लखनऊ, 09 दिसंबर 2015 :
आज साँय 3 बजे यू पी प्रेस क्लब में वंदना मिश्रा जी की अध्यक्षता में मानवाधिकार दिवस की पूर्व संध्या और हस्तक्षेप डाॅट काॅम के पांच साल पूरे होने पर इंसाफ अभियान और नागरिक परिषद के संयुक्त तत्वावधान में एक विचार गोष्ठी ‘असहिष्णुता की चुनौतियां और सोशल मीडिया' विषय पर सपन्न हुई जिसका कुशल संचालन राजीव यादव द्वारा किया गया। कार्यक्रम में अध्यक्ष महोदया के अतिरिक्त मंचस्थ अन्य विचारकों में अमलेंदु उपाध्याय, अभिषेक श्रीवास्तव, रणधीर सिंह सुमन, महिलाओं की पत्रिका 'खबर लहरिया' की संपादक सुश्री लक्ष्मी एवं इमरान थे।
कार्यक्रम प्रारम्भ करने से पूर्व बी डी शर्मा जी व कवि विद्रोही जी के निधन पर एक मिनट का मौन रख कर श्रद्धांजली भेंट की गई।
अयोध्या के सुखराम जी द्वारा असहिष्णुता का वर्णन करने के उपरांत मुख्य अतिथि अमलेंदु उपाध्याय जी ने कहा कि, 'असहिष्णुता' शब्द आज की परिस्थितियों में काफी हल्का शब्द है वस्तुतः परिस्थितियाँ कहीं काफी ज़्यादा भयावह व चिंतनीय हैं। हस्तक्षेप डाट काम के पाँच वर्ष पूर्ण होने पर उन्होने अपने लगभग डेढ़ सौ लेखक साथियों व पाठकों का आभार व्यक्त किया।आर्थिक झंझावातों के मध्य कारपोरेट घरानों के प्रिंट मीडिया व इलेक्ट्रानिक चेनलों के इस युग में पाँच वर्ष सफलतापूर्वक पूर्ण कर लेना कोई हंसी मज़ाक का खेल नहीं था वह भी तब जबकि असहिष्णु लोगों द्वारा अनर्गल गालियों तथा धमकियों का निरंतर सामना करना पड़ा हो। अमलेंदु जी ने बताया कि जब कोई व्यक्ति अपने तर्कों को तो रखे किन्तु विपक्षी के तर्कों को समुचित रूप से गलत सिद्ध न कर पाने की स्थिति में नीचता व गाली गलौज पर उतर आए तो उसे असहिष्णुता कहा जाएगा और आज का दौर ऐसा ही है। उन्होने स्पष्ट किया कि इसकी शुरुआत 2011 से ही हज़ारे आंदोलन के दौरान हुई थी जिसका भरपूर लाभ मोदी व उनके साथियों ने 2014 में उठाया। उन्होने यह भी कहा कि उनके कहने का आशय यह नहीं है कि हज़ारे व केजरीवाल असहिष्णु लोग थे बल्कि हो सकता है कि वे इसके पीछे की चाल को न समझ पाये हों एवं निहित स्वार्थी शक्तियों का शिकार बन गए हों। उस समय यह मुहावरा प्रचलित हो गया था कि जो हज़ारे व केजरीवाल के साथ नहीं हैं वे भ्रष्टाचार के समर्थक हैं जो अब आज इस तरह बदल गया है कि जो मोदी के साथ नहीं है वह देशद्रोही है।
अमलेंदु जी ने कहा कि, सोशल मीडिया का प्रयोग करने वाले के ऊपर है कि वह इसका दुरुपयोग करता है या सदुपयोग। उन्होने कहा कि यह एक माध्यम है साध्य नहीं। इलेक्ट्रानिक चेनल और प्रिंट मीडिया में तो गलती सुधारने के मौके प्रसारण -मुद्रण को रोकने से मिल भी जाते हैं किन्तु सोशल मीडिया में ऐसा अवसर नहीं मिलता है एक बार प्रकाशित कर दिया तो वह तुरंत दुनिया भर में प्रसारित हो गया। इसी बात का उदाहरण दिया 'जनपथ' के अभिषेक श्रीवास्तव साहब ने। उन्होने कहा कि परसों मुंबई की सामाजिक कार्यकर्ता सुश्री कामायनी बाली महाबल ने कामरेड बर्द्धन जी से संबन्धित एक पोस्ट अपनी साईट पर जल्दबाज़ी में दे दी जिसे तुरंत काफी लोगों ने लाईक कर दिया व कई और साईट्स पर भी शेयर हो गई। रात्रि 11 बजे उनके संग्यान में आने पर उन्होने इसमें सुधार करवाया। अभिषेक जी का ज़ोर था कि सोशल मीडिया पर अधिक सावधान रहने की आवश्यकता है।
