Thursday, January 24, 2019

प्रियंका गांधी को खूब सोच-समझ कर ही निर्णय लेने होंगे ------ विजय राजबली माथुर

  
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BBC News Hindi

Published on Jan 23, 2019
कांग्रेस ने 2019 आम चुनाव से पहले प्रियंका गांधी को आधिकारिक तौर पर सियासी मैदान में उतार दिया है. कांग्रेस ने प्रियंका को पार्टी का महासचिव बनाया है और उन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश की ज़िम्मेदारी दी है. प्रियंका गांधी ये ज़िम्मेदारी फ़रवरी 2019 के पहले हफ़्ते से संभालेंगी. राहुल गांधी ने मीडिया से बात करते हुए कहा, ''प्रियंका और ज्योतिरादित्य को यूपी दो महीने के लिए नहीं भेजा है. मैंने इस मिशन के साथ दोनों को यूपी भेजा है कि सबके विकास के लिए वो काम करें. ताकि यूपी के युवा को जो चाहिए वो दे सकें. मुझे काफी खुशी है कि मेरी बहन बहुत कर्मठ और सक्षम हैं. हम यूपी की जनता को कहना चाहते हैं कि आपने अब बहुत समय वक़्त ज़ाया किया है. अब आप बीजेपी को हटाइए. हम यूपी को नंबर-1 प्रदेश बनाएँगे.'' प्रियंका के चुनाव लड़ने पर राहुल गांधी ने कहा, ''ये उनके ऊपर है. हम कहीं भी बैकफुट पर नहीं खेलेंगे. जहां मौका मिलेगा हम फ्रंटफुट पर खेलेंगे.'' रॉबर्ट वाड्रा ने प्रियंका को बधाई दी.

BBC News Hindi
Published on Jan 24, 2019


प्रियंका गांधी को कांग्रेस ने महासचिव बनाकर आम चुनावों का बिगुल फूंक दिया है. उन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश का ज़िम्मा सौंपा गया है. इससे पहले वो सक्रिय राजनीति से दूर रहती थीं और अपनी मां सोनिया गांधी और भाई राहुल गांधी के लिए आयोजित चुनावी रैलियों और सभाओं में हिस्सा लिया करती थीं. इन सभाओं में वो जब बोलती थीं तो अपने परिवार और जनता के बीच रिश्तों की बात किया करती थीं. साथ ही नरेंद्र मोदी पर भी हमला बोलने में हिचकती नहीं थी. आइए देखें कि अतीत में वो मोदी के बारे में क्या कहती आई हैं और आगे चलकर चुनावी सभाओं में कैसे सीन देखने को मिल सकते हैं  : 








 


जिस प्रकार किसी वनस्पति का बीज जब बोया जाता है तब अंकुरित होने के बाद वह धीरे-धीरे बढ़ता है तथा पुष्पवित, पल्लवित होते हुये फल भी प्रदान करता है। उसी प्रकार जितने और जो कर्म किए जाते हैं वे भी समयानुसार सुकर्म, दुष्कर्म व अकर्म भेद के अनुसार अपना फल प्रदान करते हैं। यह चाहे व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक, राजनीतिक क्षेत्र में हों अथवा व्यवसायिक क्षेत्रों में। पालक, गन्ना और गेंहू एक साथ बोने पर भी भिन्न-भिन्न समय में फलित होते हैं। उसी प्रकार विभिन्न कर्म एक साथ सम्पन्न होने पर भी भिन्न-भिन्न समय में अपना फल देते हैं। 16 वीं लोकसभा चुनावों में भाजपा की सफलता का श्रेय RSS को है जिसको राजनीति में मजबूती देने का श्रेय इंदिरा जी व राजीव जी को जाता है। 

