१५ अगस्त,१९४७ को प्राप्त राजनीतिक आज़ादी और ३० जन.१९४८ को गाँधी जी की हत्या को सांप्रदायिक देन बताया जाता है. परन्तु भारत से बर्मा को १९३५ में अलग किये जाने के बाद नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के वक्तव्य की मीमांसा की जाये तो स्पष्ट हो जायेगा की भारत-विभाजन और गाँधी जी की हत्या दोनों ही साम्राज्यवादी साजिश के परिणामस्वरूप घटित घटनाएँ हैं.नेता जी सुभाष ने स्पष्ट कहा था कि जिस प्रकार आयेरलैंड से अलस्टर को अलग किया गया था उसी प्रकार बर्मा को भारत से अलग किया गया है और यह आने वाले समय में देश का खंडन किये जाने का संकेत है.खेद की बात है कि क्योंकि स्वयं गाँधी जी ही नेता जी के विरोधी थे;इसलिए नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की बात को गंभीरता से नहीं लिया गया. नेता जी बोस की बात को समझने के लिए इतिहास को पलट कर देखने की आवश्यकता है. १८५७ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में मराठों ने मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फर के नेतृत्व में अंग्रेजों के छक्के छुडाये थे. रानी विक्टोरिया के अधीन शासन सँभालने के बाद पहले पहल ब्रिटिश साम्राज्यवादियों ने अपनी नीव मज़बूत करने हेतु भारत में मुस्लिमों का दमन किया और वे आर्थिक-शैक्षिक क्षेत्र में पीछे हो गए.लेकिन आज़ादी के आन्दोलनों में मुस्लिम बढ़ चढ़ कर भाग लेते रहे.१९०५ में धार्मिक आधार पर बंगाल का विभाजन कर मुस्लिमों को अलग करने की चाल चली गयी.बंग-भंग को रद्द करने हेतु जार्ज पंचम को भारत आना पड़ा. शातिर दिमाग साम्राज्यवादियों ने १९२० में ढाका के नवाब को मोहरा बना कर मुस्लिम लीग की स्थापना करायी.साम्राज्यवादी शासकों की प्रेरणा से ही १९२५ में हिन्दू महासभा तथा आर एस.एस. का गठन किया गया और खुलकर धार्मिक वैमनस्य का खेल खेला गया .भारत का राष्ट्रीय आन्दोलन भी इसी साजिश का शिकार हुआ और १९४० में पहली बार पाकिस्तान के निर्माण की बात सामने आई.दूसरे विश्व युद्ध के दौरान नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ने आई.अन.ऐ.के माध्यम से ब्रिटिश सरकार से सेन्य संघर्ष किया जिस के परिणाम स्वरुप वायु सेना व नौ सेना में भी विदेशी सरकार के प्रति छुट-पुट बगावत हुई.अतः घबरा कर ब्रिटिश साम्राज्यवादियों ने भारत का विखंडन कर पाकिस्तान व भारत दो स्वतंत्र देशों का निर्माण कर दिया.पाकिस्तान में तो साम्राज्यवादी अपने पसंद की सरकारें गठित करने में कामयाब हो जाते हैं,परन्तु भारत में साम्राज्यवादी पूरे कामयाब नहीं हो पाते हैं.गाँधी जी की हत्या पाकिस्तान को अनुदान दिए जाने की गाँधी जी की सिफारिश के विरोध में की गयी-ऐसा हत्यारे ने अपने मुक़दमे के दौरान कहा.आशय साफ था देश में पुनः सांप्रदायिक तनाव पैदा कर विकास को अवरुद्ध किया जाना. तमाम साम्राज्यवादी सांप्रदायिक साजिशों के भारत आज प्रगति पथ पर अग्रसर तो है,परन्तु इसका लाभ समान रूप से सभी देश वासियों को प्राप्त नहीं है.सामाजिक रूप से इंडिया और भारत में अंतर्द्वंद चल रहा है और यह साम्राज्यवादियों की साजिश का ही हिस्सा है.आज आवश्यकता है भारत-विभाजन और गाँधी जी की हत्या को साम्राज्यवादियों की साजिश का परिणाम स्वीकार कर लेने की तथा देश के आर्थिक विकास में उत्पन्न असमानता को दूर करने की ,वर्ना साम्राज्यवादी शक्तियां भारत को अन्दर से खोखला करने हेतु विद्द्वेश के बीज बोती रहेंगी और नफरत के शोले भड़कते रहेंगे और इस प्रकार का विकास बेमानी ही रहेगा.जिसका लाभ देश की अधिकांश जनता को नहीं,कुछ मुट्ठी भर लोगों को ही मिलता रहेगा.जनतंत्र में देश के विकास का लाभ जनता को दिलाना है तो साम्राज्यवादी साजिशों को विफल करना ही होगा .इसके लिए आज की पीढ़ी और नौजवानों को जागरूक करना ही होगा.
