Saturday, May 31, 2014

प्रकृति के नियमानुसार न चलने के दुष्परिणाम व उपचार ---विजय राजबली माथुर

 कल 30 मई को दिल्ली से चला आंधी तूफान आगरा आदि होते हुये रात्रि में लखनऊ में भी कुछ असर दिखा गया। मौसम विभाग के अनुसार 31 मई और 1 जून को भी बूँदा-बाँदी व आंधी प्रकोप हो सकता है।मई के महीने में उमस भरी गर्मी हो रही है अलबत्ता लू-प्रकोप कुछ कम है। यह सब जलवायु परिवर्तन का ही परिणाम है।

 नई दुनिया छोड़ कर जब डॉ राजेन्द्र माथुर साहब  ने नवभारत टाईम्स के प्रधान संपादक का दायित्व ले लिया था तब एक सम्पादकीय लेख में उन्होने पर्यावरण के संबंध में चेतावनी दी थी कि यदि ऐसे ही चलता रहा तो अगले बीस वर्षों में देश की जलवायु बदल जाएगी।उनकी चेतावनी से समाज  कुछ भी नहीं बदला बल्कि  पर्यावरण -प्रदूषण पहले से भी ज़्यादा बढ़ गया है। नदियां अब नालों में परिवर्तित हो चुकी हैं।  अति वर्षा,अति सूखा, अति शीत,भू-स्खलन,बाढ़ आदि प्रकोप जीवनचर्या का अंग बन चुके हैं। 'गंगा की सफाई' के लिए स्वामी निगमानंद का बलिदान हो चुका है और अब इज़राईल की दिलचस्पी गंगा की सफाई में है। इज़राईल आर एस एस का प्रिय देश है उसे यह ठेका मिल भी सकता है। 

हालांकि प्रगतिशीलता व वैज्ञानिकता की आड़ में बुद्धिजीवियों का एक प्रभावशाली तबका 'ज्योतिष' की कड़ी निंदा व आलोचना करता है। परंतु ज्योतिष=ज्योति +ईश अर्थात ज्ञान -प्रकाश देने वाला विज्ञान। जिस प्रकार ग्रह-नक्षत्रों का प्रभाव मानव समेत सभी प्राणियों व वनस्पतियों पर पड़ता है उसी प्रकार मानवों के कार्य-व्यवहार से ग्रह-नक्षत्र भी प्रभावित होते हैं। इसे एक छोटे उदाहरण से यों समझें:
एक बाल्टी पानी में एक गिट्टी उछाल दें तो हमें तरंगें दीखती हैं परंतु वही गिट्टी नदी या समुद्र में डालने पर हमें तरंगें नहीं दीखती हैं परंतु बनती तो हैं। वैसे ही मानवों के कार्य-व्यवहार से ग्रह-नक्षत्र प्रभावित होते हैं। जिसका पता प्रकृति में होने वाली उथल-पुथल से चलता है। कुम्भ,मेलों की भगदड़,केदारनाथ आदि में ग्लेशियरों का फटना आदि इन मानवीय दुर्व्यवस्थाओं के ही दुष्परिणाम हैं।

प्रकृति के नियमों का पालन करना ही धर्म है। धर्म=धारण करने हेतु आवश्यक । मानव जीवन और मानव समाज को धरण करने हेतु आवश्यक है कि 'सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा),अस्तेय,अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य का पालन किया जाये -यही धर्म है। परंतु 'एथीस्टवाद' के कारण इसे नकार दिया जाता है और ढोंग-पाखंड-आडंबर को धर्म की संज्ञा दी जाती है जबकि वह तो व्यापारियों/उद्योगपतियों द्वारा जनता की लूट व शोषण के उपबन्ध हैं। किसी भी एथीस्ट व प्रगतिशील में इतना साहस नहीं है कि वह इस ढोंग-पाखंड-आडंबर का विरोध करके वास्तविक 'धर्म' से जनता को परिचित कराये बल्कि जो ऐसा करता है उसी को ये प्रगतिशील व एथीस्ट अपने निशाने पर रखते हैं जिस कारण जनता दिग्भ्रमित होकर अपना शोषण करवाती रहती है।दूसरी तरफ प्राकृतिक विषमता का दुष्परिणाम अलग से समाज को झेलना पड़ता है जिसमें पुनः शोषित जनता का ही सर्वाधिक उत्पीड़न होता है। 







डॉ शिखा सिंह  ने एक रिपोर्ट द्वारा एक जागरूक नागरिक के प्रकृति अनुकूल स्तुत्य कृत्यों का सराहनीय वर्णन प्रस्तुत किया है। :

जाधव पायेंग , असम के एक गरीब आदिवासी परिवार में पैदा हुए , महज़ दसवीं पास शक्सियत , आज "Forest man of India" के नाम से जाना जाता है ! इस वननायक ने पिछले तीस वर्षों में ब्रह्मपुत्र के बंजर किनारों पर 1360 एकड़ के जंगल रोपे जिनमें बाघ , चीते , हाथी व कई प्रकार के अन्य पशु पक्षी बसते हैं ! ये है इस देश के आदिवासी समाज की विरासत जिसने सदियों से जल जंगल ज़मीन की रक्षा की ! जिस दिन दुनिया का बच्चा बच्चा जाधव पायेंग बन जाएगा उस दिन ये कुरूप धरती दोबारा खिल उठेगी! जाधव पायेंग पर बनी documentary:

https://www.facebook.com/permalink.php?story_fbid=419196404888080&id=100003931716337
 


 


 ~विजय राजबली माथुर ©
 इस पोस्ट को यहाँ भी पढ़ा जा सकता है।

1 comment:

Rajendra Ranjan Gaikwad said...

बहुत अनुकर्णीय प्रयास..साधुवाद