असहिष्णुता के संबंध में अभिषेक जी का कहना था कि इसका प्रारम्भ वस्तुतः 2009 में तब ही हो गया था जब बेंगलुरु के एक हब में मुथालिक के अराजक तत्वों ने युवतियों के विरुद्ध अभद्र आचरण किया था। उन्होने यह भी कहा कि केवल सोशल मीडिया कोई परिवर्तन नहीं ला सकता जब तक कि इसे ज़मीन पर न उतारा जाये।
खबर लहरिया की लक्ष्मी जी ने अपने व्यक्तिगत अनुभवों का वर्णन करते हुये बताया कि महिलाओं के लिए विशेषकर दलित महिलाओं के लिए पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य करना बहुत विकट है। उन्होने अपनी साथिन पत्रकारों के कैमरे तोड़े जाने उनके साथ अभद्रता किए जाने का भी उल्लेख किया। प्रशासनिक अधिकारियों का व्यवहार भी असहयोगात्मक व असहिष्णु ही रहा है। तमाम विघ्न-बाधाओं के बावजूद उनकी टीम अपने अभियान में लगी है और लगी रहेगी ऐसा आश्वासन उन्होने दिया।
रणधीर सिंह सुमन ने अमलेंदु जी के साहस की प्रशंसा करते हुये कहा कि तमाम बाधाओं और चुनौतियों का मुक़ाबला करके आज वह इस मुकाम पर पहुंचे हैं जो वाकई बधाई की बात है। उनका मत था कि सोशल मीडिया पर सक्रिय रह कर हर गलत बात का जवाब दिया जाना चाहिए। उन्होने बताया कि फासिस्ट शक्तियों ने विकी पीडिया तक पर इतिहास बदल डाला है जब गूगल सर्च के सहारे जानकारी हासिल की जाएगी और वहाँ से गलत बात सामने आएगी तब इस संकट का मुक़ाबला करना एक बड़ी कठिन चुनौती है।
ताहिरा हसन जी , इमरान, पूर्व विधायक रामलाल जी, निरंजनदेव, अंकुर आदि ने भी अपने विचार रखे। नागपुर से पधारे युवा पर्वतारोही जिंनका एक पैर नकली बना हुआ है ने अपने मार्मिक सम्बोधन में बताया कि किस प्रकार आर एस एस /भाजपा के लोग दलितों को मोहरा बना कर उनका हितैषी होने का स्वांग भरते हैं जबकि उनके प्रति वस्तुतः घृणा भाव से ओत-प्रोत रहते हैं।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में वंदना जी ने सोशल मीडिया को मायावी बताते हुये इसके भ्रमजाल से बचने की सलाह दी। उनका मत था कि सोशल मीडिया का दुरुपयोग अधिक हो रहा है अगर कोई तस्वीर डालता है तो उसे हजारों लाईक्स मिल जाते हैं जबकि सकारात्मक और समाजोपयोगी पोस्ट्स को दो-चार लाईक्स भी मिल जाएँ तो गनीमत है। लेकिन फिर भी उनका कहना था कि हम सोशल मीडिया से अधिक से अधिक सकारात्मक लाभ उठा कर असहिष्णुता का वाजिब मुक़ाबला करें यह वक्त की मांग है।
~विजय राजबली माथुर ©
