Monday, September 22, 2025

जीवन को सुन्दर,सुखद और समृद्ध बनाना ही वस्तुतः ज्योतिष का अभीष्ट है ------ विजय राजबली माथुर

ज्योतिष अकर्मण्य नहीं बनाता वरन यह कर्म करना सिखाता है.परमात्मा द्वारा जीवात्मा का नाम क्रतु रखा गया है। क्रतु का अर्थ है कर्म करने वाला.जीवात्मा को अपने बुद्धि -विवेक से कर्मशील रहते हुए इस संसार में रहना होता है। जो लोग अपनी अयोग्यता और अकर्मण्यता को छिपाने हेतु सब दोष भगवान् और परमात्मा पर मढ़ते हैं वे अपने आगामी जन्मों का प्रारब्ध ही प्रतिकूल बनाते हैं। 

यह संसार एक परीक्षालय(Examination Hall) है और यहाँ सतत परीक्षा चलती रहती है। परमात्मा ही पर्यवेक्षक(Invegilator) और परीक्षक (Examiner) है।  जीवात्मा कार्य क्षेत्र में स्वतंत्र है और जैसा कर्म करेगा परमात्मा उसे उसी प्रकार का फल देगा। यह संसार सत , रज , तंम के परमाणुओं से मिल कर बना है । जब तक यह परमाणु विषम अवस्था में होते हैं यह संसार चलता रहता है और जब ये परमाणु संम  अवस्था में आ  जाते हैं तब वह अवस्था प्रलय की होती है। 

ज्योतिष विज्ञान से यह ज्ञात करके कि समय अनुकूल है तो सम्बंधित जातक को अपने पुरुषार्थ व प्रयास से लाभ उठाना चाहिए। यदि कर्म न किया जाये और प्रारब्ध के भरोसे हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहे तो यह अवसर निष्फल चला जाता है। इसे एक उदहारण से समझें कि माना आपके पास कर्णाटक एक्सप्रेस से बंगलौर जाने का reservation है और आप नियत तिथि व निर्धारित समय पर स्टेशन पहुँच कर उचित plateform पर भी पहुँच गए पर गाड़ी आने पर सम्बंधित कोच में चढ़े नहीं और plateform पर ही खड़े रह गए। इसमें आपके भाग्य का दोष नहीं है । यह सरासर आपकी अकर्मण्यता है जिसके कारण आप गंतव्य तक नहीं पहुँच सके। इसी प्रकार ज्योतिष द्वारा बताये गए अनुकूल समय पर तदनुरूप कार्य न करने वाले उसके लाभ से वंचित रह जाते हैं। लेकिन यदि किसी की महादशा/अन्तर्दशा अथवा गोचर ग्रहों के प्रभाव से खराब समय चल रहा है तो ज्योतिष द्वारा उन ग्रहों को ज्ञात कर के उनकी शान्ति की जा सकती है और हानि से बचा भी जा सकता है,अन्यथा कम किया जा सकता है।

लेकिन कभी - कभी अकर्मण्यता के कारण नहीं किसी और रणनीति के कारण व्यवहारिक जीवन में  जातक को कुछ अवसर छोड़ने पड़ते हैं तो उसको ग्रहों की चाल या गोचर - स्थिति से जोड़ कर देखना उचित नहीं है। 

कुछ लोग किसी गुटबाजी के कारण राहुल गांधी के विरुद्ध और कुछ उनके समर्थन में उनकी जन्म - कुंडली को आधार बना कर उनके पी एम बनने या न बनने की भविष्यवाणी करते रहते हैं। परंतु यहाँ हम ज्योतिषीय आधार पर नहीं उनकी राजनीतिक - रणनीति के आधार पर कह सकते हैं हैं कि , जिन राहुल गांधी ने अपनी माता - श्री को पी एम नहीं बनने दिया वह खुद भी पी एम नहीं बनेंगे वह सोनिया जी की ही तरह अवसर को किसी दूसरे के लिए छोड़ देंगे। अब इसको कुछ विदवजन उनकी पार्टी के अंदरूनी विरोध को इसका हेतु बताया करते हैं। वस्तुतः राहुल गांधी ने अभी तक जो स्थान प्राप्त कर लिया है वह पी एम और राष्ट्रपति से भी ऊपर  है क्योंकि उनकी लोकप्रियता दिन - प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। MOLITICS के एक कार्यक्रम में नीरज झा के प्रश्न के उत्तर में आदेश ने भी यही स्पष्ट किया है कि, राहुल गांधी सत्ता तो चाहते हैं लेकिन खुद पी एम नहीं बनना चाहते हैं किसी और को बना देंगे। उन्होंने पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ते समय घोषणा की थी कि न वह खुद न उनकी बहन और परिवार से कोई भी इस पद पर नहीं आएगा और वही हुआ भी , ऐसे ही वह पी एम पद के लिए भी करेंगे। 






