कामरेड डॉ गिरीश ,राज्य सचिव -भाकपा,उत्तर प्रदेश |
देश के मौजूदा राजनीतिक,आर्थिक व सामाजिक हालात ऐसे हो गए हैं कि आज के सभी वामपंथी दल राष्ट्रीय क्षितिज पर एकजुट होकर देश के राजनीतिक विकल्प के रूप मे अपने को प्रदर्शित करें तो इसमे कोई शक नहीं कि उनकी अतीत की खोई हुई ताकत का एहसास भी फिर से हो जाएगा और उन्हें अपना वजूद भी नए परिवेश मे बनाए रखने का मार्ग अवश्य ही मिल जाएगा। केवल उन्हें नयी राजनीतिक स्थिति में देश के किसान,मजदूर,दलित,शोषित की समस्याओं को तरजीह देने तथा आम जनता को जातिवाद के चंगुल से निकालने और उसके हितों की सुरक्षा के लिए नयी सोच का संचार करने का संकल्प लेकर काम करने को वरीयता देनी होगी। इस स्थिति की आवश्यकता इस बात के लिए भी महसूस की जा रही क्योंकि आज के जो बड़े राजनीतिक दल हैं वे दलगत -जातीय-क्षेत्रीय राजनीति के सहारे अपने को सर्वोच्च सत्ता पाने की होड़ को वरीयता देने में जुटे हैं और इन्ही मुद्दों के आधार पर उनकी राजनीतिक शक्ति का भी प्रदर्शन हो जा रहा है। ऐसी स्थिति में जातियों के नेता जिनकी संख्या उनके समाज की संख्या के अनुपात में काफी कम होती है,वे ही राजनीतिक लाभ उठाते हैं और कभी-कभी तो ऐसे लोग अपने ही समाज के प्रति कठोर बनने में भी संकोच नहीं करते हैं जिसके कारण उनका एक बड़ा वर्ग असंतुष्ट होता है और जब ऐसे लोगों की संख्या ज़्यादा हो जाती है तो संबन्धित व्यक्ति को अपनी कसक का इजहार करके सबक सिखाने का काम करते हैं। ऐसी स्थिति होने पर समाज के उन चंद लोगों को अपने पर केवल पक्षतावा करने के अतिरिक्त कुछ कर पाना मुश्किल हो जाता है और इनकी अहमियत भी समाप्त सी हो जाती है और फिर नए सिरे से यही स्थिति जन्म लेती है जिसके बदले हुए परिणाम आने स्वभाविक होते हैं। शायद इस समय कुछ ऐसा ही होने की स्थिति के आसार बन रहे हैं।
इतिहास के झरोखे से देखें तो रूस मे क्रांति आने के बाद 1925 मे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी बनी और इसके बाद समाजवाद के रास्ते पर देश के चलने की स्थिति का प्रादुर्भाव हुआ। भारत मे देश की आज़ादी की लड़ाई के लिए आंदोलन चल रहा था। इस समय भारत की आज़ादी के लिए कांग्रेस के नेतृत्व में जो आंदोलन चल रहा था उसके अंतर्गत अंग्रेजों की व्यवस्था को सुधारने वाला सुझाव देने और अपने आंदोलन को गति देने का काम किया जा रहा था। शहीद भगत सिंह ने उस समय रूस की क्रान्ति से प्रभावित होकर समाजवादी व्यवस्था के निर्माण की बात को तरजीह दी और कहा कि ऐसी स्थिति में गोरे के जाने और काले अंग्रेज़ के सत्ता मे आने के बाद किसान,मजदूर,गरीब व दलित की सत्ता में भागीदारी नहीं हो पाएगी। यह स्थिति ज़्यादा दिन नहीं चली और कम्युनिस्ट पार्टी जो कांग्रेस के कयादत में काम कर रही थी उसके 1929 में कामरेड मौलाना हसरत मोहानी ने कांग्रेस के कानपुर के अधिवेशन में पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव रखा जिससे नाराज़ होकर गांधी जी ने स्वंयसेवकों के जरिये उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जिस पर उन्होने सात दिन का अनशन भी किया। इस प्रकरण के कारण कांग्रेस में गरम दल व नरम दल की स्थिति बनी और 1931 के कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव पारित कर दिया गया। इस समय तक कांग्रेस में बड़े-बड़े बैरिस्टर ,वकील व अन्य आर्थिक -सम्पन्न लोगों के होने के बाद भी जनांदोलन की स्थिति नहीं बन पायी थी। इस स्थिति के कारण कम्युनिस्ट पार्टी में किसान,मजदूर,दलित व अन्य सामाजिक लोगों को अलग-अलग जोड़ने के लिए छोटे-छोटे संगठनों का निर्माण किया।
