Tuesday, February 28, 2012

जब दिल ही टूट गया तो ...............







27/02/2012 हिंदुस्तान लखनऊ
मानव शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है -दिल-हृदय -हार्ट। दिल का मुख्य कार्य है सम्पूर्ण शरीर मे शुद्ध रक्त का संचरण बनाए रखना। यह बहुत ही नाजुक अंग है और बड़ी जल्दी इस पर दुष्प्रभाव पड़ जाता है। दिल बड़ा ही दयालू होता है जिस पर रहम आ जाये उस पर जान भी न्योछावर कर सकता है। यदि दिल कठोर हो जाये तो किसी की जान भी ले सकता है। यदि शरीर का कोई अंग क्षतिग्रस्त हो जाये या रुग्ण हो जाये तो दिल उस अंग को अतिरिक्त रक्त-आपूर्ती करता है और उसे स्वस्थ बनाता है।

मशहूर गायक कुन्दन लाल सहगल जी का संलग्न गीत दिल की नाजुकता का वर्णन करता है तो हिंदुस्तान,लखनऊ द्वारा 27 फरवरी 2012 को प्रकाशित यह विशेषज्ञ रिपोर्ट दिल की बीमारियों का बखान करती है। इस रिपोर्ट से काफी ख़र्चीले उपचार का पता चलता है जिसे प्राप्त करना सबके बूते की बात नहीं है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान 'दिल' की बीमारी  फैलने व बढ्ने की वजह 'डायबिटीज़' को बताता है। हम यहाँ 'डायबिटीज़' और 'दिल' की बीमारी का ऐसा उपचार प्रस्तुत करना चाहते हैं जिसके द्वारा कोई खर्च किए बगैर ही इन रोगों से निजात पाई जा सकती है। -

डायबिटीज़ के रोगी यदि शीघ्र स्वास्थ्य लाभ चाहते हैं तो उन्हें चिकित्सा के साथ-साथ यह उपचार भी करना चाहिए-

ॐ ...... भू ....... भुवाः ...... स्वः.... तत्स्वितुर्वरेनियम भर्गों देवस्य धीमहि। ....... धियों यो नः प्रचोदयात। ।

इन खाली स्थान पर 3 या 5 या 7 या 9 अर्थात  विषम संख्या के क्रम मे तालियाँ बजाना है। ये तालियाँ एक्यू प्रेशर का काम करती हैं जिनसे डायबिटीज़ के प्वाइंट्स दबने के कारण शीघ्र स्वास्थ्य लाभ होता है और दवा का सेवन  भी समाप्त हो जाता है।

मंत्र को कुल 9,18,27 या 108 के क्रम मे पश्चिम दिशा की ओर मुंह करके किसी ऊनी या लकड़ी के आसन या पोलीथीन शीट पर बैठ कर करें ,नंगी धरती पर नहीं अन्यथा 'अर्थ'-earth होने के कारण ऊर्जा -energy नष्ट हो जाएगी और मंत्र जाप व्यर्थ चला जाएगा।

हृदय रोग मे -

इसी प्रकार हार्ट के मरीज हृदय रोग के उपचार मे खाली स्थानों पर तालियाँ बजाने के बजाए ॐ शब्द का उच्चारण करें। कुल 5 ॐ उच्चारण करने होंगे और इन्हें अतिरिक्त ज़ोर लगा कर बोलना  होगा।

हाई ब्लड प्रेशर,लो ब्लड प्रेशर,हार्ट आदि की तकलीफ मे 5 अतिरिक्त ॐ लगा कर गायत्री मंत्र के सेवन से शीघ्र लाभ होता है। एलोपैथी के साइड इफ़ेक्ट्स और रिएक्शन से बचने हेतु बायोकेमिक KALI PHOS 6 X का 4 tds सेवन करना चाहिए। ज्यादा तकलीफ मे इस दवा का 10-10-10 मिनट के अंतर से सेवन करना जादू सा असर देता है। गुंनगुने पानी मे घोल कर सेवन करें तो और जल्दी लाभ होता है।अर्जुन वृक्ष की छाल से बना आयुर्वेदिक 'अर्जुनासव' और 'अर्जुनारिष्ट' भी दिल की अचूक और हानि - रहित दवा हैं। 'मृग श्रंग भस्म' भी सुरक्षित आयुर्वेदिक औषद्धि है परंतु यह काफी मंहगी है।

भोजन करने के बीच मे पानी का सेवन न करें और भोजन करने के तुरंत बाद मूत्र विसर्जन करें तो हार्ट -हृदय मजबूत होता है।

अस्थमा-दमा की बीमारी मे तथा मानसिक चिंता होने पर भी यह 5 अतिरिक्त ॐ वाला गायत्री मंत्र ही 'राम बाण औषधि' है। 



ॐ का प्रयोग क्यों?


ॐ= अ+उ +म ---उच्चारण ध्वनिपूर्वक करने से शरीर का मध्य भाग (center point of the body) जिसकी न कोई कसरत होती है और न ही जिसकी कोई मालिश हो सकती है की वर्जिश हो जाती है। इस वर्जिश से धमनियों मे रक्त संवहन सुचारू और सुव्यवस्थित हो जाता है। फलतः धमनियों मे वसा या कोलस्ट्रेल का जमाव नहीं हो पाता यदि हो तो साफ हो जाता है। अतः ॐ का उच्चारण नियमित करते रहने से 'बैलूनिंग' की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। 


