Tuesday, February 13, 2018

शिव को समझते नहीं पूजा के नाम पर ढोंग में फँसते हैं ------ विजय राजबली माथुर



इससे पूर्व लेख के जरिये विद्व्जनो के उपरोक्त निष्कर्ष प्रस्तुत किए थे। लेकिन लोग मनन किए बगैर पुरोहित - व्यापारी गठजोड़ द्वारा निरूपित पद्धति को ढोते जा रहे हैं। वस्तुतः ' शिव ' हमारा भारत वर्ष देश है , इस देश की प्रकृति ' पार्वती ' है और उनके पुत्र गणेश से अभिप्राय इस देश के राष्ट्रपति से है। 
गणेश = गण + ईश = जनता का नायक अर्थात राष्ट्रपति। 
' लिंग ' स्वरूप का अभिप्राय यह है कि , यदि हम अखिल ब्रह्मांड को एक मानव आकृति के रूप में लें तो हमारी ' पृथ्वी ' का स्थान ब्रह्मांड में वही है जो मानव शरीर में लिंग/ योनि  का होता है। सृजन या सृष्टि का हेतु होने के कारण मानव शरीर में लिंग/ योनि  एक महत्वपूर्ण  स्थान रखता है। देश के निवासियों से यह अपेक्षा है कि वे अपने इस देश की रक्षा उसी प्रकार करें जिस प्रकार शरीर में लिंग / योनि की करते हैं। 
परंतु बुद्धि, ज्ञान , विवेक को प्रयोग न करके लोग लिंग की स्थापना करके उसे शिव मानते हुये पूजते हैं बजाए संरक्षण करने के , यह मात्र ढोंग है और पूजा नहीं है। 
बेलपत्र को सामग्री में मिला कर आहुती देने से उदर - विकार दूर होते हैं किन्तु ढोंगवाद में बजाए हवन में आहुती देने के बेल - पत्र को व्यर्थ नष्ट कर दिया जाता है। वात - पित्त - कफ आदि जब तक शरीर को धारण करते हैं तब तक ' धातु 'और जब मलिन करने लगते हैं तब ' मल ' एवं जब दूषित करने लगते हैं तब ' दोष ' कहलाते हैं। ये त्रिदोष शरीर को शूल करते हैं। इनसे बचने के लिए अर्थात  ' त्रिशूल ' निवारण के लिए तीन फ़लक वाले बेलपत्र से आहुती का विधान रखा गया था लेकिन चित्रकारों ने ' त्रिशूल ' हथियार बना कर शिव, पार्वती और गणेश का मानवीकरण करके प्रस्तुत कर दिया और ब्राह्मण - व्यापारी गठजोड़ ने उसी स्वरूप की पूजा में गण - जनता को उलझा दिया। 
शिवरात्रि के अर्थ को समझ कर शिव की आराधना की जाए तब ही जन - कल्याण संभव है अन्यथा वही ढाक के तीन पात। 
 ~विजय राजबली माथुर ©

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