कांग्रेस और कम्युनिस्टों ने मिल कर 1920 में आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक) तथा शहीद भगत सिंह ने 1925 में हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी बनाई जो बाद में हिंदुस्तान रिपब्लिकन सोशलिस्ट आर्मी बनी,नौजवान भारत सभा का गठन भी इन्हीं दिनों हुआ। इसके अलावा स्वामी सहजानन्द सरस्वती ,राहुल सांकृत्यायन और दूसरे कम्युनिस्ट नेताओं की पहल पर अखिल भारतीय किसान सभा तथा आल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन का भी गठन हुआ। आल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन का सम्मेलन 12 से 14 अगस्त को अमीनाबाद के गंगा प्रसाद हाल में हुआ इसमें जवाहर लाल नेहरू ने भी भाग लिया था और फेडरेशन के पहले राष्ट्रीय महासचिव लखनऊ के प्रेम नारायण भार्गव बने थे। इसके बाद 1936 में ही प्रगतिशील लेखक संघ तथा 1941 में जननाट्य संघ (इप्टा)का गठन हुआ। 1949 में जमींदारी प्रथा की समाप्ती तथा 1950 के बाद देश के विकास के लिए बनने वाली प्रथम पंचवर्षीय योजना के निर्माण में भूमिका निभाने का कम्युनिस्टों ने योगदान किया। ज़मीनें बंटवाने के लिए विशेष भूमिका का निर्वहन किया और स्थिति यह रही कि आंदोलन चला कर सीतापुर व लखीमपुर में नौ हज़ार एकड़ भूमि को गरीबों में बांटने का काम किया गया। इस प्रकार कम्युनिस्ट दल के लोग कांग्रेस को किसान व मजदूरों के हित में काम करने को बाध्य कर रहे थे।
परन्तु इसी दौरान चीन ने 1962 में देश पर आक्रमण किया। इसके बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में चीन के आक्रमण के समर्थक और विरोधी गुटों में पहले आंतरिक चर्चा शुरू हुई और इस स्थिति में जब तेजी आई तो पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक आहूत की गई। इसी बैठक में चीन के आक्रमण की निन्दा किए जाने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया जिसका पार्टी के 32 लोगों ने विरोध किया। बाद में कई अन्य मुद्दों को लेकर 1964 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में विभाजन हो गया और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का गठन हो गया। चीन के हमले का समर्थन करने वाले 32 लोग मार्क्सवादी पार्टी में चले गए। इस स्थिति के बाद भी भाकपा कांग्रेस के साथ मिल कर काम कर रही थी किन्तु इन दोनों दलों का असर कांग्रेस के लोगों पर भी पड़ा और 1969 में कांग्रेस 'इंडिकेट' और 'सिंडीकेट' में विभाजित हो गई। 1969 में सी पी एम के बीच में एक नया विभाजन हुआ जिसमें नक्सलवादी आंदोलन के लोगों ने चारू मजूमदार के नेतृत्व में सी पी एम एल (माले)का गठन किया। इसके बाद भी इस दल में कई विभाजन हुये। इस बीच भी वामपंथी दलों के दबाव ने राजाओं-महाराजाओं के प्रवि -पर्स को वापस लेने और बैंकों के राष्ट्रीयकरण करने को कांग्रेस को बाध्य किया।
1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपात काल लागू कियाथा। इस समय कम्युनिस्ट पार्टी ने 1977 में अपनी कान्फरेंस में कांग्रेस के इस मूव का विरोध किया जबकि दल के अध्यक्ष एस .ए . डांगे ने न केवल इस निर्णय का विरोध किया बल्कि 'आल इंडिया कम्युनिस्ट पार्टी' का गठन कर डाला और अपनी पुत्री रोज़ा देश पांडे को इसका अध्यक्ष बनवाया। हालांकि डांगे के नेतृत्व वाली पार्टी उनके जीवन काल में ही समाप्त हो गई। इस प्रकार वामपंथी दल केरल,त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में सी पी आई,सी पी एम,आर एस पी,फारवर्ड ब्लाक आदि संयुक्त रूप से मिलकर चुनाव में शिरकत करते हैं जिसके कारण इन राज्यों में वामपंथी दलों की सरकारें भी बनती हैं किन्तु अन्य राज्यों में इंनका यत्र-तत्र ही प्रतिनिधितित्व होता रहा है। यही स्थिति कमोबेश उत्तर प्रदेश में भी रही है। उत्तर प्रदेश में सी पी आई के सर्वाधिक 16 विधायक राज्य विधानसभा में पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नन्दन बहुगुणा के समय में रहे जबकि सी पी एम के चार विधायक एक साथ राज्य विधानसभा में पहुँच सके। सांसदों की स्थिति भी उत्तर प्रदेश से कम ही रही है।
