Tuesday, February 25, 2020

सरकार आंदोलन को नहीं दबा सकती : असहमति देशद्रोह नहीं ------ जज दीपक गुप्ता

  



बार असोसिएशन के कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट के जज दीपक गुप्ता बोले-
असहमति देशद्रोह नहीं, सरकार आंदोलन को नहीं दबा सकती

अगर किसी पार्टी को 51 फीसदी वोट मिलता है तो इसका मतलब यह नहीं है कि बाकी 49 फीसदी लोग पांच साल तक कुछ नहीं कहेंगे। -जस्टिस दीपक गुप्ता
बेखौफ न्यायपालिका के बिना कानून का शासन नहीं हो सकता। लोकतंत्र में असहमति की आजादी होनी चाहिए। आपसी बातचीत से हम बेहतरीन देश बना सकते हैं। हाल के दिनों में विरोध करने वाले लोगों को देशद्रोही बता दिया गया। उन्होंने कहा, अगर किसी पार्टी को 51 फीसदी वोट मिलता है तो इसका मतलब यह नहीं है कि बाकी 49 फीसदी लोग पांच साल तक कुछ नहीं कहेंगे। लोकतंत्र 100 फीसदी लोगों के लिए होता है। सरकार सबके लिए है। इसलिए हर किसी को लोकतंत्र में अपनी भूमिका का अधिकार है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के ही जस्टिस डी. वाई चंद्रचूड़ ने हाल ही में ऐसी ही बातों को लेकर लोगों को सतर्क किया था।• एनबीटी, नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस दीपक गुप्ता का कहना है कि जब तक कोई प्रदर्शन हिंसात्मक नहीं हो जाता, तब तक सरकार को उसे रोकने का अधिकार नहीं है। ...सरकार (सरकारें) हमेशा सही नहीं होतीं।...बहुसंख्यकवाद लोकतंत्र के खिलाफ है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक जस्टिस दीपक गुप्ता ने सुप्रीम कोर्ट बार असोसिएशन के एक कार्यक्रम में कहा, ...अफसोस की बात है कि आज देश में असहमति को देशद्रोह समझा जा रहा है। असहमति की आवाज को देश विरोधी या लोकतंत्र विरोधी करार देना संवैधानिक मूल्यों पर चोट है। अगर आप अलग राय रखते है तो इसका मतलब यह नहीं कि आप देशद्रोही हैं या राष्ट्र के प्रति सम्मान का भाव नहीं रखते। सरकार और देश दोनों अलग है। सरकार का विरोध करना आपको देश के खिलाफ खड़ा नहीं करता। 

जस्टिस गुप्ता ने देश के मौजूदा हालात पर चिंता जताते हुए कहा कि हम देखते हैं कि कई बार वकील किसी का केस लेने से मना कर देते हैं कि क्लाइंट या आरोपी देशद्रोही है। बार असोसिएशन इस पर अपना प्रस्ताव भी पास करते हैं। यह गलत है। आप कानूनी मदद देने से मना नहीं कर सकते। आवाज को दबाने की कोशिश करेंगे तो ये अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला होगा।

'हर संस्थान आलोचना के दायरे में ' :


जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा कि हर संस्थान आलोचना के दायरे में है। चाहे वो अदालतें हों, सेना या सुरक्षा बल हों। असहमति के अधिकार में ही आलोचना का अधिकार भी निहित है। लोगों को एक जगह जमा होकर शांतिपूर्ण विरोध करने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि एक आजाद और

http://epaper.navbharattimes.com/details/96166-80649-2.html


~विजय राजबली माथुर ©

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