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आज साँय 3 बजे यू पी प्रेस क्लब में वंदना मिश्रा जी की अध्यक्षता में मानवाधिकार दिवस की पूर्व संध्या और हस्तक्षेप डाॅट काॅम के पांच साल पूरे होने पर इंसाफ अभियान और नागरिक परिषद के संयुक्त तत्वावधान में एक विचार गोष्ठी ‘असहिष्णुता की चुनौतियां और सोशल मीडिया' विषय पर सपन्न हुई जिसका कुशल संचालन राजीव यादव द्वारा किया गया। कार्यक्रम में अध्यक्ष महोदया के अतिरिक्त मंचस्थ अन्य विचारकों में अमलेंदु उपाध्याय, अभिषेक श्रीवास्तव, रणधीर सिंह सुमन, महिलाओं की पत्रिका 'खबर लहरिया' की संपादक सुश्री लक्ष्मी एवं इमरान थे।
कार्यक्रम प्रारम्भ करने से पूर्व बी डी शर्मा जी व कवि विद्रोही जी के निधन पर एक मिनट का मौन रख कर श्रद्धांजली भेंट की गई।
अयोध्या के सुखराम जी द्वारा असहिष्णुता का वर्णन करने के उपरांत मुख्य अतिथि अमलेंदु उपाध्याय जी ने कहा कि, 'असहिष्णुता' शब्द आज की परिस्थितियों में काफी हल्का शब्द है वस्तुतः परिस्थितियाँ कहीं काफी ज़्यादा भयावह व चिंतनीय हैं। हस्तक्षेप डाट काम के पाँच वर्ष पूर्ण होने पर उन्होने अपने लगभग डेढ़ सौ लेखक साथियों व पाठकों का आभार व्यक्त किया।आर्थिक झंझावातों के मध्य कारपोरेट घरानों के प्रिंट मीडिया व इलेक्ट्रानिक चेनलों के इस युग में पाँच वर्ष सफलतापूर्वक पूर्ण कर लेना कोई हंसी मज़ाक का खेल नहीं था वह भी तब जबकि असहिष्णु लोगों द्वारा अनर्गल गालियों तथा धमकियों का निरंतर सामना करना पड़ा हो। अमलेंदु जी ने बताया कि जब कोई व्यक्ति अपने तर्कों को तो रखे किन्तु विपक्षी के तर्कों को समुचित रूप से गलत सिद्ध न कर पाने की स्थिति में नीचता व गाली गलौज पर उतर आए तो उसे असहिष्णुता कहा जाएगा और आज का दौर ऐसा ही है। उन्होने स्पष्ट किया कि इसकी शुरुआत 2011 से ही हज़ारे आंदोलन के दौरान हुई थी जिसका भरपूर लाभ मोदी व उनके साथियों ने 2014 में उठाया। उन्होने यह भी कहा कि उनके कहने का आशय यह नहीं है कि हज़ारे व केजरीवाल असहिष्णु लोग थे बल्कि हो सकता है कि वे इसके पीछे की चाल को न समझ पाये हों एवं निहित स्वार्थी शक्तियों का शिकार बन गए हों। उस समय यह मुहावरा प्रचलित हो गया था कि जो हज़ारे व केजरीवाल के साथ नहीं हैं वे भ्रष्टाचार के समर्थक हैं जो अब आज इस तरह बदल गया है कि जो मोदी के साथ नहीं है वह देशद्रोही है।
अमलेंदु जी ने कहा कि, सोशल मीडिया का प्रयोग करने वाले के ऊपर है कि वह इसका दुरुपयोग करता है या सदुपयोग। उन्होने कहा कि यह एक माध्यम है साध्य नहीं। इलेक्ट्रानिक चेनल और प्रिंट मीडिया में तो गलती सुधारने के मौके प्रसारण -मुद्रण को रोकने से मिल भी जाते हैं किन्तु सोशल मीडिया में ऐसा अवसर नहीं मिलता है एक बार प्रकाशित कर दिया तो वह तुरंत दुनिया भर में प्रसारित हो गया। इसी बात का उदाहरण दिया 'जनपथ' के अभिषेक श्रीवास्तव साहब ने। उन्होने कहा कि परसों मुंबई की सामाजिक कार्यकर्ता सुश्री कामायनी बाली महाबल ने कामरेड बर्द्धन जी से संबन्धित एक पोस्ट अपनी साईट पर जल्दबाज़ी में दे दी जिसे तुरंत काफी लोगों ने लाईक कर दिया व कई और साईट्स पर भी शेयर हो गई। रात्रि 11 बजे उनके संग्यान में आने पर उन्होने इसमें सुधार करवाया। अभिषेक जी का ज़ोर था कि सोशल मीडिया पर अधिक सावधान रहने की आवश्यकता है।
