाँ या दुर्घटनाएं घटित  क्यों न हों जाएँ-उस व्यक्ति का जीवन चलता रहता है.

जब मंगल-रेखा की एक शाखा जीवन-रेखा को लांघ कर हथेली के दूसरी तरफ निकल जाती है तो यह खतरों की उग्रता व अनिश्चितताओं के प्रति सावधान करती है.जहाँ यह जीवन -रेखा को काटती है,वहां स्वंय यह मृत्यु के लिए एक  ख़तरा है. 

ध्यान रखने योग्य बात यह है कि एक चौड़ी -उथली रेखा एक स्वस्थ-बलिष्ठ शरीर का प्रतीक नहीं भी हो सकती है बल्कि यह उतना अच्छा लक्षण नहीं है.एक स्पष्ट,गहरी व पतली रेखा ही अच्छा लक्षण है.एक चौड़ी जीवन-रेखा का सम्बन्ध उन लोगों से होता है जिनमें पशुओं जैसा बाहुबल है.जबकि गहरी जीवन-रेखा उन लोगों में मिलती है जिनके पास मानसिक व इच्छाशक्ति अधिक है.तनाव व बीमारी की स्थिति में गहरी रेखा जम कर मुकाबला करती है जबकि चौड़ी दिखने वाली जीवन-रेखा में इतनी शक्ति नहीं होती.

बहुत चौड़ी रेखाएं इच्छाशक्ति की तुलना में शारीरिक शक्ति का प्रतीक अधिक हैं.यदि यह रेखा छोटे-छोटे टुकड़ों से जुड़ कर बनी हो तो स्वास्थ्य का प्रतीक है.कठोर हाथों में यही चिन्ह उतनी खराब स्थिति की और संकेत नहीं करते क्योंकि कठोर व मजबूत हाथ स्वंय में ही अच्छे शारीरिक गठन का प्रातीक हैं.

यदि जीवन-रेखा सीधी जाती हुयी शुक्र के उभार के किनारे की और जाती है और उस उभार को संकरा कर देती है तो यह एक कमजोर शारीरिक गठन का प्रातीक है.ऐसे व्यक्ति में पाशविक चुम्बकीय शक्ति भी कम होती है.

यदि जीवन-रेखा हथेली में कोई वक्र-रेखा या अर्धगोलाकार आकृति बनाती है तो इसे 'ग्रेट पायर आर्च' कहते हैं .यह रक्त को अंगूठे की जड़ तक पहुंचाती है और फिर उसे 'आर्च' की दूसरी तरफ जीवन-रेखा के नीचे ले जाने का काम करती है.

आमतौर पर यह देखा गया है कि वे लोग जो बहुत शीघ्र बीमार पड़  जाते है उनके  'पामर आव आर्च'का घेरा स्वस्थ लोगों की तुलना में काफी संक्रा होता है.
यही कारण है कि जब हथेली में शुक्र का उभार अधिक हो तो उसे कम बड़े उभार की तुलना में अत्यधिक कामवासना की प्रवृति का सूचक माना जाता है.

जब मस्तिष्क रेखा नीचे की और झुकती हुयी दिखाई दे तो यह शुक्र के गुणों की और संकेत करती है.(मस्तिष्क रेखा का उद्गम जीवन रेखा से ही होता है और यह हथेली में बीचों-बीच होती है) जैसे कि कल्पनाशील व रोमांटिक स्वभाव.इससे यह भी पता चलता है कि इन लोगों में उन लोगों की बनिस्बत जिनकी मस्तिष्क रेखा हथेली के आर-पार निकल जाती है ,प्रेम के चक्कर में जल्दी पड़ जाने की आदत अधिक होती है.

यदि जीवन-रेखा ब्रहस्पति के उभार की और काफी ऊंची उठती है तो वह व्यक्ति स्वंय पर काफी नियंत्रण रखता है और उसकी महत्वाकांक्षाएं उसके जीवन की दिशा तय करती हैं.यदि यह रेखा मंगल की रेखा के समीप हथेली पर काफी नीचे से निकलती हो तो ऐसे व्यक्ति का अपने मिजाज पर नियंत्रण कम होता है.यदि यह रेखा विशेषकर युवाओं में दिखाई दे तो ऐसा पाया गया है कि वे अधिक झगडालू,कम आज्ञाकारी और पढाई-लिखाई में अधिक महत्वाकांक्षी नहीं होते.

यूरोप में कीरो साहब के अनुसंधान से लोगों में जाग्रति आयी है परन्तु यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि अभी तक हमारे देश में ज्योतिष विशेषकर हस्त-रेखा विज्ञान को अंधविश्वासों से जोड़ कर देखा जाता है. गम्क्षा ओडे ,तिलक छाप पेटू लोगों ने अपने ओछे हथकंडों द्वारा इस विद्या का काफी सत्यानाश किया है.अफ़सोस है कि लोग ऐसे ही लोगों को पूजते भी हैं जबकि वास्तविक ज्ञान देने वाले को मूर्ख करार दे दिया जाता है और उसे उपेक्षित रखने हेतु भाँती-भाँती के जाल बुने जाते हैं.मैं स्वंय ऐसे ही चक्रव्यूहों का शिकार हूँ. परन्तु मेरा लक्ष्य चूंकि ढोंग-पाखण्ड का विनाश करना है इसलिए इस श्रंखला को चलाया है.

अंगूठा हथेली में मस्तिष्क का प्रतिनिधित्व करता है .अतः केवल अंगूठे का अध्यन मात्र किसी व्यक्ति की मानसिकता का सम्पूर्ण परिचय दे देता है.यदि आप देखें कि किसी व्यक्ति का अंगूठा पीछे की और काफी झुकता है तो समझ लें कि वह व्यक्ति अपने एक पैसे के फायदे के लिए दुसरे के सौ पैसों का भी नुक्सान कर सकता है.इसके विपरीत न झुकने वाले अंगूठे का व्यक्ति अपने सिद्धांतों एवं नीतियों की खातिर अपना बड़ा से बड़ा नुक्सान भी झेल जाता है.

हथेली में ऊपर की और बुद्ध की उंगली अर्थात कनिष्ठा के नीचे से प्रारंभ रेखा को ह्रदय-रेखा कहते हैं.इसकी उत्तम स्थिति तर्जनी और मध्यमा का विभाजन करने वाली है. परन्तु यदि किसी की हथेली में यह मध्यमा अर्थात शनि  की उंगली के नीचे ही समाप्त हो जाए तो समझें ऐसा व्यक्ति अविश्वसनीय है.उस पर विशवास करना धोखे को आमंत्रित करना है.

हथेली में पीले धब्बे अधिक दिखाई दें तो समझें कि उस व्यक्ति में लाल रक्त कणों की कमी है.उसे आयरन टेबलेट्स या हरे साग खाने की सलाह दें.हथेली में नसें चमकती दिखाई दें तो समझ लीजिये उस व्यक्ति का नर्वस -सिस्टम वीक है और वह बहुत जल्दी घबडा भी जाता होगा और क्षण भर में ही खुश भी हो जाता होगा.

हाथ की नाखूनों पर काले धब्बे स्वास्थ्य-हानि की सूचक हैं यदि ये छः माह रह जाएँ तो उस व्यक्ति की मृत्यु की पूर्व सूचना समझें.

यदि विवाह-रेखा से कोई पतली रेखा नीचे ह्रदय रेखा की और जाती दिखाई दे तो समझ लें उसके जीवन-साथी का जीवन समाप्त होने वाला है.

यह लेख-श्रंखला  लोगों को मायूस  करने के लिए नहीं बल्कि जागरूक करने के ध्येय से चलाई गयी थी. भविष्य में इस प्रकार के और भी प्रयास करेंगें.

Sunday, May 29, 2011

कुछ लघु कथाएं .

एक ब्लागर साहब ने   जो चार लघु-कथाएं एवं आलेख आदि ३० .०५ २०११ तक  प्रेषित करने का ई. मेल बहुत पहले किया था जब  उन्हें २६ .०५ .२०११ को ई.मेल द्वारा प्रेषित किया गया तो  उसके  जवाब में उन्होंने सूचित किया वे पहले ही प्रेस को सामग्री भेज चुके अतः चारों लघु कथाएं   (१.-बादशाह की मूर्खता,२ .-झुकी मूंछ की कीमत,३.-फर्स्ट कौन?,४.-हैंग टिल डेथ ) एवं संक्षिप्त आलेख इसी ब्लाग पर सार्वजनिक कर रहे हैं-.



लघु कथा का महत्त्व 

जब से पृथ्वी पर मनुष्य का आविर्भाव हुआ 'कथा' या कहानी का भी प्रादुर्भाव हुआ है.पहले लेखन के ये साधन न थे तब लोग सुनाते और सुनते थे.इसलिए 'स्मृति' एवं 'श्रुति' के रूप में पुरानी कथाएं संगृहित हैं.विष्णु शर्मा का पञ्च-तंत्र विभिन्न लघु-कथाओं को समेटे हुए एक ऐसा ग्रन्थ है जिसमें दी गई शिक्षाएं आज भी ज्यों की त्यों लाभ-प्रद हैं.बचपन में अपने बड़ों से छोटी-बड़ी अनेकों कहानियां सुनते थे.आज का युग तीव्र-गामी युग है और आज लोगों के पास ज्यादा वक्त का आभाव है.अतः लम्बी-लम्बी कहानियों और कथाओं ने अब छोटा या 'लघु' रूप अपना लिया है.'सत्सैय्या' के दोहों की भांति ही ये लघु कथाएं  भी अपने में प्रभावकारी असर छोडती हैं.बच्चों ही नहीं बड़ों पर भी लघु कथाओं का व्यापक प्रभाव पड़ता है.अतः हम कह सकते हैं कि लघु-कथाएं आज समय की मांग हैं एवं इनका महत्त्व निरन्तर बढ़ता ही जाएगा.

