भारत में प्राचीन काल से वैदिक मत या धर्म चलन में था जिसके मूल तत्व –सत्य ,अहिंसा,अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रहाम्चार्य हैं.धर्म धारण करना सिखाता है.अन्य बातें धर्म नहीं हैं,वे तो ढोंग पाखण्ड व् आदम्बर हैं जो जनता को उलटे उस्तरे से मूढ़टी हैं.देवदासी या जोगिनी कुप्रथा भी शोषण और उत्पीडन का नतीजा है जो केवल धनवानों द्वारा गरीबों का किया जाता है.केवल गरीब माँ-बाप ही अपनी कन्याओं को बेचते होंगे,दबाव और मजबूरी में ही।
भगवान् तो प्रकृति के पंचतत्वों के मेल का नाम है.भूमि का भ,गगन का ग,अनल (अग्नि)का,T,नीर (जल)का ,न मिल कर भगवान् बनता है.भगवान् की पूजा किसी मंदिर या मूर्ती द्वारा नहीं हो सकती उसके लिए हवन (यज्ञ)की वैज्ञानिक पद्धति ही अपनानी होगी.महाभारत काल के बाद धर्म का पतन होने लगा और परिणामस्वरूप कुप्रथाएँ पनपती गयीं जिनका आज भारी बोल बाला है.अंजलि सिन्हा जी से पूर्व प्रमोद जोशी जी व अरुण त्रिपाठी जी भी धार्मिक सामाजिक समस्याओं को उठा चुके हैं.लेकिन जब तक धर्म के नाम पर हो रहे अधर्म को बंद नहीं किया जाता जब तक अमीर कि पूजा होगी ढोंग-पाखण्ड चलता रहेगा।
Typist -Yashwant
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