इस सन्दर्भ मे एक व्यक्तिगत उदाहरण दूँ तो अन्यथा नहीं लिया जाना चाहिए। लगभग आठ वर्ष पूर्व मुझे अक्सर सीने मे दर्द रहने लगा और ज्योतिष के आधार पर भी यह 'हृदय रोग' का ही लक्षण सिद्ध हो रहा था । अपने एक फुफेरे भाई डॉ भगवान माथुर जो पास की ही कालोनी बलकेश्वर,आगरा मे प्रेक्टिस करते थे को दिखाया तो उन्होने भी हार्ट प्राब्लम बताते हुये 'कार्डियोग्राम' कराने का सुझाव दिया। हालांकि एक हार्ट स्पेशलिस्ट डॉ अजीत माथुर जिनसे संपर्क करना था रिश्ते मे हमारे भाञ्जे थे और 'माथुर सभा,आगरा' के अध्यक्ष भी रह चुके थे। काफी सौम्य,मिलनसार और रिश्तेदार चिकित्सक होने के बावजूद मैंने एलोपैथी इलाज न करने का फैसला किया। मैंने 5 ॐ वाला गायत्री मंत्र 108 की संख्या  मे प्रतिदिन सस्वर  करना प्रारम्भ किया जिसमे डेढ़ घंटे का कुल समय लगता था। kali Phos 6 X का 4 tds सेवन भी करता था। भोजनोपरांत पहले मूत्र विसर्जन की प्रक्रिया का नियमित पालन किया।  कुल एक माह मे 'दिल' को मजबूती मिल गई और रोग का उपचार बिना झंझट और परेशानी के स्वतः ही हो गया। तमाम झंजावातो और परेशानियों,दिमागी तनावों से गुजरने के बावजूद दोबारा दिल की तकलीफ नहीं हुई क्योंकि अब प्रतिदिन 9-9 बार 5 ॐ वाला गायत्री मंत्र प्रयोग करता हू। मुझे दीपक जलाने,धूप जलाने या जल रखने की जहमत नहीं करना होता है क्योंकि मै ढोंग व पाखंड को मानता ही नहीं हू। जब तब वैज्ञानिक विधि से हवन अवश्य हमारे यहाँ होता रहता है। 


मै जानता हू की प्रस्तुत जानकारी का सिर्फ एलोपैथी चिकित्सक ही नही तथाकथित प्रगतशील और वैज्ञानिक विशेज्ञ भी मखौल उड़ाएंगे। फिर भी 'जनहित' मे इसे देना मुनासिब समझा। 

Sunday, February 26, 2012

पूनम वाणी


पूनम की जो रचनाएँ समय-समय पर 'क्रांतिस्वर' और 'जो मेरा मन कहे' मे प्रकाशित हुई हैं उन्हे आज 'पूनम वाणी' के रूप मे पुस्तकाकार रूप देकर उनको जन्मदिन का उपहार देने का प्रयास "तेरा तुझ को अर्पण,क्या लागे मेरा" के आधार पर किया है। एक तो सर्वहारा तिस पर भी  कंजूस इसके अतिरिक्त और दे भी क्या सकता था? मैंने तो सिर्फ क्रांतिस्वर के लिंक संपादित किए थे बाकी डिजाइनिंग आदि यशवंत ने सम्पन्न किए हैं। 28 जनवरी 2012  की कविता उस पुस्तक मे लिंक करने से रह गई थी उसे नीचे ज्यों का त्यों पुन : प्रस्तुत कर रहे हैं।



03 अक्तूबर 2010 -http://krantiswar.blogspot.in/2010/10/blog-post_03.html

17 नवंबर 2010 http://krantiswar.blogspot.in/2010/11/blog-post_17.html

11 दिसंबर 2010 http://krantiswar.blogspot.in/2010/12/blog-post_11.html

25 दिसंबर 2010 http://krantiswar.blogspot.in/2010/12/clinging-to-delusion-in-soltitude.html

30 दिसंबर 2010 http://krantiswar.blogspot.in/2010/12/blog-post_8518.html

28 जनवरी 2012 http://krantiswar.blogspot.in/2012/01/blog-post_28.html

17 फरवरी 2011 http://krantiswar.blogspot.in/2011/02/blog-post_17.html

25 फरवरी 2011 http://krantiswar.blogspot.in/2011/02/blog-post_25.html

14 अक्तूबर 2011 http://krantiswar.blogspot.in/2011/10/blog-post_14.html

16 अक्तूबर 2011 http://krantiswar.blogspot.in/2011/10/blog-post_16.html

24 अक्तूबर 2011 http://krantiswar.blogspot.in/2011/10/blog-post_24.html

05 नवंबर 2011 http://krantiswar.blogspot.in/2011/11/blog-post_05.html

06 नवंबर 2011 http://krantiswar.blogspot.in/2011/11/blog-post_06.html

25 नवंबर 2011 http://krantiswar.blogspot.in/2011/11/blog-post_25.html

30 नवंबर 2011 http://krantiswar.blogspot.in/2011/11/blog-post_30.html

28 जनवरी 2012 http://krantiswar.blogspot.in/2012/01/blog-post_28.html

26 फरवरी 2012 http://krantiswar.blogspot.in/2012/02/2.html

30 जनवरी 2012 http://jomeramankahe.blogspot.in/2012/01/blog-post_30.html

20 जनवरी 2012 http://jomeramankahe.blogspot.in/2012/01/2.html

01 दिसंबर 2011 http://jomeramankahe.blogspot.in/2011/12/blog-post.html


शनिवार, 28 जनवरी 2012


साथ

आया बसंत
गया पतझड़
माया झूमा
छाया उल्लास
सब आशावान
करें सम्मान
चमका दिनमान
कोयल बोली
बौर मतवाली
भौरा बैठा
झूमे डालीडाली
कोयल मतवारी
कुहुक प्यारी
विरहन बेचारी
सरसों पीलीपीली
ललकारे हरियाली
रंग धानी
यौवन खेले
चाल मस्तानी
मदनमोहन मन
खेले अठखेली
दिन होली
रात दीवाली
ऐसी अभिलाषा
पूरी हो
जाए जीवन
की आसप्यास
मिले सबको
सबका साथ
यही अर्थ
है मधुमास


(श्रीमती पूनम माथुर)



