अगस्त 2012 अंक ---
उपरोक्त स्कैन उस पत्रिका के एक लेख का है जो लखनऊ में अगस्त 2012 के ब्लागर सम्मेलन में मुफ्त वितरित की गई थीं। लेखक शास्त्री जी ने 'वास्तु शास्त्र' के मान्य नियमों के विपरीत गुमराह करने वाली सलाह पाठकों को दी है जिसे 'लाल रेखांकित' कर दिया गया है। यह भी ध्यान देने योग्य तथ्य है कि पत्रिका के प्रबन्धक गण IBN 7 के कारिंदा उस ब्लागर के घनिष्ठ हैं जिसने पूना प्रवासी भृष्ट-धृष्ट-निकृष्ट-ठग ब्लागर को खुश करने हेतु-'ज्योतिष एक मीठा जहर' लेख अपने ब्लाग में दिया था।
जो लोग इस लेख के अनुसार 'दक्षिण-पश्चिम'में 'शौचालय'बनाएँगे उनके परिवार की समृद्धि तो क्या होगी?उल्टे परिवार के मुखिया तथा पुरुष वर्ग के सदस्यों को स्वास्थ्य के लाले पड़ जाएँगे एवं अचल संपत्ति नष्ट होने तथा परिवार के बिखरने के लक्षण शीघ्र ही देखने को मिलेंगे।
वास्तु शास्त्र क्या कहता है?
'पूर्व' और 'उत्तर' दिशाएँ नीची अथवा ढलान युक्त तथा हल्की होनी चाहिए।
'पश्चिम' और 'दक्षिण'दिशाएँ ऊंची तथा भारी होनी चाहिए।
'उत्तर-पूर्व'=ईशान कोण 'जल' तत्व का होने के कारण कुआं,नल-कूप,बोरिंग आदि के लिए उत्तम है यहीं ध्यान-मेडीटेशन भी कर सकते हैं। पोंगा-पंथी यहीं 'मंदिर' बनवा देते हैं जबकि एक गृहस्थ परिवार में घर के भीतर मंदिर होना प्रबल वास्तु-दोष होता है।
'दक्षिण-पूर्व'=आग्नेय कोण 'अग्नि'तत्व का होने के कारण 'रसोई घर' के लिए उत्तम है।
'दक्षिण-पश्चिम'=नैऋत्य कोण 'ठोस' एवं 'भारी' जितना होगा उतना ही घर परिवार समृद्ध होगा। यहाँ स्टोर-गोदाम भी बना सकते हैं। परिवार के मुखिया का शयन कक्ष यहाँ उत्तम होता है।
'उत्तर-पश्चिम'=वावव्य कोण में 'शौचालय',सेप्टिक टैंक,गंदे पानी की निकासी के लिए उत्तम स्थान है। आने वाले मेहमानों हेतु 'अतिथि कक्ष' यहाँ ठीक रहता है जिससे कि वे ज़्यादा दिन टिकें नहीं शीघ्र प्रस्थान करें। तैयार माल का स्टोरेज भी यहाँ ठीक रहता है जिससे वह स्टाक में सड़े नहीं शीघ्र बिक्री हो जाये।
प्रस्तुत स्कैन कापी यह गलत सलाह दिखा रही है कि,दक्षिण-पश्चिम में शौचालय होने से समृद्धि आती है। जो स्थान ऊंचा और भारी होना चाहिए वहाँ शौचालय/सेप्टिक टैंक आदि होने पर गड्ढा खुदने से वह स्थान बेहद नीचा हो जाएगा जो भारी दोष होता है। फिर यह स्थान परिवार के मुखिया का है जिसे वह शास्त्री जी अशुद्ध करवा रहे हैं।
ईशान कोण = उत्तर पूर्व में शौचालय अथवा रसोई घर बनवाने से परिवार के मुखिया तथा पुरुष वर्ग के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। आगरा में एक शिक्षक महोदय ईशान में शौचालय बनवाने के बाद रुग्ण होते गए -हार्ट अटेक का भी उनको सामना करना पड़ा। ईशान की रसोई वाले एक अधिकारी को पेट में गोली लगने का सामना करना पड़ा और अंततः नौकरी से इस्तीफ़ा भी देना पड़ा।
