Thursday, June 30, 2011

किस नक्षत्र में जन्म लेने वाले बच्चे का कैसा भविष्य रहेगा?

इधर ज्योतिष संबंधी लेखों पर पाठक ब्लागर्स की ख्वाहिश को देखते हुए प्रस्तुत आलेख को तुरन्त प्रकाशित करना उचित समझा था.हालांकि यह 'ब्रह्मपुत्र समाचार',आगरा में दो बार-२६ जून से ०२ जूलाई २००३ एवं २५ सितम्बर से ०१ अक्टूबर २००३ के अंकों में पूर्व प्राकाशित है.यह भी खुशी की बात रही है कि,हमारे बाम-पंथी ब्लागर बंधुओं ने भी अपने पुत्र-पुत्रियों के सम्बन्ध में मुझ से ज्योतिषीय जानकारी प्राप्त की है जिन्हें मैंने तत्काल  सहर्ष उपलब्ध करवा दिया है.पूर्व में आर.एस.एस.से सम्बंधित ब्लागर्स (विदेश स्थित डा.,दिल्ली स्थित इंजीनियर और बैंक अधिकारी)को भी उनके हितार्थ जानकारियाँ दी थीं,परन्तु उनका व्यवहार अपने संगठन के चरित्र और संस्कृति के अनुसार  कटु एवं तिक्त रहा था.जबकि बाम-पंथी बंधुओं ने सहृदयता एवं सम्मान का परिचय दिया है. अभी 'विद्रोही स्व-स्वर में' मैं जो विवरण दे रहा हूँ ,वह लगभग घटनाओं के क्रम में है,बाद में उसे ग्रहों की महादशा-अंतर-दशा के क्रम में स्पष्ट करूंगा तब सबको चाहे वे ज्योतिष के जानकार न भी हों आसानी से ग्रह-नक्षत्रों का प्रभाव समझ आ जाएगा. तो जानिये उन लक्षणों को जिनसे किसी नक्षत्र विशेष  में जन्म लेने वाले व्यक्ति का स्वभाव ज्ञात होता है------- 
   
अब से लगभग दो अरब वर्ष पूर्व वर्तमान सृष्टि का उदय हुआ.ब्रह्माण्ड में असंख्य तारे व नक्षत्र हैं.तारों के समूह को कुल सत्ताईस नक्षत्रों में विभक्त कर दिया गया है और इन नक्षत्रों को बारह राशियों में बांटा गया है.प्रत्येक में चार चरण होते हैं.सूर्य (जो कि एक तारा है),चन्द्र (जो सूर्य से प्रकाशित और खुद छाया ग्रह है),मंगल,बुध,ब्रहस्पति,शुक्र और शनि -ये सात ग्रह माने जाते हैं.हमारी पृथ्वी अपनी धुरी पर थोड़ी सी (२३.५ डिग्री)झुकी हुयी है .इस प्रकार इसके उत्तरी व दक्षिणी दोनों ध्रुवों का भी इसके निवासियों पर प्रभाव पड़ता है.साथ ही प्रत्येक ग्रह व नक्षत्र से आने वाली रश्मियों  को भी ये ध्रुव परावर्तित करते हैं.ज्योतिष में पृथ्वी  के इन छोरों की गणना छाया ग्रह के रूप में क्रमशः राहू व केतु नामों से की गयी है.(तथा कथित धार्मिकों-पौरानिकों के अमृत-कलश और  सर-धड वाली झूठी कहानी के बहकावे में न आयें) इसी लिए राहू व केतु कभी भी साथ-साथ एक ही राशि में नहीं पड़ते बल्कि इनकी राशियों में पूर्ण १८० डिग्री का अंतर रहता है.भारतीय ज्योतिष में चंद्रमा को मन का प्रतीक  माना गया है और यह तीव्रगामी ग्रह है.किसी बच्चे के जन्म के समय चंद्रमा जिस नक्षत्र व राशि में भ्रमण कर रहा है उस बच्चे का जन्म का वही नक्षत्र व राशि निर्धारित होती है. आजीवन इस नक्षत्र का प्रभाव उस बच्चे पर पड़ता है.ऐसा उसके पूर्व जन्मों के संस्कारों पर निर्भर होता है.किस नक्षत्र में जन्म लेने वाले बच्चे का कैसा भविष्य रहेगा,ऐसा हमारे ऋषियों ने (जो महान वैज्ञानिक भी थे) अपने अनुभव के आधार पर निर्धारित किया है जो इस प्रकार है-


अश्वनी नक्षत्र  -में उत्त्पन्न मनुष्य सुन्दर रूप वाला ,सुभग(भाग्यवान),हर एक कामों में चतुर,मोटी देह वाला,बड़ा धनवान और लोगों का प्रिय होता है.

भरणी नक्षत्र-में उत्त्पन्न मनुष्य निरोग,सत्य-वक्ता,सुन्दर जीवन,दृढ  नियम वाला,खूब सुखी और धनवान होता है.

कृतिका नक्षत्र -में जन्म लेने वाला मनुष्य कंजूस,पाप-कर्म करने वाला,हर समय भूखा,नित्य पीड़ित रहने वाला और सदा नीच कर्म करने वाला होता है.

रोहिणी नक्षत्र-में जन्म लेने वाला बुद्धिमान,राजा से मान्य,प्रिय बोलने वाला,सत्य -वक्ता,और सुन्दर रूप वाला होता है.

मृगशिरा नक्षत्र-में उत्त्पन्न मनुष्य देह आकृति से ठीक ,मानसिक रूप से असंतुष्ट,समाज प्रिय ,अपने कार्य में दक्ष,चपल-चंचल,संगीत-प्रेमी,सफल व्यवसायी,अन्वेषक,अल्प-व्यवहारी,परोपकारी,नेत्रित्व क्षमताशील होता है.

आर्द्रा  नक्षत्र-में उत्त्पन्न मनुष्य कृतघ्न -किये हुए उपकार को न मानने वाला -क्रोधी,पाप में रत रहने वाला ,शठ और धन-धान्य से रहित होता है.

पुनर्वसु नक्षत्र -में जन्म लेने वाला मनुष्य शान्त स्वभाव वाला,सुखी,अत्यंत भोगी,सुभग,सभी जनों का प्रेमी

और पुत्र,मित्र आदि से युक्त होता है.

पुष्य नक्षत्र -में उत्त्पन्न मनुष्य देव,धर्म,धन आदि सबों से युक्त,पुत्र से युत,पंडित(ज्ञानी),शान्त स्वभाव ,सुभग और सुखी होता है.

आश्लेषा नक्षत्र -में उत्त्पन्न मनुष्य सब पदार्थों को खाने वाला अर्थात मांसाहारी ,दुष्ट आचरण वाला,कृतघ्न,ठग और दुर्जन तथा स्वार्थपरक कामों को करने वाला होता है.

मघा नक्षत्र -में उत्त्पन्न मनुष्य धनी,भोगी,नौकरी से संपन्न,पितृ-भक्त,बड़ा उद्योगी,सेनापति या राजसेवा करने वाला होता है.

पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र-में जन्म लेने वाला मनुष्य विद्या ,गौ,धन आदि से युक्त,गम्भीर,स्त्री-प्रिय,सुखी और विद्वान से आदर पाने वाला होता है.

उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र -में उत्त्पन्न मनुष्य सहनशील,वीर,कोमल वचन बोलने वाला,शस्त्र विद्या में प्रवीण ,महान योद्धा और लोकप्रिय होता है.

हस्त नक्षत्र -में उत्त्पन्न मनुष्य मिथ्या बोलने वाला,ढीठ ,शराबी,चोर,बंधुहीन और पर स्त्रीगामी होता है.

चित्रा नक्षत्र-में जन्म लेने वाला मनुष्य पुत्र और स्त्री से युक्त,सदा संतुष्ट,धन-धान्य से युक्त देवता और ब्राह्मणों का भक्त होता है.

स्वाती नक्षत्र -में उत्त्पन्न मनुष्य चतुर ,धर्मात्मा,कंजूस,स्त्रियों का प्रेमी,सुशील और देश भक्त होता है.

विशाखा नक्षत्र -में उत्त्पन्न मनुष्य अधिक लोभी ,अधिक घमंडी,कठोर,कलहप्रिय और वेश्यागामी होता है.

अनुराधा नक्षत्र -में उत्त्पन्न मनुष्य अपने पुरुषार्थ से विदेश में रहने वाला ,अपने भाई -बंधुओं की सेवा करने वाला परन्तु ढीठ होता है.

ज्येष्ठा  नक्षत्र -में उत्त्पन्न मनुष्य मित्रों से संपन्न,श्रेष्ठ,कवि,सहशील,विद्वान,धर्म में तत्पर और शूद्रों द्वारा पूजा जाता है.

मूल नक्षत्र -में जन्म लेने वाला मनुष्य सुख-संपन्न,धन,वाहन से युक्त,हिंसक,बलवान,विचारवान,शत्रुहंता,विद्वान और पवित्र होता है.

पूर्वाषाढ़ नक्षत्र -में उत्त्पन्न मनुष्य देखने मात्र से ही परोपकारी ,भाग्यवान,लोकप्रिय और सम्पूर्ण विद्वान होता है.

उत्तराषाढ़ नक्षत्र-में उत्त्पन्न मनुष्य बहू-मित्र संपन्न,हृष्ट-पुष्ट,वीर,विजयी,सुखी और विनीत स्वभाव का होता है.

श्रवण नक्षत्र -में उत्त्पन्न मनुष्य किये हुए उपकार को मानने वाला,सुन्दर,दानी,सर्वगुण-संपन्न,धनवान और अधिक संतान्युक्त होता है.

धनिष्ठा नक्षत्र -में उत्त्पन्न मनुष्य गाने का शौक़ीन ,भाइयों से आदर प्राप्त करने वाला,स्वर्ण-रत्न आदि से भूषित तथा सैंकड़ों मनुष्यों का मालिक बन कर रहता है.

शतभिषा नक्षत्र-में उत्त्पन्न मनुष्य कंजूस,धनवान,पर-स्त्री का सेवक तथा विदेशी महिला से काम करने वाला होता है.

पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र-में उत्त्पन्न मनुष्य सभा-वक्ता,सुखी,संतान-युक्त,अधिक सोने वाला और अकर्मण्य होता है.

उत्तराभाद्रपद नक्षत्र -में उत्त्पन्न मनुष्य गौर-वर्ण,सत्व-गुण युक्त ,धर्मग्य,साहसी,शत्रु हन्ता और देव-तुली होता है.

रेवती नक्षत्र-में उत्त्पन्न मनुष्य के सर्वांग पूर्ण-पुष्ट,पवित्र,चतुर,सज्जन,वीर,विद्वान और भौतिक सुखों से संपन्न होता है.

इन सत्ताईस नक्षत्रों के एक २८ वां नक्षत्र भी होता है जो उत्तराषाढ़ नक्षत्र की अंतिम १५ घटी तथा श्रवण नक्षत्र की प्रारम्भिक ०४ घटी अर्थात कुल १९ घटी का बनता है .इसे 'अभिजित नक्षत्र 'कहते हैं.

अभिजित नक्षत्र-में जन्मा मनुष्य उत्तम भाग्य शाली होता है.वह अत्यंत सुन्दर,कान्तियुक्त,स्वजनों का प्रिय,कुलीन,यश्भागी,ब्राह्मण एवं देवता का भक्त,स्पष्ट-वक्ता और अपने खानदान में नृप तुल्य होता है.

अपने-अपने पूर्वजन्मों के संचित संस्कारों के आधार पर मनुष्य विभिन्न नक्षत्रों में जन्म लेकर तदनुरूप चरित्र तथा आचरण वाला बन जाता है.यदि आप अपने कर्म को परिष्कृत करके आचरण करें तो आगामी जन्म अपने अनुकूल नक्षत्र में भी प्राप्त कर सकते हैं.तो चुनिए अपने आगामी जन्म का नक्षत्र और अभी से सदाचरण में लग जाइए और अपने भाग्य के विधाता स्वंय बन जाइए.

जो यह कहना चाहें कि,पूर्व जन्म और पुनर्जन्म होता ही नहीं है ,वे इस आलेख को सहजता से नजर-अंदाज कर सकते हैं.


Sunday, June 26, 2011

समान कार्य हेतु समान वेतन

24/06/2011

आय की असमानता और मंहगाई  
यह सम्पादकीय इस बारे में चिंता व्यक्त करता है कि,मंहगाई बढ़ने से जनता के जीवन-स्तर की प्रगति किस प्रकार रुक जाती है.बिलकुल सही बात है,लेकिन एक और भी समस्या प्रमुख है और वह है आय की असमानता .आम तौर पर केन्द्रीय कर्मचारियों का वेतन बढ़ते ही बाजार में मंहगाई बढ़ जाती है तब राज्यों में कर्मचारी आंदोलनों के जरिये अपने वेतन में कुच्छ बढ़ोतरी करवा लेते हैं,लेकिन निजी क्षेत्र के कर्मचारियों का वेतन आम-तौर पर नहीं बढ़ता है.ऐसी स्थिति में निजी क्षेत्र के मजदूर(हाथ और कलम दोनों के),छोटे किसान,फेरी वाले आदि को जीवन गुजारना दुरूह होता जाता है.उदाहरणार्थ सरकार जब गैस के दाम बढाती है तो भुगतान सभी को एक सा करना होता है जबकि आय सब की एक सी नहीं है.अनाज,दालें,दवाएं,दूध,फल,सब्जी सभी चीजें तो सब को एक दाम पर खरीदनी हैं लेकिन उन्हें उनके श्रम का भुगतान अलग-अलग दर से होता है.