(१)बादशाह की  मूर्खता 

कुछ सौ साल पहले हमारे देश में एक लोकप्रिय और जन-हितैषी बादशाह का शासन था. बादशाह ने जनता के हित में अनेकों कार्य किये थे. धार्मिक सहिष्णुता उनका प्रबल हथियार था. सभी प्रकार की प्रजा उनके राज्य में सुखी थी.मेल-जोल की प्रवृति अपनाने के कारण उन्हें युद्धों का भी कम सामना करना पड़ता था. एक बार राजपूताना के दो वीर किन्तु गरीब लोग बादशाह के दरबार में नौकरी मांगने गए. उन वीरों ने अपनी बहादुरी के अनेकों किस्से बादशाह को सुनाएँ और अपनी सेना में भर्ती कर लेने का अनुरोध किया.बादशाह यों तो बहुत काबिल था लेकिन पता नहीं उस वक्त उसके दिमाग में क्या सूझा जो उसने उन वीरों को अपनी वीरता दिखाने का हुक्म सूना दिया.

अब वीर बेचारे वीरता का और क्या सुबूत दिखाते .उन दोनों ने अपनी -अपनी तलवारें निकाल लीं और परस्पर दरबार में ही युद्ध करने लगे.दोनों सच में बहुत वीर थे,कोई भी कम या ज्यादा नहीं था.दोनों ने एक लम्बे संघर्ष में बराबर की टक्कर दी. लेकिन बादशाह को सुबूत तो वीरता का देना था,अतः अंत में दोनों ने एक-दुसरे के सीने में अपनी-अपनी तलवारें भोंक दीं.दोनों एक साथ वीर-गति को प्राप्त हो गए. यह उस महान बादशाह की मूर्खता नहीं तो और क्या थी? 

(२)झुकी मूंछ की की कीमत 

बात आजादी से पहले की है जब आज जैसी समानता की बातें प्रचालन में नहीं थीं.एक गाँव में एक दुकानदार बनिए ने अपनी दोनों मूंछें ऊंची कर लीं. गाँव के ही एक दबंग ठाकुर साहब को यह नागवार गुजरा.उन्होंने उस बनिए से कहा तुम मूंछ ऊंची नहीं रख सकते तुरंत नीची करो.बनिया तो दुकानदार था ,उसने तुरंत कहा ठाकुर साहब आप को इसकी कीमत अदा करनी पड़ेगी. ठाकुर साहब ने बनिए की तरफ दस का एक नोट उछल दिया और यह कहते हुए चले गए लो कीमत और मूंछें झुका लेना. 
उस बनिए ने अपनी एक और की मूंछ तो झुका ली और एक और की ऊंची ही रहने दी. ऐसे ही चलता रहा. एक दिन फिर वह ठाकुर साहब उधर से निकले तो यह देख कर हैरान हुए और पूंछा कि यह क्या तुम्हारी एक तरफ की मूंछ ऊंची क्यों है?बनिए ने कहा आपने दस रु. दिए थे इतने में तो एक ही तरफ की मूंछ नीचीहो सकती है. ठाकुर साहब ने दस का एक और नोट निकाल कर उस बनिए को दिया और उसने दूसरी भी मूंछ नीची कर ली.उसने मूंछ नीची करने की पूरी कीमत वसूल ली थी. 

(३)फर्स्ट कौन?

जिन्ना साहब काफी दुबले पतले थे और खेल-कूद से दूर रहते थे.एक बार एक व्यायाम शिक्षक ने जबरदस्ती जिन्ना साहब को भी उनकी क्लास के बच्चों के साथ दौड़ में भाग लेने पर मजबूर कर दिया. टीचर ने सिर्फ दूरी बताई थी और दिशा नहीं.सारे बच्चे जिस दिशा में दौड़े उसकी ठीक उल्टी दिशा में दौड़ कर जिन्ना साहब आये.उन्होंने शिक्षक से उन्हें फर्स्ट घोषित करने का दावा किया जबकि शिक्षक उस छात्र को फर्स्ट घोषित कर चुके थे जो सबके साथ दौड़ कर सबसे पहले आया था.
जिन्ना साहब ने हेड मास्टर साहब से अपील की .हेड मास्टर साहब ने गेम्स टीचर से पूंछा आपने किस दिशा में दौड़ने को कहा था. टीचर ने ईमानदारी से कहा दिशा का नाम नहीं लिया था. हेड मास्टर साहब ने टीचर की गलती मानते हुए जिन्ना साहब को भी दुसरे छात्र के साथ फर्स्ट घोषित कर दिया.यही जिन्ना साहब मशहूर वकील बने और पाकिस्तान के संस्थापक भी.

(४)हैंग टिल डेथ 

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के संस्थापक सर सैय्यद अहमद खाँ के पुत्र सैय्यद महमूद बहुत काबिल वकील थे और कोई केस नहीं हारते थे. लेकिन वह जबरदस्त पीने वाले थे और पीते वक्त किसी से कोई बात नहीं करते थे.एक बार पंजाब की किसी रियासत के राज कुमार को फांसी की सजा हो चुकी थी और उसके अभिभावक किसी के कहने पर उनके पीते समय पहुँच गए और उनके पाँव पकड़ कर उसे बचा लेने की गुहार करने लगे. पहले तो उन्होंने उनको खूब डबटा फिर उस केस को हाथ में ले लिया और कोई अपील वगैरह नहीं की.आखिर फंसी देने का वक्त आ गया.वह अपने मुवक्किल को बचने का आश्वासन लगातार देते रहे.
फंसी स्थल पर जैसे ही उस राज कुमार के गले में रस्सी खींची गई सैय्यद महमूद साहब ने अपनी गुप्ती निकाल कर रस्सी काट दी.राज कुमार फंदा बंधे हुए गड्ढे में गिर पड़ा.उन्होंने दुबारा फंदा नहीं लगाने दिया. उन पर सरकारी कार्य में बढ़ा डालने का भी मुकदमा चला.

महमूद साहब ने कोर्ट में कहा हैंग का आर्डर था और हैंग किया जा चूका है वह नहीं मारा तो दुबारा फांसी नहीं दी जा सकती.एक वकील के नाते उनका काम अपने मुवक्किल को बचाना था सो उन्होंने बचा लिया और किसी सरकारी कार्य में बाधा नहीं डाली क्योंकि उसे हैंग तो किया ही गया था.महमूद साहब दोनों मुकदमें जीत गए ,परन्तु तभी से 'हैंग टिल डेथ' लिखने की परिपाटी शुरू हो गई.

Saturday, May 28, 2011

वाई.नेट कम्प्यूटर्स

आज 'वाई. नेट कम्प्यूटर्स ' ने दुसरे वर्ष में प्रवेश कर लिया है.यशवन्त ने गत वर्ष आज ही के दिन अपने व्यवसाय का शुभारम्भ  किया था.वह जब छोटा था अक्सर मेरे साथ बाजार वगैरह चला जाता था.एक बार होम्योपैथिक चिकित्सक डा.खेम चन्द्र खत्री ने उसे देख कर कहा था कि यह बच्चा आपकी तरह नौकरी नहीं करेगा यह अपना बिजनेस करेगा.मैं डा.साहब की दूकान से ही होम्योपैथी दवाएं खरीदता था.वह मुझे अच्छे तरीके से जानते थे. फिर भी कहा कि यह बिजनेस करेगा तो मैं समझा शायद डा. साहब ने व्यंग्य किया होगा.परन्तु उन्होंने कहा कि वह इन्ट्यूशन के आधार पर कह रहे हैं और उनके इन्ट्यूशन कभी गलत नहीं होते हैं.हालांकि उसकी जन्म-कुंडली के हिसाब से भी उसके लिए व्यवसाय ही बनता था परन्तु व्यवहारिक परिस्थितियें विपरीत थीं.

सन२००५ ई. में यशवन्त ने बी.काम.कर लिया परन्तु आर्थिक कारणों से उसे एम्.काम. या दूसरी कोई शिक्षा नहीं दिला सके.सन २००६ ई. में आगरा में पेंटालून का बिग बाजार खुल रहा था उसका विज्ञापन देख कर उसने अपने एक परिचित के कहने पर एप्लाई कर दिया. मैं सेल्स में नहीं भेजना चाहता था उसी लड़के ने मुझ से कहा अंकल यह घूमने  का जाब नहीं है,करने दें.इत्तिफाक से बगैर किसी सिफारिश के उसका सिलेक्शन भी हो गया अतः ज्वाइन न करने देने का कोई मतलब नहीं था.०१ .०६ २००६ से ज्वाइन करने के बाद १२ तक आगरा में ट्रेनिंग चली और १३ ता. को लखनऊ के लिए बस से स्टाफ को भेजा जहाँ १४ ता. से १५ दिन की ट्रेनिंग होनी थी.परन्तु किन्हीं कारणों से यह ट्रेनिंग सितम्बर के पहले हफ्ते तक लखनऊ में चली.

ढाई माह लखनऊ रहने पर यशवन्त को वह इतना भा गया कि मुझ से कहा आगरा का मकान बेच कर लखनऊ चलिए जो आपका अपना जन्म-स्थान भी है.मैंने उसकी बात को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया जबकि लखनऊ का आकर्षण भी था.जब जूलाई २००७ में  मेरठ में बिग बाजार की ब्रांच  खुली तो उसने वहां अपना ट्रांसफर करा लिया.वह मुझ से लगातार लखनऊ शिफ्ट करने को कहता रहा.मई २००९ में कानपुर में बिग बाजार की दूसरी ब्रांच खुलने पर वह ट्रांसफर लेकर ०४ जून २००९ को   वहां आ गया और कहा अब लखनऊ के नजदीक आ गए हैं अब तो आप लखनऊ आ जाएँ.

३१ जूलाई से आगरा का मकान बेचने की प्रक्रिया प्रारंभ करके सितम्बर में उसकी रजिस्टरी कर दी और ०९ अक्टूबर को लखनऊ आ गए और नवम्बर में अपना मकान लेकर उसमें शिफ्ट हो गए.लखनऊ में बिग बाजार की तीसरी ब्रांच खुलने पर उसने फिर ट्रांसफर माँगा जहाँ कानपूर और इलाहाबाद के लोगों तक को भेज दिया गया परन्तु उसकी जरूरत कानपूर में है कह कर रोक लिया गया जिसके जवाब में मैंने उससे वहां से रेजिग्नेशन दिलवा दिया.

