एक विद्वान के कथन को इस लेख ( प्रथम प्रकाशित Monday, July 18, 2011 ) का शीर्षक बनाने का उद्देश्य यह बताना है कि ,"Man is the product of his/her environment controlled by his/her Stars & Planets".
प्रस्तुत जन्मांग एक ऐसे व्यक्ति का है जो अपने जीवन के बारहवें वर्ष में गंभीर रूप से बीमार रहे तथा लगातार बयालीस दिनों तक बेहोश रहे और अंततः मौत को पछाड़ कर स्वस्थ हो गए.इनका मस्तिष्क तीव्र था और सदा कुशाग्र बुद्धि रहे.गणित सरीखे नीरस और उबाऊ विषय की जटिल से जटिल समस्याओं को यह पलक झपकते ही बिना कागज़ व कलम की सहायता के हल कर लिया करते थे.कितना अनोखा खेल खेला इनके जन्म कालीन ग्रहों व नक्षत्रों नें जैसा कि इनके जन्मांग से स्वतः स्पष्ट है.इनके जन्म के समय मंगल नीच राशि का होकर लग्न में स्थित था जो जातक को रोगी बना रहा है.साथ ही द्वादश भाव में लग्नेश चन्द्र की स्थिति तथा लग्न में द्वादशेश बुध की स्थिति भी जातक को रोग प्रदान कर रही है.परन्तु चन्द्र और बुध आपस में परिवर्तन योग भी बना रहे हैं.परिवर्तन योग चाहे जिन ग्रहों से बने शुभ होता है.बारवे वर्ष में जातक के मस्तिष्क पर व्यापक आघात पड़ा और वह लगातार बयालीस दिन तक बेहोशी की अवस्था में रहे.भाग्य स्थान में स्थित स्वग्रही गुरु की पूर्ण पंचम दृष्टि लग्न पर होने के कारण उनका जीवन अक्षुण रहाऔरवह स्वस्थ हो गए.
लग्न में बुध व शुक्र की उपस्थिति ने उनके मस्तिष्क को तीव्र मेधावी शक्ति प्रदान की और वह गणित विषय के कुशल मास्टर हो गए.गणित के सवालों को वह मौखिक ही हल कर देते थे.यदि वह अध्यापन के क्षेत्र में जाते तो सफल शिक्षक होते परन्तु वह सरकारी विभाग में अधिकारी बन गए और इस कारण अपनी विलक्षण क्षमता का स्वंय लाभ न उठा सके .गणित के विद्यार्थी उनके पास आ-आकर उनसे ज्ञानार्जन करते थे और वह निशुल्क उनकी समस्याओं का निदान करते थे.
बृहस्पति जो विद्या का ग्रह है अपनी पूर्ण नवम दृष्टि से इनके विद्या भाव को भी देख रहा है.यह भी इन्हें प्रतिभाशाली बनाने में सहायक रहा और इसी का परिणाम था कि इनके अपने सहपाठी भी इनसे गणित के सवाल हल करवाने में सहायता लेते थे ,उनमें से अधिकाँश उच्च पदों पर गए.कई आई.ए.एस.भी बने और एक तो बिहार के चीफ सेक्रेटरी के पद तक पहुंचे.इन पुरातन छात्रों ने इन जातक को अपनी एसोसियेशन का सेक्रेटरी बना कर सदैव मान दिया और यह मृत्यु पर्यंत (२४ मई २००० ई.) उस पद पर ससम्मान रहे.
कुछ लोग इनकी इस प्रतिभा और सरल व सहयोगी व्यवहार से जलते भी थे और उन्हें क्षति पहुंचाने का प्रयास भी करते थे परन्तु कोई भी उन्हे हानि पहुंचाने में कभी भी सफल न हो सका क्योंकि इनके शत्रु भाव में 'केतु'विराजमान था तथा उस पर 'राहू'की पूर्ण सप्तम दृष्टि पड़ रही थी .इन दो ग्रहों ने सम्पूर्ण जीवन में उन्हें शत्रुओं पर विजय भी प्रदान की.यद्यपि इन्होने कभी जाहिर तो नहीं किया परन्तु अपने गणित-ज्ञान के आधार पर यह ज्योतिष पर भी पकड़ रखते थे और लग्नस्थ 'शुक्र'इसमें सहायक था.आमतौर पर सिंह राशि के पुरुषों को पुरुष संतान नहीं होती परन्तु राजीव गांधी के सिंह राशि का होते हुए भी पुत्र-राहुल है जो एक अपवाद है और इस और यह हमेशा इंगित करते थे,जिसका ध्यान साधारण तौर पर लोग नहीं रख पाते हैं.