आज जरूरत इस बात की है कि 'एक समान कार्य के लिए एक समान वेतनमान 'हो -कर्मचारी चाहे केंद्र सरकार में हो,चाहे राज्य सरकार में ,चाहे निजी क्षेत्र में उसे एक जैसे कार्य का एक समान वेतन मिलना चाहिए.व्यापारी और उद्योगपति तो अपने प्रोडक्ट का दाम खुद तय करता है,लेकिन किसान अपने प्रोडक्ट को अपने तय दाम पर नहीं बेच पाता है.अन्न दाता होकर भी किसान कंगाल ही रह जाता है ,तिस पर भी विकास के नाम पर उसकी जमीन छीन लेने का एक फैशन चल रहा है.

समय का तकाजा है कि जो लोग समृद्ध  हैं,खुद-ब-खुद बाकी लोगों का ख्याल करते हुए त्याग का परिचय दें और उनका जीवन-स्तर ऊपर उठाने में वांछित सहयोग दें.अन्यथा समय अपने हिसाब से न्याय कर ही देगा.आजकल भ्रष्टाचार उन्मूलन का जोअन्ना- फैशन चल रहा है वह वास्तविक जन -मुद्दों से आम लोगों को भटका कर शोषण कारियों  को लाभ दिला रहा है.'हिंदुस्तान लीवर लि.'जो मजदूरों का खुद शोषण करने में पीछे नहीं है आखिर क्यों अन्ना-टीम को आन्दोलन हेतु धन उपलब्ध करा रहा है जिसका उन्हीं के पूर्व साथी बाबा रामदेव ने खुलासा किया था.२५ जून २०११ के हिंदुस्तान,लखनऊ में छपे इस लेख का अवलोकन करें.


हिंदुस्तान-लखनऊ-२५/०६/२०११


वर्तमान शासकों की लापरवाही का ही यह परिणाम है जैसा की श्री शशी शेखर ने अपने २६ जून २०११ के सम्पादकीय में हिन्दुस्तान में लिखा है-"इसीलिये कुछ लोग खुद को जनता की आकांक्षाओं के मुखौटे के तौर पर पेश कर रहे हैं.इनमें से किसी का सियासी अनुभव नहीं है.इससे कुछ आशंकाएं बलवती हो रही हैं .कहीं ऐसा तो नहीं कि वे अनजाने ही जन आक्रोश को इतनी हवा दे  दें कि उसे सम्हालना मुश्किल हो जाए?मैं यहाँ कतई ऐसा नहीं कह रहा कि साफ़ -सुथरी सत्ता प्रणाली की मांग नाजायज है;पर इसके लिए उतावलापन उचित नहीं.परिवर्तन कामियों  ने एक मशाल जला दी है.अब उन्हीं की जिम्मेदारी है कि इसका प्रयोग सिर्फ और सिर्फ उजाला फैलाने के लिए हो ;आग भड़काने के लिए नही."

शशी शेखर जी भले ही साफ़-साफ़ न कहें परन्तु मुझे सच कहने से कोई गुरेज नहीं है कि अन्ना-रामदेव के आन्दोलन आर.एस.एस.के प्रभाव में हैं और साम्राज्यवादियों की चाल के तहत जनता को गुमराह करने हेतु चलाये जा रहे हैं अन्यथा धार्मिक भ्रष्टाचार जो आर्थिक भ्रष्टाचार की जननी है को समाप्त किये बगैर आधी-अधूरी बात क्यों की जा रही है?पेट्रोलियम पदार्थों में बढ़ोत्तरी करके सरकार ने जनता की कमर तोड़ दी है -कम वेतन वाले कैसे क्या  करें ?यह चिंतन का विषय प्राथमिकता पर होना चाहिए एवं समान कार्य हेतु समान वेतन का आन्दोलन सम्पूर्ण देश में एक साथ प्रारम्भ करने का प्रयास किया जाना चाहिए.




Friday, June 24, 2011

पास्को का विरोध जायज है


'Hindustan-Lucknow-2 0/06/2011-Page-14

कोरिया की 'पोहांग आयरन एंड स्टील कं.'को ५० हजार करोड़ रूपये से भी अधिक निवेश से उडीसा के जगत सिंह पुर  जिले में महानदी डेल्टा की उपजाऊभूमि  में इस्पात  कारखाना खोलने की इजाजत नियमों एवं कानूनों का उल्लंघन करके दे दी गयी है. इसके विरोध में अभय साहू के नेत्रित्व में पिछले छः वर्षों से 'पोस्को प्रतिरोध संग्राम समिति'के तत्वावधान में सशक्त जन-आन्दोलन चल रहा है.लेकिन केंद्र तथा उड़ीसा की सरकारें इसकी परवाह किये बगैर विदेशी कं. के हित में कार्य कर रही हैं.  

कहा जाता है कि,यह परियोजना भारत के सार्वजनिक क्षेत्र की अनेक जानी-मानी परियोजनाओं की कुल उत्पादन क्षमता के मुकाबले भी बहुत अधिक १२० लाख टन वार्षिक इस्पात  का उत्पादन करने वाली है.अंतर राष्ट्रीय बाजार में लौह अयस्क की कीमतें बढी हुयी हैं लेकिन इस कं. को सस्ती दर पर ही उपलब्ध कराया जा रहा है.एक ही स्थान पर बेहद अधिक लौह अयस्क जमा करने से पर्यावरण पर भारी विपरीत प्रभाव पड़ेगा.यह बेहद उपजाऊ भूमि है इसके छिनने से खेती,वन,पशु-पालन आदि पर आधारित आजीविकाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने जा रहा है.जितना रोजगार यह परियोजना उपलब्ध करायेगी उससे कहीं अधिक टिकाऊ आजीविका की क्षति होगी.

जगतसिंह पुर जिले के गोबिंदपुर गाँव में ३०० मासूम बच्चे ६०० लाठी,डंडों और मशीनगन से लैस पुलिस  जवानों के समक्ष अपनी पुश्तैनी जमीन बचाने के लिए डटे हुए हैं.ग्रामीणों के साथ महिलाओं और बच्चों का यह सहयोग 'लव-कुश /राम संगर्ष 'की याद दिलाता है.तब वाल्मीकि मुनि की रण-नीति के अनुसार ऐसा करके लव-कुश ने राम पर विजय प्राप्त की थी.आज अब देखना है कल-युग में महिलायें और बच्चे कितनी जीत प्राप्त कर सकते हैं.भारत के नागरिक होने के नाते हम सब का यह पुनीत कर्तव्य है कि,हम सब उड़ीसा की जनता के साथ अपनी एकजुटता का सन्देश सरकार को दें.आज पूरे देश में 'पास्को विरोधी दिवस'मनाया जा रहा है -हम उत्तर-प्रदेश वासी तहेदिल से अपने उडिया बंधुओं के साथ हैं.हम उड़ीसा और केंद्र की सरकारों से यह मांग करते हैं कि तत्काल प्रभाव से पास्को कं. को गलत ढंग से दिया गया आदेश रद्द किया जाए और किसानों की उपजाऊ भूमि को उनसे न छीना जाए.

ममता बैनर्जी सहयोग दें

प.बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बैनर्जी ने सिंगूर और नंदीग्राम में देश की टाटा कं.को कारखाना नहीं खोलने दिया तथा किसानों की जमीन वापिस करा रही हैं.इसी प्रकार उन्हें अपने पडौसी राज्य उडीसा की ग्रामीण जनता के हक़ में वहां के मुख्यमंत्री श्री नवीन पटनायक को समझाना चाहिए.यदि वह ऐसा नहीं करती हैं तो यह समझा जाना चाहिए कि ,ममता जी केवल बंगाल का मुख्यमंत्री बनने के लिए किसान-हितैषी होने का स्वांग कर रही थीं वस्तुतः वह कुर्सीवादी हैं और किसान-हितैषी नहीं.

नवीन पटनायक राष्ट्रभक्ति का परिचय दें

उडीसा के मुख्यमंत्री नवीन जी के पिता श्री विजयेन्द्र (उर्फ़ बीजू)पटनायक ने उस वक्त असीम राष्ट्र भक्ति का परिचय दिया था जब काश्मीर पर पकिस्तान का कबाइली हमला हुआ था.बीजू पटनायक जी विमान चलाना जानते थे और कांग्रेसी नेता थे.तत्कालीन केन्द्रीय खाद्य  मंत्री रफ़ी अहमद किदवई साहब के भाई जो तब गृह मंत्रालय में सचिव थे को लेकर बीजू साहब विमान से श्रीनगर पहुंचे थे और राजा हरी सिंह के साथ भारत में विलय का समझौता कराया था.उन्हीं के पुत्र हैं नवीन पटनायक जी अतः उनसे अपेक्षा है कि अपने पिता की
भांति राष्ट्रभक्ति का परिचय देते हुए पास्को से किये गए समझौते को रद्द करने में सक्रीय कदम उठायें तथा -

निरीह किसानों की आजीविका का साधन उनकी उपजाऊ जमीने न छीनें.

यह क्षेत्र देश की सीमा की सुरक्षा की दृष्टि से भी विदेशी कं. के पास नहीं जाना चाहिए ,अतः समस्त देशवासियों से आग्रह है कि वे उड़ीसा की जनता के साथ एकजुटता बनाएं और सरकार को देश-हित में कदम उठाने पर बाध्य कर दें.


Wednesday, June 22, 2011

भ्रष्टाचार दूर करना चाहते हैं या लोकतंत्र को नष्ट करना?

दबाव से मुक्त हों संस्थाएं


पूर्व प्रधानमंत्री एच .डी देवेगौडा ने कहा है कि,लोकपाल विधेयक जल्दबाजी में नहीं बनना चाहिए.निर्णय लेने वाली संस्थाओं को इस तरह के राजनीतिक दबाव से मुक्त होना चाहिए.('हिंदुस्तान' लखनऊ में प्रथम पृष्ठ पर  प्रकाशित)

देवगौड़ा जी के ब्यान को हलके में नहीं लेना चाहिए.जब वह प्रधानमंत्री थे तो उनके मंत्रीमंडल में का.इन्द्रजीत गुप्त और का.चतुरानन मिश्र के प्रभाव से पहली बार 'लोकपाल'विधेयक संसद में पेश हुआ था,उसके बाद कई प्रयास हुए परन्तु अभी तक पास होकर क़ानून नहीं बन सका है.सुप्रसिद्ध मजदूर नेता का.गुरुदास दास गुप्त   एक लम्बे समय से भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने तथा विदेशों से काला धन वापिस करने की मांग करते आ रहे थे और जब केंद्र की सरकार में कम्युनिस्टों को भागीदारी मिली तो उनके प्रयास से सार्थक पहल हुयी थी.भाजपा ने कांग्रेस से मिल कर देवगौड़ा जी की सरकार गिरवा दी थी.

आज जब देवगौड़ा जी धैर्य रखने की बात कर रहे हैं तो उसके पीछे सार्थक कारण हैं.वस्तुतः यदि वास्तव में कम्युनिस्टों की पहल पर भ्रष्टाचार विरोधी कोई भी उपाय किया जाता है तो उससे आम जनता निश्चय ही लाभान्वित होगी परन्तु जो भ्रष्ट तत्व हैं वे ऐसा नहीं चाहते;उनका प्रयास है कि जनता को गुमराह करके एक थोथा लोकपाल बिल पास करा दिया जाये और उनका कार्य बदस्तूर जारी रह सके.इसी लिए कार्पोरेट घरानों ने स्पोंसर करके अन्ना हजारे और रामदेव को आगे खडा कर दिया है.इन दोनों द्वारा जिस प्रकार की गतिविधियाँ चल रही हैं उनसे लोकतंत्र पर संकट मंडराता दीख रहा है.एक तो वैसे ही यह लोकतंत्र मात्र दिखावे का है पर जो है उसे भी ख़त्म कर देना कौन सी अक्लमंदी है? डा. डंडा लखनवी जी ने अपनी पोस्ट 'लोकपाल होगा नहीं,होगा एप्रिल फूल' में इसी खतरे का जिक्र किया है.

धार्मिक भ्रष्टाचार ,आर्थिक भ्रष्टाचार की जननी है 

अन्ना ,रामदेव आदि जिस प्रकार के लोकपाल की बात कर रहे हैं वह निरंकुश होगा तथा जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों से भी ऊपर होगा.यदि ऐसा हो तो लोकतंत्र के क्या मायने हैं?वस्तुतः शोषण कारी ,पूंजीवादी शक्तियां जो साम्राज्यवादियों का खेल खेल रही हैं चाहती ही नहीं कि देश में लोकतंत्र रहे.उनका उद्देश्य अपने मुनाफे और लूट को बढ़ाना है.इसलिए अन्ना और रामदेव के आन्दोलन जनता का ध्यान वास्तविकता से हटाने हेतु चलवाए गए हैं न कि भ्रष्टाचार दूर करने हेतु.