२८ मई २०१० को यशवन्त की अपनी कुछ बचत और कुछ अपने पास से मदद करके उसके लिए 'वाई.नेट कम्प्यूटर्स' खुलवा दिया. इस एक वर्ष में ज्वलनशील लोगों,रिश्तेदारों के प्रकोप के कारण यद्यपि आर्थिक रूप से इस संस्थान से लाभ नहीं हुआ.परन्तु यशवन्त के सभी ब्लाग्स के अलावा मेरे भी सभी ब्लाग्स इसी संस्थान के माध्यम से चल रहे हैं. हम लोगों को जो सम्मान और प्रशंसा ब्लॉग जगत में मिली है उसका पूरा श्रेय यशवन्त के 'वाई .नेट कम्प्यूटर्स' को जाता है.पूनम और  मैं यशवन्त और उसके संस्थान के उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं.

Wednesday, May 25, 2011

जीवन-स्वास्थ्य-मृत्यु के ज्योतिषीय चिन्ह

पानी केरा बुदबुदा अस मानुष की जात,
देखत ही छिप जायेंगे जस तारा प्रभात.

इस संत वाणी से बहुत पहले महात्मा बुद्ध भी कह गए हैं-जन्म ही दुःख है,जरा भी दुःख  है,व्याधि भी दुःख है,मरण भी दुःख है.इन सब दुखों में मरण अर्थात मृत्यु का दुःख मनुष्य को बहुत सालता है.कीरो साहब ने इजराईल के प्रसिद्द भक्ति कवि डेविड को उदृधत करते हुए कहा है-"काश कोई मुझे मेरे जीवन का सही समय और दिशा बतला दे तो मेरे लिए उसकी छाया में चलना आसान हो जाए."
अर्थात वह यह जानना चाहता है कि  उसे जीने के लिए कितना समय मिला है .यदि यह मालूम हो जाए तो वह पूरी किफायत से उसे सोच -समझ कर जियेगा.

जीवन रेखा वह 'आधार शिरा' है जिसे 'ग्रेट पामर्स मार्च 'भी कहते हैं.इस रक्त-शिरा का हमारे जीवन के महत्वपूर्ण अंगों जैसे-पेट व ह्रदय से गहरा सम्बन्ध होता है.शरीर के नाजुक अंगों से सम्बन्ध होने के कारण जीवन रेखा द्वारा यह बतलाया जा सकता है कि कोई व्यक्ति कैसा स्वास्थ्य रखेगा और कितनी उम्र तक जियेगा.हमारी हथेली में तथा जन्म -कुंडली में अनेकों प्रतीक चिन्ह होते हैं जिनके आधार पर हम ऐसा विश्लेषण कर सकते हैं.

सबसे पहले मैं १९७६ में तब जब ज्योतिष पर विश्वास नहीं करता था बार्डर सिक्यूरिटी फ़ोर्स से अवकाश प्राप्त सब इन्स्पेक्टर श्री अमर सिंह राठौर (जो खाई -खाल एरिया,नैनीताल निवासी थे और होटल मुग़ल,आगरा में मुख्य ठेकेदार के यहाँ सुपरवाइजर थे) द्वारा बताये सिद्धांतों पर २००१ में चार व्यक्तियों को उनके बारे में सही-सही बताने में कामयाब रहा था ,उस घटना का जिक्र करना चाहूंगा -

सन२००० ई.में जब मैं सरला बाग ,दयाल बाग़,आगरा में अपना ज्योतिष कार्यालय चला रहा था.एक राष्ट्रीयकृत बैंक के अवकाश-प्राप्त मैनेजर श्री भारत भूषण सक्सेना जो अक्सर अपने इंजीनियर  बेटों की शादी के लिए कुंडलियाँ मिलवाने आते रहते थे ,एक दिन अपनी पत्नी,बेटी और दामाद को लेकर आये तथा सबके हाथ दिखवाये.एक -एक को मैं बताता रहा और बाद में आश्चर्य से उनसे पूछा कि आप सब के हाथ में एक से चिन्ह हैं और एक सी घटनाएँ सबके साथ हुईं हैं ,क्या आप सब एक साथ दुर्घटना का शिकार हुए थे?उनका उत्तर हाँ में था.उन्होंने लखनऊ में उनके साथ काफी पहले  घटित उस दुर्घटना का वृत्तांत सुनाया जिसमें से सब के सब मौत के मुंह में से निकल कर आये थे.

सक्सेना साहब ने बताया कि वे चारों कार से एक साथ जा रहे थे रास्ते में अचानक जोरदार बारिश,आंधी -तूफ़ान आया और वे अपनी कार एक वृक्ष के नीचे रोक कर थमने का इन्तजार करने लगे.अचानक पेड़ से भारी गुद्दा टूट कर उनकी कार के ऊपर गिरा और कार समेत  वे चारों कुचल गए जिन्हें ग्रामीणों ने निकाल कर अस्पताल पहुंचाया फिर सबका लखनऊ मेडिकल कालेज में लम्बा इलाज चला . वे सब बच गए थे यदि उन्हें पूर्व में सचेत किया गया होता तब भी घटना घटित तो होती परन्तु उन सब को शारीरिक क्षति न्यूनतम होती-बचाव अपनाने के कारण.

डा.नारायण दत्त श्रीमाली का निष्कर्ष है कि जब किसी कुंडली में अष्टम भाव में राहू हो तो वृक्ष पात  एवं जल पात का भय रहता है.इन चारों के मामले में ऐसा ही था .ये बचे कैसे?यह जानना बेहद आवश्यक है.उन चारों के हाथ में शनि पर्वत पर भाग्य रेखा के साथ एक चतुर्भुज बन रहा था.ऐसा चतुर्भुज किसी प्राणघातक दुर्घटना में बचाव का इशारा करता है.परन्तु जब भी ऐसा चतुर्भुज हो तो तय है भीषण दुर्घटना घटित अवश्य होगी ही होगी.अतः ऐसा चतुर्भुज रखने वालों को सदैव सावधानी बरतनी ही चाहिए.

अब आपको कीरो साहब के निष्कर्षों से परिचित कराते हैं-
कीरो के अनुसार यदि जीवन रेखा स्पष्ट व गहरी है तो पाचन शक्ति अच्छी  रहती है.यदि जीवन रेखा छोटे-छोटे टुकड़ों को जोड़ कर किसी जंजीर की तरह बनी हुई हो  तो उससे संकेत मिलता है कि उस व्यक्ति का स्वास्थ्य व पाचन-शक्ति खराब रहेंगें.उसमें शारीरिक दुर्बलता भी रहेगी.(मेरे विचार में यदि अच्छे चिकित्सक हस्त-रेखा की सहायता लें तो रोगी का सही उपचार करने में सफल रहेंगें).चूंकि जीवन-रेखा का सम्बन्ध शरीर व धड से है इस लिए इस रेखा पर मिलने वाले चिन्हों,जालों व कड़ियों से मालूम पड़   जाता है कि शरीर के किस अंग पर उनका सबसे अधिक असर पड़ेगा.

जीवन -रेखा---
तर्जनी उंगली के नीचे वृहस्पति क्षेत्र होता है जिसके उभार की जड़ से आरम्भ होने वाली रेखा जो लगभग पूरी हथेली को चीरते हुए शुक्र के उभार को घेर लेती है वही जीवन रेखा है.अंगूठे के नीचे और मणिबंध के ऊपर का क्षेत्र ही शुक्र क्षेत्र है.

जो लम्बी रेखाएं जीवन रेखाओं से निकल कर विपरीत दिशा की ओर अर्थात चन्द्र पर्वत की दिशा की तरफ जाती हैं वे समुद्री यात्राओं की ओर संकेत करती हैं.यदि जीवन रेखा अंगूठे के नीचे साफ़ हो तो ऐसा व्यक्ति एक न एक दिन अपने देश वापस लौट आता है.लेकिन यदि जीवन रेखा बीच में कहीं टूट गई हो तो इससे पता चलता है की वह व्यक्ति किसी गंभीर बीमारी का शिकार होगा.यदि इस तरह के संकेत दोनों हाथों में दिखाई पड़े तो उस बीमारी से उस व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है.जीवन-रेखा के समानांतर कोई अन्य रेखा हो तो बीमारी चाहे कितनी भयंकर क्यों न हो वह इस व्यक्ति की प्राण-रक्षा करेगी.

यदि जीवन-रेखा ठीक इसके विपरीत हथेली की उल्टी दिशा में मुडती हुई दिखाई दे तो उसका अर्थ है की उस व्यक्ति की मृत्यु किसी विदेशी भूमि पर होगी.कीरो साहब ने आस्कर वाइल्ड का उदाहरण इस सम्बन्ध में दिया है.वह लिखते हैं कि उनके व्यवसाय के शुरुआती दिनों में उच्च समाज की एक सभ्रांत महिला ने उन्हें अपने घर आमंत्रित किया जहां दुसरे सम्मानित लोग भी बड़ी संख्या में उपस्थित थे.एक लाल मखमली परदे के पीछे से उन्हें कई हाथ दिखलाए गए जिससे वह यह नहीं पता कर सके कि किस व्यक्ति का वह हाथ है.

उन्हें बहुत बाद में पता चल पाया कि उसी रात "दि वुमन आर नो इर्पोटैंस" जो नाटक मंचित हुआ था उसके रचयिता आस्कर वाइल्ड का हाथ भी उन्होंने देखा था जो उस समय लन्दन की एक चर्चित हस्ती थे. कीरो साहब ने उनका हाथ देख कर बतलाया था कि उनके बाएं हाथ में विरासत में मिले गुण थे और दायें में स्व-उपार्जित गुण.कीरो कहते हैं-"जब हम मस्तिष्क के बाएं भाग की क्रियाओं का प्रयोग करते हैं तो उसकी स्नायुतंत्रिकाएं दाहिने हाथ की ओर जाती हैं .इसलिए दाहिने हाथ से किसी के व्यक्तित्व और उसके विकास की सही जानकारी मिलती है."

