Wednesday, February 16, 2011

आप कितने सुखी रहेंगे?





प्रत्येक मनुष्य जीवन में उत्तरोत्तर सुख की कामना करता है और कोई भी प्राणी स्वतः दुःख नहीं उठाना चाहता,परन्तु फिर भी संसार में दुःख है और यह सर्वव्यापक है.यदि आपको यह मालुम हो जाये कि आपके जीवन में कितना दुःख है और कब तक है तो आप उसका निराकरण करके सुख की प्राप्ति कर सकते हैं.इस बार आपको यह बताया जा रहा है कि आपकी कुंडली का चतुर्थ भाव ज्योतिष में सुख भाव कहलाता है और इस भाव पर जिन-जिन ग्रहों की दृष्टि पड़ती है उनके अनुसार उनके अनुपात में आपको सुख प्राप्त होता है नीचे  प्रत्येक  ग्रह  की  चतुर्थ  भाव  पर  दृष्टि  का  फल  प्रस्तुत  किया  जा  रहा  है ,आप  अपनी  जनम -पत्रिका  क़े  अनुसार  मिलान कर  सकते  हैं -


सूर्य-चतुर्थ भाव को यदि सूर्य देख रहा हो तो जातक क्रोधी स्वभाव का होता है तथा विशेष व्यय करता है धन प्राप्ति क़े मार्ग में रुकावटें पड़ती हैं तथा घर में सम्बन्धी बीमार रहते हैं.
यदि जातक नौकरी करता है या राजनीति में है तो शीघ्र उन्नत्ति करता है और प्रशासकीय अधिकारी बनता है.
चन्द्रमा -चतुर्थ भाव पर चन्द्र की दृष्टि से जातक सौम्य,सरल एवं उन्नत्त विचारों वाला होता है उसका घरेलू जीवन सुखी और सानिध्य्य व्यतीत होता है यदि चन्द्रमा क़े साथ गुरु भी हो तो जातक क़े गजटेड अधिकारी बनने क़े योग रहते हैं.यदि मंगल व चन्द्र दोनों एक साथ चतुर्थ भाव को देखते हों तो जातक को जीवन में किसी भी प्रकार धन  का अभाव नहीं रहता है.
मंगल-यदि चतुर्थ भाव को मंगल देख रहा होता है तो यह योग शुभ नहीं रहता,भाग्य साथ नहीं देता,कठोर श्रम करना पड़ता है और यदि यह मंगल लग्नस्थ हुआ तो जातक क्रोधी,दुखी और चिडचिडे स्वभाव का होता है बचपन में ही मातृ सुख से वंचित रहता है.
इस सब क़े बावजूद जातक अपने पिता और कुल का नाम रोशन करता है तथा समाज को ऊंचा उठता है.
बुध-यदि चतुर्थ भाव पर बुध की दृष्टि हो तो जातक विख्यात कवि व लेखक हो सकता है आर्थिक दृष्टि से भी सम्पन्न तथा शान्त स्वभाव का होता है.
गुरु-चतुर्थ भाव पर गुरु की दृष्टि व्यक्तित्व को शान्त बना देती है.यदि गुरु अष्टम भाव में स्थित हो तो जातक रोगी होता है और मानसिक रूप से परेशान होता है उसके जीवन में उत्साह व उमंग का अभाव रहता है और भाग्य भी उसका साथ नहीं देता.दशम भाव में गुरु की उपस्थिति भाग्यशाली बनाती है.तो द्वादश भाव में धन-लोलुप.
शुक्र-चतुर्थ भाव को यदि शुक्र देख रहा हो तो जातक संगीत अध्यापक या ड्राईंग मास्टर बन सकता है.परन्तु जातक को पत्नी सुख काम मिलता है और पत्नी तथा संतान से मतभेद रहते हैं.प्रेम क़े क्षेत्र में विविध स्त्रियों से लाभ मिलता है.
शनि-यदि चतुर्थ भाव को धन भाव से देख रहा हो तो आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न होता है यदि सप्तम भाव से देख रहा हो तो विख्यात होता है व विदेश भ्रमण करता है.
राहू-चतुर्थ भाव पर राहू की दृष्टि भाग्यहीन बनाती है.खर्च की अधिकता से परेशान रहता है.उसकी पत्नी मूर्ख,रोगी व क्रोधी होती है.
केतु-चतुर्थ भाव को केतु देख रहा हो तो बचपन से ही बीमार रहता है.स्वभाव में झल्लाहट व चिडचिडापन रहता है,बाधाओं का सामना करना पड़ता है.धन की चिंता में कठोर श्रम करना पड़ता है
योगीराज श्रीकृष्ण
प्रति वर्ष भाद्रपद कृष्ण पक्ष  की अष्टमी को सम्पूर्ण भारत तथा अन्यत्र भी कृष्ण जन्माष्टमी पर्व विशेष धूम-धाम से मनाया जाता है.ज्योतिष की दृष्टि से देखें तो श्री कृष्ण क़े चतुर्थ भाव पर मंगल अपनी दशम दृष्टि डाल रहा है जिस कारण उन्हें जन्मते ही माता देवकी क़े सुख से वंचित होना पड़ा.बचपन से ही गोकुल में कठोर श्रम करना पड़ा.लेकिन इसी मंगल क़े प्रभाव से उन्होंने पिता वासुदेव व पितृ कुल का नाम रोशन किया कंस,शिशुपाल आदि का संहार कर जनता को त्रास से मुक्ति दिलाकर समाज को ऊंचा उठाया.
इसी प्रकार चन्द्रमा अपनी चतुर्थ दृष्टि से चतुर्थ भाव को देख रहा है जिस कारण श्री कृष्ण का स्वभाव सौम्य,सरल व उन्नत्त विचारों वाला रहा.उनका घरेलू जीवन सुखी व सानन्द रहा.पत्नी रुकमनी उनकी सहायिका रहीं तो पुत्र प्रद्युम्न तो उनकी छाया कृति ही कहे जा सकते हैं.मंगल और चन्द्र दोनों ही ग्रहों का श्रीकृष्ण की कुंडली क़े चतुर्थ भाव को देखने का ही परिणाम था कि श्री कृष्ण सर्व ऐश्वर्य सम्पन्न द्वारिकापुरी की स्थापना कर सके.
स्वाधीन भारत
१५ अगस्त १९४७ को आजाद होने क़े ६४ वें वर्ष में हम चल रहे हैं.६३ वर्षों की आजादी क़े बाद भी हमारा देश समृद्ध नहीं हो सका तो इसका कारण है कि हमारे देश की स्वाधीनता की कुंडली क़े चतुर्थ भाव पर मंगल की तृतीय दृष्टि जिसने आजादी की शैशवावस्था में ही आर्थिक व सामाजिक क्षेत्र में देश को रुग्ण बना दिया.साथ ही चतुर्थ भाव पर केतु की भी दशम दृष्टि पड़ रही है पुनः यह आजादी की शैशवावस्था में रुग्णता को ही बढ़ा रही हैं.पडौसी राष्ट्रों का असहयोग तथा राष्ट्र को बाधाओं का सामना भी चतुर्थ भाव पर इसी केतु की दृष्टि का परिणाम रहा है.इसी केतु की दृष्टि का प्रभाव है कि आज भी हमारा देश ऋण जाल में फंसा हुआ है.भारत क़े मित्र समझे जाने वाले राष्ट्र भी इसका हित सम्पादन नहीं करते हैं.केतु की चतुर्थ दृष्टि का ही परिणाम है कि भारत का भाल(सिर)कश्मीर पर गहरी चोट पडी है.वह आज भी समस्याग्रस्त है.