इस लेख के लेखक को उन्होंने 'ज्योतिष'को आजीविका का माध्यम बनाने का परामर्श दिया था जो कि उनके जीवन काल में पूर्ण नहीं किया जा सका .उनकी मृत्यु के उपरान्त छः माह के भीतर उसी वर्ष इस लेखक ने ज्योतिष को व्यवसाय के रूप में अपना लिया जो तब तक हाबी के रूप में चल रहा था.प्रारम्भ में उन्हीं की पुत्री के नाम पर जो कि लेखक की पत्नी हैं अपने प्रतिष्ठान का नाम 'पूनम ज्योतिष कार्यालय'रखा था और आगरा में कमलानगर के मकान से संचालित इस कार्यालय ने धनार्जन में तो सफलता प्राप्त नहीं की परन्तु ढोंग-पाखण्ड और ठगी पर सफल प्रहार करते हुए 'मानव जीवन को सुन्दर,सुखद व समृद्ध' बनाने का गंभीर प्रयास किया था. अब वही कार्य लखनऊ स्थित 'बली वास्तु एवं ज्योतिष कार्यालय'के माध्यम से किया जा रहा है.
यदि बाबूजी साहब ( स्व.बिलास पति सहाय ) स्वंय ज्योतिष को अपनाते तो अधिक सफल रहते क्योंकि गणित के सूत्रों को हल करना इनके लिए चुटकी बजाने का खेल था.उनकी प्रेरणा पर मैं ज्योतिष के क्षेत्र में कूद तो पड़ा हूँ परन्तु स्थापित ज्योतिष्यों की भांति क्लाइंट्स को दहशत में लाकर उन्हें उलटे उस्तरे से मूढ़ने का काम मैं नहीं करता हूँ इसलिए आर्थिक क्षेत्र में पिछडा हूँ,जबकि मान-सम्मान पर्याप्त प्राप्त हुआ है. मैं समस्याओं का समाधान वैज्ञानिक -वैदिक आधार पर करता हूँ और इसी कारण जन्मकालीन ब्राह्मण वर्ग के प्रो.डा.वी.के.तिवारी,प्रिसिपल एम्.एल.दिवेदी,पं.सुरेश पालीवाल,डा.बी.एम्.उपाध्याय ,इंज.एस.एस.शर्मा आदि ने अपने घरों पर वास्तु हवन एवं ग्रहों की शांति आगरा में मुझसे करवाई है.कायस्थ सभा,आगरा और अखिल भारतीय कायस्थ सभा ,आगरा के अध्यक्षों समेत अनेकों कायस्थ परिवारों ने मुझ से ज्योतिषीय परामर्श लिए हैं.पहले अखबारों के माध्यम से और अब ब्लॉग के माध्यम से मैं लगातार ढोंग-पाखंड पर प्रहार कर रहा हूँ और पूर्ण विशवास रखता हूँ कि एक न एक दिन सफलता मुझे अवश्य मिलेगी क्योंकि 'इन महान आत्मा' का आशीर्वाद मुझे प्राप्त है.
प्रस्तुत जन्मांग एक ऐसे व्यक्ति का है जो अपने जीवन के बारहवें वर्ष में गंभीर रूप से बीमार रहे तथा लगातार बयालीस दिनों तक बेहोश रहे और अंततः मौत को पछाड़ कर स्वस्थ हो गए.इनका मस्तिष्क तीव्र था और सदा कुशाग्र बुद्धि रहे.गणित सरीखे नीरस और उबाऊ विषय की जटिल से जटिल समस्याओं को यह पलक झपकते ही बिना कागज़ व कलम की सहायता के हल कर लिया करते थे.कितना अनोखा खेल खेला इनके जन्म कालीन ग्रहों व नक्षत्रों नें जैसा कि इनके जन्मांग से स्वतः स्पष्ट है.इनके जन्म के समय मंगल नीच राशि का होकर लग्न में स्थित था जो जातक को रोगी बना रहा है.साथ ही द्वादश भाव में लग्नेश चन्द्र की स्थिति तथा लग्न में द्वादशेश बुध की स्थिति भी जातक को रोग प्रदान कर रही है.परन्तु चन्द्र और बुध आपस में परिवर्तन योग भी बना रहे हैं.परिवर्तन योग चाहे जिन ग्रहों से बने शुभ होता है.बारवे वर्ष में जातक के मस्तिष्क पर व्यापक आघात पड़ा और वह लगातार बयालीस दिन तक बेहोशी की अवस्था में रहे.भाग्य स्थान में स्थित स्वग्रही गुरु की पूर्ण पंचम दृष्टि लग्न पर होने के कारण उनका जीवन अक्षुण रहाऔरवह स्वस्थ हो गए.