आस्कर वाइल्ड के बाएं हाथ से असाधारण प्रतिभा व सफलताओं का पता चलता था वहीं उनके दाहिने हाथ में ऐसे संकेत भी थे कि जीवन के एक मोड़ पर पहुँच कर उनकी ये सफलताएं व यश सब चौपट हो जाएगा.अतः उन्होंने आस्कर वाइल्ड को यह निष्कर्ष सुनाया था-"जहां बायाँ हाथ किसी राजा का हाथ है वहीं दाहिना हाथ एक ऐसे राजा का हाथ है जो स्वंय ही अपने आपको निर्वासन में भेज देगा और किसी अनजान जगह पर मित्रों से दूर अकेली मौत मरेगा."

कीरो साहब कहते हैं उनके इतना कहते ही उन लोगों की व्यंग्यपूर्ण हंसी सुनाई पडी जो जानते थे कि जिस व्यक्ति के हाथों को उन्होंने देखा था वे इंग्लैण्ड के सबसे सफल व्यक्ति के हाथ थे.लेकिन जिस व्यक्ति के हाथ थे वह नहीं हंसा और उसने शांति से उनसे पूछा-"किस समय?" उन्होंने उत्तर दिया -"अब से कुछ ही वर्षों बाद,मेरे विचार से आपके इकतालीसवें व बयालीसवें वर्ष के बीच.उसके कुछ वर्षों बाद ही जीवन का अंत भी हो जाएगा."
कीरो साहब लिखते हैं कि आस्कर वाइल्ड परदे से बाहर आये और इस कथन को केवल एक मजाक की तरह लेते हुए गंभीर मुद्रा में उनकी ओर मुड़े तथा वे शब्द दोहराए-"बायाँ हाथ किसी राजा का है लेकिन दायाँ हाथ एक ऐसे राजा का जो स्वंय ही अपने को अपने देश से निष्कासित करेगा." और बिना कुछ कहे वह कमरे से चले गए .तब तक कीरो साहब को उनका परिचय नहीं दिया गया था.

कीरो साहब लिखते हैं कि आस्कर वाइल्ड से उनकी मुलाक़ात उनके द्वारा मार्विक्स आफ क्वीनसवेरी के विरुद्ध शुरू की गई कारवाई से ठीक पहले हुई ,जिसने उनकी सारी प्रतिष्ठा को मिट्टी में मिला दिया.उन्होंने कीरो के नजदीक आकर पूछा कि क्या उनके भाग्य में वह दोष अभी भी बरकरार है और जब कीरो ने कहा कि हां अभी वह है तो खोयी सी आवाज में उन्होंने कीरो से कहा-"मेरे अच्छे दोस्त यदि मेरा भाग्य ही फूट गया है तो मैं क्या कर सकता हूँ.मेरी तरह आप भी जानते हैं कि भाग्य अपनी मुख्य सड़कों  पर सड़क मरम्मत करने वालों को नहीं रखता."

(यह तो कीरो और आस्कर वाइल्ड की बातें हैं,मैं समझता हूँ कि यदि ज्ञात होने के बाद एहतियात बरती जाए और सही प्रार्थना व स्तुतियों का सहारा लिया जाये तो कष्ट की तीव्रता कम हो जाती है,मैंने ऐसे प्रेक्टिकल प्रयोग लोगों से सफलता पूर्वक करवाए हैं,अलग कभी उनका वर्णन दूंगा .)

कीरो साहब की अगली मुलाक़ात काफी समय बाद जब वह दुनिया का आधा चक्कर लगाकर सन १९०० ई. में पेरिस पहुंचे तभी आस्कर वाइल्ड से एक रेस्टोरेंट की छत पर खाना खाते समय अचानक हुई थी.कीरो साहब लिखते हैं उन्होंने आस्कर वाइल्ड को नहीं पहचाना था जो भारी डील-डौल के साथ उधर से गुजर कर भीड़ से दूर एक कुर्सी पर बैठ गए थे,उनके मित्र ने जब यह कहा "कि अरे !ये तो आस्कर वाइल्ड हैं." कीरो साहब उठे और बोले-"मुझे उनके पास जाकर उनसे बात करनी चाहिए." कीरो साहब के मेजबान मित्र ने तुरंत कहा-"यदि आप ऐसा करेंगे तो आपको यहाँ लौटने की जरूरत नहीं."

कीरो  लिखते  हैं  उस  बदनाम  मसीहा  के  प्रति  अब  लोगों  के  दिलों  में  घृणा   व कडवाहट भर गई थी.कीरो ने अपने मित्र की चुनौती को स्वीकार किया और आस्कर वाइल्ड के पास जाकर अपना हाथ बढ़ा दिया .अपने भयंकर अकेलेपन में वह कुछ समय तक कीरो के हाथ को थामे रहे और फिर उनकी आँखों से आंसू बह निकले."मेरे अच्छे दोस्त,आपकी महानता है .वरना आजकल तो हर आदमी मुझसे बच कर निकलने लगा है.मेरे पास आकर आपने सचमुच बहुत उदारता दिखलाई."

उन्होंने कीरो से अपने मुक़दमे के विषय में चर्चा की .उन गलतियों के बारे में जो उनसे हुईं थी.जेल में बीते दिन निराशा व कडवाहट और पुराणी जिन्दगी में न लौट पाने की उनकी असमर्थता."ओह ,कीरो कितनी बार मुझे उस रात की याद आई है जब आपने मुझे मेरे भाग्य के बारे में बताया था.कितनी बार मैंने अपनी हथेली पर जीवन-रेखा व भाग्य रेखा पर उस दुर्भाग्य के चिन्ह को देखा है जो बतलाती है कि मेरे भाग्य में किसी अनजान जगह पर किसी अनजान आदमी की तरह मरना लिखा है."

कीरो लिखते हैं इसके कुछ ही माह बाद होटल में उन्हें मृत पाया गया.कीरो भी उन गिने-चुने लोगों में से एक थे जो उनकी अर्थी के साथ पेरिस के एक कब्रिस्तान में उनकी कब्र तक गए थे.बाद में जेकब एतसटीन द्वारा उनकी कब्र पर एक स्मारक बनवा दिया गया.

वस्तुतः जीवन-रेखा जहाँ पर भी टूटती है जीवन के उस समय में उस व्यक्ति की मृत्यु होती है.यद्यपि मृत्यु को तो ताला नहीं जा सकता है परन्तु मेरे खुद के विचार से होने वाले कष्टों को कम अवश्य ही किया जा सकता है.इस सम्बन्ध में और कुछ अगले अंक में............

Monday, May 23, 2011

विवाह रेखा के संकेत

विवाह समाज में एक आवश्यक संस्कार है.लगभग सभी को इस विषय में कौतूहल रहता है कि उसका जीवन साथी कैसा होगा और उसका वैवाहिक जीवन कैसा रहेगा ?मेरे पास इस सम्बन्ध में दो प्रकार के मामले और आये हैं-एक तो पति-पत्नी के मध्य तलाक से बचने के जिनमें मैंने सकारात्मक मदद दी है और दुसरे जो पति या पत्नी को तलाक देने में सहयोग चाहते थे जिन्हें गलत जगह आये हैं कह कर मैं लौटा देता हूँ.आगरा में जी.जी.आई.सी.की एक शिक्षिका जो खुद तलाक नहीं चाहती थीं और उनके पति उस वक्त तलाक देने पर आमादा थे तथा उनको मेरे पास लाने वाली उनकी सगी चाची भी उनके अलगाव की इच्छुक थीं.मेरे द्वारा प्रस्तुत मन्त्र-स्तुतियों के माध्यम से एक सप्ताह में उनका सकारात्मक समाधान हो गया.बाद में उनकी दूसरी भी एक और बिटिया हुई और एक के बाद एक दो मकान भी  उन  दोनों  के बन गए ,अब कार भी उन्होंने ले ली है जिसकी सूचना गत वर्ष मेरे लखनऊ आने के बाद उन्होंने फोन पर दी थी.उनके दोनों मकानों के गृह -प्रवेश के हवन वहां मैंने ही करवाए थे.

हमारे पूर्वजों का कहना है ज्ञान जहाँ से भी मिले ग्रहण करना चाहिए और आज कल फारेन रिटर्न का एक बहुत बड़ा क्रेज चल रहा है ,इसलिए आज आपको 'कीरो' के दृष्टिकोण से इस विषय में अवगत करा रहे हैं.काउन्ट कीरो के बारे में परिचय पिछले अंक में दे चुके हैं उन्होंने सात वर्षों तक विभिन्न स्थानों (लड़के,लड़कियों के अलग-अलग तथा को-एजूकेशन के विद्द्यालय,थाने,चौराहे,स्टेशन वगैरह -वगैरह ) पर बूट-पालिश करके यह निष्कर्ष निकाला था कि जिस व्यक्ति (महिला/पुरुष) के बाएं पैर के जूते/चप्पल  की एडी ज्यादा घिसी हो वह सभ्य होता है चाहें पढ़ा-लिखा हो या नहीं और चाहे गरीब हो या अमीर.इसके विपरीत जिनके दायें पैरके जूते/चप्पल  की एडी ज्यादा घिसी हो चाहे जितना ज्यादा ओहदेदार हो,अमीर हो या पढ़ा लिखा हो या साधारण वह असभ्य होता है.सभी जानते हैं सभ्य वह होता है जो सभा में बैठने लायक हो.

इतने महान और अनुभवी विद्वान कीरो का कहना है कि यदि किसी की विवाह रेखा किसी द्वीप की तरह का आकार लेकर नीचे की ओर झुकते हुए ज़रा मुड गई हो तो समझें कि रोग,लम्बी शारीरिक पीड़ा या कोई बड़ी दुर्घटना ,इस व्यक्ति के दुसरे जीवन साथी का जीवन खतरे में डाल सकती है.उन्होंने अपने सस्मरणों में उल्लेख किया है कि जब वह पेरिस में थे तो एक दिन एक सुन्दर महिला उनसे आकर मिली जो वहां की प्रदेश असेम्बली की एक सदस्या थी और उसके पिता डी लेसेप्स  उन लोगों में से एक थे जिन्होंने कभी 'पनामा नहर' का निर्माण करवाया था उस महिला विधायक ने कीरो साहब से कहा कि कुछ समय पूर्व ही उसका विवाह हुआ है और उसका पति भी उसे उतना ही प्रेम करता है जितना कि वह खुद उससे.परन्तु फिर भी उसे मन में लगता है कि उसके  साथ कुछ बुरा घटने वाला है.वह अपने पति को बताये बगैर अपने और कीरो साहब के कामन मित्र  की सलाह पर हाथ दिखाने आयी थी. 

