Monday, October 17, 2016

युवा अब सिर्फ़ जोश में नहीं पूरे होश में ------ -मंजुल भारद्वाज



भारत के निर्णायक,जोशीले ,देशभक्त और समग्र युवा चिंतन को नमन !
-मंजुल भारद्वाज

भारत देश दुनिया का युवा देश है . युवा होने का अर्थ है , जोश , सपनों , उमंगों और उर्जा से भरा . पिछले लोकसभा चुनाव में एक पार्टी ने देश के युवाओं को अपने ‘सियासी’ चक्रव्यूह में फंसाया . जिसका जरिया था सोशल मीडिया ...सोशल मीडिया के प्रभाव और युवाओं  के ‘राजनैतिक’ जुड़ाव  का सफल प्रयोग और परिक्षण किया गया “भ्रष्टाचार विरोधी अभियान’ से . इस अभियान में युवाओं ने पूरे जोश के साथ हिस्सा लिया . इस युवा जुड़ाव से ‘सत्ता’ परिवर्तन हुआ एक राज्य स्तर पर ... और दूसरा राष्ट्रीय स्तर पर . दोनों ही फ़ायदेमंद ‘सियासी’ पार्टियां अपने अपने ‘सत्ता’ के लक्ष का ‘मोक्ष’ पा गयीं पर देश का युवा ठगा,ठगा, उदास और बदहवास है .

युवा को ‘विकास’ का सपना बेचा गया था. रोजगार का सपना बेचा गया था. युवा की ये दोनों ‘तात्कालिक’ और बुनियादी ज़रूरते हैं ..इसलिए ‘युवाओं’ ने आँख मूंदकर ‘सोशल’ मीडिया की तकनीक के सहारे स्वयं को प्रोग्रेसिव समझते हुए बिना राजनैतिक पार्टियों की ‘वैचारिक’ प्रतिबद्धता को जाने ..धडा धड ‘विकास’ के जुमले को अपना लिया और एक दक्षिण पंथी पार्टी को ऐतिहासिक बहुमत दिया . जिसका जश्न इस पार्टी ने यह कहकर मनाया की 1000 साल बाद देश में हिन्दुओं का राज आया है यानी संविधान सम्मत 1950 के बाद की सब सरकारें किसकी थी?

हिन्दु राज :

“1000 साल बाद देश में हिन्दुओं का राज” इस ऐलान से ‘युवाओं’ का माथा ठनका लेकिन अपने उदार भाव और जोश में उसने परवाह नहीं की .. पर जैसे जैसे उसके ‘बेरोज़गारी’ का वक्फा बढ़ा उसकी बैचैनी भी बढ़ी ... जिससे ‘सत्ताधारी’ पार्टी को सोचना पड़ा .. अपने भारत विजय रथ पर सवार पार्टी ने जब ‘लोकसभा’ चुनावी वादों को ‘जुमला’ करार दिया तब ‘युवाओं ने उसके विजय रथ को ‘दिल्ली’ और ‘बिहार’ में रोक दिया. युवाओं का ये  क़दम  ‘सत्ताधारी’ पार्टी  को नागवार गुजरा ..उसने  युवाओं से बदला लेना शुरू किया . इस बदले के आयाम है १. संस्थान २ स्कोलरशिप ३ राष्ट्रभक्ति 4 आरक्षण . इस चार सूत्री कार्यक्रम के तहत ‘यूनिवर्सिटी’ में युवाओं के दमन का सिलसिला शुरू हुआ , उनको अलग अलग खेमों में बांटा गया , उनकी आज़ादी की अभिव्यक्ति को ‘राष्ट्रद्रोह’ से नवाज़ा गया . उनकी स्कोलरशिप पर प्रहार किया गया .. यानी जिस युवा के कंधों पर बैठकर ये पार्टी ‘सत्ता’ में आई थी उन्ही का ‘दमन’ किया . उनके  इस दमन के षड्यंत्र में ‘रुपर्ट मर्डोक’ के दर्शन पर चलने वाला मुनाफाखोर मीडिया भी लिप्त है ..जिसके  करोड़ों रूपये की सैलरी पाने वाले टीवी एंकर या ‘खबर बेचू’ प्राणियों ने ‘देश भक्ति का ज़ोरदार ‘तड़का’ मारा और ‘युवाओं’ को देशद्रोही बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी !

दरअसल डब्लू टी ओ के माध्यम से लागू होने वाली नव उदारवादी आर्थिक ‘नीतियों’ की अंधभक्त है ये सरकार ..यानी पिछली सरकार से एक क़दम आगे ..   नव उदारवादी आर्थिक ‘नीतियों’ के फलस्वरूप सरकारी नौकरियाँ विलुप्त हो रही हैं .. और प्राइवेट नौकरियाँ पहले से ही ऊंट के मुंह में जीरे वाली बात है ..उपर से बेइंतिहा  शोषण .. ऐसे में डब्लू टी ओ के हिमायतियों ने ‘लोकतान्त्रिक व्यवस्था’ वाले देशो के ‘पत्रकारिता’ के किल्ले पर हमला कर उसको ध्वस्त किया और ‘मीडिया शॉपस यानी मीडिया की दुकानों का उदय किया . इन दुकानों को ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’ के नाम पर वैधता दी गयी  और इस वैधता को पूंजी से खरीद लिया गया . और जुमला चला ‘जो बिकेगा वो छपेगा या जो बिकेगा वो दिखाया जाएगा’ यही है ‘रुपर्ट मर्डोक’ डॉक्ट्रिन !
‘भ्रष्टाचार ' और ‘युद्ध’ :