बहरहाल उत्तर प्रदेश की राजनीतिक स्थिति में 1980 के बाद कई क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का प्रादुर्भाव हुआ। इसी दौरान भारतीय जनता पार्टी बड़े स्वरूप में आई। बहुजन समाज पार्टी भी अपने अन्तिम रूप में आने के पूर्व कई आवरण में जनता के समक्ष प्रदर्शित हुई है। परन्तु यह दल अपने स्वरूप में परिवर्तन करने के बाद भी दलित राजनीति को वर्चस्व देने की हिमायती रही है। समाजवादी पार्टी के 'क्रांति रथ' के सहारे मुलायम सिंह यादव ने अपनी राजनीति को शिखर तक ले जाने का काम किया। भाजपा ने भी अयोध्या के विवादित ढांचे के प्रकरण को उछाल कर अपने वर्चस्व को स्थापित करने की पुरजोर कोशिश की। इन स्थितियों मे कांग्रेस के खिलाफ अन्य राजनीतिक दल अपने-अपने हिसाब से काम करने में जुटे रहे जिसके कारण वह कमजोर हुई और क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व बढ्ने लगा। 1989 में अयोध्या में विवादित ढांचे को लेकर तनावपूर्ण स्थिति निर्मित हुई और उसमे उत्तर प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई और विरोधी दल की भूमिका में आ गई। 1991 में भाजपा की प्रदेश में मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के नेतृत्व में सरकार बनी। यह सरकार 1992 में अयोध्या का विवादित ढांचा गिरने के बाद गिर गई। दूसरी ओर संयुक्त दलों की सरकारों का दौर शुरू हो गया। इसी दरम्यान समाजवादी पार्टी ने सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ सशक्त मोर्चा खोलने के लिए वामपंथी दलों का भरपूर दोहन किया और इसके बदले उन्हें विधानसभा चुनावों में सीटों को देकर उनकी मदद करने और अपने दल के प्रत्याशी नहीं उतारने का वादा किया। यह वादा ज़्यादा दिनों तक नहीं चला । इसी बीच सपा ने बसपा के साथ मिलकर प्रदेश में सरकार का गठन किया। हालांकि यह गठबंधन ज़्यादा समय तक नहीं चल पाया। नौवें दशक के उत्तरार्ध में होने वाले विधानसभा चुनावों में वामपंथी दल मिलकर और समझौते के आधार पर चुनाव लड़ने का काम करते रहे और इसके कारण 2007 तक विधानसभा में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का प्रतिनिधित्व रहा किन्तु 2007 व 2012 के सामान्य विधानसभा चुनाव में इन दलों का अस्तित्व विधानसभा में समाप्त हो गया। इन दोनों विधानसभा चुनावों में भी वामपंथी दल एक होकर कुछ नहीं कर पाये। आज इन दोनों दलों को सपा,भाजपा,कांग्रेस व बसपा की ओर से किसी प्रकार का जुडने का संकेत नहीं मिल रहा है। आज ये वामपंथी दल सांप्रदायिकता के विरोध में सपा का साथ देने तथा आज़ादी की लड़ाई से लेकर आज़ादी के बाद तक कांग्रेस के साथ मदद करने वाले का सहारा देने वाला कोई नहीं है और इन दोनों ही दलों को आज़ादी के आंदोलन के समय जिस प्रकार किसानों,मजदूरों,दलितों व शोषितों व समाज के अन्य सभी तबके के लोगों को संगठित करने की नीति को किया और जिसके आधार पर अपनी वर्चस्वता हासिल की थी,उसी स्थिति और उसी रणनीति को आज भी अपनाने की आवश्यकता प्रतीत होती है। इस आवश्यकता की प्रतिपूर्ति के लिए राष्ट्रीय स्तर पर सभी वामपंथी दलों को एकजुट होकर नए राजनीतिक विकल्प के रूप में सक्रिय होने की नीति से काम करने पर ज़ोर दिया जाये तो आधुनिक परिवेश में राजनीतिक स्थिति में सुधार आने में कोई बाधा नहीं आने वाली है। ऐसा उस स्थिति में और भी आवश्यक हो जाता है जब लोग स्वार्थी राजनीति के चक्कर में फंस कर अंधेरे में गुम सा हो जाने से परेशानी की स्थिति में सहारे की ज़रूरत का एहसास करने लगे हों। भले ही लोगों का यह एहसास आम जनमानस की वाणी नहीं बन पाया हो किन्तु यह हकीकत है और इस दिशा में आपसी कटुता और स्वार्थी नीति को त्याग कर एक होकर समर्पित भाव से जनता की सेवा भावना को वरीयता दिये जाने पर स्थिति स्पष्ट हो जाएगी और नई रोशनी भी मिलेगी जो भविष्य में बेहतर समय के प्रतीक के रूप में बनकर दिखेगी।
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9 comments:
फेसबुक ग्रुप -हाउस आफ कामन में प्राप्त टिप्पणी-
Ganesh Citu: Akta ke liye sangharsh aour sanghash ke liye akta aaj samay ki pukar hai .