कीरो साहब उसका हाथ देख कर चिंतित और हैरान हुए कि थोड़े ही समय में उसके पति की किसी दुर्घटना में मृत्यु होने का योग था. परन्तु उन्हें उसे आगाह करना ही पडा ,वह उन्हें धन्यवाद कह कर चली गई.उसके पति को तेज रफ़्तार कार चलाने एवं जोखिम भरे खेलों में भाग लेने का शौक था.उसने अपने पति को सावधान किया अथवा नहीं,परन्तु चार माह बाद ही पेरिस व मेलुन के बीच तेज रफ़्तार से गाडी चलाते हुए एक सड़क दुर्घटना में उसकी मृत्यु हो गई.

 विवाह की रेखा के किसी द्वीप की तरह का आकार लेकर नीचे झुकने का दूसरा उदाहरण कीरो साहब ने मिस्टर     स्टीड का दिया है जिनसे उन्होंने कहा था-"मुझे जल में डूबते हुए तुम्हारी मृत्यु दिखाई पड़ती है,जल से डरो" .इसके विपरीत उन्हें यह भय था कि लन्दन की किसी भीड़ भरी सड़क पर किसी दुर्घटना में वह मारे जायेंगें और उन्होंने कीरो की चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया.वह 'टाईटेनिक' नामक दुर्भाग्यपूर्ण जहाज में यात्रा करते हुए उसी के साथ समुद्र में डूब कर मर गए.

दिलचस्प  उदाहरण-
कीरो साहब कहते हैं ,यदि विवाह की रेखा से कोई पतली रेखा निकल कर तीसरी उंगली के नीचे होने वाली 'सफलता की रेखा'(हम भारतीय इसे यश-रेखा कहते हैं) की और जाती हो तो समझें कि वह व्यक्ति अपार धन-सम्पदा व ख्याति अर्जित करेगा.वह यह भी बताते हैं -यदि विवाह की रेखा दो हिस्सों में बंट गई हो और उसकी एक शाखा सफलता की रेखा पर एक जाला-सा बनाती हो तो यह अनिष्ट का संकेत है-इस विवाह से अपयश मिलता है व सामाजिक प्रतिष्ठा में हानि प्राप्त होती है.

कीरो साहब ने लिखा है कि एक बहुत बड़े व्यापारी -पुत्र को हाथ देख कर जब उन्होंने आगाह किया तो उसने अहंकारपूर्वक कीरो साहब को उत्तर दिया-"कीरो,मेरे विचार से तुम एक दिलचस्प किस्म के ढोंगी आदमी हो.सच तो यह है कि दुनिया का सबसे खुशनसीब इंसान हूँ कि मुझे ऐसी अद्भुत लडकी मिली है....."और वह शख्स कीरो की बात पर ठहाका लगा कर खूब हंसा.परन्तु मुश्किल से तीन साल बीतते -बीतते उसने तलाक के लिए अर्जी भी दाखिल कर दी.बाद में उसके वैवाहिक जीवन से जुडी जब कई बातें सामने आईं तो लोग हैरत में पड़ गए.जिस महिला के साथ उसने विवाह किया था वह एक शराबघर में रिसेप्शनिस्ट थी.विवाह के बाद दोनों को शराब पीने की आदत लग गयी.उनके जीवन में उसके बाद एक के बाद एक नए दुःख आने लगे.आखिरकार उसकी पत्नी एक आवारा आदमी के चक्कर में पड़ कर उसके साथ कहीं लापता हो गयी,तब इन महाशय को तलाक की अर्जी लगानी पडी.

वस्तुतः किसी भी व्यक्ति के हाथ की रेखाएं उसकी समस्त जीवन कहानी को समेटे रहती हैं ,केवल ठीक से समझने और ठीक से बताने की बात है.जो विशवास करें और या जो न करें दोनों पर इन रेखाओं का प्रभाव निश्चय ही पड़ता है.यदि आप ठीक व्यक्ति के पास पहुंचे तो ठीक बताएगा और गलत व्यक्ति से अपना भविष्य जानने पहुंचे तो वह आप को ठगेगा.दोष विद्या  का नहीं बताने वाले का होगा.


Saturday, May 21, 2011

कीरो का ज्योतिषीय विवेचन

काउन्टकीरो का नाम किसी पहचान का मोहताज नहीं है.पाश्चात्य जगत में हस्तरेखा शास्त्र का महत्त्व प्रतिपादित करने में इस महान आत्मा का विशेष योगदान है.CHIRO वस्तुतः यूनानी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है-हाथ.यूरोप जहाँ ज्योतिष को पहले ढोंग समझा जाता था काउन्ट कीरो द्वारा की  गई और सच निकली भविष्यवाणियों के कारण ही ज्योतिष को मान्यता दे सका .विपरीत पर्यावरण में जन्म होने के बावजूद काउन्ट कीरो एक सफल हस्तरेखाविद कैसे बन गए,आईये इस बात पर गौर करें. उनकी जन्मपत्री से  स्पष्ट होता है कि कीरो के दशम भाव में पूर्ण बलवान चंद्रमा की उपस्थिति के कारण 'गजपति योग'निर्मित हो रहा है,ऐसा योग रखने वाला व्यक्ति ऐश्वर्य संपन्न,धनीऔर सुखी होता है.शुक्र ग्रह ज्योतिष का मुख्य कारक ग्रह होता है जो कीरो की कुंडली में लग्न में बुध के साथ विद्यमान है.यह योग कीरो को प्रबल ज्योतिषी बना रहा है.अपने पूर्व जन्म के संस्कारों के कारण कीरो ज्योतिष के गूढ़ सिद्धांतों को समझने में सफल रहे,तृतीय भावगत ब्रहस्पति ने उन्हें उदार व सहिष्णु बनाया जिस कारण विरोध के बावजूद अपने सिद्धांतों पर अडिग रह कर वह हस्तरेखा शास्त्र में कीर्तिमान सफलता प्राप्त कर सके .काउन्ट कीरो ने शुक्र वलय को 'प्रेम की मेखला'संज्ञा दी है यह रेखा हथेली में अनामिका और मध्यमा को अर्द्ध चंद्राकार घेरे हुए होती है और चूंकि यह हथेली में मस्तिष्क रेखा के ऊपरी भाग में होती है इसलिए कीरो इसे मानसिक पक्ष से सम्बंधित मानते हैं उनके अनुसार ऐसी रेखा रखने वाले लोग शारीरिक रूप से उतने कामुक (SEXY)नहीं भी हो सकते जितने कि मानसिक रूप से होते हैं.ऐसी रेखा रखने वाले सेक्स मामलों में रूचि रखते हैं और उन्हें इसमें आनंद भी आता है.परन्तु कीरो का विचार है कि यदि ऐसा व्यक्ति प्रेम में असफल रहा हो तो आत्म-हत्या भी कर सकता है.परन्तु डा.नारायण दत्त श्रीमाली का दृष्टिकोण है कि ऐसा शुक्र-वलय रखने वाले लोग उतावले और कामुक होते हैं परन्तु वे अपनी कामुकता को छिपाने में माहिर भी होते हैं.कारण कि ऐसे लोग चतुर प्रेमी के साथ-साथ वार्तालाप करने में माहिर भी होते हैं.जहाँ कीरो का मत है कि,प्रेम में असफल रहने पर ऐसे लोग आत्महत्या भी कर सकते हैं वहीं डा.श्रीमाली का मत है कि प्रेम में असफल रहने पर ऐसे लोग धार्मिक लबादा ओढ़ लेते हैं और धार्मिकता का ढोंग करते हैं.यदि शुक्र वलय के साथ-साथ शुक्र पर्वत उन्नत्त हो और समानांतर विवाह रेखाएं भी हों तो ऐसे लोग प्रेम के क्षेत्र में सफलता भी प्राप्त कर सकते हैं और समाज में अपनी मर्यादा भी सुरक्षित रखने में सफल हो सकते हैं.कीरो महान हस्तरेखा विद थे उनकी चेतावनी को अर्थ हीन न समझना चाहिए और ऐसी रेखाएं रखने वालों को असफलता से बचना चाहिए. 

Tuesday, May 17, 2011

फांसी और आतंकवाद

२६ नवम्बर २००८ को मुम्बई पर हुए आतंकवादी हमले में जीवित बचे एकमात्र आतंकवादी अजमल कसाब को अदालत द्वारा फांसी की सजा सूना दी गई है.कानूनी प्रक्रिया में जो भी समय लगे और जब भी कसाब को फांसी पर चढ़ाया जाए;उसका वास्तविक लाभ तभी मिल सकता है जब आतंवाद पूर्णतया :समाप्त हो जाए.प्रसिद्द कूट्नीतिग्य जी.पार्थ सारथी का अभिमत है कि कसाब को फांसी देने के बाद आतंकवाद को समाप्त नहीं किया जा सकता है.क्योंकि असली मुलजिम कहीं और सुरक्षित बचे रहेंगे.उनसे असहमत नहीं हुआ जा सकता है.यही सच्चाई भी है.आतंकवाद कैसे समाप्त होगा इस पर चर्चा करने स पहले यह जांच करना जरूरी है कि आतंकवाद है क्या?

भय फैला कर दहशत उत्पन्न कर किसी व्यक्ति ,समाज या देश को विविध प्रकार से संकट में फंसाए रखने की कला (आर्ट )ही आतंक है.और जो व्यक्ति,संस्था या देश इस कला को अपना कर अपना उद्देश्य पूरा करना चाहते हैं -वे सभी आतंकवादी हैं.आतंकवाद न कोई जाती है और न ही कोई धर्म या सम्प्रदाय .यह तो साम्राज्यवाद का हित-पोषक है.अतः आतंकवाद को साम्राज्यवाद की संतान मानना और तदनरूप इसके साथ व्यवहार करना भी उचित होगा.

