"नतीजन योगी की समता पिछले मुख्यमंत्रियों से नही की जा सकती है। कुछ मायनों में तीसरे मुख्यमंत्री चन्दुभानु गुप्त से संभव है। प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष की अनिच्छा के बावजूद भी गुप्ताजी मुख्यमंत्री बन गये थे। हालांकि लखनऊ पूर्व तथा मोदहा (महोबा) से विधानसभा चुनाव लगातार हार गये थे। पार्टी के भीतरी शत्रुओं तथा खुद मुख्यमंत्री संपूर्णानन्द कारक बने थे। फिर भी अपने आत्मबल से गुप्ताजी 1960 में सीधे शीर्षपद पर जा पहुंचे बिना विधानसभा पहुंचे। फिर उन्हें हटाने के लिए कामराज योजना नेहरू लाये। पार्टी काम हेतु गुप्ताजी को सरकार छोड़ना पड़ा।
योगी जी का भी सत्ता तक सफर सरल नही था। भाजपायी महाबलियों को ठेलकर वे रेस जीते। ऐसा उदाहरण कुछ मायनो में मौर्यराज में विप्र सेनापति पुष्यमित्र शुंग का मिलता है जिसने शासकीय अहिंसा के कारण हिन्दुओं पर हो रहे म्लेच्छ हमले का खात्मा किया था।
अब विश्लेषण कर लें कि योगी क्या कर रहें हैं और क्या करेंगे ?" --- के विक्रम राव
****** वरिष्ठ पत्रकार के विक्रम राव साहब लिखते हैं कि, यू पी के तत्कालीन सी एम चंद्र भानु गुप्त को हटाने के लिए नेहरू 'कामराज प्लान ' लाये थे। लेकिन हकीकत यह नहीं है। तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राधा कृष्णन के एक अंगरक्षक रहे एक मेजर साहब ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि, राधाकृष्णन जी खुद पी एम बनना चाहते थे अतः तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष के कामराज नाडार से तमिल भाषा में वार्ता कर उन्होने ही 1963 में ' कामराज प्लान ' बनवाया था जो कि, नेहरू जी को पी एम पद से हटाने के लिए था न कि, यू पी के सी एम चंद्रभानु गुप्त को क्योंकि उस प्लान के अंतर्गत तमाम सी एम और कुछ मंत्री सरकार से बाहर हुये और संगठन में लगाए गए। जबकि, नेहरू जी को उन मेजर साहब ने आगाह कर दिया था अतः दिखावे में तो उन्होने पद- त्याग की इच्छा की किन्तु समर्थकों के जरिये अपने पद - त्याग प्रस्ताव को रद्द करा दिया। चन्द्र्भाणु गुप्त जी ने फैजाबाद की तत्कालीन सांसद सुचेता कृपलानी जी को सी एम बनवा दिया और पहले के किसी मंत्री व विधायक को मौका नहीं मिलने दिया था। अतः 'कामराज प्लान सी बी गुप्ता को हटाने के लिए नेहरू जी का नहीं था बल्कि नेहरू जी को हटाने के लिए डॉ राधाकृष्णन जी का था जो विफल हो गया था।
(विजय राजबली माथुर )
K Vikram Rao
Yogi Adityanath