16 minutes ago via mobile · Unlike · 1
फेसबुक ग्रुप हाउस आफ कामन में प्राप्त टिप्पणी-
R Prakash Maurya वामपंथ की विफलता बहुत ही निराशाजनक है। वामपंथी राजनीति तदर्थवाद एवं यथास्थितिवाद का शिकार हो गयी । आत्ममुग्धता का शिकार वामपंथ वास्तव में ब्राहृम्णवाद का ही बदला स्वरूप बन कर रह गया है। सोवियत संघ के पतन के बाद अपनी प्रासंगिकता के लिए वामपंथ ने राष्ट्रीय स्तर पर किसी भी प्रकार कोई रचनात्मक कार्यक्रम न तो पेश किया न ही इस सन्दर्भ में कोई सार्थक कदम की दिशा में प्रयास किया गया ।
about a minute ago · Like
फेसबुक ग्रुप कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया में प्राप्त टिप्पणी-
Nihar Mallick very noble thought but can it be possible?
12 minutes ago · Unlike · 1
Vijai RajBali Mathur We should be hopefull.
4 minutes ago · Like · 1
Nihar Mallick Thank you sir...What could India people also do?...we only hope for best.
3 minutes ago · Like
विचारणीय प्रस्तुति .सार्थक जानकारी हेतु आभार . .आभार . बाबूजी शुभ स्वप्न किसी से कहियो मत ...[..एक लघु कथा ] साथ ही जानिए संपत्ति के अधिकार का इतिहास संपत्ति का अधिकार -3महिलाओं के लिए अनोखी शुरुआत आज ही जुड़ेंWOMAN ABOUT MAN
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फेसबुक पर प्रपट टिप्पणी-
Parmanand Arya: Samaya ki mang yahi hai varna....kuch nahi bachega...
11 hours ago · Unlike · 1
डॉ गिरीश के इन विचारों के प्रकाशन के बाद फेसबुक के विभिन्न ग्रुप्स में टिप्पणी/नोट के माध्यम से जर्मनी प्रवासी और डायचे वेले से संबन्धित रहे उज्ज्वल भट्टाचार्य ने यहाँ भी उसे टिप्पणी रूप में भेजा था जिसे प्रकाशन योग्य नहीं समझा गया था किन्तु 'हस्तक्षेप' पर एक लेख के रूप में उसका प्रकाशन धूम-धड़ाके से हुआ है। मैंने 'हस्तक्षेप'में उस पर यह टिप्पणी लिख दी है---
"इस लेख की अंतिम पंक्तियों में कहा गया है कि,"मुझे नहीं लगता कि डॉ. गिरीश के विश्लेषण को भाकपा का विश्लेषण कहा जा सकता है। और डॉ. गिरीश भाकपा के राज्य सचिव हैं।"अतः स्पष्ट होता है कि लेखक ने यह नोट/लेख डॉ गिरीश के प्रति व्यक्तिगत विद्वेष की भावना से लिखा है क्योंकि डॉ गिरीश पार्टी के निर्वाचित प्रदेश राज्यसचिव हैं और किसी के मानने या न मानने से वह स्थिति प्रभावित नहीं होती। ताज्जुब तो यह है कि,'हस्तक्षेप' के काबिल संपादक गण इस बात को अपनी टिप्पणी द्वारा इंगित क्यों नहीं किए?"
फेसबुक ग्रुप 'एकांत के बोल...'में प्राप्त टिप्पणी---
Narendra Parihar: sahi kaha ek hoker swarthi niti ko tyag marg per sanghton banana hi niti ho per her andolan ka ant ya pooranta kuch chehron ki garoori odhani bunhi jaati h
jb vayakti logo ki zindagi se sambandh nahi rakhega to log bhi usse door hote hayenge, zindagi ka sambandh rajneeti se bhi vaisa hi hai, vampanth logo ki zindagi se door hota ja raha hai, vo apni zamin ki zarurat ya to niji karnovash nahi samajhna chahta ya uski soch hi logo ke sath talmail rakhne ki nahi rah gayi hai, zarurat hai aam aadmi ki smasya aor unki awaz ko samjha jaye khaskr party cadre kya sochta hai, kya chahta hai, ye bat vam dalo ko samajhna hoga, varna aik cadre tayyar hone me bahut samay jata hai aor tootne me samay nahi lagta.
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