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नोट-ये सभी रचनाएँ अब 'पूनम वाणी'ब्लाग मे संगृहीत हैं वहाँ इन्हे देखा/पढ़ा जा सकता है। 
http://poonam-vani.blogspot.in/ 


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Thursday, February 23, 2012

भोजन और स्वास्थ्य

                                                   (हिंदुस्तान,लखनऊ,21 फरवरी 2012 )
आधुनिक चिकित्सा मे एलोपैथी रोज-ब -रोज जो अनुसंधान कर रही है उनसे हमारे पुरातन आयुर्वेदिक ज्ञान का ही पलड़ा भारी लगता है। हमारे भोजन मे दालों को 'प्रोटीन' प्राप्ति हेतु शामिल किया गया है। प्रोटीन को मांस निर्माता द्रव्य कहा जाता है। जीव हिंसा का विरोध करते हुये हमारे यहाँ मांस -भक्षण का निषेध्य किया गया है। ऐसे मे दालें ही प्रोटीन का आधार-स्तम्भ हैं। 'अरहर' की दाल को पहले गरीबों का भोजन माना जाता था। अब यह नया अनुसंधान धनाढ्यो  को भी अरहर का लाभ उठाने को बाध्य करेगा। वैसे भी शुगर की बीमारी अधिकांशतः पैसे वालों की ही बीमारी है। एलोपैथी चिकित्सक दूसरी भारतीय चिकित्सा पद्धतियों का भौंडा उपहास उड़ाते हैं। बेहद अहंकार मे डूबे ये एलोपैथी चिकित्सक खुद को खुदा समझते हैं। लेकिन अब निरंतर हो रहे अनुसन्धानों से उनके घमंड को दूर होना चाहिए।


डायबिटीज़ के रोगी यदि शीघ्र स्वास्थ्य लाभ चाहते हैं तो उन्हें चिकित्सा के साथ-साथ यह उपचार भी करना चाहिए-

ॐ ...... भू ....... भुवाः ...... स्वः.... तत्स्वितुर्वरेनियम भर्गों देवस्य धीमहि। ....... धियों यो नः प्रचोदयात। ।

इन खाली स्थान पर 3 या 5 या 7 या 9 अर्थात  विषम संख्या के क्रम मे तालियाँ बजाना है। ये तालियाँ एक्यू प्रेशर का काम करती हैं जिनसे डायबिटीज़ के प्वाइंट्स दबने के कारण शीघ्र स्वास्थ्य लाभ होता है और दवा का सेवन  भी समाप्त हो जाता है।

मंत्र को कुल 9,18,27 या 108 के क्रम मे पश्चिम दिशा की ओर मुंह करके किसी ऊनी या लकड़ी के आसन या पोलीथीन शीट पर बैठ कर करें ,नंगी धरती पर नहीं अन्यथा 'अर्थ'-earth होने के कारण ऊर्जा -energy नष्ट हो जाएगी और मंत्र जाप व्यर्थ चला जाएगा।

हृदय रोग मे -

इसी प्रकार हार्ट के मरीज हृदय रोग के उपचार मे खाली स्थानों पर तालियाँ बजाने के बजाए ॐ शब्द का उच्चारण करें। कुल 5 ॐ उच्चारण करने होंगे और इन्हें अतिरिक्त ज़ोर लगा कर बोलना  होगा।

हाई ब्लड प्रेशर,लो ब्लड प्रेशर,हार्ट आदि की तकलीफ मे 5 अतिरिक्त ॐ लगा कर गायत्री मंत्र के सेवन से शीघ्र लाभ होता है। एलोपैथी के साइड इफ़ेक्ट्स और रिएक्शन से बचने हेतु बायोकेमिक KALI PHOS 6 X का 4 tds सेवन करना चाहिए। ज्यादा तकलीफ मे इस दवा का 10-10-10 मिनट के अंतर से सेवन करना जादू सा असर देता है। गुंनगुने पानी मे घोल कर सेवन करें तो और जल्दी लाभ होता है।

भोजन करने के बीच मे पानी का सेवन न करें और भोजन करने के तुरंत बाद मूत्र विसर्जन करें तो हार्ट -हृदय मजबूत होता है।

अस्थमा-दमा की बीमारी मे तथा मानसिक चिंता होने पर भी यह 5 अतिरिक्त ॐ वाला गायत्री मंत्र ही 'राम बाण औषधि' है। 

आधुनिक रिसर्च 'अरहर की पत्ती' का 'पेस्ट स्तन पर लेप करके दूध न बनने की परेशानी  दूर करने की बात करता है। जबकि 'सिंघाड़े के आटे का हलवा' खिला कर प्रसूता के स्तनों मे दुग्ध की मात्रा बढ़ाना सुगम कारगर उपाय है। 

Sunday, February 19, 2012

प्यासा -शिव ------ विजय राजबली माथुर

विगत नौ अक्तूबर 2011 को कैफी आज़मी एकेदेमी,निशात गंज,लखनऊ मे 'प्रगतिशील लेखक संघ' के 75 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर एक गोष्ठी मे बोलते हुये भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय सचिव कामरेड अतुल अनजान ने लेखकों को 'प्यासा' फिल्म देखने का सुझाव दिया था और सवाल उठाया था कि आज उस प्रकार की फ़िलमे क्यों नहीं बन रही हैं?आज लेखक जन सरोकार के विषयों पर क्यों नहीं लिख रहे हैं?आज उत्तर प्रदेश के चौथे चरण के चुनाव मे अपने क्षेत्र लखनऊ उत्तर मे मतदान के बाद हमने इन्टरनेट पर 'प्यासा' फिल्म का अवलोकन किया(19 फरवरी 1957 को ही इसे सर्टिफिकेट जारी हुआ था )। मलीहाबाद क्षेत्र के हमारे प्रत्याशी कामरेड महेंद्र रावत के प्रचार अभियान के दौरान बहुत निकट से ग्रामीण क्षेत्र की समस्याओं को भी समझने का अवसर मिला था। सरकारी दावों ,बुद्धिजीवियों के विचारों और वास्तविकता मे काफी अंतर दीखने को मिला है।