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(इस ब्लॉग पर प्रस्तुत आलेख लोगों की सहमति -असहमति पर निर्भर नहीं हैं -यहाँ ढोंग -पाखण्ड का प्रबल विरोध और उनका यथा शीघ्र उन्मूलन करने की अपेक्षा की जाती है)
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फेसबुक में प्राप्त टिप्पणी :30 जनवरी 2015
के ग्रुप CPI BEGUSARAI |
9 comments:
माथुर साहब , चूँकि आज एक खास दिवस था, इसे उपलक्ष में मैंने अपने दफ्तर के एक युव MBA से लंच पर यही मुद्दा उठाया था उनका कहना था " Subhash Chandra Bose could have made our country independent quite before 1947 but it is all because of Gandhi we had to wait for 1947 and that too it came along with a bloody partition corollary to it."
सुनकर मैं बस यही सोचता रह गया कि Is this the reason today’s youths in India don’t appreciate Gandhi much ??
हे राम !
युवा पीढी आज हमें इसको भी पढने के लिए दबाब डालती है ;
http://smileosmile.com/celebrities/why-i-killed-gandhi-nathuram-godses-final-address-to-the-court
@ तमाम साम्राज्यवादी सांप्रदायिक साजिशों के बावज़ूद भारत आज प्रगति पथ पर अग्रसर तो है,परन्तु इसका लाभ समान रूप से सभी देश वासियों को प्राप्त नहीं है.सामाजिक रूप से इंडिया और भारत में अंतर्द्वंद चल रहा है और यह साम्राज्यवादियों की साजिश का ही हिस्सा है.
आपसे सहमत हूं। एक अच्छा विश्लेषण।
इण्डिया और भारत के फर्क को पाटने में युवाओं की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है..... नौजवानों को संबोधित बेहतरीन आलेख
सामयिक जानकारीपरक पोस्ट.आपकी बातों में दम है
साम्राज्यवादी ताकतों का इरादा कभी नेक हो ही नहीं सकता। हमें इनकी कुचालों से सावधान रहना होगा।
इस तथ्यपरक और गंभीर विश्लेणात्मक लेख के लिए धन्यवाद ।
राष्ट्रपिता की पुण्य तिथि पर बापू को हमारा नमन!
मेरी नई पोस्ट "बापू को श्रद्धाञ्ञलि"पर आपका स्वागत है!
बहुत ही सटीक विश्लेषण है माथुर साहब!!धन्यवाद!
यदि गांधी को सर्वप्रथम महात्मा का सम्बोधन देने वाले नेताजी सुभाष बोस की बातें स्वीकृत हो जाती तो आज देश का इतिहास और गौरव कुछ और ही होता....महात्मा गांधी को मारने की नाथूराम गोडसे जैसा व्यक्ति कभी सपने में भी नहीं सोच सकता था, साफ़ है कि घोड़े को चाबुक मारकर दौड़ाया गया होगा....क्या सच क्या झूठ कम से कम मैं नहीं जानता परन्तु इतना तो सहज ही समझ में आता है कि कोई गहरी-साजिश हुई थी, कुछ भी हो एक कमजोर कृशकाय बूढ़े को यूँ नृशंसतापूर्वक मारे जाने की हिमायत मैं कभी नहीं कर सकता....!!
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