आज से 63  वर्ष  पूर्व  इन्दिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री बनी थीं । यदि  27 मई 1964 को देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का निधन होने  के तुरंत  बाद कार्यवाहक प्रधानमंत्री गुलज़ारी लाल नन्दा को  कांग्रेस अपना नेता चुन कर स्थाई प्रधानमंत्री बना देती तो कांग्रेस की स्थिति सुदृढ़ रहती किन्तु इन्दिरा जी पी एम नहीं बन पातीं। इसलिए समाजवाद के घोर विरोधी लाल बहादुर शास्त्री जी को पी एम पद से नवाजा गया था जिंनका 10/11 जनवरी 1966 को ताशकंद में निधन हो गया फिर कार्यावाहक पी एम तो नंदा जी ही बने किन्तु उनकी चारित्रिक दृढ़ता एवं ईमानदारी के चलते  उनको कांग्रेस संसदीय दल का नेता न बना कर इंदिराजी को पी एम बनाया गया। 1967 के चुनावों में उत्तर भारत के अनेक राज्यों में कांग्रेस की सरकारें न बन सकीं। केंद्र में मोरारजी देसाई से समझौता करके इंदिराजी पुनः पी एम बन गईं। अनेक राज्यों की गैर -कांग्रेसी सरकारों में 'जनसंघ ' की साझेदारी थी। उत्तर प्रदेश में प्रभु नारायण सिंह व राम स्वरूप वर्मा (संसोपा), रुस्तम सैटिन व झारखण्डे राय(कम्युनिस्ट ), प्रताप सिंह (प्रसोपा), पांडे  जी आदि (जनसंघ) सभी तो एक साथ मंत्री थे। बिहार में ठाकुर प्रसाद(जनसंघ ), कर्पूरी ठाकुर व रामानन्द तिवारी (संसोपा ) एक साथ मंत्री थे। मध्य प्रदेश में भी यही स्थिति थी। इन्दिरा जी की नीतियों से कांग्रेस को जो झटका लगा था उसका वास्तविक लाभ जनसंघ को हुआ था। जनसंघी मंत्रियों ने प्रत्येक राज्य में संघियों को सरकारी सेवा में लगवा दिया था जबकि सोशलिस्टों व कम्युनिस्टों ने ऐसा नहीं किया कि अपने कैडर को सरकारी सेवा में लगा देते। 


1974 में जब जय प्रकाश नारायण गुजरात के छात्र आंदोलन के माध्यम से पुनः राजनीति में आए तब संघ के नानाजी देशमुख आदि उनके साथ-साथ उसमें शामिल हो गए।


1977 में मोरारजी देसाई की जनता पार्टी की केंद्र सरकार में आडवाणी व बाजपेयी साहब जनसंघ  कोटे से  तो राजनारायन संसोपा कोटे से मंत्री थे। बलराज माधोक तो मोरारजी देसाई को 'आधुनिक श्यामा प्रसाद मुखर्जी ' कहते थे। जनसंघी मंत्रियों ने सूचना व प्रसारण तथा विदेश विभाग में खूब संघी प्रविष्ट करा दिये थे।  


1977 में उत्तर प्रदेश में राम नरेश यादव (पूर्व राज्यपाल, मध्य प्रदेश) की जनता पार्टी सरकार में कल्याण सिंह(जनसंघ), मुलायम सिंह(संसोपा ) आदि सभी एक साथ मंत्री थे। पूर्व जनसंघ गुट के मंत्रियों ने संघियों को सरकारी सेवाओं में खूब एडजस्ट किया था। 