गुरु दत्त साहब द्वारा लिखित,निर्देशित और अभिनीत फिल्म 'प्यासा' एक शायर को केन्द्रित करते हुये समाज मे फैले धनाडम्बर का पर्दाफाश करती है। धन लोलुपता के कारण भाई ही शायर भाई को घर छोडने पर मजबूर करते हैं। साथी उसकी गरीबी का उपहास  उड़ाते हैं।धनवान प्रकाशक उसकी मजबूरी का लाभ उठाते हैं। भाइयों द्वारा 10 आना पाने के लिए रद्दी मे बेचीं नज़मों को एक वेश्या ने रद्दी वाले से खरीद लिया और उसकी मौत की अफवाह के बाद अपना गहना बेच कर 'परछाइयाँ' शीर्षक से उन नज़मों को छपवाया। गरीब फेरी वाले ने उस शायर को पागलखाने से निकलवाया।

कामरेड अतुल अनजान ने गहन चिंतन-मनन के उपरांत ही प्रगतिशील लेखकों को 'प्यासा' फिल्म देखने का सुझाव दिया होगा। आज समाज मे उस स्तर के बुद्धिजीवी नहीं हैं सभी पैसों के पीछे भाग रहे हैं और जो ऐसा नहीं कर सकते वे उस शायर -'विजय' की ही भांति उपेक्षित और बदहाल हैं।

कल 'शिवरात्रि' है। 'शिव' विद्या और विज्ञान का प्रदाता स्वरूप है परमात्मा का। इसी दिन मूलशंकर तिवारी को बोद्ध-ज्ञान प्राप्त हुआ था और वह महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती बन सके। दुर्भाग्य की बात है कि हमारे साम्यवादी विद्वान पोंगापंथियों द्वारा घोषित धर्म के रूप को सच मान कर धर्म का विरोध करते हैं। जागरूक कामरेड कुलदीप सिंह पुनिया  ने सवाल उठाया है-



वामपंथी पार्टिओं का घटता जनाधार , क्या गौर किया है इस पर किसी भी दूकान ने ( मैं इन पार्टियों को दूकान ही कहता हूँ ) हम कामरेड है ;नास्तिक है क्योंकि कामरेड होने के लिए नास्तिक होना जरुरी होता है ना लेकिन भारत की परिस्थिति ऐसी है की यहाँ की 90 प्रतिशत जनता धर्म भीरु है . तो फिर हम कहाँ चीन या क्यूबा से कैडर निकाल कर लायेंगे क्या? धर्म या धार्मिक आस्था व्यक्तिगत प्रश्न है इसलिए आप किसी को कम्युनिष्ट बनाते ही उसे साथ ही नास्तिकता का पाठ पढाने लग जाते है ये सही है या गलत ..............जवाब चाहिए .

हमारे विद्वान बुद्धिजीवी जिनमे बामपंथी भी शामिल हैं 'धर्म' का अर्थ ही नहीं समझते और न ही समझना चाहते हैं। पुरोहितवादियो ने धर्म को आर्थिक शोषण के संरक्षण का आधार बना रखा है और इसीलिए बामपंथी पार्टियां धर्म का विरोध करती हैं। जब कि वह धर्म है ही नहीं जिसे बताया और उसका विरोध किया जाता है। धर्म का अर्थ समझाया है 'शिवरात्रि' पर बोध प्राप्त करने वाले मूलशंकर अर्थात दयानंद ने। उन्होने 'ढोंग-पाखंड' का प्रबल विरोध किया है उन्होने 'पाखंड खंडिनी पताका' पुस्तक द्वारा पोंगापंथ का पर्दाफाश किया है। 

दयानन्द ने आजादी के संघर्ष को गति देने हेतु1875 मे  'आर्यसमाज' की स्थापना की थी ,उसे विफल करने हेतु ब्रिटिश शासकों ने 1885 मे  कांग्रेस की स्थापना करवाई तो आर्यसमाँजी उसमे शामिल हो गए और आंदोलन को आजादी की दिशा मे चलवाया।1906 मे अंग्रेजों ने मुस्लिम लीग स्थापित करवाकर देश मे एक वर्ग को आजादी के आंदोलन से पीछे हटाया। 1920 मे हिन्दू महासभा की स्थापना करवा कर दूसरे वर्ग को भी आजादी के आंदोलन से पीछे हटाने का विफल प्रयास किया। 1925 मे साम्राज्यवादी हितों के पोषण हेतु आर एस एस का गठन करवाया जिसने मुस्लिम लीग के समानान्तर सांप्रदायिकता को भड़काया और अंततः देश विभाजन हुआ। आर्यसमाज के आर  एस एस के नियंत्रण मे जाने के कारण राष्ट्रभक्त आर्यसमाजी जैसे स्वामी सहजानन्द ,गेंदा लाल दीक्षित,राहुल सांस्कृत्यायन आदि 1925 मे स्थापित 'भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी' मे शामिल हुये जिसका गठन आजादी के क्रांतिकारी आंदोलन को गति देने हेतु हुआ था। सरदार भगत सिंह,राम प्रसाद 'बिस्मिल' सरीखे युवक 'सत्यार्थ प्रकाश'पढ़ कर ही क्रांतिकारी कम्युनिस्ट बने थे। 

दुर्भाग्य से आज विद्वान कम्यूनिज़्म को धर्म विरोधी कहते हैं और कम्युनिस्ट भी इसी मे गर्व महसूस करते हैं। धर्म जिसका अर्थ 'धारण करने'से है को न मानने के कारण ही सोवियत रूस मे कम्यूनिज़्म विफल हुआ और चीन मे सेना के दम पर जो शासन चल रहा है वह कम्यूनिज़्म के सिद्धांतों पर नहीं है। 'कम्यूनिज़्म' एक भारतीय अवधारणा है और उसे भारतीय परिप्रेक्ष्य मे ही सफलता मिल सकती है। अतः कामरेड कुलदीप की आशंका को निर्मूल नहीं ठहराया जा सकता है। 