यूं.एस.ए.एक प्रमुख साम्राज्यवादी देश है.हालांकि इसका जन्म साम्राज्यवाद के विरुद्ध संघर्ष में सफलता द्वारा ही हुआ था.पूर्ववर्ती साम्राज्यवादी देशों में प्रमुख देश ब्रिटेन,फ्रांस,जर्मनी और इटली आज अमेरिकी साम्राज्यवाद के सहयोगी हैं.ब्रिटेन के साम्राज्य से स्वतन्त्र सभी देशों में चाहे वे बर्मा हो,भारत,पाकिस्तान या श्रीलंका.सभी आतंकवाद से त्रस्त देश हैं.सभी देशों की प्रगति व उन्नत्ति इन आतंकवादी गतिविधियों से बाधित हो रही है क्योंकि साम्राज्यवादी देश कभी नहीं चाहते हैं कि ये देश स्वतन्त्र रूप से विकसित हो सकें.साम्राज्यवादी देश एक और तो आतंकवाद को प्रश्रय देते हैं और दूसरी  ओर आतंकवाद को नष्ट करने के नाम पर इन देशों की सरकारों को अपने चंगुल में फंसाये रखने हेतु सहायता भी देते हैं.


Saturday, May 14, 2011

भारत में कम्युनिज्म कैसे कामयाब हो ? ------ विजय राजबली माथुर

वैदिक मत के अनुसार मानव कौन ?

त्याग-तपस्या से पवित्र -परिपुष्ट हुआ जिसका 'तन'है,
भद्र भावना-भरा स्नेह-संयुक्त शुद्ध जिसका 'मन'है.
होता व्यय नित-प्रति पर -हित में,जिसका शुची संचित 'धन'है,
वही श्रेष्ठ -सच्चा 'मानव'है,धन्य उसी का 'जीवन' है.


इसी को आधार मान कर महर्षि कार्ल मार्क्स द्वारा  साम्यवाद का वह सिद्धान्त प्रतिपादित  किया गया जिसमें मानव द्वारा मानव के शोषण को समाप्त करने का मन्त्र बताया गया है. वस्तुतः मैक्स मूलर सा : हमारे देश से जो संस्कृत की मूल -पांडुलिपियाँ ले गए थे और उनके जर्मन अनुवाद में जिनका जिक्र था महर्षि कार्ल मार्क्स ने उनके गहन अध्ययन से जो निष्कर्ष निकाले थे उन्हें 'दास कैपिटल' में लिपिबद्ध किया था और यही ग्रन्थ सम्पूर्ण विश्व में कम्यूनिज्म  का आधिकारिक स्त्रोत है.स्वंय मार्क्स महोदय ने इन सिद्धांतों को देश-काल-परिस्थिति के अनुसार लागू करने की बात कही है ;परन्तु दुर्भाग्य से हमारे देश में इन्हें लागू करते समय इस देश की परिस्थितियों को नजर-अंदाज कर दिया गया जिसका यह दुष्परिणाम है कि हमारे देश में कम्यूनिज्म को विदेशी अवधारणा मान कर उसके सम्बन्ध में दुष्प्रचार किया गया और धर्म-भीरु जनता के बीच इसे धर्म-विरोधी सिद्ध किया जाता है.जबकि धर्म के तथा-कथित ठेकेदार खुद ही अधार्मिक हैं परन्तु हमारे कम्यूनिस्ट साथी इस बात को कहते एवं बताते नहीं हैं.नतीजतन जनता गुमराह होती एवं भटकती रहती है तथा अधार्मिक एवं शोषक-उत्पीडक लोग कामयाब हो जाते हैं.आजादी के ६३ वर्ष एवं कम्यूनिस्ट आंदोलन की स्थापना के ८६ वर्ष बाद भी सही एवं वास्तविक स्थिति जनता के समक्ष न आ सकी है.मैंने अपने इस ब्लॉग 'क्रान्तिस्वर' के माध्यम से ढोंग,पाखण्ड एवं अधार्मिकता का पर्दाफ़ाश  करने का अभियान चला रखा है जिस पर आर.एस.एस.से सम्बंधित लोग तीखा प्रहार करते हैं परन्तु एक भी बामपंथी या कम्यूनिस्ट साथी ने उसका समर्थन करना अपना कर्तव्य नहीं समझा है.'अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता'  परन्तु कवीन्द्र रवीन्द्र के 'एक्ला चलो रे ' के तहत मैं लगातार लोगों के समक्ष सच्चाई लाने का प्रयास कर रहा हूँ -'दंतेवाडा त्रासदी समाधान क्या है?','क्रांतिकारी राम','रावण-वध एक पूर्व निर्धारित योजना','सीता का विद्रोह','सीता की कूटनीति का कमाल','सर्वे भवन्तु सुखिनः','पं.बंगाल के बंधुओं से एक बे पर की उड़ान','समाजवाद और वैदिक मत','पूजा क्या?क्यों?कैसे?','प्रलय की भविष्यवाणी झूठी है -यह दुनिया अनूठी है' ,समाजवाद और महर्षि कार्लमार्क्स,१८५७ की प्रथम क्रान्ति आदि अनेक लेख मैंने वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित अभिमत के अनुसार प्रस्तुत किये हैं जो संतों एवं अनुभवी विद्वानों के वचनों पर आधारित हैं.

मेरा विचार है कि अब समय आ गया है जब भारतीय कम्यूनिस्टों को भारतीय सन्दर्भों के साथ जनता के समक्ष आना चाहिए और बताना चाहिए कि धर्म वह नहीं है जिसमें जनता को उलझा कर उसका शोषण पुख्ता किया जाता है बल्कि वास्तविक धर्म वह है जो वैदिक मतानुसार जीवन-यापन के वही सिद्धांत बताता है जो कम्यूनिज्म का मूलाधार हैं.कविवर नन्द लाल जी यही कहते हैं :-

जिस नर में आत्मिक शक्ति है ,वह शीश झुकाना क्या जाने?
जिस दिल में ईश्वर भक्ति है वह पाप कमाना क्या जाने?
माँ -बाप की सेवा करते हैं ,उनके दुखों को हरते हैं.
वह मथुरा,काशी,हरिद्वार,वृन्दावन जाना क्या जाने?
दो काल करें संध्या व हवन,नित सत्संग में जो जाते हैं.
भगवान् का है विशवास जिन्हें दुःख में घबराना क्या जानें?
जो खेला है तलवारों से और अग्नि के अंगारों से .
रण- भूमि में पीछे जा के वह कदम हटाना क्या जानें?
हो कर्मवीर और धर्मवीर वेदों का पढने वाला हो .
वह निर्बल दुखिया बच्चों पर तलवार चलाना क्या जाने?
मन मंदिर में भगवान् बसा जो उसकी पूजा करता है.
मंदिर के देवता पर जाकर वह फूल चढ़ाना क्या जानें?
जिसका अच्छा आचार नहीं और धर्म से जिसको प्यार नहीं.
जिसका सच्चा व्यवहार नहीं 'नन्दलाल' का गाना क्या जानें?

संत कबीर आदि दयानंद सरस्वती,विवेकानंद आदि महा पुरुषों ने धर्म की विकृतियों तथा पाखंड का जो पर्दाफ़ाश किया है उनका सहारा लेकर भारतीय कम्यूनिस्टों को जनता के समक्ष जाना चाहिए तभी अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति और जनता का शोषण समाप्त किया जा सकता है.दरअसल भारतीय वांग्मय में ही कम्यूनिज्म सफल हो सकता है ,यूरोपीय वांग्मय में इसकी विफलता का कारण भी लागू करने की गलत पद्धतियाँ ही थीं.सम्पूर्ण वैदिक मत और हमारे अर्वाचीन पूर्वजों के इतिहास में कम्यूनिस्ट अवधारणा सहजता से देखी जा सकती है -हमें उसी का आश्रय लेना होगा तभी हम सफल हो सकते हैं -भविष्य तो उज्जवल है बस उसे सही ढंग से कहने की जरूरत भर है.    

   

Tuesday, May 10, 2011

१८५७ की प्रथम क्रान्ति ------ विजय राजबली माथुर



Photo:Google search 
१० मई १८५७ ई.को मेरठ में भयानक विद्रोह हुआ -जेलखाने तोड़ डाले गए ,कैदी मुक्त कर दिए गए,अंग्रेज अफसरों  मौत के घाट उतार दिए गए.मेरठ के क्रांतिकारी दिल्ली की ओर रवाना हुए मार्ग में उन्हें नागरिकों का सहयोग प्राप्त होता रहा.दिली पर उन्होंने अधिकार कर लिया .दिल्ली के नागरिकों और भारतीय सैनिकों ने क्रांतिकारियों का स्वागत किया.कुछ  अंग्रेज अफसर मार डाले गए ,कुछ  पलायन कर गए.'बहादुर शाह जफ़र -सम्राट'घोषित कर दिए गए.इसके बाद क्रांति की आग सारे भारत में फ़ैल गयी.सभी प्रमुख नगरों ने क्रान्ति की.लखनऊ और कानपूर में क्रान्ति ने विकराल रूप धारण कर लिया .कानपूर में नाना साहब ने अपने को पेशवा घोषित कर दिया.बुंदेलखंड में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने विद्रोह का झंडा खड़ा किया.मध्य भारत में क्रान्ति का संचालन तांत्या टोपे ने किया.बिहार में जगदीशपुर के बाबू कुंवर सिंह ने विद्रोह का नेत्रित्व किया.इस प्रकार पंजाब को छोड़ कर सम्पूर्ण उत्तरी भारत से अंग्रेज सत्ता का उन्मूलन हो गया.अधिकाँश देशी राजा अंग्रेजों के साथ थे.