विगत सत्तर वर्षों में बीसियों मुख्यमंत्री यूपी में आये-गये। मगर उनके नाम से उनका दौर जुड़ नहीं पाया। महंत आदित्यनाथ योगी का जुदा हैं, वे निराले भी। इसीलिए उनका जमाना योगीयुग कहलाने लगा है। जुमा जुमा पखवाडे भर में ही। कारण तलाशने के लिए गहनशोध की दरकार नहीं है। पहचान अलग हो तो विशिष्ट आ ही जाती है। मात्र परिधान, ललाट, गात्रक इत्यादि से ही नहीं। बात अंदर की है। वैचारिक, अतः मस्तिष्कीय है। नतीजन योगी की समता पिछले मुख्यमंत्रियों से नही की जा सकती है। कुछ मायनों में तीसरे मुख्यमंत्री चन्दुभानु गुप्त से संभव है। प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष की अनिच्छा के बावजूद भी गुप्ताजी मुख्यमंत्री बन गये थे। हालांकि लखनऊ पूर्व तथा मोदहा (महोबा) से विधानसभा चुनाव लगातार हार गये थे। पार्टी के भीतरी शत्रुओं तथा खुद मुख्यमंत्री संपूर्णानन्द कारक बने थे। फिर भी अपने आत्मबल से गुप्ताजी 1960 में सीधे शीर्षपद पर जा पहुंचे बिना विधानसभा पहुंचे। फिर उन्हें हटाने के लिए कामराज योजना नेहरू लाये। पार्टी काम हेतु गुप्ताजी को सरकार छोड़ना पड़ा।******
योगी जी का भी सत्ता तक सफर सरल नही था। भाजपायी महाबलियों को ठेलकर वे रेस जीते। ऐसा उदाहरण कुछ मायनो में मौर्यराज में विप्र सेनापति पुष्यमित्र शुंग का मिलता है जिसने शासकीय अहिंसा के कारण हिन्दुओं पर हो रहे म्लेच्छ हमले का खात्मा किया था।
अब विश्लेषण कर लें कि योगी क्या कर रहें हैं और क्या करेंगे ? पदारूढ़ होते ही योगी ने गाय को अहमियत दी। सही भी हैं। गोरक्षधाम के मुखिया रहें हैं, तो यह स्वाभाविक है। यूं भी जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी गाय के नाम पर सत्ता पाने की राजनीति करती रही। ठोस कुछ किया नहीं। लखनऊ की सड़कों पर 1953 में युवा अटल बिहारी वाजपेयी नारा लगाते रहे ”कटती गौयें करे पुकार, बन्द करो यह अत्याचार।“ अटलजी सत्ता के सोपान का आरोहित होते रहे। उधर गायें भी कटती रहीं। गोरक्षा पर राष्ट्रीय कदम नहीं उठा सके। सत्ता के केन्द्र लोकभवन में प्रवेश करते ही योगी ने गोकशी कानून पर सख्ती की। बूचडखानों पर ताला डलवा दिया। सवा सौ साल पुराने टुण्डे कवाब की दुकान के मालिक मोहम्मद उस्मान ने कहा कि वे गोश्त अन्य जिलों से आयात करेंगे क्योंकि लखनऊ में एक भी वैघ वघशाला नहीं है। सोचें जरा इतने वर्षों से राजधानी में अलग रंग की सरकारें आई और बूचड़खाने बिना लाइसेंस के पनपते रहे। मायावती राज में कानून बना था कि सचिवालय में पान और गुटखा प्रतिबंधित हो। मनभावन कदम था। संगमरमर से निर्मित फर्श और चमकती दीवारें चन्द महीनों बाद इतनी विकृत हो गई कि मानो पीक नहीं पेंट हो और कलाकृतियां चित्रित हो रहीं थें। अब वे चित्रकारी घिसकर, रगड़कर मिटाई जा रही है।
