लखनऊ, 06-05-2018 :
कल दिनांक 05 मई 2018 को यू पी प्रेस क्लब, हजरतगंज, लखनऊ में कवि और लेखक कौशल किशोर की दो पुस्तकों ' वह औरत नहीं महानद थी ' ( कविता संग्रह ) एवं ' प्रतिरोध की संस्कृति ' ( लेखों का संग्रह ) का विमोचन - लोकार्पण तथा समीक्षा कार्यक्रम वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना की अध्यक्षता में श्याम अंकुरम के कुशल संचालन द्वारा सम्पन्न हुआ।
* प्रारम्भ में कौशल किशोर द्वारा कुछ चुनी हुई कविताओं का पाठ और उनका संक्षिप्त परिचय दिया गया। इनमें 'तानाशाह ' कविता आज की परिस्थितियों पर भी उतनी ही लागू होती है जितनी रचना के समय थी।
' वह औरत नहीं महानद थी ' में 1977 से 2015 तक की कविताओं का संकलन किया गया है। शीर्षक कविता के संबंध में उन्होने बताया कि यह 08 मार्च 2010 के अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर निकले जुलूस में एक विकलांग महिला के जोश व साहस की गाथा है।
* डॉ चंद्रेश्वर ने अपने उद्बोधन में प्रकाश डाला कि, कौशल किशोर की कवित्त यात्रा आधी सदी की है किन्तु 1967 से 1976 तक की कविताओं को इस संग्रह में शामिल नहीं किया गया है। यह संग्रह तीन काल खंड की कविताओं को शामिल करता है। प्रथम काल 1977 से 1986 तक की कविताओं का है जिनमें आक्रोश, संवेग और व्यवस्था से टकराव का जुनून पाया जाता है।
द्वितीय काल 1990- 91 की कविताओं का है जिनमें स्थिरता भाव है। लगभग 16-17 वर्ष कविता रचना का विश्राम काल रहा और फिर,
तृतीय काल 2009 से 2015 तक की कविताओं का है जिनमें सांझी विरासत को बचाने की लालसा है । इनकी भाषा सहज, स्थिर और संवाद वृद्धि की है।
* जनसंदेश टाईम्स के प्रधान संपादक सुभाष राय ने काव्य - संग्रह की दो कविताओं ' मुट्ठी भर रेत ' और ' अनंत यात्रा ' का उल्लेख करते हुये बताया कि यह संग्रह कौशल किशोर को एक बड़े कवि के रूप में प्रतिष्ठित करता है।
* लेखक, नाटककार राजेश कुमार ने बताया की ' प्रतिरोध की संस्कृति ' में एक पत्रकार, टिप्पणीकार के रूप में 2009 से लिखे लेखों को संकलित किया गया है। इनमें सरकारों द्वारा संस्कृति संबंधी विरोधाभासों की प्रतिक्रिया परिलक्षित होती है।
* एक अन्य विद्वान का मत था कि, समय और राजनीति का इतिहास है यह काव्य - संग्रह।
* वरिष्ठ पत्रकार गिरीश चंद्र श्रीवास्तव ने कहा कि, बदलाव मनुष्य की चेतना को बदलने से आता है और इस कसौटी पर यह काव्य - संग्रह एक सफल प्रयास है। प्रथम कविता ' कैसे कह दूँ ' इनके कवि रूप को स्थापित करती है। इनके निष्कर्ष महत्वपूर्ण है जिनके द्वारा 1992 से बढ़े पूंजीवाद - निजीकरण का प्रतिरोध किया गया है।
* कहानीकार शिवमूर्ति ने ' सुजानपुर के लड़के नाटक खेल रहे हैं ' कविता का विशेष उल्लेख करते हुये काव्य - संग्रह को उपयोगी बताया।
* इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव राकेश ने कहा कि, कविता की पहचान यह है कि, उसे पढ़ - सुन कर क्लासिक चीजों की याद आ जाये तो कवि सफल है। इस संदर्भ में उनको कौशल किशोर की कविता से कैफी आजमी याद आ जाते हैं। उन्होने इस कार्यक्रम को कार्ल मार्क्स की 200 वीं जयंती के अवसर पर रखे जाने को ऐतिहासिक बताया।
* अपने अध्यक्षीय उद्बोद्धन में नरेश सक्सेना ने काव्य संग्रह से उद्धृत कुछ कंठस्थ कविताओं की चर्चा की और संग्रह को एक यादगार संकलन बताया। उन्होने इंगित किया कि, कौशल किशोर के साहित्य के संबंध में एक - पृष्ठीय परिशिष्ट 05 मई के अंक में देने के लिए सुभाष राय का भी सम्मान किया जाना चाहिए था।
भगवान स्वरूप कटियार ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुये आमत्रित विद्वानों व साहित्य - प्रेमी श्रोताओं का आभार व्यक्त किया।
मंचस्थ विद्वान वक्ताओं के अतिरिक्त श्रोताओं में जिनकी उपस्थिति विशेष उल्लेखनीय रही उनमें डॉ अनिता श्रीवास्तव, रोली शंकर, डॉ निर्मला सिंह, मंजू प्रसाद, दीपा पाण्डेय, राम किशोर, ओ पी सिन्हा, के के शुक्ल, शकील सिद्दीकी, राजीव यादव ,आदियोग,विजय राजबली माथुर भी थे।
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05 मई 2018 के जनसंदेश टाईम्स के पृष्ठ - 8 पर कौशल किशोर के साहित्य से संबन्धित रचनाएँ :
~विजय राजबली माथुर ©
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1 comment:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (08-05-2017) को "घर दिलों में बनाओ" " (चर्चा अंक-2964) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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