आज हमारे स्वाधीनता के प्रथम समर को हुए १५४ वर्ष व्यतीत हो गए हैं और आज इसकी १५५ वीं वर्षगाँठ है परन्तु सरकारी या अखबारी स्तर पर इसे मनाने की कोई हलचल नहीं है.क्रांतिकारियों के बलिदान से आज की या आने वाली पीढी को परिचित करने की कोई पहल नहीं है.सब अपने-अपने में मस्त हैं.अंग्रेजों ने जान-बूझ कर इस क्रांतिकारी आन्दोलन को सिपाही विद्रोह की संज्ञा दी थी.सन १९५७ ई. में इस क्रान्ति की सौंवीं वर्षगाँठ के अवसर पर किसी अखबार में एक कविता निकली थी जो हमें किसी मसाले की पुडिया में मिली थी. मेरी माता जी ने मेरे लगाव को देखते हुए वह पुर्जा मुझे दे दिया था -वह तो अब सुरक्षित नहीं है ,परन्तु मेरी कापी में उसकी नक़ल आज भी मौजूद है ,आप सब की सेवा में प्रस्तुत कर रहा हूँ:-


हम हैं इसके मालिक हिंदुस्तान हमारा |
पाक वतन है  कौम का, जन्नत से भी प्यारा ||
ये है हमारी मिल्कियत, हिंदुस्तान हमारा |
इसकी रूहानियत से, रोशन है जग सारा ||
कितनी कदीम, कितनी नईम, सब दुनिया से न्यारा |
करती है जरखेज जिसे, गंगो-जमुन की धारा ||
ऊपर बर्फीला पर्वत पहरेदार हमारा |
नीचे साहिल पर बजता सागर का नक्कारा ||
इसकी खाने उगल रहीं, सोना, हीरा, पारा |
इसकी शानो  शौकत का दुनिया में जयकारा ||
आया फिरंगी दूर से, ऐसा मंतर मारा |
लूटा दोनों हाथों से, प्यारा वतन हमारा ||
आज शहीदों ने है तुमको, अहले वतन ललकारा |
तोड़ो, गुलामी की जंजीरें, बरसाओ अंगारा ||
हिन्दू मुसलमाँ सिख हमारा, भाई भाई प्यारा |
यह है आज़ादी का झंडा, इसे सलाम हमारा ||


उस समय (१९५७ में) मैं पांच वर्ष का था और हुसैनगंज लखनऊ की फखरुद्दीन मंजिल में अपने माता-पिता के साथ रहता था.सिर्फ कविता ही लिखी उसके रचयिता और छापने वाले अखबार का नाम नहीं लिखा था.क्योंकि शुरू से ही मेरे विचार क्रांतिकारी रहे हैं मुझे ऐसे लेख और कवितायें भाते थे और माता-पिता मुझे जो उपलब्ध होता था दे देते थे जिस कारण आज ५४ वर्ष बाद मैं उसे पुनः सार्वजानिक करने में सफल रहा.

राजनीतिक कारण-
व्यापारी बन कर आने वाले अंग्रेजों का राज्य स्थापन  एवं उसका विस्तार होने से भारतीयों की राजनीतिक स्वतंत्रता का धीरे-धीरे अपहरण होता रहा. डलहौजी की साम्राज्यवादी नीति इस क्रान्ति के लिए सबसे अधिक उत्तरदायी है.

सामाजिक कारण-
शक्तिशाली अंग्रेज अधिकारी भारतीयों से घृणा करते थे.उन्हें अपमानित और लांक्षित करना अंग्रेजों के लिए मामूली बात थी.शासक और शासित के बीच का यह व्यवधान निश्चय ही शांति के लिए अनुकूल नहीं था.अंग्रेजों ने अपनी सभ्यता और संस्कृति का भी प्रसार करने की चेष्टा की जिसने क्रांति की चिंगारी को भड़का दिया.

आर्थिक कारण-
उचित-अनुचित अनेक उपायों के द्वारा अंग्रेज भारत का सोना इंग्लैण्ड भेज रहे थे और इस समृद्धि से हुयी औद्योगिक क्रांति का लाभ उठा कर उन्होंने देशी व्यापर और उद्योग को बहुत धक्का पहुंचाया.राजाओं और नवाबों की संपत्तियों का अबाध अपहरण किया,उनके सैनिक और सेवक बेरोजगार हो गए थे जो आक्रोशित थे और उन्होंने क्रांति में बढ़ -चढ़ कर योग दिया.

धार्मिक कारण-
अंग्रेजों ने ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार में संरक्षण और प्रोत्साहन प्रदान किया.उनके धर्मोपदेशक बड़े अहंकारी और उद्दंड थे.दोनों धर्मावलम्बियों को ईसायिओं ने अपना विरोधी बना लिया था.मौक़ा पाते ही सबने क्रान्ति में सहयोग दिया.

सैनिक कारण -
भारतीय सैनिकों के बल पर ही अंग्रेज भारत के विशाल भू-भाग के स्वामी बन सके थे परन्तु उनको वेतन कम दिया जाता था और उनकी सुख-सुविधा का बिलकुल ख्याल नहीं रखा जाता था जिससे उनमें असंतोष बढ़ता रहा था.चर्बी वाले कारतूस ने बारूद के ढेर में चिंगारी का काम किया.

क्रांति का संगठन-
१८५७ ई. की क्रांति एक पूर्व-नियोजित और संगठित क्रांति थी.'नाना साहब पेशवा' और उनके सलाहकार 'अजीमुल्ला खाँ'मुख्य संगठक थे.सतारा के राजा का मंत्री रंगों बापू जब इंग्लैण्ड गया तो अजीमुल्ला खाँ ने उनसे मिल कर क्रांति का कार्यक्रम  निश्चित किया.रंगों बापू ने सतारा लौट कर विद्रोह की आग भड़काने का काम किया और अजीमुल्ला खाँ -रूस,मिश्र,इटली,टर्की आदि से सहानुभूति प्राप्त कर बिठूर लौटे और नाना साहब के साथ तय किया कि,२२ जून १८५७ ई. को सारे देश में एक साथ बहादुर शाह जफ़र के नेतृत्व  में क्रांति की जायेगी.'कमल'और 'चपाती'प्रतीक के रूप में जनता में बाँट कर क्रांति का आह्वान किया गया.

समय पूर्व क्रांति-
२९ मार्च १८५७ ई. को बैरकपुर छावनी में चर्बी वाले कारतूसों को लेकर 'वीर मंगल पाण्डेय'ने अपने साथियों के साथ खुल्लमखुल्ला विद्रोह कर दिया घायलावस्था में उन्हें गिरफ्तार करके प्राण-दंड दे दिया गया.देशी पलटनें ख़तम कर दी गयीं.जब ये विद्रोही सिपाही मेरठ पहुंचे तो १० मई १८५७ को वहां से क्रांति शुरू कर दी गयी जिसे २२ जून को शुरू होना था .यह अधूरी तैयारी भी विफलता का कारण बनी और अधीरता भी.क्रांति की सफलता के लिए धैर्य एवं संयम बेहद जरूरी हैं.फिर भी क्रांतिकारियों के त्याग तथा बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता और हमें उनसे प्रेरणा एवं कर्तव्य-बोद्ध ग्रहण करना चाहिए. 
P . S . : --- 


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10 मई 2016 

Thursday, May 5, 2011

समाजवाद और महर्षि कार्लमार्क्स ------ विजय राजबली माथुर

05  मई जयन्ति के अवसर पर १९९० में सप्तदिवा,आगरा में पूर्व प्रकाशित आलेख 




जब-जब धरा विकल होती,मुसीबत का समय आता.
किसी न किसी रूप में कोई न कोई महामानव चला आता ..