 1975 में संघ प्रमुख मधुकर दत्तात्रेय 'देवरस ' ने जेल से बाहर आने हेतु इंदिराजी से एक गुप्त समझौता किया कि भविष्य में संकट में फँसने पर वह इंदिराजी की सहायता करेंगे। और उन्होने अपना वचन निभाया 1980 में संघ का पूर्ण समर्थन इन्दिरा कांग्रेस को देकर जिससे इंदिराजी पुनः पी एम बन सकीं।परंतु इसी से प्रतिगामी नीतियों पर चलने की शुरुआत भी हो गई 'श्रम न्यायालयों ' में श्रमिकों के विरुद्ध व शोषक व्यापारियों /उद्योगपतियों के पक्ष में निर्णय घोषित करने की होड लग गई।इंदिराजी की हत्या के बाद 1984 में बने पी एम राजीव गांधी साहब भी अपनी माता जी की ही राह पर चलते हुये कुछ और कदम आगे बढ़ गए । अरुण नेहरू व अरुण सिंह की सलाह पर राजीव जी ने केंद्र सरकार को एक 'कारपोरेट संस्थान ' की भांति चलाना शुरू कर दिया था।आज आप को 2014 में बनी मोदी  सरकार कारपोरेट के हित में  दिख रही है तो यह उसी नीति का ही विस्तार है। 

 1989 में उन्होने सरदार पटेल द्वारा लगवाए विवादित बाबरी मस्जिद /राम मंदिर का ताला खुलवा दिया। बाद में वी पी सिंह की सरकार को बाहर से समर्थन देने के एवज में भाजपा ने स्वराज कौशल (सुषमा स्वराज जी के पति) जैसे लोगों को राज्यपाल जैसे पदों तक नियुक्त करवा लिया था। सरकारी सेवाओं में संघियों की अच्छी ख़ासी घुसपैठ करवा ली थी। 


आगरा पूर्वी विधान सभा क्षेत्र मे 1985 के परिणामों मे संघ से संबन्धित क्लर्क कालरा ने किस प्रकार भाजपा प्रत्याशी को जिताया  वह कमाल पराजित घोषित कांग्रेस प्रत्याशी सतीश चंद्र गुप्ता जी के  अलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती देने से उजागर हुआ। क्लर्क कालरा ने नीचे व ऊपर कमल निशान के पर्चे रख कर बीच में हाथ का पंजा वाले पर्चे छिपा कर गिनती की थी जो जजों की निगरानी में हुई पुनः गणना में पकड़ी गई। भाजपा के सत्य प्रकाश 'विकल ' का चुनाव अवैध  घोषित करके सतीश चंद्र जी को निर्वाचित घोषित किया गया। 

ऐसे सरकारी संघियों के बल पर 1991 में उत्तर-प्रदेश आदि कई राज्यों में भाजपा की बहुमत सरकारें बन गई थीं।1992 में कल्याण सिंह के नेतृत्व की सरकार ने बाबरी मस्जिद ध्वंस करा दी और देश में सांप्रदायिक दंगे भड़क गए। 1998 से 2004 के बीच रही बाजपेयी साहब की सरकार में पुलिस व सेना में भी संघी विचार धारा के लोगों को प्रवेश दिया गया। 

2011 में सोनिया जी के विदेश में इलाज कराने जाने के वक्त से डॉ मनमोहन सिंह जी हज़ारे / केजरीवाल के माध्यम से संघ से संबंध स्थापित किए हुये थे जिसके परिणाम स्वरूप 2014 के चुनावों में सरकारी अधिकारियों / कर्मचारियों ने भी परिणाम प्रभावित करने में अपनी भूमिका अदा की है :





1967,1975 ,1980,1989 में लिए गए इन्दिरा जी व राजीव जी के निर्णयों ने 2014 में भाजपा को पूर्ण बहुमत तक पहुंचाने में RSS की भरपूर मदद की है। प्रियंका गांधी वाडरा, राहुल गांधी अथवा जो भी भाजपा विरोधी लोग राजनीति में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं उनको खूब सोच-समझ कर ही निर्णय आज लेने होंगे जिनके परिणाम आगामी समय में ही मिलेंगे। 'धैर्य',संयम,साहस के बगैर लिए गए निर्णय प्रतिकूल फल भी दिलवा सकते हैं।  


~विजय राजबली माथुर ©

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