'नास्तिक ' स्वामी विवेकानंद के अनुसार वह है जिसका अपने ऊपर विश्वास नहीं है और 'आस्तिक' वह है जिसका अपने ऊपर विश्वास है। लेकिन पोंगापंथी उल्टा पाठ सिखाते हैं। परंतु कम्युनिस्ट सीधी बात क्यों नहीं समझाते?यह वाजिब प्रश्न है। 

इस ब्लाग के माध्यम से समय-समय पर धर्म के संबंध मे विद्वानों के विचारों को प्रस्तुत किया है। ज्ञान-विज्ञान के प्रदाता 'शिव' की रात्री पर यदि विज्ञान सम्मत धर्म के आधार पर कम्यूनिज़्म को जनता को समझाने का संकल्प लिया जाये तो निश्चय ही भारत मे संसदीय लोकतन्त्र के माध्यम से कम्यूनिज़्म स्थापित हो सकता है। 
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24 फरवरी 2017 

Saturday, February 18, 2012

मतदान महायज्ञ

(सभी कटिंग्स हिंदुस्तान,लखनऊ,18 फरवरी 2012 से साभार)

कल दिनांक 19 फरवरी 2012 को उत्तर प्रदेश विधानसभा हेतु मतदान होना है और अखबारी आशंकाओं के मुताबिक भ्रष्टाचार पर गर्जन-तर्जन करने वाला ड्राइंग हाल हीरो तबका घर मे बैठ कर गुलछर्रे उड़ाएगा एवं अपने कर्तव्य -मतदान का पालन नहीं करेगा। वास्तविकता का पता अखबारी दुनिया से ही 20 ता .की  प्रातः चल जाएगा। इंटरनेटी मीडिया कल ही सच्चाई उजागर कर देगा। लखनऊ जिले मे मलीहाबाद (सु ) से कामरेड महेंद्र रावत और पड़ौसी जिले हरदोई की संडीला से कामरेड गंगा राम,एडवोकेट भाकपा के प्रत्याशी हैं। मलीहाबाद के प्रत्याशी के साथ प्रचार अभियान मे शामिल रहने के कई अवसर प्राप्त हुये। मलीहाबाद विधानसभा क्षेत्र सुरक्षित सीट वाला है ,यह ग्रामीण क्षेत्र है। मलीहाबाद,माल,रहीमाबाद,काकोरी आदि मे घने आम के बाग हैं। यह इलाका विश्व प्रसिद्ध  'मलीहाबादी आम' की पट्टी है। आम के निर्यात का लाभ व्यापारियों को होता है और आम ग्रामीण कृषि व आम के आर्थिक लाभ से वंचित ही है। ग्रामीण क्षेत्रों मे बिजली और पानी की काफी समस्याएँ हैं। लखीमपुर खीरी से एक बाघ भाग कर रहमान खेड़ा के जंगलों मे डेरा डाले हुये है जो जब तब गरीब किसानों के मवेशियों को शिकार बना रहा है। यहाँ के निवासियों मे भय व्याप्त है और वन विभाग के अधिकारी केवल बाघ पकड़ने के नाम पर सरकारी धन को लूटने मे लगे हुये हैं जनता की सुरक्षा से उन्हें कोई मतलब नहीं है। सत्तारूढ़ दल के विधायक जीत के प्रति सशंकित होने के कारण कोई रुचि नहीं ले रहे हैं। भाकपा प्रत्याशी ने मीडिया के  सहयोग  से  समस्या का निदान करवाने का प्रयास किया किन्तु मीडिया भाकपा की सही मांग पर भी कोई योगदान देने का संकेत नहीं दे रहा है।

जातियों के आधार पर जनता दलों के बीच विभाजित है ऐसे मे भाकपा प्रत्याशी द्वारा सभी वर्गों एवं जातियों के लोगों को उनकी समस्याओं के प्रति लामबंद करने का प्रयास सराहनीय रहा है। ग्रामीण जनता जागरूक है और सही बातों को समझती है। शहरी बुद्धिजीवी वर्ग की भूमिका अन्ना के भ्रष्ट आंदोलन पर सक्रियता की थी इस 'मतदान यज्ञ' मे वह क्या भूमिका अदा करता है यह देखने की बात है। 

Sunday, February 12, 2012

गलत अर्थ -धर्म और राजनीति के




हमारे देश मे दो प्रकार के भ्रम चल रहे हैं। कुछ लोग धर्म के गलत अर्थ निकालते हुये उसे उपासना पद्धति से जोड़ते हैं। कुछ लोग राजनीति को गंदे लोगों के लिए सुरक्षित  छोड़ देते हैं। जैसा कि प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू जी का बयान दिसंबर 1951 मे प्रकाशित हुआ था उसमे उन्होने भी धर्म को प्रचलित मान्यता पर ही माना है लेकिन 'राजनीति'को अच्छे लोगों के लिए ही बताया है।

