Saturday, November 25, 2017

वर्तमान शासकों को जनमत के आगे झुकाने हेतु नेहरू की प्रासंगिकता ------ विजय राजबली माथुर









26 नवंबर 1949 को संविधानसभा ने वर्तमान संविधान को स्वीकृत किया था जिसे 26 जनवरी 1950 से लागू किया गया है ।  वर्तमान सत्तारूढ़ दल जिसे ध्वस्त करने की दिशा में बढ़ रहा है उस संविधान को भले ही डॉ बी आर अंबेडकर की अध्यक्षता वाली समिति ने बनाया और डॉ राजेन्द्र प्रसाद के सभापतित्व वाली संविधानसभा ने स्वीकृत किया किन्तु इसे स्वीकृत कराने और फिर लागू करने में टटकाली प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का भारी अतुलनीय योगदान रहा है। अतः संविधान की रक्षा हेतु नेहरू युग की नीतियों को पुनः बहाल करना जनहित में आवश्यक है । 


नेहरू जी द्वारा तानाशाही के प्रति चेतावनी  : 
धर्मयुग 13 नवंबर 1977 के  अंक में शिव प्रसाद सिंह जी ने अपने लेख में ज़िक्र किया है कि ," नेहरू जी का  सांस्कृतिक व्यक्तित्व एक स्वप्न दृष्टा का व्यक्तित्व था " । उन्होने यह भी उल्लेख किया है कि नेहरू जी जनता की उनके प्रति प्रतिक्रिया को काफी महत्व देते थे। इसी क्रम में नेहरू जी ने 'चाणक्य ' नामक छद्यम रूप से एक लेख लिखा था -"एक हल्का सा झटका और बस जवाहर लाल मंथर गति से चलने वाले जनतंत्र के टंट-घंट को एक तरफ करके तानाशाह में बदल सकते हैं। वे तब भी शायद प्रजातन्त्र और समाजवाद की शब्दावली और नारे दोहराते रहेंगे, लेकिन हम जानते हैं कि किस तरह तानाशाहों ने इस तरह के नारों से अपने को मजबूत किया है। और कैसे समय आने पर इन्हें बकवास कह कर एक तरफ झटक दिया है। सामान्य परिस्थितियों में वे शायद सफल और योग्य शासक बने रहते , परंतु इस  क्रांतिकारी युग में , सीजरशाही हमेशा ताक में बैठी रहती है और क्या यह संभव नहीं है कि नेहरू सीजर की भूमिका में उतरनेकी कल्पना कर रहे हों। "

शिव प्रसाद जी ने लिखा है कि इस लेख में व्यक्त विचारों के कारण जनता उस 'चाणक्य' को मारने/ फांसी देने को इच्छुक हो गई तब नेहरू जी को खुलासा करना पड़ा कि वह खुद इसके लेखक है इस खुलासे ने विस्मय उत्पन्न कर दिया था। 


नेहरू जी की उदारता : 

पूर्व पी एम बाजपेयी साहब ने भी नेहरू जी की उदारता का ज़िक्र करते हुये बताया था कि जब वह पहली बार सांसद बने थे तो लोकसभा की एक बैठक में जम कर नेहरू जी के परखचे उघाड़े थे लेकिन नेहरू जी चुपचाप सुनते रहे थे। उसी शाम राष्ट्रपति भवन में एक भोज था जिसमें वह नेहरू जी का सामना करने से बच रहे थे, किन्तु नेहरू जी खुद चल कर उनके पास आए और उनके कंधे पर हाथ रख कर कहा 'शाबाश नौजवान ' इसी तरह डटे रहो तुम एक दिन ज़रूर इस देश के प्रधानमंत्री बनोगे।  


पीटर रोनाल्ड डिसूजा साहब का  लेख ज़िक्र करता है कि, बाद में नेहरू जी की इस सहिष्णुता का परित्याग कर दिया गया। भीष्म नारायण सिंह जी ने भी उदारीकरण के इस दौर में नेहरू जी की प्रासंगिकता की और ज़रूरत को रेखांकित किया है। 


नेहरू जी और उनकी नीतियों पर आक्रामक प्रहार  : 

लेकिन हम व्यवहार में देखते हैं कि 1977 के मुक़ाबले आज 40  वर्षों बाद नेहरू जी और उनकी नीतियों पर आक्रामक प्रहार किए जा रहे हैं। उस समय की  मोरारजी देसाई की जपा सरकार के मुक़ाबले आज की भाजपाई मोदी सरकार तो नेहरू जी का नामोनिशान तक मिटा देने पर आमादा है। नेहरू जी ने यू एस ए अथवा रूस के खेमे में जाने के बजाए यूगोस्लाविया के मार्शल टीटो तथा मिश्र के कर्नल अब्दुल गामाल नासर के साथ मिल कर एक 'गुट निरपेक्ष' खेमे को खड़ा करके दोनों के मध्य संतुलन बनाने का कार्य किया था। आज की मोदी सरकार ने यू एस ए के समक्ष ही नहीं देश के कारपोरेट घरानों के समक्ष भी आत्म समर्पण कर दिया है। नेहरू जी ने देश में मिश्रित अर्थ व्यवस्था लागू की थी और योजना आयोग के माध्यम से  विकास का खाका खींचा था जिसने देश को आत्म-निर्भर बना दिया था। अब योजना आयोग समाप्त किया जा चुका है और सार्वजानिक क्षेत्र को समाप्त किए जाने की जो प्रक्रिया बाजपेयी नीत  भाजपा सरकार ने शुरू की थी उसे पूर्ण सम्पन्न करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए बने क़ानूनों को समाप्त या निष्प्रभावी किया जा रहा है।'चाणक्य ' नाम से नेहरू जी ने जो लिखा था वह मोदी साहब पर लागू होने के आसार साफ-साफ नज़र आ रहे हैं।  जनता त्राही-त्राही कर रही है जो नेहरू जी जनता की प्रतिक्रिया को महत्व देते थे उनके आज के उत्तराधिकारी जनता को महत्वहीन मानते हुये कुचलने पर आमादा हैं। ऐसे में वर्तमान शासकों को जनमत के आगे झुकने के लिए मजबूर करने के लिए नेहरू जी के कार्यों व उनकी नीतियों को बहाल करने की मांग उठाना आज वक्त की जोरदार ज़रूरत है। 

~विजय राजबली माथुर ©

1 comment:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (27-11-2017) को "अकेलापन एक खुशी है" (चर्चा अंक-2800) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'