कुछ माह पहले हमारे घर के पास 'सत्य नारायण वेद प्रचार ट्रस्ट'के तत्वाधान में हुए एक कार्यक्रम में एक आर्यसमाजी उपदेशक महोदय बता रहे थे कि हमारे देश में जन्मते ही बच्चे को लेने की आदत डाल दी जाती है,देना तो सिखाया ही नहीं जाता.उन्होंने उदाहरण देकर बताया था कि,जन्म के समय बच्चे को सब हथौना देते हैं,फिर नामकरण,मुंडन ,कर्णछेदन ,अन्नप्राशन आदि आदि तमाम संस्कारों पर बच्चा लेता ही लेता है.बड़ा होने पर जन्म दिन,पढ़ाई शुरू करने,परीक्षा में उत्तीर्ण होने,विवाह होने सभी कार्यक्रमों में वह लेता आ रहा होता है.अतः नौकरी मिलने पर वह रिश्वत लेने लगता है,व्यापार करने पर टैक्स में हेर-फेर कर लेता है,उद्योगपति बन कर मजदूरों का हक़ हड़प लेता है.आर्यसमाजी  उपदेशक महोदय ने बहुत जोर देकर कहा कि बच्चे को लेना ही लेना सिखाने वाला यह समाज और वे धार्मिक के नाम पर व्याप्त कुरीतियाँ ही आज के भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार हैं.

अभी २० जून को ही हिन्दुस्तान,लखनऊ ने एक धार्मिक भ्रष्टाचार का खुलासा करते हुए एक प्रो.पुत्री के ठगे जाने का विस्तृत समाचार छापा था.लखनऊ यूनिवर्सिटी के पास गोमती नदी पर बने पुल को हनुमान सेतु के नाम से अब जाना जाता है.१९६१ में हम लोगों ने जब लखनऊ छोड़ा था तब यह बन कर तैयार हो गया था.उससे पहले एक नीचा पुल था जो इससे थोडा पूर्व की और था और उसे तब मंकी ब्रिज कहा जाता था.उसके किनारे एक हनुमान मंदिर था.वह पुल टूट गया अब नया वाला  ही है और यहाँ भी एक बड़ा हनुमान मंदिर स्थापित हो गया है.रोजाना भी और मंगल के दिन विशेष तौर पर यहाँ कारों,मोटर साईकिलों,स्कूटरों से आने वाले समृद्ध एवं प्राभावशाली लोग जिनमें तमाम प्राशसनिक और पुलिस अधिकारी भी शामिल हैं ,प्रो.,डा.,वकील भी हैं,गरीब और साधारण लोगों की तो बात ही नहीं.क्या गजब तमाशा है-जिस इंसान ने (मजदूर ने)वह मूर्ती गढ़ दी वह तो उपेक्षित है परन्तु उसकी रचना यह मूर्ती पूजी जाती है.सब कुछ होता है उस  दलाल के माध्यम से जो पूजने वाले और मूर्ती के बीच बिचौलिया है.ऐसे ही बिचौलिया सरकारी दफ्तरों में काम करवाने वाली जनता तथा काम करने वाले कर्मचारी एवं अधिकारी के मध्य दलाली करते हैं.अन्ना हजारे और रामदेव इस भ्रष्टाचार के विरुद्ध जबान खोलने के लिए तैयार ही नहीं हैं फिर वे क्या ख़ाक भ्रषाचार दूर करेंगे?इसी प्रकार कितने मंदिर,मस्जिद,मजार आदि -आदि इस देश में हैं जहाँ भ्रष्टाचार पुष्पवित -पल्लवित होता है ;दान के नाम पर मजदूरों का खून चूस कर लूटा गया पैसा इन्हीं के माध्यम से पुण्य में परिवर्तित होता रहता है,उसके विरुद्ध कोई भी जबान नहीं खोलना चाहता है और भ्रष्टाचार दूर करने का नारा देने  वाला मसीहा बन जाता है.

निर्वाचित प्रतिनिधियों की वापिसी

यदि सच में भ्रष्टाचार दूर करना है तो कानपूर की पत्रकार सुश्री  कृति बाजपेयी द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों को वापिस बुलाने वाली मांग जिसे १९७४ में लोकनायक जय प्रकाश नारायण ने तब जोर शोर से उठाया था को अमली जामा पहनाया जाना चाहिए.यह एक लोकतांत्रिक मांग है और यह भ्रष्टाचार के राजनीतिक संस्करण पर रोक लगाने में सक्षम उपाय होगा.जब राजनीतिग्य पद जाने से भयभीत होकर भ्रष्टाचार से दूर रहेंगें तभी वे ब्यूरोक्रेट्स की भी लगाम कस सकेंगें एवं उनके विरुद्ध कड़ी कारवाई होगी.अन्ना और रामदेव की मांगों में ये बात शामिल नहीं हैं ,क्योंकि वे तो कारपोरेट घरानों द्वारा तय एजेंडे पर चल रहे हैं,जन-साधारण का हित उनकी मांगों में शामिल हो तो हो कैसे?

सुश्री कृति ने अपनी एक और पोस्ट में 'भारत,पकिस्तान एवं बांग्लादेश'के एकीकरण अथवा संघ निर्माण की बात भी कही है.यदि ऐसा हो तो तीनों देशों का रक्षा खर्च बचे जो वहां की जनता पर कल्याणार्थ खर्च हो सकता है.अधिकाँश रक्षा सौदों में भ्रष्टाचार की गूँज सुनायी दी है और बोफोर्स काण्ड में तो राजीव गांधी को अपनी सरकार ही गवानी पड़ गयी थी.युद्धक सामान बनाने वाली कम्पनियाँ जिन पर अमेरिका का अस्तित्व टिका है कभी विश्व में शांति नहीं चाहतीं ,वे ऐसा होने नहीं देंगीं.भारत विभाजन ही साम्राज्यवाद (साम्प्रदायिकता उसी की सहोदरी है)की घिनौनी साजिश का परिणाम है.अमेरिकी कार निर्माता क.'फोर्ड'ने बाकायदा 'फोर्ड फाउंडेशन'के माध्यम से विश्व हिन्दू परिषद् को दान दिया था.ईसाइयत के अनुयायिओं ने हिन्दू संगठन को दान धार्मिक आस्था से नहीं साम्राज्यवादी कूटनीति के तहत दिया था,जिसका परिणाम दंगों और असंख्य बेगुनाहों की मौत के रूप में सामने आया था.

थोथी बातें करके वाहवाही लूटना अलग बात है और ठोस तथा वास्तविक चिंतन करके समस्या का वास्तविक निदान करना दूसरी बात.धमकी देकर अपनी मनमानी करवाने की कोशिशों को लोकतांत्रिक नहीं कहा जा सकता.अन्ना एवं रामदेव के आंदोलनों को इसी परिप्रेक्ष में देखा जाना चाहिए और जैसा भी लोकतंत्र है उसे बचाने का प्रयास किया जाना चाहिए.

Monday, June 20, 2011

पढ़े -लिखे लोग भी ठगी का शिकार क्यों होते हैं?


Hindustan-20/06/2011-page-3,Lucknow
हिन्दुस्तान,लखनऊ के २० जून २०११ के अंक में पृष्ठ ३ पर अलीगंज,लखनऊ निवासी एक प्रो.पुत्री के ठगी का शिकार होने की दर्दनाक व्यथा छपी है.२१ वर्ष पूर्व गुडगाँव के सेक्टर सात वाले हिमगिरी बाबा ने भी एक माँ-बेटी को झांसा देकर ठगा था वे लोग भी पढ़े-लिखे ही थे.इस सम्बन्ध में 'सप्तदिवा',आगरा में छपे अपने लेख को इसी ब्लॉग पर मैंने २५ .०४ .२०११ को 'तन,मन,धन गुरु जी के अर्पण' शीर्षक से दिया था.बेहद अफ़सोस होता है इस प्रकार के समाचार पढ़ कर और तरस आता है इन पढ़े-लिखे लोगों की बुद्धी पर कि,वे क्यों और कैसे गुमराह हो जाते हैं.वैसे मैं इसका उत्तर भी जानता हूँ और कई बार इसी ब्लॉग में दोहरा भी चूका हूँ-

अर्थशास्त्र में ग्रेषम  का एक सिद्धांत है ,'खराब मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है'.यही सिद्धांत सभी क्षेत्रों में लागू होता है.लोग आजकल प्रचार,मार्केटिंग इत्यादि को महत्व देते हैं न कि वास्तविक ज्ञान को और उसी का नतीजा होते हैं -लखनऊ एवं गुडगाँव जैसे हादसे.इस ब्लॉग के माध्यम से मैं धर्म,ज्योतिष आदि की आड़ में फैले ढोंग-पाखण्ड के प्रति लोगों को लगातार आगाह करता आ रहा हूँ.कुछ चुने हुए विशेष आलेख इस प्रकार हैं---

१.-१० .०७ २०१० को 'धर्म के नाम पर अधर्म का बोलबाला' (१० .०४ २०११ को पुनर्प्रकाशन भी)

२.- १३ .०८.२०१० को 'समस्या धर्म को न समझना ही है'

३.-१४ .०९.२०१० को 'ढोंग,पाखण्ड और ज्योतिष'

४.-२३.०९.२०१० को 'ज्योतिष और हम'

५.-२४.०९.२०१० को 'प्रलय की भविष्यवाणी झूठी है,यह दुनिया अनूठी है'

६.-१४.१०.२०१० को 'उठो जागो और महान बनो'

७.-२५.१०.२०१० को 'धर्म और विज्ञान'

८.-२८.१०.२०१० को 'पूजा क्या?क्यों?और कैसे?'

९.-११.११.२०१० को 'सूर्य उपासना का वैज्ञानिक दृष्टिकोण'

१०.-०६.१२.२०१० को 'श्रधा,विश्वास और ज्योतिष'   

मेरा उद्देश्य यह था कि इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले सभी लोग पढ़े-लिखे और विद्वान हैं और वे किसी से गुमराह न हो सकें इसलिए वैज्ञानिक आधार पर सत्य को सब के समक्ष रख रहा था.किन्तु प्रतिगामी एवं निहित-स्वार्थी शक्तियों ने बजाए उनका लाभ उठाने के मेरे विरुद्ध अनर्गल प्रचार -अभियान चला दिया.ऐसे लोगों ने वैज्ञानिक निष्कर्षों को अधार्मिक ,मूर्खतापूर्ण,बे पर की उड़ान कह कर मखौल उड़ाया तथा आर.एस.एस. सम्बन्धी ब्लागर्स ने सुनियोजित तरीके से लोगों को गुमराह किया.ऐसे लोग खुद को धर्म का ठेकेदार समझते हैं और गर्व से खुद को 'हिन्दू'घोषित करते हैं.इस सम्बन्ध में 'लोक संघर्ष पत्रिका',जून २०११ के अंक में भिक्षु विमल कीर्ति महास्थविर (मो.-०७३९८९३५६७२)ने बहुत तर्क-संगत विचार प्रस्तुत किये हैं,उनका अवलोकन करने से वास्तविकता का आभास होगा-

"हिन्दू'शब्द मध्ययुगीन है.श्री रामधारी सिंह दिनकर के शब्दों में 'हिन्दू'शब्द हमारे प्राचीन साहित्य में नहीं मिलता है .भारत में इसका सबसे पहले उल्लेख ईसा की आठवीं सदी में लिखे गए एक 'तंत्र ग्रन्थ'में मिलता है.जहां इस शब्द का प्रयोग धर्मावलम्बी के अर्थ में नहीं किया गया जाकर,एक 'गिरोह' या'जाति के अर्थ में किया गया है.

गांधी जी भी 'हिन्दू'शब्द को विदेशी स्वीकार करते हुए कहते थे-हिन्दू धर्म का यथार्थ नाम,'वर्णाश्रमधर्म  ' है.

हिन्दू शब्द मुस्लिम आक्रमणकारियों का दिया हुआ एक विदेशी नाम है.'हिन्दू'शब्द फारसी के 'गयासुललुगात'नामक शब्दकोष में मिलता है .जिसका अर्थ-काला,काफिर,नास्तिक,सिद्धांत विहीन,असभ्य,वहशी आदि है और इसी घ्रणित नाम को बुजदिल लोभी ब्राह्मणों ने अपने धर्म का नाम स्वीकार कर लिया है.

हिंसया यो दूषयति अन्यानां मानांसी जात्यहंकार वृन्तिना सततं सो हिन्दू : से बना है ,जो जाति अहंकार के कारण हमेशा अपने पडौसी या अन्य धर्म के अनुयायी का,अनादर करता है,वह हिन्दू है.डा.बाबा साहब आंबेडकर ने सिद्ध किया है कि,'हिन्दू'शब्द देश वाचक नहीं है,वह जाति वाचक है.वह 'सिन्धु'शब्द से नहीं बना है.हिंसा से 'हिं'और दूषयति से 'दू'शब्द को मिलाकर 'हिन्दू'बना है.

अपने आपको कोई 'हिन्दू'नहीं कहता है,बल्कि अपनी-अपनी जाति बताते हैं."

