फ़ौज में कभी-कभी परेड को आदेश मिलता है कि,पीछे मुड और सारी परेड आगे चलते-चलते एकदम से पीछे लौट चलती है.पी.एस.डी.एवं एन.सी.सी.की ट्रेनिंग क़े दौरान हवलदार सा :क़े आदेश पर हम लोगों ने भी ऐसा किया है. आज अपने पुराने कागजात पलटते -पलटते १९६९ -७० क़े दौरान लिखी अपनी यह लघु तुक-बन्दी जिसे २६ .१० १९७१ को हिन्दी टाईप सीखते समय टाईप किया था नज़र आ गई ,प्रस्तुत है-
(इस ब्लॉग पर प्रस्तुत आलेख लोगों की सहमति -असहमति पर निर्भर नहीं हैं -यहाँ ढोंग -पाखण्ड का प्रबल विरोध और उनका यथा शीघ्र उन्मूलन करने की अपेक्षा की जाती है)
जो ये भीष्म प्रतिज्ञा न करते देवव्रत ,
तो यह महाभारत क्यों होता?
होते न जन्मांध धृतराष्ट्र ,
तो यह महाभारत क्यों होता?
इन्द्रप्रस्थ क़े राजभवन से होता न तिरस्कार कुरुराज का,
तो यह महाभारत क्यों होता?
ध्रूत-भवन में होता न चीर -हरण द्रौपदी का,
तो यह महाभारत क्यों होता?
होता न यदि यह महाभारत,
तो यह भारत,गारत क्यों होता?
होता न यदि यह महाभारत,
तो यह गीता का उपदेश क्यों होता?
होता न यदि यह गीता का उपदेश,
तो इन वीरों का क्या होता?
मिलती न यदि वीर गति इन वीरों को,
तो इस संसार में हमें गर्व क्यों होता?
* * *
(इस ब्लॉग पर प्रस्तुत आलेख लोगों की सहमति -असहमति पर निर्भर नहीं हैं -यहाँ ढोंग -पाखण्ड का प्रबल विरोध और उनका यथा शीघ्र उन्मूलन करने की अपेक्षा की जाती है)
5 comments:
बढ़िया प्रस्तुति , इसलिए हर घटना एक नै घटना की कड़ी है !
होता न यदि यह महाभारत,
तो यह गीता का उपदेश क्यों होता?
यह बात तो सही है ।
वैसे महाभारत को आज भी नकारात्मक रूप में ही लिया जाता है ।
यह विधाता का लिखा महानाट्य था.. इसकी पटकथा बिल्कुल वैसी ही हिती है जैसी उसने लिख रखी है.. बस वही होना था, वही हुआ!!
होते न जन्मांध धृतराष्ट्र ,
तो यह महाभारत क्यों होता?
महाभारत घटित होने के लिए शायद एक धृतराष्ट्र का होना आवश्यक है। लगता है यह बात हर युग में लागू होती है।
कविता का ओजस्वी स्वर स्पष्ट परिलक्षित हो रहा है।
हर पंक्ति को कड़ी की तरह पिरोया है आपने बहुत सुंदर
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