  ~विजय राजबली माथुर ©

 

Tuesday, June 17, 2025

कांग्रेस का भविष्य: सोनिया-युग ------ Kanak Tiwari






(12) आज कांग्रेस यही बताने में मशगूल है कि यदि अंदरूनी संकट फोड़े की तरह फूट रहा हो तो उस पर सोनिया गांधी के हाथ ही मरहम लगा सकते हैं। लोग राजीव को उनके बुरे दिनों में इटली कांग्रेस का सरगना बताते थे। फिर भी उस परिवार से अपने संबंधों की डींग मारते अघाते नहीं थे। इटली से भारत आई नेहरू परिवार की बहू में कांग्रेस-रक्त होने से उनकी विश्वसनीयता और अनुकूलता इस कदर बढ़ी कि अच्छे से अच्छे अखाड़ची कांग्रेसी को विनय की मुद्रा में उनसे मिलने 10, जनपथ अपने राजनीतिक वजूद को बचाए रखने के लिए जाना पड़ता है। लोकसभा के चौदहवें चुनाव में सोनिया के समर्थन में दिया गया जन-ऐलान राजनीतिज्ञों और मीडिया सहित विदेशियों को भी चकित कर गया। ‘फील गुड‘ के निर्माता और ‘इंडिया शाइनिंग‘ के निर्देशक ‘फील बैड‘ करते अंधेरे में एक दूसरे की शूटिंग करते रहे। 10 जनपथ नई कांग्रेसी राजनीतिक संस्कृति का सबसे महत्वपूर्ण गवाह, खिलाड़ी और हस्ताक्षर है। 
मूल प्रश्न ये हैं:
(13) नेतृत्व को लेकर सोनिया गांधी निस्सन्देह वह ’फेवीकोल’ हैं जिससे पूरी पार्टी के टूटते हाथ पांव जुड़ जाते हैं। लेकिन कांग्रेस की आत्मा कहां है? स्वदेशी का विरोध, विचारों की सफाई, वंशवाद की बढ़ोत्तरी, समाजवाद का खात्मा, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का समर्थन और पश्चिमी अपसंस्कृति के सामने समर्पण करने के बाद कांग्रेस और अन्य दक्षिणपंथी पार्टियों में क्या फर्क रह जाता है? सड़क पर यदि कांग्रेस और भाजपा के दो कार्यकर्ता चलें, तो उन्हें देखकर कोई नहीं अलग अलग पहचान पाता, जबकि चार दशक पहले तक बात ऐसी नहीं थी। कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य भी गाहे बगाहे जीन्स और टी शर्ट्स पहनकर दूरदर्शन के झरोखों से जनता को निकट दर्शन देते हैं। पैन्ट कोट और विलायती सूट डांटे रहने का फैशन भी कांग्रेस में है। देहाती गंध की गमक लिए लाखों कांग्रेसी कार्यकर्ता अब दरी बिछाने वालों की जमात तक में शामिल नहीं हैं। अब तो उनके बदले शामियाना भंडार वाले कांग्रेस नगर रचने के ठेकेदार हो गये हैं। हर चीज अब बाजार से किराये पर है। पूरा मंच, शामियाना, खान-पान, विज्ञापन एजेन्सियों से ठेके में छपा साहित्य, ढोकर लाये गये श्रोता, भाषण पढ़ते अशुद्ध हिन्दी के नवजात प्रवाचक। ऐसा लगता है स्टूडियो में कांग्रेस-लीला नामक किसी फिल्म की शूटिंग हो रही है। 
(14) संघ परिवार पर कांग्रेस का तीखा आक्रमण तर्कसंगत है कि परिवार ने भारत की आज़ादी के लिए घरों में दुबक कर बैठने के अलावा कुछ नहीं किया। लेकिन आज खुद कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्यों में से कितनों ने अथवा उनके पूर्वजों ने आजादी के आन्दोलन में हिस्सेदारी की है? पराजय-विशेषज्ञ कांग्रेस की जीत की रणनीति बनाते हैं। जिन्होंने जीवन में कोई चुनाव नहीं लड़ा। जो अपने राज्य से एक वार्ड का चुनाव जीत नहीं पाते। जो लगातार हार रहे हैं। जो हारने के बावजूद राज्य सभा में आसानी से पहुंच जाते हैं, लेकिन दूसरों को नहीं जाने देते। जो आखिरी बार हार चुके हैं। ऐसे तत्व ने मिलकर कांग्रेस की अगली लोकसभा में जीत की गारन्टी करते रहते हैं। कांग्रेस कार्य समिति तथा प्रदेशों के कई शीर्ष नेता ऐसे भी हैं जिन्होंने कभी न कभी कांग्रेस छोड़ी भी है। इनमें से