असहिष्णुता के संबंध में अभिषेक जी का कहना था कि इसका प्रारम्भ वस्तुतः 2009 में तब ही हो गया था जब बेंगलुरु के एक हब में मुथालिक के अराजक तत्वों ने युवतियों के विरुद्ध अभद्र आचरण किया था। उन्होने यह भी कहा कि केवल सोशल मीडिया कोई परिवर्तन नहीं ला सकता जब तक कि इसे ज़मीन पर न उतारा जाये।
खबर लहरिया की लक्ष्मी जी ने अपने व्यक्तिगत अनुभवों का वर्णन करते हुये बताया कि महिलाओं के लिए विशेषकर दलित महिलाओं के लिए पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य करना बहुत विकट है। उन्होने अपनी साथिन पत्रकारों के कैमरे तोड़े जाने उनके साथ अभद्रता किए जाने का भी उल्लेख किया। प्रशासनिक अधिकारियों का व्यवहार भी असहयोगात्मक व असहिष्णु ही रहा है। तमाम विघ्न-बाधाओं के बावजूद उनकी टीम अपने अभियान में लगी है और लगी रहेगी ऐसा आश्वासन उन्होने दिया।
रणधीर सिंह सुमन ने अमलेंदु जी के साहस की प्रशंसा करते हुये कहा कि तमाम बाधाओं और चुनौतियों का मुक़ाबला करके आज वह इस मुकाम पर पहुंचे हैं जो वाकई बधाई की बात है। उनका मत था कि सोशल मीडिया पर सक्रिय रह कर हर गलत बात का जवाब दिया जाना चाहिए। उन्होने बताया कि फासिस्ट शक्तियों ने विकी पीडिया तक पर इतिहास बदल डाला है जब गूगल सर्च के सहारे जानकारी हासिल की जाएगी और वहाँ से गलत बात सामने आएगी तब इस संकट का मुक़ाबला करना एक बड़ी कठिन चुनौती है।
ताहिरा हसन जी , इमरान, पूर्व विधायक रामलाल जी, निरंजनदेव, अंकुर आदि ने भी अपने विचार रखे। नागपुर से पधारे युवा पर्वतारोही जिंनका एक पैर नकली बना हुआ है ने अपने मार्मिक सम्बोधन में बताया कि किस प्रकार आर एस एस /भाजपा के लोग दलितों को मोहरा बना कर उनका हितैषी होने का स्वांग भरते हैं जबकि उनके प्रति वस्तुतः घृणा भाव से ओत-प्रोत रहते हैं।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में वंदना जी ने सोशल मीडिया को मायावी बताते हुये इसके भ्रमजाल से बचने की सलाह दी। उनका मत था कि सोशल मीडिया का दुरुपयोग अधिक हो रहा है अगर कोई तस्वीर डालता है तो उसे हजारों लाईक्स मिल जाते हैं जबकि सकारात्मक और समाजोपयोगी पोस्ट्स को दो-चार लाईक्स भी मिल जाएँ तो गनीमत है। लेकिन फिर भी उनका कहना था कि हम सोशल मीडिया से अधिक से अधिक सकारात्मक लाभ उठा कर असहिष्णुता का वाजिब मुक़ाबला करें यह वक्त की मांग है।
~विजय राजबली माथुर ©
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