आत्मा अल्पज्ञ होती है और वह जन्म-जन्मान्तर क़े अपने कर्म -अकर्म को याद नहीं रख सकती,परन्तु उसके साथ चल रहे सूक्ष्म व कारण शरीर उसे उन कर्म -अकर्म क़े परिणामों से साक्षात्कार करते चलते हैं.याद रखें -आत्मा और शरीर का सम्बन्ध अन्धे और लंगड़े क़े समान है.आत्मा चैतन्य है लेकिन वह शरीर क़े बगैर लंगड़ा है और स्वतन्त्र रूप से कर्म नहीं कर सकता है. उसी प्रकार शरीर अचेतन होने क़े कारण बगैर आत्मा क़े कोई कर्म नहीं कर सकता.जब आत्मा का अपने पूर्व कर्मानुसार किसी शरीर में प्रवेश होता है तभी वह उस शरीर क़े अनुसार कर्म करने में सक्षम होती है. ज्योतिष ज्ञान क़े अनुसार उस व्यक्ति क़े जन्मकालीन ग्रह नक्षत्रों क़े आधार पर उसके भविष्य का अनुमान लगाया जा सकता है.यह अलग बात है कि,सम्बंधित व्यक्ति अथवा उसके परिवार क़े सदस्य ज्योतिष पर विश्वास न करते हों,पुनर्जन्म या पूर्व जन्म क़े सिद्धांतों को न मानते हों,परन्तु उन ग्रह -नक्षत्रों का प्रभाव हर हाल में उस पर पड़ेगा ही पड़ेगा और उसकी विचार -धरा व मान्यता का ग्रह -नक्षत्रों की चाल पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. समझिये ०२ .०८ १९८३ की सायं ०५ .१५ पर मुम्बई में जन्मे पुनीत क़े जन्मांग को और उस पर पड़े ग्रहों क़े चमत्कारिक प्रभाव को :-
जन्म लग्न -धनु है,,पंचम में मेष का चंद्रमा,षष्ठम में वृष का राहू ,सप्तम में मिथुन का मंगल अष्टम में कर्क का सूर्य ,नवम में सिंह क़े बुध और शुक्र ,एकादश में तुला का शनि अर्थात उच्च का है;द्वादश में वृश्चिक का ब्रहस्पत और केतु भी जो गुरु -चांडाल योग बना रहा है.
१० .४ .१९९७ ई .को दोपहर १२ और १२ .३० बजे क़े मध्य मुम्बई से अपने चाचा की मामूली फटकार पर घर से भाग गया और लगभग छ :वर्ष बाद सकुशल घर वापिस आ गया -परन्तु कैसे ? जैसा कि स्वभाविक था बालक क़े गायब होने क़े बाद उसके माता -पिता ने पुलिस /टी .वी .का तो सहारा लिया ही अनेक ज्योतिषियों व पंडितों की शरण में भी गये.ज्योतिष क़े नाम पर उलटे उस्तरे से मूढ्ने वालों ने जो उपाए बताये -उन्हें कर -कर क़े थक हार कर उसके माता -पिता ने भगवान् पर से भरोसा उठा लिया .घर में रखे देवी -देवताओं क़े चित्र और मूर्तियाँ समुद्र में बहा दिए.वे यह मान कर बैठ गये कि यह सब ढोंग और पाखण्ड हैऔर उनका बेटा अब शायद जीवित भी नहीं होगा .
उस बालक क़े ताउजी ने २००१ ई . में आगरा में मुझसे संपर्क किया तब उन्हें स्थिति का वैज्ञानिक आंकलन करके कुछ सरल उपाए उन्हें दिए और यह भी आश्वस्त किया कि उनका भतीजा जीवित है और लौट आएगा.लेकिन समस्या यह उत्पन्न हो गई कि बालक क़े माता -पिता पहले ही इतने लुट -पिट और थक गये थे कि उनमें अब कोई उपाय करने की हिम्मत भी नहीं थी और ललक भी ख़त्म हो गई थी.तब मैंने उसके ताउजी को ही कहा कि वह अपने भतीजे का संकल्प लेकर खुद वही उपाय करें.हालाँकि उन्होंने सब नहीं कुछ ही उपाय किये ,लेकिन पूरी श्रद्धा और विश्वास क़े साथ.उनके छ :माह उपाय करने क़े उपरान्त बालक क़े मन में हलचल होने लगी और घर वापसी की सोचने लगा.अन्तत: उस सोच क़े छ : माह बाद (उपाय करते हुए एक वर्ष होते -होते )वह वर्ष २००२ ई .की होली क़े पश्चात अपनी मौसी क़े घर अजमेर पहुँच गया जहाँ से उसके माता -पिता उसे मुम्बई ले आये .उसने आगे अपनी पढ़ाई भी पूरी की.प्रश्न यह उठता है कि वह भागा क्यों ?और लौट क्यों आया ?
आइए इसका ज्योतिषीय विश्लेषण करें.बालक का जन्म द्वि स्वभाव राशि की धनु लग्न में हुआ था.उसके पंचम भाव में ही शत्रु -क्षेत्रीय चन्द्र भी स्थित है.चन्द्र मन का कारक होता है.अतः ऐसा बालक अपने लिए शत्रुतापूर्ण अर्थात मूर्खतापूर्ण कार्य करता है,और इस बालक ने यही तो किया.खुद की गलती क़े लिए मामूली सी फटकार पड़ने पर उसने घर छोड़ने का दुस्साहसिक निर्णय ले लिया.लग्नेश और सुख भाव क़े स्वामी ब्रहस्पति की व्ययेश भाव में स्थिति ने आग में घी का कम किया.जब यह बालक चौदहवें वर्ष में ब्रहस्पति की एक -चरण दृष्टि से युक्त था ,घर से भाग निकला.बारहवां ब्रहस्पति जातक को व्याभिचारी और रोगी बनता है.अब एक नज़र उसकी पलायन कुंडली पर डालें.
