Tuesday, May 1, 2012

काम के घंटे हों -चार --- विजय राजबली माथुर


पहली मई 'मजदूर दिवस' पर विशेष :




आज पूरी दुनिया मे हर जाति,संप्रदाय,धर्म के लोग 'मजदूर दिवस' के पर्व को अपने -अपने तरीके से मना रहे हैं। लगभग सवा सौ वर्षों पूर्व अमेरिका के शिकागो शहर मे मजदूरों ने व्यापक प्रदर्शन का आयोजन किया था ,तब से ही आज के दिन को प्रतिवर्ष 'मजदूर दिवस' के रूप मे मनाने की परिपाटी चली आ रही है। वस्तुतः आज का दिन उन शहीद मजदूरों की कुर्बानी को याद करने का दिन है जिन्हों ने अपने साथियों के भविष्य के कल्याण हेतु अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया था। ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने के लोभ मे उद्योगपति मजदूरों से 12-12 और 14-14 घंटे काम लेते थे। उनका शोषण -उत्पीड़न तो करते ही थे उन्हें बंधक भी बना लेते थे। समय-समय पर मजदूर संगठित होकर अपने ऊपर हो रहे जुल्मों का विरोध करते थे। व्यापारियो -उद्योगपतियों की समर्थक सत्ता की गोली वर्षा से अनेकों मजदूर शहीद हुये और तभी से मजदूरों का सफ़ेद 'झण्डा' 'लाल' रंग मे तब्दील कर दिया गया जो इन वीरों की शहादत याद दिलाता है। इसी के फलस्वरूप  बाद मे काम के घंटे -8 नियमित किए गए थे।

मजदूरों ने किसानों को भी अपने साथ मिलाया और दुनिया मे उनको पहली सफलता 1917 मे रूस मे मिली भी। रूसी क्रांति का ही असर था कि, भारत आदि कई उपनिवेशों को साम्राज्यवाद से मुक्ति मिली। 1949 मे चीन मे भी मजदूरों की सत्ता की स्थापना हुई। रूस और चीन मे मजदूरों का नेतृत्व करने वाली कम्युनिस्ट पार्टियां जिस तरीके से साम्यवाद को लागू करती रहीं वह त्रुटिपूर्ण रहा। यही कारण है कि 1991 मे रूस से कम्युनिस्ट शासन विदा हो गया और अब वहाँ पुनः पूंजीवादी व्यवस्था लागू है। चीन मे भी कम्युनिस्ट पार्टी ने पूंजीवाद पर चलना चालू कर रखा है।

भारत मे भी आज मजदूर आंदोलन बिखरा हुआ है। मजदूरों के नाम पर पूँजीपतियों ने अपने हितैषी संगठन खड़े करवा लिए हैं जो मजदूर एकता मे बाधा हैं। वैसे भी जाति और धर्म भारत मे मजदूरों के संगठित होने मे बाधक रहे हैं। आबादी तेज़ी से बढ़ी है,वैज्ञानिक प्रगति खूब हुई है परंतु रोजगारों मे छ्टनी भी खूब हुई है। बेरोजगारी और गरीबी के कारण मनुष्यों का जीना दूभर हो गया है। जिन को रोजगार मिला भी है उनका शोषण बहुत बढ़ गया है। श्रम क़ानूनों के मौजूद होते हुये भी कामगारों से आज फिर 12-12 घंटे,14-14 घंटे काम लिया जा रहा है। दूसरी ओर अमीर और अमीर हुआ है। उद्योपातियों के मुनाफे मे बेतहाशा वृद्धि हुई है और मजदूरों का जीना मुहाल हुआ है।

मजदूरों का उत्पीड़न और शोषण बरकरार रखने के लिए उद्योगपतियों-पूँजीपतियों के दलाल-तथाकथित पुरोहित जनता को अधर्म का पाठ धर्म के नाम पर पढ़ा रहे हैं। हमारे कम्युनिस्ट मजदूर नेता धर्म के उसी गलत स्वरूप को धर्म मानते हुये धर्म का कडा विरोध करते हैं। नतीजा यह होता है कि मजदूर और गरीब जनता अधर्मिकों के मकड़-जाल मे उलझ कर रह जाती है।

आज इस मजदूर दिवस पर मजदूरों को संकल्प लेना चाहिए कि अधार्मिक पुरोहितों का पर्दाफाश करके वास्तविक 'धर्म' के मर्म को समझते हुये अपनी मुक्ति हेतु एकजुट संघर्ष करेंगे। बढ़ती बेरोजगारी पर काबू पाने और बेतहाशा मुनाफा ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने के लिए काम के घंटे कम करके 'चार' करवाने का संघर्ष प्रारम्भ करना होगा। 8 घंटे के कानूनी प्रविधान को 4 घंटे करने पर तत्काल दुगुने लोगों को रोजगार संभव होगा और वह मुनाफा इस प्रकार चंद हाथों से निकाल कर एक बड़े वर्ग की ज़िंदगी संवार सकेगा।


'काम के घंटे हों-चार 'इस आंदोलन को चलाने के लिए हमारे नेता अपने वेदिक विद्वानों के विचारों को साथ लें तो जनता का भला कर सकेंगे।मथुरावासी विजय सिंह जी का लिखा मेरे स्वर मे यह गीत सुनें और स्पष्ट समझें कियह मजदूर आंदोलन को संगठित करने मे बहुत मददगार होगा। काश नेतृत्व स्वीकार कर सके?