लग्न में बुध व शुक्र की उपस्थिति ने उनके मस्तिष्क को तीव्र मेधावी शक्ति प्रदान की और वह गणित विषय के कुशल मास्टर हो गए.गणित के सवालों को वह मौखिक ही हल कर देते थे.यदि वह अध्यापन के क्षेत्र में जाते तो सफल शिक्षक होते परन्तु वह सरकारी विभाग में अधिकारी बन गए और इस कारण अपनी विलक्षण क्षमता का स्वंय लाभ न उठा सके .गणित के विद्यार्थी उनके पास आ-आकर उनसे ज्ञानार्जन करते थे और वह निशुल्क उनकी समस्याओं का निदान करते थे.
बृहस्पति जो विद्या का ग्रह है अपनी पूर्ण नवम दृष्टि से इनके विद्या भाव को भी देख रहा है.यह भी इन्हें प्रतिभाशाली बनाने में सहायक रहा और इसी का परिणाम था कि इनके अपने सहपाठी भी इनसे गणित के सवाल हल करवाने में सहायता लेते थे ,उनमें से अधिकाँश उच्च पदों पर गए.कई आई.ए.एस.भी बने और एक तो बिहार के चीफ सेक्रेटरी के पद तक पहुंचे.इन पुरातन छात्रों ने इन जातक को अपनी एसोसियेशन का सेक्रेटरी बना कर सदैव मान दिया और यह मृत्यु पर्यंत (२४ मई २००० ई.) उस पद पर ससम्मान रहे.
कुछ लोग इनकी इस प्रतिभा और सरल व सहयोगी व्यवहार से जलते भी थे और उन्हें क्षति पहुंचाने का प्रयास भी करते थे परन्तु कोई भी उन्हे हानि पहुंचाने में कभी भी सफल न हो सका क्योंकि इनके शत्रु भाव में 'केतु'विराजमान था तथा उस पर 'राहू'की पूर्ण सप्तम दृष्टि पड़ रही थी .इन दो ग्रहों ने सम्पूर्ण जीवन में उन्हें शत्रुओं पर विजय भी प्रदान की.यद्यपि इन्होने कभी जाहिर तो नहीं किया परन्तु अपने गणित-ज्ञान के आधार पर यह ज्योतिष पर भी पकड़ रखते थे और लग्नस्थ 'शुक्र'इसमें सहायक था.आमतौर पर सिंह राशि के पुरुषों को पुरुष संतान नहीं होती परन्तु राजीव गांधी के सिंह राशि का होते हुए भी पुत्र-राहुल है जो एक अपवाद है और इस और यह हमेशा इंगित करते थे,जिसका ध्यान साधारण तौर पर लोग नहीं रख पाते हैं.
इस लेख के लेखक को उन्होंने 'ज्योतिष'को आजीविका का माध्यम बनाने का परामर्श दिया था जो कि उनके जीवन काल में पूर्ण नहीं किया जा सका .उनकी मृत्यु के उपरान्त छः माह के भीतर उसी वर्ष इस लेखक ने ज्योतिष को व्यवसाय के रूप में अपना लिया जो तब तक हाबी के रूप में चल रहा था.प्रारम्भ में उन्हीं की पुत्री के नाम पर जो कि लेखक की पत्नी हैं अपने प्रतिष्ठान का नाम 'पूनम ज्योतिष कार्यालय'रखा था और आगरा में कमलानगर के मकान से संचालित इस कार्यालय ने धनार्जन में तो सफलता प्राप्त नहीं की परन्तु ढोंग-पाखण्ड और ठगी पर सफल प्रहार करते हुए 'मानव जीवन को सुन्दर,सुखद व समृद्ध' बनाने का गंभीर प्रयास किया था. अब वही कार्य लखनऊ स्थित 'बली वास्तु एवं ज्योतिष कार्यालय'के माध्यम से किया जा रहा है.