इस प्रकार हम देखते हैं कि कुंडली का चतुर्थ भाव जो सुख भाव है न केवल सामान्य मनुष्य वरन सफल राजनेता योगीराज श्रीकृष्ण तथा स्वाधीन भारत राष्ट्र पर भी ग्रहों का व्यापक प्रभाव पड़ा है.देश  की प्रगति  व विकास हेतु और स्वाधीन भारत की कुंडली क़े आधार पर मंगल व केतु ग्रहों क़े दुष्प्रभाव से बचाव क़े उपाए हमारे शासकों को करने ही पड़ेंगे तभी हम अपने देश को ऋण जाल से मुक्त कराने और कश्मीर समस्या का समाधान कराने में सफल हो सकेंगे अन्यथा जो जैसे चल रहा है,चलता ही रहेगा;चाहे जितना व्यंग्य कर लें तथा कितना ही शोर मचा लें -ग्रहों का प्रभाव अमिट है और उनकी शांति ही एकमात्र उपाए है.  






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(इस ब्लॉग पर प्रस्तुत आलेख लोगों की सहमति -असहमति पर निर्भर नहीं हैं -यहाँ ढोंग -पाखण्ड का प्रबल विरोध और उनका यथा शीघ्र उन्मूलन करने की अपेक्षा की जाती है)

8 comments:

डॉ. मोनिका शर्मा said...

अच्छी जानकारी....आभार

महेन्‍द्र वर्मा said...

सुख भाव पर ग्रहों की दृष्टि का फल प्रस्तुत करने के लिए आभार।

मनोज कुमार said...

अच्छी जानकारी मिली।

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

आद.विजय जी,
ग्रहों के प्रभाव पर आपकी विस्तृत जानकारी बेहद उपयोगी लगी !
मुझे ज्योतिष में उस समय विश्वास हुआ जब मेरी मेडिकल में दाखिले की सारी कोशिशें फेल हो गयीं और एक ज्योतिष ने बताया की मेरे स्टार इंजिनीरिंग कोर्स की तरफ संकेत कर रहे हैं ! उस समय तो मै हस पड़ा मगर आज मैं इंजिनियर बन कर वही काम कर रहा हूँ जो उस ज्योतिषी ने बताया था !
बहुत दूर हैं वरना आपके ज्योतिष ज्ञान का हम भी फायदा उठाते !

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

माथुर साहब!
बरसों पहले जब मैं ज्योतिष पढ़ व सीख रहा था,तब ये सब सीखा था. बहुत सालों तक अभ्यास भी किया.. अच्छे परिणाम भी रहे. बाद में अभ्यास छूट गया.. आज अच्छा लगा!! फिर से वो सअब पढना!! आभार आपका!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

माथुर साहब अब यह भी शंका समाधान कर दीजिये कि अपनी जन्मपत्री से हम यह कैसे जानेगे कि हमारे पर किस गृह की चतुर्थ दृष्ठी है ? मेरा मतलब क्या जन्मपत्री देख हम खुद यह जान सकते है अथवा किसी पडित के माधयम से ही यह हमें ज्ञात होगा ?

vijai Rajbali Mathur said...

गोदियाल सा :पंडितों के फेर में न फंस जाईएगा या तो किसी ज्योतिष जानकार से पूँछें या मुझे ई.मेल से अपनी जनम-पत्री की कापी प्रेषित करें तो मैं स्पष्ट कर दूंगा.
मर्मग्य जी दूर भी हैं और ई. मेल से पास भी हैं.फायदा आप उठा सकते हैं.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

ठीक है माथुर साहब , आज घर जाकर ढूंढता हूँ, मिली तो जरूर मेल करूंगा !