परन्तु दुखद स्थिति यह है कि 'हिदू'अलंबरदारों ने जान बूझ कर मेरे वैज्ञानिक विश्लेषणों को जो अर्वाचीन ऋषि-मुनियों की खोजों पर आधारित थे को गलत करार दिया है.ग्रेषम के नियम के अनुसार गलत बातों का असर तेजी से होता है.नतीजा फिर चाहे लखनऊ के अलीगंज में प्रो.पुत्री के साथ ठगी हो चाहे गुडगाँव में हुयी वर्षों पूर्व ठगी हो धडाके से चलती रहती है.लोग ठोकर खा कर भी नहीं सम्हलते हैं,नहीं सम्हलना चाहते हैं.लुटना-  ठगा जाना और मिटना लोगों को कबूल है,लेकिन सत्य को स्वीकारना मंजूर नहीं है.वर्ना इंटरनेट का प्रयोग करने वाले धर्म की आड़ में नहीं ठगे जा सकते थे.लगभग एक वर्ष से 'क्रन्तिस्वर'पर पढ़े-लिखे लोगों को ही आगाह किया जा रहा है और इसी का प्रभाव है कि अब दुसरे शहरोंके  बामपंथी ब्लागर्स भी वैज्ञानिक ज्योतिषीय समाधान हेतु मुझ से संपर्क कर लाभ उठाने लगे हैं.परन्तु चूंकि वे बामपंथी होने के नाते समझदार हैं ,'हिन्दू' नासमझ नहीं हैं जो सही बात की मुखालफत करते फिरें.

लोग चमत्कार को नमस्कार करने के चक्कर में अपना तिरस्कार बखूबी करा लेते हैं ,जिसका ताजा-तरीन नमूना है प्रो.पुत्री का इस प्रकार ठगा जाना.यदि इसी शहर में रह कर भी कोई सस्ता वैज्ञानिक समाधान न कराये और बाहर के ठगों के जाल में धर्म और मंदिर के नाम पर फंसे तो इसे अपने पावों पर अपने आप कुल्हाड़ी चलाना ही कहा जाना चाहिए.

    

Sunday, June 19, 2011

गंगा के लिए निगमानंद का बलिदान ------ विजय राजबली माथुर

दरभंगा ,बिहार से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करके स्वरूपम कुमार मिश्रा जी हरिद्वार आकर स्वामी निगमानंद बन गये और १९ फरवरी २०११ से गंगा को प्रदूषण मुक्त करने हेतु आमरण अनशन प्रारम्भ कर दिया और अंततः १३ जून २०११ को उनका प्राणान्त हो गया.देश का एक होनहार इंजीनियर सर्व-साधारण के कल्याण हेतु बलिदान हो गया.इतने लम्बे चले स्वामी निगमानंद के अनशन को मीडिया,सरकार और ब्लॉग जगत ने भी उपेक्षित ही रखा जबकि नौटंकीबाज -ढोंगी -पाखंडी को ये सभी मिल कर आसमान पर उठाये रहे.

हिन्दुस्तान,लखनऊ,१५ जून २०११ के सम्पादकीय के इस अंश पर गौर करें-

"लेकिन यह घटना बताती है की किसी सच्चे उद्देश्य से अगर कोई अनशन बिना ढोल नगाड़े के किया जाए,तो सत्तासीन वर्ग उसके प्रति कितना संवेदनहीन होता है.भाजपा ने स्वामी रामदेव के अनशन को लेकर आसमान सिर पर उठा लिया ,लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज देहरादून जाकर उनके समर्थन में प्रेस-कान्फरेन्स कर आईं ,लेकिन स्वामी निगमानंद के बारे में जानने की शायद न उन्होंने कोशिश की ,न उनकी पार्टी के स्थानीय नेताओं को यह मुद्दा इतना महत्वपूर्ण लगा.कांग्रेस को भी उनकी सुध मृत्यु के बाद ही आई है.यह भी उल्लेखनीय है कि भाजपा अगले वर्ष हो रहे विधानसभा चुनावों में गंगा को एक मुद्दा बनाना चाहती है.उमा भारती के भाजपा में लौट आने से उनके इस मुद्दे के समर्थन में धुआंधार प्रचार करने की संभावना है.उमा भारती उत्तराखंड के श्रीनगर के एक मंदिर को डूब से बचाने के लिए सफल आन्दोलन भी कर चुकी हैं,लेकिन वह भी स्वामी निगमानंद को बचाने के लिए कुछ नहीं कर पाईं.
दरअसल ,गंगा की पवित्रता की कसम खाने वाली तमाम राजनैतिक पार्टियों का रवैया जमीनी स्तर पर एक-सा है.उत्तराखंड में अवैध खनन माफिया को संरक्षण हो या पनबिजली परियोजनाओं का गोलमाल ,इसमें किसी एक पार्टी को दोष नहीं दिया जा सकता.

उत्तराखंड ही नहीं ,सभी राज्य सरकारों और केंद्र सरकार का रवैया ऐसा ही है.गंगा के प्रदूषण के लिए जो तत्व जिम्मेदार हैं,उनके खिलाफ कोई कारवाई करना इसलिए असंभव है,क्योंकि उनसे सत्ताधारियों के राजनैतिक और आर्थिक हित जुड़े हैं."

इसी सम्पादकीय में आगे बताया गया है कि 'गंगा एक्शन प्लान' भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन का शिकार हो गई तथा बीस वर्षों बाद और दो हजार करोड़ रूपये खर्च करके यह मालूम हुआ कि योजना की शुरुआत में गंगा जितनी प्रदूषित थी ,अब उससे कहीं ज्यादा प्रदूषित हो गई है.विश्व बैंक की मदद से ७००० करोड़ की एक नयी विशाल योजना का धन भी उसी तरह प्रदूषित पानी में बह जाने की आशंका भी प्रगट की गई है.इसका कारण सरकारों का प्रदूषण करने वाले उद्योगों ,खनन माफियाओं और भ्रष्ट नौकरशाहों के दबाव में काम करना बताया गया है. 

१९ जून २०११ के अपने सम्पादकीय में शशि शेखर ने भी लिखा है-"निगमानंद गंगा को बचाने के लिए ११५ दिन से अनशन पर थे.खुद को गंगा और गाय का भक्त बताने वाले भगवा दल और संघ परिवार को उनकी कोई फ़िक्र नहीं थी.वे मानते हैं ,गंगा के बिना यह देश नहीं .वे जानते हैं,इससे सियासी लाभ नहीं लिया जा सकता.निगमानंद के प्रति सामूहिक सियासी बेरुखी इसी का हताशाजनक परिणाम है."....................."गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक मैंने चार दशकों में ऐसे हजारों लोग देखे हैं ,जो हर रोज गंगा का ध्यान करते हैं.उसके प्रति श्रद्धावनत और चिंतित होते हैं,पर करते कुछ भी नहीं.निगमानंद हरिद्वार में रहते-बसते अगर गंगा के लिए उठ खड़े हुए,तो यह काबिल-ए-तारीफ़ है.अफ़सोस!बाबा रामदेव या किसी अन्य राजनीतिक अथवा धार्मिक मठाधीश ने जीते जी उनका साथ नहीं दिया."
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शशि शेखर जी 'आज',आगरा के उस वक्त स्थानीय सम्पादक थे जब यह अखबार विश्व हिन्दू परिषद् से सब्सीडी प्राप्त कर मात्र एक रु.में बिक कर साम्प्रदायिक विद्वेष फैला रहा था.इस लिए संघ परिवार शब्द का प्रयोग करते हैं.उसी वक्त प्रो.जितेन्द्र रघुवंशी वहां 'इप्टा' के कार्यक्रमों में 'संघ गिरोह' शब्द का प्रयोग करते थे.मेरठ के वकील और कवि मुनेश त्यागी जी भी 'संघ गिरोह' शब्द ही उचित मानते हैं क्योंकि परिवार का काम जोड़ना होता है तोडना और नफरत फैलाना नहीं.जबकि वह साम्राज्यवादियों द्वारा पोषित नफरत फैलाने,शोषण करने और विपक्षियों का विनाश करने वाला संगठित गिरोह है.

'गंगा'की उत्त्पत्ति के बारे में जो किंवदंती प्रचलित है उससे भटके बगैर यदि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझें तो हम पाते हैं कि उस समय के कुशल एवं प्रख्यात इंजीनियर 'भागीरथ' जी के अथक प्रयासों तथा दूरगामी सूझ-बूझ का नतीजा है यह गंगावतरण.हमारी प्रथ्वी जिन प्लेटों पर आधारित है वे सदा चलायमान हैं और जब आपस में टकराती हैं तो ऊपर उथल-पुथल होती है-भूकंप आते हैं,सुनामी आती है तथा ज्वाला मुखी के विस्फोट होते हैं.अनेकों बार सभ्यताएं नष्ट हुयी है और फिर बनी हैं.यदि हम अपने देश के भूगोल के इतिहास को देखें तो स्पष्ट पता चलेगा कि ,आज जहाँ हिमालय पर्वत खड़ा है वहां पहले अथाह सागर लहराता था.जहाँ आज हिंद महासागर की स्थिति है वहां पर्वत-श्रंखला थी.वैज्ञानिक खोजों एवं नासा से प्राप्त तस्वीरों से पता चलता है कि भारत और श्री लंका के मध्य समुद्र में पहाडी चट्टाने अवस्थित हैं.ये चट्टानें इसी बात का सबूत हैं कि वह पहाड़  बाद में समुद्र में डूब गया था.

इसी प्रकार हिमालय के उस पार 'मान सरोवर' झील इस बात का सबूत है कि पहले वहां समुद्र ही था.आज का हमारा भारत तब इस रूप में नहीं था.विन्ध्याचल के दक्षिण से और श्रीलंका की और के तब के (अब समुद्र में डूबे)पर्वत-माला के उत्तर के मध्य का त्रिभुजाकार क्षेत्र 'जम्बू द्वीप' था.पृथ्वी  की आतंरिक प्लेटों की हलचल से जब उत्तर का समुद्र सिकुड़ा और वहां आज का हिमालय पर्वत खडा हुआ तथा जम्बू द्वीप उत्तर की और खिसकते-खिसकते बीच के उथले क्षेत्र से जब जुड़ गया तो हिमालय के दक्षिण में बना क्षेत्र जिसे आज हम उत्तर भारत कहते हैं भी आबादी के रहने लायक हो गया.

'त्रिव्रष्टि'जिसे आज तिब्बत कहते हैं में अफ्रीका और यूरोप के साथ ही युवा-मानव (युवा पुरुष और युवा स्त्री)की सृष्टि हुई.जहाँ अफ्रीका और यूरोप की सृष्टियाँ बौधिक विकास-क्रम में पिछड़ी रहीं ;वहीं त्रिव्रष्टि में सृजित मानवों ने बौद्धिक विकास के प्रतिमानों को निरन्तर प्राप्त किया.आबादी बढ़ने के साथ-साथ त्रिव्रष्टि के मानव दक्षिण में हिमालय को लांघ कर नव-सृजित भू-प्रदेश में आ कर बसने लगे.इस क्षेत्र में उन्होंने वेदों का ज्ञान अर्जित किया और फैलाया.अपने को 'आर्ष 'अर्थात श्रेष्ठ कहा जो बाद में 'आर्य'के नाम से प्रचलित शब्द बना.

जीवन-निर्वाह हेतु जल और कृषि  की निर्भरता छोटी-छोटी पहाडी नदियों पर थी जो मौसमी थीं.आर्यों को अपनी आबादी के भविष्य के लिए अपार जल-प्रवाह की आवश्यकता थी. अध्यन और सूझ-बूझ से 'भागीरथ'जो स्वंय इंजीनियर भी थे ने अथक प्रयास द्वारा हिमालय को संतुलित एवं सुरक्षित रूप से काट कर तीन सुरंगें बनवाईं और उनमें 'मान सरोवर ' झील का पानी प्रवाहित करा दिया .पश्चिम से होकर आने वाली 'सरस्वती',मध्य से आने वाली 'गंगा' और पूर्व से आने वाली 'ब्रह्मपुत्र'नदियाँ इस प्रकार अस्तित्व में आईं.चूंकि कवियों ने अपने  देश को 'शिव'या 'शंकर' के रूप में कल्पित किया अतः देश के शीर्ष से प्रविष्ट होने के कारण शिव-जटाओं से इन नदियों का उद्गम माना  जाने लगा.

'गंगा' के मार्ग में उस स्थान पर जहाँ आज बदरीनाथ मंदिर बना लिया गया है 'गंधक'के पहाड़ों से गुजरने के कारण एंटी बैक्टेरिया तत्व पानी में मिल जाते हैं जिससे यह पानी कीटाणु-रहित रहता था और औषधीय गुण वाला हो जाता था.आज के मानव के आर्थिक स्वार्थ ने गंगा के इस गुण को समाप्त कर दिया है और गंगा समेत सभी नदियों को प्रदूषित कर दिया है.प्राचीन काल में दिल्ली से कलकत्ता तक जल मार्ग से नावों-स्टीमरों द्वारा व्यापार होता था अतः व्यापारी भी नदियों की साफ़-सफाई पर ध्यान देते थे.लेकिन आज रेल और बस-ट्रक,हवाई मार्ग का प्रयोग बढ़ने से नदियों को उपेक्षित छोड़ दिया गया है और विकास ने विनाश का द्वार खोल दिया है.इंजीनियर स्वामी निगमानंद जी इसी विनाश की संभावना को समाप्त करने हेतु अनशन-रत थे.उन्होंने गंगा के शुद्धीकरण और इसके मूल स्वरूप की बहाली के लिए 'भूख-आन्दोलन'शुरू किया था.व्यवसायिक-बानिज्यिक निहित स्वार्थों के चलते उनकी जायज मांग को अनसुना किया गया .