इसी ब्लाग मे कई लेखों मे स्पष्ट किया है कि 'धर्म' वह नहीं है जो समाज मे माना जाता है बल्कि धर्म वह है जो 'धारण'करता है। इसी प्रकार जो राजनीति देश के धारण करने के मार्ग मे बाधा हो वह भी अधर्म है। किन्तु दुखद बात है कि 'धर्म' के नाम पर देश को एक बार तोड़ा जा चुका है और आए दिन उसी गलत धर्म के नाम पर देश और इसकी जनता को तोड़ने के कुचक्र होते रहते हैं। 20 वर्ष पूर्व धर्म के नाम पर व्यापक सांप्रदायिक वैमनस्य फैलाया गया और जन-धन को हानी पहुंचाई गई। वस्तुतः इस धर्मोन्माद ने काफी लोगों को व्यवसायिक चोट पहुंचाई और सच्च तो यह है कि ऐसे घटनाक्रम चलाये ही जाते हैं कुछ निहित 'आर्थिक-हितों' की रक्षार्थ। यही कारण है कि जन साधारण के हितचिंतक कम्युनिस्ट दल 'धर्म' को त्याज्य मानते हैं क्योंकि वह आम जनता का शोषण-दमन करने का उपक्रम बंताते  है। बुद्धिजीवियों का यह कर्तव्य है कि वे जनता को वास्तविक 'धर्म' समझाएँ किन्तु वे शोषणकर्ताओं से उपकृत होने के कारण अपने धर्म-कर्तव्य का पालन नहीं करते हैं। नतीजा समाज मे अव्यवस्था,शोषण-उत्पीड़न,दमन जारी रहने से अशांति ,उपद्रव,आतंक पनपता है और अंततः सभी को अपार कष्टों का सामना करना पड़ता है।

धर्म का गलत अर्थ लेने की वजह से राजनीति भी गलत अर्थों मे ली जाती है और अच्छे लोग इससे विरत रहते हैं। परिणाम यह है कि राजनीति भी 'धर्म' की ही भांति गलत लोगों के हाथों मे पहुँच गई है। देश-हित,समाज-हित की बातें न होकर कुछ लोगों के मात्र आर्थिक-हितों का संरक्षण ही आज की राजनीति का उद्देश्य बन गया है।

अभी उत्तर-प्रदेश मे चुनाव के दो चरण हो चुके हैं तथा पाँच चरण बाकी हैं। यदि बुद्धिजीवी वर्ग आम जनता और देश-हित मे सही कर्तव्य -धर्म का पालन करे तो इन चुनावों के माध्यम से देश और समाज की दिशा को सही दिशा मे मोड़ा जा सकता है। काश 'धर्म' और 'राजनीति' के सही मर्म को बुद्धिजीवी खुद समझ पाते?

Sunday, February 5, 2012

सठियाने के बाद



(विजय,पूनम एवं यशवन्त माथुर)
अक्सर लोगों को कहते सुना है कि वह या यह सठिया गया है। वैसे लोग किस संदर्भ मे कहते हैं वे ही जानें। परंतु मै समझता हूँ कि जब कोई जीवन के साठ वर्ष पूर्ण कर ले तो उसे सठियाया कहते होंगे। यदि ऐसा ही है तब अब मै भी सठिया गया। मेरा ब्लाग का प्रारम्भिक लेख था-'आठ और साठ  घर मे नहीं'। 02 जून 2010 को ब्लाग मे प्रकाशन से पूर्व यह लेख लखनऊ के एक स्थानीय अखबार मे प्रकाशित हो चुका था। इसके मुताबिक मुझे अब घर छोड़ कर 'वानप्रस्थ'ग्रहण कर लेना चाहिए। परंतु समाज मे व्यावहारिक रूप से आज ऐसी व्यवस्था नहीं है। अतः आज 61वे वर्ष मे प्रवेश के बावजूद घर मे ही मेरी उपस्थिती बरकरार रह गई है। हालांकि मै चाहता हूँ कि घर मे न उलझा रह कर 'राजनीति' और 'लेखन' के माध्यम से समाज सेवा/जन सेवा मे अधिकाधिक अपना समय लगाऊ । यों तो राजनीति मे मै किसी न किसी रूप मे युवावस्था से ही हूँ। 22 वर्ष की अवस्था मे मै 'सारू मजदूर संघ',मेरठ की कार्यकारिणी मे था और कुछ समय कार्यवाहक कोषाध्यक्ष भी रहा था। न चाहते हुये भी 26 वर्ष की अवस्था मे 'होटल मुगल कर्मचारी संघ',आगरा का महामंत्री (SECRETARY GENERAL)बनना पड़ा था। 25 वर्ष की अवस्था मे 'जनता पार्टी'(चंद्रशेखर की अध्यक्षता वाली) का साधारण सदस्य और 28-29 वर्ष की अवस्था मे ए बी बाजपाई की अध्यक्षता वाली 'भाजपा' का सक्रिय सदस्य था। 34 वर्ष की आयु से 'भाकपा' मे आया (42 वर्ष आयु से 54 वर्ष आयु तक मुलायम सिंह की आद्यक्षता वाली 'समाजवादी पार्टी' मे -पूर्वी विधान सभा क्षेत्र ,आगरा का महामंत्री फिर बाद मे डॉ डी.सी .गोयल के महानगर अध्यक्ष बनने पर उनकी नगर कार्यकारिणी मे भी रहा और राज बब्बर से भी पहले 'सपा' छोड़ कर खाली बैठा था कि आगरा-भाकपा के मंत्री के आग्रह पर वापिस 'भकपा'मे लौट आया)और आज 'सठियाते समय' लखनऊ -भाकपा की जिला काउंसिल मे हूँ।

जहां अधिकांश लोगों को कहते सुना जाता है कि राजनीति भले लोगों के लिए नहीं है वहीं इसके ठीक विपरीत मेरा सुदृढ़ अभिमत है कि 'राजनीति' है ही भले लोगों के लिए और राजनीति को 'गंदा' करने के लिए जिम्मेदार हैं तथाकथित 'भद्र जन'जो छुद्र स्वार्थों के कारण राजनीति से दूर रहते है और इसे गंदे लोगों के लिए खाली छोड़ देते हैं। MAN IS A POLITICAL BEING -यह कथन है सुकरात (प्लूटो)का जो अरस्तू (एरिस्टाटल )का गुरु था। अर्थात Man is a social animal -मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है-कहने वाले के गुरु का कहना है कि ' मनुष्य जन्म से ही एक राजनीतिक प्राणी है'। समाँज मे तो मनुष्य जन्म के बाद ही आता है तब जब वह सक्रिय होता है किन्तु राजनीति मे तो वह जन्मते ही शामिल हो जाता है। फिर कैसे 'राजनीति' गंदे लोगों के लिए है?दरअसल ऐसा कहने वाले लोग ही गंदे होते हैं जो समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन नही करना चाहते-उनका मूल मंत्र होता है-मेरा पेट हाऊ मै न जानूँ काऊ ।