कुछ ज्यादा पढे़ लिखे लोगों को ये कार्य छोटा लगेगा। वही आरोप कि प्रधानमंत्री अब वैश्विक समस्याओं पर ध्यान न देकर स्वच्छ भारत पर केंद्रित है। झाडू थामे है। सत्ता मोह से कभी भी न अघानेवाले सोनिया कांग्रेसियों ने कोयला, रेत का खनन, टूजी ठेका, बैंक से उधारी, हेलिकाप्टर खरीदी आदि को प्राथमिक योजनाएं बनाईं थीं। इधर यूपी में मायावती द्वारा राजकोष की लूट पहला कार्यक्रम रहा। उनके मुख्यमंत्री काल में वर्तनी ही बदल गयी थी दौलत तथा दलित के बीच।
अगर मोदी Narendra Modi शासन की तर्ज पर योगी ने भी स्वच्छ प्रदेश का संकल्प लिया है वो यह सीख महात्मा गांधी से ही मिली है। बापू ने नेहरू, पटेल, मौलाना आजाद आदि से सेवाग्राम आश्रम में पहले संडास साफ करवाया था। घमण्ड तोड़ने का यह रामबाण है। बापू भारत की आत्मा को भलीभांति पहचानते थे। गुजराती का प्रभाव मोदी पर पड़ना तार्किक रहा। ठीक भी। अर्थात योगी के गुटखामुक्त सचिवालय की योजना को इसी नजरिये से देखना चाहिए।
बड़ी बड़ी विकास योजनाओं का दम भरनेवाले जब आमजन की दैनिक आवश्यकताओं और समस्याओं को टाल देते हैं, तो वही हश्र होता है जो काम बोलनेवालों का हुआ। काम उनका “टें” बोल गया।
मसलन योगी ने सरकारी नौकरों को साढ़े नौ बजे कार्यस्थल में आने का आदेश दिया है। अब दूरदराज गांव से देहातीजन लखनऊ सचिवालय आयें और बडे़ साहब मीटिंग में, पूजा में, बाथरूम में आदि जगहों पर व्यस्त रहें तो वही संदेश जायेगा कि 27 साल से बेहाल यूपी। इसीलिए योगी ने सुशासन की शुरूआत पुलिस थानों से की है। प्रधानमंत्री कहते रहे कि थाने सभी सपा कार्यालय हो गये हैं। जिला प्रशासन ही पूर्णतया यादवमय हो गया था। गोरक्षक योगी अब इन यदुवंशियों को हटा रहे हैं। उनका पहला आदेश तो था कि सैफई गांव में चार घंटे बिजली सप्लाई कम कर दी गई। सैफई समानान्तर राजधानी थी। अगले माह नवरात्रि पर बिजली पूरी आयेगी अर्थात भेदभाव की नीति नकार दी जायेगी। कुछ शमशान-कब्रिस्तान की तर्ज पर।
भेदभाव तो कम होता खूब दिख रहा है। हद पार कर गया था जब अखिलेश यादव Akhilesh Yadav का राज होता था। उदाहरणार्थ उर्दू को तरजीह और संस्कृत अध्यापकों को वेतन न मिलना। गोरखधाम में वेद शिक्षा के प्रबंधक योगी ने विकृति खत्म कर दी है। सरकारी वाहनों पर से हूटर हटवाया है। कारण है कि ध्वनि प्रदूशण दूर करे। मगर इससे राजमद भी टूटेगा।
तीन तलाक से मुक्ति दिलाने के आश्वासन पर त्रस्त मुस्लिम महिलाओं का बहुमत पाने वाले योगी अब मनचलों से बेटियों को निजात दिलाने के लिए क्रियाशील हो गये है। हिरासत में रोमियों की संख्या बढ़ रही है।
खनन माफिया तो सपा सरकार में सत्ता पर सवार थे, सुरक्षित थे। योगी ने एक महिला Archana Pandey को खनन राज्य मंत्री नियुक्त किया है। खुद मंत्री हैं। नदियों का संरक्षण (बालू अब चोरी नहीं किया जायेगा)।