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फेसबुक कमेंट्स :
01-05-2016 

12 comments:

डॉ. मोनिका शर्मा said...

एकजुट संघर्ष ही कुछ बदलव ला सकता है.....उम्दा सुझाव

रविकर said...

आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति
बुधवारीय चर्चा-मंच पर |

charchamanch.blogspot.com

Dr (Miss) Sharad Singh said...

महत्वपूर्ण प्रस्तुति...

Maheshwari kaneri said...

बदलाव लाना जरुरी है..सही कहा.विजय जी आप ने....उपयोगी प्रस्तुति....आभार..

सदा said...

बिल्‍कुल सही कहा आपने ...सार्थक प्रस्‍तुति।

मोहन श्रोत्रिय said...

***मित्र विजय राजबली माथुर की लिंक पर मेरी टीप***

कुछ संकल्प ट्रेड यूनियन चलाने वालों को भी लेने ही चाहिए, साथी ! ऐतिहासिक रूप से एक अत्यंत सबल-समर्थ मज़दूर आन्दोलन को पटरी पर से उतार देने की अपनी क्रांति-विरोधी भूमिका के भीतर भी झांकना चाहिए. आत्मालोचन इतना गैर-ज़रूरी उपकरण यों ही नहीं बन गया है. यूनियनों के राजनैतिक एवं विचारधारात्मक शिक्षण-प्रशिक्षण की ओर ज़रूरी ध्यान न देने का पाप किसके सिर पर मंढा जाना चाहिए? उन्हें अर्थवाद की गिरफ़्त में फंसा देने की ज़िम्मेदारी किसके सिर जाती है? उन्हें कारखाने में लड़ाका, और घर-परिवार और बस्ती में जातिवादी/सांप्रदायिक राजनीति का शिकार हो जाने, और वैसा ही बना रहने की अनदेखी करने की ग़लती किसने की? यह अंतर्विरोध क्या इतना छोटा था कि इसकी ओर क्रन्तिकारी(?) नेतृत्व का ध्यान ही नहीं गया? वे कौनसी भूलें थीं जिनके परिणामस्वरूप "दत्ता सामंत-मार्का ट्रेड यूनियन आंदोलन" का उदय संभव हो पाया? असंग़ठित क्षेत्र के महत्वपूर्ण हो सकने वाले योगदान को किसने कम करके आंका? सवाल तो और भी हैं, पर संक्षेप में ये कुछ सवाल हैं, जिन पर विचार-मंथन किया जाना चाहिए.

vijai Rajbali Mathur said...

कारपोरेट ट्रेड यूनियनिज़्म का खेल/शिकार

नारायण मूर्ती साहब के केजरीवाल संबन्धित खुलासे के बाद कारपोरेट घरानों का यह पुराना खेल याद आ गया कि किस प्रकार कर्मचारियों मे अपने नुमाईन्दे फिट करके कारपोरेट कंपनियाँ मजदूर आंदोलनों को छिन्न-भिन्न करने हेतु कर्मठ कर्मचारी नेताओं को बर्खास्त कर देते हैं। ये कारपोरेट घराने जनता के बीच जन-हितैषी नेताओं की छ्वी धूमिल करने हेतु हज़ारे/केजरीवाल/रामदेव जैसे लोगों को फ़ाईनेन्स करके फर्जी नेता बना कर खड़ा कर देते हैं। मजदूर आंदोलनों की भांति ही जन-आंदोलन भी ध्येय से इन लोगों के कारण भटक जाते हैं और जनता का शोषण बदस्तूर चलता-बढ़ता रहता है।

Jyoti khare said...

मजदुर दिवस पर सार्थक आलेख
उत्कृष्ट प्रस्तुति


विचार कीं अपेक्षा
आग्रह है मेरे ब्लॉग का अनुशरण करें
jyoti-khare.blogspot.in
कहाँ खड़ा है आज का मजदूर------?

vijai Rajbali Mathur said...

फेसबुक पर प्राप्त टिप्पणी---
भूपट शूट----- आपने धर्म के बारे में कमुनिस्ट समुदाय से अलग हट के बात रखी हैं. अगर यह सोच और विचार शायद कमुनिस्ट विचारक और नेता गहराई से समझे तो धीरे-धीरे ही सही मगर उनमे आम जनता से नजदीकी जुड़ाव जरुर होगा . यह जुड़ाव नव-सर्जनात्मक चेतना को आगे बढायेगा. इस चेतना से जनता अपना नेतृत्व पैदा करेगी.
41 minutes ago · Unlike · 1

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

बेहतरीन सुझाव व सार्थक प्रस्तुति

Yashwant R. B. Mathur said...

कल 02/05/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !

Reena said...

Salute on May Day!