कई नेताओं ने तो इन्दिरा गांधी तक को धोखा दिया। फिर भी सोनिया गांधी उन पर विश्वास किए बैठी हैं। कांग्रेस अकेली पार्टी है जिसके संविधान में प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष पद एक ही व्यक्ति को दिए जाने के प्रावधान रचे गए हैं। जिस पार्टी में गांधी जैसा राज्य शक्ति की खिलाफत करने वाला नेता पैदा हुआ, उस पार्टी में खुले आम दिल्ली से लेकर पंचायतों तक वंशवाद की राजनीति चलाई जाती रही है। नेहरू गांधी परिवार ने यदि देश की सेवा की होगी तो कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्यों, मुख्यमंत्रियों, सांसदों और विधायकों के परिवार वालों को आम कांग्रेस कार्यकर्ता के ऊपर क्यों तरजीह दी जा रही है? पूरी पार्टी को कुछ परिवार क्यों जकड़े हुए हैं? 
(15) चाहे जो हो, मनमोहनसिंह को प्रधानमंत्री बनाया जाना सोनिया गांधी के यश के खाते की घटना नहीं हो सकती। कथित आर्थिक सुधारों का नायक जननायक नहीं होता। एक सेवानिवृत्त नौकरशाह के लिए इतनी पेंशन ठीक नहीं थी कि वह मूल वेतन से ही ज्यादा हो जाए। देश या कांग्रेस कोई घाटा उठाती ‘पब्लिक कम्पनी‘ नहीं रही है जिसका प्रबंधन विशेषज्ञ को इस भय के साथ सौंप दिया जाए, ताकि वह कम्पनी बीमार नहीं हो जाए। वह अर्थशास्त्र के अध्यापक की नौकरी नहीं बल्कि सेवा के अर्थ का अध्यापन है। मनमोहन सिंह ने ही वित्तमंत्री के रूप में वल्र्ड बैंक, गैट, अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष, निजीकरण जैसे शब्दों के अर्थ पढ़ाए हैं। सोनिया की विजय आक्रमण पर प्रतिरक्षा की विजय थी। विरोधाभास यह भी कि बहुलवादी संस्कृति में विश्वास करने वाली कांग्रेस एकल प्रचारक सोनिया तक कैद होकर रह गई। सोनिया गांधी इतिहास का भूकम्प नहीं हो सकतीं। वे अतिशयोक्ति अलंकार के काबिल भी नहीं हैं। हो सकता है मनमोहनसिंह को प्रधानमंत्री बनाने के पीछे कई राजनीतिक कारण भी रहे होंगे। 
 मनमोहन सिंह के बदले राजनीतिक व्यक्ति यदि प्रधानमंत्री होता तो पार्टी पतन के रास्ते पर शायद इस तेज़ी से नहीं जा पाती। एक गैरराजनीतिज्ञ, मनोनीत प्रधानमंत्री ने किसी अन्य लोकतंत्र में इस कदर अपना शिकंजा संगठन और सरकार पर नहीं कसा जैसा करतब भारत में हुआ। 
चुनावों में पराजय
(16) जनता ने 1989 के बाद कांग्रेस को केन्द्र की एकल सत्ता से बेदखल कर दिया। यह अलग बात है कि सबसे बड़े दल के रूप में उभरने के कारण उसे पांच वर्ष सत्ता में रहने का राजनीतिक परिस्थितियों के कारण 1991 में अवसर मिल गया था और 2003 तथा 2008 में भी। लोकतंत्र में सत्तासीन होना ही कामयाब होना है। चुनावों में कांग्रेस का पतन फीनिक्स पक्षी की दंत-कथाओं की तरह उन तंतुओं से नहीं बना है, जिनमें पांच सौ बरस बाद भी शरीर के भस्म हो जाने पर राख से जी उठने की कालजयी कुदरती क्षमता होती है। सवाल उठता रहा कि आत्महंता और अहंकारी तथा अधकचरे कांग्रेसियों के हुजूम को किसी अनुशासित सेना में बदलने की शक्ति क्या कांग्रेस के नेतृत्व में बची रही है? सवाल उठता रहा कि भविष्य यानी वक्त एक निर्मम हथियार है। उसे कांग्रेसियों की गरदन से भी कोई परहेज़ नहीं है। क्या कांग्रेस आत्म प्रशंसा में गाफिल रही अथवा निराशा के महासमुद्र में विलीन होने को बेताब हो गई थी? क्या कांग्रेस के कर्णधार केवल उनके पूर्वजों के गौरवशाली इतिहास को ढोने लेकिन नहीं बांचने का दंभ लिए हुए मतदाताओं को घर की मुर्गी समझते रहेंगे?














