यों तो उपरोक्त चित्र सुस्पष्ट हैं और किसी व्याख्या या स्पष्टीकरण के मोहताज नहीं हैं। किन्तु प्रथम चित्र में जो चिंता ज़ाहिर की गई है वह विचारणीय अवश्य है हालांकि उसका कारण द्वितीय चित्र से स्पष्ट समझा जा सकता है।
ब्रिटिश दासता के समय लखनऊ स्थित 'अमीरुद्दौला पार्क' आज़ादी के आंदोलन की गतिविधियों का केंद्र बन गया था और उसका नाम झंडे वाला पार्क पड़ गया था। आज़ादी के बाद भी यह राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बना रहा है। 1991 में आए मनमोहनी उदारवाद के बढ़ते जाने से लोगों की राजनीतिक सोच कुंद पड़ गई और बाजारवाद का शिकार होकर मध्य वर्ग विलासिता की ओर आकृष्ट हुआ। इसका ज्वलंत उदाहरण है द्वितीय चित्र में दर्शाई गई भीड़ और पुलिस लाठी चार्ज।
मजदूर-किसान के बढ़ते शोषण की प्रतिक्रिया स्वरूप होने वाले वर्ग-संघर्षों को जातीय-मजहबी संघर्षों की ओर मोड़ दिया गया तथा कारपोरेट भ्रष्टाचार -लूट-शोषण को छिपाने हेतु सरकारी भ्रष्टाचार का ढ़ोल हज़ारे/केजरीवाल आंदोलन के जरिये बजाया गया जिसका परिणाम है आ आ पा (AAP) और जिसके हीरो हैं दिल्ली के वर्तमान मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जो पी एम मनमोहन सिंह जी के गुप्त आशीर्वाद व RSS के गुप्त सहयोग से 2014 के चुनावों के जरिये पी एम पद के लिए कारपोरेट की पहली पसंद बन कर उभरे हैं जैसा कि तीसरे चित्र से सिद्ध होता है । दुखद पहलू यह है कि साम्यवादी/वामपंथी विचारक इस AAP के झंडाबरदार बने घूम रहे हैं जिसका उदाहरण चौथा चित्र है।
मेहनतकश जनता और उसके समर्थक विद्वानों के समक्ष कड़ी चुनौती है कि इस बार फिर भटक कर मतदान किया तो आने वाले समय में देश को गृह युद्ध का सामना अवश्य ही करना पड़ेगा। क्योंकि जिस केजरीवाल को मसीहा के रूप में पेश किया जा रहा है उनकी हकीकत प्रस्तुत उनका साक्षात्कार ही बता रहा है।
कृपया गंभीरता के साथ सोचें कि देश की क्या हो दिशा?
~विजय राजबली माथुर ©
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