Tuesday, April 17, 2012

यह ईमानदारी है क्या बला ?



कमल हासन  जी के सजीव अभिनय का यह वीडियो उनके 'कर्म'के प्रति समर्पण का ज्वलंत प्रतीक है। नीचे प्रस्तुत उनके विचार स्तुत्य एवं अनुकरणीय हैं। स्कैन को डबल क्लिक करके सुगमता पूर्वक पढ़ा जा सकता है। -




बड़ी ही ईमानदारी और बेबाकी के साथ कमल हासन जी ने अपने विचारों को छात्रों के सामने रखा है। उनका यह कहना की विद्यालयी शिक्षा के बाद ही असल शिक्षा प्रारम्भ होती है मेरी निगाह मे सोलह आने सच है। उन्होने यह भी बिलकुल सच कहा है कि,"ईमानदारी मंहगा शौक" है। कम से कम मै तो खुद ही भुक्त भोगी हूँ उनकी बात मुझ पर भी लागू होती है।

1973 मे सरु स्मेल्टिंग ,मेरठ मे व्यक्तिगत स्तर पर अपनी नौकरी बचा लेने के बाद 'सारू मजदूर संघ'ने मुझे पिछली तारीख से सदस्यता देकर कार्यकारिणी मे शामिल कर लिया था। अध्यक्ष महोदय अंदर-अंदर मेनेजमेंट से मिले हुये थे यह आभास होते ही मैंने कार्यकारिणी से स्तीफ़ा दे दिया। मेनेजमेंट से मिल कर यूनियन नेताओ ने पहले सस्पेंड फिर बर्खास्त करा दिया। यह ईमानदारी की सजा थी।

1984 मे 'होटल मुगल कर्मचारी संघ' के अध्यक्ष ने मेनेजमेंट से मिल कर पहले सस्पेंड फिर 1985 मे बर्खास्त करा दिया। मै इस यूनियन का संस्थापक महामंत्री था और मुझे  यहाँ भी पिछली तारीख से सदस्यता देकर यूनियन गठन के दौरान यह पद सौंपा गया था । अपने कार्यकाल मे लोअर केडर को सर्वाधिक लाभ दिलवाया था अतः मेनेजमेंट के साथ-साथ अपर केडर स्टाफ की आँखों की भी किरकिरी था। यह ईमानदारी की दूसरी सजा थी।

1994 मे जब मै व्यक्तिगत परेशानियों मे उलझा था तब यूनियन नेता और केस के पैरोकार ने मेनेजमेंट से मिल कर अनुपस्थित रह कर एक्स पार्टी निर्णय मेरे ही विरुद्ध करा दिया। यह ईमानदारी की तीसरी सजा थी। 

एक बार तो ईमानदारी के परिणामों पर चर्चा करते हुये मैंने अपने पिताजी से पूछा था कि आपने बचपन से ही ईमानदारी सिखाई ही क्यों थी? उन्होने कहा जैसे अजय और शोभा को भी तो बचपन से ईमानदारी सिखाने के बावजूद उन्होने इसे छोड़ दिया,तुम भी छोड़ दो!लेकिन मेरे लिए अपने छोटे बहन-भाई का अनुसरण करना संभव नहीं था और न मैंने किया ही। नतीजा यह है कि माता-पिता के निधन के बाद भाई ने मेरा ही साथ छोड़ दिया और बहन-बहनोई ऊपर से मिल कर पिछले वर्ष तक भीतरघात करते रहे और अब मैंने खुद ही उनसे संपर्क तोड़ दिया।

न तो अकाउंट्स का जाब करते वक्त मैंने बेईमानी का सहारा लिया जैसे कि अनेकों अकाउंटेंट  करके बाद मे खुद सेठ बन गए। न ही अपने 'ज्योतिष' के प्रोफेशन मे मैंने छल और तिकड़म को अंगीकार किया जैसा कि तमाम दूसरे लोग कर रहे हैं। यदि बेईमानी करता तो आगरा मे ही दूसरा 'ताज महल' बना सकता था और मकान बेच कर लखनऊ न आता।

राजनीति मे भी पहले भाकपा ,बाद मे  सपा और फिर भाकपा मे रहते हुये जितना ईमानदारी से हो सकता है उतना ही सक्रिय रहता हूँ लेकिन औरों की तरह बेईमानी करके धन कमाने या ऊपर उठने का कोई प्रयास मै नहीं कर सकता। इसी वजह से मुझे 'मूर्ख' समझा जाता है। फिर भी पहले भाकपा -आगरा मे छोडते वक्त जिला  कोषाध्यक्ष था ,यह पद मुझे जबर्दस्ती सौंपा गया था। सपा मे भी पहले पूर्वी विधानसभा क्षेत्र,आगरा का महामंत्री फिर नगर कार्यकारिणी मे शामिल किया गया था। जहां दूसरे लोग पद खरीदते सुने गए मैंने खुद ही पद छोड़े जबकि सौंपे मुझे जबर्दस्ती गए थे। भाकपा मे वापिस आने के बाद 2008 मे मुझे द्वितीय सहायक जिला मंत्री पद सौंपा गया था किन्तु मैंने एक माह मे ही छोड़ दिया। लखनऊ मे भी जिला काउंसिल मे मुझे शामिल कर लिया गया है।

गैर जिम्मेदार लोग राजनीति और राजनीतिज्ञों को कोसते रहते हैं मै शौकिया राजनीति मे शामिल हूँ और पूरी ईमानदारी से डटा हुआ हूँ मुझे किसी प्रकार की समस्या नहीं है। ढोंग-पाखंड के विरुद्ध तथ्यामक विश्लेषण देकर ब्लागर्स बंधुओं का अवश्य ही कोपभाजन बना हुआ हूँ। जैसे कि,भ्रष्ट सरकारी उच्चाधिकारी जब लिखते हैं-'अन्ना के पीछे नहीं भागें तो किसके पीछे भागें'-तब मै DIR मे उनकी गिरफ्तारी की जोरदार मांग करता हूँ। सबूत एकत्र कर अन्ना/रामदेव को जन-विरोधी बताकर उनके बहिष्कार का आव्हान करता हूँ।

मेरे व्यक्तिगत अनुभव मे भी यह बात है कि समाज मे ईमानदारी पर चलने के कारण शत्रु अनेक हैं और मित्र कोई नहीं। अतः कमल हासन जी का यह कहना कि,'ईमानदारी मंहगा शौक,ट्राई करें' मुझे सटीक लगता है। काफी नुकसान उठा कर भी मै इस शौक को पाले हुये हूँ और पाले रहूँगा। 

1 comment:

विभा रानी श्रीवास्तव said...

ईमानदारी मंहगा शौक,ट्राई करें'
आप से उम्र में छोटी , अनुभव में कम होते हुए भी आपसे पूर्णतया सहमत हूँ .... !
*ईमानदारी* एक नशा है ,तो मंहगा होगा ही .... !!