ये पंक्तियाँ महर्षि कार्ल मार्क्स पर पूरी तरह खरी उतरती हैं.मार्क्स का आविर्भाव एक ऐसे समय में हुआ जब मानव द्वारा मानव का शोषण अपने निकृष्टतम रूप में भयावह रूप धारण कर चुका था.औद्योगिक क्रान्ति के बाद जहाँ समाज का धन-कुबेर वर्ग समृद्धि की बुलंदियां छूता चला जा रहा था वहीं दूसरी ओर मेहनत करके जीवन निर्वाह करने वाला गरीब मजदूर और फटे हाल होता जा रहा था,यह परिस्थिति यूरोप में तब आ चुकी थी और भारत तब तक सामन्तवाद में पूरी तरह जकड चुका था.हमारे देश में जमींदार भूमिहीन किसानों पर बर्बर अत्याचार कर रहे थे.
Man is the product of his Environment .
मार्क्स का पितृ देश जर्मन था,परन्तु उन्हें निर्वासित होकर इंग्लैण्ड में अपना जीवन यापन करना पड़ा.जर्मन के लोग सदा से ही चिंतन-मनन में  अन्य यूरोपीय समाजों से आगे रहे हैं और उन पर भारतीय चिंतन का विशेष प्रभाव पड़ा है.मैक्समूलर सा :तीस वर्ष भारत में रहे और संस्कृत का अध्ययन करके वेद,वेदान्त,उपनिषद और पुरानों की तमाम पांडुलिपियाँ तक प्राप्त करके जर्मन वापिस लौटे.मार्क्स जन्म से ही मेधावी रहे उन्होंने मैक्समूलर के अध्ययन का भरपूर लाभ उठाया और समाज व्यवस्था के लिए नए सिद्धांतों का सृजन किया.
मार्क्स का तप और त्याग 
हालांकि एक गरीब परिवार में जन्में और कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा,परन्तु मार्क्स ने हार नहीं मानी,उन्होंने अपने कठोर तपी जीवन से गहन अध्ययन किया.समाज के विकास क्रम को समझा और भावी समाज निर्माण के लिए अपने निष्कर्षों को निर्भीकता के साथ समाज के सम्मुख रखा.व्यक्तिगत जीवन में अपने से सात वर्ष बड़ी प्रेमिका से विवाह करने के लिए भी उन्हें सात वर्ष तप-पूर्ण प्रतीक्षा करनी पडी.उनकी प्रेमिका के पिता जो धनवान थे मार्क्स को बेहद चाहते थे और अध्ययन में आर्थिक सहायता भी देते थे पर शायद अपनी पुत्री का विवाह गरीब मार्क्स से न करना चाहते थे.लेकिन मार्क्स का प्रेम क्षण-भंगुर नहीं था उनकी प्रेमिका ने भी मार्क्स की तपस्या में सहयोग दिया और विवाह तभी किया जब मार्क्स ने चाहा.विवाह के बाद भी उन्होंने एक आदर्श पत्नी के रूप में सदैव मार्क्स को सहारा दिया.जिस प्रकार हमारे यहाँ महाराणा प्रताप को उनकी रानी ने कठोर संघर्षों में अपनी भूखी बच्चीकी परवाह न कर प्रताप को झुकने नहीं दिया ठीक उसी प्रकार मार्क्स को भी उनकी पत्नी ने कभी निराश नहीं होने दिया.सात संतानों में से चार को खोकर और शेष तीनों बच्चियों को भूख से बिलखते पा कर भी दोनों पति-पत्नी कभी विचलित नहीं हुए और आने वाली पीढ़ियों की तपस्या में लीं रहे.देश छोड़ने पर ही मार्क्स की मुसीबतें कम नहीं हो गईं थीं,इंग्लैण्ड में भी उन्हें भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता था.लाईब्रेरी में अध्ययनरत मार्क्स को समय समाप्त हो जाने पर जबरन बाहर निकाला जाता था.
बेजोड़ मित्र 
इंग्लैण्ड के एक कारखानेदार एन्जेल्स ने मार्क्स की उसी प्रकार सहायता की जैसी सुग्रीव ने राम को की थी.एन्जेल्स धन और प्रोत्साहन देकर सदैव मार्क्स के साथ कन्धे से कन्धा मिला कर खड़े रहे.मार्क्स का दर्शन इन्हीं दोनों के त्याग का प्रतिफल है.विपन्नता और संकटों से झूजते मार्क्स को सदैव एन्जेल्स ने आगे बढ़ते रहने में सहायता की और जिस प्रकार सुग्रीव के सैन्य बल से राम ने साम्राज्यवादी रावण पर विजय प्राप्त की थी.ठीक उसी प्रकार मार्क्स ने एन्जेल्स के सहयोग बल से शोषणकारी -उत्पीडनकारी साम्राज्यवाद पर अपने अमर सिद्धांतों से विजय का मार्ग प्रशस्त किया.गरीब और बेसहारा लोगों के मसीहा के रूप में मार्क्स और एन्जेल्स तब तक याद किये जाते रहेंगें जब तक आकाश में सूरज-चाँद और तारे दैदीप्यमान रहेंगें.
भारतीय संस्कृति और मार्क्सवाद 
हमारे प्राच्य ऋषि-मुनियों नें 'वसुधैव कुटुम्बकम'का नारा दिया था,वे समस्त मानवता में समानता के पक्षधर थे और मनुष्य द्वारा मनुष्य के उत्पीडन और शोषण के विरुद्ध.यही सब कुछ मार्क्स ने अपने देश -काल की परिस्थितियों के अनुरूप नए निराले ढंग से कहा है.कुछ विद्वान मार्क्स के दर्शन को भारतीय वांग्मयके अनुरूप मानते हैं जबकि वास्तविकता यह है कि,मार्क्सवाद भारतीय संस्कृति में ही सही ढंग से लागू हो सकता है.यूरोप में मार्क्स के दर्शन पर क्रांतियाँ हुईं और मजदूर वर्ग की राजसत्ता स्थापित हुयी और वहां शोषण को समाप्त करके एक संता पर आधारित समाज संरचना हुयी,परन्तु इस प्रक्रिया में यूरोपीय संस्कृति के अनुरूप मार्क्स के अनुयाई शासकों से कुछ ऐसी गलतियां हुईं जो मार्क्स और एन्जेल्स के दर्शन से मेल नहीं खातीं थीं.रूसी राष्ट्रपति मिखाईल गोर्बाचोव ने इस कमी को महसूस किया और सुधारवादी कार्यक्रम लागू कर दिया जिससे समाज मार्क्स-दर्शन का वास्तविक लाभ उठा सके.यूरोप के ही कुछ शासकों ने सामंती तरीके से इसका विरोध किया,परिणामस्वरूप उन्हें जनता के कोप का भाजन बनना पडा.आज विश्व के आधे क्षेत्रफल और एक तिहाई आबादी में मार्क्सवादी शासन सत्ता विद्यमान है जो सतत प्रयास द्वारा जड़ता को समाप्त कर यथार्थ मार्क्सवाद की ओर बढ़ रही है.                                                                                                                                          
स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि,नास्तिक वह नहीं है जिसका ईश्वर पर विशवास नहीं है,बल्कि' नास्तिक वह है जिसका अपने ऊपर विशवास नहीं है' मार्क्सवाद बेसहारा गरीब मेहनतकश वर्ग को अपने ऊपर विशवास करने की प्रेरणा देता है.विवेकानंद ने यह भी कहा था जब तक संसार में झौंपडी में निवास करने वाला हर आदमी सुखी नहीं होता यह संसार कभी सुखी नहीं होगा.मार्क्स ने जिस समाज-व्यवस्था का खाका प्रस्तुत किया उसमें सब व्यक्ति सामान होंगें और प्रत्येक व्यक्ति से उसकी क्षमता व योग्यतानुसार काम लिया जाएगा और प्रत्येक व्यक्ति को उसकी आवश्यकतानुसार दिया जाएगा जिससे उसका बेहतर जीवन निर्वाह हो सके.श्री कृष्ण ने भी गीता में यही बताया कि,मनुष्य को लोभवश परिग्रह नहीं करना चाहिए,अर्थात किसी मनुष्य को अपनी आवश्यकता से अधिक कुछ नहीं रखना चाहिए.यह आवश्यकता से अधिक रखने की लालसा अर्थात कृष्ण के बताये गए अपरिग्रह मार्ग का अनुसरण न करना ही शोषण है.और इसी शोषण को समाप्त करने का मार्ग मार्क्स ने आधुनिक काल में हमें दिखाया है.
भारत में गलत धारणा 
हमारे देश में साधन सम्पन्न शोषक वर्ग ने धर्म की आड़ में मार्क्सवाद के प्रति विकृत धारणा का पोषण कर रखा है जब कि यह लोग स्वंय ही 'धर्म से अनभिग्य 'हैं.प्रसिद्ध संविधान शास्त्री  और महात्मा गांधी के अनुयाई डा. सम्पूर्णानन्द ने धर्म की व्याख्या करते हुए कहा है :-सत्य,अहिंसा,अस्तेय,अपरिग्रहऔर ब्रह्मचर्य के समुच्य का नाम है-धर्म.अब देखिये यह सोचने की बात है कि,धर्म की दुहाई देने वाले इन पर कितना आचरण करते हैं.यदि समाज में शोषण विहीन व्यवस्था ही स्थापित हो जाए जैसा कि ,मार्क्स की परिकल्पना में-

सत्य-पूंजीपति शोषक वर्ग सत्य बोल और उस पर चल कर समृद्धत्तर नहीं हो सकता .
अहिंसा-मनसा-वाचा-कर्मणा अहिंसा का पालन करने वाला शोषण कर ही नहीं सकता.
अस्तेय-अस्तेय का पालन करके पूंजीपति वर्ग अपनी पूंजी नष्ट कर देगा.गरीब का हक चुराकर ही धनवान की पूंजी सृजित होती है.
अपरिग्रह-जिस पर वेदों से लेकर श्रीकृष्ण और स्वामी विवेकानन्द सभी मनीषियों ने ज्यादाजोर दिया यदि समाज में अपना लिया जाए तो कोई किसी का हक छीने ही नहीं और स्वतः समानता स्थापित हो जाए.
ब्रह्मचर्य-जिसकी जितनी उपेक्षा पूंजीपति वर्ग में होती है ,गरीब तबके में यह संभव ही नहीं है.अपहरण,बलात्कार और वेश्यालय पूंजीपति समाज की संतुष्टि का माध्यम हैं.

आखिर फिर क्यों धर्म का आडम्बर दिखा कर पूंजीपति वर्ग जनता को गुमराह करता है?ज़ाहिर है कि,ऐसा गरीब और शोषित वर्ग को दिग्भ्रमित करने के लिए किया जाता है,जिससे धर्म की आड़ में शोषण निर्बाध गति से चलता रहे.
कसूरवार मार्क्सवादी भी हैं
हमारे देश में धर्म का अनर्थ करके जहां पूंजीपति वर्ग शोषण को मजबूत कर लेता है;वहीं साम्राज्यवादी  उसे इसके लिए प्रोत्साहित करते हैं जबकि मार्क्स के अनुयायी  अंधविश्वास में जकड कर और शब्द जाल में फंस कर भारतीय जनता को भारतीय संस्कृति और धर्म से परिचित नहीं कराते.ऐसा करना वे मार्क्सवाद के सिद्धांतों के विपरीत समझते हैं.और यही कारण है अपनी तमाम लगन और निष्ठा के बावजूद भारत में मार्क्सवाद को  विदेशी विचार-धारा समझा जाता है और यही दुष्प्रचार  करके साम्राज्यवादी-साम्प्रदायिक शक्तियां विभिन्न धर्मों के झण्डे उठा कर जनता को उलटे उस्तरे से मूढ़ती  चली जा रहीं हैं.इस परिस्थिति के लिए १९२५ से आज तक का हमारा मार्क्सवादी आन्दोलन स्वंय जिम्मेदार है.
अब समय आ गया है 
जब हम प्रति वर्ष २२अप्रैल से ०५ मई तक मार्क्सवाद-लेनिनवाद के सिद्धांतों को भारतीय संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में 'चेतना पक्ष' के रूप में मनाएं और स्वंय मार्क्स के अनुयाई भी भारतीय वांग्मय के अनुकूल भाषा-शैली अपना कर राष्ट्र को प्राचीन 'वसुधैव कुटुम्बकम'की भावना फैलाने के लिए महर्षि कार्ल मार्क्स की चेतना से अवगत कराएं,अन्यथा फिर वही 'ढ़ाक के तीन पात'.
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