बृहस्पतिवार, 14 अक्तूबर 2010
उठो जागो और महान बनो
ऐसा नहीं है कि यह सब आज हो रहा है.गोस्वामी तुलसीदास ,कबीर ,रैदास ,नानक ,स्वामी दयानंद ,स्वामी विवेकानंद जैसे महान विचारकों को अपने -२ समय में भारी विरोध का सामना करना पड़ा था .१३ अप्रैल २००८ के हिंदुस्तान ,आगरा के अंक में नवरात्र की देवियों के सम्बन्ध में किशोर चंद चौबे साहब का शोधपरक लेख प्रकाशित हुआ था ,आपकी सुविधा के लिए उसकी स्केन प्रस्तुत कर रहे हैं :
बड़े सरल शब्दों में चौबेजी ने समझाया है कि ये नौ देवियाँ वस्तुतः नौ औषधियां हैं जिनके प्राकृतिक संरक्षण तथा चिकित्सकीय प्रयोग हेतु ये नौ दिन निर्धारित किये गए हैं जो सूर्य के उत्तरायण और दक्षिणायन रहते दो बार सार्वजानिक रूप से पर्व या उत्सव के रूप में मनाये जाते हैं लेकिन हम देखते हैं कि ये पर्व अपनी उपादेयता खो चुके हैं क्योकि इन्हें मनाने के तौर -तरीके आज बिगड़ चुके हैं .दान ,गान ,शो ,दिखावा ,तड़क -भड़क ,कान -फोडू रात्रि जागरण यही सब हो रहा है जो नवरात्र पर्व के मूल उद्देश्य से हट कर है .पिछले एक पोस्ट में मधु गर्ग जी के आह्वान का उल्लेख किया था जिस पर तालिबान स्टाइल युवा चेहरे की ओर से असहमति प्रकट की गयी है
'क्रन्तिस्वर' में प्रस्तुत आलेख लोगों की सहमति -असहमति पर निर्भर नहीं हैं -यहाँ ढोंग -पाखण्ड का प्रबल विरोध और उनका यथा शीघ्र उन्मूलन करने की अपेक्षा की जाती है .डा .राम मनोहर लोहिया स्त्री -स्वातंत्र्य के प्रबल पक्षधर थे ,राजा राम मोहन राय ने अंग्रेजों पर दबाव डाल कर विधवा -पुनर्विवाह का कानून बनवाया था .स्वामी दयानंद ने कोई १३५ वर्ष पूर्व मातृ - शक्ति को ऊपर उठाने का अभियान चलाया था :-
झूठी रस्मों को जिस दिन नीलाम कराया जायेगा .....वीर शहीदों के जिस दिन कुर्बानी की पूजा होगी ......
मथुरा के आर्य भजनोपदेशक विजय सिंह जी के ओजपूर्ण बोलों का अवलोकन करें ---
हमें उन वीर माओं की कहानी याद आती है .
मरी जो धर्म की खातिर कहानी याद आती है ..
बरस चौदह रही वन में पति के संग सीताजी .
पतिव्रत धर्म मर्यादा निभानी याद आती है ..
कहा सरदार ने रानी निशानी चाहिए मुझको .
दिया सिर काट रानी ने निशानी याद आती है ..
हजारों जल गयीं चित्तोड़ में व्रत धर्म का लेकर .
चिता पद्मावती तेरी सजानी याद आती है ..
कमर में बांध कर बेटा लड़ी अंग्रेजों से डट कर .
हमें वह शेरनी झाँसी की रानी याद आती है ..
आज के 'हिंदुस्तान' में टी .वी .पत्रकार विजय विद्रोही जी ने "आँगन से निकलीं मार लिया मैदान" शीर्षक से लेख की शुरुआत इस प्रकार की है --"दिल्ली में कामन वेल्थ खेलों का प्रतीक शेरा था ,लेकिन ये खेल उन शेरनियों के लिए याद किये जायेंगे जिन्होंने मेडल पर मेडल जीते".उन्होंने इस क्रम में नासिक की कविता ,हैदराबाद की पुशूषा मलायीकल ,रांची की दीपिका ,राजस्थान में ब्याही हिसार की कृष्णा पूनिया ,हरवंत कौर ,सीमा अंतिल ,भिवानी की गीता ,बबीता और अनीता बहनों का विशेष नामोल्लेख किया है जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों से संघर्ष करके देश का नाम रोशन किया है .
इन नवरात्रों में नारी -शक्ति के लिए सड़ी -गली गलत (अवैज्ञानिक )मान्यताओं को ठुकरा कर वैज्ञानिक रूप से मनाने हेतु विद्वानों के विचार संकलित कर प्रस्तुत किये हैं .लाभ उठाना अथवा वंचित रहना पूरी तरह मातृ-शक्ति पर निर्भर करता है .
5 टिप्पणियां:
- महेन्द्र मिश्र14 अक्तूबर 2010 3:43 pmबहुत सुन्दर सारगर्वित प्रस्तुति....आभार
- .
सुन्दर प्रस्तुति....आभार !!!
- बेहद सुन्दर गौरवशाली परंपरा को अभिव्यक्त करता अति सुन्दर आलेख ..सादर !!
इस पोस्ट पर अपने विचार (टिप्पणी) देने के लिये कृपया यहाँ क्लिक करे।