Wednesday, September 28, 2011

आधुनिक शिशुपाल शर्मा-न्याय मूर्ति आलोक बोस


बाराबंकी जो हमारा गृह जिला है काफी भाग्यशाली रहा जो वहाँ के जिला जज के रूप मे न्याय मूर्ति आलोक कुमार बोस का आगमन हुआ। बोस साहब ने आते ही न्यायालय क्षेत्र का वास्तविक निरीक्षण किया और रेकार्ड्स का भौतिक सत्यापन कराया। सर्व-प्रथम तो उन्होने रिजर्व बैंक द्वारा जमींदारी -उन्मूलन के समय जारी किए गए मुआवजा बाण्ड्स जो दोहरे तालों मे सील किए रखे थे खुलवा कर देखे तथा उनके दावेदारों को वितरण की पहल की। अब ये बाण्ड्स पूर्व जमींदारों के उत्तराधिकारियों को 25 सितंबर 2011 को विशेष लोक -अदालत मे वितरित किए जा चुके हैं,जिनकी स्कैन कापी नीचे देख सकते हैं । वंचितों को न्याय प्रदान कर बोस साहब ने तो अपने कर्तव्य का वास्तविक पालन किया किन्तु हमे यह विश्वास होता है कि यदि सभी न्यायाधीश ही नहीं सभी अधिकारी उनका अनुसरण करें तो समाज मे व्याप्त कुंठा और उपेक्षा भाव को भी समाप्त किया जा सकता है एवं न्याय का शासन भी स्थापित किया जा सकता है। 

बोस साहब ने अपने कार्यालय के कर्मचारियों द्वारा अतीत मे दबाई हजारों फाइलों (समाचार की कटिंग का स्कैन नीचे देखें) को सामने निकलवा कर दोषी दर्जनभर  कर्मचारियों को सस्पेंड ,एक को बर्खास्त कर दिया  तथा 134 के विरुद्ध न्यायिक जांच कमेटी बैठा दी ,एक की पेंशन तथा जांच चलने तक दोषी कर्मचारियों की फंड से धन निकासी पर रोक लगा दी। 

आज शहीद भगत सिंह के जन्मदिवस पर एक कर्तव्यनिष्ठ न्यायाधीश आलोक कुमार बोस साहब का अभिनन्दन करते हुये हाई स्कूल मे पढ़ी एक विद्वान लिखित कहानी मे' सम्राट अशोक 'की न्याय-व्यवस्था की लोकप्रियता मे उनके न्याय मंत्री शिशुपाल शर्मा जी की याद आ गई और लगा कि हमारे न्याय मूर्ति आलोक बोस साहब भी आधुनिक शिशुपाल शर्मा ही हैं। 

'अर्थशास्त्र'के रचयिता कौटिल्य /चाणक्य ने जिन चंद्र गुप्त मौर्य को चक्रवर्ती सम्राट बनवाया था उन्ही के पौत्र थे सम्राट अशोक और उनकी न्याय-व्यवस्था इतिहास मे ही अमर नहीं है अपने काल मे बेहद लोकप्रिय भी थी जिसके पीछे थे न्यायमन्त्री शिशुपाल शर्मा जी। शिशुपाल जी ने गुप्तचर व्यवस्था पर भी गुप्तचरी की व्यवस्था कर रखी थी। उन्हें नित्य सम्पूर्ण ब्यौरा उपलब्ध होता रहता था और वह जनता की ओर से शिकायत पहुँचने से पूर्व ही न्याय कर दिया करते थे। यही कारण था कि जनता अपने शासक सम्राट अशोक को बहौत चाहती थी। 

सम्राट अशोक अपने न्यायमन्त्री शिशुपाल शर्मा का बहुत आदर -सम्मान करते थे। एक बार उनके मन मे आया कि जरा अपने न्यायमन्त्री का न्याय जांचा जाये। सम्राट अशोक भेष बदल कर नगर मे शाम को दिन ढलते ही विचरण को निकाल पड़े और कुछ लोगों से पूछा कि किसी को कोई शिकायत हो तो बताए। जब किसी से उन्हें कोई शिकायत प्राप्त नहीं हुई तो गुप्तचरों की कार्यप्रणाली जाँचने हेतु एक विधवा के मकान का दरवाजा खट-खटाया  और न खुलने पर दरवाजे  को झकझोरना शुरू कर दिया ,शिकायत किसी नागरिक ने उचित स्थान पर कर दी और एक कर्तव्यनिष्ठ गुप्तचर अपना वेश बदल कर मौके पर पहुंचा ,वह वेश बदले सम्राट अशोक को पहचान न सका और उसके जब समझाने से भी वह वहाँ से नहीं हटे तो उन्हें बल पूर्वक हटाना चाहा जिस पर दोनों मे संघर्ष हुआ और अशोक ने गुप्त हथियार से उस गुप्तचर पर वार कर दिया जिससे उसका प्राणान्त हो गया। वेश बदले सम्राट अशोक वहाँ से तुरंत हट गए और राजसी-वेश मे महल पहुँच गए । जब कई दिन तक शिशुपाल शर्मा अपने गुप्तचर के हत्यारे का पता न लगा सके तो सम्राट अशोक ने कहा अब प्रयास छोड़ दीजिये बेकार है। परंतु शिशुपाल शर्मा ने कहा मै हत्यारे को हत्या का दण्ड दिये बगैर प्रयास नही छोड़ सकता। 