चैत्र शुक्ल चतुर्थी गुरूवार को आयुष्मान योग और कृतिका नक्षत्र में यह बालक घर छोड़ कर भगा था.उस समय की गोचर ग्रह -स्थिति क़े अनुसार राहू ने सुख में बढ़ा उपस्थित की तथा परिवार से बैर -भाव मन में ला दिया.अष्टम क़े ब्रहस्पति ने पीड़ा,दशम क़े शुक्र ने दुःख ,केतु ने शोक व शनि ने बाधाएं उपस्थित कीं.मन का कारक चन्द्र व्यय भाव में था परन्तु उच्च का था तथा पलायन दिस्वभाव की राशी की लग्न में (मिथुन )में हुआ था .दशमस्थ सूर्य सिद्धिदायक तथा मंगल साहस -पराक्रम को बनाने वाला तथा बुध लाभदायक स्थिति में था.इसी कारण बालक घर से भागने क़े बाद भी पुरुषार्थ द्वारा जीविकोपार्जन कर गुजारा चलाता रहा.कृतिका नक्षत्र क़े प्रभाव क़े कारण वह उत्तर दिशा -अहमदाबाद चला गया और अजमेर में जाकर प्रकट हुआ.
जन्मकालीन चन्द्र व ब्रहस्पति की स्थिति -आयु खंड में क्रमशः दसवीं व तीसरी दृष्टि तथा गोचर कालीन चन्द्र ,ब्रहस्पति,शुक्र ,शनि ,राहू व केतु क़े प्रभाव से बालक ने घर से भागने का दुस्साहसिक कदम उठा तो लिया.फिर वह लौटा कैसे ?देखिये ,जन्मकालीन राहू शत्रु भाव में शुक्र की राशि वृष में स्थित है जो उसे धैर्यवान बना रहा है.ऐसा राहू शत्रु का संहार भी करता है.अतः बालक निरापद ढंग से पूर्ण साहस व पराक्रम क़े साथ पुरुषार्थ में जुटा रहा . भाग्य भाव में सिंहस्थ बोध पिता को सुख पहुचाने वाला होता है.अब यदि यह बालक घर से भगा ही रहता तो पिता को सुख किस प्रकार पहुंचाता ?इसी हेतु इसके ताऊजी को आश्वस्त किया था मैंने कि ,बालक लौटेगा अवश्य और वह लौटा भी और पिता की इच्छानुसार पुनः पठन -पाठन भी किया.
भले ही बालक क़े माता -पिता का ज्योतिष और ग्रह -नक्षत्रों से विश्वास पोंगा -पंथियों क़े भटकाव क़े कारण उठ गया हो ,परन्तु ग्रह -नक्षत्रों की चाल का उसके जीवन पर सटीक और भरपूर प्रभाव पड़ा है.ख़राब प्रभाव को उसके ताउजी द्वारा मन्त्रों क़े सस्वर पाठ से ग्रह -नक्षत्रों पर तरंगों (वायबरेशन) द्वारा ठीक किया गया था.हमारी प्रार्थना और सद्प्रयासों का अन्तरिक्ष पर पूरा प्रभाव पड़ता है.
आगे यह करेगा क्या ?-धन भाव का स्वामी शनि आय भाव में उच्च का होकर तुला राशि में स्थित है. दिव्तीय भाव में मकर राशि की उपस्थिति इसमें गज़ब की प्लानिंग -शक्ति दर्शाता है.पत्थर ,खान अथवा जल से सम्बंधित वस्तुओं क़े व्यापार में यह सफल रहेगा.उच्च वाहन सुख की प्राप्ति होगी.धनाढ्य रहेगा परन्तु या तो निसंतान रहेगा,अथवा पुत्री संतान ही होगी.पुत्र संतान से यह वंचित ही रहेगा.ऐसा संतान भाव में शत्रु -क्षेत्रीय चन्द्र की उपस्थिति तथा शनि की पूर्ण दृष्टि क़े कारण होगा.पत्नी भाव में ,प्रेम व व्यय भाव का स्वामी होकर मंगल भी शत्रु क्षेत्रीय है;अतः इसकी दो पत्नियाँ होंगी और उन दोनों का ही नाश होगा.पत्नी व संतान सुख से वंचित होकर यह जातक भारी ऐय्याश होगा और व्यभिचार में संलिप्त रहेगा .यदि इसे सही दिशा -निर्देश प्राप्त हो जाये और यह कुपित ग्रहों की विधानपूर्वक वैज्ञानिक पद्धति से शांति कराये,अरिष्टों क़े शमन हेतु स्तुति पाठ नियमित करे तो इसके जीवन में घटित होने वाले अनिष्ट का प्रकोप संभवतः कम हो जाएगा और इसकी श्रद्धा व विश्वास क़े अनुपात में वह क्षीण एवं समाप्त हो जाएगा.मनुष्य मननशील (विवेकशील )प्राणी है और अपने सत्कर्मों द्वारा अपने भाग्य को अपने अनुकूल मोड़ सकता है लेकिन क्या धन की प्रमुखता वाले समय मे ऐसा हो सकेगा ?
(इस ब्लॉग पर प्रस्तुत आलेख लोगों की सहमति -असहमति पर निर्भर नहीं हैं -यहाँ ढोंग -पाखण्ड का प्रबल विरोध और उनका यथा शीघ्र उन्मूलन करने की अपेक्षा की जाती है)
No comments:
Post a Comment