अग्निकोण =दक्षिण पूर्व में शौचालय/सेप्टिक टैंक होने पर महिला वर्ग तथा मुख्य गृहिणी के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। मैनपुरी में मुलायम सिंह जी के साथ शिक्षक रहे एक साहब की पत्नी का स्वास्थ्य आग्नेय के सेप्टिक टैंक के ही कारण खराब चलता रहा है।
भारत वास्तु-दोष पर आधारित देश है-
समाज में कुछ लोग प्रगतिशीलता/विज्ञान के नाम पर ज्योतिष व वास्तु शास्त्र का विरोध करते हैं तो दूसरी ओर अधिकांश लोग पोंगा-पंथी ढोंग व आडंबर को ही सिरोधार्य करते हैं चाहे वे कितने ही उच्च पदस्थ अधिकारी और शिक्षित हों। आगरा में दैनिक जागरण के एक पत्रकार के घर वास्तु -हवन कराने से मुझे इसीलिए मना करना पड़ा था। उनको किसी पोंगा-पंथी ने मात्र 10 मिनट के अंदर हवन कराने का आश्वासन दिया था लेकिन वह दान-पुण्य के नाम पर पाँच प्रकार की मेवा,पाँच वस्त्र,पाँच बर्तन,पाँच मिठाईया,पाँच फल,और स्वर्ण आभूषण समेत अच्छी रकम दक्षिणा में मांग रहा था। पत्रकार महोदय को वह सब भेंट करना मंजूर था किन्तु समय अधिक लगाना नहीं चाहते थे।
इसी प्रकार 23 जनवरी 2013 को लखनऊ में एक अधिशासी अभियंता जो आगरा से ही परिचित रहे हैं ने हवन तो मुझसे करा लिया किन्तु वह मुहूर्त किसी और से निकलवाया था जो उनके लिए ठीक न था एवं जो शुभ समय उसमे से चुन कर बताया वह भी उन्होने गुज़ार दिया था। मैंने उनको हवन कराने से इंकार कर दिया था किन्तु वह दोनों पति-पत्नी आगरा से चले आ रहे संपर्कों के आधार पर मेरे घर आकर निवेदन कर गए थे कि वे सब रिशतेदारों को आमंत्रित कर चुके हैं अतः इस बार उनकी इज्ज़त बचा ली जाये। उनकी इज्ज़त भले ही बच गई हो परंतु हवन का प्रतिफल उनको न मिल सका।
H2 O=पानी होता है किन्तु H2 O2 होने पर हाईड्रोजन पर आकसाईड बन कर उड़ जाता है तब पानी प्राप्त नहीं होता है। इसी प्रकार नियमानुसार किया गया 'हवन' ही फलप्रद होता है अन्यथा तो आडंबर के अतिरिक्त कुछ नहीं मिलेगा। हमारा देश प्रकृति की ओर से 'वास्तु-दोष' पर आधारित देश है क्योंकि दक्षिण प्रदेश समुद्र तट के निकट होने के कारण नीचे हैं और उत्तरी प्रदेश 'हिमालय पर्वत' के कारण ऊंचे हैं एवं पूर्व में भी पर्वत श्रंखलाए वास्तु दोष ही निर्मित कर रही हैं। फिर भी हमारा देश तब तक 'सोने की चिड़िया'था जब तक वास्तु-दोष निवारणार्थ सिर्फ अंतिम संस्कार को छोड़ कर शेष 15 संस्कारों से पूर्व वैज्ञानिक-वास्तु-हवन होते रहे। हवन न करने अथवा अशुद्ध तरीकों से करने पर हमारा देश परास्त होते-होते आर्थिक रूप से पिछड़ गया और अभी भी पिछड़ा व कर्जदार ही है। क्या हम अपने अतीत के वैज्ञानिक वास्तु-शास्त्र को अपना कर पुनः समृद्ध हो सकेंगे?