शिशुपाल खुद जांच पर निकले परंतु कोई नहीं बता सका कि उस रात किस व्यक्ति ने हत्या की । परेशान शिशुपाल उस विधवा के मकान के पास भी गए और विचारमग्न ही थे कि उस महिला ने उन्हें पहचानते हुये भीतर बुलाया और कहा मै आपको हत्यारे का पता बता देती हूँ परंतु आप उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाएंगे क्योंकि वह खुद सम्राट अशोक हैं। शिशुपाल ने उस महिला से सम्पूर्ण संघर्ष की कहानी ज्ञात की और निर्देश दिया कि उन्होने सम्राट को पहचान लिया था यह बात किसी को न बताएं। शिशुपाल ने सम्राट अशोक को सूचित किया कि हत्यारे का पता लग गया है और उसे (निश्चित तिथि बताते हुये ) फांसी दे दी जाएगी। 

सम्राट अशोक ने समझा कि शिशुपाल किसी गलत और बेगुनाह को फांसी पर चढ़ा देंगे तब उनसे उनके न्याय का हिसाब मांगेंगे। लेकिन शिशुपाल ने एक सुनार से गुप्त रूप से सम्राट अशोक की सोने की मूर्ती बनवाई और जेब मे डाल कर फैसले के दिन  दरबार मे पहुँच गए । निश्चित समय पर सम्राट ने पूछा अपराधी कहाँ है?न्यायमन्त्री बोले अभी उसे हाजिर भी कर रहा हूँ और यहीं दण्ड भी दे रहा हूँ। सम्राट अशोक अचंभित थे कि हो क्या रहा है?शिशुपाल ने पहले फैसला सुनाया कि गुप्तचर का हत्यारा यहीं दरबार मे है और उसे अभी फांसी दी जा रही है फिर सारा वृतांत बताया। जेब से सम्राट अशोक की मूर्ती निकाल कर उन्ही के सामने कर्मचारी को देकर फांसी पर लटकवा दिया। सम्राट अशोक ,सारे दरबारी और जनता सभी हैरान थे। 

शिशुपाल ने सम्राट अशोक को उनकी दी राज मुद्रा लौटाते हुए  पद-त्याग दिया। सम्राट अशोक ने कहा वह उद्दंड था इस लिए मार दिया परंतु शिशुपाल ने यह तर्क स्वीकार नहीं किया उन्होने सम्राट पर अकेली विधवा महिला के घर रात के अंधेरे मे जाने, उसे परेशान करने और गुप्तचर की हत्या करने के मामले मे क्षमा नहीं किया न ही यह तर्क माना उनका अभीष्ट उसे मारना नहीं था वह केवल डरा रहे थे पर वह धोखे मे मारा गया। न ही उन्होने सम्राट द्वारा फिर ऐसा न होने के आश्वासन को माना। 

ऐसी थी शिशुपाल शर्मा की न्याय-व्यवस्था जिसने सम्राट अशोक को लोकप्रियता की बुलंदियों पर पहुंचाया था। राज्य मे अपराध ही नहीं होते थे ,होते तो कड़े दण्ड दिये जाते थे। न्यायमन्त्री ने सम्राट तक को नहीं क्षमा किया। आज विपरीत स्थितियाँ तो हैं उनमे भी न्याय मूर्ति आलोक कुमार बोस साहब ने जिस अदम्य-साहस का परिचय दिया है और जनता को उसका वास्तविक न्याय दिलाना प्रारम्भ किया है उससे आशा की एक किरण दिखाई देती है। यदि सम्पूर्ण न्याय-व्यवस्था न्याय मूर्ति आलोक कुमार बोस साहब की भांति दृढ़ निश्चय कर ले तो विदेशियों से प्रभावित और उनके हक के लिए काम करने वाले अन्ना-टीम के गुब्बारे की हवा निकलते देर नहीं लगेगी।

Hindustan-Lucknow-27/09/2011

Hindustan-Lucknow-27/09/2011



Hindustan-Lucknow-26/09/2011





4 comments:

Kunwar Kusumesh said...

आपको नवरात्रि की ढेरों शुभकामनायें.

Patali-The-Village said...

आज कल ऐसे महापुरुष कम ही मिलते हैं| नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं|

VIJAY KUMAR VERMA said...

bahut prerna dene wali prastuti..

मनोज कुमार said...

बड़ा ही सुखद लगा इस महान विभूति के बारे में जानकर।