घूम रहे ब्रह्माण्ड में कितने तारे, ग्रह, नक्षत्र
किंतु प्रकृति ने बस हमको ही दी है
मीठे पानी की नदियाँ, सुंदर झरने और हरे भरे वन.
लेकिन हमने प्रकृति के उपहार का बस उपहास बनाया
जैसे चाहा वैसे इसको रौंदा, कुचला, दास बनाया.
धरती की छाती पर हमने, गाड़ के खूंटे, बाँट ली धरती,
जब कराह से काँपी धरती, हम बोले भूचाल है आया.
नदियों को मैला करके, हालत कर दी नाले से बदतर,
नदियाँ तट को तोड़ चलीं, तो हम बोले कि बाढ़ है आई.
काट दिए सब जंगल, वन और पर्वत को नंगा कर डाला,
बारिश रस्ता भूल गई और हम बोले सूखा है आया.
जाने क्या क्या बहा दिया जब हमने सागर के पानी में,
सागर ने प्रतिकार किया तो हमने कहा सूनामी आई.
.
प्रकृति माँ है, हमने प्रकृति का कितना अपमान किया
माँ के जब आँसू निकले, प्राकृतिक आपदा नाम दिया.
बात याद रखनी थी जो वह भूल गया क्यों अपना मन
प्रकृति ने बस हमको दी है, मीठे पानी की नदियाँ,
सुंदर झरने और हरे भरे वन!!
(यह चिंता 21 मार्च 2012 को फेस बुक पर बिहारी बाबू -सलिल वर्मा जी ने व्यक्त की थी। उनकी यह रचना और चिन्ता मुझे सर्वोत्कृष्ट प्रतीत हुई इसका समाधान मै नीचे दे रहा हूँ):
यज्ञ माहात्म्य
लिखा वेदों मे विधान ,अद्भुत है महिमा हवन की।
जो वस्तु अग्नि मे जलाई,हल्की होकर वो ऊपर उड़ाई।
करे वायु से मिलान,जाती है रस्ता गगन की।
लिखा वेदों मे विधान ,अद्भुत है महिमा हवन की। । 1 । ।
फिर आकाश मण्डल मे भाई,पानी की होत सफाई।
वृष्टि होय अमृत समान,वृद्धि होय अन्न और धन की।
लिखा वेदों मे विधान,अद्भुत है महिमा हवन की। । 2 । ।
जब अन्न की वृद्धि होती है,सब प्रजा सुखी होती है।
न रहता दु : ख का निशान ,आ जाती है लहर अमन की।
लिखा वेदों मे विधान ,अद्भुत है महिमा हवन की। । 3 । ।
जब से यह कर्म छुटा है,भारत का भाग्य लुटा है।
'सुशर्मा'करते बयान सहते हैं मार दु :खन की।
लिखा वेदों मे विधान ,अद्भुत है महिमा हवन की। । 4 । ।
जनाब 'हवन' एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है। कैसे? Material Science (पदार्थ विज्ञान ) के अनुसार अग्नि मे जो भी चीजें डाली जाती हैं उन्हे अग्नि परमाणुओ (Atoms) मे विभक्त कर देती है और वायु उन परमाणुओ को बोले गए मंत्रों की शक्ति से संबन्धित ग्रह अथवा देवता तक पहुंचा देती है।
देवता=जो देता है और लेता नहीं है जैसे-अग्नि,वायु,आकाश,समुद्र,नदी,वृक्ष,पृथ्वी,ग्रह-नक्षत्र आदि।(पत्थर के टुकड़ों तथा कागज पर उत्कीर्ण चित्र वाले नहीं )।
मंत्र शक्ति=सस्वर मंत्र पाठ करने पर जो तरंगें (Vibrations) उठती हैं वे मंत्र के अनुसार संबन्धित देवता तक डाले गए पदार्थों के परमाणुओ को पहुंचा देती हैं।