मैंने इसी ब्लाग में पोस्ट्स के माध्यम से समय-समय पर जन-कल्याण हेतु ज्योतिष/वास्तु शास्त्र संबन्धित तथ्यों को दिया है जिसका विरोध लगातार पोंगा-पंथियों द्वारा किया गया है। फिर भी मेरा फर्ज है कि मैं अपनी तरफ से लोगों को आगाह कर दूँ इसी हेतु इस पोस्ट को दिया जा रहा है।
इस पोस्ट को यहाँ भी पढ़ा जा सकता है।
उपरोक्त स्कैन उस पत्रिका के एक लेख का है जो लखनऊ में अगस्त 2012 के ब्लागर सम्मेलन में मुफ्त वितरित की गई थीं। लेखक शास्त्री जी ने 'वास्तु शास्त्र' के मान्य नियमों के विपरीत गुमराह करने वाली सलाह पाठकों को दी है जिसे 'लाल रेखांकित' कर दिया गया है। यह भी ध्यान देने योग्य तथ्य है कि पत्रिका के प्रबन्धक गण IBN 7 के कारिंदा उस ब्लागर के घनिष्ठ हैं जिसने पूना प्रवासी भृष्ट-धृष्ट-निकृष्ट-ठग ब्लागर को खुश करने हेतु-'ज्योतिष एक मीठा जहर' लेख अपने ब्लाग में दिया था।
जो लोग इस लेख के अनुसार 'दक्षिण-पश्चिम'में 'शौचालय'बनाएँगे उनके परिवार की समृद्धि तो क्या होगी?उल्टे परिवार के मुखिया तथा पुरुष वर्ग के सदस्यों को स्वास्थ्य के लाले पड़ जाएँगे एवं अचल संपत्ति नष्ट होने तथा परिवार के बिखरने के लक्षण शीघ्र ही देखने को मिलेंगे।
वास्तु शास्त्र क्या कहता है?
'पूर्व' और 'उत्तर' दिशाएँ नीची अथवा ढलान युक्त तथा हल्की होनी चाहिए।
'पश्चिम' और 'दक्षिण'दिशाएँ ऊंची तथा भारी होनी चाहिए।
'उत्तर-पूर्व'=ईशान कोण 'जल' तत्व का होने के कारण कुआं,नल-कूप,बोरिंग आदि के लिए उत्तम है यहीं ध्यान-मेडीटेशन भी कर सकते हैं। पोंगा-पंथी यहीं 'मंदिर' बनवा देते हैं जबकि एक गृहस्थ परिवार में घर के भीतर मंदिर होना प्रबल वास्तु-दोष होता है।
'दक्षिण-पूर्व'=आग्नेय कोण 'अग्नि'तत्व का होने के कारण 'रसोई घर' के लिए उत्तम है।
'दक्षिण-पश्चिम'=नैऋत्य कोण 'ठोस' एवं 'भारी' जितना होगा उतना ही घर परिवार समृद्ध होगा। यहाँ स्टोर-गोदाम भी बना सकते हैं। परिवार के मुखिया का शयन कक्ष यहाँ उत्तम होता है।
'उत्तर-पश्चिम'=वावव्य कोण में 'शौचालय',सेप्टिक टैंक,गंदे पानी की निकासी के लिए उत्तम स्थान है। आने वाले मेहमानों हेतु 'अतिथि कक्ष' यहाँ ठीक रहता है जिससे कि वे ज़्यादा दिन टिकें नहीं शीघ्र प्रस्थान करें। तैयार माल का स्टोरेज भी यहाँ ठीक रहता है जिससे वह स्टाक में सड़े नहीं शीघ्र बिक्री हो जाये।
प्रस्तुत स्कैन कापी यह गलत सलाह दिखा रही है कि,दक्षिण-पश्चिम में शौचालय होने से समृद्धि आती है। जो स्थान ऊंचा और भारी होना चाहिए वहाँ शौचालय/सेप्टिक टैंक आदि होने पर गड्ढा खुदने से वह स्थान बेहद नीचा हो जाएगा जो भारी दोष होता है। फिर यह स्थान परिवार के मुखिया का है जिसे वह शास्त्री जी अशुद्ध करवा रहे हैं।
ईशान कोण = उत्तर पूर्व में शौचालय अथवा रसोई घर बनवाने से परिवार के मुखिया तथा पुरुष वर्ग के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। आगरा में एक शिक्षक महोदय ईशान में शौचालय बनवाने के बाद रुग्ण होते गए -हार्ट अटेक का भी उनको सामना करना पड़ा। ईशान की रसोई वाले एक अधिकारी को पेट में गोली लगने का सामना करना पड़ा और अंततः नौकरी से इस्तीफ़ा भी देना पड़ा।