  ~विजय राजबली माथुर ©
 

Monday, May 5, 2025

जूलियस रेबेरो आईपीएस (सेवानिवृत्त) (पूर्व डी.जी.पी. महाराष्ट्र) का कथन ------ द्वारा Anand Surana

 



जूलियस रेबेरो ने पीएम नरेंद्र मोदी से क्या कहा, कृपया पढ़ें
पंजाब के पूर्व डीजीपी और देश के बेहद प्रतिष्ठित आईपीएस अधिकारी के विचार.
जूलियस रेबेरो आईपीएस (सेवानिवृत्त) (पूर्व डी.जी.पी. महाराष्ट्र)
आंखें खोलने वाला
देश के नागरिक के तौर पर मुझे लगा कि ये बात उन तक पहुंचानी होगी.
मोदी जी, एक मंच पर खड़े होकर चिल्लाने और यह सवाल पूछने का कोई 👍मतलब नहीं है कि पिछले 60 वर्षों में क्या हासिल हुआ। क्या आपको नहीं लगता कि हमारे देश के नागरिक मूर्ख हैं.  आप एक ऐसे देश के प्रधान मंत्री हैं, जो 300 से अधिक वर्षों तक ब्रिटिश शासन के अधीन था।  लोग बिल्कुल गुलामों की तरह जी रहे थे।  आज़ादी के बाद 1947 में कांग्रेस सत्ता में आई और शून्य से शुरुआत की. इस देश में अंग्रेजों द्वारा छोड़े गए कूड़े के अलावा कुछ भी नहीं था। अंग्रेजों के भारत छोड़ने के बाद से भारत के पास एक पिन बनाने के भी संसाधन नहीं थे।  पूरे देश में केवल 20 गांवों के लिए बिजली उपलब्ध थी।  इस देश में केवल 20 शासकों (राजाओं) के लिए ही टेलीफोन सुविधा उपलब्ध थी। पीने के पानी की कोई आपूर्ति नहीं थी. केवल 10 छोटे बांध थे।  खेती के लिए न अस्पताल, न शैक्षणिक संस्थान, न खाद, न चारा, न पानी की आपूर्ति।  कोई नौकरियाँ नहीं थीं और पूरे देश में केवल भुखमरी देखी जा सकती थी।  अनेक शिशुओं की मृत्यु हुई।  सीमा पर बहुत कम सैन्य कर्मचारी. केवल 4 विमान, 20 टैंक और देश के चारों तरफ पूरी तरह खुली सीमाएँ। बहुत कम सड़कें और पुल। खाली खजाना.
इन परिस्थितियों में नेहरू सत्ता में आये।
60 साल बाद भारत क्या है?
विश्व की सबसे बड़ी सेना में से एक.  हजारों युद्धक विमान, टैंक।  लाखों औद्योगिक संस्थान। लगभग सभी गांवों में बिजली. सैकड़ों विद्युत विद्युत स्टेशन। लाखों किलोमीटर लंबे राष्ट्रीय राजमार्ग और ओवर ब्रिज।  नई रेलवे परियोजनाएं, स्टेडियम, सुपर स्पेशलिटी अस्पताल, अधिकांश भारतीय घरों में टेलीविजन, सभी देशवासियों के लिए टेलीफोन।  देश के भीतर और बाहर काम करने के लिए सभी बुनियादी ढांचे, बैंक, विश्वविद्यालय, एम्स, आईआईटी, आईआईएम, परमाणु हथियार, पनडुब्बी, परमाणु स्टेशन, इसरो, नवरत्न सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयाँ।
सालों पहले लाहौर तक घुसी थी भारतीय सेना...पाकिस्तान के 2 टुकड़े कर दिए. पाकिस्तान के 1 लाख सैनिकों और कमांडरों ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।