यदि बाबूजी साहब ( स्व.बिलास पति सहाय ) स्वंय ज्योतिष को अपनाते तो अधिक सफल रहते क्योंकि गणित के सूत्रों को हल करना इनके लिए चुटकी बजाने का खेल था.उनकी प्रेरणा पर मैं ज्योतिष के क्षेत्र में कूद तो पड़ा हूँ परन्तु स्थापित ज्योतिष्यों की भांति क्लाइंट्स को दहशत में लाकर उन्हें उलटे उस्तरे से मूढ़ने का काम मैं नहीं करता हूँ इसलिए आर्थिक क्षेत्र में पिछडा हूँ,जबकि मान-सम्मान पर्याप्त प्राप्त हुआ है. मैं समस्याओं का समाधान वैज्ञानिक -वैदिक आधार पर करता हूँ और इसी कारण जन्मकालीन ब्राह्मण वर्ग के प्रो.डा.वी.के.तिवारी,प्रिसिपल एम्.एल.दिवेदी,पं.सुरेश पालीवाल,डा.बी.एम्.उपाध्याय ,इंज.एस.एस.शर्मा आदि ने अपने घरों पर वास्तु हवन एवं ग्रहों की शांति आगरा में मुझसे करवाई है.कायस्थ सभा,आगरा और अखिल भारतीय कायस्थ सभा ,आगरा के अध्यक्षों समेत अनेकों कायस्थ परिवारों ने मुझ से ज्योतिषीय परामर्श लिए हैं.पहले अखबारों के माध्यम से और अब ब्लॉग के माध्यम से मैं लगातार ढोंग-पाखंड पर प्रहार कर रहा हूँ और पूर्ण विशवास रखता हूँ कि एक न एक दिन सफलता मुझे अवश्य मिलेगी क्योंकि 'इन महान आत्मा' का आशीर्वाद मुझे प्राप्त है.
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फेसबुक पर प्राप्त टिप्पणियाँ ;
6 comments:
इसी बेहोशी ने तो उस्ताद नहीं बना दिया उन्हें.
namaste sir,
poore lekh ka saar hai uska shirshak. bahut hi umda post. aur vese bhi koi bhi kaam agar nek dil aur imandari se kiya jaye to aaj nahi to kal safalta zaroor milati hai, aur ye maine aapse hi sikha hai. tabhi to aaj mujhame fir josh hai, aur haan out of city hone ke karan thoda der se keh paa rahi hoon," happy guru poornima".
दिलचस्प जानकारी...
श्री विजय राज बलि जी के इस लेख को पढ़ा ,उनके बाबूजी के बारे में और उनके विचारों को जाना.
एक नेक मकसद से उन्होंने इस क्षेत्र में प्रवेश किया है उन्हें शुभकामनाएँ.
****बहुत ही बातें आज भी एक आम इंसान के लिए अबूझ पहेली सी ही हैं उनमें ज्योतिष शास्त्र भी है.
कैरियर हेतु समय पर सही मार्गदर्शन मिल जाए तो व्यक्ति जीवन में बहुत तरक्की कर सकता है इसीलिये शायद दुविधा में पड़े लोग अच्छे ज्योतिष से परामर्श लेते हैं.
बेशक ग्रहों का प्रभाव तो व्यक्ति पर पड़ता ही है लेकिन कर्मों का योगदान भी मनुष्य के भाग्य निर्माण में उतना ही महत्वपूर्ण है.
ग्रहों का खेल ही ऐसा होता है...
बढ़िया जानकारी....
नमस्कार ! विजय जी. आप का सार्थक आलेख पढ़ा..सच में ग्रहॊं की दशा बलवान तो होती ही है पर कर्म का भी अपना महत्व है..सच्चे मन से किया कोई भी काम हो उसमें निश्चय ही सफलता मिलती है ..फिर महान आत्माओ का आशीर्वाद कभी बेकार नही जाता ...शुभकामनाएँ
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