अतः हवन और मात्र हवन (यज्ञ ) ही वह पूजा या उपासना पद्धति है जो कि पूर्ण रूप से वैज्ञानिक सत्य पर आधारित है। बाकी सभी पुरोहितों द्वारा गढ़ी गई उपासना पद्धतियेँ मात्र छ्ल हैं-ढोंग व पाखंड के सिवा कुछ भी नहीं हैं। चाहे उनकी वकालत प्रो . जैन अर्थात 'ओशो-रजनीश' करें या आशा राम बापू,मुरारी बापू,अन्ना/रामदेव,बाल योगेश्वर,आनंद मूर्ती,रवी शंकर जैसे ढ़ोंगी साधू-सन्यासी। 'राम' और 'कृष्ण' की पूजा करने वाले राम और कृष्ण के शत्रु हैं क्योंकि वे उनके बताए मार्ग का पालन न करके ढ़ोंगी-स्वांग रच रहे हैं। राम को तो विश्वमित्र जी 'हवन'-'यज्ञ 'की रक्षा हेतु बाल काल मे ही ले गए थे। कृष्ण भी महाभारत के युद्ध काल मे भी हवन करना बिलकुल नहीं भूले। जो लोग उनके द्वारा प्रदर्शित मार्ग -हवन करना छोड़ कर उन्हीं की पूजा कर डालते हैं वे जान बूझ कर उनके कर्मों का उपहास उड़ाते हैं। राम और कृष्ण को 'भगवान' या भगवान का अवतार बताने वाले इस वैज्ञानिक 'सत्य ' को स्वीकार नहीं करते कि 'भगवान' न कभी जन्म लेता है न उसकी मृत्यु होती है। अर्थात भगवान कभी भी 'नस' और 'नाड़ी' के बंधन मे नहीं बंधता है क्योंकि,-
भ=भूमि अर्थात पृथ्वी।
ग=गगन अर्थात आकाश।
व=वायु।
I=अनल अर्थात अग्नि (ऊर्जा )।
न=नीर अर्थात जल।
प्रकृति के ये पाँच तत्व ही 'भगवान' हैं और चूंकि इन्हें किसी ने बनाया नहीं है ये खुद ही बने हैं इसी लिए ये 'खुदा' हैं। ये पांचों तत्व ही प्राणियों और वनस्पतियों तथा दूसरे पदार्थों की 'उत्पत्ति'(GENERATE),'स्थिति'(OPERATE),'संहार'(DESTROY) के लिए उत्तरदाई हैं इसलिए ये ही GOD हैं। पुरोहितों ने अपनी-अपनी दुकान चमकाने के लिए इन को तीन अलग-अलग नाम से गढ़ लिया है और जनता को उल्टे उस्तरे से मूढ़ रहे हैं। इनकी पूजा का एकमात्र उपाय 'हवन' अर्थात 'यज्ञ' ही है और कुछ भी कोरा पाखंड एवं ढोंग।
यज्ञ महिमा
होता है सारे विश्व का कल्याण यज्ञ से।
जल्दी प्रसन्न होते हैं भगवान यज्ञ से। ।
1-ऋषियों ने ऊंचा माना है स्थान यज्ञ का।
करते हैं दुनिया वाले सब सम्मान यज्ञ का।
दर्जा है तीन लोक मे-महान यज्ञ का।
भगवान का है यज्ञ और भगवान यज्ञ का।
जाता है देव लोक मे इंसान यज्ञ से। होता है ...........
2-करना हो यज्ञ प्रकट हो जाते हैं अग्नि देव।
डालो विहित पदार्थ शुद्ध खाते हैं अग्नि देव।
सब को प्रसाद यज्ञ का पहुंचाते हैं अग्नि देव।
बादल बना के भूमि पर बरसाते हैं अग्निदेव।
बदले मे एक के अनेक दे जाते अग्नि देव।
पैदा अनाज होता है-भगवान यज्ञ से।
होता है सार्थक वेद का विज्ञान यज्ञ से। होता है ......
3-शक्ति और तेज यश भरा इस शुद्ध नाम मे ।
साक्षी यही है विश्व के हर नेक काम मे।
पूजा है इसको श्री कृष्ण-भगवान राम ने।
होता है कन्या दान भी इसी के सामने।
मिलता है राज्य,कीर्ति,संतान यज्ञ से।
सुख शान्तिदायक मानते हैं सब मुनि इसे। होता है .....
4-वशिष्ठ विश्वमित्र और नारद मुनि इसे।
इसका पुजारी कोई पराजित नहीं होता।
भय यज्ञ कर्ता को कभी किंचित नहीं होता।
होती हैं सारी मुश्किलें आसान यज्ञ से। होता है ......
5-चाहे अमीर है कोई चाहे गरीब है।
जो नित्य यज्ञ करता है वह खुश नसीब है।
हम सब मे आए यज्ञ के अर्थों की भावना।
'जख्मी'के सच्चे दिल से है यह श्रेष्ठ कामना।
होती हैं पूर्ण कामना--महान यज्ञ से । होता है ....