अग्निकोण =दक्षिण पूर्व में शौचालय/सेप्टिक टैंक होने पर महिला वर्ग तथा मुख्य गृहिणी के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। मैनपुरी में मुलायम सिंह जी के साथ शिक्षक रहे एक साहब की पत्नी का स्वास्थ्य आग्नेय के सेप्टिक टैंक के ही कारण खराब चलता रहा है।
भारत वास्तु-दोष पर आधारित देश है-
समाज में कुछ लोग प्रगतिशीलता/विज्ञान के नाम पर ज्योतिष व वास्तु शास्त्र का विरोध करते हैं तो दूसरी ओर अधिकांश लोग पोंगा-पंथी ढोंग व आडंबर को ही सिरोधार्य करते हैं चाहे वे कितने ही उच्च पदस्थ अधिकारी और शिक्षित हों। आगरा में दैनिक जागरण के एक पत्रकार के घर वास्तु -हवन कराने से मुझे इसीलिए मना करना पड़ा था। उनको किसी पोंगा-पंथी ने मात्र 10 मिनट के अंदर हवन कराने का आश्वासन दिया था लेकिन वह दान-पुण्य के नाम पर पाँच प्रकार की मेवा,पाँच वस्त्र,पाँच बर्तन,पाँच मिठाईया,पाँच फल,और स्वर्ण आभूषण समेत अच्छी रकम दक्षिणा में मांग रहा था। पत्रकार महोदय को वह सब भेंट करना मंजूर था किन्तु समय अधिक लगाना नहीं चाहते थे।
इसी प्रकार 23 जनवरी 2013 को लखनऊ में एक अधिशासी अभियंता जो आगरा से ही परिचित रहे हैं ने हवन तो मुझसे करा लिया किन्तु वह मुहूर्त किसी और से निकलवाया था जो उनके लिए ठीक न था एवं जो शुभ समय उसमे से चुन कर बताया वह भी उन्होने गुज़ार दिया था। मैंने उनको हवन कराने से इंकार कर दिया था किन्तु वह दोनों पति-पत्नी आगरा से चले आ रहे संपर्कों के आधार पर मेरे घर आकर निवेदन कर गए थे कि वे सब रिशतेदारों को आमंत्रित कर चुके हैं अतः इस बार उनकी इज्ज़त बचा ली जाये। उनकी इज्ज़त भले ही बच गई हो परंतु हवन का प्रतिफल उनको न मिल सका।
H2 O=पानी होता है किन्तु H2 O2 होने पर हाईड्रोजन पर आकसाईड बन कर उड़ जाता है तब पानी प्राप्त नहीं होता है। इसी प्रकार नियमानुसार किया गया 'हवन' ही फलप्रद होता है अन्यथा तो आडंबर के अतिरिक्त कुछ नहीं मिलेगा। हमारा देश प्रकृति की ओर से 'वास्तु-दोष' पर आधारित देश है क्योंकि दक्षिण प्रदेश समुद्र तट के निकट होने के कारण नीचे हैं और उत्तरी प्रदेश 'हिमालय पर्वत' के कारण ऊंचे हैं एवं पूर्व में भी पर्वत श्रंखलाए वास्तु दोष ही निर्मित कर रही हैं। फिर भी हमारा देश तब तक 'सोने की चिड़िया'था जब तक वास्तु-दोष निवारणार्थ सिर्फ अंतिम संस्कार को छोड़ कर शेष 15 संस्कारों से पूर्व वैज्ञानिक-वास्तु-हवन होते रहे। हवन न करने अथवा अशुद्ध तरीकों से करने पर हमारा देश परास्त होते-होते आर्थिक रूप से पिछड़ गया और अभी भी पिछड़ा व कर्जदार ही है। क्या हम अपने अतीत के वैज्ञानिक वास्तु-शास्त्र को अपना कर पुनः समृद्ध हो सकेंगे?
मैंने इसी ब्लाग में पोस्ट्स के माध्यम से समय-समय पर जन-कल्याण हेतु ज्योतिष/वास्तु शास्त्र संबन्धित तथ्यों को दिया है जिसका विरोध लगातार पोंगा-पंथियों द्वारा किया गया है। फिर भी मेरा फर्ज है कि मैं अपनी तरफ से लोगों को आगाह कर दूँ इसी हेतु इस पोस्ट को दिया जा रहा है।
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