यदि हम भागीरथ को  इसलिए याद करते और गुण-गान करते हैं किउन्हीं के प्रयासों से उत्तर भारत एक उपजाऊ एवं समृद्ध क्षेत्र बन सका तो हमें स्वामी निगमानंद को इसलिए याद रखना चाहिए की उन्होंने गंगा के स्वरूप की मूल बहाली के लिए अपने प्राणोत्सर्ग कर दिए.यही नहीं उन्हें सच्ची श्रधान्जली देने हेतु गंगा को सच-मुच प्रदूषण मुक्त कराने हेतु व्यापक जनांदोलन छेड़ देना चाहिए .यह कार्य ढोंगियों-पाखंडियों पर नहीं छोड़ा जा सकता,अतः जनता को सावधान रह कर ऐसा करना होगा.
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22 जुलाई 16 
22 जुलाई 16 

Thursday, June 16, 2011

क्या आप जानना चाहेंगे?

भोजन,वस्त्र और आवास जैसी प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ती किसी न किसी रूप में किसी न किसी प्रकार सभी करते ही हैं.प्राचीन -काल में विभिन्न पर्वों के अवसर पर नए -नए वस्त्र पहनने का प्राविधान रखा गया था.अब तो लोग अपनी क्षमता और जरूरत के अनुसार चाहे जब वस्त्र धारण कर लेते हैं.यहाँ हम आपको सूती -वस्त्र धारण करने का अनुकूल एवं प्रतिकूल अवसर के सम्बन्ध में बतलाना चाहते हैं.आजकल तो खादी में भी टेरीकोट का प्रचलन बढ़ गया है.परन्तु  टेरीन में काटन मिलाने पर ही टेरीकाट बनता है ,अतः उसके लिए भी यही नियम लागू होगा केवल ऊनी वस्त्र  इस दायरे में नहीं आयेंगें.  

कैलेण्डर,पंचांग आदि से आप कौन नक्षत्र कब तक और कबसे रहेगा इसकी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.किस नक्षत्र में नए सूती /टेरीकाट वस्त्र धारण करने पर क्या फल होता है ,इसे निम्नलिखित तालिका से जानें-

१.अश्वनी-वस्तु  अति प्राप्त होवे.
२.भरनी -अर्थ की हानि व् क्लेश .
३.कृतिका-खुशी और वस्तु की प्राप्ति.
४.रोहिणी-धन का लाभ.
५.मृगशिरा-वस्तु खराब हो या चूहे काटें.
६.आद्रा-अति कष्ट,रोग.
७.पुनर्वसु-सर्व-सुख की प्राप्ति.
८.पुष्य-यश,धन का लाभ,उन्नति.
९.आश्लेषा-और वस्त्र प्राप्त होता है.
१०.मघा-मृत्यु सम भय.
११.पूर्वा फाल्गुनी-कष्ट,मृत्यु भय.
१२.उत्तरा फाल्गुनी-लाभ-यश.
१३.हस्त-सुख,कार्य-सिद्धि.
१४.चित्रा-सर्व-सुख प्राप्ति.
१५.स्वाती- अच्छे भोजन की प्राप्ति .
१६.विशाखा-प्रिय जन मिलाप *
१७.अनुराधा-प्रिय जन समागम **
१८.ज्येष्ठा-वस्त्र क्षय होता है.
१९.मूल -जल से कष्ट
२०पूर्वाषड-.बीमारी-रोग होता है.
२१.उत्त्राशाड-मिष्ठान्न,भोजन की विशेष प्राप्ति.
२२.श्रवण-.नेत्र आदि पीड़ा होती है.
२३.धनिष्ठा-अन्न का लाभ होता है.
२४.शतभिषा-कोई आपत्ति या भय का सामना होता है.
२५.पूर्वा भाद्रपद -जल स भय होता है.
२६.उत्तरा भाद्रपद -संतान का या संतान से लाभ होता है.
२७.रेवती-मान-ऐश्वर्य की वृद्धि होती है.

नोट-*   = मिलना-जुलना कहीं भी संभव है.
        **  =आप के घर आना .
उपरोक्त विश्लेषण प्राचीन ऋषि-मुनियों ने वैज्ञानिक आधार पर अनुभव एवं परिक्षनोप्रांत निरूपित किये थे.


ज्वर के सम्बन्ध में

ज्वर खुद में कोई बीमारी नहीं है.ज्वर-बुखार-फीवर किसी बीमारी का साइड इफेक्ट होता है.परन्तु इसे मामूली भी नहीं समझ लेना चाहिए.किन-किन नक्षत्रों में ज्वर प्रारम्भ होने का क्या फल रहता है ,इसे निम्नांकित तालिका से जानें-

१.-स्वाती,पूर्वा फाल्गुनी,पूर्वाषाड,पूर्वा भाद्रपद ,आद्रा    =बीमार की मृत्यु हो.

२.-रेवती,अनुराधा                                                          =कुछ दिन बीमार रहे.

३.- भरनी ,शतभिषा,चित्रा                                              =ज्वर ११ दिन रहे.

४.-विशाखा,हस्त ,ज्येष्ठा                                              =ज्वर १५ दिन रहे.

५.-मूल,आश्लेषा,अश्वनी                                           =ज्वर ९ दिन रहे.

६.-मघा                                                                   =ज्वर २० दिन रहे.

७.-उत्तराभाद्रपद ,उत्तराषाड                                       =ज्वर ३० दिन रहे.

यह बताने का यह मतलब  नहीं है  ज्वर का कोई इलाज न किया जाए.चिकित्सकीय इलाज के अलावा ज्वर आने वाले नक्षत्र का वैज्ञानिक समाधान-शान्ति भी कर लें तो शीघ्र उपचार भी संभव है या कम से कम कष्ट में तो कमी हो ही सकती है.पहले वैद्य लोग इन बातों का ख्याल करते हुए औशद्दियाँ देते थे .आज कल अति-आधुनिकता के चक्कर में इन बातो  को कोई ध्यान नहीं देना चाहता और आज के चिकित्सक तो कहेंगे ही दकियानूसी बकवास है यह सब.लोग भी इसे नजरअंदाज ही करेंगे.ज्योत्षी लोग भी जन -सामान्य को इन सब की जानकारी देने के पक्ष नहीं रहते है.ज्ञान कंजूस का धन नहीं होता है अतः मैंने इसे सार्वजनिक करना अपना कर्तव्य समझा .

ज्वर के उपचार में साधारण तौर पर यदि 'ओम घ्रिणी सूर्याय नमः ' का १०८ बार पश्चिम दिशा की और मुंह करके जाप किया जाये तो भी लाभ प्राप्त हो सकता है.साथ-साथ बायोकेमिक कम्पाउंड  न. ११ का ४ टी डी एस सेवन भी हितकर रहेगा.

यह जानकारी क्यों?

क्या आप यह जानना चाहेंगें कि,मैंने ये जानकारियाँ आज क्यों सार्वजनिक की हैं?दरअसल इसका काफी ठोस आधार है-मेरी पूर्व श्रीमती जी स्व.शालिनी माथुर ने इस जानकारी की पूर्ण अवहेलना करते हुए 'आद्रा' नक्षत्र में कुछ नये वस्त्र धारण कर लिए थे. और नतीजा यह हुआ कि सात माह की लम्बी बीमारी के बाद (१६ नवंबर १९९३ को राजामंडी रेलवे क्वार्टर पर अपने भाई के घर खाना खा कर लौटने पर ज्वर आकर जो बीमार पडीं तो ठीक नहीं हुईं)आज ही के दिन १६ जून १९९४ को सायं उनका निधन हो गया.उनके बाद एक वर्ष के भीतर हमारे बाबूजी का निधन १३ जून १९९५ एवं बउआ का निधन १२ दिन बाद २५ जून १९९५ को हुआ. अपने घर नक्षत्र नियम का पालन न होने का खामियाजा भुगतने के बाद मुझे लगा इस ज्ञान का सार्वजानिक करना गलत नहीं होगा,बल्कि यह स्व.शालिनी माथुर के प्रति सच्ची श्रद्धांजली  होगी एवं यदि कुछ लोग इस  जानकारी  का लाभ उठा कर अपना बचाव कर सकें तो अत्युत्तम होगा.

Wednesday, June 15, 2011

सन्त कबीर की प्रासंगिकता --- विजय राजबली माथुर



"चौदह सौ पचपन साल गये,चंद्रवार एक ठाट ठये.
जेठ सुदी बरसायत को ,पूरनमासी प्रगट भये .."   

'कबीर चरित्र बोध' ग्रन्थ के अनुसार कबीर-पंथियों ने सन्त कबीर का जन्म सम्वत १४५५ की जेठ शुक्ल पूर्णिमा को माना है.अतः आज जयंती पर सन्त कबीर को श्रन्धान्ज्ली देने का यही उचित विकल्प लगा कि आज भी उनकी प्रासंगिकता क्यों है ?इस तथ्य पर विचार किया जाए.कबीर स्कूली शिक्षा से वंचित रहे-'मसि कागद छूह्यो नहीं'कह कर उन्होंने यही जतलाया है.उन्होंने' सूफी सन्त शेख तकी' से दीक्षा ली थी ,किन्तु अपनी रचनाओं में जिस श्रद्धा और सम्मान के साथ 'रामानन्द' का उल्लेख किया है उससे यही सिद्ध होता है कि रामानन्द ही इनके गुरु थे.

कबीर की रचनाओं में काव्य के तीन रूप मिलते हैं-साखी,रमैनी और सबद .साखी दोहों में,रमैनी चौपाइयों में और सबद पदों में हैं.साखी और रमैनी मुक्तक तथा सबद गीत-काव्य के अंतर्गत आते हैं .इनकी वाणी इनके ह्रदय से स्वभाविक रूप में प्रवाहित है और उसमें इनकी अनुभूति की तीव्रता पाई जाती है.

इधर कुछ समय पूर्व ब्लाग जगत में सन्त कबीर का उपहास रामविलास पासवान की रेलवे के कुत्ते की भविष्यवाणी के रूप में जम कर किया गया था.आज के आपा-धापी के युग में जब माडर्न लोग 'मेरा पेट हाउ मैं न जानू काऊ'के सिद्धांत पर चल रहे हों तो उनसे इससे अधिक की अपेक्षा भी नहीं की जा सकती!वैसे सभी रोते रहते हैं भ्रष्टाचार को और कोसते रहते हैं राजनेताओं को ;लेकिन वास्तविकता समझने की जरूरत और फुर्सत किसी को भी नहीं है.भ्रष्टाचार-आर्थिक,सामजिक,राजनीतिक,आध्यात्मिक और धार्मिक सभी क्षेत्रों में है और सब का मूल कारण है -ढोंग-पाखंड पूर्ण धर्म का बोल-बाला.

कबीर के अनुसार धर्म  

कबीर का धर्म-'मानव धर्म' था.मंदिर,तीर्थाटन,माला,नमाज,पूजा-पाठ आदि बाह्याडम्बरों ,आचार-व्यवहार तथा कर्मकांडों की इन्होने कठोर शब्दों में निंदा की और 'सत्य,प्रेम,सात्विकता,पवित्रता,सत्संग (अच्छी सोहबत न कि ढोल-मंजीरा का शोर)इन्द्रिय -निग्रह,सदाचार',आदि पर विशेष बल दिया.पुस्तकों से ज्ञान प्राप्ति की अपेक्षा अनुभव पर आधारित ज्ञान को ये श्रेष्ठ मानते थे.ईश्वर की सर्व व्यापकता और राम-रहीम की एकता के महत्त्व को बता कर इन्होने समाज में व्याप्त भेद-भाव को मिटाने प्रयास किया.यह मनुष्य मात्र को एक समान मानते थे.वस्तुतः कबीर के धार्मिक विचार बहुत ही उदार थे.इन्होने विभिन्न मतों की कुरीतियों संकीर्णताओं  का डट कर विरोध किया और उनके श्रेयस्कर तत्वों को ही ग्रहण किया.

लोक भाषा को महत्त्व 

कबीर ने सहज भावाभिव्यक्ति के लिए साहित्य की अलंकृत भाषा को छोड़ कर 'लोक-भाषा' को अपनाया-भोजपुरी,अवधी,राजस्थानी,पंजाबी,अरबी ,फारसी के शब्दों को उन्होंने खुल कर प्रयोग किया है.यह अपने सूक्ष्म मनोभावों और गहन विचारों को भी बड़ी सरलता से इस भाषा के द्वारा व्यक्त कर लेते थे.कबीर की साखियों की भाषा अत्यंत सरल और प्रसाद गुण संपन्न है.कहीं-कहीं सूक्तियों का चमत्कार भी दृष्टिगोचर होता है.हठयोग और रहस्यवाद की विचित्र अनुभूतियों का वर्णन करते समय कबीर की भाषा में लाक्षणिकता आ गयी है.'बीजक''कबीर-ग्रंथावली'और कबीर -वचनावली'में इनकी रचनाएं संगृहीत हैं.
(उपरोक्त विवरण का आधार हाई-स्कूल और इंटर में चलने वाली उत्तर-प्रदेश सरकार की पुस्तकों से लिया गया है)

कबीर के कुछ  उपदेश 

ऊंचे कुल क्या जनमियाँ,जे करणी उंच न होई .
सोवन कलस सुरी भार्या,साधू निंदा सोई..

हिन्दू मूये राम कही ,मुसलमान खुदाई.
कहे कबीर सो जीवता ,दुई मैं कदे न जाई..

सुखिया सब संसार है ,खावै अरु सोवै.
दुखिया दास कबीर है ,जागे अरु रोवै..