हम जानते हैं कि आपके इर्द-गिर्द छाए हज़ारे/केजरीवाल और सुबरमनियम स्वामी के चेले-चपाटे आपको हकीकत स्वीकारने नहीं देंगे। नीचे स्कैन मे आप ओज़ोन पर्त की जो समस्या देख रहे हैं वह भी 'हवन'पद्धती को त्यागने का ही परणाम है। -
Hindustan-Lucknow-30/03/2012 |
भोपाल गैस कांड के बाद यूनियन कारबाईड ने
खोज करवाई थी कि तीन परिवार सकुशल कैसे बचे। निष्कर्ष मे ज्ञात हुआ कि वे
परिवार घर के भीतर हवन कर रहे थे और दरवाजों व खिड़कियों पर कंबल पानी मे
भिगो कर डाले हुये थे। ट्रायल के लिए गुजरात मे अमेरिकी वैज्ञानिकों ने
'प्लेग' के कीटाणु छोड़ दिये। इसका प्रतिकार करने हेतु सरकार ने हवन के
पैकेट बँटवाए थे और 'हवन' के माध्यम से उस प्लेग से छुटकारा मिला था। तब से
लगातार अमेरिका मे 'अखंड हवन' चल रहा है और जो ओजोन का छिद्र अमेरिका के
ऊपर था वह खिसक कर दक्षिण-पूर्व एशिया की तरफ आ गया है। लेकिन भारत के लोग
ओशो,मुरारी और आशाराम बापू ,रामदेव,अन्ना हज़ारे,गायत्री परिवार जैसे
ढोंगियों के दीवाने बन कर अपना अनिष्ट कर रहे हैं । परिणाम क्या है एक
विद्वान ने यह बताया है-
परम पिता से प्यार नहीं,शुद्ध रहे व्यवहार नहीं।
इसी लिए तो आज देख लो ,सुखी कोई परिवार नहीं। । परम ... । ।
फल और फूल अन्य इत्यादि,समय समय पर देता है।
लेकिन है अफसोस यही ,बदले मे कुछ नहीं लेता है। ।
करता है इंकार नहीं,भेद -भाव तकरार नहीं।
ऐसे दानी का ओ बंदे,करो जरा विचार नहीं। । परम ....। । 1 । ।
मानव चोले मे ना जाने कितने यंत्र लगाए हैं।
कीमत कोई माप सका नहीं,ऐसे अमूल्य बनाए हैं। ।
कोई चीज बेकार नहीं,पा सकता कोई पार नहीं ।
ऐसे कारीगर का बंदे ,माने तू उपकार नहीं। । परम ... । । 2 । ।
जल,वायु और अग्नि का,वो लेता नहीं सहारा है।
सर्दी,गर्मी,वर्षा का अति सुंदर चक्र चलाया है। ।
लगा कहीं दरबार नहीं ,कोई सिपाह -सलारनहीं।
कर्मों का फल दे सभी को ,रिश्वत की सरकार नहीं। । परम ... । । 3 । ।
सूर्य,चाँद-सितारों का,जानें कहाँ बिजली घर बना हुआ।
पल भर को नहीं धोखा देता,कहाँ कनेकशन लगा हुआ। ।
खंभा और कोई तार नहीं,खड़ी कोई दीवार नहीं।
ऐसे शिल्पकार का करता,जो 'नरदेव'विचार नहीं। । परम .... । । 4 । ।
आज इस पाखंडी नारे का परित्याग करने कि-सीता
राम,सीता राम कहिए जाहि विधि राखे राम ताही विधि रहिए-और वास्तविकता को
स्वीकारते हुये इस तथ्य का पालन करने का संकल्प लेना चाहिए कि,"सीता-राम,सीता-राम कहिए ---जाहि विधि रहे राम ताही विधि रहिए।"
आलसी और अकर्मण्य लोग राम को दोष दे कर बच निकलना चाहते हैं। राम ने जो
त्याग किया और कष्ट देश तथा देशवासियों के लिए खुद व पत्नी सीता सहित सहा
उसका अनुसरण करने -पालन करने की जरूरत है । राम के नाम पर आज देश को तोड़ने
और बांटने की साजिशे हो रही हैं जबकि राम ने पूरे 'आर्यावृत ' और 'जंबू
द्वीप'को एकता के सूत्र मे आबद्ध किया था और रावण के 'साम्राज्य' का
विध्वंस किया था । राम के नाम पर क़त्लो गारत करने वाले राम के पुजारी नहीं
राम के दुश्मन हैं जो साम्राज्यवादियो के मंसूबे पूरे करने मे लगे हुये
हैं । जिन वेदिक नियमों का राम ने आजीवन पालन किया आज भी उन्हीं को अपनाए
जाने की नितांत आवश्यकता है।
~विजय राजबली माथुर ©
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