भारत ने खनिज और खाद्य पदार्थों का निर्यात शुरू कर दिया। श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा बैंकों का राष्ट्रीयकरण। भारत में कंप्यूटर का आगमन हुआ और भारत तथा देश के बाहर रोजगार के अनेक अवसर प्राप्त हुए।
आप सूचना प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर पीएम बने हैं.
जब आपने प्रधानमंत्री का पद संभाला था, तब भारत दुनिया की शीर्ष 10 अर्थव्यवस्थाओं में था। इसके अलावा जीएसएलवी, मंगलयान, मोनोरेल, मेट्रो रेल, अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे, पृथ्वी, अग्नि, नाग, परमाणु पनडुब्बियां....ये सब आपके पीएम बनने से पहले ही हासिल कर लिया गया था।
कृपया लोगों के पास चिल्लाने और पूछने न आएं कि कांग्रेस ने 60 वर्षों में क्या हासिल किया है।
कृपया लोगों को बताएं कि आपने पिछले 9 वर्षों में क्या हासिल किया है, नाम बदलने, मूर्ति स्थापित करने और लगातार गाय की राजनीति करने, हिंदू और मुस्लिम, हिंदू और ईसाई, हिंदू और दलित, हिंदू और अन्य अल्पसंख्यकों के बीच दरार पैदा करने के अलावा।
आपकी असफल नोटबंदी, खराब ढंग से क्रियान्वित जीएसटी (आज़ादी मिलने के बाद से सबसे कम) और लोगों को लंबी कतारों में खड़ा करना, जिससे अनावश्यक मौतें हुईं।
पाखंडी भाजपाइयों ने एफडीआई का विरोध किया और अब भाजपा बेशर्मी से एफडीआई का समर्थन कर रही है.. भाजपा भारत को अंबानी और अडानी को बेच रही है और भारत सरकार के स्वामित्व वाली एचएएल के बजाय अनिल अंबानी की 2 महीने पुरानी कंपनी को राफेल सौदा इसका एक प्रमुख उदाहरण है.. भाजपा  ज्यादा टैक्स लगाकर पेट्रोल, डीजल और एलपीजी के दाम बढ़ा दिए, जबकि कच्चे तेल के दाम सस्ते हो गए.. मोदी सरकार ने गरीबों से मिनिमम बैलेंस न रख पाने पर एसबीआई के जरिए जुर्माने के तौर पर 1771 करोड़ रुपये वसूले हैं.  भारत के लोग.  विकास अमित शाह के बेटे, शौर्य डोभाल, अंबानी, अडानी, बाबा रामदेव के पतंजलि समूह और बीजेपी को प्रायोजित करने वाले लोगों के लिए हो रहा है.. बीजेपी ने गंगा नदी को साफ करने के लिए 3000 करोड़ रुपये खर्च किए हैं, जिसका भ्रष्टाचार हर कोई पा सकता है  गंगा नदी में डुबकी लगाने से आप अपने पूरे शरीर पर मल, मैल, ग्रीस लेकर बाहर आते हैं।
पुनश्च.  यह कांग्रेस के प्रचार अभियान का विज्ञापन नहीं है.  मैं कांग्रेस समर्थक नहीं हूं.  मैं सिर्फ एक जागरूक मतदाता हूं, जो हर बार यह महसूस करता है कि यह उसकी बुद्धि का अपमान है जब वर्तमान सरकार कहती है कि हमारा देश पिछले 60 वर्षों में अच्छा नहीं रहा है!
गरिमा पर समझौता नहीं किया जा सकता!!
 🙏 जय हिंद ---जय भारत🙏
From Rakesh Nagar post












 ~विजय राजबली माथुर ©