ये सब तो अल्पकालीन काम योगी ने एक आंचलिक पद्धति पर किया है। उनका सबसे बड़ा काम, यदि सफल हुआ तो, है “जाति तोड़ो”।
वही नारा जो राममनोहर लोहिया तथा दीनदयाल उपाध्याय ने दिया था। लोहिया के नारे को सपाइयों ने घुमाफिरा कर एक ही जाति के लिए प्रगति का मार्ग बना दिया। योगी ने इसे सुधारने का वादा किया है। इसका आधारभूत कारण भी है। यादव और जाटव के अलावा यूपी में मानों कोई पिछड़ा और दलित है ही नहीं। ये दोनों जातिवाले कुलश्रेष्ठ बना दिये गये थे। उन्हें समतल बनाकर जाति तोड़ो के अभियान की दिशा में एक सम्यक शुरूआत होगी। याद कीजिए जब 1963 के लोकसभाई उपचुनाव के जौनपुर से जनसंघ पण्डित दीनदयाल उपाध्याय हार गये थे क्योंकि उन्होंने विप्रसभा को संबोधित करने से इंकार कर दिया था। यही उपाध्याय जी आज योगी के प्रथम मार्गदर्षक है। उनका एकात्म मानववाद चिन्तन हैं, प्रकाश स्तंभ है।
पड़ोसी बिहार के पुरोधाओं से वैचारिक मतविशमता भले ही हो पर योगी प्रदेश में भी शराबंदी के इच्छुक हैं। यूं भी अखिलेश यादव सरकार ने अत्यंत अनैतिक कार्य किया। शराब व्यापारियों को अगले वर्ष तक ठेका दे डाला जो गैरकानूनी है। संसाधन के नाम पर खुली लूट हुई है। शराब माफिया, दिवंगत पोन्टी चड्डा के मायावती और अखिलेश यादव खास मित्र रहे। नियम ताक पर थे। सिद्धांतों का तो सवाल ही नही उठता था। उनपर अब योगी की कोपदृष्टि पड़ने की प्रतीक्षा है।
लेकिन योगी पर अभी राजनीतिक कठिनाई आशांकित है। करीब छह मंत्री है जिन्हें विधानमंडल का सदस्य बनना है। किस क्षेत्र से भेजेंगे ? स्वयं भी चुनाव लडेंगे। फिर दो लोकसभाई उपचुनाव होंगे। अपना गोरखपुर से तथा केशव मौर्य का फूलपुर से। दोनों सीटों पर प्रधानमंत्री की साख दांव पर लगी होगी। योगी की प्रथम छमाई की भी परीक्षा होगी।
लेकिन सबसे बड़ा वही प्रश्न होगा मुसलमानों का मिजाज दुरूस्त रखने का। विगत तीन दशकों से मुस्लिमपरस्त, तुष्टिकरण वाली राजनीति से मुसलमान वोट बैंक बड़ा सौदागर बन गया है। मगर मोदी ने साबित कर दिया कि बिना मुस्लिम वोट के भी सत्ता जीती जा सकती है। मोदी की इसी अद्भुत सफलता को योगी को बलवती बनाना होगा ताकि मजहब के नाम पर लामबंदी और सियासत खत्म हो। फिलहाल किसानों का कर्जा माफ करना तथा गोरखपुर से सटे हुये नेपाल की नदियों से पूर्वांचल में आनेवाले बाढ़ से त्रस्त क्षेत्र का परित्राण करना नये मुख्यमंत्री की तात्कालिक चुनौती है। तब योगी का योगफल दिखेगा।
के विक्रम राव
पत्रकार
9415000909
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क्या ऐसा होगा?