दुनिया ऐसी बावरी कि,पत्थर पूजन जाए.
घर की चकिया कोई न पूजे जेही का पीसा खाए..

कंकर-पत्थर जोरी कर लई मस्जिद बनाये.
ता पर चढ़ी मुल्ला बांग दे,क्या बहरा खुदाय

..इस प्रकार हम देखते हैं कि,सन्त कबीर की वाणी आज भी ज्यों की त्यों जनोपयोगी है.तमाम तरह की समस्याएं ,झंझट-झगडे  ,भेद-भाव ,ऊँच-नीच का टकराव ,मानव द्वारा मानव का शोषण आदि अनेकों समस्याओं का हल कबीर द्वारा बताये गए धर्म-मार्ग में है.कबीर दास जी ने कहा है-

दुःख में सुमिरन सब करें,सुख में करे न कोय.
जो सुख में सुमिरन करे,तो दुःख काहे होय..


अति का भला न बरसना,अति की भली न धुप.
अति का भला न बोलना,अति की भली न चूक..

मानव जीवन को सुन्दर,सुखद और समृद्ध बनाने के लिए कबीर द्वारा दिखाया गया मानव-धर्म अपनाना ही एकमात्र विकल्प है-भूख और गरीबी दूर करने का,भ्रष्टाचार और कदाचार समाप्त करने का तथा सर्व-जन की मंगल कामना का.

Sunday, June 12, 2011

कम होते जीवन के दिन (भाग-२)

मनुष्य खुद ही अपने स्वास्थ्य को गिराने के लिए जिम्मेदार होता है.अक्सर जीवन-रेखा एवं मंगल रेखा से निकल कर हथेली की दूसरी ओर जाती हुई जो रेखाएं दिखाई पड़ती हैं वे असंयम व बदमिजाजी के कारण बिगड़े हुए खराब स्वास्थ्य का संकेत हैं.जिस व्यक्ति की हथेली में आधे भाग तक जीवन व मस्तिष्क रेखाएं एक-दुसरे को लगभग छूती  हुई सी दिखाए दें तो समझें इस तरह का व्यक्ति अत्यधिक संवेदनशील व शीघ्र उत्तेजित हो जाने वाला होता है.यदि जीवन-रेखा पतली व कमजोर लगती हो तो इस तरह का व्यक्ति छोटी-छोटी  बातों पर अत्यधिक चिंता करके अपना स्वास्थ्य ख़राब कर लेता है.ये लोग अत्यधिक डरपोक व जरूरत से ज्यादा सतर्कता बरतने वाले होते हैं,उनमें जीवन की सच्चाइयों का सामना करने का साहस नहीं होता.उसके विपरीत यदि जीवन व मस्तिष्क रेखाएं बस थोड़ी सी मिली हुई हों तो ऐसा व्यक्ति सतर्क व संवेदनशील तो होता है लेकिन बिना किसी कारण के नहीं.

कीरो लिखते हैं एक बार एक डरपोक किस्म के सज्जन जिनके पिता की मृत्यु हो चुकी थी और जो बहुत बड़ी फैक्टरी विरासत में छोड़ गए थे उनसे परामर्श लेने आये.उसकी हथेली में साफ़ था कि,उसकी चिंताओं के कारण शीघ्र ही उसका स्वास्थ्य खराब हो जाएगा अतः वह व्यवसाय न करे.वह सहमत था और धन्यवाद देकर चला गया.परन्तु एक वकील के परामर्श पर उसने व्यापार सम्हाल लिया और कीरो को पत्र लिख कर हस्त रेखा शास्त्र को 'बकवास' कहा.

इस घटना के बारह माह बाद कीरो को दूसरा पत्र भेज कर पूरी विनम्रता से उसने लिखा-"क्या आप एक ऐसे व्यक्ति से मिलना चाहेंगे ,जिसके जीवन के कुछ ही दिन शेष हैं. कीरो उसके अनुरोध को ठुकरा न सके और दिए गए पते पर नाइट्सब्रिज पहुंचे और एक सुन्दर कमरे में उसे तकियों के सहारे लेटे हुए पाया.उसने बहुत हल्की सी आवाज में कहा-"कीरो,यह आपकी विनम्रता है कि आपने यहाँ आने का कष्ट किया ,मैं जानता था कि आप   जरूर आयेंगे.मैंने आपकी बात नहीं मानी और मुझे उसका खामियाजा भुगतना पडा"
इसके तीन दिनों बाद उसकी मृत्यु हो गई.कीरो का दृढ अभिमत है कि ,लापरवाही व अड़ियलपन के कारण वे दुर्घटनाएं हो जाती हैं जिन्हें चेतावनियों के प्रति ध्यान देने व सावधानियां बरतने से टाला जा सकता है.

जब जीवन-रेखा अंगूठे की जड़ में या शुक्र पर्वत पर उसे संक्रा बनाती हुई दिखाई दे तो शारीरिक या जीवन की शक्तियां कभी बलशाली नहीं होतीं.ऐसे लोगों के प्रेम-सम्बन्धों में उत्तेजना नहीं होती .जो लोग विवाहित होते हैं वे या तो संतान जनने में सक्षम नहीं होते या कभी-कभार मुश्किल से ही उनके बच्चे होते हैं.

यदि जीवन-रेखा से निकल कर एक रेखा पहली उंगली की जड़ की ओर जा रही हो तो यह एक महत्वाकांक्षी जीवन का प्रतीक है.यदि मस्तिष्क रेखा भी सीधी व स्पष्ट हो तो ऐसा व्यक्ति दूसरों के लिए नियम बनाएगा और उनको आदेश देगा.यदि यही विशेषताएं किसी औरत के हाथ में दिखाई दें तो समझिये कि उसके पति की खैर नहीं ,क्योंकि तब यह निश्चित है कि वह उस पर हुक्म चलायेगी ,उस पर अपने नियम-कायदे थोपेगी और अपने गर्म मिजाज स्वभाव के कारण उसकी नाक में डीएम किये रहेगी. 

अनुपम उदाहरण 

न्यूयार्क में एक लम्बा-  तगड़ा रोबीले हाव-भाव वाला एक आदमी अपने विवाह से ठीक एक दिन पहले कीरो के पास आया और अपनी मंगेतर का हाथ दिखाने ले गया जो दिखने में बहुत नाजुक मिजाज थी.परन्तु उसकी जीवन-रेखा तर्जनी की जड़ से प्रारम्भ थी जबकि उस व्यक्ति की अंगूठे की जड़ से.वह महिला बहुत सख्त मिजाज थी और अच्छों-अच्छों को अपना गुलाम बना सकती थी.

छः माह बाद जब कीरो फिर न्यूयार्क लौटे तो मुरझाया चेहरा लेकर वह व्यक्ति उनसे मिला और बोला-"कीरो,आपने ठीक ही कहा था कि मेरी इच्छाशक्ति कमजोर है .मैंने कभी यह सोचा भी न था कि मुझे किसी औरत के सामने इस तरह झुकना पड़ेगा और वह भी किसी ऐसी दुबली-पतली औरत के सामने."वह बोलता गया-एक लम्बी आह लेकर -"हुक्म! वह तो मुझ पर राज करती है कीरो,मैं अपनी इच्छा से अपने ही घर में कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र नहीं.मेरी हैसियत तो एक मामूली कीड़े जैसी है.सबसे खराब बात तो यह है कि यह बात मेरे सारे पडौसी भी जानते हैं और मेरा मजाक उड़ाते हैं."

कीरो लिखते हैं अब वह इस समय क्या कहते दोनों की जीवन-रेखाएं तो झूठी नहीं थीं.जब चेताया तो माने नही.

अपने अहम् के कारण अक्सर लोग सत्परामर्श को स्वीकार नहीं करते है जबकि ठगी की लुभावनी बातें उन्हें खूब भाती हैं.फिर तो -
"पाछे पछताए होत क्या? जब चिड़ियाँ चुग गयीं खेत" 

Thursday, June 9, 2011

कम होते जीवन के दिन

"यह ख़ास तौर पर एक ध्यान देने योग्य बात है कि बहुत से लोग जान-बूझ कर ,उतावलेपन में या स्पष्ट चेतावनियों की उपेक्षा करके अपने जीवन की आयु को स्वंय ही घटा लेते हैं."

"जीवन का यह बहुमूल्य उपहार यूं ही बर्बाद करने के लिए नहीं मिला है.प्रतिभा,स्वास्थ्य,बौद्धिक उपलब्धियां व विभिन्न अवसरों के रूप में प्राप्त ये उपहार हमें इसलिए मिले हैं कि हम उनमें और भी वृद्धि करें.सफलताओं का ताज सिर पर पहने बुढापे से चाहे वह कितना छोटा ही क्यों न हो अधिक सुन्दर दृश्य और क्या हो सकता है?और नाकामयाबी से भी खराब वह मायूसी भला कैसी होगी जहां आदमी ने अपने पावों पर खुद ही कुल्हाड़ी मारी हो."

"हस्तरेखा -शास्त्र एक पूरा विज्ञान है.यह बहुत उपयोगी हो सकता है.लेकिन बहुत खतरनाक भी यदि कुछ बेईमान लोग इसका दुरूपयोग करने लगें."

ये कथन हैं काउंट कीरो साहब के जिन्होंने २१ वर्ष के अपने व्यवसायिक अनुभव के बाद पुस्तक-लेखन के माध्यम से यूरोपीय जनता को जाग्रत और प्रशिक्षित करने का महत्वपूर्ण कार्य संपादित किया था.हम देखते हैं कीरो को भी पाखंड का पर्दाफ़ाश करने हेतु घोर संघर्षों का सामना करना पड़ा था परन्तु वह मुस्तैदी से अपने सिद्धांतों पर डटे रहे और अपने मिशन में कामयाब भी हुए.इस ब्लॉग के माध्यम से परिणाम की चिंता किये बगैर मैं आप लोगों को कीरो साहब के विचारों से इसलिए अवगत करा रहा हूँ कि आप मानें या न मानें ,लाभ उठायें या न उठायें मेरा तो कर्तव्य पाखण्ड पर प्रहार करना ही है और मुझे अपना कर्तव्य पालन करना ही है.

पुस्तकों के माध्यम से कीरो साहब ने जनता को इसलिए समझाया था कि लोग स्वंय को समझ सकें.उनका दृढ विशवास था कि ये चिन्ह हमारी हथेली में होते ही इसलिए हैं कि उन्हें देखा व समझा जाये. लेकिन दुर्भाग्य यह है कि बहुत कम लोग इन चिन्हों को समझते हैं. कीरो साहब के अनुसार वह प्रत्येक समस्या जो किसी भी समझदार व्यक्ति को परेशानी में डाले रहती है,इन रेखाओं व चिन्हों की मदद से समझी जा सकती है.

प्रत्येक व्यक्ति में यह जिज्ञासा होती है कि वह यह जाने-"वे कौन सी शक्तियां हैं जो मेरे जीवन का संचालन करती हैं?उसे प्रभावित करती हैं?जो कुछ मेरे भाग्य में लिखा है,क्या उसे मुझे भुगतना पडेगा?क्या उससे बचने के कुछ उपाए भी हैं?" जहाँ तक मेरा विचार है मैं यह मानता हूँ कि प्रत्येक मनुष्य अपने भाग्य का स्वंय निर्माता है,यदि वह चाहे तो अपने अच्छे वक्त को ख़राब में तब्दील कर सकता है और करता भी है.यदि मनुष्य चाहे तो वह अपने खराब वक्त को अच्छे में भी बदल सकता है और पुराशार्थी व्यक्ति ऐसा ही करते हैं जबकि आलसी,निकम्मे और परोपजीवी व्यक्ति भाग्य और भगवान् के भरेसे बैठ कर दोनों को कोसते रहते हैं.मुझे आर्थिक लाभ इसी लिए नहीं होते क्योंकि मैं भगवान् वाद के फंदे में नहीं फंसता.जो लोग ज्ञान का दुरूपयोग करके पहले पीड़ित को दहशत में ला देते हैं फिर उसकी जेब के अनुसार उसे उलटे उस्तरे से मूढ़ते हैं व्यवहारिक जगत में कामयाब हैं.

हस्तरेखा शास्त्र का महत्त्व भी तभी है जब वह संभावित घटनाओं की हमें पहले से चेतावनी देती हो -

यदि जीवन -रेखा किसी जंजीर की तरह बनी हो या बहुत छोटे-छोटे टुकड़ों में बनी हो तो यह निश्चय ही ऐसे खराब स्वाथ्य का संकेत है जिसके प्रति सावधान रहना बहुत जरूरी है.सम्राट एडवर्ड जब प्रिंस आफ वेल्स थे तो मखमली परदे के पीछे उनका हाथ कीरो ने समाज की प्रतिष्ठित महिला के घर भोज पर देखा था बगैर परिचय जाने.अतः सन १८९१ में सम्राट एडवर्ड ने कीरो को बुला कर अपने सबसे बड़े पुत्र 'ड्यूक आफ क्लेरेंश'के हाथ में जीवन-रेखा को छोटे-छोटे भागों में टूटी होने की बात बताई थी.यह अशुभ लक्षण था और १४ जनवरी १८९२ को छोटी सी बीमारी के बाद उसकी मृत्यु हो गयी जिसके बारे में उसके चिकित्सक ने कहा-"जैसे कोई मोमबत्ती बुझ जाती है वह इस तरह से चला गया."
(अपार समदा एवं क्षमता के बावजूद राजकुमार की ऐसी मौत  केवल ठोस उपाए न करने के कारण ही   संभव हुयी )

कीरो साहब ने मिस्टर पीटर राबिन्सन के बेटे का हाथ जब देखा तो वह जरूरत से अधिक कपडे पहन कर उनके पास आया था.उसके हाथ में अपार धन-सम्पदा के योग थे और उन्हीं के कारण उसे बुद्धिमानी के अवसर भी मिले थे.,परन्तु उसके दाहिने हाथ में जीवन रेखा टूटती हुयी थी.अतः कीरो ने उससे कहा-"कुछ निश्चित संकेतों के आधार पर मैं आपको यह सलाह देता हूँ कि स्वास्थ्य को लेकर आप अत्यधिक सावधानी बरतें.वरना मुझे नहीं लगता कि आपकी बहुत लम्बी उम्र है.'