आज सठियाते समय मै तो सामान्य से अधिक सक्रिय हूँ अपने शौक(Hobby)-राजनीति मे और लेखन मे भी  क्योंकि अभी हमारे उत्तर प्रदेश मे विधान सभा चुनाव चल रहे हैं। आज से दो सप्ताह बाद हमारे नगर लखनऊ मे मतदान होना है। इस बार हमारी भाकपा ने पूरे प्रदेश मे अपने 55 और सम्पूर्ण बामपंथ ने 115 प्रत्याशी चुनाव मे उतारे हैं एक मजबूत विपक्ष विधानसभा मे बनाने हेतु जो दबे-कुचले,शोषित-उपेक्षित ,किसानों-मजदूरों की समस्याओं पर सदन के भीतर ही सशक्त आवाज बुलंद करेगा। एक मजबूत विपक्ष के आभाव मे सरकारें निरंकुश और भ्रष्ट होती रही हैं। भ्रष्टाचार मुक्त पार्टी-भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी इस बार के चुनावों के माध्यम से सरकार को अंकुश मे रखने का प्रयास कर रही है। सभी भद्र जनों को हमारे इस प्रयास मे सहयोग करना चाहिए। 'एकला चलो रे' सिद्धान्त के अनुसार मै तो इस अभियान मे संलिप्त हूँ ही और इस सठियाने के बाद और अधिक सक्रिय रहने का प्रयास करूंगा।

11 माह की नौकरी करने के बाद स्तीफ़ा मांगे जाने का विरोध करके डटे रहने के कारण 'सारू मजदूर संघ ',मेरठ के कोषाध्यक्ष ने मुझ से कहा था जब अपने लिए संघर्ष कर सकते हो तो सब के भले के लिए यूनियन मे शामिल हो जाओ और पिछ्ले समय से सदस्यता देकर मुझे कार्यकारिणी मे शामिल कर लिया गया था। आगरा मे भी मुझ पर दबाव था कि मै आगे आ कर यूनियन के गठन मे सहयोग दूँ परंतु पहले मै दूर ही रहा। किन्तु 'होटल मुगल कर्मचारी संघ',आगरा का रेजिस्ट्रेशन होने से पूर्व ही महामंत्री का चयन बैंक आफ बरोदा मे DRO के रूप मे हो गया। मँझधार मे छूटी यूनियन का मुझे सीधे महामंत्री घोषित कर दिया गया और फिर बाद मे मुझे पिछले समय से सदस्यता ग्रहण करनी पड़ी थी। जनता पार्टी सरकार बनने के बाद मुगल होटल मे सहयोगी केरल वासी विजय नायर साहब ने एक रुपया लेकर जबर्दस्ती 'जनता पार्टी' की सदस्यता दे दी थी। क्योंकि 'होटल मुगल कर्मचारी संघ',आगरा के रेजिस्ट्रेशन के वक्त बी एम एस नेताओं ने मदद की थी अतः उनके प्रस्ताव को नजरंदाज न कर पाने के कारण 'भाजपा' का सक्रिय सदस्य बनना मजबूरी का सबब था। 25 लोगों से एक-एक रुपया लेकर रसीद बुक जमा कर देने के कारण 'सक्रिय सदस्यता' प्रदान कर दी गई थी। जब किसी से एक पान भी  खाये बगैर ही सबका कार्य सम्पन्न कराया हो तब सीट पर बैठे-बैठे एक-एक रु.की रसीद तो सम्पूर्ण 450 लोगों की काटी जा सकती थी 25 की क्या  कोई बात थी?एक-आध बार बैठकों मे भाग लिया तो समझ आया कि यह-भाजपा  तो व्यापारियों और पोंगापंथियों की पोषक पार्टी है  ,आम जनता के हितों से इसका कोई सरोकार नहीं है । अंदरूनी बैठकों मे इसके नेता और कार्यकर्ता कुत्ते-बिल्ली की तरह लड़ते हैं। अतः गुप-चुप तरीके से अलग हो गया।

होटल मुगल से बर्खास्तगी के विरुद्ध कानूनी लड़ाई लड़ने के वक्त बने संपर्कों के आधार पर 1986 मे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मे शामिल कर लिया गया और बाद मे कोषाध्यक्ष भी रहा। 1994 से 2004 तक समाजवादी पार्टी ,आगरा मे रहा, दो वर्ष निष्क्रिय रहने के बाद वापिस सी पी आई  मे आ गया और 2006 से पुनः भाकपा मे सक्रिय हूँ। 45 वर्ष से 52 वर्ष की आयु तक 'बल्केश्वर-कमलनगर आर्यसमाज',आगरा मे भी सक्रिय रहा और इसकी कार्यकारिणी मे भी शामिल किया गया जिससे एक माह मे ही हट गया था। स्वामी दयानन्द सरस्वती से शुरू से ही प्रभावित था 11 वर्ष की उम्र मे उनका 'सत्यार्थ प्रकाश' काफी अच्छा लगा था। 17 से 19 वर्ष की आयु के मध्य मेरठ कालेज ,मेरठ के पुस्तकालय मे उनके प्रवचनों का संग्रह-'धर्म और विज्ञान' भी पढ़ा-समझा था और आज भी उनके विचार सर्वोत्कृष्ट लगते हैं। किन्तु महर्षि द्वारा स्थापित संगठन 'आर्यसमाज' अधिकांशतः उनके विचारों के विरोधी संगठन आर एस एस से प्रभावित लोगों के चंगुल मे फंस गया है अतः गुप-चुप तरीके से संगठन से प्रथक्क हो गया। 49  वर्ष से 53 वर्ष की आयु तक 'कायस्थ सभा',आगरा मे भी सक्रिय रहा और इसकी कार्यकारिणी मे तथा कई सचिवों मे से एक सचिव भी रहा। इसका तथा 'अखिल भारतीय कायस्थ महासभा',आगरा का आजीवन सदस्य होते हुये भी इन संगठनों से निष्क्रिय इसलिए हो गया क्योंकि ये संगठन इनको चलाने वाले नेताओं के व्यापारिक हितों का संरक्षण करते हैं न कि आम लोगों का कल्याण। 

