इन्दिरा गांधी का वर्तमान केंद्र सरकार के निर्माण में योगदान
1966 में लाल बहादुर शास्त्री जी के असामयिक निधन के बाद सिंडीकेट (के कामराज नाडार, अतुल घोष, सदाशिव कान्होजी पाटिल, एस निज लिंगप्पा, मोरारजी देसाई ) की ओर से मोरारजी देसाई कांग्रेस संसदीय दल के नेता पद के प्रत्याशी थे जबकि कार्यवाहक प्रधानमंत्री नंदा जी व अन्य नेता गण की ओर से इंदिरा जी । अंततः इन्दिरा जी का चयन गूंगी गुड़िया समझ कर हुआ था और वह प्रधानमंत्री बन गईं थीं। 1967 के आम चुनावों में उत्तर भारत के राज्यों में कांग्रेस का पराभव हो गया व संविद सरकारों का गठन हुआ। पश्चिम बंगाल में अजोय मुखर्जी (बांग्ला कांग्रेस ),बिहार में महामाया प्रसाद सिन्हा (जन क्रांति दल ),उत्तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह (जन कांग्रेस - चन्द्र् भानु गुप्त के विरुद्ध बगावत करके ) , मध्य प्रदेश में गोविंद नारायण सिंह (द्वारिका प्रसाद मिश्र के विरुद्ध बगावत करके ) मुख्यमंत्री बने ये सभी कांग्रेस छोड़ कर हटे थे। केंद्र में फिर से मोरारजी देसाई ने इंदिरा जी को टक्कर दी थी लेकिन उन्होने उनसे समझौता करके उप-प्रधानमंत्री बना दिया था। 1969 में 111 सांसदों के जरिये सिंडीकेट ने कांग्रेस (ओ ) बना कर इन्दिरा जी को झकझोर दिया लेकिन उन्होने वामपंथ के सहारे से सरकार बचा ली। 1971 में बांगला देश निर्माण में सहायता करने से उनको जो लोकप्रियता हासिल हुई थी उसको भुनाने से 1972 में उनको स्पष्ट बहुमत मिल गया किन्तु 1975 में एमर्जेंसी के दौरान हुये अत्याचारों ने 1977 में उनको करारी शिकस्त दिलवाई। मोरारजी प्रधानमंत्री बन गए और उनके विदेशमंत्री ए बी बाजपेयी व सूचना प्रसारण मंत्री एल के आडवाणी। इन दोनों ने संघियों को प्रशासन में ठूंस डाला। इसके अतिरिक्त गृह मंत्री चौधरी चरण सिंह के पीछे ए बी बाजपेयी,पी एम मोरारजी के पीछे सुब्रमनियम स्वामी तथा जपा अध्यक्ष चंद्रशेखर के पीछे नानाजी देशमुख छाया की तरह लगे रहे और प्रशासन को संघी छाप देते चले। संघ की दुरभि संधि के चलते मोरारजी व चरण सिंह में टकराव हुआ और इंदिराजी के समर्थन से चरण सिंह पी एम बन गए।
एमर्जेंसी के दौरान हुये मधुकर दत्तात्रेय 'देवरस'- इन्दिरा (गुप्त ) समझौते को आगे बढ़ाते हुये चरण सिंह सरकार गिरा दी गई और 1980 में संघ के पूर्ण समर्थन से इन्दिरा जी की सत्ता में वापसी हुई। अब संघ के पास (पहले की तरह केवल जनसंघ ही नहीं था ) भाजपा के अलावा जपा और इन्दिरा कांग्रेस भी थी। संघ के इशारे पर केंद्र में सरकारें बनाई व गिराई जाने लगीं। सांसदों पर उद्योपातियों का शिकंजा कसता चला गया। 1996 में 13 दिन, 1998 में 13 माह फिर 1999 में पाँच वर्ष ए बी बाजपेयी के नेतृत्व में केंद्र सरकार का भरपूर संघीकरण हुआ। 2004 से 2014 तक कहने को तो मनमोहन सिंह कांग्रेसी पी एम रहे किन्तु संघ के एजेंडा पर चलते रहे। 1991 में जब वह वित्तमंत्री बन कर ‘उदारीकरण ‘ लाये थे तब यू एस ए जाकर आडवाणी साहब ने उसे उनकी नीतियों को चुराया जाना बताया था। स्पष्ट है कि वे नीतियाँ संघ व यू एस ए समर्थक थीं। जब सोनिया जी ने प्रणव मुखर्जी साहब को पी एम बना कर मनमोहन जी को राष्ट्रपति बनाना चाहा था तब तक वह हज़ारे /रामदेव/केजरीवाल आंदोलन खड़ा करवा चुके थे। 2014 के चुनावों में 100 से अधिक कांग्रेसी मनमोहन जी के आशीर्वाद से भाजपा सांसद बन कर वर्तमान केंद्र सरकार के निर्माण में सहायक बने हैं।
यदि इंदिरा जी ने 1975 में 'देवरस'से समझौता नहीं किया होता व 1980 में संघ के समर्थन से चुनाव न जीता होता तब 1984 में राजीव जी भी संघ का समर्थन प्राप्त कर बहुमत हासिल नहीं करते। विभिन्न दलों में भी संघ की खुफिया घुसपैठ न हुई होती।
इंदिराजी के जन्मदिन पर आज उनको याद करने,नमन करने और उनकी प्रशंसा के गीत गाने के साथ-साथ ज़रा उनकी जल्दबाजी और अदूरदर्शी चूकों पर भी गौर कर लिया जाये और उनसे बचने का मार्ग ढूँढना शुरू किया जाये तो देशहित में होगा व इंदिराजी को भी सच्ची श्रद्धांजली होगी।
~विजय राजबली माथुर ©
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1 comment:
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (21-11-2015) को "हर शख़्स उमीदों का धुवां देख रहा है" (चर्चा-अंक 2167) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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