वह व्यक्ति उपेक्षा से मुस्कराते हुए बोला-"आप चिंता न करें, कीरो.मैं घोड़े की तरह तंदरुस्त हूँ.और पूरे नब्बे साल तक जीवित रहूँगा.हमारे परिवार में सभी लोग बूढ़े होकर मरते हैं."
कीरो ने बहुत जोर देकर कहा-"मेरी चेतावनी से सावधान हो जाइए और अति मत कीजिये.यदि आप सावधानियां बरतेंगे तो संकट टल जाएगा,वर्ना......"और उन्होंने अपना वाक्य अधूरा छोड़ दिया.

चूंकि वह एक बिगडैल रईसजादा था जिसके बाप ने मरते वक्त उसके लिए दस लाख पौंड की सम्पत्ति छोडी थी और तुरंत ही सारा धन उसके हाथ लग गया था. चमचों का झुण्ड उसके आस-पास मंडराने लगा थाजो उसका सारा धन हजम कर गए.उसके दोस्तों ने उसे 'मेंडनहेड'के जिस मकान में ठहराया हुआ था वहां वे उसके पैसों से मस्ती कर रहे थे.उसका स्वाथ्य इतनी तेजी से बिगड़ा कि वह मौत के दरवाजे तक पहुँच गया.हर अखबार में उसकी अंधाधुंध फिजूल खर्ची व तेजी से बिगड़ते हुए स्वाथ्य के समाचार छपने लगे. 

उसे कीरो की चेतावनी याद आई तो उसने सावधानियां बरतीं और उसका स्वास्थ्य भी सुधरने लगा.लेकिन फिर उसे पुराने ढर्रे पर ले आया गया और अपने जीवन का आधा समय जिए बिना ही उसकी मृत्यु हो गई.

ये दोनों उदाहरण हाथ की लकीरों की उपेक्षा करने के परिणाम हैं.वस्तुतः मैं पहले भी इसी ब्लॉग में ज्योतिष सम्बन्धी आलेखों के माध्यम से बता चुका हूँ कि कृत्रिम पूजा-पद्धति अपनाने और ढोंग-पाखण्ड पर चलने के कारण लोग अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी चलाते हैं.उसी की पुष्टि इनसे होती है.मनुष्य मनन करने के कारण होता है.परन्तु यदि मनन की बजाए 'आस्था' और अंध-विशवास को महत्त्व दिया जाये जैसा कि एक उद्योगपति,एक नेता और एक अभिनेता ने निकट अतीत में हमारे देश में किया है -क्या वह मनुष्यत्व के दायरे में आता है?शीघ्र आपको उसके दुष्परिणाम देखने को मिलेंगे.       

Monday, June 6, 2011

एक बिल्ली की याचना भरी पुकार

याचना वह बोली है जो किसी के समक्ष झुक कर उसका एहसान मानते हुए की जाती है.केवल मनुष्य ही नहीं जानवर भी जरूरत पड़ने पर ऐसा ही करते हैं.अभी गत माह हमारे कुछ रिश्तेदार आये थे उनके रहने के दौरान रात में बिजली गुल होने पर कुछ लेने हेतु सबसे ऊपर के कमरे को खोलते ही एक बिल्ली चुप-चाप दुबक गई होगी और वहीं छिपी बैठी रही.जब पता चला तो उसके निकलने हेतु द्वार खुला छोड़ दिया गया.परन्तु बिल्ली ने एक भूरा और एक काला बच्चा वही दे दिया अब वे उसी में उछल-कूद करते थे निकलते नहीं थे.एक दिन बिल्ली और उसका भूरा बच्चा बाहर था और जैसे ही काला वाला बहार निकला उस कमरे का द्वार बंद कर दिया तो उन सबने गैलरी में ही डेरा डाल लिया.तीन दिन पहले सुबह के समय बिली के साथ उसके दोनों बच्चे भी बाहर थे तब गैलरी का भी द्वार बंद कर दिया.अब उन सबको खुले आँगन में रहना पड़ रहा है.बिली के बच्चों को पीने का पानी दिया और श्रीमतीजी ने छोटे दीयों में रख कर दूध भी पीने को दिया, हमें यह देख कर आश्चर्य हुआ कि,काला और भूरा दोनों बिल्ली बच्चे पहले उस दूध की इन्क्वायरी करने लगे और फिर एक साथ एक ही पात्र से ग्रहण किया. इंसान को जब जहाँ जो मिल जाता है बिना सोचे-समझे मुंह के हवाले कर देता है.एक बार झांसी में किसी मंदिर के सामने रोडवेज बस ड्राइवर ने रोक दी और किसी ने आकर प्रशाद के नाम पर कुछ बांटना शुरू कर दिया हमारे उन रिश्तेदार समेत लगभग सभी यात्रियों ने उसे मुंह में ठूंस लिया.चूंकि मैं ढोंग-पाखण्ड का विरोधी हूँ अतः मैंने एवं श्रीमतीजी ने उसे बस से उतरने पर एक वृक्ष के समक्ष रख दिया और ग्रहण नहीं किया था.



अक्सर बस और रेल में विषाक्त प्रशाद खा कर लुटने और जान गवां देने के किस्से अखबारों में छपते रहते हैं परन्तु इंसान गलती-दर-गलती करता जाता है.लेकिन इन बिल्ली के बच्चों से इंसान को बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है कि चाहे भूखे भी हों जिस-तिस से मिली चीज मुफ्त में यों ही नहीं गटकते.जब बिल्ली  को पता चला कि उसके बच्चों पर रहम किया गया तो वह 'बेहद याचना'भरी बोली में मिमयाने लगी है,जैसे शायद वह कहना चाहती होगी कि उसके बच्चों के लिए कमरा या गैलरी खोल दिया जाए.हालांकि वे आँगन में ही हैं परन्तु उन बच्चों को दूध दो-तीन बार मुहैय्या करा देने से अब वे चौथी मंजिल पर बांस की   सीडी के जरिये चढ़ने-उतरने लगे हैं.हम लोग यही इंतज़ार  कर रहे हैं वे शीघ्र ताकतवर हो कर प्रस्थान कर जाएँ.

इसी दौरान दिल्ली के राम लीला मैदान में रामदेव ने भी एक याचना देश के नागरिकों से की और असंख्य लोग योग के नाम पर इकट्ठा करके अनशन प्रारंभ कर दिया. पहले तो झूठ बोल कर मैदान लिया गया फिर सरकार से सौदे बाजी की गई और जनता को मूर्ख बनाया गया.जब जनता के बीच सरकार ने वह चिट्ठी सार्वजानिक कर दी तो सरकार के विरुद्ध गर्जना कर दी.

Hindustan-Lucknow-05/06/2011


फिर औरताना वेश-भूषा धारण करके औरतों के झुण्ड में छिप कर भागने की कोशिश और पकडे जाने पर दहशत में आ जाना -ये सब किस संन्यास-धर्म के लक्षण हैं?लेकिन अफ़सोस कि अखबार और ब्लाग्स इस ढोंगी और पाखंडी के समर्थन में भरे पड़े हैं.मुलायम सिंह यादव यह जानते हुए भी कि यह आर.एस.एस. का खेल था रामदेव के यादव होने के कारण समर्थन में प्रेस-कान्फरेन्स करने लगे तो कुछ इनके हरियाणवी होने के कारण समर्थन करने लगे.किसी ने यह जानने की कोशिश नहीं की कि सन्यासी महाराज का यह खर्चा आया कहां से?-
Hindustan-Lucknow-06/06/2011
Hindustan-Lucknow-04/06/2011

Hindustan-06/06/2011




Hindustan-Lucknow-4 June-2011
रामदेव ने कहा है कि अन्ना हजारे के अनशन -आन्दोलन पर हुए खर्च को 'हिन्दुस्तान लीवर लि.'ने उठाया था.उनका इतना खर्च किसने उठाया ?२००९ के लोकसभा चुनावों में भाजपा को नौ लाख का चेक रामदेव ने चंदे के रूप में दिया था वह धन कहाँ से आया था?

लूट के बंटवारे का झगडा

गुरुदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुर ने एक कहानी में बताया है कि दूध में पानी की मिलावट पर जब नौकर के ऊपर पहरा बैठाया तो दूध वाले ,नौकर के साथ उस पहरेदार का हिस्सा शामिल होने के कारण पानी की मात्रा और बढ़ गई.अतः ज्ञातव्य है कि अन्ना हजारे और रामदेव जनता को मूर्ख बना कर मूल समस्या को छिपाने में सरकार की मदद कर रहे हैं.एक सरकार की कमेटी में शामिल है और दूसरा उससे सौदेबाजी करता है.दोनों में से एक भी धार्मिक भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज नहीं उठा रहा है जो कि आर्थिक भ्रष्टाचार की जननी है.जब तक मजारों पर चादर चढ़ाना और मंदिरों में प्रशाद चढ़ाना जारी रहेगा सरकारी दफ्तरों में नजराना चढ़ाना भी रोका नहीं जा सकता.अन्ना ,रामदेव या कोई भी इन धार्मिक भ्रष्टाचारों के विरुद्ध आवाज उठाना ही नहीं चाहता केवल आर्थिक भ्रष्टाचार की बात करना थोथी लफ्फाजी है.

एक ग्रह-जनित दोष के निवारणार्थ एक नेता,एक अभिनेता और एक उद्योगपति मिल कर डेढ़ करोड़ रुपया एक मंदिर में चढाते हैं क्या यह भ्रष्टाचार नहीं है?किसने इसके विरुद्ध आवाज उठायी ?मंदिर में दान देने से ग्रहों के दोष नहीं मिटते हैं उनका वैज्ञानिक उपचार करना चाहिए था जो कर्मकांडी,ढोंगी-पाखंडी नहीं करवाते हैं.उनका ध्येय -'मेरा पेट हाउ मैं न जानूं काऊ'होता है.ऐसे लोग ही भ्रष्टाचार के जनक होते हैं.जब तक आप मूल पर प्रहार नहीं करते हैं पत्तों -डालियों को छांटने का हल्ला मचाते रहिये कुछ भी सुधार होने वाला नहीं है.

काला धन सिर्फ वह ही नहीं है जो सरकारी टैक्स बचा कर एकत्रित किया गया है.बल्कि उत्पादक और उपभोक्ता का शोषण करके जमा किया गया धन भी काला धन ही है.किसानों  की जमीनें छीन कर उद्योगपतियों को सौंपना और फिर मजदूरों का शोषण करवाना भी भ्रष्टाचार ही है.इन्हीं भ्रष्ट उद्योगपतियों के चंदे से आन्दोलन करके भ्रष्टाचार के खिलाफ अपने को दिखाना फैशन भर है.पूरी भ्रष्ट-व्यवस्था को बदलने हेतु गरीबों,मजदूरों और किसानों को एकत्र कर उन्हें जागरूक करने से ही भ्रष्टाचार दूर होगा -हो हल्ले से नहीं.

Sunday, June 5, 2011

स्वर्ण मंदिर कांड : एक विडंबना ------ विजय राजबली माथुर


05 जून 1984 को स्वर्ण मंदिर,अमृतसर पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा जी के आदेश पर सेना का आक्रमण हुआ और भिंडरावाले साहब का खात्मा तोप के गोले से उखड़े प्लास्टर के टुकड़े  के उनके सर में घुसने से हुआ.स्वर्ण मंदिर एक धार्मिक -स्थल माना जाता है और इस पर सैनिक आक्रमण की निंदा करने वालों में बांग्ला देश युद्ध के नायक लेफ्टिनेंट जेनरल सरदार जगजीत सिंह अरोरा भी मुख्य रूप से थे.इस कदम की सराहना करने वालों में प्रमुख नाम पूर्व प्रधानमंत्री पं.मोरारजी देसाई का है जिन्होंने अमेरिका से इंदिराजी के इस कदम को साहसिक कहा था. मोरार जी उस समय अमेरिका में खुद पर अमेरिकी पत्रकार द्वारा सी.आई.ए.एजेंट होने के आरोप के विरुद्ध मुक़दमे के सिलसिले में डा.सुब्रमनियम स्वामी के कहने पर उनके साथ गए हुए थे.उस पत्रकार ने शायद जिसका नाम हर्षमेन था इंदिराजी के मंत्रीमंडल में एक सी.आई.ए.एजेंट होने का दावा किया था और इशारा मोरारजी पर था.मोरारजी बाद में यह मुकदमा हार गए थे.