09/08/2016 03:02
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अयोध्या के बाबरी प्रकरण के बाद उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन की सरकार का अस्तित्व आया था। काशीराम जी को अपने गृह जनपद इटावा से मुलायम सिंह जी ने सांसद तक बनवाया था। यदि यह गठबंधन कायम रहता तो सदा-सर्वदा के लिए उत्तर प्रदेश से भाजपा का अस्तित्व समाप्त हो जाता। अतः संघप्रिय गौतम के माध्यम से मायावती जी को मुलायम सिंह जी के विरुद्ध करके वह सरकार गिरा दी गई। भाजपा के समर्थन से कई बार मायावती जी मुख्यमंत्री बनीं किन्तु उनकी सरकार भाजपा द्वारा ही हर बार गिरा दी गई। इसके बावजूद गुजरात नर-संहार के बाद 2002 में मायावती जी ने अटल व मोदी के साथ भाजपा का वहाँ प्रचार किया था।
2014 के लोकसभा चुनावों से काफी पहले व्हाईट हाउस में बराक हुसैन ओबामा द्वारा एक अंतर्राष्ट्रीय गोपनीय बैठक की गई थी जिसमें भारत से भी कई दलित कहे जाने वाले चिंतक शामिल हुये थे जिनमें से एक लखनऊ के विद्वान भी थे। वहीं पर मुस्लिमों के विरुद्ध विश्व व्यापी मुहिम चलाये जाने और उसमें प्रत्येक देश के दलित माने जाने वाले लोगों का सहयोग लेने की रूप रेखा तय की गई थी। उसी अनुसार 2014 के लोकसभा चुनावों में समस्त दलित कहे जाने वाले वर्ग का वोट बसपा के बजाए भाजपा को गया था और बसपा का एक भी सांसद न जीत सका था। उसी मुहिम का परिणाम है बसपा से हाल ही में हुई टूटन। मायावती जी को उनके खास लोगों ने उसी अंदाज़ में उनको झटका दिया है जिस अंदाज़ में 1995 में उन्होने खुद मुलायम सिंह जी को झटका दिया था तब उनको भी भाजपा का समर्थन हासिल था जिस प्रकार अब उनको झटका देने वालों को हासिल हुआ है।
2017 के आसन्न चुनावों में यदि बसपा-सपा गठबंधन बना कर चुनाव लड़ा जाये तो अब भी भाजपा के मंसूबों को ध्वस्त किया जा सकता है वरना अभी तो भाजपा बसपा को ध्वस्त करने के लिए गोपनीय समर्थन देकर सपा सरकार फिर से बनवा देगी लेकिन उसके बाद सपा को उसी प्रकार तोड़ेगी जिस प्रकार अभी बसपा को तोड़ा है। मायावती जी व मुलायम सिंह जी दूरदर्शिता का परिचय दें तो दीर्घकालीन मजबूत गठबंधन बना कर न केवल उत्तर प्रदेश में वरन सम्पूर्ण देश में भाजपा को परास्त कर सकते हैं। लेकिन क्या ऐसा होगा?
https://www.facebook.com/vijai.mathur/posts/1137504919644816
ज़ाहिर है ऐसा नहीं हुआ और इसी लिए भाजपा का सत्तारोहण हुआ ।
****** वरिष्ठ पत्रकार के विक्रम राव साहब लिखते हैं कि, यू पी के तत्कालीन सी एम चंद्र भानु गुप्त को हटाने के लिए नेहरू 'कामराज प्लान ' लाये थे। लेकिन हकीकत यह नहीं है। तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राधा कृष्णन के एक अंगरक्षक रहे एक मेजर साहब ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि, राधाकृष्णन जी खुद पी एम बनना चाहते थे अतः तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष के कामराज नाडार से तमिल भाषा में वार्ता कर उन्होने ही 1963 में ' कामराज प्लान ' बनवाया था जो कि, नेहरू जी को पी एम पद से हटाने के लिए था न कि, यू पी के सी एम चंद्रभानु गुप्त को क्योंकि उस प्लान के अंतर्गत तमाम सी एम और कुछ मंत्री सरकार से बाहर हुये और संगठन में लगाए गए। जबकि, नेहरू जी को उन मेजर साहब ने आगाह कर दिया था अतः दिखावे में तो उन्होने पद- त्याग की इच्छा की किन्तु समर्थकों के जरिये अपने पद - त्याग प्रस्ताव को रद्द करा दिया। चन्द्र्भाणु गुप्त जी ने फैजाबाद की तत्कालीन सांसद सुचेता कृपलानी जी को सी एम बनवा दिया और पहले के किसी मंत्री व विधायक को मौका नहीं मिलने दिया था। अतः 'कामराज प्लान सी बी गुप्ता को हटाने के लिए नेहरू जी का नहीं था बल्कि नेहरू जी को हटाने के लिए डॉ राधाकृष्णन जी का था जो विफल हो गया था।
(विजय राजबली माथुर )
~विजय राजबली माथुर ©
1 comment:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (30-03-2017) को
"स्वागत नवसम्वत्सर" (चर्चा अंक-2611)
पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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