इसलिए ‘भ्रष्टाचार मुक्त भारत’ का  मसीहा मीडिया आज ‘देशभक्ति’ की धुन गा रहा है .. रूठे युवाओं  को बहलाने के लिए उसे एक निश्चित दुश्मन को दिखा ‘युद्ध’ जितने का जोश भर रहा है . दिन रात ‘मीडिया की अदालतें लगती हैं’ जहाँ से देशभक्ति के प्रमाण पत्र बांटे जाते हैं . पर देश का युवा अब सजग हो रहा है . वो अब सोशल मीडिया का विश्लेष्णात्मक उपयोग कर रहा है . अपना पेट भरने वाले फ़िल्मी सत्ता लोलुपों की देशभक्ति उसको समझ आ रही .. ये युवा उनको कह रहा है ..आपकी देशभक्ति आधी है ..कलाकारों को हड्काने वाले फ़िल्मी सत्ता लोलुपों ज़रा ‘इस देश के उधोगपतियों’ को भी देशभक्ति का पाठ पढाओ.. उनको भी टीवी पर करोड़पति ‘खबर बेचूं’ सत्ता दलालों के साथ ललकारो ..की दुश्मन देश से व्यापार बंद करो ... देश का युवा आज जान रहा है की 30 रूपये की झालर बेचने वाले ठेले वाले का धंधा उजाड़ना चीन को सबक सिखाना है और तीन हज़ार करोड़ की ‘सरदार पटेल’ की मूर्ति चीन से बनवाना देश भक्ति !

सामाजिक ताना -  बाना तार तार :

इस ‘सत्ताधारी’ पार्टी ने इस देश के सामाजिक ताने बाने को तार तार करने में अपने सारे संगठन को झोंक रखा है . सारी  मर्यादाओं को तोड़कर “सैंया भये कोतवाल अब डर काहे का’ के मन्त्र को अमल में ला रहे हैं . सवर्ण युवाओं को रोज़गार नहीं देकर ‘आरक्षण’ के नाम पर बरगलाना की तुम्हारा रोजगार ‘आरक्षण’ वालों ने छिन लिया . गौ रक्षा के नाम पर दलितों पर अत्याचार .... हर सवाल पूछने वाले को दुश्मन देश का एजेंट बताना .... कश्मीर में आग लगवाना ... याद रहे दिसम्बर 2015 तक कश्मीर ( छुट पुट घटनाओं ) के बावजूद शांत था .. पर तब से आज कश्मीर की हालात क्या हो गयी है  .. जब की वहां तथाकथित ‘राष्ट्रवादियों’ की गठबंधन सरकार है .::
 फ़ौज .. फ़ौज है .. उसे फ़ौज ही रहने दें  :

जो हमारे देश को बुरी नज़र से देखेगा ..हमारी फ़ौज उसको बर्दाश्त नहीं करेगी और देश की जनता, देश का युवा ‘फ़ौज’ के साथ है .. पर ‘विकास’ के जुमले वाली सरकार अब ‘सेना’ का उपयोग अपनी  देशभक्ति की भट्टी में कर रही है ... पैड मीडिया की मदद से रोज़ देशभक्ति के हवन में ‘सेना’ अपनी आहुति दे रही है  .. देश के युवाओं  का आज स्पष्ट मत है ...वो राष्ट्र की सुरक्षा के लिए फ़ौज को नमन करता है  ! फ़ौज की आड़ लेकर राजनीति के गिरते स्तर पर है उसकी नज़र है  .. ये राजनैतिक पार्टियों के पतन के कफन में और एक कील है ..... फ़ौज .. फ़ौज है .. उससे फ़ौज ही रहने दें तो अच्छा है इसी में  राष्ट्र और राजनैतिक बिरादरी की भलाई है ... 

जोश  नहीं  होश :

इस गिरते राजनैतिक स्तर और माहौल में ये युवा अब सिर्फ़ जोश में नहीं पूरे होश में अपने नए ‘राजनैतिक विकल्प’ खोज रहा है. एक ऐसा ‘राजनैतिक विकल्प’ जो इस देश के संविधान के मूल्यों को जतन से संभाले और उसके आदर्शों के आईने में उसके सपनों को पूरा करे .ये देश सही में विकसित  और खुशहाल हो ! भारत के ऐसे निर्णायक,जोशीले ,देशभक्त और समग्र युवा चिंतन को नमन !
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संक्षिप्त परिचय -

“थिएटर ऑफ रेलेवेंस” नाट्य सिद्धांत के सर्जक व प्रयोगकर्त्ता मंजुल भारद्वाज वह थिएटर शख्सियत हैं, जो राष्ट्रीय चुनौतियों को न सिर्फ स्वीकार करते हैं, बल्कि अपने रंग विचार "थिएटर आफ रेलेवेंस" के माध्यम से वह राष्ट्रीय एजेंडा भी तय करते हैं।




एक अभिनेता के रूप में उन्होंने 16000 से ज्यादा बार मंच से पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।लेखक-निर्देशक के तौर पर 28 से अधिक नाटकों का लेखन और निर्देशन किया है। फेसिलिटेटर के तौर पर इन्होंने राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर थियेटर ऑफ रेलेवेंस सिद्धांत के तहत 1000 से अधिक नाट्य कार्यशालाओं का संचालन किया है। वे रंगकर्म को जीवन की चुनौतियों के खिलाफ लड़ने वाला हथियार मानते हैं। मंजुल मुंबई में रहते हैं। उन्हें 09820391859 पर संपर्क किया जा सकता है।


  ~विजय राजबली माथुर ©

2 comments:

Bharat Bhushan said...

युद्ध अपने आप ने भ्रष्ट आचरण है इस में भ्रष्टाचार न हो यह हो नहीं सकता।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (18-10-2016) के चर्चा मंच "बदलता मौसम" {चर्चा अंक- 2499} पर भी होगी!
शरदपूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'