कुछ क्या अधिकांश लोगों को यह हास्यास्पद प्रतीत होता है कि मै कम्युनिस्ट पार्टी मे होते हुये भी 'वैदिक'मत का समर्थक कैसे हूँ?कारण यह है कि लोग भी समझते हैं और कम्युनिस्ट खुद भी अपने को धर्म विरोधी कहते हैं। वस्तुतः 'धर्म' को न समझने के कारण ही ऐसा भ्रम बना हुआ है। साधारणतः लोग ढोंग और पाखंड को धर्म कहते हैं और कम्यूनिज़्म इसी का विरोध करता है और स्वामी दयानन्द ने भी इसी का विरोध किया है। यही कारण है कि ठोस आर्यसमाजी को भी कम्युनिस्टों की भांति ही संशय की दृष्टि से देखा जाता है। जबकि वास्तव मे 'मानव जीवन को सुंदर,सुखद और समृद्ध' बनाने हेतु दोनों के विचार समान हैं । 'साम्यवाद' जिसे कम्यूनिज़्म कहा जाता है मूल रूप से भारतीय अवधारणा ही है जिसे मैक्स मूलर साहब अपने साथ यहाँ की मूल पांडु लिपियाँ लेकर जर्मनी पहुंचे और वहाँ उनके जर्मन अनुवाद से प्रभावित हो कर कार्ल मार्क्स ने जो निष्कर्ष निकाले वे ही कम्यूनिज़्म के नाम से जाने जाते हैं। सारा का सारा भ्रम साम्राज्यवाद के हितचिंतक संप्रदाय वादी आर एस एस का फैलाया हुआ है। इसी भ्रम को तोड़ना मेरा लक्ष्य है। अधिकाधिक लोगों का कल्याण हो और वे भटकें नहीं इसी विचार को लेकर मै 'हवन विज्ञान' संस्था बनवाना चाहता था और लोगों का हकीकत -सत्य से साक्षात्कार करवाना चाहता था। अपने निकटतम रिशतेदारों (जो मेरे लखनऊ आने के प्रबल विरोधी रहे और अब संबंध तोड़ लिए) के फैलाये कुचक्र के कारण इस विचार को फिलहाल स्थगित रखा है परंतु उम्मीद है कि भविष्य मे सफल हो सकूँगा।


दूसरे शौक लेखन मे 19 वर्ष की आयु मे 'मेरठ कालेज पत्रिका',मे एक लेख 'रावण वध एक पूर्व निर्धारित योजना' के प्रकाशन के साथ ही शामिल हूँ।21 वर्ष की अवस्था मे आगरा जहां अजय इंजीनियरिंग पढ़ रहे थे घूमने गया था और उनके परिचय से फारवर्ड ब्लाक के एक नेता के अखबार 'युग का चमत्कार' मे पहला लेख-'अंधेरे उजाले' जो महर्षि स्वामी दयानन्द 'सरस्वती'पर था प्रकाशित  हुआ था। आगरा के ही एक अखबार 'पैडलर टाइम्स' मे पहली कविता 'यह महाभारत क्यों होता?' प्रकाशित हुई थी।  सारू स्मेल्टिंग,मेरठ मे अकौण्ट्स विभाग मे होने के कारण पत्र-पत्रिकाओं के संपादकों से भी वास्ता पड़ता रहता था। 'पी  सी टाइम्स' के संपादक प्रकाश चंद जी मेरे सभी लेख छापने लगे उस वक्त उम्र 22  वर्ष थी। लेखों के आधार पर पत्र के प्रबन्धक मिश्रा जी ने एक बार मुझसे पूछा था कि आपने एम ए 'राजनीति शास्त्र' मे किया है अथवा 'हिन्दी साहित्य' मे? विनम्रता पूर्वक उन्हे समझाना पड़ा कि ,साहब मैंने तो एम ए ही नहीं किया है मात्र बी ए किया है। उन्होने प्रसन्नतापूर्वक कहा था जब भी इधर आना मुझसे मिले बगैर न जाना। उनके निर्देश का मैंने सहर्ष पालन सदैव किया।  

आगरा मे 29 वर्ष की अवस्था से 'सप्त दिवा'साप्ताहिक मे नियमित लेख प्रकाशित होते रहे बाद मे सहायक संपादक तथा उसके बाद उप संपादक के रूप मे भी इससे संबद्ध रहा। 'ब्रह्मपुत्र समाचार' ,आगरा मे 50 वर्ष की आयु से नियमित लेख आदि छपते रहे। 'माथुर सभा','कायस्थ सभा' की मेगजीन्स मे तो लेख छ्पे ही वैश्य समुदाय की 'अग्रमंत्र' त्रैमासिक पत्रिका मे भी उप-संपादक के तौर पर संबद्ध रहकर नियमित लिखता रहा। 58 वर्ष की उम्र मे लखनऊ के एक स्थानीय अखबार मे भी लेख छपे किन्तु जून 2010 से 'क्रांतिस्वर' ब्लाग बन जाने के बाद केवल ब्लाग्स और फेसबुक मे ही लिख रहा हूँ और आगे भी यह शौक बदस्तूर जारी ही रहने की संभावना है।