जब इमरजेंसी के बाद जनता सरकार के प्रधानमंत्री मोरारजी बने तो उनकी सरकार को परेशान  करने के लिए इंदिराजी ने भिंडरावाला को खुद आगे किया था उनके एक अधिवेंशन में संजय गांधी को भी भेजा था.इंदिराजी मान कर चल रही थीं अब वह कभी सत्ता में वापिस नहीं आ पाएंगी.परन्तु वह 1980 में पुनः प्रधानमंत्री बन गईं और संजय की मृत्यु के बाद राजीव गांधी ने भी भिंडरावाला को इस सदी का महान संत बताया था.लेकिन इन सब बातों का भिंडरावाला पर असर नहीं पड़ा जो अभियान मोरारजी के विरुद्ध इंदिरा जी ने उनसे शुरू कराया था उसे उन्होंने इंदिरा जी के विरुद्ध भी जारी रखा.बचाव के लिए उनके अनुयायी स्वर्ण मंदिर में छिप गए और वहीं से अपनी गतिविधियाँ चलाने लगे जिसके कारण इंदिराजी को स्वर्ण मंदिर पर आक्रमण का आदेश देना पड़ा.

दावा किया गया था कि सेना को स्वर्ण मंदिर में कंडोम ,मादक पदार्थ और शस्त्र भारी मात्रा में मिले थे.कहा तो यह भी गया था वहां घड़ों में मल -मूत्र भी पाया गया था.बताया गया स्वर्ण मंदिर अराजकता का अड्डा बन गया था.

प्रश्न यह है कि जिन मोरारजी के विरुद्ध भिंडरावाला का अभियान शुरू कराया गया वह तो उन्हें प्रेरणा देने वाली इंदिराजी का समर्थन करते हैं.जिन इंदिराजी ने उन्हें खडा किया वह उनका इस हद तक विरोध करती हैं.वस्तुतः मोरारजी सी.आई.ए.एजेंट के आरोप से घबराए हुए थे और उन्हें उस वक्त इंदिराजी की सहायता की जरूरत थी इसीलिए उनके अलोकतांत्रिक कदम की सराहना करने लगे.नैतिकता के अलमबरदार की यह अनोखी नैतिकता थी.

इस स्वर्ण मंदिर काण्ड ने इंदिराजी के प्रति सिक्खों में नफरत भर दी और बावजूद सिक्ख राष्ट्रपति ज्ञानी जेल सिंह की इंदिरा -भक्ति के ,सिक्ख सुरक्षा कर्मियों ने ही इंदिराजी की कुछ माह बाद हत्या कर दी.

प्रश्न यह भी है कि,क्या सिर्फ राजनीतिक विरोध के लिए इंदिराजी द्वारा देशद्रोही कदम को समर्थन देना उचित था अथवा नहीं ? जो भी हो गलत का नतीजा गलत ही हुआ करता है और हुआ भी.

भिंडरावाला इंदिरा जी के लिए भस्मासुर साबित हुए .तालिबान अमेरिका के लिए भस्मासुर बने हुए हैं.चाहे राजनीति हो या सामजिक क्षेत्र ,साहित्य हो या आध्यात्मिक क्षेत्र,सभी में नैतिकता पालन की महती आवश्यकता है.अहंकार में डूब कर जो गलत करते हैं उन्हें एक न एक दिन उसकी सजा भुगतनी ही पड़ती है.

स्वर्ण मंदिर काण्ड हमें हमेशा बुरे कर्मों का बुरा नतीजा प्राप्त होने की याद दिलाता रहेगा.काश लोग सबक भी ले सकें तो बेहतर है.

Thursday, June 2, 2011

'क्रान्तिस्वर' का एक वर्ष

हालांकि यों तो मैं सन १९७३ ई.में मेरठ प्रवास के समय से ही विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में अपने विचार लिखने लगा था और आगरा में तो एक साप्ताहिक पत्र तथा एक त्रैमासिक पत्रिका में सहायक संपादक भी रहा.ख्याल खुद अपने दो अखबार -'क्रन्तिस्वर' एवं 'विद्रोही स्व-स्वर में' निकालने का भी था. परन्तु अखबार निकालने के खर्च  की कमी तथा उन्हें व्यापारिक स्तर पर चलाने की कला न ज्ञात होने के कारण वैसा न कर सका. गत वर्ष सन २०१० में ०२ जून से यह ब्लॉग प्रारम्भ किया जिसका एक वर्ष पूर्ण हो गया है और आज से दुसरे वर्ष में प्रवेश हुआ है.अपने एक वर्ष के ब्लॉग लेखन की स्व-समीक्षा में पाया कि चूंकि खोने को कुछ था ही नहीं सो आत्म-संतोष तो पाया ही पाया कुछ प्रशंसा और सम्मान भी प्राप्त हुआ .विद्वेष-प्रवृति के लोगों से व्यंग्य बाणों तथा कटाक्ष का सामना भी किया.इसी कारण जो स्तुतियाँ मैं सर्वजन के हित में सार्वजानिक करने वाला था नहीं किया ,जिन ब्लागर्स ने व्यक्तिगत रूप से स्तुतियों से लाभ उठाया उन्हीं ने सार्वजानिक प्रकाशन में बाधा उपस्थित की.किन्तु मेरे ऊपर किये गए कटाक्षों का जिन लोगों ने माकूल जवाब दिया उनमें सर्वश्री पवन मिश्रा,प्रवीण पांडे,दीबक बाबा के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं.

सबसे बड़ा लाभ जो हुआ वह यह है कि प्रारम्भिक टिप्पणीकारों के संकेत पर अन्य ब्लाग्स से परिचय हुआ जिनमें बहुत से बहुत अच्छी-अच्छी बातों के खजाना निकले.अच्छे ब्लागर्स से ई.मेल और कुछ से फोन पर भी   संपर्क हुआ.'विद्रोही स्व-स्वर' पर कुछ ब्लागर्स की प्रशंसा की थी जिनमें से कुछ बाद में गडबडी कर गए ,कुछ को उनकी सहमति से ई.मेल द्वारा उनके भले हेतु कुछ स्तुतियाँ भी भेजीं जिनमे से आर.एस.एस.से सम्बंधित तीन ब्लागर्स बेहद प्रतिगामी और ईर्ष्यालू निकले जिनमें से एक ने तो हमारे ब्लाग पर प्रकाशित एक पोस्ट का तर्जुमा भी अपने हित में किया था.इन बातों को देखते हुए तारीफ़ करना और एहसान जताना खतरे से खाली तो नहीं लगता फिर भी जोखिम उठाना ही चाहिए.

मुझे जिन ब्लागर्स की रचनाओं ने प्रभावित किया या जो मुझे पसंद रहें उनमें एक निष्पक्ष डा.टी.एस.दराल सा :हैं(उन्होंने वाई नेट कम्प्यूटर्स की वर्षगाँठ पर जो सद्भावनाएं व्यक्त कीं उनके लिए विशेष आभार).डा.डंडा लखनवी सा :की रचनाएं सदा ही प्रेरणादायी लगीं.उनसे व्यक्तिगत मुलाक़ात कराने वाले कुंवर कुसुमेश जी की रचनाएं और उनकी सदभावनाएँ सराहनीय हैं,उन्हीं के माध्यम से अलका सर्वत मिश्रा जी से भी परिचय हुआ जिनके ब्लॉग पर वर्णित औषाद्धियों का लाभ लेने हेतु  अपने दो रिश्तेदारों को प्रेरित कर चुका हूँ.ये  मुलाकातें कुसुमेश जी द्वारा मुम्बई से पधारे एस.एम्.मासूम साहब के सम्मान में की गयी चाय -पार्टी के दौरान हुईं. अलका जी ने २३ मई को 'आइ .पी.आर.'की बैठक में आमंत्रित करा कर सर्वत जमाल जी समेत और ब्लागर्स से भी परिचय करवाया. 

'जंतर मंतर'के शेष नारायण सिंह जी से परिचय रवीश कुमार जी की समीक्षा पढ़ कर हुआ था उन्होंने बड़ी सहृदयता पूर्वक आर.एस.एस.सम्बंधित अपने विचारों को मुझे उद्धृत करने का अधिकार-'अनुमति ही अनुमति है' लिख कर ई.मेल द्वारा  दिया था अतः उनका बेहद आभारी हूँ.रवीश जी की समीक्षा से ही श्री श्री राम तिवारी के ब्लाग से परिचित हुआ जिनके माध्यम से अमर नाथ मधुर जी और उनके माध्यम से निर्मल गुप्ता जी के ब्लाग्स  तक पहुंचा एवं उनके ज्ञान से लाभान्वित हुआ.

शुरुआत में जिन ब्लागर्स का इससे  पहले भी  उल्लेख हो चुका है उनमें से वीणा श्रीवास्तव जी(वाई नेट की वर्षगांठ पर विशेष सद्भावनाएं व्यक्त करने हेतु विशेष आभार),अल्पना वर्मा जी.के.आर.जोशी सा :(Patali The Village ),डा.मोनिका शर्मा जी(मोनिका जी एवं जोशी जी ने भी  भी २८ मई को उत्तम सद्भावनाएं व्यक्त कीं और उस हेतु उन्हें भी विशेष आभार)  की रचनाएं आज भी प्रभावित करती हैं.डा.शरद सिंह जी  द्वारा प्रदत्त ऐतिहासिक जानकारियाँ तथा मनोज कुमार जी द्वारा प्रदत्त विभिन्न विचार और गंभीर ज्ञान सदैव लाभकारी लगता है.जाकिर अली रजनीश सा : एवं कृति बाजपेयी जी भी कई अच्छी जानकारियाँ देते हैं जिनमें कुछ से मैं भी सहमत हूँ.इन्द्रनील भटचार जी  भी बहुत ज्ञानवर्धक जानकारियाँ लिखते हैं तथा जी.एन शा साहब भी.
  
प्रमोद जोशी जी एवं राजेन्द्र तिवारी जी के ब्लॉग से भी महत्वपूर्ण जानकारियाँ मिलती हैं.प्रदीप तिवारी जी के ब्लॉग सूचनाओं और अमूल्य विचारों का खजाना हैं उनके माध्यम से ही रणधीर सिंह 'सुमन'जी के ब्लाग 'लोक संघर्ष ' से परिचय हुआ जो जन हित के मुद्दों को मजबूती से उठाता हैऔर ज्ञानार्जन में वृद्धि  करता है .

सुमन जी ने ३१ मई २०११ को दोपहर दो बजे मुझे फोन पर सूचित किया की मैं रवीन्द्र प्रभात जी के कार्यालय में सायं ४ बजे पहुंचूं जहाँ बेलफास्ट से पधारे दीपक मशाल जी से भेंट करने का कार्यक्रम था. उनसे पूर्व ज़ाकिर सा :एवं रवीन्द्र जी यशवंत को फोन पर बता चुके थे.वहाँ रवीन्द्र जी,कुसुमेश जी,सुमन जी और पुष्पेन्द्र जी मिले फिर हम सब को रवीन्द्र जी गोमती नगर मशाल जी के ठहराव स्थल ले गए जहाँ प्रतिभा कटियार जी भी थीं.मुलाक़ात और चर्चा अच्छी रही.

हेमाभ , चैतन्य शर्मा,माधव, अनुष्का,चिन्मयी,पाखी आदि  -बच्चों के  ब्लाग भी मैं फालो करता हूँ उनके प्रयास अच्छे हैं एवं उनके तथा जिन बच्चों के ब्लाग मैं नियमित नहीं पढ़ पाता हूँ उनके भी  उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ .


मेरे ब्लॉग पर मेरी श्रीमती जी (पूनम माथुर) की भी कई रचनाएं जो पूर्व में अखबारों में भी छप चुकीं थीं प्रकाशित हुयी हैं जिनमें 'इंसान केन्ने........'को इ.सत्यम शिवम सा :ने चर्चा मंच पर भी स्थान दिया था,जो इसी ब्लाग पर ही भोजपुरी में प्रकाशित हुआ था.क्रन्तिस्वर के लिए पूनम के योगदान को भी भुलाया नहीं जा सकता.

बहुत से ब्लागर्स मेरे आलेखों पर अनुकूल टिप्पणियाँ और सराहना कर गए हैं उन सभी का ह्रदय से आभारी हूँ और जिन्होंने प्रतिकूल टिप्पणियाँ की है उन्हें इसलिए धन्यवाद कि उनसे नए विचार देने का अवसर मिला.जिन्होंने मखौल उड़ाया और अनर्गल आलोचना की उनकी बुद्धी -शुद्धी की प्रार्थना करता हूँ.

मैं तो केवल आलेख टाइप करके छोड़ देता हूँ ,चित्र आदि लगाना ,सेटिंग करना सब यशवंत पर निर्भर है उसका और उसके वाई नेट कम्प्यूटर्स का भी आप सब से संपर्क करवाने में योगदान है.

यह ब्लाग 'स्वान्तः सुखाय -सर्वजन हिताय' प्रारंभ किया गया था और उसी नीति पर आगे भी चलता रहेगा तथा ढोंग एवं पाखण्ड का प्रबल विरोध करता रहेगा .हमारी यही मनोकामना और प्रयास है कि इस धरती पर मानव द्वारा मानव का शोषण अविलम्ब समाप्त हो और मानव जीवन को सुन्दर,सुखद एवं समृद्ध बनाने हेतु  समता मूलक समाज की स्थापना शीघ्रातिशीघ्र हो.